क्या आपको पता है कि ऐतिहासिक इमारतों से सजे हुए इस दिल्ली(Delhi) शहर में कुछ ऐसी इमारतें भी हैं जहां जाने की हिम्मत हर कोई नहीं कर पाता है? और इन इमारतों का जिक्र हर कोई नहीं करता। क्योंकि यह इमारतें साधारण इमारतें नहीं हैं बल्कि ये दिल्ली के उन गिने चुने हाउंटेड(Haunted) इमारतों में से एक हैं जिनकी कहानियां आज से कई सौ साल पुरानी है। इतना ही नहीं, इनमें से कई इमारतें ऐसे भी हैं जिनकी चर्चा सिर्फ दिल्ली में नहीं बल्कि पूरे देश में होती है(Hidden gems of delhi)। और ऐसा हीं एक हॉन्टेड प्लेस(haunted place) है कुदसिया बाग(Qudsia Bagh)।
आज के फाइव कलर्स ऑफ़ ट्रैवल (Five Colors Of Travel) के इस ब्लॉग में हम आपको दिल्ली के इसी कुदसिया बाग के बारे में बताने जा रहे हैं।(Hidden place of Delhi)
क्या कहता है इतिहास?(What is the history of Qudsia Bagh?) इतिहासकारों और दिल्ली सरकार के डिपार्मेंट ऑफ़ आर्कियोलॉजी (Department of archaeology) के हिसाब से इस बगीचे का निर्माण 1748 में करवाया गया था। बताया जाता है कि कुदसिया बेगम एक नर्तकी थीं जो मुगल बादशाह (Mughal Emperror) मोहम्मद शाह के दरबार में रक्श पेश किया करती थीं। उनकी खूबसूरती और नृत्य कला से मुगल बादशाह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने कुदसिया बेगम से निकाह कर लिया। बताया जाता है कि कुदसिया बेगम लाल किले के चहल पहल वाली जिंदगी से दूर सुकून से रहना चाहती थीं और उनकी इसी इच्छा को ध्यान में रखते हुए उनके बेटे अहमद शाह ने इस बाग का निर्माण करवाया था। यह बाग कश्मीरी गेट के पास सिविल लाइंस के इलाके में पड़ता है। जहां उस समय यमुना नदी की धारा बहती थी। इस बगीचे में एक प्रवेश द्वार, एक मस्जिद और एक बावड़ी के अतिरिक्त कई सारी मेहराबें हैं। इतिहासकारों के मुताबिक यहां कई सारी इमारतें थी जिन्हें स्वतंत्रता संग्राम के समय अंग्रेजों द्वारा ध्वस्त किया कर दिया गया था। यहां के मस्जिदों में आज भी नियमित तौर पर नमाज अदा किया जाता है। अब इस पार्क का नाम बदल कर महाराणा प्रताप वाटिका(Maharana Pratap Vatiika) रख दिया गया है।
कुदसिया बेगम का व्यक्तिगत जीवन :
अगर बात करें कुदसिया बेगम के व्यक्तिगत जीवन के बारे में तो बताया जाता है कि उनका जन्म मूल रूप से एक हिंदू परिवार में हुआ था और उनका नाम उधम बाई था। कुदसिया बेगम को अपने जीवन काल में बाई-जू साहिबा, नवाब कुदसिया, साहिबा-उज़-ज़मानी और मुमताज महल जैसे कई प्रकार के उपनामों से भी नवाजा गया था।
हालांकि कुदसिया बेगम का जीवन बहुत विवादित माना जाता है, क्योंकि बताया जाता है कि उनका संबंध उन्हीं के हरम के प्रबंधक जावेद खान नवाब बहादुर के साथ था जो एक किन्नर था। उनके इस संबंध के बारे में यह भी कहा जाता है कि जब 1752 में जावेद खान नवाब बहादुर को सफदर जंग ने मार दिया तो कुदसिया बेगम ने उनकी हत्या पर न सिर्फ शोक जताया बल्कि अपने गहनों को भी त्याग दिया और सफेद वस्त्र को धारण कर लिया।कुदसिया बेगम बहुत हीं खर्चीली और उदार किस्म की व्यक्ति थीं। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब महल में सैनिकों के तनख्वाह के बकाया को भुगतान करने के लिए दो लाख रुपए भी इकट्ठा नहीं किए जा सके, तब उन्होंने सिर्फ अपना जन्मदिन मनाने के लिए दो करोड़ रुपए खर्च कर दिए। 26 मई 1754 को मल्हार राव होल्कर ने अहमद शाह बहादुर को हरा दिया था। इसके बाद कुदसिया बेगम सिकंदराबाद छोड़कर दिल्ली भाग कर आ गईं। लेकिन मल्हार राव होलकर ने दिल्ली तक उनका पीछा किया और अहमद शाह बहादुर के साथ-साथ कुदसिया बेगम की भी आंखें निकलवा दी।
क्या है इस बाग की खासियत?(What is the specialty of this garden?)
अगर बात करें इस बाग के खासियतों के बारे में तो आपको इस बाग में न सिर्फ मुगल इतिहास देखने को मिलेगा, बल्कि पारसी स्थापत्य कला के नमूने भी देखने को मिल जाएंगे। इस बाग में एक बारहद्वार वाला महल है जो इसका सबसे मुख्य आकर्षण माना जाता है। इसके अतिरिक्त इस बाग में एक मस्जिद भी है जहां प्रतिदिन नियमित तौर पर नमाज अदा किया जाता है। यहां के मस्जिद में नमाज की टाइम टेबल भी लगाई गई है। हालांकि अंग्रेजी सरकार के बमबारियों के कारण इस मस्जिद का काफी नुकसान हो चुका है, लेकिन अभी भी आप यहां उस समय के स्थापत्य कला के नमूने देख सकते हैं। यहां की मेहराबों पर की गई महीन नक्काशियां लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम हैं। इस बाग के दरवाजे इतने बड़े-बड़े हैं कि उनमें से हाथी भी गुजर सकते हैं। बताया जाता है कि इन दरवाजों को हाथियों के गुजरने के लिए हीं बनाया गया था। आपको इस बाग में एक ऐसा स्थान भी देखने को मिलेगा, जहां पर हाथियों को बांधा जाता था। इस बाग में एक ओपन जिम भी है। जहां पर आप एक्सरसाइज कर सकते हैं। साथ हीं इस बाग में बच्चों के लिए एक छोटे से पार्क की व्यवस्था भी है। जहां बहुत से अलग-अलग प्रकार के झूले लगाए गए हैं। यहां बैठने की भी बहुत ही अच्छी व्यवस्था की गई है और इस पार्क के साफ-सफाई का भी बहुत हीं अच्छे से ध्यान रखा जाता है।
क्या है कुदसिया बाग की टाइमिंग?(What is the timing of Qudsiya Bagh?)
जहां अधिकतर हॉन्टेड जगहों की टाइमिंग फिक्स होती है और वहां 5:00 के बाद लोगों को जाने नहीं दिया जाता है, वहीं कुदसिया बाग उन सभी हॉन्टेड जगहों से थोड़ा अलग है। अगर बात करें कुदसिया बाग के टाइमिंग (Qudsia Bagh timings) की तो यह चौबीसो घंटे खुला रहता है। यानी कि यहां पर आप कभी भी आ जा सकते हैं। इस बाग में आने जाने की कोई पाबंदी नहीं है और ना हीं आपको इस बाग में आने के लिए किसी भी प्रकार के टिकट (Qudsia Bagh ticket price) की आवश्यकता होगी।
कैसे पहुंचे कुदसिया बाग?(How to reach Qudsia Bagh?) अगर आप कुदसिया बाग आना चाहते हैं तो इसके लिए आपको सबसे पहले कश्मीरी गेट पहुंचना होगा। आप अपनी इच्छा अनुसार बस या फिर मेट्रो से कश्मीरी गेट (Which metro station is near to Qudsiya Bagh) पहुंच सकते हैं। कश्मीरी गेट पहुंचने के बाद आप वहां से 700 मीटर पैदल चलकर इस बाग तक पहुंच जाएंगे। आप चाहे तो कश्मीरी गेट से ई-रिक्शा भी ले सकते हैं। आपको इस बाग में अपनी गाड़ी से भी आ सकते हैं। यहां पार्किंग की बहुत अच्छी व्यवस्था की गई है।
जब हमने इस बाग को एक्सप्लोर किया और पूरी तरह से छानबीन की तो हमें इस बाग में ऐसा कुछ हाउंटेड नहीं दिखा। बल्कि हमें इस बाग में आकर बहुत हीं सुकून का अनुभव हुआ और हमारे हिसाब से आप भी बिना डरे इस बाग में घूमने जा सकते हैं। यकीनन आपको भी यहां पर बहुत हीं अच्छा महसूस होगा।