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Ganga Dhaba at JNU: A Cradle of Intellectual and Political Engagement

In the heart of Jawaharlal Nehru University (JNU), amidst the academic blocks and hostels, stands a humble yet iconic establishment – Ganga Dhaba. For decades, this modest eatery has served more than just tea and snacks; it has nourished minds and fuelled conversations that have shaped India’s political and intellectual landscape. To understand the essence of Ganga Dhaba is to delve into the unique culture of JNU, where academic debates and activism thrive under the open sky.(Ganga Dhaba at JNU)

More Than a Food Joint: A Political and Cultural Hub

Ganga Dhaba, in many ways, mirrors the spirit of JNU itself, a place of open discussion, critical thinking, and dissent. Over the years, this small Dhaba has become a magnet for students, academics, and activists who engage in long conversations, often lasting late into the night, about everything from Marxism to feminism, caste politics to neoliberalism, and beyond. This tradition of debate is deeply rooted in the university’s left-leaning and progressive ethos, and the Dhaba has naturally become a hotbed for those ideologies.

Ganga Dhaba at JNU

Student organizations often converge at Ganga Dhaba, using it as an informal meeting ground to plan movements and mobilize around social issues. Many of today’s prominent political leaders, including CPI(M) leader Sitaram Yechury, Cabinet Minister Nirmala Sitharaman and Congress leader Kanhaiya Kumar, have frequented the Dhaba during their time at JNU. It is here that many of their political beliefs were formed, sharpened through rigorous debate and dissent with fellow students.

A Symbol of Resistance and Dissent

Ganga Dhaba has long stood as a symbol of resistance in more ways than one. From protests against privatization and caste-based discrimination to anti-Mandal and anti-communalism movements, the Dhaba has witnessed countless moments of student-led activism. It represents a counter-narrative to the commercialization of education and other societal inequalities that many students fight against.

Moreover, Ganga Dhaba embodies a rejection of elitism. In a world where Starbucks and Café Coffee Day have become symbols of privilege, Ganga Dhaba provides an alternative, a space where tea costs a mere Rs 5, and an omelette can be had for Rs 10. It’s affordable, accessible, and inclusive, making it a cornerstone for students from diverse backgrounds who find solace in its simplicity in the moonlight.

A Place for Cross-Ideological Dialogue

Despite its strong association with left-wing politics, Ganga Dhaba is not an exclusive space. Over the years, students from across the political spectrum have gathered there to debate ideas. This cross-ideological dialogue is a testament to JNU’s commitment to fostering free speech and intellectual freedom. Politicians and intellectuals who spent their formative years in JNU often reflect on the importance of such debates in shaping their political philosophies.

The Threat of Closure: An End to an Era?

In recent times, however, the future of Ganga Dhaba has been threatened by the university administration’s plans to replace small outlets like it with modern food courts. The administration’s reasoning is to offer “clean and hygienic food” in a “good ambience.” While the logic of upgrading facilities may seem sound, the move has sparked outrage among students and alumni alike. Ganga Dhaba, after all, is more than just a food outlet; it is an integral part of JNU’s cultural and political heritage.

The JNU Students’ Union (JNUSU) has been vocal in its opposition, arguing that the Dhaba’s closure would erase a vital part of campus life. Many students recall the countless hours spent sitting on the benches outside, sipping tea while engaging in deep discussions. For them, the Dhaba has been a space of learning, much like the classrooms and libraries inside the university.

The Emotional and Intellectual Legacy

The Dhaba, therefore, has not only been a place to eat but a crucial space for intellectual growth. For generations of students, it has served as an outdoor classroom, one where ideas are shared, arguments are debated, and lifelong friendships are formed.

The Soul of JNU

Ganga Dhaba represents the heart and soul of JNU’s culture. Its open environment, affordability, and history of political engagement make it a microcosm of the university’s intellectual life. Whether or not the administration succeeds in shutting it down, the legacy of Ganga Dhaba will live on in the minds of the thousands of students and alumni whose lives it has touched. For them, it will always remain a symbol of free thought, resistance, and the power of dialogue.

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रहस्यों का गढ़ है-सांची का स्तूप

भारत का हृदय कहे जाने वाले मध्यप्रदेश में स्थित है सांची, जो रायसेन जिले के अंतर्गत आता है। जिसका निर्माण सम्राट अशोक ने करवाया था। सांची अपनी कलाकृतियों से पर्यटकों को भावविभोर करता है। इसकी कलाकृतियों में जुड़े चार शेर वाला राष्ट्रीय चिह्न यही से लिया गया है। जिसको आप रुपयों, बैंको और अन्य सरकारी चीजों पर देखते हैं। इस ब्लॉग में हम साँची के स्तूप के विषय में बेहद जरुरी और दिलचस्प तथ्यों के बारे में बात करेंगे (Stupa of Sanchi)

Stupa of Sanchi
sanchi ka stoop

मुख्य रूप से इसका उपयोग सरकारी मुहर लगाने में या पासपोर्ट पर मुद्रित किए जाने में होता है। इस चार शेर वाले चिह्न को 26 जनवरी 1950 को अपनाया गया था। किसी भी निजी संस्था द्वारा इसका उपयोग करना दंडनीय हो सकता है। इस राष्ट्रीय चिह्न में हम तीन ही शेर देख पाते हैं। दरअसल,  चारों शेर अपनी पीठ जोड़कर खड़े हुए हैं, जिसके चलते हमेशा एक शेर पीछे हो जाता है, जिसे हम नहीं देख पाते हैं। इन शेरों के पैरों के नीचे एक चक्र गढ़ा हुआ है जो तथागत बुद्ध के पहले उपदेश का साक्षी है जिसको धर्मोपदेश प्रवर्तन या धम्मचक्र प्रवर्तन पूर्णिमा कहा जाता है।  यह चक्र तब का प्रतीक है, जब तथागत ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना पहला धर्म का उपदेश दिया था। तथागत का पहला धर्म उपदेश आज के उत्तरप्रदेश राज्य के सारनाथ में दिया गया था। वहां भी सम्राट अशोक ने एक अलौकिक बौद्ध स्तूप का निर्माण करवाया था। जो आज अपने ऐतिहासिक दृष्टिकोण से लोगों को अपनी और आकर्षित करता है।

सांची के स्तूप अपने आप में एक रहस्य हैं, जो कई प्रयासों के बाबजूद भी रहस्य ही बने हुए हैं। सांची स्तूप 91 मीटर ऊंची पहाड़ी की शिखर पर बना हुआ है। जो कई एकड़ जमीन में फैला हुआ है। स्तूप शब्द का निर्माण “थूप” शब्द से हुआ है, जिसका अर्थ होता था मिट्टी से गुथा हुआ।

विश्व विरासत स्थल और सम्राट अशोक से जुड़ा है साँची का स्तूप

सांची को यूनेस्को द्वारा सन् 1989 में विश्व विरासत घोषित कर दिया। यहां पर मुख्य स्तूप के अलावा 92 अन्य छोटे बड़े स्तूप हैं । एतिहासिक दृष्टिकोण से हमें पता है कि कलिंग युद्ध जोकि 261 ई० पू० सम्राट अशोक और कलिंग राजा पद्मनाभन के बीच हुआ था। इसी युद्ध के विजय के बाद सम्राट अशोक ने युद्ध में देखी त्रासदी से युद्ध का रास्ता त्यागकर बुद्ध का रास्ता अपना लिया। जिसके बाद सम्राट अशोक ने एक भी युद्ध नहीं किया और वह शांति प्रिय बन गए। इसी के बाद सम्राट अशोक ने अखंड भारत में 84,000 हजार बौद्ध स्तूपों को बनवाया था। क्योंकि उस समय तक भारत टुकड़ों में विभाजित नहीं था। जिनमें से एक महत्वपूर्ण स्तूप है, हमारा सांची का स्तूप।

जिसकी खोज सन 1818 में जर्नल टेलर के द्वारा की गई थी। जर्नल टेलर को यह स्तूप उस दौरान दिखा था, जब वह शिकार करने के लिए निकले थे। उस समय यह स्तूप जर्जर हालत में था। जिसका अग्रेजों के नेतृत्व में इसकी मरम्मत कर इसका पुनः निर्माण किया गया।

तोरणद्वार

स्तूप एक गुंबदाकार आकृति होती है, इस सांची के मुख्य प्रथम स्तूप में 4 तोरणद्वार बने हुए हैं ।असल में तोरणद्वार स्वागत करने के लिए बनवाए जाते थे। यह चारों तोरणद्वार चार रास्ते हैं जो स्तूप को सुशोभित करते हैं। सांची स्तूप में लगे तोरणद्वार अपने आप में बौद्ध इतिहास को समेटे हुए है। इनके शीर्ष पर पंख वाले शेर बने हुए हैं, जिनको गिरफिन सिंह भी कहा जाता है। जो दोनों ओर अपना मुंह किए हुए हैं और एक दूसरे को पीठ दिखाते हैं। इन पंख लगाए शेरों के बारे में हमने पौराणिक काल में पढ़ा है। जो शायद एक काल्पनिक रचनाएं हैं।

Stupa of Sanchi

इस तोरण पर महिला महावत के साक्ष्य मिलते हैं। जिसके द्वारा हमें यह समझने में आसानी होती है कि मौर्य काल में या बौद्ध काल में महिलाएं भी पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चला करती थीं। इसके अलावा इस पर बकरे की सवारी के चित्र भी गढ़े हुए हैं।

स्तूप की बनावट और नक्काशी

स्तूप में भगवान बौद्ध की कई छोटी बड़ी मूर्तियां आज भी स्थापित हैं, और कई मूर्तियां खंडित भी हो चुकी हैं। इस स्तूप की नक्काशीदार बनाबट पर्यटकों का मन मोह लेती है। यहां पर्यटक देश से तो आते ही हैं, इसके अलावा विदेशी पर्यटकों की संख्या भी बहुत है। तोरणद्वार पर वह सभी दर्शाया गया है जो भगवान गौतम बुद्ध से जुड़ा हुआ है। इस तोरणद्वार पर भगवान बुद्ध का जन्म, बौद्धिवृक्ष, धर्मोपदेश, ग्रह त्याग और अन्य घटनाएं जो भगवान बुद्ध के जीवन में घटी हैं।भगवान बुद्ध के कई उपदेश यहां पर गढ़े हुए हैं, जो की पाली भाषा में हैं। बुद्ध के कई उपदेश, जातक कथाएं पाली भाषा और ब्राह्मी लिपि में उद्रत हैं। जिसको 1838 में जेम्स प्रिंसेप ने पढ़ा था

Stupa of Sanchi

इस स्तूप में तीन मुख्य स्तूप हैं। जिनमें दो स्तूप पास में हैं और एक अन्य स्तूप थोड़ी दूरी पर। पहला और तीसरा स्तूप एक दूसरे से कम दूरी पर हैं, लेकिन दूसरा स्तूप कुछ मीटर दूर है। दूसरे स्तूप में एक ही तोरणद्वार है, परंतु इसकी खास बात यह है कि इसमें दस वरिष्ठ गुरुओं की अस्थियां रखी हुई हैं। स्तूप के मुख्य प्रथम स्तूप में तोरणद्वार के बिल्कुल पास में एक अशोक स्तंभ खड़ा हुआ था। जो अब गिर चुका है कहा जाता है यह स्तूप एक जमींदार ने गन्ने पीसने की चक्की बनाने के लिए तोड़वा दिया था। स्तूप में एक तहग्रह है जहां आज भी भगवान बुद्ध की अस्थियां संभालकर रखी गई हैं। इस तहग्रह में जाना वर्जित है। इस तहग्रह की चाबी रायसेन कलेक्टर के पास होती है। इन अस्थियों के दर्शन आप नवंबर के महीने में कर सकते हैं, क्योंकि नवंबर के महीने में यहां मेला लगता है।

उस समय इस तहग्रह को खोल दिया जाता है। इस अस्थियों के संदूक को अस्ति मंजूषा कहा जाता है। इन अस्थियों को अंग्रेजों के समय में लंदन भेज दिया गया था। लेकिन वहां से इसे वापस लाया गया और यह आज सांची स्तूप में सुशोभित हैं। यह पूरा स्तूप बलुआ पत्थर से बना हुआ है। जिसको उदयगिरी से लाया जाता था, परंतु जो अशोक स्तंभ है उसका निर्माण मिर्जापुर से लाए गए पत्थर से किया गया था। जिसकी ऊंचाई 42 फीट थी। कहा जाता सांची सम्राट अशोक के पुत्र महेंद्र का ननिहाल था । सांची के स्तूप से सारी पुत्र मुद्गलाइन भी जुड़े हुए हैं।

विंध्य की पर्वत पर स्थित इस स्तूप की नीव सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ई० पू० रखी और उसने इसे ईंटो और मिट्टी से निर्मित करवाया था। जिसके बाद, मौर्य वंश के अन्य एक शासक अग्निमित्र द्वारा पत्थरों  से निर्मित करवाया गया। स्तूप के शीर्ष पर हार्निका बनी हुई है जो विश्व के सबसे ऊंचे पर्वत का प्रतीक है, गुंबदाकार स्तूप के अंदर एक कक्ष होता है, जहां पर अस्थियां रखी रखी हुई हैं।

कैसे पहुंचे साँची स्तूप

सांची पहुंचने के लिए भोपाल जोकि मध्यप्रदेश की राजधानी है, से आप टैक्सी या केब के द्वारा पहुंच सकते हैं। इसके अलावा रेल यात्रा कर भी आप यहां तक पहुंच सकते हैं। सांची का स्वयं का रेलवे स्टेशन सांची रेलवे स्टेशन है, जो देश के अन्य हिस्सों से भी जुड़ा हुआ है।

हवाई यात्रा के द्वारा आप सांची पहुंचना चाहते हैं तो, राजा भोज हवाई अड्डा यहां से सबसे निकटतम हवाई अड्डा है। चूंकि आप बस से यात्रा करना चाहते हैं तो सबसे नजदीक रायसेन बस स्टॉप के माध्यम से आप सांची की यात्रा कर सकते हैं।

खुलने का समय सुबह 6:00 बजे से शाम के 6:00 बजे तक है। घूमने का सबसे अच्छा समय सुबह या शाम का है। जिस समय आप बगैर धूप के इस पर्यटन स्थल का अच्छे से दौरा कर पाएंगे ।

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भारतीय इतिहास की महानता के गवाह हैं बिहार के ये पाँच शहर

बिहार के प्रमुख शहर (Famous cities of Bihar)

  • नालंदा (Nalanda)
  • पटना (Patna)
  • वाल्मीकि नगर (Valmiki nagar)
  • बोधगया (Bodhgaya)
  • राजगीर (Rajgir)

1. नालंदा (Nalanda)

अगर आप भी ऐतिहासिक धरोहरों (Historical monuments) को देखने और नके इतिहास के बारे में समझने की चाहत रखते हैं तो, आपको बिहार के नालंदा विश्वविद्यालय को देखना और समझना भी काफी पसंद आएगा। यह विश्वविद्यालय ना सिर्फ भारत बल्कि संपूर्ण संसार के प्राचीनतम विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है। इस विश्वविद्यालय का निर्माण गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त ने पांचवी सदी में करवाया गया था। बाद में कुमारगुप्त के उत्तराधिकारियों (successors) ने इसे सहेज कर रखा। गुप्त वंश के पतन (Downfall) के बाद आने वाले दूसरे शासकों ने भी इसके विकास में सहयोग दिया। इसे महान सम्राट हर्षवर्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण (Protection) मिला। 19वीं शताब्दी में एक अंग्रेज (Englishman) को नालंदा में पढ़ रहे एक चीनी यात्री की डायरी मिली। जब वह उस डायरी (diary) में लिखे पते पर पहुंचा तो वह चारों ओर वीरान खंडहर (deserted ruins) थे। वहाँ टहलते हुए अंग्रेज ने देखा कि वहां कुछ चौथी शताब्दी के बने ईट के अवशेष हैं। फिर उसने हल्के हाथों से उस जगह को कुरेद (scrape) कर देखा तो उसे एक के बाद एक सजी हुई ईटों की श्रंखला (series) दिखाई दिया। उसके बाद उसने हीं वहां की खुदाई (digging) प्रारंभ करवाई और इस प्रकार खोज हुआ विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालय, नालंदा विश्वविद्यालय की। नालंदा विश्वविद्यालय में 1500 से अधिक शिक्षक थे और 10,000 से अधिक छात्र पढाई किया करते थे। यहां विश्व के कोने-कोने से विद्यार्थी पढ़ने आते थे। यहां छात्रों के रहने के लिए 300 से अधिक कमरे बने हुए थे। सभी कमरे में रोशनी की व्यवस्था थी। विद्यालय के परिसर में जगह जगह पढ़ने का स्थान, प्रार्थना का प्रांगण (prayer hall) और स्टडी हॉल (study hall) बने हुए थे। एक कमरे में एक या एक से अधिक छात्रों के रहने की व्यवस्था थी।

कैसे पहुंचे नालंदा (How to reach Nalanda)?

अगर आप नालंदा आना चाहते हैं तो नालंदा का सबसे करीबी हवाई अड्डा पटना में स्थित जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा (Jaiprakash Narayan International Airport) है। जहां से नालंदा शहर की दूरी लगभग 90 किलोमीटर है। आपको बता दें कि पटना का जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, चंडीगढ़, देहरादून, जयपुर, अहमदाबाद और कोयंबटूर के साथ-साथ देश के काफी सारे अन्य हवाई अड्डों से जुड़ा हुआ है। जिसकी वजह से आपको फ्लाइट (Flight) से पटना पहुंचने में कोई भी तकलीफ नहीं होगी।
नालंदा का सबसे करीबी रेलवे स्टेशन नालंदा जिला में ही स्थित है। लेकिन नालंदा रेलवे स्टेशन के लिए आपको सिर्फ नालंदा के नजदीकी रेलवे स्टेशन पटना, दानापुर, गया, बिहार शरीफ और राजगीर से ही ट्रेन की सुविधा मिल पाएगी। अगर आप इन शहरों से जुड़े हुए हैं, तो आप आसानी से अपने शहर से ट्रेन पकड़ कर नालंदा पहुंच सकते हैं और नालंदा शहर को विजिट कर सकते हैं। लेकिन अगर आपके शहर से नालंदा के लिए डायरेक्ट (Direct) ट्रेन की सुविधा उपलब्ध नहीं है तो आपको अपने शहर से गया या पटना जंक्शन के लिए ट्रेन पकड़नी होगी।

2. पटना (Patna)

जब बात भारत के इतिहास की हो तो इस शहर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। हम बात कर रहे हैं पटना शहर की। यह शहर गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है। अगर बात किया जाए इस शहर के वर्तमान की तो यह काफी विकसित हो चुका है। शहर के बड़े-बड़े बिल्डिंग्स, बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल और यहां की सड़कें यह बताने के लिए काफी हैं कि यह शहर भी किसी अन्य शहर से पीछे नहीं है। पटना पर्यटन के लिए भी काफी मशहूर है। जिन लोगों को इतिहास में रुचि है, यह शहर उनका बाहें फैलाकर स्वागत करता है। इस शहर के कुछ प्रमुख पर्यटन स्थल, जो इस शहर की शान माने जाते है निम्नलिखित है- गोलघर (Golghar), श्री कृष्ण साइंस सेंटर पटना (Shri Krishna Science Center Patna), बिस्कोमान भवन (Biscomaun Bhawan), गांधी मैदान (Gandhi maidan), बुद्धा स्मृति पार्क (Buddha smriti park), महावीर मंदिर (Mahaveer mandir), तारामंडल (Patna Planetarium – Taramandal), बिहार म्यूजियम (Bihar museum), गांधी म्यूजियम (Gandhi museum), पटना म्यूजियम (Patna museum), संजय गांधी जैविक उद्यान पटना (Sanjay Gandhi Biological Park), पटना साहिब (Patna sahib), इको पार्क (Eco park), गंगा घाट (Ganga Ghat), अगम कुआं (Agam Kuan) तथा कुम्हरार (Kumhrar)।

कैसे पहुंचे पटना (How to reach Patna)?

यदि आप पटना आना चाह रहे है तो आप तीनों मार्गों से यहाँ आसानी से आ सकते हैं। पटना सड़क मार्ग द्वारा भारत के सभी शहरों से जुड़ा हुआ है। दिल्ली, लखनऊ, कोलकाता तथा सिलीगुड़ी से यहाँ के लिए बस सर्विस उपलब्ध है। भारत के किसी भी प्रमुख शहर से पटना के डायरेक्ट ट्रेन है। पटना के जय प्रकाश नारायण इंटरनेशनल एयरपोर्ट से भारत के किसी प्रमुख शहर के लिए डायरेक्ट फ्लाइट उपलब्ध है।

3. वाल्मीकि नगर (Valmiki nagar)

वाल्मीकि नेशनल पार्क जो बिहार का एकमात्र राष्ट्रीय उद्यान है, पश्चिमी चंपारण जिले में स्थित है। यह नेशनल पार्क वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (Valmiki Tiger Reserve) का हिस्सा है। वाल्मीकि टाइगर रिजर्व लगभग 900 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है और इसकी स्थापना 1978 हुई थी। यह टाइगर रिजर्व भारत का अठारहवाँ टाइगर रिजर्व है। 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में 54 बाघ है। 1950 से पहले यह संरक्षित क्षेत्र, बेतिया महाराज के राज में आता था। सर्वप्रथम, 1978 में इस संरक्षित क्षेत्र को वन्य जीव अभ्यारण घोषित कर दिया गया। इसके पश्चात, 1990 में वाल्मीकि वन्य जीव अभ्यारण्य को नेशनल पार्क का दर्जा दे दिया गया। 1990 में ही, इसे प्रोजेक्ट टाइगर के तहत टाइगर रिजर्व बना दिया गया। वाल्मीकि राष्ट्रीय उद्यान में कई प्रकार के फॉउना (Fauna) निवास करते हैं। यहाँ पाए जाने वाले मैमल्स (Mammals) निम्नलिखित हैं बंगाल टाइगर (Bengal Tiger), इंडियन लेपर्ड (Indian Leopard), एशियन एलीफैंट (Indian Elephant), भारतीय गैंडा (Indian Rhinoceros), क्लाउडेड लेपर्ड (Clouded Leopard), वाइल्ड वाटर बफैलो (Wild Water Buffalo), वाइल्ड बोअर (Wild Boar), भारतीय स्लॉथ भालू (Indian Sloth Bear), इंडियन गौर (Indian Gaur), स्पॉटेड डियर (Spotted Deer), सांभर (Sambar), बार्किंग डियर (Barking Deer), फिशिंग कैट (Fishing Cat), हॉग डियर (Hog Deer), बंदर (Monkey), उड़ने वाली गिलहरी (Flying Squirrel), वाइल्ड डॉग (Wild Dog)। अगर बात की जाए वाल्मीकि नेशनल पार्क के फ्लोरा की तो, यहाँ पाए जाने वाले फ्लोरा निम्नलिखित है करम (Karam), साल (Sal), सिमल (Simal), मंदार (Mandar), बंजन (Banjan), बहेरा (Bahera), सतसाल (Satsal), बोडेरा (Bodera), पियार (Piyar), असिद्ध (Asidh), असान (Asan), हर्रा (Harra), चिर पाइन (Chir Pine)।

कैसे पहुंचे वाल्मीकि राष्ट्रीय उद्यान (How to reach Valmiki National Park)?

सड़क मार्ग- वाल्मीकि नेशनल पार्क सड़क मार्ग द्वारा प्रमुख शहरों (पटना, लखनऊ और प्रयागराज) से जुड़ा हुआ है। निकटतम शहर बेतिया (80 किमी) से यहाँ के डेली बस सर्विस है। रेल मार्ग- इस नेशनल पार्क के पास में निकटम रेलवे स्टेशन ‘वाल्मीकि रेलवे स्टेशन’ है जहाँ से आप टैक्सी या बस लेकर वाल्मीकि नेशनल पार्क पहुंच सकते है। हवाई मार्ग- इस नेशनल पार्क का निकटम एयरपोर्ट पटना (जय प्रकाश नारायण इंटरनेशनल एयरपोर्ट) में है जो नेशनल पार्क से 295 किलोमीटर दूर है।

4. बोधगया (Bodhgaya)

बोधगया महात्मा बुद्ध की धरती है और बिहार की राजधानी पटना (Patna) से लगभग 100 किलोमीटर दूर है। खूबसूरत पहाड़ियों और बुद्ध स्मृतियों से जुड़े हुए इस शहर में आकर लाइफ की सारी निगेटिविटी (Negativity) को खत्म किया जा सकता है। बोधगया एक प्राचीन शहर है जहां लगभग 500 साल पहले भगवान बुद्ध को फल्गु नदी के तट पर, बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। कहते हैं भगवान बुद्ध को वैशाख महीने में पूर्णिमा के दिन ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। जिसके बाद से वह बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए और यहां बौद्ध भिक्षुओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया। वैशाख की पूर्णिमा जिस दिन भगवान महावीर को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, उस दिन को बौद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाने लगा। माना जाता है कि, बोधगया के महाबोधि मंदिर में स्थित बुद्ध की प्रतिमा उसी अवस्था में है, जिस अवस्था में महावीर बुद्ध ने तपस्या की थी। बोधगया में घूमने के लिए बहुत जगह जिनमे से कुछ प्रमुख है: महाबोधि मंदिर (Mahabodhi temple), थाई मठ (Thai Monastery), भगवान बुद्ध की प्रतिमा (Statue of Buddha), जापानी मंदिर (Japanese temple), आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम (Archaeological Museum), पितृपक्ष मेला (Pitrupaksha Mela)

कैसे पहुँचें बोधगया? (How to reach Bodhgaya)

बोधगया हवाई, रेल और सड़क तीनों ही मार्गो से जुड़ा हुआ है। बोधगया जाने के लिए सबसे आसान रास्ता हवाई मार्ग है। गया जिला का एयरपोर्ट बिहार का इंटरनेशनल एयरपोर्ट(International Airport) है, जो भारत के अन्य शहरों से भी अच्छी तरह से जुड़ा (Well connected) हुआ है। बोध गया आने का दूसरा सबसे सरल मार्ग रेल मार्ग है। बोधगया से 13 किलोमीटर दूर स्थित गया जंक्शन (Junction) भी भारत के अलग-अलग शहरों से जुड़ा हुआ है। गया आने के लिए आप पटना जंक्शन तक की ट्रेन भी ले सकते हैं। पटना गया की दूरी लगभग 100 किलोमीटर है। जिससे रोड रेल दोनों ही रास्तों से आसानी से तय किया जा सकता है।

5. राजगीर (Rajgir)

अगर आप भी नेचर को करीब से महसूस करना चाहते हैं तो बिहार की राजधानी पटना से लगभग 100 किलोमीटर के दूरी पर स्थित राजगीर आपके लिए एक परफैक्ट हॉलीडे डेस्टिनेशन (Perfect holiday destination) हो सकता है। राजगीर आजकल प्रकृति प्रेमियों के लिए एक फेमस टूरिस्ट स्पॉट (Famous tourist spot) बनकर उभर रहा है। सिर्फ बिहार से ही नहीं बल्कि पूरे देश और दुनिया के अलग-अलग कोने से लोग यहां घूमने आ रहे हैं। यहां आप कई तरह के एडवेंचर एक्टिविटीज (Adventure activities) भी ट्राई कर सकते हैं। शहरों के शोर-शराबे से दूर और पॉल्यूशन फ्री (Pollution free) इस जगह पर आप बेहद ही शांति से खुद के या किसी अपने के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड (Quality time spend) कर सकते हैं। अगर बात करें राजगीर के पर्यटन स्थलों की तो वहां घूमने लायक जगह में राजगीर जंगल सफारी (Rajgir jungle safari), राजगीर जू सफारी (Rajgir zoo safari), पावापुरी जल मंदिर (Pawapuri Jal Mandir), राजगीर गंगा वॉटर लिफ्टिंग प्रोजेक्ट (Rajgir Ganga Water lifting project), घोरा कटोरा लेक (Ghora katora lake), विश्व शांति स्तूप (vishwa shanti stupa), गिरियक स्तूप (Giriyak stupa), बिंबिसार जेल (Bimbisar jail), ब्रह्म कुंड (Bramha Kund) और सप्तपर्णी गुफा (Saptparni Gufa) प्रमुख हैं

राजगीर कैसे पहुंचे?(How to reach Rajgir)
अगर आप फ्लाइट से राजगीर आना चाह रहे हैं तो पटना स्थित जयप्रकाश नारायण हवाई अड्डा के लिए आप फ्लाइट की बुकिंग करवा सकते हैं। वहीं अगर आप ट्रेन से राजगीर आने की प्लानिंग कर रहे हैं तो आप राजगीर रेलवे स्टेशन के लिए ट्रेन ले सकते हैं। अगर आपके शहर से राजगीर के लिए डायरेक्ट ट्रेन नहीं है तो आप पहले पटना से और फिर वहां से राजगीर के लिए ट्रेन ले सकते हैं। इसके अलावा बस से भी राजगीर आया जा सकता है। अगर आप आसपास के शहरों में रहते हैं तो राजगीर आने के लिए आप बस की सुविधा का उपयोग कर सकते हैं। राजगीर शहर सड़क मार्ग से बहुत ही अच्छे तरीके से जुड़ा हुआ है। इसलिए आप अपनी गाड़ी या फिर कैब के जरिए भी राजगीर सकते हैं।

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Lakshadweep-रूट से लेकर बजट तक, जानिए लक्षद्वीप ट्रिप के बारे में सब कुछ

  • परमिट की होगी आवश्यकता (Permit will be required)
  • लक्षद्वीप जाने का सबसे बेहतरीन समय (Best time to visit Lakshadweep)
  • लक्षद्वीप घूमने के लिए कितने समय की आवश्यकता होगी? (Time require to explore Lakshadweep)
  • क्या होगा बजट (Budget for Lakshadweep tour)
  • लक्षद्वीप में घूमने लायक जगह (Places to visit in Lakshadweep)
  • लक्षद्वीप कैसे पहुंचे? (How to reach Lakshadweep)

परमिट की होगी आवश्यकता (Permit will be required) :

भारत के कुछ संवेदनशील जगहों पर जाने के लिए गवर्नमेंट से परमिट लेने की आवश्यकता होती है। लक्षद्वीप भी उन्हीं जगहों में से एक है। यहां जाने के लिए आपको परमिट लेने की जरूरत होगी। लेकिन घबराने वाली बात नहीं है क्योंकि परमिट लेना इतना भी मुश्किल काम नहीं है। अगर आप परमिट लेना चाहते हैं तो आप सबसे पहले केरल के कोच्चि स्थित कार्यालय में जाकर परमिट के लिए अप्लाई कर सकते हैं और अपना पर बनवा सकते हैं। उसके बाद आप अपनी आगे की यात्रा जारी रख सकते हैं। इसके अलावा अगर आप इन सब पचड़ों में नहीं पड़ना चाहते हैं तो आप ऑनलाइन बुकिंग भी कर सकते हैं। इसके लिए आपको लक्षद्वीप गवर्नमेंट के वेबसाइट पर जाकर एंट्री परमिट के लिए अप्लाई करना होगा। जिसका लिंक नीचे दिया गया है :-

http://epermit.utl.gov.in

लक्षद्वीप जाने का सबसे बेहतरीन समय (Best time to visit Lakshadweep) :

अगर बात करें कि लक्षद्वीप कब जाना चाहिए तो लक्षद्वीप का मौसम हमेशा हीं अच्छा होता है और घूमने लायक होता है लेकिन गर्मी के समय में इक्वेटर से नजदीक होने के कारण यहां ज्यादा गर्मी होती है। इसलिए आप अक्टूबर से मई तक के समय में यहां जाने की कोशिश करें। क्योंकि इस समय जहां उत्तर भारत में भीषण ठंड का प्रकोप होता है, वहां लक्षद्वीप में मौसम सुहाना और घूमने लायक होता है। इस वजह से आप यहां बहुत हीं अच्छे से अपना वोकेशन इंजॉय कर पाएंगे।

लक्षद्वीप घूमने के लिए कितने समय की आवश्यकता होगी? (Time require to explore Lakshadweep) :

अगर बात करें लक्षद्वीप घूमने के लिए आपको कितने दिनों के ट्रिप की बुकिंग करनी होगी तो हम आपको बता दे कि लक्षद्वीप घूमना बहुत ही आसान है। यह बहुत ही खूबसूरत और ईजी टू एक्सप्लोर जगह है। इस वजह से आप इसे 5 दिन में हीं बहुत ही आसानी से और बहुत ही बेहतरीन तरीके से घूम लेंगे। हां अगर आप ज्यादा दिनों तक समय लेकर यहाँ आना चाहते हैं तो यह एक अच्छा ऑप्शन है। क्योंकि शायद 5 दिन में यहाँ सब कुछ घूम लेने के बाद भी आपका मन यहाँ से जाने का नहीं करेगा। क्योंकि यह जगह है ही इतनी खूबसूरत कि लोगों को खुद से बांध लेती है।

क्या होगा बजट (Budget for Lakshadweep tour) :

अगर बात करें लक्ष्यदीप जाने के लिए आपको कितने बजट की आवश्यकता होगी तो यह डिपेंड करता है कि आप किस शहर से लक्षद्वीप जा रहे हैं। हालांकि लक्षद्वीप में ठहरने और घूमने फिरने का खर्च लगभग 40,000 से शुरू होकर 1,20,000 तक जा सकता है। यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप किस तरह की और कितनी प्रीमियम सेवाओं का उपयोग करते हैं।

लक्षद्वीप में घूमने लायक जगह (Places to visit in Lakshadweep) :
लक्षद्वीप में घूमने के लिए बहुत सारी जगहें हैं अगर आप जानना चाहते हैं कि यहां घूमने के लिए कौन कौन से द्वीप हैं तो हम आपको बता दे यहां के सबसे खूबसूरत द्वीपों में अगात्ति, बंगाराम, कल्पनी, कदमत जैसे द्वीप फेमस हैं। इसके अतिरिक्त लक्षद्वीप की राजधानी कवारत्ती भी काफी खूबसूरत है। आप इसे भी एक्सप्लोर कर सकते हैं

लक्षद्वीप कैसे पहुंचे (How to reach Lakshadweep?)
अगर आप उत्तर भारत से हैं तो आपको लक्षद्वीप जाने के लिए अपने शहर से कोच्चि शहर के लिए ट्रेन अथवा फ्लाइट लेने की आवश्यकता होगी। क्योंकि लक्षद्वीप के लिए दिल्ली जैसे उत्तर भारतीय शहरों से डायरेक्ट फ्लाइट की व्यवस्था नहीं है।
अगर आप फ्लाइट से लक्षद्वीप जाना चाहते हैं तो आप सबसे पहले केरल के कोच्चि इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लिए फ्लाइट लेकर कोच्चि पहुंच जाएँ। फिर वहां से अपना लक्षद्वीप जाने का परमिट बनवाकर अगात्ति हवाई अड्डा के लिए फ्लाइट ले सकते हैं।
वहीं अगर आप ट्रेन के जरिए लक्षद्वीप जाना चाहते हैं तो आप कोच्चि के लिए ट्रेन ले सकते हैं। हालांकि कोच्चि शहर के बाद आप या तो फ्लाइट या फिर बोट के जरिए ही लक्षद्वीप जा पाएंगे।

अगर आप क्रूज के सफर का आनंद लेना चाहते हैं तो आपको मुंबई, गोवा, कोच्चि, बेपोर और मंगलौर जैसे शहरों से डायरेक्ट क्रूज कनेक्टिविटी मिल जाएगी और आप बड़े हीं आराम से लक्षद्वीप विजिट करने के लिए जा सकते हैं

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20 Most Famous National Parks in India

  • गिर राष्ट्रीय उद्यान (Gir National Park)
  • पेरियार नेशनल पार्क (Periyar National Park)
  • बांधवगढ़ नेशनल पार्क (Bandhavgarh National Park)
  • दुधवा राष्ट्रीय उद्यान (Dudhwa National Park)
  • सुंदरवन नेशनल पार्क (Sundarbans National Park)
  • मानस नेशनल पार्क (Manas National Park)
  • पेंच राष्ट्रीय उद्यान (Pench National Park)
  • राजाजी नेशनल पार्क (Rajaji National Park)
  • वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (Valmiki Tiger Reserve)
  • ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क (Great Himalayan National Park)
  • बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान (Bandipur National Park)
  • कूनो राष्ट्रीय उद्यान (Kuno National Park)
  • रणथम्भोर नेशनल पार्क (Ranthambore National Park)
  • काजीरंगा नेशनल पार्क (Kaziranga National Park)
  • नामदाफा राष्ट्रीय उद्यान (Namdapha National Park)
  • जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क (Jim Corbette National Park)
  • कंचनजंगा नेशनल पार्क (Kanchenjunga National Park)
  • बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क (Bannerghatta national park)
  • कान्हा-किसली राष्ट्रीय उद्यान (Kanha–Kisli National Park)
  • अलवर सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान (Alwar Sariska National Park)

1. गिर राष्ट्रीय उद्यान (Gir National Park)

चारों तरफ घने जंगल और स्वतंत्र रूप से बिना किसी डर के घूम रहे बब्बर शेर, गुजरात के सोमनाथ जिले में स्थित गिर नेशनल पार्क की पहचान हैं। यहां मैमल्स (mammals) के 38 प्रजाति पक्षियों (birds) के 300 से अधिक प्रजाति रेप्टाइल्स (reptiles) के साथ इस प्रजाति और इनसेक्टस (insects) के 2,000 से भी ज्यादा प्रजाति पाए जाते हैं। यह नेशनल पार्क सिर्फ जानवरों के लिए नहीं बल्कि यहां पाए जाने वाले पौधों के विविधता के लिए भी मशहूर है।

  • कैसे पहुंचे? (how to reach): केशोद एयरपोर्ट और राजकोट एयरपोर्ट गिर नेशनल पार्क से सबसे निकटतम एयरपोर्ट्स हैं। आप यहां से कैब और बस सर्विस का उपयोग करके गिर नेशनल पार्क पहुंच सकते हैं। दिल्ली से राजकोट एयरपोर्ट के लिए फ्लाइट टिकट की कीमत मिनिमम ₹5000 के आसपास होती है। आप वाया ट्रेन बड़ी आसानी से यहां पहुंच सकते हैं।

2. पेरियार नेशनल पार्क (Periyar National Park)

पेरियार नेशनल पार्क 350 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ एक ऐसा नेशनल पार्क है जो हाथियों और बाघों के संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है। पेरियार नेशनल पार्क को दो नदियों का पानी उपलब्ध होता है। जिसमें से पहली नदी का नाम है पेरियार और दूसरी नदी का नाम है पांबा। यह नेशनल पार्क 1934 में नीली कक्कांपेट्टी गेम सेंचुरी के नाम से स्थापित किया गया था। इस नेशनल पार्क का नाम 1950 में बदलकर पेरियार वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी रखा गया। इस पार्क के देखरेख का काम डिपार्मेंट आफ फॉरेस्ट एंड वाइल्डलाइफ केरल और साथ ही गवर्नमेंट आफ इंडिया द्वारा संभाला जाता है।

  • कैसे पहुंचे? (how to reach): पेरियार नेशनल पार्क आना बहुत हीं आसान है, क्योंकि यहां तक बाय रोड बहुत अच्छी कनेक्टिविटी मिल जाती है। अगर आप आसपास के शहरों से आ रहे हैं तो आप बहुत ही आसानी से बस के जरिए पेरियार नेशनल पार्क तक पहुंच सकते हैं। वहीं अगर आप हवाई मार्ग से आना चाहते हैं तो मदुरै एयरपोर्ट आ सकते हैं। जहाँ से इस पार्क की दुरी लगभग 140 किलोमीटर है। पार्क से सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन कोट्टायम है जो 110 किमी दूर है। पेरियार सभी प्रमुख शहरों से रोड मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा है।

3. बांधवगढ़ नेशनल पार्क (Bandhavgarh National Park)

मध्य प्रदेश के विंध्याचल पर्वत में स्थित बांधवगढ़ नेशनल पार्क अपने बाघों के लिए प्रसिद्ध है। बांधवगढ़ नेशनल पार्क में इन बाघों को देखने के लिए दुनिया के अलग-अलग कोने से साल भर में लगभग 50,000 से भी ज्यादा पर्यटक आते हैं और जंगल सफारी के जरिए बाघों की खोज में निकल जाते हैं। बांधवगढ़ नेशनल पार्क लगभग 105 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इस नेशनल पार्क में बाघ के अलावा कई अन्य प्रकार के स्तनधारी जीव भी पाए जाते हैं। जिनमें तेंदुआ, भेड़िया, सियार, हिरण, भालू, लंगूर, बंदर, जंगली सूअर, जंगली कुत्ते, लोथल बीयर और चीतल जैसे जीव प्रमुख है। वर्तमान समय में बांधवगढ़ नेशनल पार्क में 165 बाघ अपना जीवन यापन कर रहे हैं।

  • कैसे पहुंचे? (how to reach): अगर आप हवाई मार्ग से बांधवगढ़ नेशनल पार्क पहुंचाना चाहते हैं तो आपको जबलपुर हवाई अड्डा के लिए फ्लाइट की टिकट बुक करवानी होगी। जबलपुर हवाई अड्डा से बांधवगढ़ नेशनल पार्क की दूरी लगभग 200 किलोमीटर है। इसे आप अपनी सुविधा अनुसार लोकल ट्रांसपोर्ट या फिर कैब के द्वारा तय कर सकते हैं। अगर आप रेल मार्ग के द्वारा बांधवगढ़ पहुंचाना चाहते हैं तो बांधवगढ़ नेशनल पार्क से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन उमरिया रेलवे स्टेशन और कटनी रेलवे स्टेशन हैं। बांधवगढ़ नेशनल पार्क से उमरिया रेलवे स्टेशन की दूरी लगभग 35 किलोमीटर है। वहीं कटनी रेलवे स्टेशन की दूरी लगभग 100 किलोमीटर की है। आप बाय रोड भी बांधवगढ़ नेशनल पार्क पहुंच सकते हैं।

4. दुधवा नेशनल पार्क (Dudhwa National Park)

दुधवा नेशनल पार्क उत्तर प्रदेश का सबसे प्रमुख नेशनल पार्क है। यह राष्ट्रीय उद्यान 490 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इस उद्यान की स्थापना 1977 में हुई थी। इस राष्ट्रीय उद्यान का उद्देश्य बारहसिंघा का संरक्षण करना है। यहां पर बाघ, बारहसिंघा, सुस्त भालू, एक सींग वाले गैंडे और 400 से अधिक पक्षी प्रजातियों के साथ, एक वन्यजीव हॉटस्पॉट है। सुहेली नदी और मोहाना नदी इस उद्यान की जीवन रेखा का कार्य करती है। इन नदियों में गंगेटिक डॉल्फिन भी निवास करती है।

  • कैसे पहुंचे? (how to reach): अगर आप हवाई मार्ग से यहां आना चाहते हैं तो लखनऊ हवाई अड्डा निकटतम हवाई अड्डा है। जो यहां से करीब 238 किलोमीटर है और यदि आप रेल से दुधवा टाइगर रिज़र्व आना चाहते हैं तो निकटतम रेलवे स्टेशन शाहजहांपुर हैं। शाहजहांपुर से दुधवा की दूरी तकरीबन 105 किमी है।

5. सुंदरवन नेशनल पार्क (Sundarban National Park)

सुंदरवन नेशनल पार्क विश्व के सबसे बड़े डेल्टाई क्षेत्र (सुंदरवन डेल्टा) में स्थित है। यह नेशनल पार्क अपने रॉयल बंगाल टाइगरों (Royal Bengal Tigers) के लिए प्रसिद्ध है। यह नेशनल पार्क लगभग 1330 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। सर्वप्रथम सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान को 1973 में मूल सुंदरवन बाघ रिज़र्व क्षेत्र का कोर क्षेत्र के रूप में जाना जाता था। इसके पश्चात 1977 में इसे वन्य जीव अभयारण्य घोषित किया गया। तथा बाद में 4 मई 1984 को इसे नेशनल पार्क का दर्जा दे दिया गया। सुंदरवन नेशनल पार्क में रॉयल बंगाल टाइगरों के अलावा भी कई प्रकार के वन्य जीव निवास करते है जिनमे बर्ड्स (Birds), रेप्टाइल्स (Reptiles) और इनवर्टेब्रेट्स (Invertebrates) शामिल है। इसके अलावा यहाँ साल्ट वाटर (Salt Water) में रहने वाले मगरमच्छ भी पाए जाते है।

  • कैसे पहुंचे? (how to reach): यदि आप सुंदरवन नेशनल पार्क आना चाहते हैं तो आप नदी जलमार्ग से आप सबसे आसानी से आ सकते है। वही सड़क मार्ग से आने के लिए आपको गोसाबा (50 किमी) आना होगा जो यहाँ से निकटतम शहर है। इस नेशनल पार्क का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन कैनिंग में है जो 48 किमी दूर है। इसके अलावा हवाई मार्ग से आने के लिए आपको कोलकाता के नेताजी सुभाष चंद्र बोस इंटरनेशनल एयरपोर्ट आना होगा।

6. मानस नेशनल पार्क (Manas National Park)

असम के मानस नदी के तट पर स्थित मानस नेशनल पार्क भारत और भूटान दोनों हीं देश में फैला हुआ है। मानस नदी भारत और भूटान के बॉर्डर पर बहती है, जिसके दोनों ओर घने जंगल बसे हैं। भारत में इस जंगल के भूभाग को मानस नेशनल पार्क के नाम से जाना जाता हैं। वहीं भूटान में फैले जंगल के क्षेत्र को रॉयल मानस नेशनल पार्क के नाम से जाना जाता है। मानस नेशनल पार्क में वाइल्डलाइफ की बहुत सारी प्रजातियां आपको देखने को मिलेंगी। असम का यह मानस नेशनल पार्क पर्यटकों के बीच बहुत ज्यादा पॉपुलर नहीं है लेकिन इसे भी यूनेस्को के वर्ल्ड हेरिटेज साइट की सूची में स्थान दिया गया है। लगभग 500 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ यह नेशनल पार्क भारत के पूर्वोत्तर भाग में स्थित असम का प्रमुख नेशनल पार्क है।

  • कैसे पहुंचे? (how to reach): मानस नेशनल पार्क पहुंचने के लिए आप सड़क रेल और हवाई तीनों ही मार्गों का उपयोग कर सकते हैं। अगर आप हवाई मार्ग से मानस नेशनल पार्क पहुंचना चाह रहे हैं तो आपको सबसे पहले गुवाहाटी एयरपोर्ट पहुंचना होगा। रेल मार्ग से यहां पहुंचने के लिए सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन बरपेटा रेलवे स्टेशन है जो मानस नेशनल पार्क से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अगर आप मानस नेशनल पार्क जाने के लिए सड़क मार्ग का उपयोग करना चाहते हैं तो सिलीगुड़ी गलियारा के द्वारा बड़े ही आसानी से मानस नेशनल पार्क तक पहुंचा जा सकता है।

7. पेंच नेशनल पार्क (Pench National Park)

पेंच नेशनल पार्क मध्य प्रदेश का एक प्रमुख नेशनल पार्क है। यह राष्ट्रीय उद्यान 758 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इस उद्यान की स्थापना 1975 में हुई थी। यहां पर पीफोल, कोपीजेन्ट, रेड जंगल फोल, रेड वेन्टेड बुलबुल, बेस्ट डबारबेट, क्रीमसन, मेंगपाई राबिन, रॉकेट टेल डोगों, व्हिस्टल टील, लेसर आदि पक्षियों की प्रजातियों के साथ, एक वन्यजीव हॉटस्पॉट है। पेंच नदी इस उद्यान को दो भागों में बाँटती है। पेंच टाइगर रिज़र्व को भारत का सर्वश्रेष्ठ टाइगर रिज़र्व होने का गौरव प्राप्त है। रुडयार्ड किपलिंग की प्रसिद्ध कहानियों में से एक ‘द जंगल बुक’ इसी पार्क पर आधारित है।

  • कैसे पहुंचे? (how to reach): नागपुर (92 किमी) और जबलपुर (200 किमी) पेंच नेशनल पार्क से सबसे निकटतम एयरपोर्ट्स हैं। आप यहां से कैब और बस सर्विस का उपयोग करके पेंच नेशनल पार्क पहुंच सकते हैं। वही निकटम रेलवे स्टेशन भी नागपुर में ही है जहाँ से आप नेशनल पार्क आ सकते है। यह नेशनल पार्क बय रोड भी नागपुर और जबलपुर से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।

8. राजाजी नेशनल पार्क (Rajaji National Park)

उत्तराखंड राज्य के देहरादून और हरिद्वार में स्थित राजाजी नेशनल पार्क का क्षेत्रफल 820.5 वर्ग किलोमीटर है। हाथियों, तेंदुओं, बाघों और हिरनों जैसे जानवरों को अपने में पनाह देने वाला यह पार्क पर्यटकों के मन को भी काफी लुभाता है। सुहाने मौसम, हरे भरे पेड़ और पहाड़ियों के बीच खुले में घूम रहे जानवर को देखना अपने आप में ही अविस्मरणीय दृश्य होता है।

  • कैसे पहुंचे? (how to reach): यहां पहुंचने का सबसे सरल मार्ग है हवाई मार्ग। राजाजी नेशनल पार्क से सबसे निकटतम एयरपोर्ट है जौली ग्रांट एयरपोर्ट देहरादून। जो कि दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी एयरपोर्ट से अच्छे तरीके से जुड़ा हुआ है। यहां के लिए फ्लाइट टिकट की कीमत आपको लगभग ₹3500 रुपए पड़ेंगे। यहां आप वाया ट्रेन भी जा सकते हैं। न्यू दिल्ली से देहरादून रेलवे स्टेशन के लिए भी कई सारी ट्रेनें चलती हैं। आप चाहे तो दिल्ली से देहरादून के लिए कैब भी बुक कर सकते हैं।

9. वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (Valmiki Tiger Reserve)

चारों तरफ घने जंगल और स्वतंत्र रूप से बिना किसी डर के रह रहे जंगली जानवर!  वाल्मीकि टाइगर रिजर्व की यही खासियत लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचती हैं। बापू के पहले सत्याग्रह की भूमि पश्चिम चंपारण, उपजाऊ भूमि के साथ-साथ टाइगर रिजर्व के लिए भी मशहूर है। यहां स्थित वाल्मीकि टाइगर रिजर्व एक राष्ट्रीय उद्यान है, जिसका उद्देश्य बाघों का संरक्षण करना है। जंगल सफारी के शौकीन लोगों के घूमने के लिए एक बेहतरीन डेस्टिनेशन है। वाल्मीकि टाइगर रिजर्व लगभग 900 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ बिहार का इकलौता राष्ट्रीय उद्यान है। यहां बाघों की अनुमानित संख्या लगभग 50 है। वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में जंगल सफारी भी की जा सकती है। यहां जंगल सफारी के लिए एक जीप में अधिकतम 6 लोगों को सीट दी जा सकती है।

  • कैसे पहुंचे? (how to reach): अगर आप हवाई मार्ग से आना चाहते है तो आपको पटना इंटरनेशनल एयरपोर्ट आ सकते है जहाँ से वाल्मीकि टाइगर रिज़र्व 295 किलोमीटर दूर हैं। आप पटना से आने के लिए कैब बुक कर सकते हैं। वाल्मीकि नगर रेलवे स्टेशन नेशनल पार्क से 5 km दूर हैं। सड़क मार्ग से आने के लिए आपको बेतिया आना होगा जहाँ से वाल्मीकि टाइगर रिज़र्व 80 किलोमीटर दूर हैं।

10. ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क (Great Himalayan National Park)

ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क (GHNP) पर्यटकों की मनपसंद जगहों में से एक हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित है। यह नेशनल पार्क हिमालय की खूबसूरत वादियों में है। इस नेशनल पार्क को वर्ल्ड हेरिटेज साइट (World Heritage Site) की सूची में भी शामिल किया गया है। यह नेशनल पार्क अपने ब्राउन बियर्स (Brown Bears) के लिए प्रसिद्ध है। यह नेशनल पार्क लगभग 1171 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। सर्वप्रथम ग्रेट हिमालयन राष्ट्रीय उद्यान को 1984 में बनाया गया था। इसके पश्चात 1999 में इसे नेशनल पार्क का दर्जा दे दिया गया। ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में ब्राउन बियर्स के अलावा भी कई प्रकार के वन्य जीव निवास करते है जिनमे थार, गोराल, मस्‍क डीयर, चीता आदि प्रमुख है।

  • कैसे पहुंचे? (how to reach): यदि आप ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क आना चाहते हैं तो आप तीनो मार्गों से आप बहुत आसानी से आ सकते है। सड़क मार्ग से दिल्ली से आने के लिए आप 10 से 12 घंटा ड्राइव करके ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क पहुंच सकते है। इस नेशनल पार्क का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन जोगिन्दर नगर में है जो 143 किमी दूर है। इसके अलावा हवाई मार्ग से आने के लिए आप भुंतर एयरपोर्ट आ सकते है जो 20 किमी दूर है।

11. बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान (Bandipur National Park)

बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान कर्नाटक के चामराजनगर जिला में अवस्थित है। यह राष्ट्रीय उद्यान 874 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इस उद्यान की स्थापना 1974 में हुई थी। सर्वप्रथम मैसूर के राजा ने 1931 में एक अभयारण्य बनवाया जिसे वेणुगोपाल उद्यान के नाम से जाना जाता था। इसके पश्चात 1973 में इस वेणुगोपाल उद्यान में और 310 वर्ग किलोमीटर जोड़कर इसे बांदीपुर टाइगर रिजर्व घोषित किया गया। इस नेशनल पार्क में बाघ, तेंदुआ, भारतीय मूल के हाथी, भालू, गौर आदि स्तनधारियों की प्रजातियाँ पाई जाती है। इसके अलावा इस इलाके में पक्षियों की 200 से अधिक प्रजातियाँ रहती हैं।

कैसे पहुंचे? (how to reach): यदि आप बांदीपुर नेशनल पार्क आना चाहते हैं तो आप तीनो मार्गों से आप बहुत आसानी से आ सकते है। यदि आप सड़क मार्ग से आना चाहते हैं तो आप मैसूर-ऊटी हाईवे का सहारा ले सकते है जो बांदीपुर नेशनल पार्क को ऊटी और मैसूर से जोड़ता है। इस नेशनल पार्क का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन मैसूर में है जहाँ से आप 2 घंटों में बांदीपुर नेशनल पार्क पहुँच सकते है। इसके अलावा हवाई मार्ग से आने के लिए आपको बैंगलोर एयरपोर्ट (220 किमी) आना होगा।

12. कूनो राष्ट्रीय उद्यान (Kuno National Park)

देश के सबसे प्रसिद्ध नेशनल पार्क में से एक कूनो नेशनल पार्क हाल में ही काफी चर्चा का विषय रहा था। यहां कुछ दिनों पहले नामीबिया से 8 चीतों को ला कर रखा गया था। मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में स्थित इस नेशनल पार्क में आकर आपको एक अलग ही अनुभूति होगी। चारों ओर घने जंगल और बेफिक्र घूम रहे जंगली जानवर किसी अलग ही दुनिया का आभास करा देते हैं। यह नेशनल पार्क कूनो नदी के तट पर स्थित है। यह कह सकते हैं कि कूनो नदी यहां की जीवन रेखा है। यहां के जंगली जानवरों को गर्मी के समय सिर्फ इसी नदी का सहारा होता है। बात करें अगर इस पार्क के फैलाव की तो यह नेशनल पार्क 415 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है और हजारों जानवरों का आसरा है।

  • कैसे पहुंचे? (how to reach): ग्वालियर एयरपोर्ट कूनो नेशनल पार्क के सबसे नजदीक स्थित एयरपोर्ट है। यह एयरपोर्ट देश के अन्य शहरों जैसे दिल्ली, कोटा, पटना, जयपुर आदि से भली भांति जुड़ा हुआ है। दिल्ली एयरपोर्ट से ग्वालियर के लिए फ्लाइट लगभग ₹2000 से ₹3000 तक की आती है। आप नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से ट्रेन के माध्यम से भी ग्वालियर पहुंच सकते हैं। इसके अलावा आप बाय रोड भी कूनो नेशनल पार्क पहुंच सकते हैं।

13. रणथम्भोर नेशनल पार्क (Ranthambore National Park)

रणथम्भोर राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान के सवाई माधोपुर ज़िला में अवस्थित है। यह नेशनल पार्क लगभग 1334 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। सर्वप्रथम रणथम्भोर राष्ट्रीय उद्यान को 1955 में सवाई माधोपुर खेल अभयारण्य के रूप में जाना जाता था। इसके पश्चात 1973 में इसे टाइगर रिजर्व घोषित किया गया। 1 नवंबर 1980 को इस टाइगर रिजर्व को राष्ट्रीय उद्यान बना दिया गया। रणथम्भोर नेशनल पार्क में कई प्रकार के वन्य जीव निवास करते है जिनमे बाघ (Tiger), सांभर हिरण (Sambhar Deer), नर मोर (Male Peacock) और चित्तीदार हिरण (Spotted Deer) शामिल है। इसके अलावा यहाँ तेंदुए (Leopards) भी पाए जाते है।

  • कैसे पहुंचे? (how to reach): यदि आप रणथम्भोर राष्ट्रीय उद्यान आना चाहते हैं तो आप तीनो मार्गों से आप बहुत आसानी से आ सकते है। यदि आप दिल्ली से आना चाहते हैं तो आप एनएच 8 और एनएच 11ए से आ सकते है जो रणथम्भोर को दिल्ली से जोड़ता है। इस नेशनल पार्क का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन सवाई माधोपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन है जो मात्र 11 किमी दूर है। इसके अलावा हवाई मार्ग से आने के लिए आपको जयपुर के सांगानेर एयरपोर्ट (145 किमी) आना होगा।

14. काजीरंगा नेशनल पार्क (Kaziranga National Park)

असम के सोनितपुर जिले में स्थित काजीरंगा नेशनल पार्क एक सिंग वाले गैंडे के लिए पूरी दुनिया भर में जाना जाता है। असम का यह काजीरंगा नेशनल पार्क हमेशा से हीं पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। यह नेशनल पार्क 430 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है और पूरे भारत में पाए जाने वाले 90% गैंडे काजीरंगा नेशनल पार्क में ही पाए जाते हैं। लेकिन काजीरंगा नेशनल पार्क इन गैंडों के अतिरिक्त अन्य कई जानवरों का आशियाना है। जिनमें मुख्यतः बाघ, हाथी, पैंथर, जंगली भैंसे, भालू और अन्य कई प्रकार की पक्षियाँ शामिल हैं।

  • कैसे पहुंचे? (how to reach): काजीरंगा नेशनल पार्क असम की राजधानी गुवाहाटी से लगभग 194 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अगर आप यहां फ्लाइट से आना चाहते हैं तो आप गुवाहाटी हवाई अड्डे तक की फ्लाइट ले सकते हैं। गुवाहाटी शहर से काजीरंगा नेशनल पार्क जाने के लिए आप बस या फिर कैब की सुविधा ले सकते हैं। नेशनल हाईवे 37 काजीरंगा नेशनल पार्क के पास से ही गुजरती है। अगर आप रेल मार्ग के द्वारा काजीरंगा नेशनल पार्क पहुंचाना चाहते हैं तो इसके लिए आपको सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन हेलेम रेलवे स्टेशन पड़ेगा, जो काजीरंगा नेशनल पार्क से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

15. नामदाफा राष्ट्रीय उद्यान (Namdapha National Park)

नमदाफा राष्ट्रीय उद्यान अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग ज़िला में है जो म्यांमार की सीमा के समीप अवस्थित है। यह पार्क क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से भारत का चौथा सबसे बड़ा नेशनल पार्क है। यह राष्ट्रीय उद्यान 1985 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इस उद्यान की स्थापना 1974 में हुई थी। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि, यह दुनिया का एकलौता ऐसा नेशनल पार्क है जहाँ बिग कैट्स (Big Cats) की चार प्रजातियां देखने को मिल जाती है। इन प्रजातियों में बाघ (Tiger), हिम तेंदुआ (Snow Leopard), तेंदुआ (Leopard), और क्लाउडेड तेंदुआ (Clouded Leopard) शामिल है। इसके अलावा यहाँ सप्रिया हिमालयना (Sapria Himalayana) और बालानोफोरा रैफ़लेशिया (Balanophora Rafflesia) जैसे पुष्प की प्रजातियां भी पायी जाती है।

  • कैसे पहुंचे? (how to reach): यदि आप नमदाफा नेशनल पार्क आना चाहते हैं तो आप तीनो मार्गों से आप बहुत आसानी से आ सकते है। यदि आप सड़क मार्ग से आना चाहते हैं तो आप ‘असम स्टेट ट्रांसपोर्ट निगम’ (Assam State Transport Corporation) और ‘अरुणाचल प्रदेश स्टेट ट्रांसपोर्ट निगम’ (Arunachal Pradesh State Transport Corporation) की बसों से आ सकते है। इस नेशनल पार्क का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन न्यू तिनसुकिया जंक्शन (NTSK) है जो 141 किमी दूर है। इसके अलावा हवाई मार्ग से आने के लिए आपको डिब्रूगढ़ एयरपोर्ट (150 किमी) आना होगा।

16. जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क (Jim Corbette National Park)

जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क जिसे पहले हैली नेशनल पार्क भी कहा जाता था। यह हमारे देश का सबसे पुराना नेशनल पार्क भी है। यह उत्तराखंड के रामनगर में स्थित है। दिल्ली से जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क की दूरी करीबन 250 किलोमीटर है। यहां पर आप किसी भी साधन से बड़ी ही आसानी से पहुंच सकते है। यहां पर आपको 2000 से भी ज्यादा रंग बिरंगी तितलियों की प्रजातियां मिल जाएगी। आप यहां किफायती दाम में होटल या रिसोर्ट में भी रुक सकते हैं। यह कॉर्बेट यकीनन प्रकृति के बहुत करीब और शांति प्रिय है।

  • कैसे पहुंचे? (how to reach): जिम कार्बेट नेशनल पार्क से नियरेस्ट एयरपोर्ट है पटनागर एयरपोर्ट। जिसके लिए दिल्ली एयरपोर्ट से आपको लगभग 3000 रुपए से 5000 रुपए तक के बीच में टिकट मिल जाएंगे। आप यहां जाने के लिए ट्रेन मार्ग या फिर सड़क मार्ग का भी उपयोग कर सकते हैं।

17. कंचनजंगा नेशनल पार्क (Kanchenjunga National Park)

कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान विश्व के तीसरे सबसे ऊँची पर्वत चोटी (कंचनजंघा) की गोद में स्थित है। कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान सिक्किम का एकमात्र नेशनल पार्क है। यह नेशनल पार्क सिक्किम में उत्तर सिक्किम जिला में स्थित है। यह नेशनल पार्क हिमालय की पर्वतमाला में बसे जानवरों के लिए प्रसिद्ध है। यह नेशनल पार्क लगभग 1784 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान को 26 अगस्त 1977 को नेशनल पार्क का दर्जा दिया गया था। कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान में कई प्रकार के वन्य जीव निवास करते है जिनमे कस्तूरी मृग, हिमालय तहर, हिम तेंदुआ, रेड पांडा, हिमालयी काला भालू, आदि शामिल है।

  • कैसे पहुंचे? (how to reach): यदि आप कंचनजंगा नेशनल पार्क आना चाहते हैं तो आप तीनो मार्गों से आप बहुत आसानी से आ सकते है। यदि आप सड़क मार्ग से आना चाहते हैं तो आप NH 31A आ सकते है जो कंचनजंगा नेशनल पार्क का नजदीकी हाईवे है। इस नेशनल पार्क का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन न्यू जलपाईगुड़ी (NTSK) है। इसके अलावा हवाई मार्ग से आने के लिए आपको बागडोगरा एयरपोर्ट (222 किमी) आना होगा।

18. बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क (Bannerghatta national park)

बेंगलुरु के बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क में आपको कई तरह के फ्लोरा एंड फ़ाउना (Flora and founa) देखने को मिलेंगे। इस नेशनल पार्क में जंगली जानवरों और वनस्पतियों का एक बड़ा संग्रह देखने को मिलता है। बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क 104 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इस नेशनल पार्क की स्पेशलिटी (specialty) यह है कि यहां देश का पहला बटरफ्लाई पार्क (butterfly park) देखने को मिलता है। जो ज्यादा से ज्यादा विजिटर्स को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां आप रंग बिरंगी तितलियों को देखने के अलावा कई अन्य प्रकार के जीव जंतुओं को भी देख सकते हैं। क्योंकि यह पार्क बहुत हीं बड़ा है, इसलिए यहां जंगल सफारी का भी ऑप्शन मिलता है।

  • कैसे पहुंचे? (how to reach): यदि आप बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क आना चाहते हैं तो आप तीनो मार्गों से आप बहुत आसानी से आ सकते है। स्टेट हाईवे 87 द्वारा बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क, बैंगलोर से जुड़ा हुआ है। इस नेशनल पार्क का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन बैंगलोर में है जो 27 किमी दूर है। इसके अलावा हवाई मार्ग से आने के लिए आपको बैंगलोर के केंपेगौडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट आना होगा।

19. कान्हा-किसली राष्ट्रीय उद्यान (Kanha–Kisli National Park)

कान्हा नेशनल पार्क मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा नेशनल पार्क है। यह नेशनल पार्क अपने बारहसिंगा (Reindeer) के लिए प्रसिद्ध है। यह नेशनल पार्क लगभग 940 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। सर्वप्रथम कान्हा राष्ट्रीय उद्यान को 1 जून 1955 को नेशनल पार्क का दर्जा दे दिया गया। इसके पश्चात 1973 में इसे टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया। कान्हा नेशनल पार्क में बारहसिंगा के अलावा भी कई प्रकार के वन्य जीव निवास करते है जिनमे बाघ, सारस, भेड़िया, छोटी बत्तख, चिन्कारा, भारतीय पेंगोलिन शामिल है।

  • कैसे पहुंचे? (how to reach): यदि आप कान्हा नेशनल पार्क आना चाहते हैं तो आप तीनो मार्गों से आप बहुत आसानी से आ सकते है। कान्हा नेशनल पार्क बाय रोड खजुराहो, जबलपुर, नागपुर, मुक्की और रायपुर से डायरेक्ट कनेक्टेड है। इस नेशनल पार्क का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन जबलपुर में है जो 175 किमी दूर है। इसके अलावा हवाई मार्ग से आने के लिए आपको जबलपुर एयरपोर्ट (175 किमी) आना होगा जहाँ से आप बस या ऑटो से आ सकते है।

20. अलवर सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान (Alwar Sariska National Park)

दिल्ली के नजदीक स्थित अलवर सरिस्का सफारी अन्य जंगल सफारियों से काफी अलग है। क्योंकि आप यहां मानसून में भी जंगल सफारी का आनंद उठा सकते हैं। सरिस्का जंगल सफारी दिल्ली से मात्र ढाई घंटे की दूरी पर स्थित है और नेचर को एक्सप्लोर करने के लिए एक बेहतरीन जगह है। सरिस्का जंगल सफारी के पास हीं स्थित है, अलवर फोर्ट और बाला फोर्ट बफर जोन (buffer zone)। आप इन दोनों जगह पर जाकर भी घूम सकते हैं। अलवर के किले पर खड़े होकर आप पूरे सरिस्का नेशनल पार्क को देख सकते हैं। चारों ओर बड़े-बड़े पेड़, घना जंगल और जंगलों में बिना डरे चहल कदमी कर रहे हिरन आपका मन मोह लेंगे। खड़े होकर आसपास के सीनरी को निहारना भी सुकून दायक होता है।

  • कैसे पहुंचे? (how to reach): दिल्ली से अलवर वाया रोड और वाया ट्रेन आसानी से आ सकते हैं। अलवर के लिए आपको नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कई ट्रेनें मिल जाएंगी। अगर आप अपनी गाड़ी से अलवर आना चाहते हैं तो यह भी एक अच्छा ऑप्शन है। आप अपनी सुविधा अनुसार अपने यातायात के साधन का चुनाव कर सकते हैं।
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एडवेंचर से भरपूर है नासिक के हरिहर फोर्ट की चढ़ाई

क्या आप एडवेंचर के शौकीन हैं और क्या आपको ट्रैकिंग पसंद है? अगर हाँ तो जरा दिल थाम लीजिये! क्योंकि आज हम जिस ट्रैक की बात कर रहे हैं उस ट्रेक को भारत के सबसे खतरनाक ट्रकों के लिस्ट में में गिना जाता है। इस ट्रैक में आपको 30-45 डिग्री नहीं बल्कि सीधे 80 डिग्री वर्टिकल ढलान की चढ़ाई करनी होगी। सोच के ही डर लग रहा है ना? लेकिन डरिये मत क्योंकि यहां हर रोज कई ऐसे विजिटर्स भी ट्रैकिंग करने आते हैं जो ट्रैकिंग के एक्सपर्ट नहीं होते हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि इतनी खतरनाक ट्रैक पर लोग क्यों आना चाहते हैं?

आपके इस सवाल का जवाब यह है कि इस जगह ट्रैकिंग करके आने के लिए लोगों की दीवानगी के पीछे का कारण यहाँ की प्राकृतिक खूबसूरती है। यह जगह इतनी खूबसूरत है कि आपको लगेगा ही नहीं कि आप इस दुनिया में हैं। यह जगह आपको बताएगी की प्रकृति कितनी खूबसूरत हो सकती है। इस जगह को देखकर कोई भी नेचर लवर अपने आप को यहां जाने से रोक नहीं सकता और अगर बरसात के सीजन या फिर विंटर की बात की जाए तो इस समय अगर आप इस ट्रैकिंग प्वाइंट के टॉप पर जाएंगे तो यहां आपको आज मैं ऊपर आसमां नीचे का एहसास होगा।

हम बात कर रहे हैं हरिहर फोर्ट की!

जो भारत के सबसे खतरनाक ट्रैकों में से एक है और लगभग 75 डिग्री की ढलान वाली पहाड़ी पर स्थित है। हरिहर फोर्ट की ऊंचाई को देखकर एक बार को धड़कनें थम जाती हैं, लेकिन दिल रुकना भी नहीं चाहता है। क्योंकि इसके टॉप पॉइंट से मिलने वाले व्यू का इमेजिनेशन करते हीं शरीर में एक नई ऊर्जा का संचार होता है। जिसके कारण आप भी अपने आप को इस ट्रैक को पूरा करने से रोक नहीं पाएंगे।
यह किला दूर से देखने पर चकोर प्रतीत होता है, लेकिन असल में यह पहाड़ी प्रिज्म के आकार की है।

हरिहर फोर्ट कैसे पहुंचे (How to visit)?

हरिहर फोर्ट पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले महाराष्ट्र के नासिक पहुंचना होगा। नासिक शहर से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर है हरिहर फोर्ट। जिसके लिए आपको सबसे पहले नासिक से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित निर्गुणपाड़ा गांव पहुंचाना पड़ेगा। जहां से इस किले की ट्रैकिंग शुरू होती है।

इस ट्रैक पर जाते वक्त निम्नलिखित बातों का रखें ध्यान (keep these things in your mind while treckking)

  • यह ट्रैकिंग बहुत हीं खतरनाक है इसीलिए आप अपने साथ एक गाइड को जरूर रखें।
  • ट्रैकिंग की शुरुआत में लोगों में बहुत ज्यादा एनर्जी होती है, ऐसे में लोग बहुत जल्दी-जल्दी पहाड़ी पर चढ़ने का प्रयास करते हैं। लेकिन ऐसा करने से आप बचें।
  • मध्य रफ्तार से ट्रैकिंग के लिए आगे बढ़ें। ताकि कुछ समय बाद आपकी एनर्जी लेवल कम ना हो जाए।
  • अगर आप नासिक जा रहे हैं और आपको इस स्पॉट की ट्रैकिंग भी करनी है तो आप अपने लगेज में ट्रैक पैंट्स को जरूर शामिल करें। क्योंकि जींस पहनकर इस ट्रैक को पूरा करना बहुत हीं मुश्किल काम होगा।
  • ट्रैकिंग पर जाने से पहले आप कुछ ऐसा खाना खाएं जिससे आपको ज्यादा आलस भी ना आए और आपको एनर्जी की कमी भी महसूस ना हो।
  • ट्रैकिंग करने के लिए अपने साथ एक हाइकिंग पोल जरूर रखें यह आपको पूरा ट्रैक में सपोर्ट देगा।
  • वैसे तो बरसात के सीजन में यहां का व्यू काफी फ़ॉग वाला और बहुत ही खूबसूरत हो जाता है, लेकिन आप बरसाती सीजन में यहां आना अवॉयड कर सकते हैं। क्योंकि इस टाइम यहां की सीढ़ियां बहुत ज्यादा स्लिपरी होती हैं। जिससे पैर फिसलने का बहुत ज्यादा डर होता है।
  • इस ट्रैक पर जाने का सबसे सही समय (Best time to visit this Treck)
    अगर आप इस ट्रैक को पूरा करना चाहते हैं तो यहां जाने का सबसे सही समय अक्टूबर से फरवरी तक का होता है। क्योंकि इस समय यहां का टेंपरेचर भी बहुत ज्यादा नहीं होता है और सीढ़ियां भी स्लिपरी नहीं होती हैं। आप इस समय इस ट्रैक को पूरा कर सकते हैं।
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महाकालेश्वर की नगरी -उज्जैन

उज्जैन~ इस शहर को महाकाल की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। मध्य प्रदेश के इस शहर को पहले पूरे भारतवर्ष में अवंतिका नगरी कहा जाता था। यह शहर महाकालेश्वर महादेव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। भारत के कोने-कोने से लोग यहां महाकालेश्वर महादेव के दर्शन करने और उनकी पूजा अर्चना करने के लिए आते हैं। इस शहर में इसके अलावा और भी कई पर्यटन स्थल हैं, जिनमें काल भैरव मंदिर और मंगलनाथ मंदिर प्रमुख हैं। जिनके बारे में हम आपको इस ब्लॉ में बताएंगे हम आपको यह भी बताएंगे कि इस शहर तक कैसे पहुंच जाए और आप इस शहर में कहां ठहर सकते हैं।

महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन (Mahakaleshwara Temple Ujjain)

इस मंदिर में देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा की जाती है। इस मंदिर में दर्शन के लिए आपको दो तरह की टिकटें मिल जाएंगी। पहला ₹250 का और दूसरा ₹750 का। ₹250 के टिकट से आप भगवान महाकाल के दूर से दर्शन कर सकते हैं। जबकि 750 के टिकट से आप महाकाल मंदिर के गर्भ गृह में जाकर शिवलिंग के नजदीक से पूजा अर्चना कर सकते हैं। इस मंदिर में आप फ्री में भी महाकालेश्वर महादेव के दर्शन कर सकते हैं। मंदिर में फ्री एंट्री की टाइमिंग 1:00 से 4:00 बजे तक की होती है। हालांकि इस समय आपको भीड़ का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन अगर आप वीक डेज में 1:00 बजे से 4:00 बजे के बीच आएंगे तो आप बहुत हीं आसानी से महाकाल के दर्शन बिना किसी टिकट के कर पाएंगे। वीकेंड पर यहां बहुत ज्यादा भीड़ होती है। ऐसे में आप कोशिश करें कि आप वीक डेज में आए और अगर आपका बजट न अलाव करें तो आप 1:00 बजे से 4:00 बजे के बीच दर्शन करने के लिए जाए।

750 रुपए की टिकट लेकर मंदिर के गृह गर्भ गृह में जाने वाले पुरुषों को धोती पहनना पड़ता है। जो कि आपको मंदिर में हीं उपलब्ध हो जाएगा। वहीं गर्भ गृह में जाने वाली महिलाओं को साड़ी पहनना पड़ता है। तो अगर आप महिला हैं और गर्भ में जाकर महाकालेश्वर महादेव के दर्शन करना चाहती हैं तो आप घर से हीं साड़ी पहन कर जाएं। यह आपके लिए बेहतर होगा।

काल भैरव मंदिर (Kaal Bhairav Temple)

इस शहर में महाकालेश्वर मंदिर के अलावा और भी कई मंदिर हैं, जिनमें से एक प्रसिद्ध मंदिर काल भैरव मंदिर भी है। काल भैरव मंदिर पहुंचने के लिए आप महाकालेश्वर मंदिर से ₹200 से ₹250 रुपए में ऑटो ले सकते हैं। यह ऑटो महाकालेश्वर मंदिर से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित काल भैरव मंदिर तक आपको पहुंचा देगा। काल भैरव मंदिर में वीक डेज पर आप बिना किसी भीड़ के बहुत ही आसानी से काल भैरव के दर्शन कर लेंगे।

काल भैरव मंदिर (Kaal Bhairav Temple) के प्रांगण में तीन मंदिर हैं। जिनमें एक काल भैरव का मंदिर है, दूसरा शिव मंदिर (Shiva Temple) है और तीसरा दत्तात्रेय मंदिर (Dattatreya Temple) है।

मंगलनाथ मंदिर (Mangal Nath Temple)

महाकालेश्वर मंदिर से काल भैरव मंदिर के रास्ते में हीं मंगल नाथ मंदिर पड़ता है। जहां आप किसी भी प्रकार के दोष के निवारण के लिए पूजा अर्चना करवा सकते हैं। मंगलनाथ टेंपल में आप भगवान के दर्शन और भात पूजा कर सकते हैं। इसके अलावा आप यहां अपने कुंडली के किसी भी दोष के निवारण के लिए पूजा अर्चना करवा सकते हैं।

सस्ते में कैसे घूम उज्जैन (How to explore Ujjain in cheapest way)?

अगर आप उज्जैन नगरी को पूरी तरह से एक्सप्लोर करना चाहते हैं तो इसके लिए आप उज्जैन दर्शन बस का भी उपयोग कर सकते हैं। जो आपको सिर्फ ₹100 में उज्जैन के सभी प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों का भ्रमण करवाएगी।

कैसे पहुंचे उज्जैन (How to reach Ujjain)?

उज्जैन पहुंचाना बहुत हीं आसान है, क्योंकि शहर का अपना रेलवे स्टेशन भी है। जहां देश के अलग-अलग राज्यों से ट्रेनें आती हैं। इसके अलावा अगर आप फ्लाइट से उज्जैन पहुंचाना चाहते हैं तो आप इंदौर एयरपोर्ट के लिए फ्लाइट ले सकते हैं। इंदौर उज्जैन से लगभग 50 किलोमीटर की ही दूरी पर स्थित है। इसलिए आप बहुत ही आसानी से इंदौर से उज्जैन पहुंच सकते हैं। उज्जैन शहर सड़क मार्ग के द्वारा भी देश के अन्य राज्यों से बहुत अच्छे से जुड़ा हुआ है। आप उज्जैन अपनी गाड़ी से भी आ सकते हैं।

उज्जैन में कहां ठहरे (Where to stay in Ujjain)?

उज्जैन में ठहरने के लिए आपको हर तरह के होटल अवेलेबल हो जाएंगे। सिंगल ऑक्युपेंसी के लिए यहां आपको 700 से 1000 के बीच अच्छे होटल मिल जाएंगे। वहीं अगर आप डबल बेड ऑक्युपेंसी वाला होटल लेंगे तो आपको इसके लिए लगभग 1200 से ₹1500 का खर्च आएगा। अगर आप धर्मशाला में रुकना चाहते हैं तो वह भी यहां एक अच्छा ऑप्शन हो सकता है। उसके लिए आपको लगभग 400 से 500 के भीतर धर्मशालाएं भी मिल जाएंगी।

उज्जैन किस समय आए (Best time to visit Ujjain)?

अगर आप उज्जैन आना चाहते हैं तो आप साल के किसी भी समय उज्जैन का रुख कर सकते हैं। लेकिन उज्जैन आने का सबसे सही समय मॉनसून या उसके बाद का माना जाता है। क्योंकि गर्मी के समय इस शहर में गर्मी ज्यादा होती है। ऐसे में शायद आप इस शहर को अच्छे से एक्सप्लोर नहीं कर पाएं। मॉनसून के समय में इस शहर में काफी ग्रीनरी भी देखने को मिलती है। साथ ही साथ मॉनसून में यहाँ का टेंपरेचर भी सामान्य हो जाता है। जिससे घूमने में भी बहुत ही आसानी होती है और इस समय आप पूरे इंटरेस्ट के साथ इस शहर को बहुत हीं अच्छे से एक्सप्लोर भी कर पाएंगे।

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MP के इन जगहों पर भारतीय स्थापत्य कला और प्राकृतिक खूबसूरती की दिखती है झलक

मध्य प्रदेश में भारत के कई ऐसे ऐतिहासिक स्थल हैं जो न सिर्फ आर्कियोलॉजिस्ट को अपनी ओर आकर्षित करते हैं, बल्कि सामान्य पर्यटकों का भी ध्यान अपनी ओर खींचते हैं। सबसे अधिक क्षेत्रफल पर वन होने के कारण मध्य प्रदेश में कई सारे नेशनल पार्क्स भी हैं। इसी वजह से यह राज्य प्राकृतिक रूप से भी सुंदर और मनमोहक है। अगर आप भी मध्य प्रदेश घूमना चाहते हैं तो हम आपको बताने वाले हैं मध्य प्रदेश के कुछ ऐसे जगहों के बारे में जहाँ एक बार जाना तो बनता है।

  • उज्जैन (Ujjain)
  • मैहर माता मंदिर सतना (Maihar Mata Temple Satna)
  • खजुराहो (Khajuraho)
  • भोपाल (Bhopal)
  • कूनो राष्ट्रीय उद्यान (Kuno National Park)

1. उज्जैन (Ujjain)

इस शहर को महाकाल की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। मध्य प्रदेश के इस शहर को पहले पूरे भारतवर्ष में अवंतिका नगरी कहा जाता था। यह शहर महाकालेश्वर महादेव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। भारत के कोने-कोने से लोग यहां महाकालेश्वर महादेव के दर्शन करने और उनकी पूजा अर्चना करने के लिए आते हैं। इस शहर में इसके अलावा और भी कई पर्यटन स्थल हैं। जिनमें रामघाट, काल भैरव मंदिर और मंगलनाथ मंदिर प्रमुख हैं।

कैसे पहुंचे उज्जैन (How to reach Ujjain) : उज्जैन पहुंचाना बहुत हीं आसान है, क्योंकि शहर का अपना रेलवे स्टेशन भी है। जहां देश के अलग-अलग राज्यों से ट्रेनें आती हैं। इसके अलावा अगर आप फ्लाइट से उज्जैन पहुंचाना चाहते हैं तो आप इंदौर एयरपोर्ट के लिए फ्लाइट ले सकते हैं। इंदौर उज्जैन से लगभग 50 किलोमीटर की ही दूरी पर स्थित है। इसलिए आप बहुत ही आसानी से इंदौर से उज्जैन पहुंच सकते हैं। उज्जैन शहर सड़क मार्ग के द्वारा भी देश के अन्य राज्यों से बहुत अच्छे से जुड़ा हुआ है। आप उज्जैन अपनी गाड़ी से भी आ सकते हैं।

2. मैहर माता मंदिर सतना (Maihar Mata Temple Satna)

त्रिकूट पर्वत की ऊंचाइयों पर स्थित मैहर मंदिर की कहानी आदिशक्ति सती के आत्मदाह से जुड़ी हुई है। देश के 108 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ (Shaktipeeth) त्रिकूट पर्वत के इस पहाड़ी पर भी स्थित है। जिस स्थान पर इस मंदिर का निर्माण करवाया गया है। बताया जाता है कि इस स्थान पर माता का हार टूट कर गिरा था, इसलिए इस जगह को मैहर का नाम दिया गया। यह मंदिर मध्य प्रदेश के सतना जिला के त्रिकूट पहाड़ी पर स्थित है। जहां तक पहुंचाने के लिए भक्तों को पहाड़ी पर चढ़ाई करनी होती है। आपको जानकर हैरानी होगी कि पूरे भारत में माता शारदा का यह इकलौता मंदिर है। इस मंदिर में माता शारदा के साथ ही अन्य देवी देवताओं की पूजा भी की जाती है।

3. खजुराहो (Khajuraho)

इस स्थान को मध्य प्रदेश का सम्मान माना जाता है। यह वही स्थान है जहां आपको विभिन्न प्रकार की कलाकृतियों से समृद्ध मंदिरों का समूह देखने को मिलता है। मध्य प्रदेश का खजुराहो भारत के प्राचीन कालीन इतिहास को बखूबी बयां करता है। खजुराहो के मंदिरों के समूह का निर्माण आज से लगभग 1300 साल पहले हुआ था। मंदिरों पर बनाई गई कलाकृतियां यह दर्शाती हैं कि हमारा भारत आज से हजार साल पहले भी कितना मॉडर्न (modern) था।
खजुराहो में आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम (Archaeological Museum) है, जहां आपको कई सारे छोटे बड़े मंदिरों का समूह देखने को मिलेंगे। आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम के इस एरिया को पश्चिमी मंदिर समूह के नाम से भी जाना जाता है। आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम में जैसे ही आप इंटर करेंगे आपको बहुत ही खूबसूरत से गार्डन से होकर गुजर कर जाना होगा। यहाँ के मंदिरों में कंदरिया मंदिर, मतंगेश्वर मंदिर, लक्ष्मण मन्दिर, विश्वनाथ मंदिर, चित्रगुप्त मंदिर और विष्णु गुप्त मंदिर प्रमुख हैं।

4. भोपाल (Bhopal)

इस शहर को महाराजा भोज की नगरी के नाम से जाना जाता है। यह शहर आज के समय में मध्य प्रदेश की राजधानी है और इस शहर को एक अच्छा टूरिस्ट डेस्टिनेशन माना जाता है। क्योंकि यहां के टूरिस्ट प्लेसेस इतने बेहतरीन हैं कि यहां आने वाले लोगों को यही का हो कर रह जाने का मन करने लगता है। अगर आपको भी कभी मौका मिले मध्य प्रदेश जाने का तो आप एक बार भोपाल जरुर विजिट करें। (Visiting places of Bhopal) भोपाल की घूमने लायक जगहों की सूची में
अपर लेक (Upper Lake), वन विहार (Van Vihar), सैर सपाटा (Sair Sapata), गौहर महल (Gauhar Mahal), मध्य प्रदेश ट्राईबल म्यूजियम (Madhya Pradesh Tribal Museum), पीपल्स मॉल (People’s Mall), भीमबेटका की गुफ़ाएँ (Bhimvetka caves), ताज उल मस्जिद (Taj ul Masjid) और सांची स्तूप (Sanchi Stupa) का नाम आता है।

5. कूनो राष्ट्रीय उद्यान (Kuno National Park)

देश के सबसे प्रसिद्ध नेशनल पार्क में से एक कूनो नेशनल पार्क हाल में ही काफी चर्चा का विषय रहा था। यहां कुछ दिनों पहले नामीबिया से 8 चीतों को ला कर रखा गया था। मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में स्थित इस नेशनल पार्क में आकर आपको एक अलग ही अनुभूति होगी। चारों ओर घने जंगल और बेफिक्र घूम रहे जंगली जानवर किसी अलग ही दुनिया का आभास करा देते हैं। यह नेशनल पार्क कूनो नदी के तट पर स्थित है। यह कह सकते हैं कि कूनो नदी यहां की जीवन रेखा है। यहां के जंगली जानवरों को गर्मी के समय सिर्फ इसी नदी का सहारा होता है। बात करें अगर इस पार्क के फैलाव की तो यह नेशनल पार्क 415 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है और हजारों जानवरों का आसरा है।

कूनो राष्ट्रीय उद्यान कैसे पहुंचे (How to reach Kuno National Park)

ग्वालियर एयरपोर्ट कूनो नेशनल पार्क के सबसे नजदीक स्थित एयरपोर्ट है। यह एयरपोर्ट देश के अन्य शहरों जैसे दिल्ली, कोटा, पटना, जयपुर आदि से भली भांति जुड़ा हुआ है। दिल्ली एयरपोर्ट से ग्वालियर के लिए फ्लाइट लगभग ₹2000 से ₹3000 तक की आती है। आप नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से ट्रेन के माध्यम से भी ग्वालियर पहुंच सकते हैं। इसके अलावा आप बाय रोड भी कूनो नेशनल पार्क पहुंच सकते हैं।

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मध्य प्रदेश के सतना में स्थित है एक ऐसा शक्तिपीठ, जहां गिरा था माता सती का हार

त्रिकूट पर्वत की ऊंचाइयों पर स्थित मैहर मंदिर की कहानी आदिशक्ति सती के आत्मदाह से जुड़ी हुई है। देश के 108 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ (Shaktipeeth) त्रिकूट पर्वत के इस पहाड़ी पर भी स्थित है। जिस स्थान पर इस मंदिर का निर्माण करवाया गया है। बताया जाता है कि इस स्थान पर माता का हार टूट कर गिरा था, इसलिए इस जगह को मैहर का नाम दिया गया। यह मंदिर मध्य प्रदेश के सतना जिला के त्रिकूट पहाड़ी पर स्थित है। जहां तक पहुंचाने के लिए भक्तों को पहाड़ी पर चढ़ाई करनी होती है। आपको जानकर हैरानी होगी कि पूरे भारत में माता शारदा का यह इकलौता मंदिर है। इस मंदिर में माता शारदा के साथ ही अन्य देवी देवताओं की पूजा भी की जाती है।

क्या है पूजा की विधि व्यवस्था? (What are the rituals of worship?)

जब आप त्रिकूट पहाड़ी के गेट पर जाएंगे तो वहीं आपको ढेर सारे पूजा के समान बिकते हुए नजर आएंगे। आप वहां से माता के लिए चुनरी, फुल और प्रसाद खरीद सकते हैं। पूजा के लिए आवश्यक सामग्रियों को खरीदने के बाद आप आगे की ओर बढ़ सकते हैं। जहां से मंदिर के लिए चढ़ाई शुरू होती है। त्रिकूट पहाड़ी के शीर्ष तक पहुंचाने के लिए सीढ़ियों का निर्माण करवाया गया है। साथ ही दंडवत प्रणाम करते हुए माता तक पहुंचने की अभिलाषा (Desire) रखने वाले भक्तों के लिए भी रास्ता बनवाया गया है। अगर बात करें सीढ़ियों के संख्या की तो मैहर माता मंदिर पहुंचने के लिए आपको 1000 से भी ज्यादा सीढ़ियों की चढ़ाई करनी पड़ेगी।

मंदिर पहुंचकर आपको पूजा करने में कितने घंटे का समय लगेगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस समय यहां माता के दर्शन के लिए जाते हैं और आए हुए श्रद्धालुओं की संख्या कितनी है। मैहर माता मंदिर में दूर-दूर से भक्तजन (Devotees) पूजा करने के लिए आते हैं। इसलिए यहां श्रद्धालुओं (devotees) की संख्या हमेशा ही अधिक होती है। लेकिन साल के दोनों ही नवरात्रियों में यहां भक्तों की संख्या लगभग दोगुनी हो जाती है। अगर आप शांति से पूजा अर्चना करना चाहते हैं तो आप त्यौहार के दिनों में यहां जाना अवॉयड (avoid) कर सकते हैं।
मंदिर से नीचे उतरने के बाद आप वहीं कहीं आसपास खाना खा सकते हैं। क्योंकि पहाड़ी के तलहटी में बहुत सारे खाने की दुकान भी लगे हुए हैं। जहां लगभग डेढ़ सौ रुपए में एक आदमी बहुत ही अच्छे से खाना खा सकता है।

घूमने में कितना समय लगेगा? (How much time will it take to travel?)

इस मंदिर के लिए चढ़ाई में आपको लगभग 2 से 3 घंटे का समय लग सकता है। वहां पूजा करने में आपको एक से डेढ़ घंटे का समय लग सकता है। साथ ही पहाड़ी से नीचे उतरने में आपको डेढ़ से 2 घंटे का समय लग सकता है। अगर मोटे तौर पर कहा जाए तो आपको पूरे मंदिर घूमने और पूजा करने में लगभग 6 से 7 घंटे का समय लग सकता है।

कैसे पहुंचे? (How to reach?)

यह मंदिर मध्य प्रदेश राज्य के सतना जिले के त्रिकूट पहाड़ी पर स्थित है। जहां तक आप बाय रोड बहुत ही आसानी से पहुंच सकते हैं। रेल मार्ग से भी मैहर आसानी से पहुंचा जा सकता है। अगर आप दिल्ली से मैहर के लिए जाना चाहते हैं तो दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से आपको ट्रेन मिल जाएगी।
हवाई मार्ग द्वारा मैहर पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले मध्य प्रदेश के जबलपुर हवाई अड्डे तक पहुंचना होगा। मध्य प्रदेश का जबलपुर हवाई अड्डा देश के अन्य हवाई अड्डों से अच्छे तरीके से कनेक्टेड है। जबलपुर हवाई अड्डा पहुंचकर आपको 165 किलोमीटर दूरी तय करके मैहर पहुंचना होगा। जिसके लिए आप किसी भी टैक्सी या फिर बस का सहारा ले सकते हैं।

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अद्भुत वास्तुकला को दुनिया के सामने प्रस्तुत करते हैं खजुराहो के मंदिर

खजुराहो इस स्थान को मध्य प्रदेश का सम्मान माना जाता है। यह वही स्थान है जहां आपको विभिन्न प्रकार की कलाकृतियों से समृद्ध मंदिरों का समूह देखने को मिलता है। मध्य प्रदेश का खजुराहो भारत के प्राचीन कालीन इतिहास को बखूबी बयां करता है। खजुराहो के मंदिरों के समूह का निर्माण आज से लगभग 1300 साल पहले हुआ था। मंदिरों पर बनाई गई कलाकृतियां यह दर्शाती हैं कि हमारा भारत आज से हजार साल पहले भी कितना मॉडर्न (modern) था। कहते हैं मॉडर्निटी (modernity) कपड़ों से नहीं आती, मॉडर्निटी सोच में होनी चाहिए और वही मॉडर्निटी आज से हजार साल पहले के भारत के लोगों में भी थी। जिसके कारण भारत उस समय दुनिया में सोने की चिड़िया के नाम से जाना जाता था। आईए जानते हैं खजुराहो के मन्दिर समूहों के बारे में।

खजुराहो की मूर्तियाँ (sculptures of khajuraho)

1. कंदरिया मंदिर (Kandariya Temple)

2. चित्रगुप्त मंदिर (Chitragupta Temple)

3. विश्वनाथ मन्दिर(Vishwanath Temple)

कैसे पहुंचे खजुराहो?(How to reach khajuraho)

खजुराहो में कहां ठहरे? (Where to stay in Khajuraho?)

खजुराहो की मूर्तियाँ (sculptures of khajuraho)

खजुराहो में आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम (Archaeological Museum) है, जहां आपको कई सारे छोटे बड़े मंदिरों का समूह देखने को मिलेंगे। आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम के इस एरिया को पश्चिमी मंदिर समूह के नाम से भी जाना जाता है। आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम में जैसे ही आप इंटर करेंगे आपको बहुत ही खूबसूरत से गार्डन से होकर गुजर कर जाना होगा। यहाँ के प्रमुख मंदिरों में कंदरिया मंदिर, मतंगेश्वर मंदिर, लक्ष्मण मन्दिर, विश्वनाथ मंदिर, चित्रगुप्त मंदिर और विष्णु गुप्त मंदिर का नाम आता है।

1. कंदरिया मंदिर (Kandariya Temple)

कंदरिया मंदिर यहां की सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। जो यहां की सबसे ऊंची और बड़ी मंदिर है। यह यहां की इकलौती ऐसा मंदिर जिसके दो तोरण प्रवेश द्वार हैं। साथ ही साथ यह मंदिर इसलिए भी और खास हो जाता है क्योंकि यहां के दीवारों पर काम कला को प्रदर्शित करती हुई कुछ मूर्तियां उकेरी गई हैं। यहां के दीवारों में आपको शिकार करते हुए लोगों की, मूर्तियों नाचते हुए लोगों की, हाथियों और घोड़ों की और भी न जाने कई प्रकार की मूर्तियां के उकेरी गई हैं। इस मंदिर का निर्माण चंदेल वंश के राजा विद्याधर ने करवाया था।
इस मंदिर को कंदरिया महादेव के नाम से भी जाना जाता है।

2. चित्रगुप्त मंदिर (Chitragupta Temple)

बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण कंदरिया महादेव मंदिर के निर्माण से भी पहले हुआ था। इस मंदिर में कंदरिया महादेव मंदिर से अलग तरह की नकाशियां की गई हैं। इस मंदिर में जगह-जगह दीवारों पर विष्णु जी की कलाकृतियों को उकेरा गया है। साथ हीं आपको इस मंदिर में अन्य देवी देवताओं की छोटी-छोटी मूर्तियां भी देखने को मिलेंगी। अगर आप इस मंदिर के अंदर जाएंगे तो अंदर मंडप भी देखने को मिलेगा। साथ ही आपको चित्रगुप्त जी की मूर्ति भी देखने को मिलेगी। यह खजुराहो का इकलौता ऐसा मंदिर है जो कि सूर्य भगवान को समर्पित मंदिर है।

3. विश्वनाथ मन्दिर(Vishwanath Temple)

कंदरिया मंदिर और चित्रगुप्त मंदिर के ठीक सामने स्थित है- विश्वनाथ मंदिर। इस मंदिर का नाम विश्वनाथ मंदिर इसलिए है, क्योंकि इस मंदिर में एक शिवलिंग है। जिसके कारण इसको विश्वनाथ महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि सन 1002 में राजा धन द्वारा शिव मार्केटेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया गया था। इस मंदिर के ठीक सामने नंदी की प्रतिमा विराजमान है।

  • इसके अलावा खजुराहो के इस मंदिरों की श्रृंखला में लक्ष्मण मंदिर, विष्णु गुप्त मंदिर और मतंगेश्वर मंदिर भी शामिल हैं। मतंगेश्वर मंदिर में शिवरात्रि के दौरान आपको काफी भीड़ देखने को मिलेगी।

कैसे पहुंचे खजुराहो?(How to reach khajuraho)
खजुराहो पहुंचने के लिए खजुराहो का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन खजुराहो रेलवे स्टेशन है। जो कि मुख्य शहर से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। साथ ही खजुराहो में खजुराहो का एक हवाई अड्डा भी है। लेकिन यहां सिर्फ दिल्ली से एक फ्लाइट आती है। अगर आप बाय रोड खजुराहो जाना चाहते हैं तो यह भी एक बहुत ही अच्छा ऑप्शन है। खजुराहो सड़क मार्ग के द्वारा देश के अन्य भागों से बहुत हीं अच्छे तरीके से कनेक्ट है।

खजुराहो में कहां ठहरे? (Where to stay in Khajuraho?)

खजुराहो में ठहरने के लिए बहुत सारे ऑप्शंस हैं। आप यहां होम स्टेज, रिजॉर्ट, हॉस्टल आदि देख सकते हैं। आप अपने बजट के हिसाब से अपने स्टे के लिए ऑप्शन का चुनाव कर सकते हैं। यहां आपको हर प्राइस रेंज में होटल और हॉस्टल्स में रूम मिल जाएंगे।