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क़ुली खान का मकबरा– अंग्रेजों के ज़माने का पसंदीदा हनीमून डेस्टिनेशन

पिछले साल अक्टूबर,2023 में दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना ने महरौली पुरातत्व पार्क के अंदर स्थित छह इमारतों  का जीर्णोद्धार के बाद उद्घाटन किया। इनमें से एक था कुली खान का मकबरा। दिल्ली के दक्षिण में स्थित महरौली पुरातत्विक उद्यान, क़ुतुब मीनार के पास फैला हुआ है। जैसे ही आप इसके अंदर प्रवेश करते हैं, दाईं ओर गुलाबों का एक बेहद खूबसूरत बगीचा नजर आता है और बाईं ओर हरे-भरे विशाल वृक्षों की हरियाली फैली रहती है। यह बगीचा ब्रिटिश काल में बनाया गया था। यहाँ बेहद खूबसूरत झील नजर आती है जिसे देखते ही सचमुच दिल बहुत प्रसन्न हो जाता है। शांतचित माहौल में पक्षियों की मधुर ध्वनि और झील में पानी पर पड़ती आसमान की परछाई को देखकर एकबार तो ऐसा लगेगा कि मानो जैसे आप जन्नत में आ गये हों। इस जगह को ‘बोट हाउस’ के नाम से भी जाना जाता है।

कैफ़े स्टोन

महरौली पार्क में आगे बढ़ते हुए, लगभग चार सौ मीटर चलने के बाद और कुछ सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद सबसे पहले बेहद खूबसूरत तरीके से डिजाईन किया गया कैफ़े स्टोन दिखाई देता है. यह गोलाकार स्मारक के रूप में बना हुआ है,  जो शाम के समय रंग बिरंगी लाइट्स में और भी सुंदर दिखाई देता है। इस कैफ़े में आप दो जगहों पर बैठकर प्रकृति और इतिहास दोनों का खूब आनंद ले सकते हैं- एक कैफ़े के अंदर और दूसरा बाहर लॉन में पेड़ों के नीचे।

कहा जाता है कि इस कैफ़े को किसी जमाने में मेहमानों के लिए डाइनिंग हॉल के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था। यहां आपको हर तरह का लज़ीज़ खाना मिल जायेगा. यहाँ आप अपने दोस्तों और परिवार के साथ क्वालिटी टाइम बिता सकते हैं. दिल्ली में आपको इतनी शांत, एतिहासिक और हरियाली से संपन्न जगह शायद ही कहीं मिलें….

क़ुली ख़ाँ का मकबरा

इस कैफ़े के सामने ही आपको क़ुली ख़ाँ का मकबरा दिखाई देगा. सफेद संगमरमर से बना यह मकबरा अपनी एक अनोखी पहचान रखता है। वैसे तो देश की राजधानी दिल्ली में बहुत से मशहूर और पुराने मकबरे हैं, इनमें से हम कुछ मकबरों के नाम से वाकिफ हैं, जो वक्त से साथ-साथ पर्यटकों के पसंदीदा स्थल भी बन गए हैं। और कुछ मकबरों के बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं. क़ुली ख़ाँ का मकबरा भी कोई बहुत ज्यादा फेमस नहीं है. शायद इसीलिए यहाँ आपको पर्यटकों की भीड़ दिखाई नहीं देगी. लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि मुगलों द्वारा बनवाए गए मकबरे होते ही खास है, जिसकी खूबसूरती से कोई इंकार नहीं कर सकता। इस मकबरे का अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह के शासन काल में पुनर्निर्माण करवाया गया था। यह वो दौर था जब देश में ब्रिटिश हुकूमत थी, उस वक्त यहां के गवर्नर जनरल थॉमस मेटकॉफ थे।

दिलकुशा मतलब दिल की ख़ुशी

मकबरे की वास्तुकला

कुली खान का यह मकबरा एक ऊंचे चबूतरे पर बनाया गया है, जो बाहर से त्रिकोण के शेप में है। मकबरे के मुख्यद्वार पर फारसी में कुरान की आयतें लिखीं हुई थीं, जो वक़्त के साथ लगभग अब धूमिल हो गई हैं। चबूतरे का व्यास लगभग 32.5 मीटर है और इसमें पाँच सीढ़ियाँ शामिल हैं, हालाँकि यह स्पष्ट नहीं है कि संरचना में कौन सी सीढ़ियाँ वास्तविक समय की हैं। क्योंकि मकबरे पर बाद में निर्माण कार्य किया गया. मकबरा खुद भी अष्टकोणीय है, जिसकी चौड़ाई 14 मीटर से थोड़ी ज़्यादा है, जिसमें प्रत्येक तरफ़ लगभग 6.3 मीटर का एक केंद्रीय चौकोर कक्ष है। यह संरचना अष्टकोणीय है।

मकबरे की बाहरी दीवारों पर गचकारी प्लास्टर के डिजाइन बने हैं, जो कि फारसी आर्ट है। इसमें बारीकी से किया गया काम देखने लायक है। इसे बनाने के लिए नीले, हरे और पीले रंगों के चमकदार टाइल्स लगाए गए।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यह मकबरा मुग़ल वास्तुकला का एक बेहतरीन नमूना है।

सबसे शानदार और बारीक़ सजावट आंतरिक भाग के चार मेहराबदार प्रवेश द्वारों के आसपास की गई। प्रत्येक मेहराब के किनारे बेहद बारीक़ सुलेखित पट्टियाँ थीं, और मेहराबों और उनके आयताकार फ्रेम के बीच के रिक्त स्थान, ज्यामितीय पैटर्न या अरबी शिलालेखों वाले गोलाकार पदकों से सजाए गए थे। बाहरी आयताकार पट्टियों के चारों ओर विभिन्न रंगों में ज्यामितीय टाइलें लगी हुई थीं, दुर्भाग्य से, इनमें से अधिकांश टाइलें टूट गई हैं, और जो कुछ बची हैं वे बहुत घिस गई हैं, जिनमें से अब अधिकांश को फिर से उसी अंदाज़ में डेकोरेट किया गया है. आप जब इस मकबरे में जायेंगे तो आपको दिखेगा कि उसी जटिल कलाकारी को उम्दा तरीके से पुनर्जीवित किया गया है.

अपने अनुभव के आधार पर हम कह सकते हैं की यह स्थान अपने आप में उन लोगों के लिए सच में अद्भुत है जो इतिहास के साथ-साथ प्रकृति प्रेमी भी हैं। आपको यहाँ से क़ुतुब मीनार भी नजर आएगा। यहाँ एक बड़ा लॉन भी बना हुआ है, जहाँ आप घंटों बिना किसी शोर-शराबे के बैठ सकते हैं। बेहद इत्मिनान से हरी घास पर बैठकर खुद को कुछ समय देना ऐसा लगता है जैसे पूरी दुनिया की थकान मिट गई हो। लेखको के लिए यह जगह ज़न्नत से कम नहीं.

अगर आप इस स्थान का पूरा आनंद लेना चाहते हैं, तो हमारी सलाह होगी कि आप हमेशा आरामदायक जूते या चप्पल पहनकर आएं, ताकि बिना किसी असुविधा के यहाँ का आनंद ले सकें क्योंकि यहाँ आपको काफी पैदल चलना पड़ेगा.

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ऐतिहासिक एवं सामरिक दृष्टिकोण से कुतुब मीनार

एक ऐसी मीनार जो ईट से बनी दुनिया की सबसे ऊंची मीनार है। एक ऐसा भव्य आकर्षण जिसे देखने के बाद आश्चर्य होना लाजमी है। एक ऐसी खूबसूरत इमारत जिसकी दीवारों पर कुरान पाक की आयतें गढ़ी गईं हैं और अंत में एक ऐसा साक्षी जो मुगल साम्राज्य के भारत में प्रसार का प्रत्यक्षदर्शी है। वैसे तो पूरी दिल्ली ही देखने के लिहाज़ से बहुत खास है पर इसकी कुछ नायाब इमारतों को देखे बिना दिल्ली दर्शन अधूरा है। क़ुतुब मीनार इन्हीं खास और नायाब जगहों में से एक है। इस बात में कोई शक नहीं कि मुगलों ने दिल्ली को खूबसूरत बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। शायद इसी का परिणाम है दिल्ली चारों दिशाओं से बेहद खूबसूरत मुगल इमारतों से सजी हुई है। 

दुनिया के सबसे विशालतम मीनारो में शामिल इस मीनार का इतिहास भी उतना हीं विशाल है। यह बात उस समय की है जब भारत में अफगानी आक्रमणकारियों का आगमन हुआ था। सबसे पहले मोहम्मद गोरी ने यहां अपनी हुकूमत स्थापित की। लेकिन गोरी नहीं यहां लंबे समय तक शासन नहीं किया। वह अपने सबसे विश्वासनीय गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक की हाथ में सत्ता की बागडोर देकर वह वापस लौट गया। तब तक भारत में दिल्ली सल्तनत की स्थापना नहीं हुई थी। भारत छोटे-छोटे रियासतों में बंटा हुआ था। वर्ष 1199 कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस मीनार की नींव रखी।

लेकिन यह मीनार एक ही बार में बनकर तैयार नहीं हुआ, बल्कि इसे किश्तों में अलग-अलग मुगल शासकों द्वारा बनवाया गया था।
कुतुबुद्दीन ऐबक इस मीनार की पहली मंजिल का ही निर्माण करवा पाया। उसकी मौत के बाद उसके दामाद इल्तुतमिश ने कुतुब मीनार की दूसरी तीसरी और चौथी मंजिलों का निर्माण करवाया। इस मीनार की अंतिम मंजिल के निर्माण का श्रेय फिरोज शाह तुगलक को दिया जाता है। अब क्योंकि यह मीनार किश्तों में बनकर तैयार हुआ था इसलिए आप इस मीनार पर 12वीं सदी से 14वीं सदी तक मुगलकालीन स्थापत्य कला में आए बदलावों को भी साफ-साफ देख सकते है।

इस मीनार की सबसे पहली मंजिल के दीवारों को 12 गोल तथा 12 टिकों ने पिलरों से बनवाया गया है तथा इसके ऊपर पट्टियों में नक्काशियां की गई हैं। जब आप इन नक्काशीयों को गौर से देखेंगे आपको इनमें ज्यामितीय संरचनाओं, फूलों, अल्लाह के नामों तथा कुरान की आयतों के अंश देखने को मिलेंगे। इतना हीं नहीं, कुतुबुद्दीन ऐबक ने इनमें मोहम्मद गोरी का भी गुणगान किया है। ऐबक ने इन नकाशियों में अपने बारे में भी बहुत कुछ लिखवाया है।

कुतुबुद्दीन ऐबक के बाद इल्तुतमिश के द्वारा बनवाए गए अगले तीन मंजिलों में से दूसरी मंजिल की दीवार को गोल पिलर से किया गया है। इल्तुतमिश ने तीसरी मंजिल के दीवार को तिकोने पिलरों के सहायता से बनवाया गया है, जबकि चौथी मंजिल की दीवार सपाट गोल है। इल्तुतमिश ने अपने द्वारा बनवाई गई तीनों मंजिलों की दीवारों पर बनी पट्टियों में अपने बारे में खुदवाने के साथ-साथ कुरान पाक की आयत और फूल बेलों की नक्काशियां भी करवाई है।
कहा जाता है कि 13वीं और 14वीं शताब्दी में आए भूकंप और बिजली गिरने के कारण इस मीनार के ऊपरी महलों को काफी क्षति पहुंची थी। जिनकी मरम्मत करवाते हुए फिरोज शाह तुगलक ने 1368 ईस्वी में इस मीनार के अंतिम महले का निर्माण करवाया था।

अगर कुल मिलाकर कुतुब मीनार के लंबाई तथा चौड़ाई की बात की जाए तो इस पांच मंजिली भव्य इमारत की लंबाई 72.5 मीटर है। इस विशाल मीनार के आधार का विकास 14.3 मीटर तथा ऊपरी सिरे का व्यास 2.75 मीटर है।
कुतुब मीनार के सभी मंजिलों पर दरवाजे बनवाए गए हैं जिनसे मीनार के छज्जे पर जाया जा सकता है। इन सभी दरवाजों को एक सीध में बनवाया गया है तथा इन सभी दरवाजों तक पहुंचाने के लिए कुतुब मीनार में पूरे 379 सीढ़ियां हैं।

  • काली गुबंद वाली मस्जिद

पूरा कुतुब मीनार परिसर 13 अलग-अलग व्यूपोइंट्स में बंटा हुआ है। हम में से ज्यादातर लोग मुख्य कुतुब मीनार और लौह स्तम्भ से ही वाकिफ़ हैं पर और भी बहुत कुछ है अपनी नक़्क़ाशी के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध क़ुतुबमीनार के इस परिसर में। परिसर में घुसते ही सबसे पहले नजर आती है काली गुबंद वाली मस्जिद। अंदर आते ही सबसे पहले इस मस्जिद पर ही नजर पड़ती है। आगे बढ़ने पर विशिष्ट मुगल शैली के बगीचें दिखाई देते हैं  जो कि मुगलों की प्रसिद्ध चार बाग की शैली में बने हैं। ये चार बाग शैली किसी भी इमारत में जान डाल देती है। प्रसिद्ध मुगल इमारतों में बागों की इसी शैली का प्रयोग किया जाना आम बात है। मीनार के पास मण्डप जैसी दिखने वाली संरचना को कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद कहा जाता है। ये जानकारी पास लगे सूचना बोर्ड से ही मिली अन्यथा हम तो इसे एक सामान्य मण्डप भर समझ रहे थे। इस मस्जिद की स्थापना कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1190 के दशक में की थी। इस मस्जिद की खासियत इसकी स्थापत्य कला है। इंडो इस्लामिक शैली से बनी ये मस्जिद और इसकी नक्काशी एक बार तो आपको दीवाना ही बना देगी। नक्काशीदार स्तंभो पर खड़ी यह मस्जिद बनावट के मामले में बेहतरीन है। अगर यूं कहें कि कुतुब मीनार परिसर की शोभा बढ़ाने में इस मस्जिद का भी अमूल्य योगदान है, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। कुतुब मीनार का सीधा संबंध कुवत उल इस्लाम मस्जिद से भी जोड़ा जाता है, क्योंकि यह मीनार इसी मस्जिद के प्रांगण में स्थित है। बताया जाता है कि कुवत उल इस्लाम मस्जिद दिल्ली की सबसे पहली मस्जिद है। इस मस्जिद का निर्माण भी कुतुबुद्दीन ऐबक ने ही करवाया था। इस मस्जिद के निर्माण में 27 हिंदू मंदिरों के स्तंभों और अन्य अवशेषों का उपयोग किया गया था। इस बात की प्रमाणिकता स्वयं कुतुबुद्दीन ऐबक के समय के शिलालेख से मिलती है। इतना ही नहीं आप अगर इस मस्जिद के स्तंभों को गौर से देखेंगे तो आपको उनमें हिंदू देवी देवताओं, घंटियों फूल पत्तियां जैसे हिंदू स्थापत्य कला के नमूने देखने को मिलेंगे।

  • इल्तुतमिश का मकबरा

अलाई मीनार से आगे बढ़कर परिसर में एक सफेद और लाल बलुआ पत्थर से बना मकबरा नजर आ रहा था। ये वही मकबरा था जिसमें दिल्ली के दूसरे शासक इल्तुतमिश को दफनाया गया था। ये मकबरा कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के ठीक पीछे ही है। मकबरा अपनी इस्लामिक बनावट के कारण अलग ही नजर आ रहा था। इसकी खूबसूरती को देखकर अंदाजा लगाना मुश्किल था कि ये एक कब्र है। किसी शाही महल जैसी इसकी बनावट वास्तव में अद्भुत है। बीच-बीच में बने सफेद मेहराब और खुली छत इसे और भी आकर्षक बनाते हैं।

इस मीनार की पहली तथा दूसरी मंजिल के निर्माण में जहां हल्के गुलाबी पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है, इसकी तीसरी मंजिल लाल रंग के पत्थरों से बनवाई गई है तथा इस मीनार की चौथी तथा पांचवी मंजिल का निर्माण सफेद संगमरमर से करवाया गया है।
बताया जाता है कि सन 1803 ईस्वी में भूकंप की वजह से कुतुब मीनार की ऊपरी मंजिल का ढांचा थोड़ा ढह गया था। जिसकी मरम्मत 1820 ईस्वी में अंग्रेजी सेना के मेजर रॉबर्ट स्मिथ ने करवाया था।

इस मीनार को बनवाने के कई उद्देश्य थे। कहा जाता है कि इस मीनार को बनवाने के पीछे कुतुबुद्दीन ऐबक का उद्देश्य अफगानिस्तान के जाम ए मीनार से भी ऊंची और खूबसूरत मीनार बनवाना था। वहीं कुछ इतिहास मानते हैं कि इस मीनार का निर्माण मुगल साम्राज्य की निशानी के तौर पर और निगरानी के लिए करवाया गया था।

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रक्श से लेकर राज तक,विवादों से भरा था कुदसिया बाग की बेगम कुदसिया का सफर

कुदसिया बेगम का व्यक्तिगत जीवन :

अगर बात करें कुदसिया बेगम के व्यक्तिगत जीवन के बारे में तो बताया जाता है कि उनका जन्म मूल रूप से एक हिंदू परिवार में हुआ था और उनका नाम उधम बाई था। कुदसिया बेगम को अपने जीवन काल में बाई-जू साहिबा, नवाब कुदसिया, साहिबा-उज़-ज़मानी और मुमताज महल जैसे कई प्रकार के उपनामों से भी नवाजा गया था।


हालांकि कुदसिया बेगम का जीवन बहुत विवादित माना जाता है, क्योंकि बताया जाता है कि उनका संबंध उन्हीं के हरम के प्रबंधक जावेद खान नवाब बहादुर के साथ था जो एक किन्नर था। उनके इस संबंध के बारे में यह भी कहा जाता है कि जब 1752 में जावेद खान नवाब बहादुर को सफदर जंग ने मार दिया तो कुदसिया बेगम ने उनकी हत्या पर न सिर्फ शोक जताया बल्कि अपने गहनों को भी त्याग दिया और सफेद वस्त्र को धारण कर लिया।कुदसिया बेगम बहुत हीं खर्चीली और उदार किस्म की व्यक्ति थीं। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब महल में सैनिकों के तनख्वाह के बकाया को भुगतान करने के लिए दो लाख रुपए भी इकट्ठा नहीं किए जा सके, तब उन्होंने सिर्फ अपना जन्मदिन मनाने के लिए दो करोड़ रुपए खर्च कर दिए। 26 मई 1754 को मल्हार राव होल्कर ने अहमद शाह बहादुर को हरा दिया था। इसके बाद कुदसिया बेगम सिकंदराबाद छोड़कर दिल्ली भाग कर आ गईं। लेकिन मल्हार राव होलकर ने दिल्ली तक उनका पीछा किया और अहमद शाह बहादुर के साथ-साथ कुदसिया बेगम की भी आंखें निकलवा दी।

क्या है इस बाग की खासियत?(What is the specialty of this garden?)

क्या है कुदसिया बाग की टाइमिंग?(What is the timing of Qudsiya Bagh?)

जहां अधिकतर हॉन्टेड जगहों की टाइमिंग फिक्स होती है और वहां 5:00 के बाद लोगों को जाने नहीं दिया जाता है, वहीं कुदसिया बाग उन सभी हॉन्टेड जगहों से थोड़ा अलग है।
अगर बात करें कुदसिया बाग के टाइमिंग (Qudsia Bagh timings) की तो यह चौबीसो घंटे खुला रहता है। यानी कि यहां पर आप कभी भी आ जा सकते हैं। इस बाग में आने जाने की कोई पाबंदी नहीं है और ना हीं आपको इस बाग में आने के लिए किसी भी प्रकार के टिकट (Qudsia Bagh ticket price) की आवश्यकता होगी।

जब हमने इस बाग को एक्सप्लोर किया और पूरी तरह से छानबीन की तो हमें इस बाग में ऐसा कुछ हाउंटेड नहीं दिखा। बल्कि हमें इस बाग में आकर बहुत हीं सुकून का अनुभव हुआ और हमारे हिसाब से आप भी बिना डरे इस बाग में घूमने जा सकते हैं। यकीनन आपको भी यहां पर बहुत हीं अच्छा महसूस होगा।

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रंग-बिरंगे फूलों से सजा डीयू का नॉर्थ कैंपस, जानिए इस बार के फ्लावर शो की खास बातें

क्या है दिल्ली यूनिवर्सिटी का फ्लावर शो (What is the flower show of Delhi University)?

हर साल दिल्ली विश्वविद्यालय में वसंत के आगमन पर इस फ्लावर शो का आयोजन किया जाता है, जो यूनिवर्सिटी के बच्चों के लिए काफी एक्साइटिंग होता है। इस साल यह फ्लावर एग्जिबिशन 1 मार्च से लग रहा है और इस साल के दिल्ली यूनिवर्सिटी के फ्लावर शो की थीम है Women Nurturing Nature – A Celebration of Synergy and Sustainability

इस फ्लावर एग्जिबिशन में आपको डेकोरेटिव प्लांट्स और फूलों की 100 से भी अधिक वैराइटीज देखने को मिलेंगी। डियू के नॉर्थ केंपस के बुद्धा गार्डन में लगने वाला यह फ्लावर एग्जिबिशन हर साल हजारों की संख्या में विजिटर्स को अपनी ओर आकर्षित करता है।

क्या है इन फ्लावर्स की खासियत (What is the specialty of these flowers)?

यहां की सबसे खास बात यह है कि इन प्लांट्स को दिल्ली यूनिवर्सिटी के विभिन्न विभागों और कॉलेजो द्वारा हीं उगाया जाता है। इस फ्लावर शो के जरिए अलग-अलग कॉलेज को प्लेटफार्म दिया जाता है जहां वह अपने गार्डनिंग के स्किल्स को दिखाकर बेस्ट गार्डनिंग का खिताब जीत सकते हैं।

क्या है इस फ्लावर शो का मकसद (What is the purpose of this flower show)?

इस फ्लावर शो के जरिए दिल्ली यूनिवर्सिटी विद्यार्थियों के भीतर पर्यावरण के प्रति प्रेम और संरक्षण का भाव जगाने का प्रयास करती है। इस फ्लावर शो की सबसे अच्छी बात यह है कि आप इन प्लांट्स को खरीद भी सकते हैं। यहां आपको बहुत हीं सस्ते में डेकोरेटिव प्लांट्स और फ्लोरल प्लांट्स मिल जाएंगे।

विजिटर्स के लिए है ढे़रों ऑप्शंस (There are many options for visitors)

इस फ्लावर एग्जिबिशन में प्लांट्स के अतिरिक्त होम डेकोर के भी स्टॉल्स लगाए जाते हैं, जहां से आप अलग-अलग डेकोरेटिव आइटम्स भी खरीद सकते हैं।
अगर इस खूबसूरत से गार्डन में घूमते घूमते आपको भूख लग जाए तो उसके लिए भी आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यहां आने वाले विजिटर्स के लिए फूड स्टॉल्स की भी व्यवस्था की जाती है। हमने यहां लगे ऐसे ही एक स्टॉल की ऑनर से भी बातें की और उनसे उनके इस एग्जीबिशन के अनुभव के बारे में जाना।

कई तरह के प्रतियोगिताओं का होता है आयोजन (Many types of competitions are organized)

इस फ्लावर एग्जिबिशन में पोस्टर मेकिंग, फोटोग्राफी, श्लोगन लेखन जैसे और भी कई तरह के कंपटीशंस आयोजित करवाए जाते हैं। अगर आप भी दिल्ली एनसीआर के आसपास रह रहे हैं तो आप भी इस फ्लावर शो को एक बार एक्सप्लोरर जरूर कीजिए। यह फ्लावर शो बहुत ही खूबसूरत और मनभावन है। आपको यहां आकर जरूर हीं बहुत अच्छा लगेगा।

27 नवंबर को खत्म होने जा रहा ट्रेड फेयर आखिरी मौका है घूमने का

ऑनलाइन बुक करें टिकट (Book tickets of Trade Fair online):

ट्रेड फेयर घूमने के समय सबसे ज्यादा परेशानी आती है टिकट की। ऐसे में हम आपको एक एडवाइस देना चाहेंगे कि आप जाने से पहले ही ऑनलाइन टिकट बुक करवा ले। ऑनलाइन टिकट्स बहुत ही आसानी से एवेलेबल हो जाते हैं और आपको किसी भी लंबे लाइन में लगने की जरूरत नहीं पड़ेगी। क्योंकि यह मेला का आखिरी दिन होगा इसलिए इस दिन भीड़ भी बहुत ज्यादा होगी। भीड़ से बचने के लिए यह टिप आपकी बहुत ही काम आने वाली है। ITPO के वेबसाइट से आप बहुत ही आसानी से टिकट बुक कर सकते हैं। आप चाहे तो डायरेक्ट पेटीएम से भी टिकट बुक कर सकते हैं।

वेन्यू मैप को ध्यान में रखें (Keep the venue map of Trade Fair in mind):

अगर आप ट्रेड फेयर देखने जा रहे हैं तो वेन्यू मैप कर ध्यान रखें। अगर आपको कल्चरल प्रोग्राम देखना है तो आप कल्चरल प्रोग्राम हॉल नंबर 5 के अपोजिट में बने एमपीथियेटर में देख सकते हैं। वहीं अगर आप फूड कोर्ट देखना चाहते हैं तो यह आपको हॉल नंबर 3 और 4 के अपोजिट में मिल जाएगा। अगर आप अपने बच्चों के साथ जा रहे हैं तो आपको सबसे पहले किड्स सेक्शन वाले हॉल यानी की हाल नंबर 7 हॉल में जाना चाहिए। या फिर आप हॉल नंबर फाइव के फर्स्ट फ्लोर पर भी जा सकते हैं। अगर आप कुछ अनोखा देखना चाहते हैं तो आप म्यूजिकल फाउंटेन एडज्वाइनिंग हॉल नंबर 1 की ओर रुख कर सकते हैं। फोटो क्लिक करवाने के नजरिए से यह जगह सबसे बेस्ट है।

क्या है देखने और खरीदने को ट्रेड फेयर में (What is there to see and buy at the Trade Fair)?

हर बार की तरह इस बार भी ट्रेड फेयर में आपको किचन एसेंशियल्स जैसे बर्तन ड्राई फ्रूट्स कुकीज नमकीन और मसाले, किड्स स्पेशल में खिलौने, रुबिक्स क्यूब, कार्ड, चेस बोर्ड, स्टेशनरी, वुमेंस स्पेशल में कॉस्मेटिक्स, ज्वैलरी और तरह-तरह के कपड़ों के साथ-साथ अलग-अलग तरह के इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज, अलग-अलग राज्यों के कपड़े अलग-अलग राज्यों के खाने अलग-अलग राज्यों की कलाकृतियां और हैंडीक्राफ्ट्स देखने को और खरीदने को मिलेंगे।

अब बस 7 मिनट में कर पाएंगे दिल्ली से गुरूग्राम तक की यात्रा

समय की होगी बचत :

बताया जा रहा है कि इलेक्ट्रिक एयर टैक्सी की सुविधा के आने के बाद दिल्ली से गुरुग्राम तक के सफर को सिर्फ 7 मिनट में तय कर लिया जाएगा। आपको बता दे अभी अगर आप दिल्ली से गुरुग्राम तक की यात्रा करेंगे तो आपको मेट्रो से भी कम से कम 60 se 70 मिनट का समय लग जाएगा। लेकिन एयर टैक्सी की सुविधा के आ जाने के बाद यह सफर बहुत ही आरामदायक और कम समय में पूरा होने वाला सफर बन जाएगा।

क्या है इस इलेक्ट्रिक एयर कार की खासियत :

इस सेवा के लिए उपयोग में लाए जाने वाले सभी इलेक्ट्रिक एयर कार मिडनाइट विमान (Electric Air Car Midnight Plane) होंगे। इंडिगो की शाखा इंटरग्लोबल एंटरप्राइजेज (InterGlobal Enterprises) इलेक्ट्रिक एयर टैक्सी आर्चर एविएशन (कैलिफोर्निया) (Electric Air Taxi Archer Aviation) से साझेदारी कर रही है और इस टेक्नोलॉजी को भारत में आम जनता के उपयोग के लिए उपलब्ध करवाने का प्रयास कर रही है। इस विमान की खासियत यह है कि इस विमान को लगातार प्रयोग में लाया जा सकता है। यह लगातार उड़ सकता है और इस विमान को चार्ज करने में भी बहुत कम समय लगता है। आपको बता दे कि एक मिडनाइट विमान में चार यात्री एक साथ बैठकर यात्रा कर सकते हैं।

पहली बार सूरजकुंड में एक साल में लगे दो-दो मेले

फरीदाबाद का सूरजकुंड अपने इतिहास के वजह से तो प्रसिद्ध है हीं, साथ ही इस जगह को प्रसिद्ध बनाती है यहां हर साल लगने वाला इंटरनेशनल आर्ट एंड क्राफ्ट फेयर! लेकिन यह साल कुछ खास है। क्योंकि सूरजकुंड में इस बार 1 साल में दो-दो मेले का आयोजन हो रहा है। आपको बता दे कि पहले सूरजकुंड में 3 फरवरी 2023 से 19 फरवरी 2023 तक आर्ट एंड क्राफ्ट मेले का आयोजन किया गया था और अब सूरजकुंड में दिवाली के अवसर पर भी एक मेले का आयोजन होने जा रहा है। इसे आप दिवाली मेला 2023 के नाम से भी जान सकते हैं।

क्यों है खास दिवाली उत्सव (Why is Diwali festival special in Surajkund)?

इतिहास में पहली बार सूरजकुंड में 1 साल में दो-दो मेले का आयोजन किया जा रहा है। इसके अलावा यह मेला इसलिए भी खास है क्योंकि सूरजकुंड में पहली बार दिवाली उत्सव मेला मनाया जा रहा है। इस मेले का आयोजन 3 नवंबर से 10 नवंबर तक किया जाएगा। जहां आप अलग-अलग तरह की एक्टिविटीज कर सकते हैं और मौज मस्ती कर सकते हैं।

ये हैं मुख्य आकर्षण (These are the main attractions of Surajkund):

यहां आपको कई तरह के स्टॉल देखने को मिलेंगे, जिसमें फूड बाजार और स्वदेशी स्टॉल की दो कैटेगरी होगी। पर्यटकों को यहां कल्चरल प्रोग्राम और एम्यूजमेंट राइड्स का भी आनंद लेने का मौका मिलेगा। अगर आप थोड़ा सा ब्रेक लेकर कुछ यूनिक तरीके से दिवाली सेलिब्रेट करना चाहते हैं तो आप डेफिनेटली सुराजकुंड आ सकते हैं। क्योंकि यहां आपके फन और एंजॉयमेंट में बिल्कुल भी कमी नहीं होगी। इसके साथ हीं आप थोड़ी बहुत शॉपिंग भी कर लेंगे।

कैसे पहुंचे सूरजकुंड (How to reach Surajkund)?

सूरजकुंड पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी मेट्रो स्टेशन बदरपुर बॉर्डर का है। जहां से आप ई रिक्शा या ऑटो रिक्शा की मदद से सूरजकुंड पहुंच सकते हैं। इसके अलावा आपको डीटीसी की बस सर्विस भी मिल जाएगी। आप अपने सुविधा के अनुसार मोड ऑफ ट्रांसपोर्टेशन का चुनाव कर सकते हैं।

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पर्यटकों को खूब लुभाता है ये दिल्ली का मीना बाजार

आई हो कहाँ से गोरी आंखों में प्यार लेके,
दिल्ली शहर का पूरा मीना बाजार लेके,,,,,

इस गाने के बोलने जिस तरह से दिल्ली शहर के मीना बाजार का जिक्र किया गया है वह अपने आप में हीं दिल्ली के मीना बाजार को मुकम्मल तरीके से कहानी के रूप में बयां करता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है यह जो दिल्ली शहर का मीना बाजार है वह आखिर दिखता कैसा है और इसे कब और क्यों बसाया गया था? दिल्ली वासियों के लिए तो यह आम बात है, लेकिन दिल्ली से बाहर रहने वाले लोग इस बात को लेकर जरूर उत्सुक होते होंगे कि आखिर दिल्ली शहर का यह मीना बाजार दिखता कैसा है? तो आज के फाइव कलर्स ऑफ ट्रैवल के इस ब्लॉग में हम आपको दिल्ली शहर के मीना बाजार के बारे में बताएंगे।

लाल किला के सामने लगने वाला यह बाजार हर तरह के शॉपिंग करने वाले लोगों के लिए एक अच्छा ऑप्शन होता है। क्योंकि यहां हर तरह के समान आपको मिल जाएंगे। चाहे फिर इलेक्ट्रॉनिक्स की बात हो या फिर डेकोरेटिव आइटम्स की, हर तरह के खरीदारी के लिए यह मीना बाजार परफेक्ट है। इस बाजार को छाता बाजार भी कहा जाता है। चलिए इस बाजार के बारे में जानते हैं और जानते हैं कि यहां से आप किस तरह की शॉपिंग कर सकते हैं।

दूर से हीं दिखने लगते हैं गहनों के दुकान :

इस मीना बाजार को बसाने का उद्देश्य हीं मुगल राजकुमारियों का मनोरंजन था। इसलिए इस मीना बाजार में हर तरह के गहने और साथ सजावट के समान मिलते थे और आज भी आपको मीना बाजार में यह सारे सामान देखने को मिल जाएंगे। यहां आपको हर वैरायटी की चूड़ियां झुमके बालियां और गहने खरीदने को मिल जाएंगे। यहां गहनों की इतनी वैरायटी है कि उन्हें देखकर आप खुद हीं यह डिसाइड नहीं कर पाएंगे कि कौन सा लेना है?

क्लासी लेडीज पर्स (Classy Ladies Purse in Chhata Bazaar)

यहां आपको बहुत ही बढ़िया क्वालिटी के जरी और मोती के वर्क वाले पर्स देखने को मिल जाएंगे जो किसी भी लूक में चार चांद लगाने का काम करते हैं। ऐसे में आप यहाँ से बहुत अच्छे-अच्छे और यूनिक क्वालिटी के पर्स को परचेस कर सकते हैं। आपको भी तरह-तरह के क्लच रखने का शौक है तो यहां क्लच के मामले में भी बहुत सारी वैराइटीज उपलब्ध है। जो यहां आने वाले महिला पर्यटकों के लिए खास आकर्षण बनते हैं

एंटीक कलेक्शन (Antique Collection of Chhata Bazaar)

अगर आपको भी अपने घरों को पुराने और एंटीक चीजों से सजाने का शौक है और आप भी बहुत सारे रंग-बिरंगे शोपीसेज से अपने आशियाने को और भी खूबसूरत बनाना चाहते हैं तो इस बाजार में आपको ऐसे कई सारे एंटीक ऑब्जेक्ट्स मिल जाएंगे जिन्हें आप अपने घर में सजा सकते हैं और घर की खूबसूरती को बढ़ा सकते हैं। अगर आप किसी के लिए एक परफेक्ट गिफ्ट की तलाश कर रहे हैं तो यहां मिलने वाले एंटीक पीस आपके लिए एक बेहतरीन गिफ्ट बन सकते हैं।

क्लासिक शॉल (Classic Shawl in Chhata Bazaar)

अगर आप भी अपने फैशन के साथ एक्सपेरिमेंट करना पसंद करते हैं तो आपके वार्डरोब में शॉल की उपस्थिति अनिवार्य हो जाती है। मीना बाजार में आपको बहुत सारे ऐसे दुकान मिल जाएंगे जहां आपको हर तरह के शॉल देखने को मिल जाएंगे। सर्दियों का मौसम शुरू होने वाला है ऐसे में शॉल फैशन ट्रेंड में आने वाले हैं। इस समय शॉल लेना आपके लिए दोहरे फायदे का काम हो सकता है और मीना बाजार में आपको बहुत ही अच्छी क्वालिटी के शॉल देखने को मिल जाएंगे।

बच्चों के खिलौने (Children’s Toys in Chhata Bazaar)

अब किसी बाजार का जिक्र हो और वहां बच्चों के खिलौने ना हो तो वह बाजार, बाजार नहीं हो सकता। अगर आप भी लाल किला आ रहे हैं और आपके साथ बच्चे भी हैं तो, आप उनके लिए भी बहुत अच्छी खरीदारी कर सकते हैं। यहां आपके बच्चों के बहुत सारे खिलौने जैसे रुबिक्स क्यूब्स, पजल्स और भी अतरंगे खिलौने देखने को मिल जाएंगे। यहां से आप अपने बच्चों के लिए गिफ्ट के तौर पर खिलौने भी ले जा सकते हैं।

आईआरसीटीसी के इस टूर पैकेज से अब एक ही बार में करें चारो धामों की यात्रा

अगर आपकी भी इच्छा चार धाम के यात्रा की हो और आप भी भारत के प्रमुख धार्मिक स्थलों के दर्शन करना चाहते हो तो आईआरसीटीसी के द्वारा लाया गया यह टूर पैकेज आपके लिए ही है। आईआरसीटीसी ने चार धामों के यात्रा के लिए एक टूर पैकेज का प्लान किया है। जिसका नाम है चार धाम यात्रा! आइये जानते हैं आईआरसीटीसी के इस पैकेज के बारे में :-

  • आईआरसीटीसी का ये पैकेज 17 दिन और 16 रातों का है।
  • इस पैकेज के जरीए आप बद्रीनाथ, द्वारिका, हम्पी, जोशीमठ, मदुरै, नासिक, पुरी, ऋषिकेश, रामेश्वरम और वाराणसी की यात्रा कर पाएंगे।
  • आईआरसीटीसी के इस पैकेज का नाम है – चार धाम यात्रा।
  • इस पैकेज के तहत आप रेल मार्ग का उपयोग करेंगे।
  • इस टूर की शुरूआती तारीख 14 सितंबर 2023 है।
  • 14 सितंबर को आप निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन से रात 7:00 बजे ऋषिकेश के लिए निकलेंगे। अगले दिन 2:00 बजे आप ऋषिकेश पहुँचेंगे।
  • वहीं वापसी के समय 27 सितंबर को आपको द्वारिका से दिल्ली ले जाया जाएगा। जहां आपकी यात्रा समाप्त हो जाएगी।

कुछ ऐसा होगा आपका टूर प्लानर :

दिन 1

पहले दिन आप निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन से ऋषिकेश के लिए निकलेंगे। आपको रात्रि भोजन और विश्राम ट्रेन में हीं करना होगा।

दिन 2

अगले दिन सुबह ट्रेन में हीं नाश्ता करके आप जोशीमठ के लिए बढ़ जाएंगे। जोशीमठ के लिए आगे बढ़ते समय उचित स्थान ढूंढ कर दिन का भोजन कर ले। जोशीमठ पहुंचने के बाद होटल में चेक इन करें और रात्रि भोजन और विश्राम करें।

दिन 3

अगले दिन सुबह नाश्ते के बाद बद्रीनाथ के लिए निकले और बद्रीनाथ मंदिर का दर्शन करें और दोपहर का भोजन करें। मंदिर में दर्शन के बाद बड़े गांव का दौरा करेंगें और उसके जोशीमठ वापस आ जाएंगे। होटल में चेक इन कर ले। इसी होटल में भोजन तथा रात्रि विश्राम करें।

दिन 4
अगले दिन आप होटल चेक आउट करेंगे और नरसिंह देवी मंदिर के लिए निकल जाएंगे। नरसिंह देवी मंदिर में भ्रमण करने के बाद, ऋषिकेश की तरफ आगे बढ़ेंगे। ऋषिकेश जाने के मार्ग में हीं दिन का भोजन कर ले। ऋषिकेश पहुँच के होटल में चेक इन करें और खाना खाकर रात्रि विश्राम करें।

दिन 5

अगले दिन होटल से चेक आउट करने के बाद ऋषिकेश में लक्ष्मण झूला और त्रिवेणी घाट का भ्रमण करेंगे और उसके बाद ऋषिकेश के रेलवे स्टेशन से वाराणसी जाने के लिए ट्रेन में चढ़ जाएंगे। दिन का भोजन तथा रात का खाना आपको ट्रेन में ही करना होगा।

दिन 6

छठे दिन ट्रेन में ही नाश्ता करने के बाद आप वाराणसी रेलवे स्टेशन पर उतरेंगे और काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन को निकल जाएंगे। सामने गंगा घाट की आरती का अनुभव लेते हुए आप दोबारा ट्रेन में चढ़ जाएंगे और पुरी के लिए प्रस्थान करेंगे। रात का खाना और विश्राम आपको ट्रेन में हीं करना होगा।

दिन 7

आपको सुबह का नाश्ता और दिन का भोजन ट्रेन में हीं करना होगा। पुरी पहुँच कर होटल में चेक इन करें और शाम में जगन्नाथ मंदिर के दर्शन करें। होटल वापस लौटे और पुरी के समुद्र तट का आनंद उठाएं। आपको पुरी में ही रात में रहना होगा।

दिन 8
होटल में नाश्ता करें और फिर होटल से चेक आउट कर कोणार्क सूर्य मंदिर और चंद्रभागा समुद्र तट के लिए बढ़ जाएं। रास्ते में किसी सही जगह पर ठहरकर दोपहर का खाना खा ले और पूरी रेलवे स्टेशन पहुंच जाएं। रात का खाना ट्रेन में ही खाएं और आराम करें।

दिन 9

नौवें दिन आपको पूरा दिन ट्रेन में हीं बिताना होगा। सुबह की शुरुआत चाय के साथ होगी और ट्रेन में ही नाश्ता करके आपको स्नान भी करना होगा। दोपहर और रात का भोजन भी आपको ट्रेन में हीं मिल जाएगा।

दिन 10

अगले दिन ट्रेन मदुरै रेलवे स्टेशन पहुंचेगी जहां से आप रामेश्वरम के होटल के लिए प्रस्थान करेंगे। होटल में चेकिंग के बाद आप दोपहर का खाना खाएं और फिर शाम को धनुष्कोटी को एक्सप्लोर करने के लिए बढ़ जाएं। धनुष्कोटी घूम लेने के बाद वापस उसी होटल में आकर रात का खाना खाएं और वही आराम करें।

दिन 11

अगले दिन सुबह-सुबह रामनाथ स्वामी के मंदिर के लिए प्रस्थान करें। मंदिर से लौटने के बाद नाश्ता करके मीनाक्षी मंदिर के विजिट लिए निकल जाएं। मीनाक्षी मंदिर घूम लेने के बाद वापस मदुरै रेलवे स्टेशन पहुंचें और हासपेट जंक्शन रेलवे स्टेशन के लिए ट्रेन में बैठ जाएं। शाम को ट्रेन में चाय का लुफ़्त उठाएं और ट्रेन में हीं रात का खाना खाकर आराम करें।

दिन 12

सुबह उठकर ट्रेन में ही फ्रेश हो जाएं। सुबह के 11:00 आप होसपेट जंक्शन पर पहुंच जाएंगे। इसके बाद आप बस के जरिए हम्पी के होटल तक पहुंचे। होटल में चेकिंग करके दोपहर का खाना खाएं और अंजानाद्री पहाड़ी और विरुपाक्ष मंदिर के दर्शनीय स्थलों के यात्रा के लिए बढ़ जाएं।
इन सभी जगह को एक्सप्लोर करने के बाद वापस होटल में आकर रात्रि भोजन करें और वहीं अपनी नींद पूरी करें।

दिन 13

होटल में नाश्ता करने के बाद विट्ठल मंदिर घूमने के लिए निकल जाएं। 12:00 बजे तक वापस हासपेट जंक्शन के लिए प्रस्थान करें। हासपेट जंक्शन पहुंचकर 2:00 बजे नासिक रेलवे स्टेशन के लिए ट्रेन में बैठ जाएं।

दिन 14

सुबह-सुबह 8:00 बजे आप नासिक पहुंच जाएंगे। नासिक पहुंचकर होटल में चेकिंग करके फ्रेश हो जाएं और नाश्ता करने के बाद त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के दर्शन के लिए बढ़ जाएं। दोपहर में उचित जगह पर भोजन करें और वापस नासिक रेलवे स्टेशन पहुंच जाएं। जहां से 7:00 बजे द्वारका रेलवे स्टेशन के लिए ट्रेन खुलती है। ट्रेन में बैठकर रात का खाना खाएं और ट्रेन में हीं आराम करें।

दिन 15

अगले दिन ट्रेन द्वारका पहुंचेगी। द्वारका पहुंचकर होटल में चेक इन करें और फुर्सत से शाम में द्वारका को एक्सप्लोर करें। होटल में रात का खाना खाएं और वहीं आराम करें।

दिन 16

सुबह-सुबह द्वारकाधीश मंदिर के दर्शन के लिए निकल जाएं। दर्शन के बाद नाश्ता के लिए वापस होटल लौटे आए और दोपहर का खाना खाकर होटल से चेक आउट करें। होटल से चेक आउट करने के बाद नागेश्वर ज्योतिर्लिंग और बेट द्वारका के दर्शनीय स्थलों की यात्रा के लिए आगे बढ़ जाएं। इन सभी जगहों को एक्सप्लोर करने के बाद द्वारका रेलवे स्टेशन वापस लौटे और ट्रेन में बैठकर वापसी की यात्रा के लिए प्रस्थान करें। ट्रेन में ही रात का खाना खाएं और आराम करें।

दिन 17

अगले दिन ट्रेन आपको निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर पहुंचा देगी। इसके बाद आपकी यह यात्रा समाप्त हो जाएगी।

इस टूर पैकेज में क्या-क्या शामिल होगा (What will be included in this tour package)

  • पूरे सफर के दौरान आपको स्पेशल टूरिस्ट ट्रेन में 1 (AC), 2 (AC) और 3 (AC) क्लास के कोच में यात्रा करने को मिलेगा।
  • इस यात्रा के दौरान 7 दिन एक अच्छे होटल में आपके ठहरने की व्यवस्था की जाएगी।
  • डीलक्स कैटेगरी के एक होटल में और फर्स्ट एसी क्लास में आपको ठहराया जाएगा।
  • सुबह की चाय ब्रेकफास्ट लंच और डिनर सारे खाने आपको इस पैकेज के जरिए फ्री मिलेंगे।
  • सेकंड एसी एंड फर्स्ट एसी क्लास के लिए ट्रेन रेस्टोरेंट में आपको पैकेज की ओर से खाना दिया जाएगा। वहीं 3 एसी क्लास के यात्रियों के बर्थ पर खाना पहुंचा दिया जाएगा।
  • इस पूरी यात्रा के दौरान ट्रेन में 9 दिनों का नाइट स्टे इस पैकेज में शामिल होगा।
  • सभी तरह के यातायात और दर्शनीय स्थलों की यात्रा ऐसी गाड़ी में करवाई जाएगी।
    आपको इस यात्रा के लिए ट्रैवल इंश्योरेंस मिलेगा।
  • आईआरसीटीसी के टूर मैनेजर आपके साथ पूरी यात्रा के दौरान ट्रैवल करेंगे और जरूरत पड़ने पर आपका मार्गदर्शन करेंगे।
  • ट्रेन में आपकी सुरक्षा का ध्यान रखा जाएगा।
  • यात्रा के दौरान लगने वाले सभी प्रकार के कर इस पैकेज में इंक्लूडेड है।

क्या नहीं होगा शामिल (What will not be included)

  • यात्रा के दौरान बोटिंग और एडवेंचरस स्पोर्ट्स के लिए आपको टिकट खुद हीं खरीदनी होगी।
  • मेन्यू के अलावा अलग से किसी भी प्रकार के खाने का खर्च आपको खुद ही उठाना होगा।
  • इस पैकेज में रूम सर्विस शामिल नहीं है।
  • अगर आप लोकल गाइड करना चाहते हैं तो उसके लिए आपको खुद ही पे करना होगा।
  • किसी भी तरह के टिप के लिए आपको अपने ही जेब पर निर्भर रहना पड़ेगा।
  • पहाड़ियों पर एसी ट्रांसपोर्ट की सुविधा नहीं होगी।
  • जो भी इस ट्रैवल पैकेज के इंक्लूडिंग्स में शामिल नहीं है वह सुविधा आपको नहीं दी जाएगी।`

बजट (Budget)

अगर बात करें इस टूर पैकेज के बजट की तो यह पैकेज महंगा दिखता है, लेकिन जब एक हीं बार में चारों धामों की यात्रा और इतने अलग-अलग जगहों पर घूमने का अवसर मिल रहा हो तो इस टूर पैकेज को हम बजट में मान सकते हैं। क्योंकि ₹60,000 से ₹1,00,000 तक में चारों धामों की यात्रा और इतने सारे विजिटिंग प्लेसेस को कवर करना आपके लिए किफायती साबित होगा। अगर इन सभी विजिटिंग प्लेस के इंडिविजुअल विजिट के खर्च को देखा जाए तो इस टूर पैकेज का बजट उसके सामने कुछ भी नहीं होगा।

इस पैकेज के बारे में अधिक से अधिक जानकारी के लिए आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर जाएं। तो फिर देर किस बात की? अगर आप भी इंटरेस्टेड हैं तो अभी बुक कीजिए अपना और अपने फैमिली का टिकट।

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एशिया की सबसे सस्ती मार्किट दिल्ली का चोर बाजार(Chor Bazar)

जानिए एशिया की सबसे सस्ती मार्किट(Cheapest Market of Asia) दिल्ली के चोर बाजार की कहानी : जहाँ सुबह चार बजे लोग आने लगते हैं शॉपिंग के लिए

दिल्ली में घूमने के लिए कई प्रमुख जगह और प्रसिद्ध बाजार हैं । इनमें से बहुत सी जगह कई हजार साल पुराने भी हैं और उनका ऐतिहासिक महत्व भी है। हमने आपको अपने पिछले व्लॉगस में कई ऐतिहासिक से लेकर आधुनिक जगहों से परिचित करवाया है। मगर आज हम जिस जगह से आपका परिचय करवाने जा रहे हैं वह किसी पहचान की मोहताज नहीं है।जी हाँ, हम बात कर रहे हैं  दिल्ली की फेमस संडे मार्किट, जिसे चोर बाजार भी कहा जाता है। संडे मार्केट यानी कि चोर बाजार में आपको कपड़ों से लेकर जूतों तक, कॉस्मेटिक से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स  तक का सामान आसानी से और कम रुपए में मिल जाएगा। इस बाजार के बारे में कहा जाता है कि  अगर आप मन में जिस चीज का नाम लोगे वो चीज आपको यहाँ मिल जाएगी। बता दें कि अधिकतर लोग इस बाजार को चोर बाजार के नाम से ही जानते हैं। शायद यहाँ मिलने वाली चीजों के काम दाम के कारण।  तो आइए आज के इस सफर में हम आपको ले चलते हैं दिल्ली की संडे मार्केट यानी कि चोर बाजार(Chor Bazar)में….

Chor Bazaar Delhi

चोर बाजार के बारे में सुना तो बचपन से बहुत कुछ था। मगर वहां जाने का मौका अब मिला। चोर बाजार को लेकर ऐसी अफवाहें हैं कि वहां पर चोरी का सामान मिलता है। आप जानते ही हैं भारत में लोग कम दाम की चीजों को ज्यादा महत्व देते हैं। इसके पीछे कारण कोई भी हो चाहे वह चीज चोरी की हो या कैसी भी हो, लोग उसे खरीदना जरूर पसंद करते हैं क्योंकि वह कम दाम की होती है। आपको बता दें इसे एशिया की सबसे सस्ती मार्केट भी कहा जाता है। यहां हर तरह के हजारों आइटम मिलते हैं। यदि आपके पास 1000 रुपए है, तो आप यहां बैग, ईयरफोन, सॉक्स, कॉसमेटिक और कई यूटिलिटी आइटम भी खरीद सकते हैं। खास बात ये कि आउटडेटेड प्रोडक्ट्स को तो यहाँ कई गुना कम कीमत में खरीदा जा सकता है।Chor Bazaar Delhi

यहाँ जाने का सही वक्त (Best Time to Visit)

चोर बाजार जाने के लिए आपको सूर्य देवता के उदय होने से पहले ही पहुंचना होता है। वहां जाने के लिए सुबह जल्दी उठना पड़ता है। मगर याद रहे कि यह बाजार केवल रविवार के दिन ही लगता है। अगर आप दिल्ली के रहने वाले हैं  तो आप मार्केट में आसानी से पहुंच सकते हैं। अगर आप कहीं बाहर से आ रहे हैं तो आपको करीब 4-5 बजे के आसपास बाजार में पहुंचना होगा। अभी फिलहाल रात ही थी सूर्य देवता ने अभी दर्शन नहीं दिए थे।

आप बस से जैसे ही लाल किला स्टॉप पर उतरते हो, उतरते ही सामने ही आपको बड़ी संख्या में लोग देखने को मिलते हैं। एक बारगी ऐसा लगेगा मानो वहां पर किसी तरह का मेला लगा हुआ है। इतनी भीड़ सुबह तड़के आपको आम तौर पर किसी भी मार्किट में दिखाई नहीं देगी । हां, दिन के समय की बात अलग है । मगर एकदम सुबह किसी बाजार में हजारों की संख्या में लोगों का होना आपको भी हैरान कर सकता है। अभी दिन निकलना बाकी था ऐसे समय में जब दिन भी ना निकला हो और लोगों की संख्या हजारों में हो तो इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि इस मार्केट को लेकर लोगों में कितना उत्साह है। बता दें कि लोग इस मार्केट में रात 3 बजे से ही पहुंचने लग जाते हैं।

एक वजह ऐसी भी

तड़के सुबह अँधेरा होने के कारण लोग मोबाइल की टॉर्च जलाकर सामान की परख करते हैं और तोलमोल करके सामान को खरीद रहे होते हैं। गारमेंट्स की बात करें तो वहां पर कपड़े भी आपको कम रुपए में मिल जाते हैं।

कबूतर मार्केटChor Bazaar Delhi

इसे कबूतर मार्केट भी कहा जाता है, क्योंकि यहां पर आपको कोयल, बुग्गी, जावा, कबूतर, खरगोश, आदि सस्ते दामों में आसानी से मिल जाएंगे। जैसे ही दिन चढ़ने लगता है, वैसे ही सड़क पर सामान बेचने वालों की संख्या कम होने लग जाएगी। इसके अंदर जो मार्केट लगती है वह पूरे दिन ही लगी रहती है। जिसे संडे मार्केट कहा जाता है।

जो सुबह सड़क के किनारे सामान मिलता है वह रात के अंधेरे में भी मिलता है। रात के अंधेरे में मिलने वाले समान को संदिग्ध माना जाता है। यही कारण है इसे चोर बाजार का नाम दिया गया है। जैसा कि आपको पहले भी बताया है कि कपड़ों से लेकर जूते तक, कॉस्मेटिक से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स तक का सारा सामान यहाँ पर उपलब्ध है। खास बात ये कि इस मार्केट में आपको किसी भी सामान का जितना मूल्य बताया जाता है, आपको उसका रेट आधे से कम लगाना होता है यानि कि आपको बार्गेनिंग या तोलमोल करना आना चाहिए। यहाँ शॉपिंग का मन बनाने से पहले अच्छा होगा कि आपके साथ कोई ऐसा व्यक्ति जाए जिसे गैजेट्स और टेक्नोलॉजी की बारीक़ समझ हो।

जैसे-जैसे समय बीतता जायेगा, वैसे-वैसे मार्केट में भीड़ भी बढ़ती जाएगी। रविवार को दिन के समय यहाँ आपको अच्छी खासी भीड़ देखने को मिल जाएगी। दिन के समय अगर आप यहाँ शॉपिंग करने आएं तो इस संडे बाजार के सामने ही प्रसिद्ध लाल क़िला, जामा मस्जिद और चांदनी चौक भी है जिसे आप मजे से घूम सकते हैं।

लैपटॉप लेना खतरे से खाली नहीं (Taking a laptop is not free from danger)

लैपटॉप की बात करें तो लैपटॉप यहाँ से लेना किसी खतरे से कम नहीं है। लैपटॉप का मूल्य आपको 6 हजार से 10 हजार तक का बताया जाता है। लोग तोल मोल करके ले जाते हैं। लेकिन हम आपको सलाह देंगे कि यहाँ से लेपटॉप लेना किसी खतरे से खाली नहीं है। हां, अगर कोई इस फील्ड में एक्सपर्ट है तो वह जाँच परख कर लैपटॉप ले सकता है।

अन्यथा लैपटॉप लेना किसी खतरे से खाली नहीं है! यहाँ लैपटॉप देखने में तो बहुत अच्छे लगते हैं। ऐसा लगता है मानो कि यह बिल्कुल ही नए हैं। इसकी पैकिंग ही ऐसी होती है कि लैपटॉप यहाँ आने वाले खरीददारों को खूब आकर्षित करता है और लोग इसकी डेकोरेशन और प्रेजेंटेशन को देखकर ही उसे खरीद लेते हैं और बाद में घर जाकर पछताते हैं। आपको यह भी बता दें कि इस मार्किट में आप अपना मोबाइल और पर्स संभाल कर रखें क्योंकि यहाँ पर मोबाइल और पर्स बहुत अधिक चोरी होता है।

क्या चोरी का मिलता है सामान ?

ऐसा कहा जाता है कि जो लोग रात के अंधेरे में सामान बेचते हैं यह चोरी का सामान होता है। जिस वजह से ब्रांडेड सामान भी आपको आधे से कम रुपए में भी मिल जाता है। लेकिन यहाँ सभी चीजें चोरी की नहीं होती हैं। यह केवल लोगों के मन में धारणा बन चुकी है कि यहां पर रात के अंधेरे में सामान चोरी का मिलता है। जो ब्रांडेड सामान आपको हजारों रुपए में मिलता है वह आपको मात्र 500 के आसपास ही मिल जाता है। यहाँ पर अच्छा सामान मिलना आपकी किस्मत पर निर्भर करता है। बता दें  यहां पर फ्रॉड भी बहुत होता है। कई विक्रेता किसी भी ब्रांड का डुप्लीकेट भी लोगों को बेच देते हैं और लोग मन में ही गदगद हुए उसको ब्रांड समझ कर ले जाते हैं। वहां पर मोबाइल चोरी का बता कर बिगड़ा हुआ भी बेचते हैं। वहां पर ठगी का काम ज्यादा होता है। इसलिए थोड़ा सावधान रहने की ज्यादा आवश्यकता रहती है।  आप को इस तरह के मोबाइल खुले तौर पर नहीं मिलते हैं। वहां पर पुलिस का भी पहरा होता है। चोरी का मोबाइल बेचने वालों पर पुलिस की नजर रहती है।

घूमने के लिए और भी जगह है प्रमुख (More Places to visit)

आप इस मार्केट के अलावा लाल किला, जामा मस्जिद, दरियागंज, चांदनी चौक भी घूम सकते हैं क्योंकि यह ठीक इस मार्किट के साथ ही है।

कैसे पहुंचे संडे मार्केिट(How to reach Chor bazar )

इस मार्केट में पहुंचने के लिए सबसे निकट पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन है। यहां से आपको मात्र 5 मिनट पहुंचने में लगेंगे अगर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से आते हैं तो वहां से आपको केवल 10-15 मिनट यहां पहुंचने में लगेंगे। आप डीटीसी की बस, कैब  या ऑटो रिक्शा से आसानी से यहां पहुंच सकते हैं। हवाई अड्डे से यहां पहुंचने में आपको कम से कम 1 घंटे का समय लग सकता है। वहां से भी आप ऑटो रिक्शा, कैब  या महिपालपुर से डीटीसी की बस पकड़ कर आ सकते हैं।  अगर आप आईएसबीटी बस अड्डे से यहां आते हैं तो आपको केवल 10 से 15 मिनट ही यहां पहुंचने में लगेंगे। वहां से भी आपको ऑटो रिक्शा, कैब  या डीटीसी की बस मिल जाएगी। आनंद विहार बस अड्डे से आपको एक से डेढ़ घंटा यहां पहुंचने में लग सकता है। यहां से भी ऑटो रिक्शा या डीटीसी बस की सहायता से आप पहुंच सकते हैं।  यहां का निकटतम मेट्रो स्टेशन लाल किला है और निकट बस स्टैंड भी लाल किला के नाम से ही है।

हां, एक बात का आपको जरूर ख्याल रखना होगा, आपको खुद अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करना होगा। जब आप यहां आते हैं तो आपको लाल किला ही उतरना है। अगर आप इधर उधर उतरते हैं तो आप अपना रास्ता भटक सकते हैं।

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