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राष्ट्रीय रेल संग्रहालय, दिल्ली

रेल चली भाई रेल चली, छप्पक- छप्पक रेल चली।

बचपन जाने कब इन सुगुच्छित पंक्तियों को सुनकर जवानी में बदल गया। एक समय था। जब लोग पैदल चलते थे। फिर घोड़ा, घोड़े से बैलगाड़ी, बैलगाड़ी से साइकिल, साइकिल से मोटरसाइकिल, मोटरसाइकिल से चारचक्का यानी कार। फिर बस, ट्रेन, हवाईजहाज, जहाज इत्यादि। पहले पहल हमें ट्रेन के बारे में सुनकर ऐसा लगता था, मानो किसी प्रेमिका ने अपने प्रेमी को वह तीन शब्द कह दिए हों, जिनको सुनने के लिए उसका प्रेमी वर्षों से आश लगाए हुए था।

खैर, समय का चक्र गतिमान है। किसी के लिए ठहरता थोड़ी है। वैसा ही कुछ बचपन के साथ हुआ। अब तो रेल की यात्रा भी आम बात हो गई है।
“समय का चक्कर है बाबू भैया, समय का चक्कर”

भारत में ट्रेन

मसलन, भारत में सबसे पहली ट्रेन 1853 में मुंबई से ठाणे चली थी। और हम यह भी जानते ही हैं की रेल की शुरुआत हमारे देश में अंग्रेजों ने की। वह एक अलग मसला है की उसमें उनका ही स्वार्थ था। भले इसमें अंग्रेजों का स्वार्थ था, लेकिन हम भारतीयों के लिए तो एक स्वर्ण अवसर साबित हुआ है।
आज की बात करें तो हिंदुस्तान में 24 मिलियन यात्री रोजाना ट्रेन से आबा- जाबी करते हैं। और लगभग 203 टन माल रोजाना ट्रेनों द्वारा आयात-निर्यात होता है। भारतीय रेल नेटवर्क को दुनियां के सबसे बड़े नेटवर्कों में से एक माना जाता है। दरअसल, बात क्या है जब 24 मिलियन लोग ट्रेन से रोजाना सफर करते हैं। तो उनके मन में ट्रेन और ट्रेन के अविष्कार के बारे में प्रश्न तो उठते ही होंगे। तो इसको बारीकी से समझने के लिए रेल संग्रहालय सबसे उपयोगी स्रोत हैं।National Rail Museum

पूरे भारत भर में छः रेल संग्रहालय हैं। जो इस प्रकार हैं-

  1. राष्ट्रीय रेल संग्रहालय दिल्ली
  2. हाबड़ा रेलवे संग्रहालय
  3. जोशी का लघु संग्रहालय
  4. रेलवे संग्रहालय मैसूर
  5. चेन्नई रेल संग्रहालय
  6. रेवाड़ी रेल संग्रहालय इत्यादि।

हम इस बार बात करेंगे राष्ट्रीय रेल संग्रहालय दिल्ली की।
जो दिल्ली के चाणक्यपुरी में स्थित है। बैसे तो यह संग्रहालय लगभग 170 वर्ष पुराना है, परन्तु इसको संग्रहालय की मान्यता 1 फरवरी 1977 को दी गई। तभी से इसके दरवाजे लोगों के लिए खुल गए। इस संग्रहालय की खास बात यह है कि जो आपको अन्य किसी भी संग्रहालय में नहीं मिलेगा। वह पुराने से पुराने इंजन यहां आपको दृष्टिगोचर हो जाएंगे। भाप के इंजन, कोयले से चलने वाले इंजन और आज के समय में प्रयुक्त इंजन सब आपको क्रमबद्ध तरीके से दिखाई देंगे।

टॉय ट्रेन मनोरंजन का साधन

टॉय ट्रेन संग्रहालय का भ्रमण करने का अच्छा माध्यम है। यह ट्रेन एक चक्कर में ही आपको पूरा संग्रहालय भ्रमण करा देगा। इसमें बैठकर आप पूरे संग्रहालय को खूबसूरती के साथ और मनोरंजन के साथ देख सकते हो। टॉय ट्रेन का आनंद लेने के लिए एक वयस्क के लिए 20 रुपए और बच्चों के लिए 10 रुपए हैं। इस 20 रूपय की आपको अलग टिकट लेनी होगी और इसमें आपको पूरे संग्रहालय का एक ही बार चक्कर लगवाया जाएगा। इसमें बैठकर अच्छे से फोटोग्राफी भी की जा सकती है और वीडियोग्राफी भी की जा सकती है।

ग्यारह एकड़ में में फैला यह संग्रहालय भारत का सबसे बड़ा संग्रहालय है। इस संग्रहालय में 1862 में बनाया गया रामगोटी इंजन भी रखा हुआ है। जो अब जर्जर हालत में है। कुछ समय और इसकी देख रेख नहीं हुई तो यह पूर्णता मिट्टी में लुप्त हो जाएगा। इस संग्रहालय का यह दूसरा सबसे पुराना इंजन है। इसका नाम पश्चिम बंगाल के अंतिम महाप्रबंधक रहे श्री रामगौटी मुखर्जी के नाम पर रखा गया था।

खूबसूरत बागान

चारों तरफ आपको हरियाली ही हरियाली दिखाई देगी। ना ना प्रकार के पुष्पों से सुसज्जित क्यारियां भी नजर आएंगी। जो आपको एक बेहतर बगीचे का आभास कराएगा। कई प्रकार के पेड़ पौधों से सजा हुआ है यह पूरा संग्रालय। चारों तरफ आपको सफाईकर्मी नजर आ जाएंगे। जो इस संग्रहालय को गंदगी से बचाते हैं। पूरे संग्रहालय को आप मस्ती के साथ देख और समझ सकते हैं।

भारतीय रेल का इतिहास

जैसा कि विदित है। रेल की शुरुआत भारत में 1853 में हुई। इसमें 1853 से सैकड़ों इंजन बदल चुके हैं। बोगियों की बनावट पहले कैसी थी, और आज किस प्रकार से इसमें बदलाव हुए हैं। सब आप अपनी आखों से देख और पढ़ सकते हैं। क्या आप यह जानते हैं की आप जिन डिब्बों में आज सफर करते हैं वह पहले लकड़ी के बनाए जाते थे। वैसे ही पहले भाप का इंजन, फिर आग का इंजन और आज बिजली के इंजन पटरियों पर दौड़ते हुए देख सकते हैं।

क्या खास है संग्रहालय में

रेलों के बारीक से बारीक पुर्जे समझने के लिए आपको यह संग्रहालय लाभदायक होगा। ऐतिहासिक, राजनीतिक, और सामाजिक तौर तरीके आपको समझ आ जाएंगे, कि किस तरीके से राजनीतिक सपोर्ट ने रेल यात्रा को सहारा दिया। रेल की पटरियां पहलेपहल लकड़ियां से बनाई जाती थीं। किस सन में किस इंजन का अविष्कार हुआ ये सभी प्रश्न आपके रेल संग्रहालय में हल हो जाएंगे। रेल के छोटे से छोटे नट से लेकर बड़े से बड़े पुर्जे आप यहां देख सकते हैं। यदि आप रेल लाइन में जॉब करना चाहते हैं तो आपको जरूर संग्रहालय का भ्रमण करना चाहिए। आप यहां किताबों की तरह ही सीख पाएंगे। प्रैक्टिकल के तौर पर यह म्यूजियम आपको बेहतर शिक्षा देगा।

यादगार पल जिएंगे आप इस संग्रहालय में

यदि आप एक दिन में इतिहास समझना चाहें तो आपका यह सोचना बिल्कुल निरर्थक है। लेकिन आप एक दिन इस म्यूजियम का दौरा करते हैं तो आपको अधिकतर प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंगे। आपको समझने में आसानी होगी कि कैसे उस समय भी डिब्बे क्लासों में विभाजित हुआ करते थे। फ़स्ट क्लास, सेकेंड क्लास, और थर्ड क्लास इत्यादि। आप अपने इस दौरे को याद रखने के लिए स्मृति चिन्ह भी खरीद सकते हैं। को आपके इस पल को यादगार बना के रखेगा।

दुर्लभ रेल गैलरी

देश के दुर्लभ से दुर्लभ ब्रिज और सुरंगों के स्ट्रक्चर इस गैलरी में संभाल कर रखे गए हैं। लकड़ी, लोहा, पीतल, तांबा सभी धातुओं से बनी दुर्लभ वस्तुएं यहां विद्यमान हैं। इस गैलरी में अंदर जाने पर आपको रेल विभाग का बड़ा सा लोगो भी देखने को मिलेगा। जैसे ही आप अंदर जाओगे। आप पूरी गैलरी को देखने में इतने व्यस्त हो जाएंगे की आपको पता नहीं चलेगा और आप बाहर के गेट पर पहुंच जाएंगे। क्योंकि यह गैलरी गोलाकार स्थिति में है। जो की आपको एक भूल भुलैया के जैसे लगेगी।

कुछ महत्वपूर्ण बातें

रेल एक दुर्लभ वाहन है, जब तक आप इसके सफर का मजा नहीं लेंगे आप इसके बारे में नहीं समझ पाएंगे। एक बार आप जरूर रेल का सफर कीजिए।

  • ट्रेन की पटरियों के बीच की दूरी 1435 मिलीमीटर यानी 4 फीट 8 (1/2 ) इंच होती है।
  • रेल के प्रत्येक कोच की लंबाई 25मीटर होती है।
  • यात्री गाड़ी में अधिकतम 24 कोच लगाए जाते हैं।
  • पच्चीस मीटर का कोच होता है और 24 कोच होते हैं इसका मतलब रेल गाड़ी की लंबाई कुल 600 मीटर होती है। एक बात और याद रखने योग्य है की रेल की अधिकतम लंबाई 650 मीटर हो सकती है।
  • भारतीय रेलवे में 13,000 यात्री ट्रेने और 8,000 मालगाड़ियां चलती हैं जो 7,000 स्टेशनों को कवर करती हैं।

भारत का सबसे पुराना रेल संग्रहालय पश्चिम बंगाल में विद्यमान हावड़ा जंक्शन पर निर्मित है। जिसकी स्थापना 1852 में हुई थी। लेकिन दिल्ली का रेल संग्रहालय भारत का सबसे बड़ा रेल संग्रहालय माना जाता है। को दिल्ली के चाणक्यपुरी में स्थित है। जो पूरे 11 एकड़ में बना हुआ है। इसकी खास बात यह है कि यहां पर 70,80,90 टन तक के इंजन अभी भी सुरक्षित अवस्था में रखे हुए हैं। इस संग्रहालय में बिभन्न जगहों के रेलवे स्टेशनों का स्ट्रक्चर भी बना हुआ है। जो अपनी अलग ही छाप छोड़ने में काबिल है। इसकी स्थापना का श्रेय ब्रिटिश वास्तुकार एम जी सेटो को जाता है। यह संग्रहालय में नायाब से नायाब चीजों से लैस है। राजे रजवाड़ों के प्रयोग वाले कोच भी सुरक्षित रखे गए हैं।

समय का चक्र है चलता ही रहता है। कभी समय था जब कोसों की दूरी पैदल तय करनी होती थी। और आज कुछ ही घंटों में सैकडों किलोमीटर की दूरी तय करने में हम सक्षम हैं। इसका श्रेय जाता है हमारे देश के विज्ञानिकों को इंजीनियरों को जिनके संघर्ष से यह सब सुलभ हो पाया है।

संग्रहालय जानें का उचित समय
राष्ट्रीय रेल संग्रहालय के खुलने का समय सुबह 10:00 बजे से 4:30 बजे तक का है। जाने के लिए सर्दियों के समय में आपको समय की कोई चिंता नहीं करनी चाहिए। लेकिन आप यदि गर्मियों के समय में यहां पर जाते हो तो, आपको या तो सुबह की शिफ्ट लेना चाहिए। या फिर शाम की शिफ्ट।

चूंकि दिक्कत तो कोई नहीं है, लेकिन गर्मियों के दिनों में चारों तरफ लोहे से बने हुए इंजन आग के जैसे धदकते हैं। जिसमें आप फ़ोटोग्राफी या वीडियोग्राफी करने में असमर्थ रह जाएंगे। और आप घूमने का लुत्फ़ उठाने से भी वंचित रह जाएंगे।

टिकट कैसे प्राप्त करें

डिजिटल इंडिया के दौर में हैं हम। ऑनलाइन टिकट प्राप्त कर आप आसानी से लाइन में लगने से बच सकते है। नेशनल म्यूज़ियम की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर आप टिकट बुक कर सकते हैं। टिकट बुक करने के लिए ऑफलाइन भी व्यवस्था है। यदि आप इंटरनेट की दुनियां से दूर हैं तो। आपको संग्रहालय में प्रवेश करते ही टिकट काउंटर दिख जाएगा। आप आसानी से यहां से भी टिकट प्राप्त कर सकते हैं।
टिकट खर्च

टिकट के लिए यदि आप वयस्क हैं तो वयस्क के लिए 50 रुपए और बच्चे के लिए मात्र 20 रुपए।

कैसे पहुंचे

यह संग्रहालय दिल्ली के चाणक्यपुरी में स्थित है। पिन कोड 110021 है। नजदीक बस स्टॉप रेल संग्रहालय है।
यहां से मात्र 500 मीटर की दूरी पर संग्रहालय है। बस स्टॉप से यदि आप चाहें तो पैदल पहुंच सकते हैं, या फिर ऑटो रिक्शा भी ले सकते हैं। ऑटो रिक्शा आपको मात्र 20रुपए में रेल संग्रहालय छोड़ देगा।

Research- Pushpender Ahirwar //Edited by-Pardeep Kumar

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Humayun’s Tomb – Delhi’s Mughal Masterpiece

“Journey Through Mughal Grandeur and Architectural Marvels” Exploring Humayun’s Tomb offers a captivating journey through history, architecture, and culture.(Humayun’s Tomb – Delhi’s Mughal Masterpiece)

History of  Humayun’s Tomb

Humayun’s Tomb, located in Delhi, India, is a mausoleum built for the Mughal Emperor Humayun. It was commissioned by his widow, Empress Bega Begum, in 1569-70, nine years after his death. The tomb was designed by the Persian architect Mirak Mirza Ghiyas, who introduced Persian architectural elements to India, marking the beginning of Mughal architecture.

My Experience of Humayun’s Tomb

Last week, I had the incredible opportunity to visit Humayun’s Tomb, and it was truly an unforgettable experience. From my hotel in bhikaji Cama Place. I took Auto which cost 300 Rupees however only being six miles. The nearest Stations are Nizamuddin Railway Station and JLN Stadium station on the violet Line of the Delhi Metro.

Tickets

Finally I was entered in humayun’s tomb then joined line to buy my tickets. The foreigner entrance fee for humayun’s tomb was 600 Rupees however Indian Nationals only pay 40 Rupees Children under 15 can enter free of charge. Phones were allowed there.

I reached there at 1 :00pm with my friends. It was the best time for visit because you will find less crowd at that time .Stepping through the gates, I felt transported to another era, where the rich history of the Mughal Empire seemed to come alive in every intricate detail of the architecture. The red sandstone walls and intricately carved marble facades exuded a sense of majesty and splendour that was simply awe-inspiring.

Buland Darwaza

Entering the tomb, I was enveloped by a sense of reverence as I gazed upon the tombs of Emperor Humayun and his family. The dimly lit interior and hushed whispers of other visitors created an atmosphere of solemnity and reflection, reminding me of the enduring legacy of the Mughal dynasty. The main entrance gateway of Humayun’s Tomb, known as the Buland Darwaza, stands at an impressive height of around 15 meters(49 feet).


This towering gateway features intricate carvings and ornate embellishments typical of Mughal architecture. Its majestic presence serves as a grand introduction to the monument and adds to the awe-inspiring atmosphere surrounding Humayun’s Tomb. The garden is divided into four equal quadrants by pathways or water channels, creating a symmetrical and geometrically pleasing arrangement. Each quadrant is further subdivided into smaller squares or rectangles, often planted with trees, flowers, and other vegetation.

Charbagh layout

The Charbagh layout symbolizes the concept of paradise in Islamic tradition, representing the four rivers of water, milk, honey, and wine flowing in paradise. This design is not only aesthetically pleasing but also serves practical purposes such as irrigation and drainage.

Surrounding the central chamber, there are additional graves of other notable figures, including Empress Bega Begum, the principal wife of Humayun, and other members of the royal family. These graves are also made of white marble and feature similar ornate carvings and inscriptions. The interior of the mausoleum creates a solemn and reverential atmosphere, with visitors paying their respects to the departed rulers and reflecting on the legacy of the Mughal Empire. The presence of these graves adds to the historical and cultural significance of Humayun’s Tomb, making it not just a monument of architectural brilliance but also a sacred space honoring the memory of the Mughal dynasty.

I spent just over 3 hours at humayun’s tomb and left just 4:00 pm. Then me and my friends enjoyed the street food outside the humayun’s tomb we were having Chole Kulche, Pani Puri/Gol Gappa, Aloo Tikki, Jalebi then we took soft drinks like Coca cola, Pepsi.

Around Humayun’s Tomb, there are several markets and areas where visitors can explore and shop for various items, including souvenirs, handicrafts, clothing, and more. Sundar Nursery Market: Located adjacent to Humayun’s Tomb, Sundar Nursery hosts a small market offering traditional Indian handicrafts, artifacts, and souvenirs. Visitors can also find plants, gardening accessories, and decorative items here.

Emerging from the mausoleum, I took one last lingering look at the magnificent structure before me, feeling grateful for the opportunity to have experienced such a remarkable piece of history. As I bid farewell to Humayun’s Tomb, I carried with me not just memories of a journey through time, but a renewed appreciation for the beauty, craftsmanship, and enduring legacy of this architectural masterpiece.

Written by -Shalini Rawat /// Edited by- Pardeep Kumar

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ईद के मौके पर जानिए भारत के सबसे बड़े और प्रसिद्ध दरगाहों के बारे में

जामा मस्जिद दिल्ली :

अब भारत के सबसे प्रसिद्ध दरगाह की बात हो और भारत के सबसे प्रसिद्ध शहर का नाम ना आए तो यह तो नाइंसाफी होगी। जी हाँ भारत का सबसे प्रसिद्ध दरगाह भारत के सबसे प्रसिद्ध शहर दिल्ली में हीं स्थित है, जिसे हम जमा मस्जिद के नाम से जानते हैं।
जामा मस्जिद भारत का एक ऐसा मस्जिद है जिसे शायद ही कोई न जानता हो। लाल किला के सामने बना हुआ यह मस्जिद देश का सबसे प्रसिद्ध मस्जिद है। जामा मस्जिद अपनी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक, धार्मिक और वास्तुकला के कारण खास है। यह दिल्ली की सबसे बड़ी मस्जिद है और मुग़ल वास्तुकला का अद्वितीय उदाहरण है। इसे मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने 17वीं सदी में 1656 ईसवी में बनवाया था। इसकी बड़ी शानदार मीनारें, व्यापक सजावट, और विशाल आंगन उसे विशेष बनाती हैं।

जामा मस्जिद में ईद के दिन लाखों लोग एक साथ ईद की नमाज अदा करने के लिए इकट्ठा होते हैं। यह एक बड़ी समाजिक और धार्मिक आयोजन होता है जो मस्जिद के आसपासी क्षेत्र में भी लोगों को एक साथ आने का अवसर देता है।

हजरत निजामुद्दीन का दरगाह :

हजरत निजामुद्दीन दरगाह एक महत्वपूर्ण सुफी संत के समाधि स्थल के रूप में माना जाता है। यह दिल्ली में स्थित है और सूफी संत हजरत निजामुद्दीन के नाम पर नामित है, जिन्होंने 14वीं सदी में यहां बहुत से सामाजिक कार्य किए थे।

हजरत निजामुद्दीन के दरगाह की सबसे खास बात यह है कि यहां के माहौल में एक अपनेपन का भाव है। यहां के चारों ओर की रौनक, शांति, और भक्ति वातावरण आगंतुकों को आकर्षित करता है। अगर बात करें हजरत निजामुद्दीन औलिया के बारे में तो वह भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण सुफी संतों में से एक थे। उनका असली नाम शहबुद्दीन मोहम्मद था, और वे दिल्ली में 13वीं और 14वीं सदी के बीच रहा करते थे। उन्होंने विशेष रूप से सुफी पंथ को फैलाने और धर्मिक समरसता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके दरगाह पर आज भी लाखों श्रद्धालु आते हैं और उन्हें अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।

अजमेर शरीफ दरगाह

जब हम भारतीय संस्कृति की बात करते हैं तो भारत एक ऐसा देश है जहां, हर तरह के रहन-सहन खानपान और बोलचाल वाले लोग एक साथ मिलजुल कर रहते हैं। भारतीय संस्कृति की इसी विशालता का एक बेहतरीन उदाहरण है अजमेर शरीफ दरगाह! अजमेर शरीफ दरगाह जिसे ख्वाजा गरीब नवाज दरगाह शरीफ के नाम से भी जाना जाता है, राजस्थान के अजमेर में स्थित एक ऐसा दरगाह है, जो संतों सद्गुरुओं और अराधकों की भक्ति और श्रद्धा का केंद्र है। अजमेर शरीफ का दरगाह एक ऐतिहासिक स्थल है। जो सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती से जुड़ा हुआ है। अजमेर शरीफ दरगाह को मुस्लिम धर्म का पवित्रतम स्थान माना जाता है। आने वाले लोग अपनी इच्छाएं मनोकामनाएं और संकल्प ख्वाजा साहब के समक्ष रखते हैं और उनकी दुआओं के पूरी होने की कामना करते हैं। अजमेर शरीफ के दरगाह में माथा टेकने के लिए भारत अन्य राज्यों के पर्यटकों के अलावा पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी पर्यटक घूमने आते हैं।

सलीम चिश्ती की दरगाह

इस शहर में सलीम चिश्ती की दरगाह भी है। यहां सिर्फ देश ही नहीं बल्कि दुनिया के कोने-कोने से लोग मन्नत मांगने आते हैं। जामा मस्जिद सफेद संगमरमर से बना हुआ है जहां आकर आपको अलग शांति महसूस होगी। फतेहपुर सीकरी में सलीम चिश्ती का दरगाह का इतिहास गौरतलब है। इसे मुग़ल बादशाह अकबर के पुत्र, सलीम चिश्ती, जिन्होंने बाद में जहाँगीर नाम से अभिज्ञान किया, के समय में बनवाया गया था। यह दरगाह उनकी मासूम बेटी के मृत बचपन की यादों को समर्पित किया गया था। इसे अकबर ने अपने बेटी के नाम पर “मारियम-उल-वश्त” का नाम दिया था। यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल है और लोग यहाँ आकर मन्नतें माँगते हैं।

हाजी अली दरगाह, मुंबई

हाजी अली दरगाह मुंबई के महिम परिसर में स्थित है और मुस्लिम समुदाय के लोग यहाँ नमाज अदा करने आते हैं। हाजी अली दरगाह की निर्माण तारीखों के मामले में कुछ अनिश्चितताएं हैं, लेकिन इसे इस्लामिक धर्मावलम्बियों के प्रमुख स्थलों में से एक के रूप में जाना जाता है। इस मस्जिद से बॉलीवुड अभिनेता धर्मेंद्र और अमिताभ बच्चन जैसे कई फ़िल्मी सितारों का संबंध रहा है।
हाजी अली दरगाह के पास मस्जिद और एक बड़ी मस्जिद है। यहाँ एक मुख्य महल भी है जिसमें विशाल अधिवेशन हॉल, श्रद्धालुओं के लिए आरामदायक बैठकरी, और प्रसाद की दुकानें शामिल हैं। दरगाह के चारों ओर रखी गई छतें और जालियां उसे भव्य बनाती हैं। यहाँ पर आने वाले लोगों के लिए धार्मिक और सामाजिक सुविधाएं उपलब्ध हैं।
हाजी अली दरगाह एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है और यहाँ हर वर्ष बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ आती है। खासतौर पर जुम्मा के दिन और ईद के मौके पर यहाँ बहुत अधिक भीड़ उपस्थित रहती है। खास करके मुंबई में रहने वाले मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए यह सबसे प्रसिद्ध इबादतगाह है।

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ऐतिहासिक एवं सामरिक दृष्टिकोण से कुतुब मीनार

एक ऐसी मीनार जो ईट से बनी दुनिया की सबसे ऊंची मीनार है। एक ऐसा भव्य आकर्षण जिसे देखने के बाद आश्चर्य होना लाजमी है। एक ऐसी खूबसूरत इमारत जिसकी दीवारों पर कुरान पाक की आयतें गढ़ी गईं हैं और अंत में एक ऐसा साक्षी जो मुगल साम्राज्य के भारत में प्रसार का प्रत्यक्षदर्शी है। वैसे तो पूरी दिल्ली ही देखने के लिहाज़ से बहुत खास है पर इसकी कुछ नायाब इमारतों को देखे बिना दिल्ली दर्शन अधूरा है। क़ुतुब मीनार इन्हीं खास और नायाब जगहों में से एक है। इस बात में कोई शक नहीं कि मुगलों ने दिल्ली को खूबसूरत बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। शायद इसी का परिणाम है दिल्ली चारों दिशाओं से बेहद खूबसूरत मुगल इमारतों से सजी हुई है। 

दुनिया के सबसे विशालतम मीनारो में शामिल इस मीनार का इतिहास भी उतना हीं विशाल है। यह बात उस समय की है जब भारत में अफगानी आक्रमणकारियों का आगमन हुआ था। सबसे पहले मोहम्मद गोरी ने यहां अपनी हुकूमत स्थापित की। लेकिन गोरी नहीं यहां लंबे समय तक शासन नहीं किया। वह अपने सबसे विश्वासनीय गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक की हाथ में सत्ता की बागडोर देकर वह वापस लौट गया। तब तक भारत में दिल्ली सल्तनत की स्थापना नहीं हुई थी। भारत छोटे-छोटे रियासतों में बंटा हुआ था। वर्ष 1199 कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस मीनार की नींव रखी।

लेकिन यह मीनार एक ही बार में बनकर तैयार नहीं हुआ, बल्कि इसे किश्तों में अलग-अलग मुगल शासकों द्वारा बनवाया गया था।
कुतुबुद्दीन ऐबक इस मीनार की पहली मंजिल का ही निर्माण करवा पाया। उसकी मौत के बाद उसके दामाद इल्तुतमिश ने कुतुब मीनार की दूसरी तीसरी और चौथी मंजिलों का निर्माण करवाया। इस मीनार की अंतिम मंजिल के निर्माण का श्रेय फिरोज शाह तुगलक को दिया जाता है। अब क्योंकि यह मीनार किश्तों में बनकर तैयार हुआ था इसलिए आप इस मीनार पर 12वीं सदी से 14वीं सदी तक मुगलकालीन स्थापत्य कला में आए बदलावों को भी साफ-साफ देख सकते है।

इस मीनार की सबसे पहली मंजिल के दीवारों को 12 गोल तथा 12 टिकों ने पिलरों से बनवाया गया है तथा इसके ऊपर पट्टियों में नक्काशियां की गई हैं। जब आप इन नक्काशीयों को गौर से देखेंगे आपको इनमें ज्यामितीय संरचनाओं, फूलों, अल्लाह के नामों तथा कुरान की आयतों के अंश देखने को मिलेंगे। इतना हीं नहीं, कुतुबुद्दीन ऐबक ने इनमें मोहम्मद गोरी का भी गुणगान किया है। ऐबक ने इन नकाशियों में अपने बारे में भी बहुत कुछ लिखवाया है।

कुतुबुद्दीन ऐबक के बाद इल्तुतमिश के द्वारा बनवाए गए अगले तीन मंजिलों में से दूसरी मंजिल की दीवार को गोल पिलर से किया गया है। इल्तुतमिश ने तीसरी मंजिल के दीवार को तिकोने पिलरों के सहायता से बनवाया गया है, जबकि चौथी मंजिल की दीवार सपाट गोल है। इल्तुतमिश ने अपने द्वारा बनवाई गई तीनों मंजिलों की दीवारों पर बनी पट्टियों में अपने बारे में खुदवाने के साथ-साथ कुरान पाक की आयत और फूल बेलों की नक्काशियां भी करवाई है।
कहा जाता है कि 13वीं और 14वीं शताब्दी में आए भूकंप और बिजली गिरने के कारण इस मीनार के ऊपरी महलों को काफी क्षति पहुंची थी। जिनकी मरम्मत करवाते हुए फिरोज शाह तुगलक ने 1368 ईस्वी में इस मीनार के अंतिम महले का निर्माण करवाया था।

अगर कुल मिलाकर कुतुब मीनार के लंबाई तथा चौड़ाई की बात की जाए तो इस पांच मंजिली भव्य इमारत की लंबाई 72.5 मीटर है। इस विशाल मीनार के आधार का विकास 14.3 मीटर तथा ऊपरी सिरे का व्यास 2.75 मीटर है।
कुतुब मीनार के सभी मंजिलों पर दरवाजे बनवाए गए हैं जिनसे मीनार के छज्जे पर जाया जा सकता है। इन सभी दरवाजों को एक सीध में बनवाया गया है तथा इन सभी दरवाजों तक पहुंचाने के लिए कुतुब मीनार में पूरे 379 सीढ़ियां हैं।

  • काली गुबंद वाली मस्जिद

पूरा कुतुब मीनार परिसर 13 अलग-अलग व्यूपोइंट्स में बंटा हुआ है। हम में से ज्यादातर लोग मुख्य कुतुब मीनार और लौह स्तम्भ से ही वाकिफ़ हैं पर और भी बहुत कुछ है अपनी नक़्क़ाशी के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध क़ुतुबमीनार के इस परिसर में। परिसर में घुसते ही सबसे पहले नजर आती है काली गुबंद वाली मस्जिद। अंदर आते ही सबसे पहले इस मस्जिद पर ही नजर पड़ती है। आगे बढ़ने पर विशिष्ट मुगल शैली के बगीचें दिखाई देते हैं  जो कि मुगलों की प्रसिद्ध चार बाग की शैली में बने हैं। ये चार बाग शैली किसी भी इमारत में जान डाल देती है। प्रसिद्ध मुगल इमारतों में बागों की इसी शैली का प्रयोग किया जाना आम बात है। मीनार के पास मण्डप जैसी दिखने वाली संरचना को कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद कहा जाता है। ये जानकारी पास लगे सूचना बोर्ड से ही मिली अन्यथा हम तो इसे एक सामान्य मण्डप भर समझ रहे थे। इस मस्जिद की स्थापना कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1190 के दशक में की थी। इस मस्जिद की खासियत इसकी स्थापत्य कला है। इंडो इस्लामिक शैली से बनी ये मस्जिद और इसकी नक्काशी एक बार तो आपको दीवाना ही बना देगी। नक्काशीदार स्तंभो पर खड़ी यह मस्जिद बनावट के मामले में बेहतरीन है। अगर यूं कहें कि कुतुब मीनार परिसर की शोभा बढ़ाने में इस मस्जिद का भी अमूल्य योगदान है, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। कुतुब मीनार का सीधा संबंध कुवत उल इस्लाम मस्जिद से भी जोड़ा जाता है, क्योंकि यह मीनार इसी मस्जिद के प्रांगण में स्थित है। बताया जाता है कि कुवत उल इस्लाम मस्जिद दिल्ली की सबसे पहली मस्जिद है। इस मस्जिद का निर्माण भी कुतुबुद्दीन ऐबक ने ही करवाया था। इस मस्जिद के निर्माण में 27 हिंदू मंदिरों के स्तंभों और अन्य अवशेषों का उपयोग किया गया था। इस बात की प्रमाणिकता स्वयं कुतुबुद्दीन ऐबक के समय के शिलालेख से मिलती है। इतना ही नहीं आप अगर इस मस्जिद के स्तंभों को गौर से देखेंगे तो आपको उनमें हिंदू देवी देवताओं, घंटियों फूल पत्तियां जैसे हिंदू स्थापत्य कला के नमूने देखने को मिलेंगे।

  • इल्तुतमिश का मकबरा

अलाई मीनार से आगे बढ़कर परिसर में एक सफेद और लाल बलुआ पत्थर से बना मकबरा नजर आ रहा था। ये वही मकबरा था जिसमें दिल्ली के दूसरे शासक इल्तुतमिश को दफनाया गया था। ये मकबरा कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के ठीक पीछे ही है। मकबरा अपनी इस्लामिक बनावट के कारण अलग ही नजर आ रहा था। इसकी खूबसूरती को देखकर अंदाजा लगाना मुश्किल था कि ये एक कब्र है। किसी शाही महल जैसी इसकी बनावट वास्तव में अद्भुत है। बीच-बीच में बने सफेद मेहराब और खुली छत इसे और भी आकर्षक बनाते हैं।

इस मीनार की पहली तथा दूसरी मंजिल के निर्माण में जहां हल्के गुलाबी पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है, इसकी तीसरी मंजिल लाल रंग के पत्थरों से बनवाई गई है तथा इस मीनार की चौथी तथा पांचवी मंजिल का निर्माण सफेद संगमरमर से करवाया गया है।
बताया जाता है कि सन 1803 ईस्वी में भूकंप की वजह से कुतुब मीनार की ऊपरी मंजिल का ढांचा थोड़ा ढह गया था। जिसकी मरम्मत 1820 ईस्वी में अंग्रेजी सेना के मेजर रॉबर्ट स्मिथ ने करवाया था।

इस मीनार को बनवाने के कई उद्देश्य थे। कहा जाता है कि इस मीनार को बनवाने के पीछे कुतुबुद्दीन ऐबक का उद्देश्य अफगानिस्तान के जाम ए मीनार से भी ऊंची और खूबसूरत मीनार बनवाना था। वहीं कुछ इतिहास मानते हैं कि इस मीनार का निर्माण मुगल साम्राज्य की निशानी के तौर पर और निगरानी के लिए करवाया गया था।

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रक्श से लेकर राज तक,विवादों से भरा था कुदसिया बाग की बेगम कुदसिया का सफर

कुदसिया बेगम का व्यक्तिगत जीवन :

अगर बात करें कुदसिया बेगम के व्यक्तिगत जीवन के बारे में तो बताया जाता है कि उनका जन्म मूल रूप से एक हिंदू परिवार में हुआ था और उनका नाम उधम बाई था। कुदसिया बेगम को अपने जीवन काल में बाई-जू साहिबा, नवाब कुदसिया, साहिबा-उज़-ज़मानी और मुमताज महल जैसे कई प्रकार के उपनामों से भी नवाजा गया था।


हालांकि कुदसिया बेगम का जीवन बहुत विवादित माना जाता है, क्योंकि बताया जाता है कि उनका संबंध उन्हीं के हरम के प्रबंधक जावेद खान नवाब बहादुर के साथ था जो एक किन्नर था। उनके इस संबंध के बारे में यह भी कहा जाता है कि जब 1752 में जावेद खान नवाब बहादुर को सफदर जंग ने मार दिया तो कुदसिया बेगम ने उनकी हत्या पर न सिर्फ शोक जताया बल्कि अपने गहनों को भी त्याग दिया और सफेद वस्त्र को धारण कर लिया।कुदसिया बेगम बहुत हीं खर्चीली और उदार किस्म की व्यक्ति थीं। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब महल में सैनिकों के तनख्वाह के बकाया को भुगतान करने के लिए दो लाख रुपए भी इकट्ठा नहीं किए जा सके, तब उन्होंने सिर्फ अपना जन्मदिन मनाने के लिए दो करोड़ रुपए खर्च कर दिए। 26 मई 1754 को मल्हार राव होल्कर ने अहमद शाह बहादुर को हरा दिया था। इसके बाद कुदसिया बेगम सिकंदराबाद छोड़कर दिल्ली भाग कर आ गईं। लेकिन मल्हार राव होलकर ने दिल्ली तक उनका पीछा किया और अहमद शाह बहादुर के साथ-साथ कुदसिया बेगम की भी आंखें निकलवा दी।

क्या है इस बाग की खासियत?(What is the specialty of this garden?)

क्या है कुदसिया बाग की टाइमिंग?(What is the timing of Qudsiya Bagh?)

जहां अधिकतर हॉन्टेड जगहों की टाइमिंग फिक्स होती है और वहां 5:00 के बाद लोगों को जाने नहीं दिया जाता है, वहीं कुदसिया बाग उन सभी हॉन्टेड जगहों से थोड़ा अलग है।
अगर बात करें कुदसिया बाग के टाइमिंग (Qudsia Bagh timings) की तो यह चौबीसो घंटे खुला रहता है। यानी कि यहां पर आप कभी भी आ जा सकते हैं। इस बाग में आने जाने की कोई पाबंदी नहीं है और ना हीं आपको इस बाग में आने के लिए किसी भी प्रकार के टिकट (Qudsia Bagh ticket price) की आवश्यकता होगी।

जब हमने इस बाग को एक्सप्लोर किया और पूरी तरह से छानबीन की तो हमें इस बाग में ऐसा कुछ हाउंटेड नहीं दिखा। बल्कि हमें इस बाग में आकर बहुत हीं सुकून का अनुभव हुआ और हमारे हिसाब से आप भी बिना डरे इस बाग में घूमने जा सकते हैं। यकीनन आपको भी यहां पर बहुत हीं अच्छा महसूस होगा।

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पिकनिक और इफ्तार पार्टी दोनों के लिए बेस्ट है सुंदर नर्सरी

अब भारत जैसे देश में चाय के शौकीन लोगों की कमी नहीं है। अगर कोई व्यक्ति चाय नहीं पीता है तो कॉफी जरूर पीता है। ऐसे में अगर आप भी चाय या कॉफी के शौकीन इंसान हैं तो यहां आपको टी स्टॉल और फैब कैफ़े भी दिख जाएंगे। जहां आप चाय या फिर कॉफी इंजॉय कर सकते हैं।

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रंग-बिरंगे फूलों से सजा डीयू का नॉर्थ कैंपस, जानिए इस बार के फ्लावर शो की खास बातें

क्या है दिल्ली यूनिवर्सिटी का फ्लावर शो (What is the flower show of Delhi University)?

हर साल दिल्ली विश्वविद्यालय में वसंत के आगमन पर इस फ्लावर शो का आयोजन किया जाता है, जो यूनिवर्सिटी के बच्चों के लिए काफी एक्साइटिंग होता है। इस साल यह फ्लावर एग्जिबिशन 1 मार्च से लग रहा है और इस साल के दिल्ली यूनिवर्सिटी के फ्लावर शो की थीम है Women Nurturing Nature – A Celebration of Synergy and Sustainability

इस फ्लावर एग्जिबिशन में आपको डेकोरेटिव प्लांट्स और फूलों की 100 से भी अधिक वैराइटीज देखने को मिलेंगी। डियू के नॉर्थ केंपस के बुद्धा गार्डन में लगने वाला यह फ्लावर एग्जिबिशन हर साल हजारों की संख्या में विजिटर्स को अपनी ओर आकर्षित करता है।

क्या है इन फ्लावर्स की खासियत (What is the specialty of these flowers)?

यहां की सबसे खास बात यह है कि इन प्लांट्स को दिल्ली यूनिवर्सिटी के विभिन्न विभागों और कॉलेजो द्वारा हीं उगाया जाता है। इस फ्लावर शो के जरिए अलग-अलग कॉलेज को प्लेटफार्म दिया जाता है जहां वह अपने गार्डनिंग के स्किल्स को दिखाकर बेस्ट गार्डनिंग का खिताब जीत सकते हैं।

क्या है इस फ्लावर शो का मकसद (What is the purpose of this flower show)?

इस फ्लावर शो के जरिए दिल्ली यूनिवर्सिटी विद्यार्थियों के भीतर पर्यावरण के प्रति प्रेम और संरक्षण का भाव जगाने का प्रयास करती है। इस फ्लावर शो की सबसे अच्छी बात यह है कि आप इन प्लांट्स को खरीद भी सकते हैं। यहां आपको बहुत हीं सस्ते में डेकोरेटिव प्लांट्स और फ्लोरल प्लांट्स मिल जाएंगे।

विजिटर्स के लिए है ढे़रों ऑप्शंस (There are many options for visitors)

इस फ्लावर एग्जिबिशन में प्लांट्स के अतिरिक्त होम डेकोर के भी स्टॉल्स लगाए जाते हैं, जहां से आप अलग-अलग डेकोरेटिव आइटम्स भी खरीद सकते हैं।
अगर इस खूबसूरत से गार्डन में घूमते घूमते आपको भूख लग जाए तो उसके लिए भी आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यहां आने वाले विजिटर्स के लिए फूड स्टॉल्स की भी व्यवस्था की जाती है। हमने यहां लगे ऐसे ही एक स्टॉल की ऑनर से भी बातें की और उनसे उनके इस एग्जीबिशन के अनुभव के बारे में जाना।

कई तरह के प्रतियोगिताओं का होता है आयोजन (Many types of competitions are organized)

इस फ्लावर एग्जिबिशन में पोस्टर मेकिंग, फोटोग्राफी, श्लोगन लेखन जैसे और भी कई तरह के कंपटीशंस आयोजित करवाए जाते हैं। अगर आप भी दिल्ली एनसीआर के आसपास रह रहे हैं तो आप भी इस फ्लावर शो को एक बार एक्सप्लोरर जरूर कीजिए। यह फ्लावर शो बहुत ही खूबसूरत और मनभावन है। आपको यहां आकर जरूर हीं बहुत अच्छा लगेगा।

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पर्यटकों को खूब लुभाता है ये दिल्ली का मीना बाजार

आई हो कहाँ से गोरी आंखों में प्यार लेके,
दिल्ली शहर का पूरा मीना बाजार लेके,,,,,

इस गाने के बोलने जिस तरह से दिल्ली शहर के मीना बाजार का जिक्र किया गया है वह अपने आप में हीं दिल्ली के मीना बाजार को मुकम्मल तरीके से कहानी के रूप में बयां करता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है यह जो दिल्ली शहर का मीना बाजार है वह आखिर दिखता कैसा है और इसे कब और क्यों बसाया गया था? दिल्ली वासियों के लिए तो यह आम बात है, लेकिन दिल्ली से बाहर रहने वाले लोग इस बात को लेकर जरूर उत्सुक होते होंगे कि आखिर दिल्ली शहर का यह मीना बाजार दिखता कैसा है? तो आज के फाइव कलर्स ऑफ ट्रैवल के इस ब्लॉग में हम आपको दिल्ली शहर के मीना बाजार के बारे में बताएंगे।

लाल किला के सामने लगने वाला यह बाजार हर तरह के शॉपिंग करने वाले लोगों के लिए एक अच्छा ऑप्शन होता है। क्योंकि यहां हर तरह के समान आपको मिल जाएंगे। चाहे फिर इलेक्ट्रॉनिक्स की बात हो या फिर डेकोरेटिव आइटम्स की, हर तरह के खरीदारी के लिए यह मीना बाजार परफेक्ट है। इस बाजार को छाता बाजार भी कहा जाता है। चलिए इस बाजार के बारे में जानते हैं और जानते हैं कि यहां से आप किस तरह की शॉपिंग कर सकते हैं।

दूर से हीं दिखने लगते हैं गहनों के दुकान :

इस मीना बाजार को बसाने का उद्देश्य हीं मुगल राजकुमारियों का मनोरंजन था। इसलिए इस मीना बाजार में हर तरह के गहने और साथ सजावट के समान मिलते थे और आज भी आपको मीना बाजार में यह सारे सामान देखने को मिल जाएंगे। यहां आपको हर वैरायटी की चूड़ियां झुमके बालियां और गहने खरीदने को मिल जाएंगे। यहां गहनों की इतनी वैरायटी है कि उन्हें देखकर आप खुद हीं यह डिसाइड नहीं कर पाएंगे कि कौन सा लेना है?

क्लासी लेडीज पर्स (Classy Ladies Purse in Chhata Bazaar)

यहां आपको बहुत ही बढ़िया क्वालिटी के जरी और मोती के वर्क वाले पर्स देखने को मिल जाएंगे जो किसी भी लूक में चार चांद लगाने का काम करते हैं। ऐसे में आप यहाँ से बहुत अच्छे-अच्छे और यूनिक क्वालिटी के पर्स को परचेस कर सकते हैं। आपको भी तरह-तरह के क्लच रखने का शौक है तो यहां क्लच के मामले में भी बहुत सारी वैराइटीज उपलब्ध है। जो यहां आने वाले महिला पर्यटकों के लिए खास आकर्षण बनते हैं

एंटीक कलेक्शन (Antique Collection of Chhata Bazaar)

अगर आपको भी अपने घरों को पुराने और एंटीक चीजों से सजाने का शौक है और आप भी बहुत सारे रंग-बिरंगे शोपीसेज से अपने आशियाने को और भी खूबसूरत बनाना चाहते हैं तो इस बाजार में आपको ऐसे कई सारे एंटीक ऑब्जेक्ट्स मिल जाएंगे जिन्हें आप अपने घर में सजा सकते हैं और घर की खूबसूरती को बढ़ा सकते हैं। अगर आप किसी के लिए एक परफेक्ट गिफ्ट की तलाश कर रहे हैं तो यहां मिलने वाले एंटीक पीस आपके लिए एक बेहतरीन गिफ्ट बन सकते हैं।

क्लासिक शॉल (Classic Shawl in Chhata Bazaar)

अगर आप भी अपने फैशन के साथ एक्सपेरिमेंट करना पसंद करते हैं तो आपके वार्डरोब में शॉल की उपस्थिति अनिवार्य हो जाती है। मीना बाजार में आपको बहुत सारे ऐसे दुकान मिल जाएंगे जहां आपको हर तरह के शॉल देखने को मिल जाएंगे। सर्दियों का मौसम शुरू होने वाला है ऐसे में शॉल फैशन ट्रेंड में आने वाले हैं। इस समय शॉल लेना आपके लिए दोहरे फायदे का काम हो सकता है और मीना बाजार में आपको बहुत ही अच्छी क्वालिटी के शॉल देखने को मिल जाएंगे।

बच्चों के खिलौने (Children’s Toys in Chhata Bazaar)

अब किसी बाजार का जिक्र हो और वहां बच्चों के खिलौने ना हो तो वह बाजार, बाजार नहीं हो सकता। अगर आप भी लाल किला आ रहे हैं और आपके साथ बच्चे भी हैं तो, आप उनके लिए भी बहुत अच्छी खरीदारी कर सकते हैं। यहां आपके बच्चों के बहुत सारे खिलौने जैसे रुबिक्स क्यूब्स, पजल्स और भी अतरंगे खिलौने देखने को मिल जाएंगे। यहां से आप अपने बच्चों के लिए गिफ्ट के तौर पर खिलौने भी ले जा सकते हैं।

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Delhi-NCR के ऐसे प्रमुख कृष्ण मंदिर जहाँ आप दर्शन करने जा सकते हैं

दिल्ली जैसे शहरों में रहते हुए अगर वर्कलोड और स्ट्रेस को कम करना हो और अपने लाइफ में पॉजिटिविटी लानी हो तो इसका इकलौता शॉर्टकट है मंदिर जाकर कुछ देर के लिए भगवान की आस्था में तल्लीन हो जाना। अगर आप दिल्ली से हैं तो आज का यह ब्लॉग आपके लिए ही है।
आज के इस ब्लॉग में हम आपको बताएंगे दिल्ली के कुछ प्रमुख कृष्ण मंदिरों के बारे में :-

  • इस्कॉन टेंपल (Isckon temple)
  • श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर (Shree Laxmi Narayan Mandir)
  • गीता गायत्री धाम (Geeta Gayatri Dham)
  • श्री राधा कृष्ण मंदिर (Shree Radha Krishna Mandir)
  1. इस्कॉन टेंपल (Isckon temple)

इस्कॉन टेंपल दिल्ली के सबसे प्रसिद्ध कृष्ण मंदिर के रूप में जाना जाता है। यह मंदिर बहुत हीं बड़ा और भव्य है। इसकी खूबसूरती और प्रसिद्धि का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि इस मंदिर में दर्शन करने के लिए देश के कोने कोने से श्रद्धालुओं की भीड़ इकट्ठा होती है। इस मंदिर में हर शाम श्री कृष्ण के नाम का कीर्तन होता है। जिसमें आने वाले सभी भक्तजन शामिल हो सकते हैं। यह मंदिर नेहरू प्लेस मेट्रो स्टेशन के नजदीक ही स्थित है और सुबह के 6:00 से रात के 9:00 बजे तक श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है।

  1. श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर (Shree Laxmi Narayan Mandir)

श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर को बिरला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह दिल्ली एनसीआर में मौजूद एक फेमस मंदिर है जो कृष्ण भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस मंदिर की भव्यता और लुभावने सजावट देख कर आपका मन करेगा कि आप भी वहीं ठहर जाएं। खास कर जन्माष्टमी के मौके पर इस मंदिर को बहुत हीं बेहतरीन तरीके से सजाया जाता है। यह मंदिर श्रद्धालुओं के बीच बहुत हीं फेमस है और ध्यान करने वाले लोगों को यह काफी पसंद आता है। इस मंदिर के खुलने की टाइमिंग सुबह के 4:30 से दोपहर के 1:00 तक है और दोपहर के 2:30 बजे से रात के 9:00 तक की है।

  1. गीता गायत्री धाम (Geeta Gayatri Dham)

गीता गायत्री धाम मंदिर भगवान श्री कृष्णा और वेद माता गायत्री को समर्पित मंदिर है। इस मंदिर में आपको सभी देवी देवताओं की मूर्तियों के दर्शन एक ही बार में हो जाएंगे। इस मंदिर को सत्यम शिवम सुंदरम सोसायटी के द्वारा बनवाया गया है और यह मंदिर गुरुग्राम सिटी में स्थित है। इस मंदिर का माहौल बहुत हीं अच्छा और शांत है। यहां आकर आपको अपने आप में एक अलग तरह की पॉजिटिविटी का एहसास होगा। इस मंदिर के खुलने की टाइमिंग सुबह के 5:00 से रात के 9:00 तक की होती है। आप इस समय अंतराल के भीतर कभी भी मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं।

  1. श्री राधा कृष्ण मंदिर (Shree Radha Krishna Mandir)

ईस्ट दिल्ली के सबसे बेहतरीन कृष्ण मंदिरों के सूची में श्री राधा कृष्ण मंदिर का भी नाम गिना जाता है। इस मंदिर को भी जन्माष्टमी के समय में बहुत हीं बेहतरीन तरीके से सजाया जाता है। बाकी के सामान्य दिनों में भी यह मंदिर काफी खूबसूरत दिखता है। इस मंदिर में आकर आपको अलग ही तरह के शांति की अनुभूति होगी।
यह मंदिर सुबह के 5:00 बजे से शाम के 9:00 तक खुला रहता है। आप जब भी चाहे यहां आ सकते हैं।

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Chandni Chowk- All you need to know  

Chandni Chowk is one of the oldest and most famous markets in Delhi, India. Located in the heart of Old Delhi, it is a vibrant and bustling area known for its historical significance, cultural heritage, and vibrant shopping experience. The name “Chandni Chowk” translates to “Moonlight Square” or “Moonlight Market,” and it has a rich history that dates back to the Mughal era. Chandni chowk was established in the 17th century by the Mughal Emperor Shah Jahan when he decided to shift the capital of his empire from Agra to Delhi. It was designed as one of the main streets of Shahjahanabad, the new walled city of Delhi. The construction of Chandni Chowk began in 1650 and was completed in 1656.

In its early days, Chandni Chowk was a grand boulevard lined with trees, canals, and pools, flanked by imposing havelis (mansions) and significant structures. The street was broad and served as the main thoroughfare of Shahjahanabad. It quickly became the commercial and cultural hub of the city, teeming with traders, merchants, artisans, and nobility. The market’s name is said to have originated from the moon’s reflection on a large pool that once existed in the area, creating a beautiful moonlit ambiance. The Mughal royal processions would often pass through Chandni Chowk, adding to its prestige and grandeur.

Over the centuries, Chandni Chowk has witnessed various historical events and changes. It experienced the rise and decline of the Mughal Empire, followed by the British colonial rule in India. Many havelis were demolished, and the area underwent modernization.

Despite the transformations, Chandni Chowk has managed to retain its old-world charm and cultural heritage. Today, it remains a bustling and vibrant market, featuring narrow lanes filled with a plethora of shops, vendors, and traders selling a diverse range of products. Whether you’re shopping for textiles, jewellery, spices, or indulging in mouth-watering street food, a visit to Chandni Chowk is a must for anyone exploring the cultural and historical treasures of Delhi.

Read More on Chandni Chowk

  1. Historic monuments near Chandni chowk
  2. Most famous four bazaars of Chandni Chowk
  3. Delectable street food and Iconic Restaurants
  4. Heritage Tours of Chandni Chowk

Historic monuments near Chandni chowk

Chandni Chowk is located in the heart of Old Delhi, which is steeped in history and dotted with numerous historic monuments and landmarks. Here are some of the prominent historic monuments around Chandni Chowk:

Red Fort (Lal Qila): One of the most iconic landmarks of Delhi, the Red Fort, is situated just a short distance away from Chandni Chowk. Built by the Mughal Emperor Shah Jahan in the 17th century, the Red Fort served as the main residence of the Mughal emperors until 1857. It is a UNESCO World Heritage Site and an architectural marvel, with its impressive red sandstone walls, magnificent gates, and intricate designs.

Jama Masjid: Another significant historical monument near Chandni Chowk is the Jama Masjid, which is one of the largest and most revered mosques in India. Constructed by Shah Jahan between 1644 and 1656, the Jama Masjid’s grandeur lies in its vast courtyard, onion-shaped domes, and two towering minarets. It can accommodate thousands of worshippers during prayers and offers stunning views of Old Delhi from its minarets.

Fatehpuri Masjid: Located at the western end of Chandni Chowk, the Fatehpuri Masjid is an elegant mosque built by Fatehpuri Begum, one of Shah Jahan’s wives. The mosque’s architecture exhibits a blend of Mughal and Islamic styles and features a beautiful central dome and minarets.

St. James’ Church: While Old Delhi is predominantly associated with Mughal-era monuments, St. James’ Church stands as an example of British colonial architecture. Built-in 1836, it is one of the oldest churches in Delhi and is known for its stunning white exterior and elegant design.

Gurudwara Sis Ganj Sahib: This Sikh gurudwara holds immense historical and religious significance. It marks the site where the ninth Sikh Guru, Guru Teg Bahadur, was beheaded on the orders of Aurangzeb, the Mughal Emperor. The present gurudwara was built in his memory and is an essential place of worship for Sikhs.

Gauri Shankar Temple: An ancient Hindu temple dedicated to Lord Shiva, the Gauri Shankar Temple is a prominent religious site in Chandni Chowk. The temple features an 800-year-old lingam (phallic symbol) of Lord Shiva and is visited by devotees throughout the year.

These are just a few of the historic monuments around Chandni Chowk. Exploring these landmarks offers a glimpse into the rich history, architectural brilliance, and cultural diversity of Old Delhi.

Most famous four bazaars of Chandni Chowk

Chandni Chowk, being one of the oldest and busiest markets in Delhi, is divided into several smaller bazaars, each with its own specializations and unique offerings. The four main bazaars of Chandni Chowk are:

Fatehpuri Market is one of the bustling markets located in Chandni Chowk, Delhi. It is named after Fatehpuri Begum, one of the wives of Mughal Emperor Shah Jahan. The market is well-known for its wholesale trade of a variety of goods and merchandise, catering to both locals and retailers.

Fatehpuri Market is primarily a wholesale market, and you’ll find a wide range of products being traded in bulk quantities. Items such as textiles, garments, fabrics, shoes, hardware, kitchenware, and household items are among the commodities sold here. The market is particularly famous for its cloth and garment shops. Retailers from various parts of Delhi and neighboring states come here to purchase textiles and ready-made clothing at wholesale prices.

The market area consists of various traditional bazaars, each specializing in specific types of products. For example, there are bazaars for jewelry, cosmetics, accessories, and more. Like many markets in Chandni Chowk, Fatehpuri Market also has its share of street food vendors. You can find some local favorites and quick snacks to refuel while exploring the area. Fatehpuri Market is located close to the historic Fatehpuri Masjid, which adds to the charm and cultural significance of the area. The mosque itself is worth a visit and showcases splendid Mughal architecture.

If you’re looking for a unique shopping experience and want to buy goods in bulk or explore the vibrant ambiance of an old Delhi market, Fatehpuri Market in Chandni Chowk is a place worth visiting. Remember to brush up on your bargaining skills as negotiating prices is common in these wholesale markets.

Dariba Kalan: Dariba Kalan is a famous street and market located in Chandni Chowk, Delhi. It is renowned for its historical significance and is one of the oldest and busiest markets in the area. The name “Dariba Kalan” translates to “Street of the Incomparable Pearl” in Persian, reflecting its historical association with the trade of precious stones and jewellery.

Dariba Kalan is primarily known for its jewelry shops, making it a significant destination for those looking to purchase gold, silver, and precious stones. The market has a long history of trading in jewelry, dating back to the Mughal era, when it was a prominent center for jewelers and gem dealers. The jewelry shops in Dariba Kalan offer a wide variety of traditional Indian jewelry designs, including intricate gold necklaces, earrings, bangles, and more.

The market is particularly famous for its stunning bridal jewellery, which attracts many soon-to-be brides and their families. Dariba Kalan is renowned for its kundan and polki jewellery, which are traditional Indian jewellery styles known for their elaborate designs and use of uncut diamonds. These types of jewelry are highly valued for their craftsmanship and cultural significance. Due to its reputation for selling exquisite jewelry, Dariba Kalan is a popular destination for wedding shopping. People from across the country visit this market to purchase jewelry for their weddings and other special occasions. Dariba Kalan’s history can be traced back to the Mughal era when the market flourished under the patronage of the Mughal emperors. The market’s architecture and atmosphere still retain some of the old-world charm, making it a unique experience for visitors.

Dariba Kalan is a must-visit destination for jewellery enthusiasts and anyone interested in exploring the historical and cultural heritage of Delhi’s markets. Its combination of traditional charm, rich history, and vibrant atmosphere makes it a fascinating place to explore.

Kinari Bazaar: Kinari Bazaar is a vibrant and bustling market located in the historic Chandni Chowk area of Delhi, India. It is a popular destination for shoppers and tourists alike, known for its wide array of wedding-related items and traditional Indian crafts.

Kinari Bazaar is famous for being a one-stop destination for all things related to weddings. It offers a vast selection of items required for Indian weddings, including bridal attire, wedding accessories, jewelry, fabrics, trims, and decorative elements. The market is a treasure trove for those seeking traditional Indian crafts and textiles. Visitors can find beautifully embroidered fabrics, zari borders, laces, and other intricate materials used in Indian clothing and home decor.

Chandni Chowk

Kinari Bazaar is lined with shops selling a wide range of fabrics, from silk and brocade to georgette and chiffon. It’s a great place to shop for dress materials and fabrics for making customized outfits. The bazaar is renowned for its exquisite embroidery and embellishments. You can find handcrafted zardozi work, gota patti, mirror work, and other intricate detailing used in traditional Indian clothing. Kinari Bazaar offers an extensive collection of wedding accessories, including bridal and groom turbans, kalire (ornaments worn by brides), bridal choodas (bangles), and other traditional adornments.

Kinari Bazaar is a shopper’s paradise, especially for those preparing for weddings and festive occasions. Its unique collection of traditional Indian crafts, textiles, and wedding-related items make it a must-visit destination for anyone exploring the cultural and shopping delights of Chandni Chowk in Delhi.

Khari Baoli: Khari Baoli is a historic and famous spice market located in Old Delhi, India. It is one of the oldest and largest spice markets in Asia, known for its aromatic and colorful displays of various spices, herbs, nuts, and dried fruits. The market’s name “Khari Baoli” is believed to have originated from the Hindi word “khara” meaning salty, and “baoli” meaning stepwell, referring to a nearby stepwell that was once located in the area.

Chandni Chowk

Khari Baoli is a paradise for spice enthusiasts and food lovers. The market houses an incredible variety of spices, including cumin, cardamom, cloves, cinnamon, turmeric, red chili, saffron, and much more. The aromatic and colorful display of spices creates a sensory delight for visitors. Khari Baoli is primarily a wholesale market where traders, shopkeepers, and merchants from all over India come to buy spices in bulk. It serves as a major distribution hub for spices, catering to the demands of retailers and industries across the country.

The history of Khari Baoli can be traced back to the 17th century when it was established by the Mughal Emperor Shah Jahan. The market thrived due to the popularity of Indian spices and the spice trade with other countries.

In addition to spices, Khari Baoli also offers a variety of dried fruits, nuts, and seeds. You can find almonds, cashews, pistachios, raisins, and other dried goodies sold in bulk. Khari Baoli is not just a market; it’s an essential part of Delhi’s culinary culture. Many renowned restaurants and food businesses in the city source their spices from this market to maintain the authenticity of their recipes.

Chandni Chowk

The colourful and vibrant ambiance of Khari Baoli provides excellent photo opportunities for photographers and travellers looking to capture the essence of Old Delhi.

Khari Baoli is a must-visit destination for anyone seeking an authentic and aromatic experience of India’s spice trade and culinary heritage. Exploring this market allows you to witness the age-old traditions of spice trading and appreciate the role spices play in Indian cuisine and culture.

Delectable street food and Iconic Restaurants

Chandni Chowk is not only famous for its markets and historical landmarks but also for its delectable street food and iconic restaurants. Here are some of the most popular restaurants and street food stalls you should try when visiting Chandni Chowk:

Paranthe Wali Gali: Paranthe Wali Gali, located in Chandni Chowk, Delhi, is a narrow lane renowned for its delicious and diverse variety of paranthas. A “parantha” is a type of Indian flatbread that is typically stuffed with various fillings and then pan-fried to perfection. Paranthe Wali Gali translates to “the lane of paranthas” in Hindi, and it has a rich history dating back several decades.

Paranthe Wali Gali is famous for offering an extensive range of paranthas, each with its unique and delectable fillings. Some popular choices include aloo (potato), gobhi (cauliflower), mooli (radish), matar (green peas), paneer (cottage cheese), kaju (cashew), badam (almond), and more.

Chandni Chowk

The paranthas at Paranthe Wali Gali are prepared in a traditional manner, with the stuffing freshly made and rolled into the dough. The paranthas are then cooked on a griddle with generous amounts of ghee or oil, ensuring a crispy and flavorful experience. Visiting Paranthe Wali Gali is not only a treat for the taste buds but also a chance to experience the vibrant street food culture and culinary traditions of Old Delhi. It is a place where tradition meets innovation, as some shops offer unique and modern twists to the traditional paranthas while still preserving the classic flavors that have made this place so beloved.

Natraj Dahi Bhalle: Natraj is renowned for its mouthwatering dahi bhalla, a popular Indian street food. Dahi bhalla is a dish made of lentil dumplings soaked in yogurt and topped with tangy tamarind chutney and spices. It’s a must-try dish for a refreshing and flavorful experience.

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Kuremal Mohan Lal Kulfi Wale: Beat the Delhi heat with some delicious kulfi from Kuremal Mohan Lal Kulfi Wale. They offer a wide range of unique and traditional kulfi flavors, including mango, paan (betel leaf), and kesar pista.

Old Famous Jalebi Wala: Satisfy your sweet tooth with the mouthwatering jalebis from this iconic sweet shop. Their jalebis are famous for their crispiness and sweetness, making them a beloved treat for locals and visitors alike.

Ghantewala Halwai: Established in 1790, Ghantewala Halwai is one of the oldest sweet shops in Delhi. It’s famous for its traditional Indian sweets like sohan halwa and besan barfi.

Ashok Chaat Bhandar: For chaat lovers, Ashok Chaat Bhandar is a go-to place. They serve a variety of chaat dishes like aloo tikki, papdi chaat, and bhalla papdi, which are bursting with flavors.

Lotan Chole Kulche Wala: A popular breakfast spot, Lotan Chole Kulche Wala offers spicy and flavorsome chole (chickpea curry) served with soft and fluffy kulchas (bread).

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Babu Ram Paranthe Wale: Another legendary parantha shop in Chandni Chowk, Babu Ram Paranthe Wale, serves delicious and crispy paranthas with a variety of fillings.

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These are just a few of the many restaurants and street food stalls that make Chandni Chowk a gastronomic delight for food lovers. Exploring the food scene here is an essential part of experiencing the vibrant and diverse culture of Old Delhi.

Heritage Tours of Chandni Chowk

Chandni Chowk’s rich history and cultural heritage make it an excellent destination for heritage tours. Several tour operators and organizations offer guided tours that allow visitors to explore the historical landmarks, vibrant markets, and hidden gems of this iconic neighbourhood.

Chandni Chowk

The tour will likely include visits to prominent historical monuments such as the Red Fort, Jama Masjid, and Fatehpuri Masjid. Tour guides will provide historical context, architectural insights, and stories related to these iconic landmarks.

Heritage walks are a fantastic way to immerse yourself in the ambiance of Old Delhi. As you stroll through the narrow lanes and bustling bazaars, the tour guide will share interesting anecdotes about the area’s past and present. Depending on the tour, you might get a chance to witness cultural performances, visit local art galleries, or attend workshops showcasing traditional crafts and arts.

A heritage tour of Chandni Chowk is incomplete without savoring its famous street food. The tour may include stops at popular food stalls to sample mouth-watering chaats, paranthas, jalebis, and more. Chandni Chowk is home to several old havelis (mansions) and historical buildings. The tour might include visits to some of these heritage structures, providing a glimpse into the architectural heritage of the area.

Chandni Chowk

Rickshaw Rides: To navigate through the narrow streets and alleys of Chandni Chowk, heritage tours often include rickshaw rides, giving visitors an authentic experience of Delhi’s traditional transportation.

When booking a heritage tour of Chandni Chowk, ensure you choose a reputable tour operator or organization with knowledgeable guides who can provide accurate historical information and cultural insights. These tours offer a fantastic way to discover the hidden gems and stories of Old Delhi, making your visit even more enriching and memorable.

How to reach Chandni Chowk

Chandni Chowk is a well-known area in Delhi and can be easily reached by various modes of transportation. Here are some common ways to reach Chandni Chowk:

Metro: The Delhi Metro is one of the most convenient and efficient ways to reach Chandni Chowk. The Yellow Line of the Delhi Metro has a station called “Chandni Chowk,” which directly connects to the heart of the market area. It is well-connected to other parts of Delhi, making it a popular choice for both locals and tourists.

Taxi/Cab: Taxis and cab services are also available in Delhi, and you can hire them to drop you off at Chandni Chowk. App-based ride-sharing services like Uber and Ola are popular and widely used in the city.

Buses: Delhi has an extensive network of public buses, and there are several bus routes that pass through Chandni Chowk. You can check the Delhi Transport Corporation (DTC) website or inquire locally to find the bus routes that go to Chandni Chowk.

It’s essential to plan your visit to Chandni Chowk based on the time of day and the traffic conditions, as the market area can get quite busy and congested during peak hours. Additionally, public transportation is a recommended option for tourists, as it can be challenging to find parking in the crowded lanes of Chandni Chowk. Remember to carry some cash, as some local shops and vendors might not accept card payments. Also, be cautious of pickpockets in crowded areas and keep your belongings secure.

Overall, reaching Chandni Chowk is relatively straightforward, and it’s a destination that offers a unique and exciting experience of Delhi’s cultural and historical heritage.