मंडवे की रोटी गढ़वाल की मिट्टी में पला स्वाद
उत्तराखंड का गढ़वाल क्षेत्र अपनी प्राकृतिक सुंदरता, शांत वातावरण और समृद्ध संस्कृति के लिए जाना जाता है। यहां की रसोई में जो स्वाद बसता है, वह पहाड़ की मिट्टी, मौसम और जीवनशैली से गहराई से जुड़ा हुआ है। इन्हीं पारंपरिक व्यंजनों में से एक है गढ़वाली मंडवे की रोटी जो केवल एक भोजन नहीं बल्कि गढ़वाली जीवनशैली का प्रतीक है। मंडवा, जिसे अंग्रेज़ी में Finger Millet या रागी कहा जाता है, पहाड़ों की ढलानों पर उगने वाला एक पौष्टिक अनाज है। यह कठोर जलवायु और कम पानी में भी अच्छी पैदावार देता है, इसलिए इसे पहाड़ों का ‘अनमोल अनाज’ कहा जाता है। गढ़वाली लोग सदियों से मंडवे की खेती कर रहे हैं, और इसकी रोटी हर घर में एक परंपरा की तरह बनाई जाती है।

कैसे बनती है मंडवे की रोटी, पहाड़ के स्वाद का सरल सफर
गढ़वाल में मंडवे की रोटी बनाना एक कला की तरह माना जाता है। इसे बनाना थोड़ा मेहनत का काम है, क्योंकि मंडवे के आटे में ग्लूटेन नहीं होता, जिससे इसे बेलना और पकाना थोड़ा मुश्किल होता है। पहले गांव की महिलाएं मंडवे का आटा हाथों से चक्की में पीसती थीं। आजकल यह बाजार में भी आसानी से मिल जाता है। बनाने की प्रक्रिया में मंडवे के आटे को गुनगुने पानी से गूंथा जाता है। गूंधते वक्त आटे में थोड़ा सा गेहूं मिलाने से रोटी मुलायम बनती ह, इसलिए थोड़ा सा आप इसमें गेहूं का आता मिला सकते हैं। फिर इसे गोल आकार देकर हाथ से थपथपा कर तवे पर सेंका जाता है। जब रोटी आधी सिक जाती है, तो उसे पलटकर दूसरी ओर पकाया जाता है और आखिर में धीमी आंच पर फुलाया जाता है। ताजे मक्खन या गढ़वाली घी के साथ गर्मागर्म मंडवे की रोटी का स्वाद ऐसा होता है कि हर बाइट में मन आनंदित हो उठता है।(मंडवा, जिसे अंग्रेज़ी में Finger Millet या रागी कहा जाता है)

मंडवे की रोटी पुरातन समय से
मंडवे की रोटी का इतिहास उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों से जुड़ा है, खासकर गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्रों से। प्राचीन समय में जब खेती के लिए संसाधन सीमित थे, तब पहाड़ों की ढलानों पर मंडवा यानी रागी उगाया जाता था क्योंकि यह कम पानी में भी आसानी से पनप जाता था। धीरे-धीरे मंडवा स्थानीय लोगों का मुख्य भोजन बन गया। इसकी रोटी को ऊर्जा देने वाली और ठंड से बचाने वाली मानी जाती थी। पुराने जमाने में गांव की महिलाएं चक्की में मंडवे को पीसकर उसका आटा बनाती थीं और लकड़ी के चूल्हे पर उसे सेकती थीं। मंडवे की रोटी सिर्फ खाने का साधन नहीं, बल्कि गढ़वाली संस्कृति का हिस्सा बन गई। आज भी यह रोटी त्योहारों, पारंपरिक भोज और सर्दियों में खास तौर पर बनाई जाती है। इसका स्वाद और पोषण दोनों ही गढ़वाल की मिट्टी की सादगी को दर्शाते हैं।

कहां इसे ज्यादा बनाया और खाया जाता है?
गढ़वाल के लगभग हर गांव में मंडवे की रोटी रोजाना के भोजन का हिस्सा है। खासकर चमोली, टिहरी, पौड़ी, उत्तरकाशी और रुद्रप्रयाग जिलों में इसे बहुत प्यार से बनाया जाता है। सर्दियों में जब ठंडी हवाएं पहाड़ों को ढक लेती हैं, तब मंडवे की गरम रोटी शरीर में ऊर्जा और गर्मी दोनों भर देती है। यह रोटी अक्सर भांग की चटनी, गहत दाल, अलू के ठेचे और भी स्थानीय सब्जियों के साथ खाई जाती है। गढ़वाल के अलावा कुमाऊं क्षेत्र में भी मंडवे की रोटी का महत्व समान रूप से है। वहां इसे “मंडुवा” कहा जाता है और शादी या त्योहारों पर इसे खास तौर पर परोसा जाता है।

परंपरा और संस्कृति से जुड़ी मंडवे की रोटी
गढ़वाली संस्कृति में भोजन सिर्फ पेट भरने का साधन नहीं, बल्कि जीवन का उत्सव है। मंडवे की रोटी इस बात का प्रमाण है कि पहाड़ के लोग अपने भोजन में भी प्रकृति का सम्मान करते हैं। पहले के समय में जब गांव में अनाज का अभाव होता था, तब मंडवा ही जीवन दाता बनता था। यह सस्ता, टिकाऊ और पौष्टिक अनाज था। आज भी बुजुर्ग महिलाएं कहती हैं कि मंडवे की रोटी खा लो, ठंड में भी सर्दी नहीं लगती। शादी-ब्याह, त्योहारों और मेलों में जब पारंपरिक भोजन परोसा जाता है, तो मंडवे की रोटी उसके केंद्र में होती है। यह सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि गढ़वाली अस्मिता का हिस्सा है।

मंडवे की रोटी में पोषण और सेहत
मंडवे की रोटी केवल पारंपरिक नहीं, बल्कि आज के समय की सुपरफ़ूड है। इसमें कैल्शियम, फाइबर, आयरन और प्रोटीन भरपूर मात्रा में पाया जाता है। जो लोग डायबिटीज़, मोटापे या ब्लड प्रेशर की समस्या से जूझ रहे हैं, उनके लिए यह बेहद फायदेमंद मानी जाती है। गढ़वाली लोग इसे कहते हैं मंडवा खाओ, तन और मन दोनों मजबूत रहो। आज जब लोग फिटनेस और हेल्दी लाइफस्टाइल की ओर बढ़ रहे हैं, तब यह रोटी शहरी लोगों की थाली में भी जगह बना रही है। देहरादून, ऋषिकेश और मसूरी जैसे शहरों के कई कैफे और होटलों में अब “Mandua Roti with Organic Ghee” को खास Traditional Garhwali Dish के रूप में परोसा जा रहा है।

यात्रा में मंडवे की रोटी का स्वाद जरूर चखें
अगर आप उत्तराखंड यात्रा पर जा रहे हैं, तो स्थानीय स्वाद चखना अपने आप में एक अद्भुत अनुभव है। पहाड़ों के गांवों में जब धुएं से महकती रसोई में मंडवे की रोटी तवे पर सिकती है, तो उस खुशबू में पूरा गढ़वाल समा जाता है।
चाहे आप कैंपिंग कर रहे हों या ट्रेकिंग, स्थानीय घरों में बनी मंडवे की रोटी से बेहतर कुछ नहीं। आप इसे कौड़ियाला, श्रीनगर गढ़वाल, कर्णप्रयाग या जोशीमठ जैसे छोटे शहरों के ढाबों में भी पा सकते हैं। गढ़वाल की यात्रा केवल पहाड़ों को देखने की नहीं, बल्कि वहां की मिट्टी, स्वाद और संस्कृति को महसूस करने की है। और मंडवे की रोटी इस अनुभव का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है।

एक रोटी की सुगंश में समाया पूरा गढ़वाल
गढ़वाली मंडवे की रोटी सिर्फ एक व्यंजन नहीं, बल्कि गढ़वाल की जीवनशैली, इतिहास और संघर्ष की कहानी है। यह बताती है कि कैसे सीमित संसाधनों में भी लोग प्रकृति से संतुलन बनाकर जीना जानते हैं। आज जब फास्ट फूड की संस्कृति तेजी से बढ़ रही है, तब मंडवे की रोटी हमें हमारी जड़ों की ओर लौटने का संदेश देती है। इसका स्वाद सादगी में बसा है, और यही सादगी गढ़वाल की पहचान है। यदि आप कभी उत्तराखंड जाएं, तो पहाड़ों की गोद में बैठकर मंडवे की रोटी का स्वाद ज़रूर लें क्योंकि यह केवल भोजन नहीं, बल्कि गढ़वाली आत्मा का स्वाद है।

क्यों खाना चाहिए मंडवे की रोटी?
दरअसल,मंडवे की रोटी सिर्फ स्वादिष्ट ही नहीं, बल्कि बहुत सेहतमंद भी होती है। इसमें कैल्शियम, आयरन, फाइबर और प्रोटीन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो शरीर को मजबूत बनाते हैं। यह रोटी डायबिटीज़, मोटापा और ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में मदद करती है, क्योंकि इसमें ग्लूटेन नहीं होता और शुगर लेवल कम रहता है। पहाड़ों में लोग सर्दियों में इसे इसलिए खाते हैं ताकि शरीर को गर्मी और ऊर्जा मिल सके। मंडवा शरीर को अंदर से ताकत देता है और पाचन शक्ति भी बढ़ाता है। आजकल डॉक्टर भी इसे सुपरफूड कहते हैं, क्योंकि यह सेहत के लिए बेहद फायदेमंद है। जो लोग फिट रहना चाहते हैं, उनके लिए मंडवे की रोटी एक बेहतरीन विकल्प है यह पुरानी परंपरा और आधुनिक सेहत दोनों का सुंदर मेल है।









