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इस होली में ग्वालों पर लट्ठ बरसाती हैं बरसाने की गोपियाँ

क्या है लट्ठमार होली?(What is Latthmaar holi?)

क्या है इस होली की कहानी?(Story behind this holi)

बताया जाता है कि होली के दिन श्री कृष्ण अपने ग्वालों के साथ बरसाना गए थे और वहां राधा रानी और गोपियों को उन्होंने बहुत परेशान किया। कान्हा और ग्वालों की शैतानियों से परेशान होकर गोपियों और राधा रानी मिलकर उन्हें भगाने के लिए उन पर लट्ठ से वार किया था और उसी दिन से यह परंपरा आज तक चली आ रही है। लठमार होली के दिन बरसाने की महिलाएं उन्हें रंग लगाने आने वाले पुरुषों पर लाठी से वार करती हैं और पुरुषों को इससे बचना होता है।

टेसू के फूलों से बनते हैं रंग (Colors are made from Tesu flowers):

कई दिनों पहले से ही शुरू हो जाती है रंग बनाने की प्रक्रिया (The process of making of this pure color starts several days in advance)

बरसाने की होली की तैयारी वसंत ऋतु के आगमन के साथ हीं होने लगती है। जैसे ही वसंत ऋतु का आगमन होता है टेसू के वृक्ष में लाल रंग के फूल खिलने लगते हैं और इन्हीं फूलों से तैयार होता है हमारे बरसाने की होली के लिए हर्बल रंग! सबसे पहले इन टेसू के फूलों को बड़े-बड़े कंटेनर में इकट्ठा कर लिया जाता है।
क्योंकि बरसाने आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बहुत अधिक होती है इसलिए रंग बनाने के लिए राज्य के अलग-अलग हिस्सों से टेसू के फूल इकट्ठा किए जाते हैं। फिर इन फूलों को पानी में डालकर रात भर भींगने के लिए छोड़ दिया जाता है। अगले दिन इन फूलों को बड़े से कढ़ाई में पानी में डालकर उबाल लिया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान एक व्यक्ति होता है जो उस कढ़ाई को हमेशा चलता रहता है। जब ये फूल कढ़ाई में अपना रंग छोड़ देते हैं तो फिर एक बड़े से कंटेनर के ऊपर सूती कपड़ा रखकर उसमें उबले हुए रंगीन पानी को छान लिया जाता है। अब इस छाने हुए पानी में इत्र, चंदन, गुलाबजल आदि मिलाया जाता है। कहीं-कहीं देखा गया है कि इसमें हल्दी और चुना भी मिलाया जाता है। चुना मिलाने से पानी का रंग और भी ज्यादा निखर जाता है। यह रंग पूरी तरह से हर्बल होता है और हमारे त्वचा के लिए भी अच्छा होता है। जो फूल छान कर बच जाते हैं उन्हें फिर से दूसरे फूलों के साथ पानी में भीगने के लिए डाल दिया जाता है।

कैसे पहुंचे वृंदावन? (How to reach Vrindavan?)

मथुरा वृंदावन पहुंचना बहुत हीं आसान है अगर आप दिल्ली रहते हैं तो आपको मथुरा वृंदावन पहुंचने के लिए ज्यादा मशक्कत करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आप ट्रेन से भी दो से ढाई घंटे में मथुरा वृंदावन पहुंच सकते हैं। मथुरा जंक्शन भारत के अलग-अलग रेलवे स्टेशनों से बहुत ही अच्छे तरीके से कनेक्ट है। मथुरा जंक्शन पहुंचकर आप वहीं आसपास किसी होटल में स्टे ले सकते हैं या फिर आप किसी धर्मशाला की तलाश करने के लिए जा सकते हैं। मथुरा पहुंचकर आप वहां से ऑटो या कब के जरिए वृंदावन पहुंच सकते हैं।
बाय रोड भी मथुरा वृंदावन की कनेक्टिविटी बहुत अच्छी है। आप अपनी गाड़ी से मथुरा वृंदावन बहुत ही आसानी से जा सकते हैं।

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Hello! I Pardeep Kumar

मुख्यतः मैं एक मीडिया शिक्षक हूँ, लेकिन हमेशा कुछ नया और रचनात्मक करने की फ़िराक में रहता हूं।

लम्बे सफर पर चलते-चलते बीच राह किसी ढ़ाबे पर कड़क चाय पीने की तलब हमेशा मुझे ज़िंदा बनाये रखती
है।

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