“ऐसा क्या है जो दिल्ली शहर को खास बनाता है? वह कौन सी खासियत है जिसके कारण दिल्ली देश के बाकी राज्यों से अलग है? ऐसा क्या है दिल्ली शहर में जिसके कारण यह शहर देश की राजधानी है? इन सारे सवालों का जवाब है यहां का गौरवशाली इतिहास और उसकी गवाही देते यहां के बेहतरीन ऐतिहासिक इमारतें। इस शहर में दुनिया की सबसे अतरंगी और अद्भुत कलाकृतियां देखने को मिलती हैं। यह भारत का एकमात्र ऐसा शहर है जहां आपको एक या दो नहीं बल्कि हजार से भी अधिक ऐतिहासिक इमारतें देखने को मिलेंगी।”
और दिल्ली के इन्हीं ऐतिहासिक इमारतों में से सबसे खास इमारत है महरौली स्थित कुतुब मीनार!(Qutub Minar)
कुतुब मीनार (Qutub Minar)
सुनहरें लफ़्ज़ों का इतिहास
आज भी तेरे हर पत्थर, तेरी हर दीवार पर है
जो ख़ूबसूरती उस ज़माने में थी
वही क़ातिलाना अदा आज क़ुतुब मीनार पर है।
एक ऐसी मीनार जो ईट से बनी दुनिया की सबसे ऊंची मीनार है। एक ऐसा भव्य आकर्षण जिसे देखने के बाद आश्चर्य होना लाजमी है। एक ऐसी खूबसूरत इमारत जिसकी दीवारों पर कुरान पाक की आयतें गढ़ी गईं हैं और अंत में एक ऐसा साक्षी जो मुगल साम्राज्य के भारत में प्रसार का प्रत्यक्षदर्शी है। वैसे तो पूरी दिल्ली ही देखने के लिहाज़ से बहुत खास है पर इसकी कुछ नायाब इमारतों को देखे बिना दिल्ली दर्शन अधूरा है। क़ुतुब मीनार इन्हीं खास और नायाब जगहों में से एक है। इस बात में कोई शक नहीं कि मुगलों ने दिल्ली को खूबसूरत बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। शायद इसी का परिणाम है दिल्ली चारों दिशाओं से बेहद खूबसूरत मुगल इमारतों से सजी हुई है।
कुतुब मीनार का इतिहास (The History of Qutub Minar)
दुनिया के सबसे विशालतम मीनारो में शामिल इस मीनार का इतिहास भी उतना हीं विशाल है। यह बात उस समय की है जब भारत में अफगानी आक्रमणकारियों का आगमन हुआ था। सबसे पहले मोहम्मद गोरी ने यहां अपनी हुकूमत स्थापित की। लेकिन गोरी नहीं यहां लंबे समय तक शासन नहीं किया। वह अपने सबसे विश्वासनीय गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक की हाथ में सत्ता की बागडोर देकर वह वापस लौट गया। तब तक भारत में दिल्ली सल्तनत की स्थापना नहीं हुई थी। भारत छोटे-छोटे रियासतों में बंटा हुआ था। वर्ष 1199 कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस मीनार की नींव रखी।
लेकिन यह मीनार एक ही बार में बनकर तैयार नहीं हुआ, बल्कि इसे किश्तों में अलग-अलग मुगल शासकों द्वारा बनवाया गया था।
कुतुबुद्दीन ऐबक इस मीनार की पहली मंजिल का ही निर्माण करवा पाया। उसकी मौत के बाद उसके दामाद इल्तुतमिश ने कुतुब मीनार की दूसरी तीसरी और चौथी मंजिलों का निर्माण करवाया। इस मीनार की अंतिम मंजिल के निर्माण का श्रेय फिरोज शाह तुगलक को दिया जाता है। अब क्योंकि यह मीनार किश्तों में बनकर तैयार हुआ था इसलिए आप इस मीनार पर 12वीं सदी से 14वीं सदी तक मुगलकालीन स्थापत्य कला में आए बदलावों को भी साफ-साफ देख सकते है।
कुतुब मीनार की संरचना (The Structure Of Qutub Minar)
इस मीनार की सबसे पहली मंजिल के दीवारों को 12 गोल तथा 12 टिकों ने पिलरों से बनवाया गया है तथा इसके ऊपर पट्टियों में नक्काशियां की गई हैं। जब आप इन नक्काशीयों को गौर से देखेंगे आपको इनमें ज्यामितीय संरचनाओं, फूलों, अल्लाह के नामों तथा कुरान की आयतों के अंश देखने को मिलेंगे। इतना हीं नहीं, कुतुबुद्दीन ऐबक ने इनमें मोहम्मद गोरी का भी गुणगान किया है। ऐबक ने इन नकाशियों में अपने बारे में भी बहुत कुछ लिखवाया है।
कुतुबुद्दीन ऐबक के बाद इल्तुतमिश के द्वारा बनवाए गए अगले तीन मंजिलों में से दूसरी मंजिल की दीवार को गोल पिलर से किया गया है। इल्तुतमिश ने तीसरी मंजिल के दीवार को तिकोने पिलरों के सहायता से बनवाया गया है, जबकि चौथी मंजिल की दीवार सपाट गोल है। इल्तुतमिश ने अपने द्वारा बनवाई गई तीनों मंजिलों की दीवारों पर बनी पट्टियों में अपने बारे में खुदवाने के साथ-साथ कुरान पाक की आयत और फूल बेलों की नक्काशियां भी करवाई है।
कहा जाता है कि 13वीं और 14वीं शताब्दी में आए भूकंप और बिजली गिरने के कारण इस मीनार के ऊपरी महलों को काफी क्षति पहुंची थी। जिनकी मरम्मत करवाते हुए फिरोज शाह तुगलक ने 1368 ईस्वी में इस मीनार के अंतिम महले का निर्माण करवाया था।
अगर कुल मिलाकर कुतुब मीनार के लंबाई तथा चौड़ाई की बात की जाए तो इस पांच मंजिली भव्य इमारत की लंबाई 72.5 मीटर है। इस विशाल मीनार के आधार का विकास 14.3 मीटर तथा ऊपरी सिरे का व्यास 2.75 मीटर है।
कुतुब मीनार के सभी मंजिलों पर दरवाजे बनवाए गए हैं जिनसे मीनार के छज्जे पर जाया जा सकता है। इन सभी दरवाजों को एक सीध में बनवाया गया है तथा इन सभी दरवाजों तक पहुंचाने के लिए कुतुब मीनार में पूरे 379 सीढ़ियां हैं।
- काली गुबंद वाली मस्जिद
पूरा कुतुब मीनार परिसर 13 अलग-अलग व्यूपोइंट्स में बंटा हुआ है। हम में से ज्यादातर लोग मुख्य कुतुब मीनार और लौह स्तम्भ से ही वाकिफ़ हैं पर और भी बहुत कुछ है अपनी नक़्क़ाशी के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध क़ुतुबमीनार के इस परिसर में। परिसर में घुसते ही सबसे पहले नजर आती है काली गुबंद वाली मस्जिद। अंदर आते ही सबसे पहले इस मस्जिद पर ही नजर पड़ती है। आगे बढ़ने पर विशिष्ट मुगल शैली के बगीचें दिखाई देते हैं जो कि मुगलों की प्रसिद्ध चार बाग की शैली में बने हैं। ये चार बाग शैली किसी भी इमारत में जान डाल देती है। प्रसिद्ध मुगल इमारतों में बागों की इसी शैली का प्रयोग किया जाना आम बात है। मीनार के पास मण्डप जैसी दिखने वाली संरचना को कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद कहा जाता है। ये जानकारी पास लगे सूचना बोर्ड से ही मिली अन्यथा हम तो इसे एक सामान्य मण्डप भर समझ रहे थे। इस मस्जिद की स्थापना कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1190 के दशक में की थी। इस मस्जिद की खासियत इसकी स्थापत्य कला है। इंडो इस्लामिक शैली से बनी ये मस्जिद और इसकी नक्काशी एक बार तो आपको दीवाना ही बना देगी। नक्काशीदार स्तंभो पर खड़ी यह मस्जिद बनावट के मामले में बेहतरीन है। अगर यूं कहें कि कुतुब मीनार परिसर की शोभा बढ़ाने में इस मस्जिद का भी अमूल्य योगदान है, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। कुतुब मीनार का सीधा संबंध कुवत उल इस्लाम मस्जिद से भी जोड़ा जाता है, क्योंकि यह मीनार इसी मस्जिद के प्रांगण में स्थित है। बताया जाता है कि कुवत उल इस्लाम मस्जिद दिल्ली की सबसे पहली मस्जिद है। इस मस्जिद का निर्माण भी कुतुबुद्दीन ऐबक ने ही करवाया था। इस मस्जिद के निर्माण में 27 हिंदू मंदिरों के स्तंभों और अन्य अवशेषों का उपयोग किया गया था। इस बात की प्रमाणिकता स्वयं कुतुबुद्दीन ऐबक के समय के शिलालेख से मिलती है। इतना ही नहीं आप अगर इस मस्जिद के स्तंभों को गौर से देखेंगे तो आपको उनमें हिंदू देवी देवताओं, घंटियों फूल पत्तियां जैसे हिंदू स्थापत्य कला के नमूने देखने को मिलेंगे।
- इल्तुतमिश का मकबरा
अलाई मीनार से आगे बढ़कर परिसर में एक सफेद और लाल बलुआ पत्थर से बना मकबरा नजर आ रहा था। ये वही मकबरा था जिसमें दिल्ली के दूसरे शासक इल्तुतमिश को दफनाया गया था। ये मकबरा कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के ठीक पीछे ही है। मकबरा अपनी इस्लामिक बनावट के कारण अलग ही नजर आ रहा था। इसकी खूबसूरती को देखकर अंदाजा लगाना मुश्किल था कि ये एक कब्र है। किसी शाही महल जैसी इसकी बनावट वास्तव में अद्भुत है। बीच-बीच में बने सफेद मेहराब और खुली छत इसे और भी आकर्षक बनाते हैं।
कुतुब मीनार की मरम्मत (Reparing Of Qutub Minar)
इस मीनार की पहली तथा दूसरी मंजिल के निर्माण में जहां हल्के गुलाबी पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है, इसकी तीसरी मंजिल लाल रंग के पत्थरों से बनवाई गई है तथा इस मीनार की चौथी तथा पांचवी मंजिल का निर्माण सफेद संगमरमर से करवाया गया है।
बताया जाता है कि सन 1803 ईस्वी में भूकंप की वजह से कुतुब मीनार की ऊपरी मंजिल का ढांचा थोड़ा ढह गया था। जिसकी मरम्मत 1820 ईस्वी में अंग्रेजी सेना के मेजर रॉबर्ट स्मिथ ने करवाया था।
कुतुब मीनार बनवाने के उद्देश्य (Reason Behind Making Qutub Minar)
इस मीनार को बनवाने के कई उद्देश्य थे। कहा जाता है कि इस मीनार को बनवाने के पीछे कुतुबुद्दीन ऐबक का उद्देश्य अफगानिस्तान के जाम ए मीनार से भी ऊंची और खूबसूरत मीनार बनवाना था। वहीं कुछ इतिहास मानते हैं कि इस मीनार का निर्माण मुगल साम्राज्य की निशानी के तौर पर और निगरानी के लिए करवाया गया था।