दोस्तों फाल्गुन मास की शुरुआत हो चुकी है और देश भर में होली के गानों की गूंज सुनाई देने लगी है। ऐसे में आप सब ने खबरों में जरूर देखा होगा कि मथुरा वृंदावन में किसी दिन लठमार होली मनाई जा रही है, तो किसी दिन बनारस में मसान होली खेली जा रही है। ऐसे में आपके जहन में यह सवाल जरूर आया होगा कि होली तो होली होती है, इसके इतने प्रकार कैसे हैं और क्यों हैं?
(Latthmaar Holi of Barsana)
आज के फाइव फाइव कलर्स ऑफ ट्रैवल के इस ब्लॉग में हम आपको बताने जा रहे हैं पूरे भारतवर्ष में मनाए जाने वाले अलग-अलग होली के प्रकारों के बारे में। होली का मथुरा वृंदावन से बहुत हीं गहरा रिश्ता है। इसीलिए जब भी होली का नाम आता है हमारे दिल और दिमाग में सबसे पहले रंग, गुलाल के साथ-साथ मथुरा और वृंदावन का ख्याल आता है। आज का हमारा यह ब्लॉग भी मथुरा और वृंदावन में मनाए जाने वाले एक खास प्रकार की होली – लट्ठमार होली के बारे में है। आज के फाइव कलर्स ऑफ ट्रैवल(Five colors of travel) के होली सीरीज में हम आपको मथुरा वृंदावन के लठमार होली के बारे में कुछ खास बात बताने वाले हैं–

क्या है लट्ठमार होली?(What is Latthmaar holi?)
हम जब भी होली के बारे में सोचते हैं हमारे ध्यान में सबसे पहले श्री कृष्ण का बाल रूप आता है। यमुना के तट पर राधा और गोपियों के साथ श्री कृष्ण की होली मनाने की लीलाएँ तो आप सब ने सुनी होगी। लट्ठमार होली भी श्री कृष्ण की लीलाओं से ही जुड़ी हुई है। लट्ठमार होली देखने के लिए आपको बरसाना या नंदगांव जाना पड़ेगा। खासकर बरसाना में आपको इस होली की झलक बहुत हीं अच्छे से देखने को मिल जाएगी। यह एक ऐसी होली है जिसमें जब लड़के लड़कियों को रंग लगाने की कोशिश करते हैं तो लड़कियां उन पर लट्ठ बरसाती हैं।

क्या है इस होली की कहानी?(Story behind this holi)
बताया जाता है कि होली के दिन श्री कृष्ण अपने ग्वालों के साथ बरसाना गए थे और वहां राधा रानी और गोपियों को उन्होंने बहुत परेशान किया। कान्हा और ग्वालों की शैतानियों से परेशान होकर गोपियों और राधा रानी मिलकर उन्हें भगाने के लिए उन पर लट्ठ से वार किया था और उसी दिन से यह परंपरा आज तक चली आ रही है। लठमार होली के दिन बरसाने की महिलाएं उन्हें रंग लगाने आने वाले पुरुषों पर लाठी से वार करती हैं और पुरुषों को इससे बचना होता है।

टेसू के फूलों से बनते हैं रंग (Colors are made from Tesu flowers):
बरसाने की यह होली अपनी खास और अतरंगी के अंदाज की वजह से पूरे भारतवर्ष में जानी जाती है। इतना हीं नहीं दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से भी लोग इस दिन बरसाना आना चाहते हैं और होली खेलना चाहते हैं। लेकिन सिर्फ यहां की होली ही खास नहीं है, बल्कि यहां के रंगों की कहानी भी बहुत हीं खास है। क्योंकि यहां जो होली के रंग बरसाए जाते हैं वह कोई साधारण रंग या गुलाल नहीं होता बल्कि पूरी तरह से शुद्ध हर्बल रंग (Best and pure color) होता है। जिसे बरसाना के लोग खुद ही तैयार करते हैं।
कई दिनों पहले से ही शुरू हो जाती है रंग बनाने की प्रक्रिया (The process of making of this pure color starts several days in advance)
बरसाने की होली की तैयारी वसंत ऋतु के आगमन के साथ हीं होने लगती है। जैसे ही वसंत ऋतु का आगमन होता है टेसू के वृक्ष में लाल रंग के फूल खिलने लगते हैं और इन्हीं फूलों से तैयार होता है हमारे बरसाने की होली के लिए हर्बल रंग! सबसे पहले इन टेसू के फूलों को बड़े-बड़े कंटेनर में इकट्ठा कर लिया जाता है।
क्योंकि बरसाने आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बहुत अधिक होती है इसलिए रंग बनाने के लिए राज्य के अलग-अलग हिस्सों से टेसू के फूल इकट्ठा किए जाते हैं। फिर इन फूलों को पानी में डालकर रात भर भींगने के लिए छोड़ दिया जाता है। अगले दिन इन फूलों को बड़े से कढ़ाई में पानी में डालकर उबाल लिया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान एक व्यक्ति होता है जो उस कढ़ाई को हमेशा चलता रहता है। जब ये फूल कढ़ाई में अपना रंग छोड़ देते हैं तो फिर एक बड़े से कंटेनर के ऊपर सूती कपड़ा रखकर उसमें उबले हुए रंगीन पानी को छान लिया जाता है। अब इस छाने हुए पानी में इत्र, चंदन, गुलाबजल आदि मिलाया जाता है। कहीं-कहीं देखा गया है कि इसमें हल्दी और चुना भी मिलाया जाता है। चुना मिलाने से पानी का रंग और भी ज्यादा निखर जाता है। यह रंग पूरी तरह से हर्बल होता है और हमारे त्वचा के लिए भी अच्छा होता है। जो फूल छान कर बच जाते हैं उन्हें फिर से दूसरे फूलों के साथ पानी में भीगने के लिए डाल दिया जाता है।

रंगों के कंटेनर से रंगों को फिर बड़े-बड़े तांबे के बर्तन में निकाल लिया जाता है। जिसे राधा रानी के मंदिर और बाकी के मंदिरों में भक्तों पर उछाला जाता है। यहां आने वाले भक्त भी इस होली को बहुत इंजॉय करते हैं। क्योंकि उनको पता होता है कि यह रंग उनके लिए किसी भी प्रकार का खतरा नहीं बनेगा और ना ही उन्हें इस रंग से कोई साइड इफेक्ट होगा। इसलिए यहाँ आने वाले श्रद्धालु दिल खोलकर होली खेल पाते हैं।
कैसे पहुंचे वृंदावन? (How to reach Vrindavan?)

मथुरा वृंदावन पहुंचना बहुत हीं आसान है अगर आप दिल्ली रहते हैं तो आपको मथुरा वृंदावन पहुंचने के लिए ज्यादा मशक्कत करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आप ट्रेन से भी दो से ढाई घंटे में मथुरा वृंदावन पहुंच सकते हैं। मथुरा जंक्शन भारत के अलग-अलग रेलवे स्टेशनों से बहुत ही अच्छे तरीके से कनेक्ट है। मथुरा जंक्शन पहुंचकर आप वहीं आसपास किसी होटल में स्टे ले सकते हैं या फिर आप किसी धर्मशाला की तलाश करने के लिए जा सकते हैं। मथुरा पहुंचकर आप वहां से ऑटो या कब के जरिए वृंदावन पहुंच सकते हैं।
बाय रोड भी मथुरा वृंदावन की कनेक्टिविटी बहुत अच्छी है। आप अपनी गाड़ी से मथुरा वृंदावन बहुत ही आसानी से जा सकते हैं।