बुंदेलों हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी..
इन पंक्तियों को कहीं न कहीं कभी न कभी आपने सुना ही होगा, आइए आज जानते हैं इस झांसी की दास्तां जहां वीरांगना लक्ष्मीबाई ने कुछ ऐसा कर दिखाया जिसने उन्हें अमर कर दिखाया।उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थित झांसी का किला भारत के उन ऐतिहासिक स्थलों में गिना जाता है, जो साहस, शौर्य और देशभक्ति की अद्भुत मिसाल हैं।
झांसी का सौन्दर्य ऐसा ही कोई भी कायल हो जाए
यह किला बुंदेलखंड की ऊंची पहाड़ी पर स्थित है, जहां से पूरा शहर नज़र आता है। झांसी रेलवे स्टेशन से यह किला मात्र 3 किलोमीटर दूर है और शहर की पहचान के रूप में हमेशा यात्रियों का ध्यान खींचता है। झांसी किले का निर्माण बुंदेला शासक ओरछा के राजा बीर सिंह जूदेव ने 1613 में करवाया था। इसे इस तरह बनाया गया कि यह दुश्मनों के हमले को झेल सके और युद्ध के समय सेना को सुरक्षित स्थान मिल सके। किले की मोटी दीवारें, ऊंचे बुर्ज और बड़े दरवाज़े इसकी मजबूती और सामरिक महत्ता को दर्शाते हैं।

आज झांसी का किला सिर्फ एक ऐतिहासिक स्मारक नहीं है बल्कि यह भारत की स्वतंत्रता संग्राम की गवाही देता है। यहां की मिट्टी में रानी लक्ष्मीबाई की बहादुरी की कहानी बसी है, जिसे सुनकर हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। जब कोई यात्री यहां पहुंचता है तो उसे सिर्फ ईंट-पत्थर का किला नहीं दिखता, बल्कि उसमें शौर्य और बलिदान की गूंज सुनाई देती है।
कला का कोहिनूर झांसी का किला
झांसी किला स्थापत्य कला का बेहतरीन उदाहरण है। इसे ग्रेनाइट और मजबूत पत्थरों से बनाया गया है ताकि यह समय और युद्ध की sहर परीक्षा में खरा उतर सके। किले का क्षेत्रफल लगभग 15 एकड़ है और इसके चारों ओर फैली 20 से 30 फीट मोटी दीवारें इसे और भी विशाल बनाती हैं। किले में 10 विशाल दरवाज़े हैं जिनमें प्रमुख हैं खिलौना गेट, लक्ष्मी गेट, सागर गेट और ओरी गेट। हर दरवाज़ा अपनी खास शैली और कारीगरी के लिए जाना जाता है। इसके अलावा किले में कई बुर्ज और तोपखाने हैं, जहां कभी सैनिक तैनात रहते थे।

आज भी यहां रखी तोपें उस दौर की सैन्य क्षमता की याद दिलाती हैं। किले के भीतर रानी महल, बारादरी और मंदिर स्थापत्य कला की अनोखी झलक प्रस्तुत करते हैं। यहां की दीवारों पर की गई नक्काशी, आर्च और गुंबद उस समय की कला और सौंदर्यबोध को दर्शाते हैं। किले की बनावट को देखकर यह समझ आता है कि इसे युद्ध के लिहाज से कितनी सावधानी से तैयार किया गया था। दुश्मनों के प्रवेश को रोकने के लिए घुमावदार रास्ते, ऊंचे दरवाज़े और गुप्त मार्ग बनाए गए थे। यही कारण था कि झांसी किला सिर्फ एक शाही महल नहीं, बल्कि एक सशक्त किला भी था।
“मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी” ऐतिहासिक उद्घोष की कहानी
झांसी किला भारतीय स्वतंत्रता संग्राम 1857 की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी है। यहीं से रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के खिलाफ अपना निर्णायक युद्ध लड़ा। रानी लक्ष्मीबाई, जिन्हें प्यार से झांसी की रानी कहा जाता है, अपने साहस, वीरता और साहस के लिए जानी जाती हैं। जब अंग्रेजों ने झांसी को हड़पने की कोशिश की, तो रानी ने “मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी” का ऐतिहासिक उद्घोष किया। किले की दीवारों से अंग्रेजी सेना का सामना करना और अपनी छोटी सी सेना के साथ वीरता पूर्वक लड़ना इतिहास का वह अध्याय है जिसे कोई भूल नहीं सकता।

किले के भीतर बने ‘रानी महल’ में ही रानी लक्ष्मीबाई ने कई रणनीतियां बनाई थीं। युद्ध के दौरान जब हालात कठिन हो गए तो रानी ने अपने पुत्र को पीठ पर बांधा और किले की दीवार से घोड़े पर कूदकर बाहर निकल पड़ीं। यह दृश्य भारतीय इतिहास में अदम्य साहस का प्रतीक बन गया। 1857 का संग्राम भले ही अंग्रेजों की जीत के साथ खत्म हुआ, लेकिन झांसी की रानी और इस किले ने पूरे भारत में स्वतंत्रता की आग जलाई। आज भी जब कोई इस किले की प्राचीर पर खड़ा होता है तो उसे रानी लक्ष्मीबाई की तलवार की चमक और उनका अदम्य आत्मबल महसूस होता है।
झांसी क्यों जाना चाहिए?
आज झांसी किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित स्मारक है। यह किला शैलानियों इतिहास प्रेमियों और छात्रों के लिए आकर्षण का केंद्र है। हर साल हजारों लोग यहां आते हैं और उस वीरता की कहानियों को महसूस करते हैं जो इस किले की दीवारों में बस चुकी हैं। किले के अंदर बने संग्रहालय में पुराने हथियार, तोपें, मूर्तियां और कई प्राचीन वस्तुएं रखी गई हैं। ये सभी वस्तुएं आगंतुकों को 17वीं और 18वीं शताब्दी की झांसी की झलक दिखाती हैं।
संग्रहालय में रखे चित्र और दस्तावेज रानी लक्ष्मीबाई और 1857 की क्रांति के बारे में विस्तार से बताते हैं। पर्यटन की दृष्टि से झांसी किला न सिर्फ ऐतिहासिक महत्व रखता है बल्कि यहां से शहर का खूबसूरत नज़ारा भी दिखता है। गाइड की मदद से किले का भ्रमण और भी दिलचस्प हो जाता है क्योंकि वे हर कोने की कहानी सुनाते हैं। झांसी का किला स्वतंत्रता और शौर्य का जीवंत प्रतीक है। यहां आकर हर भारतीय गर्व और प्रेरणा से भर जाता है। यही कारण है कि यह किला भारत के ऐतिहासिक धरोहरों की सूची में एक अनमोल रत्न माना जाता है।
झांसी किले तक कैसे पहुंचें और यात्रा अनुभव
झांसी पहुंचना बेहद आसान है क्योंकि यह उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच स्थित एक प्रमुख शहर है। झांसी रेलवे स्टेशन उत्तर भारत का बड़ा जंक्शन है और देश के लगभग सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। निकटतम हवाई अड्डा ग्वालियर और कानपुर में है, जहां से सड़क या ट्रेन द्वारा झांसी पहुंचा जा सकता है।
किले तक पहुंचने के लिए आप रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड से आसानी से टैक्सी, ऑटो या रिक्शा ले सकते हैं। शहर का वातावरण पर्यटन के लिहाज से काफी सुरक्षित और सुविधाजनक है। यात्रा अनुभव की बात करें तो झांसी किला सिर्फ एक जगह घूमने का ठिकाना नहीं बल्कि भावनाओं का केन्द्र है।

यहाँ की हवा में वीरता और त्याग की गंध है। जब आप किले की प्राचीर पर खड़े होकर पूरे शहर को देखते हैं तो आपको लगता है मानो रानी लक्ष्मीबाई अभी भी अपने घोड़े पर सवार होकर युद्ध के लिए निकल रही हों। यात्रियों के लिए झांसी शहर में ठहरने और खाने की अच्छी व्यवस्था है। स्थानीय बाज़ारों में बुंदेली व्यंजन जैसे पोहे जलेबी, दाल-बाटी और खुरमी का स्वाद यात्रा को और यादगार बना देता है।
कुल मिलाकर झांसी का किला एक ऐसा अनुभव है जिसे जीवन में एक बार ज़रूर जीना चाहिए। शैलानियों के लिए यह एक आदर्श स्थान है, किला घूमने और अनुभव करने के लिहाज से बेहद खास है, जीवन में काभी मौका मिले तो आपको झांसी का किला जरुर घूमना चाहिए।









