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चार धाम यात्रा- यमुनोत्री,गंगोत्री,केदारनाथ और बद्रीनाथ

भारत में लगभग लाखों-करोड़ों की संख्या में छोटे-बड़े धार्मिक स्थल हैं। इन्हीं में शामिल है देव भूमि कहे जाने वाले उतराखंड की गोद में चारधाम। चारधाम मुख्य रूप से हिंदू धर्म के चार पवित्र स्थलों से संबंधित है। जो इस प्रकार हैं यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ। इन्हीं चार पवित्र स्थलों को देखने के लिए यहां पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। 2023 के आंकड़ों के अनुसार 55 लाख श्रद्धालु निकले थे चारधाम यात्रा पर।

यमुनोत्री

सबसे पहले हम बात करेंगे यमुनोत्री मंदिर के बारे में। जो चारधाम मंदिर में अपनी एक अलग पहचान के लिए जाना जाता है। यह मंदिर चारधाम स्थानों में से एक मुख्य स्थान है। यमुनोत्री मंदिर मां गंगे के लिए समर्पित है। मंदिर मां गंगा के तटपर सुशोभित है, जिसके दर्शन करके श्रद्धालु खुसमय महसूस करते हैं। यह मंदिर गडवाल हिमालय से देखने पर पश्चिम किनारे पर दृष्टिगोचर होता है और उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में यह मंदिर स्थापित है। भारत में दूसरी सबसे साफ़ और पवित्र कही जाने वाली नदी यमुना।  यही से अपना सफर प्रारंभ करती है और प्रयागराज में मां गंगा से संगम कर लेती है। यहीं यमुनोत्री में मां यमुना का पवित्र मंदिर कालिंदी घाटी के शिखर पर और बंदरपूंछ पर्वत के किनारे पर स्थित है। मंदिर के नजदीक ही मां यमुना की काले संगमरमर पत्थर से बनी दुर्लभ मूर्ति खड़ी हुई है। इस मंदिर के निर्माण का श्रेय टेहरी के राजा नरेश सुदर्शन शाह को जाता है। जिनके नेतृत्व में यह मंदिर 1839 में निर्मित करवाया गया था। शर्दियां का मौसम आने पर मां यमुना के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। अप्रैल मई में मां यमुना फिर से अपने कपाट वैदिक मंत्रों और उत्सव, अनुष्ठानों के बाद खोलती हैं, और श्रद्धालुओं को आत्मा तृप्ति का वरदान देती हैं। मां यमुना के आसपास कई छोटे बड़े कुंड हैं। इन्हीं में से एक है सूर्य कुंड। यह पहाड़ों और मिट्टी की तपन को अपने साथ लेकर खोलते हुए पानी के रूप में धारण करता है। भक्त इसी खोलते पानी में चावल और आलू को पांच मिनट के लिए रखकर फिर उसको प्रसाद के रूप में स्वीकार करते हैं

यमुनोत्री मंदिर में प्रवेश के पूर्व श्रद्धालु स्तंभ शिला के दर्शन कर आगे बढ़ते हैं। मां यमुना का यह दुर्लभ स्थान समुद्र से लगभग 3,291 मीटर ऊंचाई पर बना हुआ है। यह स्थान संत असित मुनि से जुड़ा हुआ है। आध्यात्मिक केंद्र कहे जाने वाले इस स्थान में मां गंगा की पवित्रता और इसका शांत बहाव मनमोहक और आकर्षक प्रतीत होता है। इस दिव्य जगह पर बसंत पंचमी, फूल देई, ओलगिया के त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाए जाते हैं। यमुनोत्री की यात्रा श्रद्धालुओं की आस्था के लिए एक भव्य स्थल है। यहां स्नान करने से श्रद्धालु पाप मुक्त होते हैं।

गंगोत्री

चारधामाें में से एक गंगोत्री, उत्तरकाशी जिले में एक छोटा शहर है, इसी छोटे और आकर्षक शहर के मध्य में स्थित है, गंगोत्री मंदिर।  जो अपनी अकाट्य, सुंदरता के लिए जाना जाता है। ऋषिकेश से महज़ 12 घण्टे यात्रा करने पर यह पवित्र स्थल गडवाल हिमालय के ऊंचे शिखर, गिलेशियारों और जंगल के बीच में स्थित है। मां गंगा अपने इर्द गिर्द इतनी सुंदरता समेटे हुए हैं की मानो स्वर्ग का द्वार यहीं से शुरू होता है। भारत के सभी हिन्दू धार्मिक स्थलों में से एक गंगोत्री सबसे ज्यादा ऊंचाई पर बसा हुआ स्थल है। किवदंतियों के अनुसार भगवान शंकर ने मां गंगा को स्वर्ग से अपनी जटाओं द्वारा मुक्त किया था। कितने आश्चर्य और प्रसन्नता की बात है की मां गंगा का उद्गम स्थल गोमुख है, जो गंगोत्री से उन्नीस किलोमीटर दूर स्थित है। यहां आप बस ट्रैकिंग द्वारा ही पहुंच सकते हैं क्योंकि यह काफ़ी दुर्लभ रास्ता है। अन्य कहाबत अनुसार माना जाता है की महर्षि भागीरथी ने कठिन तपस्या कर मां गंगा को स्वर्ग से धरती पर आने के लिए मजबूर किया था। गंगा नदी से बहुत सारी पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। जो अपने आप में अदभुत हैं। मंदिर में स्थित है, गर्भगृह उसी गर्भगृह में मां गंगा की मूर्ति चांदी की पोशाक पहने हुए विराजमान हैं, मंदिर में प्रवेश करने से पूर्व श्रद्धालु पहले गंगा के कंचन पानी में स्नान करते हैं। और स्नान करने के पश्चात वह मंदिर में प्रवेश कर मां गंगा के दर्शन करते हैं। दर्शन कर श्रद्धालु मन की शांति से परिचित होते हैं। यहां का वातावरण सुंदरता के सभी आयामों से लिप्त है।

केदारनाथ

Uttarakhand Char Dham Yatra

केदारनाथ बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक पवित्र पावन स्तंभ है। जो गिरिराज हिमालय के केदार नामक पर्वत पर बना हुआ है। केदार घाटी को हम मुख्य रूप से दो भागों बटा हुआ देखते हैं। एक नर और दूसरा नारायण चोटी। भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक नर और नारायण ऋषि की तपोभूमि के रूप में जानते हैं। केदारनाथ उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। इसे अर्धज्योतिरलिंग भी कहा जाता है। यहां पर स्थित स्वंभू ज्योतिर्लिंग अतिप्राचीन और भव्य है। माना जाता है इस मंदिर का निर्माण जन्मेजय ने कराया था। और इसका जीर्णोद्वार आदिशंकराचार्य ने किया था।

Uttarakhand Char Dham Yatra

सर्वप्रथम इस मंदिर का निर्माण पांडवो ने करवाया था। प्रकृति के बदलाव और भौगोलिक स्तिथियों के परिवर्तन के कारण यह मंदिर खंडर के रूप में तब्दील हो गया था। लगभग 400 से 500 वर्ष तक यह मंदिर बर्फ में दफन रहा। जिसके बाद आदिशंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्वार करवाया था। आदिशंकराचार्य की समाधि आज भी इस मंदिर के पिछले भाग में बनी हुई है। इस मंदिर को लगभग 8 वी शताब्दी ईसा पूर्व बनाया गया था।

यहां की खास बात यह है कि  दीपावली पर्व के दूसरे दिन शीतऋतु के प्रारंभ होने पर मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। और इस मंदिर में एक भव्य दीप प्रज्ज्वलित किया जाता है। जो लगभग 6 महीने तक मंदिर बंद रहने तक वैसे ही चलता रहता है, और छः महीने बाद जब मंदिर के कपाट खुलते हैं तो भारी संख्या में श्रद्धालु इस दीपधूप को लेने जाते हैं, और भगवान की पूजा आराधना कर स्वयं को भगवान के श्री चरणों में समर्पित कर देते हैं। हिमाचल की गोद में केदारनाथ के इस भव्य मंदिर में प्राकृतिक विपत्तियां मड़राती रहती हैं। मंदिर के इतिहास में ऐसी कई आपदाएं घटित हो चुकी हैं। जिन पर बॉलीवुड ने फिल्में भी बनाई हैं। एक फिल्म तो केदारनाथ नाम से ही बनी हुई है। जिसके अभिनेता सुशांत राजपूत और अभिनेत्री सारा अली ख़ान थीं।

बद्रीनाथ

Uttarakhand Char Dham Yatra

भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर सौंदर्य, शुद्ध वातावरण, बर्फ सुंदरता, अलकनंदा नदी की छलचलाहट प्राकृतिक सौन्दर्य आदि से परिपूर्ण है। यह एकमात्र ऐसा स्थान है जहां साल भर में लोग सबसे ज्यादा देखने जाते हैं। वैसे तो इस मंदिर में अनेक देवी देवताओं की मूर्तियां हैं लेकिन भगवान विष्णु की एक काले संगमरमर से बनी एक मीटर ऊंचाई वाली यह मूर्ति दुर्लभ और आकर्षक है। मंदिर में सूर्यकुण्ड जैसे एक तप्तकुंड है जो ओषधिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां पर साल में अनेकों भव्य मेलों का आयोजन होता है। जिसका लुत्फ उठाने के लिए पर्यटक और श्रद्धालु हमेशा आतुर रहते हैं।तथाकथित शब्दों के अनुसार इस मंदिर के निर्माण का श्रेय भी आदिशंकराचार्य को दिया जाता है। किबदंतियों के अनुसार भगवान विष्णु एक ऐसे स्थान की तलास कर रहे थे। जो शान्ति का केन्द्र हो जहां वह ध्यान कर सकें। तब भगवान विष्णु बद्रीनाथ नामक इस पवित्र स्थान को चुना था। भगवान विष्णु ध्यान में इतने लीन थे कि उनको हिमालय की कड़कड़ाती सर्दी का बिल्कुल अहसास नहीं हुआ। तब माता लक्ष्मी ने उनकी सुरक्षा के लिए स्वयं को बद्री ब्रक्ष बना लिया। जिसके बाद भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर। इस देव भूमि को बद्रीकाश्रम नाम दिया था।

इस पवित्र स्थल के कुछ प्रमाण पुराणों में भी दिए गए हैं। मंदिर मौसम  की मार के कारण शर्दियों के समय में बंद कर दिया जाता है। मंदिर में भव्य आरती प्रज्वलित की जाती है और यह आरती श्रद्धालुओं के भाग्य खोल देती है। इस आरती में इतनी आकर्षक ध्वनियों की आवाजें, दीपों की वह लहलहाती धूप और पुजारियों के मंत्र पाठ करने की कला अमूर्त होती है।

चारधाम यात्रा के लिए पंजीकरण कैसे करें –

चारधाम यात्रा के लिए पंजीकरण करने का सबसे सरल तरीका ऑनलाइन है। यदि आप यह निश्चित कर चुके हैं कि आप चारधाम की यात्रा करना चाहते हैं। तो आप उत्तराखंड पर्यटन विभाग की आधिकारिक वेबसाइट ragistrationandtouriatcare.uk.gov.in पर जाकर पंजीकरण कर सकते हैं। इसके अलावा व्हाट्सएप मैसेज कर भी आप अपना पंजीकरण कर सकते हैं जिसके लिए दूरभाष 8394833833 है। एक और अन्य रास्ता उपलब्ध है पंजीकरण के लिए  आप कॉल करके भी अपना पंजीकरण कर सकते हैं। इसके लिए आपको टोल फ्री नंबर की आवश्यकता होगी जो इस प्रकार है 0135- 1364 । इन माध्यमों से आप अपना रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं। इसके अलावा आप अपने मोबाइल फोन में गूगल प्ले स्टोर से touristcareuttarakhand नामक एप्लीकेशन डाउनलोड कर भी अपना पंजीकरण कर सकते हैं।

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किसी का भी दिल चुरा सकते हैं हिमालयन रेंज के ये खूबसूरत ट्रेक

यह ट्रेक नेपाल का सबसे प्रसिद्ध और खूबसूरत ट्रेक है, जो दुनिया के सबसे ऊँचे पहाड़, माउंट एवरेस्ट के नजदीक स्थित है। यह ट्रेक एडवेंचरर्स और पहाड़ प्रेमियों के लिए एक सपनों का सफर है, जिसमें उन्हें हिमालयन रेंज की अद्भुद प्राकृतिक माहौल को एक्सपीरियंस करने का अवसर मिलता है। इस ट्रेक की शुरुआत काठमांडू (नेपाल की राजधानी), से होती है। यहाँ से, ट्रेकिंग ग्रुप्स लुकला या फापलू हवाई अड्डे तक उड़ान भर कर जाते हैं, जो ट्रेक का प्रारंभिक बिंदु होता है।
इस खूबसूरत से सफर के दौरान, यात्री लुकला या फापलू से नाम्चे बाजार, खुमजुंग, तेंगबोचे, डिंगबोचे, लोबुचे, गोरक शेप तक पहुंचते हैं, और अंत में एवरेस्ट बेस कैम्प तक जाते हैं। यह ट्रेक लगभग 12-14 दिनों तक का होता है, जिसमें दुर्लभ दृश्यों को देखने का अवसर होता है। आप इस ट्रेक में ढेर सारे अनएक्सपेक्टेड व्यूज को एक्सपीरियंस करने वाले हैं। जैसे कि नाम्चे बाजार का विशेष सौंदर्य, तेंगबोचे मोनास्ट्री का शांत वातावरण, एवरेस्ट, ल्होत्से, नुप्से, अमा डब्लम, र अन्नपूर्ण हिमालय पर्वत श्रेणियों का दर्शन। यह ट्रेक देखने में जितना खूबसूरत है उतना ही मुश्किल भी है। EBC ट्रेक की एक प्रमुख चुनौती है उसकी ऊँचाई। इस ट्रेक पर आप नेपाली शेर्पा समुदाय की संस्कृति और परंपराओं को अच्छे से एक्स्प्लोर है। यात्री नाम्चे बाजार और अन्य गांवों में स्थित गोम्पास और ध्यान केंद्रों को भी देखते हैं। एवरेस्ट बेस कैम्प पहुंचने पर यात्रियों को जो एक्सपीरियंस होता है उसको जो शब्दों में बयां करना मुश्किल है। यह एक ऊँचा पहाड़ों का मैदान है, जहाँ से एवरेस्ट की शिखर दर्शन करने का अवसर मिलता है और माउंट एवरेस्ट के समीप जाकर उसकी प्रतिष्ठा को महसूस किया जा सकता है। एवरेस्ट बेस कैम्प ट्रेक, अनुभवों का खजाना है, अगर आपने इसे एक्सपीरियंस कर लिया तो यह आपको को जिंदगी भर याद रहेगा

यह नेपाल का एक लोकप्रिय और रोमांचक ट्रेक है, जो अन्नपूर्णा हिमालय की प्राचीन श्रृंगारी और उसके चारों ओर घूमता है। यह ट्रेक एडवेंचरर्स के लिए एक अनूठा अनुभव प्रदान करता है, जिसमें प्राकृतिक सौंदर्य, स्थलीय संस्कृति, और चुनौतियों से भरी यात्रा होती है। यह ट्रेक आमतौर पर लगभग 15-20 दिनों का होता है और यह ट्रेक जगह-जगह से शुरू हो सकता है, लेकिन यह आमतौर पर बेसिस भुलभुलैया या जगताप गाँव से शुरू होता है और फिर अन्नपूर्णा रेंज के चारों ओर घूमता है, जिसमें मुख्य गाँवों में मुक्तिनाथ, मानांग, तिलिचो, चम्जोंग, और पोखरा शामिल हैं। यह ट्रेक नेपाल की सबसे बड़ी हिमालयी श्रृंखलाओं के चारों ओर से गुजरता है और यात्रियों को अनेक प्राकृतिक दृश्यों का अनुभव कराता है, जैसे कि हिमनद झरने, श्वेता नदी के तट, उच्च पर्वतीय झीलें, और खेत। यह ट्रेक स्थानीय गाँवों में रहने और उनकी संस्कृति को जानने का अवसर प्रदान करता है। यात्री यहाँ पर नेपाली शेर्पा, मागर, रा लिम्बू समुदायों के साथ अन्य स्थानीय लोगों से मिल सकते हैं। यह ट्रेक ऊँचाइयों, पर्वतीय मौसम की अनियमितता, और दूसरी परिस्थितियों की चुनौतियों से भरा होता है, जिसमें विशेषकर ठंड, ऊँचे धारों के पार जाना, और खासकर अन्नपूर्णा पास से गुजरना शामिल है। अन्नपूर्णा सर्किट ट्रेक एक अनुभवों भरा सफर है जो यात्रियों को नेपाल के हिमालय का सच्चा अनुभव करने का अवसर देता है।

लांगतांग घाटी ट्रेक नेपाल का एक प्रमुख और प्रिय ट्रेक है जो हिमालय के दर्शनीय सुंदर पर्वत श्रेणी में स्थित है। यह ट्रेक हिमालय के समीप स्थित लांगतांग घाटी के मध्य से गुजरता है और यात्रियों को प्राकृतिक सौंदर्य, स्थानीय संस्कृति और एक शांतिपूर्ण वातावरण का अनुभव कराता है। लांगतांग घाटी ट्रेक नेपाल के लांगतांग राष्ट्रीय उद्यान में स्थित है। ट्रेक की शुरुआत सिरोंग, धुनचे, और श्याब्रु बाजार से होती है और फिर यात्रा लांगतांग घाटी के माध्यम से गुजरती है, जिसमें बीउ, लांगटांग, और क्यांजीनजुंगा घाटी शामिल हैं। यह ट्रेक यात्रियों को हिमालय के अद्भुत पहाड़ियों के बीच से गुजरता है, जिनमें सफेद गंधर्व, श्रीकन्थ, गंधर्वधर, और लांगटांग हिमश्रृंग देखने को हैं। इसके अलावा, यहाँ स्थानीय वन्य जीवन का भी अनुभव किया जा सकता है। यहाँ यात्री स्थानीय गांवों में रुक सकते हैं और उनके साथ रहकर उनके दिनचर्या में शामिल हो सकते हैं। ट्रेक के दौरान यात्री स्थाई ऊँचाई, ठंड, और अनुयायियों के साथ मिलजुलकर चुनौतियों का सामना करते हैं। स्थानीय मौसम के अनियमित परिवर्तन भी यात्रियों के लिए एक परिचित चुनौती हो सकते हैं। लांगतांग घाटी ट्रेक एक शांतिपूर्ण और रोमांचक यात्रा है जो हिमालय के असीमित सौंदर्य और स्थानीय संस्कृति को एक्सप्लोर करने का अवसर देती है।

रूपकुंड ट्रेक उत्तराखंड, भारत में स्थित है और यह एक प्रसिद्ध और आकर्षक पर्वतीय ट्रेक है जो यात्रियों को रूपकुंड झील तक ले जाता है। यह ट्रेक रोमांचक और मनोरम दृश्यों के साथ पूरी तरह से भरा हुआ है। रूपकुंड ट्रेक उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। ट्रेक की शुरुआत मुंडली गाँव से होती है और फिर यात्रा रूपकुंड झील तक जाती है, जो एक प्राकृतिक झील है जिसका पानी शानदार नीला होता है। ये जगह आपको बिलकुल किसी जन्नत जैसी लगेगी। यह ट्रेक यात्रियों को हिमालय के सुंदर दृश्यों का अनुभव कराता है, जिनमें सुन्दर प्राकृतिक प्रदर्शनी, वन्य जीवन, और उच्च पर्वतीय गाँवों का आनंद लेना शामिल है।
ट्रेक के दौरान यात्री स्थानीय गाँवों के अत्यधिक आकर्षक स्थलों को देख सकते हैं और स्थानीय लोगों की संस्कृति को समझ सकते हैं। ट्रेक के दौरान, यात्री ऊँचाइयों, ठंड, और खुद की जरूरतों के लिए सामग्री के साथ मुसीबतों का सामना करते हैं। स्थानीय मौसम के अनियमित परिवर्तन भी यात्रियों के लिए एक चुनौती हो सकते हैं। रूपकुंड ट्रेक एक शांतिपूर्ण और प्राकृतिक ट्रेक है जो यात्रियों को खुद को डिस्कवर करने का देता है।

कंचनजंघा बेस कैम्प ट्रेक एक प्रसिद्ध और उत्कृष्ट पर्वतीय ट्रेक है जो सिक्किम, भारत में स्थित है। यह ट्रेक पूरे विश्व में पर्वतारोहण के लिए लोकप्रिय है, जिसमें यात्री कंगचेंजंगा पर्वत के नजदीक बेस कैम्प तक पहुंचते हैं। कंचनजंघा बेस कैम्प ट्रेक की शुरुआत युक्सोम गाँव से होती है, जो सिक्किम के पश्चिमी हिस्से में स्थित है। ट्रेक के दौरान, यात्री भगिन्तग रेंज के पार कंगचेंजंगा बेस कैम्प तक पहुंचते हैं। यह ट्रेक यात्रियों को स्थानीय प्राकृतिक सौंदर्य, वन्य जीवन, और पर्वतीय दृश्यों का अनुभव कराता है। यात्री कंचनजंघा पर्वत के मनोरम दृश्य का आनंद लेते हैं। कंचनजंघा ट्रेक के दौरान, यात्री स्थानीय सिक्किमी और भूटिया संस्कृति का अनुभव कर सकते हैं। वे स्थानीय गांवों में रुक सकते हैं और स्थानीय लोगों के साथ संवाद कर सकते हैं। यह ट्रेक उच्चतम ऊँचाई में चलता है, और अक्सर मौसम की अनियमितता का सामना करना पड़ता है। यात्री को ऊँचाइयों के अनुकूल तैयार होना चाहिए। कंचनजंघा बेस कैम्प ट्रेक एक रोमांचक और अनुभव समृद्ध यात्रा है जो यात्रियों को प्राकृतिक सौंदर्य और पर्वतीय अनुभव का आनंद देता है।(Trecking Destinations of Himalayas)

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उत्तराखंड की संस्कृति को परिपूर्ण करते हैं ये पारम्परिक नृत्य

उत्तराखंड के नृत्य संस्कृति का महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि वे स्थानीय जीवन, परंपरा, और धार्मिक आदर्शों का प्रतिबिम्ब करते हैं। इन नृत्यों में स्थानीय भाषा, संगीत, और वेशभूषा का महत्वपूर्ण योगदान होता है, जो संस्कृति की गहराई को और भी बढ़ाता है। उत्तराखंड के नृत्य संस्कृति में स्थानीय जीवन के विभिन्न पहलुओं का प्रतिबिम्ब होता है। गढ़वाली नृत्य में पहाड़ी जीवन की कठिनाइयों और खुशियों का विवरण होता है, जबकि कुमाऊँई नृत्य में उत्तराखंड की प्राकृतिक सौंदर्य को प्रशंसा किया जाता है। छोलिया नृत्य में सैनिक और योद्धा भावनाओं को उजागर किया जाता है, जबकि लंगवीर नृत्य में वीर गाथाओं का गौरव गाया जाता है। उत्तराखंड के नृत्य संस्कृति का महत्व यह भी है कि वे समाज में समरसता और एकता को बढ़ावा देते हैं। इन नृत्यों में समृद्धि, सहयोग, और समरसता की भावना व्यक्त होती है, जो समुदाय को एक साथ आने और मिल-जुलकर जीने की महत्वपूर्ण बातें सिखाती हैं। इसके अलावा, ये नृत्य उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को संजीवनी देते हैं और नई पीढ़ियों को इसे समझने और मानने के लिए प्रेरित करते हैं।

गढ़वाली नृत्य :

गढ़वाली नृत्य का महत्व यह है कि यह स्थानीय समुदाय की अद्वितीयता, एकता, और सांस्कृतिक धरोहर को बचाव करता है और यहाँ की जनता को उनकी विरासत के प्रति गर्व महसूस कराता है। इसके अलावा, गढ़वाली नृत्य का उद्दीपन युवा पीढ़ियों को अपनी संस्कृति और धरोहर के प्रति उत्साहित करता है।

कुमाऊँई नृत्य :

कुमाऊँई नृत्य का महत्व यह है कि यह उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को जीवंत रखता है और स्थानीय कलाकारों को उनकी प्राचीन और अमूल्य संस्कृति का मान-सम्मान प्रदान करता है। इसके अलावा, यह नृत्य युवा पीढ़ियों को अपनी संस्कृति के प्रति प्रेरित करता है और उन्हें इसे समझने और मानने के लिए प्रोत्साहित करता है।

लंगवीर नृत्य :

लंगवीर नृत्य का महत्व यह है कि यह उत्तराखंड की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को जीवंत रखता है और स्थानीय लोगों को उनकी वीरता और साहस का मान-सम्मान प्रदान करता है। इसके अलावा, यह नृत्य युवा पीढ़ियों को अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के प्रति उत्साहित करता है और उन्हें इसे समझने और मानने के लिए प्रोत्साहित करता है।

छोलिया नृत्य :

छोलिया नृत्य का महत्व यह है कि यह उत्तराखंड की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को जीवंत रखता है और स्थानीय लोगों को उनकी वीरता और साहस का मान-सम्मान प्रदान करता है। इसके अलावा, यह नृत्य युवा पीढ़ियों को अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के प्रति उत्साहित करता है और उन्हें इसे समझने और मानने के लिए प्रोत्साहित करता है।

बसंती नृत्य :

बसंती नृत्य का महत्व यह है कि यह उत्तराखंड की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को जीवंत रखता है और लोगों को सामाजिक एवं सांस्कृतिक अवसरों के माध्यम से जोड़ता है। इसके अलावा, बसंती नृत्य के माध्यम से स्थानीय लोगों का उत्साह और भावनात्मक संबंध बढ़ता है और यह उन्हें अपने संगीत, नृत्य, और साहित्य की अमूल्य विरासत के प्रति समर्पित करता है।

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नॉर्वे जाने की जरूरत नहीं, अब उत्तराखंड में हीं देखिए सितारों  की दुनियाँ को

आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेज (ARIES), नैनीताल :
बचपन में आसमान में चाँद सितारों को देखकर हमारा मन भी जरूर करता है कि काश हमारे पास कोई बड़ा सा दूरबीन होता और हम इन चाँद सितारों को और भी सफाई से देख पातें। लेकिन बड़े होने के साथ-साथ यह ख्वाब कहीं ना कहीं हमारे कल में हीं दबकर रह जाता है। लेकिन अब और नहीं! क्योंकि आपका यह ख्वाब सच हो सकता है, इसके लिए बस आपको उत्तराखंड जाने की जरूरत है। जी हां उत्तराखंड में स्थित आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेज (ARIES) भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के तहत एक प्रमुख स्वायत्त अनुसंधान संस्थान है। उत्तराखंड के सबसे सुंदर शहर नैनीताल में स्थित, ARIES खगोल विज्ञान, खगोल भौतिकी और वायुमंडलीय विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में अनुसंधान करने के लिए समर्पित है। 1954 में स्थापित, ARIES भारत में खगोलीय अनुसंधान में सबसे आगे रहा है। इसके प्राथमिक फोकस क्षेत्रों में अवलोकन संबंधी खगोल विज्ञान, सैद्धांतिक खगोल भौतिकी, सौर भौतिकी और वायुमंडलीय विज्ञान शामिल हैं। संस्थान का नाम प्राचीन भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया है, जो इन क्षेत्रों में ज्ञान को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। आपको जानकार हैरानी होगी की ARIES में एशिया का सबसे बड़ा पूर्ण रोबोटिक टेलीस्कोप है जिसका नाम देवस्थल ऑप्टिकल टेलीस्कोप (DOT) है। डीओटी तारकीय खगोल विज्ञान, एक्स्ट्रागैलेक्टिक खगोल विज्ञान और क्षणिक घटना जैसे क्षेत्रों में अत्याधुनिक अनुसंधान करने के लिए उन्नत उपकरणों से सुसज्जित है और कई अत्याधुनिक ऑब्जर्वेशन की सुविधाएं भी संचालित करता है।

उत्तराखंड अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (USAC), देहरादून:
नैनीताल में उत्तराखंड अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (USAC) एक अग्रणी संस्थान है जो उत्तराखंड राज्य के सतत विकास के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के लिए समर्पित है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और उत्तराखंड राज्य सरकार के सहयोग से स्थापित, यूएसएसी विभिन्न क्षेत्रों में उपग्रह डेटा और प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग के लिए केंद्र बिंदु के रूप में कार्य करता है। यूएसएसी का प्राथमिक उद्देश्य कृषि, वानिकी, जल संसाधन, आपदा प्रबंधन और शहरी नियोजन जैसे क्षेत्रों में उत्तराखंड की विकासात्मक चुनौतियों का समाधान करने के लिए अंतरिक्ष-आधारित इनपुट का उपयोग करना है। केंद्र नीति निर्माताओं और हितधारकों के लिए कार्रवाई योग्य अंतर्दृष्टि और निर्णय-समर्थन प्रणाली उत्पन्न करने के लिए उपग्रह इमेजरी और भू-स्थानिक डेटा के अधिग्रहण, प्रसंस्करण और विश्लेषण की सुविधा प्रदान करता है।

जी बी पंत इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन एनवायरनमेंट एंड डेवलपमेंट (जीबीपीआईएचईडी), अल्मोडा:

यह उत्तराखंड के नैनीताल में स्थित पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण और सतत विकास संस्थान (GBPIHED), भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के द्वारा विकसित एक स्वायत्त संस्थान है। 1988 में स्थापित, GBPIHED नाजुक हिमालयी क्षेत्र में अनुसंधान करने और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है। GBPIHED जैव विविधता संरक्षण, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और आजीविका वृद्धि सहित विभिन्न विषयगत क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है। संस्थान हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र में पर्यावरण, समाज और अर्थव्यवस्था के बीच जटिल संबंधों को समझने के लिए अंतःविषय अनुसंधान करता है।
GBPIHED की प्रमुख शक्तियों में से एक इसकी अनुसंधान अवसंरचना और विशेषज्ञता में निहित है। संस्थान में हिमालयी पारिस्थितिकी और पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करने के लिए सुसज्जित अत्याधुनिक प्रयोगशालाएं, फील्ड स्टेशन और अनुसंधान सुविधाएं हैं। GBPIHED के शोधकर्ता वैज्ञानिक ज्ञान उत्पन्न करने और क्षेत्र में पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करने के लिए नवीन समाधान विकसित करने के लिए क्षेत्र सर्वेक्षण, प्रयोग और मॉडलिंग अध्ययन करते हैं। अनुसंधान के अलावा, GBPIHED क्षमता निर्माण, नीति समर्थन और वकालत में सक्रिय रूप से शामिल है। संस्थान स्थायी प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और संरक्षण प्रथाओं में स्थानीय समुदायों, सरकारी अधिकारियों और अन्य हितधारकों की क्षमता निर्माण के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम, कार्यशालाएं और सेमिनार आयोजित करता है।
GBPIHED हिमालयी मुद्दों पर अनुसंधान और ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों, सरकारी एजेंसियों और गैर-सरकारी संगठनों के साथ भी सहयोग करता है। अपनी आउटरीच गतिविधियों के माध्यम से, GBPIHED का लक्ष्य हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र के महत्व और उनके संरक्षण और सतत विकास की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। कुल मिलाकर, GBPIHED नैनीताल हिमालयी अध्ययन के लिए एक प्रमुख अनुसंधान संस्थान और ज्ञान केंद्र के रूप में कार्य करता है, जो वैज्ञानिक समझ और टिकाऊपन में योगदान देता है। दुनिया के सबसे पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में से एक का प्रबंधन।

देहरादून ऑब्जर्वेटरी, देहरादून :

देहरादून जैसे शांत शहर में, फुसफुसाते हुए देवदार के पेड़ों के बीच और हिमालय के गोद में, आकाशीय खोज का एक स्वर्ग स्थित है जिसे देहरादून वेधशाला के नाम से जाना जाता है। स्वर्ग की ओर पहुंचने वाले एक मूक प्रहरी की तरह, यह वेधशाला जिज्ञासा और खोज के प्रतीक के रूप में खड़ी है, जो ज्ञान चाहने वालों को ब्रह्मांड के रहस्यों को जानने के लिए आमंत्रित करती है।

अपने वैज्ञानिक प्रयासों से परे, देहरादून वेधशाला सामुदायिक सहभागिता और शिक्षा का केंद्र है। यह छात्रों, विद्वानों और ज्योतिषियों के लिए समान रूप से अपने दरवाजे खोलता है, खगोल विज्ञान के प्रति प्रेम को बढ़ावा देता है और युवा मन में जिज्ञासा की चिंगारी को प्रज्वलित करता है। कार्यशालाओं, व्याख्यानों और स्काईवॉचिंग कार्यक्रमों के माध्यम से, यह ब्रह्मांड के लिए आश्चर्य और प्रशंसा की भावना को बढ़ावा देता है, जीवन को समृद्ध करता है और क्षितिज का विस्तार करता है।

औली स्पेस ऑब्जर्वेटरी, औली :
हिमालय की ऊंची ऊंचाइयों में, जहां हवा ठंडी है और पहाड़ समय बीतने के खिलाफ खड़े हैं, वहां से आसमान में झांकने के लिए एक स्थान है। – औली खगोलीय वेधशाला। औली की राजसी चोटियों के ऊपर स्थित, यह वेधशाला स्वर्ग के लिए एक खिड़की प्रदान करती है। जहां पृथ्वी और आकाश के बीच की सीमाएं समाप्त हो जाती हैं, और ब्रह्मांड के रहस्य अपने सभी वैभव में प्रकट होते हैं।

बर्फ से ढकी चोटियों और अल्पाइन घास के मैदानों के बीच बना यह औली खगोलीय वेधशाला सितारों के प्रति मानवता के स्थायी आकर्षण का एक प्रमाण है। यहां, रात के आकाश के विशाल विस्तार के नीचे, खगोलशास्त्री और उत्साही लोग अपनी आंखों के सामने आकाशीय नृत्य को देखने के लिए एकत्र होते हैं। आकाश की ओर निर्देशित दूरबीनों से, वे दूर की आकाशगंगाओं, नीहारिकाओं और तारा समूहों का पता लगाते हैं, और ब्रह्मांड की सुंदरता और भव्यता को देखकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं।

गोविन्द बल्लभ पंत इंजीनियरिंग कॉलेज ऑब्सर्वेटरी, पौड़ी:

पौड़ी में स्थित गोविन्द बल्लभ पंत इंजीनियरिंग कॉलेज ऑब्सर्वेटरी, वहां के सितारों के संगीत को सुनने का एक अनोखा स्थान है। जैसे ही रात की चादर बिछ जाती है, यहां की सीमाएं समाप्त हो जाती हैं और आसमान आत्मविश्वास से भर जाता है। यहां का माहौल एक मधुर संगीत के जैसा हो जाता है, जिसमें हर तारा और ग्रह अपनी कहानी कहते हैं।

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बुरांश के फूल : फूल एक फायदे अनेक

बुरांश के फूल आमतौर पर फरवरी से मई के बीच खिलते (Blooms) हैं। इसका फूलना वर्ष के अनुसार भिन्न-भिन्न हो सकता है, लेकिन यह सामान्यतः बहार के मौसम में होता है। ये बुरांश के फूल इतने खूबसूरत होते हैं कि जब आप फरवरी से में के बीच पहाड़ी इलाके में जैसे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश या कश्मीर आदि की सैर करेंगे तो आपको वहां के पहाड़ों पर लाल रंग के फूलों की चादर (Red Flower) देखने को मिलेंगे। जो पहाड़ों की खूबसूरती को और भी अधिक बढ़ा देते हैं। गोल और घुमावदार पहाड़ी रास्ते इन लाल फूलों की वजह से और भी ज्यादा रोमांचक हो जाते हैं। अगर आप ऐसे मौसम में अपने प्रिय जन (Loved Ones) के साथ पहाड़ी इलाकों की सैर पर निकलते हैं तो यह खूबसूरत सफर इतना खूबसूरत बन जाता है कि आप जिंदगी भर कभी नहीं भूल सकते हैं।

फूल: बुरांश के पेड़ के फूल बहुत ही सुंदर होते हैं और अक्सर गुलाबी, लाल, या सफेद रंगों में पाए जाते हैं।

चयापथ्य: इसके पत्तों और फूलों का अर्क चिकित्सा में उपयोग किया जाता है। बुरांश के अर्क में कुछ औषधीय गुण होते हैं जो कई स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याओं के इलाज में मदद कर सकते हैं।

स्थायित्व: बुरांश के पेड़ अक्सर हिमालयी क्षेत्र में पाए जाते हैं और यहाँ के शान्त और शीतल जलवायु को सहने की क्षमता रखते हैं।

पर्यावरणीय महत्व: बुरांश के पेड़ अपने पर्यावरणीय महत्व के लिए भी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इनकी रूपरेखा और पेड़ों का विस्तार पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखने में मदद करते हैं।

  • 1 कप बुरांश के फूल (धोए और छोटे कट लें)
  • 2 हरी मिर्च (बारीक कटी हुई)
  • 1 छोटा आदा (कटा हुआ)
  • 1/2 छोटा अदरक (कटा हुआ)
  • 2 टेबलस्पून नामकीन
  • 1 टेबलस्पून लाल मिर्च पाउडर
  • 1 टेबलस्पून लाल मिर्च सॉस
  • 2 टेबलस्पून टमाटर की प्यूरी
  • 1/2 टेबलस्पून गुड़
  • 1 छोटी चम्मच नींबू का रस
  • नमक स्वादानुसार
  • 1 टेबलस्पून तेल
  1. एक कड़ाही में तेल गरम करें। फिर उसमें हरी मिर्च, आदा, और अदरक डालें और सांघने तक पकाएं।
  2. अब इसमें बुरांश के फूल, नामकीन, लाल मिर्च पाउडर, और लाल मिर्च सॉस डालें। मिलाएं और 2-3 मिनट के लिए पकाएं।
  3. फिर इसमें टमाटर की प्यूरी, गुड़, नींबू का रस, और नमक डालें। अच्छे से मिलाएं और 2-3 मिनट के लिए पकाएं।
  4. चटनी तैयार है! इसे ठंडा करके सर्व करें।

इस चटनी को पराठे, रोटी, या चावल के साथ स्वादिष्टीकरण के रूप में सर्व किया जा सकता है। परिणाम स्वादिष्ट होगा!

  1. विटामिन और खनिजों का स्रोत: बुरांश के फूल विटामिन C और अन्य आवश्यक खनिजों का एक अच्छा स्रोत होते हैं, जो इम्यून सिस्टम को मजबूत करते हैं और शरीर को संतुलित रखने में मदद करते हैं।
  2. पाचन को सुधारना: बुरांश के फूलों में पाया जाने वाला अदरक, लहसुन, और हरी मिर्च साइडर और पाचन को सुधारने में मदद कर सकता है।
  3. एंटीऑक्सीडेंट प्रदान करना: बुरांश के फूलों में पाए जाने वाले विटामिन C और अन्य एंटीऑक्सीडेंट्स शरीर को रोगों से लड़ने में मदद कर सकते हैं और कैंसर जैसी बीमारियों के खिलाफ संरक्षण प्रदान कर सकते हैं।
  4. मधुमेह का प्रबंधन: बुरांश के फूलों के अदरक और नींबू के रस के प्रयोग से मधुमेह का प्रबंधन किया जा सकता है, क्योंकि इनमें उच्च अंतर्द्रव्य मौजूद होते हैं जो रक्त शर्करा को नियंत्रित कर सकते हैं।
  5. प्रोटीन का स्रोत: बुरांश के फूलों में प्रोटीन होता है, जो मांस या अन्य प्रोटीन स्रोत की कमी को पूरा करने में मदद कर सकता है।
  • 1 कप बुरांश के फूल (धोए और छोटे कट लें)
  • 1 टेबलस्पून नींबू का रस
  • 2 टेबलस्पून शहद (या चीनी), स्वादानुसार
  • 1 कप पानी
  • पानी के लिए बर्फ (वैकल्पिक)
  1. एक मिक्सर या ब्लेंडर में बुरांश के फूल, नींबू का रस, और शहद डालें।
  2. सभी सामग्री को अच्छे से मिलाएं, ताकि फूल अच्छे से पीस जाएं।
  3. अब इसमें 1 कप पानी डालें और पुनः मिलाएं।
  4. अगर आप चाहें, तो इसे छलने के बाद पानी में बर्फ डालकर ठंडा कर सकते हैं।
  5. बुरांश के फूलों का जूस ठंडा होते ही परोसें और स्वाद उठाएं।

यह स्वादिष्ट जूस आपको गर्मियों में ठंडा करने के साथ-साथ बुरांश के फूलों के सारे लाभ भी प्रदान करेगा। ध्यान दें कि इसे पीने से पहले हमेशा अच्छे से छानकर पीना चाहिए।

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नथ, हंसुल और चवन्नीमाला से है उत्तराखंड की संस्कृति की पहचान।

नथ से है खास लगाव :

अगर आप किसी त्योहार के समय उत्तराखंड जा रहे हैं तो वहां की अधिकतर महिलाएं आपको बड़े-बड़े नथ पहने हुए दिख जाएंगी। उत्तराखंड के लगभग सभी भागों में ऐसे बड़े-बड़े नथ पहनने का प्रचलन कई सौ सालों पुराना है। इन्हें बुलाक या फिर फुल्ली के नाम से जाना जाता है। उत्तराखंड की महिलाओं के लिए नथ एक पूंजी की तरह होता है। जिसे वह पीढ़ी दर पीढ़ी संभाल कर रखती हैं। खासकर टिहरी क्षेत्र की महिलाओं का नथ काफी भारी होता है। कहा जाता है कि जो महिला जितने धनी परिवार से होगी वह उतना ही भारी नथ पहनेगी।

पुलिया बिछिया और बिछुआ सब हैं एक :

थारू और जोहरी जनजाति की औरतें पुलिया पहने हुए दिख जाती हैं, जिसे उत्तराखंड के दूसरे भाग में बिछिया या बिछुआ के नाम से जाना जाता है। गढ़वाल में बिछुवा कहने का प्रचलन है तो कुमाऊं में इसे बिछिया कहते हैं। दरअसल पुलिया बिछिया अथवा बिछुआ पैरों में पहने जाने वाला एक गहना है जिसे पैर की उंगलियों में पहनते हैं। भारत के अन्य भागों में भी अक्सर विवाहित महिलाएं पैरों में बिछिया पहना करती हैं।

गले में पहनी जाती है विशेष हार :

यहां की महिलाओं के गले में आपको सिक्कों की मालाएं दिख जाएंगी। जहाँ इन मालाओं को कुमाऊं में अठन्नीमाला, रुपैयामाला, चवन्नीमाला, हंसुली, कंठीमाला, गुलूबंद तथा लॉकेट कहते हैं तो वहीं गढ़वाल में यह माला हमेल के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा गले में चंद्रहार, कंठीमाला और तिलहरी जैसे गहने पहनने का भी प्रचलन है।

कमर बंद है खास :-

गढ़वाल क्षेत्र की महिलाएं कमरबंद के रूप में कपड़े का कमरबंद पहनती हैं। जिससे उन्हें काम करने में किसी भी प्रकार की बाधा नहीं आती है। इसके अलावा वहां की महिलाएं अपने कमर में करधनी, तगड़ी, कमर ज्योड़ी जैसे आभूषण पहना करती हैं।

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Top 6 National Parks of Uttarakhand

  • जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क (Jim Corbette National Park)
  • फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान (Valley of Flowers National Park)
  • गोविन्द पशु विहार राष्ट्रीय उद्यान (Govind Pashu Vihar National Park)
  • गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान (Gangotri National Park) 
  • राजाजी नेशनल पार्क (Rajaji National Park)
  • नंदा देवी नेशनल पार्क (Nanda Devi National Park)

1. जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क (Jim Corbette National Park)

जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क जिसे पहले हैली नेशनल पार्क भी कहा जाता था। यह हमारे देश का सबसे पुराना नेशनल पार्क भी है। यह उत्तराखंड के रामनगर में स्थित है। दिल्ली से जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क की दूरी करीबन 250 किलोमीटर है। यहां पर आप किसी भी साधन से बड़ी ही आसानी से पहुंच सकते है। यहां पर आपको 2000 से भी ज्यादा रंग बिरंगी तितलियों की प्रजातियां मिल जाएगी। आप यहां किफायती दाम में होटल या रिसोर्ट में भी रुक सकते हैं। यह कॉर्बेट यकीनन प्रकृति के बहुत करीब और शांति प्रिय है।

कैसे पहुंचे जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान (How to reach Jim Corbette National Park)?

  • सड़क मार्ग- आप बाय रोड दिल्ली से छह घंटे ट्रेवल करके जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क पहुँच सकते हैं।
  • रेल मार्ग- इस नेशनल पार्क का नजदीकी रेलवे स्टेशन है- रामनगर रेलवे स्टेशन जहाँ से आप टैक्सी बुक करके या बस लेकर जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क पहुंच सकते है।
  • हवाई मार्ग- इस नेशनल पार्क का निकटम एयरपोर्ट पंत नगर (कुमाऊं) में है जो 80 किलोमीटर दूर है।

2. फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान (Valley of Flowers National Park)

वैली ऑफ़ फ्लावर उत्तराखंड में एक ऐसी जगह है जहां आपको चारों ओर हजारों प्रकार के फूलों, पौधों और छोटे-छोटे जीव जंतुओं को देखने का अवसर मिलेगा। यह जगह इतनी खूबसूरत है कि इस शब्दों में बयां किया जा सकना नामुमकिन है। इस जगह की खूबसूरती को महसूस करने के लिए और यहां के फिजाओं में बसे सुकून के एहसास को समझने के लिए आपको खुद ही यहां तक आना पड़ेगा। नेचर्स लवर के लिए यह जगह किसी जन्नत से कम नहीं है। यह जगह इतनी खूबसूरत है कि आप इसे तस्वीरों में कैद करने से खुद को रोक नहीं पाएंगे। इस जगह के बारे में आपको एक और खास बात यह है कि ये जगह वर्ल्ड हेरिटेज साइट के सूची में शामिल है। यहाँ लगभग 500 से भी ज्यादा प्रकार की पौधों और जड़ी बूटियों की प्रजातियाँ पायी जाती हैं जिनमे से कुछ प्रमुख निम्नलिखित है- एनीमोन (Anemone), जर्मेनियम (Germanium), मार्श (Marsh), गेंदा (Marigold), प्रिभुला (Pribula), रानुनकुलस (Ranunculus), कोरिडालिस (Corydalis), इन्डुला (Indula), सौसुरिया (Saussurea) और कम्पानुला (Campanula)।

कैसे पहुंचे फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान (How to reach Valley of Flowers National Park)?

वैली ऑफ फ्लावर नेशनल पार्क पहुंचने के लिए आपको ट्रैकिंग करनी पड़ेगी। इसके लिए आपको सबसे पहले उत्तराखंड के गोविंद घाट से पुलना गांव तक पहुंचना होगा। पुलना गांव से आपकी ट्रैकिंग की शुरुआत होगी। जब आप पुलना गांव से अपनी ट्रैकिंग की शुरुआत करेंगे तो रास्ते में आपको सबसे पहले जंगल चट्टी नाम के एक बाजार से गुजरना होगा। जंगल चट्टी से गुजरते हुए आप भ्युवदार गांव पहुंचेंगे। भ्युवदार गांव इस ट्रक का सबसे इंपॉर्टेंट पॉइंट होगा। जहां से आप घांगरिया के लिए निकलेंगे। पुलना से घांगरिया तक का ट्रैक लगभग 10 किलोमीटर का होता है। घांगरिया पहुंचकर आपको एक दिन रुकना पड़ेगा, क्योंकि दिन के 12:00 के बाद घांगरिया से आगे की ट्रैकिंग रोक दी जाती है। अगले दिन आप वैली ऑफ फ्लावर के लिए ट्रैकिंग शुरू कर सकते हैं। घांगरिया से वैली ऑफ फ्लावर का रास्ता लगभग 4 किलोमीटर का है और आप बहुत ही आसानी से इस ट्रैक को पूरा कर लेंगे।

3. गोविन्द पशु विहार राष्ट्रीय उद्यान (Govind Pashu Vihar National Park)

गोविन्द पशु विहार राष्ट्रीय उद्यान सुपीन रेंज में बसा हुआ एक नेशनल पार्क है जो, उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के पास स्थित है। गोविन्द पशु विहार नेशनल पार्क लगभग 958 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है और इसकी स्थापना 1955 में हुई थी। इस नेशनल पार्क का नाम स्वतंत्रता सेनानी और राजनितज्ञ गोविन्द बल्लभ पंत के नाम पर रखा गया था जो उस समय होम मिनिस्टर (Home Minister) के पद पर आसीन थे। हिंदी को भारत की राष्ट्रीय भाषा घोषित करने में गोविन्द बल्लभ पंत का प्रमुख हाथ था। यह नेशनल पार्क गढ़वाल हिमालय (Garhwal Himalayas) क्षेत्र में स्थित हैं। इस राष्ट्रीय उद्यान में भारत सरकार द्वारा चलाये जा रहे स्नो लेपर्ड प्रोजेक्ट (Snow Leopard Project) के तहत यहाँ स्नो लेपर्ड का संरक्षण किया जाता है। आप इस नेशनल पार्क में ट्रैकिंग भी कर सकते हैं।

कैसे पहुंचे गोविन्द पशु विहार राष्ट्रीय उद्यान (How to reach Govind Pashu Vihar National Park)?

  • सड़क मार्ग- आप धारकाधी से गोविन्द पशु विहार नेशनल पार्क पहुंच सकते है जो देहरादून से जुड़ा हुआ हैं।
  • रेल मार्ग- इस नेशनल पार्क का नजदीकी रेलवे स्टेशन है- देहरादून रेलवे स्टेशन जहाँ से आप टैक्सी बुक करके या बस लेकर गोविन्द पशु विहार नेशनल पार्क पहुंच सकते है।
  • हवाई मार्ग- इस नेशनल पार्क का निकटम एयरपोर्ट जॉली ग्रांट (देहरादून) में है जो 231 किलोमीटर दूर है।

4. गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान (Gangotri National Park) 

गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान गंगोत्री हिमानी के गोद में बसा हुआ एक नेशनल पार्क है जो, उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित है।यह नेशनल पार्क उत्तराखंड का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है। गंगोत्री नेशनल पार्क लगभग 2390 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है और इसकी स्थापना 1989 में हुई थी। इस उद्यान के पूर्व में तिब्बत की अंतर्राष्ट्रीय सीमा है। गंगा नदी का उद्गम स्थल गोमुख इसी उद्यान में स्थित है। इस उद्यान का नाम गंगोत्री ग्लेशियर के नाम पर रखा गया है जो हिन्दुओं के प्रमुख पूजनीय स्थलों में से एक है। आपको यहाँ की ऊंचाई में भारी विषमता देखने को मिलेंगी। यहाँ प्रमुख रूप से हिम तेंदुआ (Snow leopard), बाघ (Tiger), भरल (Bharal), हिमालयन तहर (Himalayan Tahr), भूरा भालू (Brown Bear), हिमालयन मोनाल (Himalayan Monal), हिमालयन स्नोकॉक (Himalayan Snowcock), काला भालू (Black Bear), कस्तूरी मृग (Musk Deer) पाए जाते है।

कैसे पहुंचे गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान (How to reach Gangotri National Park)?

  • सड़क मार्ग- गंगोत्री नेशनल पार्क देहरादून से 206 किमी, हरिद्वार से 189 किमी और दिल्ली से 402 किलोमीटर दूर है।
  • रेल मार्ग- इस नेशनल पार्क का नजदीकी रेलवे स्टेशन है- देहरादून रेलवे स्टेशन जो यहाँ से 210 किलोमीटर दूर है।
  • हवाई मार्ग- इस नेशनल पार्क का निकटम एयरपोर्ट जॉली ग्रांट (देहरादून) में है।

5. राजाजी नेशनल पार्क (Rajaji National Park)

उत्तराखंड राज्य के देहरादून और हरिद्वार में स्थित राजाजी नेशनल पार्क का क्षेत्रफल 820.5 वर्ग किलोमीटर है। हाथियों, तेंदुओं, बाघों और हिरनों जैसे जानवरों को अपने में पनाह देने वाला यह पार्क पर्यटकों के मन को भी काफी लुभाता है। सुहाने मौसम, हरे भरे पेड़ और पहाड़ियों के बीच खुले में घूम रहे जानवर को देखना अपने आप में ही अविस्मरणीय दृश्य होता है।

कैसे पहुंचे राजाजी राष्ट्रीय उद्यान (How to reach Rajaji National Park)?

  • सड़क मार्ग- आप दिल्ली से देहरादून के लिए कैब बुक कर सकते हैं।
  • रेल मार्ग- आप वाया ट्रेन जा सकते हैं। न्यू दिल्ली से देहरादून रेलवे स्टेशन के लिए कई सारी ट्रेनें चलती हैं।
  • हवाई मार्ग- इस नेशनल पार्क का निकटम एयरपोर्ट जॉली ग्रांट (देहरादून) में है।

6. नंदा देवी नेशनल पार्क (Nanda Devi National Park)

उत्तराखंड के चमोली गढ़वाल में स्थित नंदा देवी नेशनल पार्क (Nanda Devi National Park) देश के सबसे प्रसिद्ध नेशनल पार्कों की सूची में गिना जाता है। इस नेशनल पार्क को वर्ल्ड हेरिटेज साइट की सूची में भी शामिल किया गया है। नंदा देवी नेशनल पार्क का क्षेत्रफल 630 वर्ग किलोमीटर है और इस नेशनल पार्क को वर्ष 1982ई में स्थापित किया गया था। वर्ष 1988ई में यूनेस्को ने इसे अपने वर्ल्ड हेरिटेज साइट की सूची में स्थान दिया। 2005ई में नंदा देवी नेशनल पार्क का नाम बदलकर नंदा देवी एंड वैली ऑफ फ्लावर नेशनल पार्क कर दिया गया तथा इसका क्षेत्रफल वैली ऑफ फ्लावर तक बढ़ा दिया गया। नंदा देवी नेशनल पार्क को नंदा देवी बायोस्फियर रिज़र्व भी घोषित किया जा चुका है। यहाँ पाए जाने वाले जानवरों में हिमालयी ताहर (Himalayan Tahr), कस्तूरी मृग (Musk Deer), भरल (Bharal), गोरल (Goral), लंगूर (Langur), तेंदुए (Leopard), हिमालयी भालू (Himalayan Bear), रेड फॉक्स (Red Fox) आदि शामिल है।

कैसे पहुंचे नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान (How to reach Nanda Devi National Park)?

  • सड़क मार्ग- इस नेशनल पार्क का नजदीकी शहर जोशीमठ है जो उत्तराखंड के अन्य प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ हैं।
  • रेल मार्ग- इस नेशनल पार्क का नजदीकी रेलवे स्टेशन है- ऋषिकेश रेलवे स्टेशन जो यहाँ से 273 किलोमीटर दूर है।
  • हवाई मार्ग- इस नेशनल पार्क का निकटम एयरपोर्ट 295 किलोमीटर दूर जॉली ग्रांट (देहरादून) में है।
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एक ऐसा राष्ट्रीय उद्यान जिसका नाम गोविंद बल्लभ पंत के नाम पर रखा गया है

फॉउना (Fauna in Govind Pashu Vihar National Park)

गोविन्द पशु विहार राष्ट्रीय उद्यान में कई प्रकार के फॉउना (Fauna) निवास करते है जिनमे पक्षियों की 150 प्रजातियां और मैमल्स की 15 प्रजातियां शामिल है। यहाँ प्रमुख रूप से हिम तेंदुआ (Snow Leopard), भूरा भालू (Brown Bear), एशियाई काला भालू (Asian Black Bear), तेंदुआ (Leopard), हिमालयन स्नोकॉक (Himalayan Snowcock), हिमालयी तहर (Himalayan Tahr), चील (Steppe Eagle), कस्तूरी मृग (Musk Deer), भरल (Bharal), ब्लैक ईगल (Black Eagle), हिमालयन चूहा (Himalayan Field Rat), बियर्डेड वल्चर (Bearded Vulture), गोरल (Goral), गोल्डन ईगल (Golden Eagle), सिवेट (Civet), जंगली सूअर (Wild Boar) और हिमालयन मोनाल तीतर (Himalayan Monal Pheasant) पाए जाते है।

फ्लोरा (Flora in Govind Pashu Vihar National Park)

अगर बात की जाए फ्लोरा की तो, यहाँ पेड़ों की अनेक प्रजातियाँ पायी जाती हैं जिनमे यहाँ निचले भागों में चिर पाइन (Chir Pine), देवदार (Deodar), ओक (Oak), आदि पाई जाती है। इसके अलावा हाई अल्टीट्यूड पर ब्लू पाइन (Blue Pine), सिल्वर फ़िर (Silver Fir), यु (Yew), स्प्रूस (Spruce), ओक (Oak), मैपल (Maple), हैज़ल (Hazel), वॉलनट (Walnut), हॉर्स चेस्टनट (Horse Chestnut) आदि पाई जाती है।

बेस्ट टाइम टू विजिट गोविन्द पशु विहार नेशनल पार्क (Best time to visit Govind Pashu Vihar National Park)

अगर आप गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान आने की चाह रख रहे है तो आप विंटर (Winter) में आने से बचें क्योंकि विंटर में यहाँ बहुत ज्यादा ठंड पड़ती है। आप यहाँ अप्रैल से जून और सितम्बर से नवंबर के बीच में आने की कोशिश करें क्योंकि इस समय यह की परिस्थितियां सम रहती हैं।

कैसे पहुंचे गोविन्द पशु विहार राष्ट्रीय उद्यान (How to reach Govind Pashu Vihar National Park)?

सड़क मार्ग- आप धारकाधी से गोविन्द पशु विहार नेशनल पार्क पहुंच सकते है जो देहरादून से जुड़ा हुआ हैं।
रेल मार्ग- इस नेशनल पार्क का नजदीकी रेलवे स्टेशन है- देहरादून रेलवे स्टेशन जहाँ से आप टैक्सी बुक करके या बस लेकर गोविन्द पशु विहार नेशनल पार्क पहुंच सकते है।
हवाई मार्ग- इस नेशनल पार्क का निकटम एयरपोर्ट जॉली ग्रांट (देहरादून) में है जो 231 किलोमीटर दूर है।

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इस नेशनल पार्क में स्थित है माँ गंगा का उद्गम स्थल गंगोत्री ग्लेशियर

फॉउना (Fauna in Gangotri National Park)

गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान में कई प्रकार के फॉउना (Fauna) निवास करते है जिनमे स्तनधारियों की 15 प्रजातियां और पक्षियों की लगभग 150 प्रजातियां शामिल है। यहाँ प्रमुख रूप से हिम तेंदुआ (Snow leopard), बाघ (Tiger), भरल (Bharal), हिमालयन तहर (Himalayan Tahr), भूरा भालू (Brown Bear), हिमालयन मोनाल (Himalayan Monal), हिमालयन स्नोकॉक (Himalayan Snowcock), काला भालू (Black Bear), कस्तूरी मृग (Musk Deer) पाए जाते है। यहाँ आपको हिमालय क्षेत्र में पाए जाने वाले पक्षी भी दिख जाएंगे।

फ्लोरा (Flora in Gangotri National Park)

अगर बात की जाए फ्लोरा की तो, इस उद्यान में शंकुधारी वन और हाई अल्टीट्यूड पर पाई जाने वाली पश्चिमी हिमालयी अल्पाइन झाड़ियाँ और घास के मैदान हैं। इस उद्यान में पाई जाने वाली वनस्पतियों में चिरपाइन देवदार, देवदार, स्प्रूस, ओक और रोडोडेंड्रोन शामिल हैं।

बेस्ट टाइम टू विजिट गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान (Best time to visit Gangotri National Park)

अगर आप गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान आने की चाह रख रहे है तो आप विंटर (Winter) और मानसून (Monsoon) में आने से बचें क्योंकि विंटर में यहाँ बहुत ज्यादा ठंड पड़ती है तथा मानसून में यहाँ बहुत लैंडस्लाइड (Landslide) होता है। आप यहाँ समर (Summer) में आने की कोशिश करें क्योंकि इस समय यह की परिस्थितियां सम रहती हैं।

कैसे पहुंचे गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान (How to reach Gangotri National Park)?

  • सड़क मार्ग- गंगोत्री नेशनल पार्क देहरादून से 206 किमी, हरिद्वार से 189 किमी और दिल्ली से 402 किलोमीटर दूर है।
  • रेल मार्ग- इस नेशनल पार्क का नजदीकी रेलवे स्टेशन है- देहरादून रेलवे स्टेशन जो यहाँ से 210 किलोमीटर दूर है।
  • हवाई मार्ग- इस नेशनल पार्क का निकटम एयरपोर्ट जॉली ग्रांट (देहरादून) में है।
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ट्रेकर्स को लुभाता है उत्तराखंड का नंदा देवी नेशनल पार्क

इस नेशनल पार्क के क्षेत्र में बहुत सारी ऐसी पर्वत श्रृंखलाएं हैं जो 6000 मीटर से भी ऊंची है। जिनमें सबसे ऊंची पहाड़ी नंदा देवी है, जो कि 7816 मीटर ऊंची है। इसके अलावा यहां सुनंदा देवी (7435m), त्रिशूली 1 (7120m), त्रिशूली 2 (6690m), त्रिशूल 3 (6008m), बेथरटोली हिमल (6352m), देवी स्थान (6529m), ऋषि प्रहर (6992m), ऋषिकोट (6236m), हनुमान (6075m), दूनागिरी (7066m), चंगा बांग (6866m), कलंक (6931m), लाटु धुरा (6392m), सकरम (6254m), देव दमला (6620m), मंगराओं (6568m), देवटोली (6788m), मैकटोली (6803m) आदि जैसी प्रमुख पर्वत चोटियां भी शामिल हैं जो 6000 मीटर से भी ज्यादा ऊंची हैं। हालांकि आपको बता दे कि यहां के सबसे ऊंचे पर्वत की चोटी यानि नंदा देवी पर आप चढ़ाई नहीं कर सकते हैं। क्योंकि धार्मिक कारणों तथा विषम परिस्थितियों के कारण नेशनल पार्क प्रशासन द्वारा यहां चढ़ाई को बंद करवा दिया गया है।

फॉउना और फ्लोरा (Fauna and Flora in Nanda Devi National Park)

नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान में कई प्रकार के फॉउना निवास करते है जिनमें पक्षियों की लगभग 130, मकड़ियों की लगभग 40 और तितलियों की 40 प्रजातियाँ पायी जाती है। यहाँ पाए जाने वाले जानवरों में हिमालयी ताहर (Himalayan Tahr), कस्तूरी मृग (Musk Deer), भरल (Bharal), गोरल (Goral), लंगूर (Langur), तेंदुए (Leopard), हिमालयी भालू (Himalayan Bear), रेड फॉक्स (Red Fox) आदि शामिल है। नंदा देवी नेशनल पार्क में तरह-तरह के जंगली जानवरों के साथ-साथ फूलों की भी अतरंगी प्रजातियां पाई जाती हैं। यहां आपको फूलों की 500 से भी अधिक प्रजातियां देखने को मिलेंगी। जो पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं। अगर आप भी वाइल्डलाइफ में इंटरेस्ट रखते हैं तो यहां जाकर आपको बहुत कुछ जानने और सीखने को मिलेगा।

बेस्ट टाइम टू विजिट नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान (Best time to visit Nanda Devi National Park)

यह राष्ट्रीय उद्यान साल के छह महीने (1 मई से 31 अक्टूबर तक) खुला रहता है। आप यहाँ इस छह महीने की अवधि में कभी भी आ सकते है। लेकिन अगर आप यहाँ आने की चाह रख रहे है तो आप समर (Summer) में आने की कोशिश करें क्योंकि इस समय यह की परिस्थितियां सम रहती हैं।

कैसे पहुंचे नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान (How to reach Nanda Devi National Park)?

  • सड़क मार्ग- इस नेशनल पार्क का नजदीकी शहर जोशीमठ है जो उत्तराखंड के अन्य प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ हैं।
  • रेल मार्ग- इस नेशनल पार्क का नजदीकी रेलवे स्टेशन है- ऋषिकेश रेलवे स्टेशन जो यहाँ से 273 किलोमीटर दूर है।
  • हवाई मार्ग- इस नेशनल पार्क का निकटम एयरपोर्ट 295 किलोमीटर दूर जॉली ग्रांट (देहरादून) में है।