दोस्तों जैसा कि फाल्गुन के महीने की शुरुआत हो चुकी है और देश भर में होली (Holi) के गानों की गूंज सुनाई देने लगी है। ऐसे में आप सब ने खबरों में जरूर देखा होगा कि मथुरा वृंदावन में किसी दिन लठमार होली मनाई जा रही है, तो किसी दिन बनारस में मसान होली खेली जा रही है। ऐसे में आपके जहन में यह सवाल जरूर आया होगा कि होली तो होली होती है, इसके इतने प्रकार कैसे हैं और क्यों हैं?
आज के फाइव फाइव कलर्स ऑफ ट्रैवल के इस ब्लॉग में हम आपको बताने जा रहे हैं पूरे भारतवर्ष में मनाए जाने वाले अलग-अलग होली के प्रकारों के बारे में।
होली का रंगों से बहुत हीं गहरा रिश्ता है। इसीलिए जब भी होली का नाम आता है हमारे दिल और दिमाग में सबसे पहले रंग, गुलाल और पिचकारी का ख्याल आता है। लेकिन क्या आपको पता है एक होली ऐसी भी होती है जहां ये रंग नहीं होते हैं, जहां पिचकरिया नहीं होती हैं, जहां गुलाल नहीं होते हैं बल्कि वहां चिता की भस्म होती है। जी हाँ आपने बिल्कुल सही समझा है हम बात कर रहे हैं बनारस के मणिकर्णिका घाट की मसान होली (Masan Holi of Banaras) के बारे में।
क्या है इतिहास?
मणिकर्णिका घाट बनारस के सबसे प्रसिद्ध घाटों में से एक घाट है, जो पूरे भारतवर्ष में मोक्ष स्थल के नाम से जाना जाता है। महारानी अहिल्याबाई होलकर ने इस शमशान का निर्माण करवाया था। कहते हैं जो काशी में मरता है वह मोक्ष को प्राप्त करता है और इसी काशी के गंगा घाटों में से एक है यह मणिकर्णिका घाट जहां बाकी के गंगा घाट अपनी गंगा आरती, पूजा अर्चना और सैर सपाटा के लिए प्रसिद्ध है, वहीं मणिकर्णिका घाट जीवन के अंतिम यात्रा की गवाही देता है। हिंदू धर्म में विश्वास रखने वाले लोगों की यह ख्वाहिश होती है कि उनका अंतिम संस्कार मणिकर्णिका घाट पर किया जाए। लेकिन ऐसा क्यों है? क्यों यह घाट इतनी पवित्र है कि यहां के चिता के भस्म से होली खेली जाती है? यह होली सिर्फ यहां के स्थानीय लोग नहीं खेलते, बल्कि देश के अलग-अलग हिस्सों से यहां लोग इस होली में भाग लेने आते हैं।
क्यों है इतना खास?
मणिकर्णिका घाट के मसान होली को समझने के लिए आपको पहले जानना होगा कि मणिकर्णिका घाट इतना प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण क्यों है?
दरअसल मणिकर्णिका देश के गिने चुने महाशमशनों में से एक है। बताया जाता है कि यह यहां चिता की अग्नि कभी ठंडी नहीं पड़ती है और यह शमशान कभी शांत नहीं होता है। चाहे कोई भी परिस्थिति होह, कोई भी मौसम हो, कोई भी दिन हो यहां चिताएं जलती रहती हैं। कहा जाता है कि जब से इस शमशान का निर्माण हुआ है तब से लेकर आज तक यह शमशान कभी शांत नहीं हुआ। यहाँ एक चिता की आग बुझने वाली होती है तो दूसरे को आग दे दी जाती है और यह प्रक्रिया सतत चलता रहता है।
कैसे पड़ा मणिकर्णिका नाम?
मणिकर्णिका घाट के बारे में बहुत सारी किंवदंतियाँ सामने आती हैं। लेकिन सबसे प्रसिद्ध लोक कथा के अनुसार माता पार्वती महादेव के व्यस्तताओं के कारण बहुत हीं परेशान थी। तो उन्होंने महादेव के साथ समय व्यतीत करने के लिए एक उपाय ढूंढा। उन्होंने अपने कर्णफूल को यहीं गिरा दिया और महादेव को ढूंढने के लिए कहा। महादेव उस कर्णफूल को नहीं ढूंढ पाए और मान्यता है कि यहां आने वाली प्रत्येक अर्थी के कान में महादेव स्वयं पूछते हैं कि वह कर्णफूल कहां है? साथ हीं साथ उन्हें तारक मंत्र का उपदेश देकर मोक्ष भी दिलाते हैं।
क्यों मनाई जाती है मसान होली?
पुराणों के अनुसार मसान होली मनाने के पीछे का कारण स्वयं भूतनाथ महादेव हैं। उन्होंने हीं सबसे पहले मसान होली मनाना आरंभ किया था। बताया जाता है कि जब महादेव और पार्वती जी का विवाह हुआ तो वह कुछ दिनों के लिए काशी घूमने आए थे। उस दिन रंगभरी एकादशी का दिन था। महादेव ने पार्वती माता को गुलाल लगाकर होली मनाया। लेकिन उनके भक्तगण में अधिकतर भूत पिशाच हीं थे। जो उन्हें दूर से देखकर हीं खुश हो रहे थे लेकिन खुद होली नहीं माना पा रहे थे। उनकी दुविधा को देखते हुए महादेव ने रंगभरी एकादशी के अगले दिन अपने उन भक्तों के साथ मणिकर्णिका के शमशान में होली खेली थी। उन्होंने चिता के भस्म को अपने शरीर पर मलकर अपने गणों के साथ नृत्य किया था। उसी दिन से यह प्रथा चली जा रही है कि हर साल रंगभरी एकादशी के अगले दिन यहां साधु संत और अघोर पंथ को मानने वाले लोग यहां आकर मसान होली खेलते हैं और जीवन के साथ-साथ मृत्यु का उत्सव मनाते हैं।
कब मनाई जाती है मसान होली?
यहाँ हर साल रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन चिता के भस्म से होली खेली जाती है, जिसे मसान होली या भस्म होली के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है की महादेव स्वयं अपने गणों के साथ उस दिन होली खेलते हैं। अघोर पंथ को मानने वाले लोग इस होली में हिस्सा लेना पसंद करते हैं। क्योंकि यह होली संसार के मोह माया को त्यागने के लिए लोगों को प्रेरित करता है।