पहाड़ और उत्तराखंड किसे पसंद नहीं यह जगह घूमने के शौकीन लोगों के लिए एक बेहतरीन टूरिस्ट डेस्टिनेशन है। खास कर दिल्ली वालों का तो उत्तराखंड से एक अलग हीं नाता रहता है। तभी तो हर बार गर्मियों की छुट्टी में अक्सर लोग उत्तराखंड की सैर पर निकल जाते हैं। लेकिन पहाड़ों के अलावा उत्तराखंड की एक और विशेषता है और वह है उनका पारंपरिक परिधान। अगर आप भी कभी उत्तराखंड गए हैं तो आपने वहां के स्थानीय लोगों को अपने पारंपरिक परिधान में घूमते हुए आवश्यक देखा होगा। आज के फाइव कलर्स आफ ट्रैवल के इस ब्लॉग में हम आपको उत्तराखंड के परिधान (Traditional clothes of Uttarakhand) के बारे में बताने वाले हैं।
कहते हैं हमारा पहनावा हमारे कल्चरल बैकग्राउंड को दर्शाता है। पहनावा से इतिहास का एक बड़ा हीं बेजोड़ नाता रहता है। किसी जगह के स्थानीय लोगों के पहनावे को देखकर उस जगह के ऐतिहासिक और भौगोलिक पृष्ठभूमि को बताना आसान हो जाता है। भारत विविधताओं का देश है जहां हर राज्य के लोगों का अपना एक अलग वेशभूषा और परिधान होता है। ऐसा ही परिधान उत्तराखंड के निवासियों का भी है। आईए जानते हैं उत्तराखंड के परिधान के बारे में कुछ विशेष बातें :

नथ से है खास लगाव :
अगर आप किसी त्योहार के समय उत्तराखंड जा रहे हैं तो वहां की अधिकतर महिलाएं आपको बड़े-बड़े नथ पहने हुए दिख जाएंगी। उत्तराखंड के लगभग सभी भागों में ऐसे बड़े-बड़े नथ पहनने का प्रचलन कई सौ सालों पुराना है। इन्हें बुलाक या फिर फुल्ली के नाम से जाना जाता है। उत्तराखंड की महिलाओं के लिए नथ एक पूंजी की तरह होता है। जिसे वह पीढ़ी दर पीढ़ी संभाल कर रखती हैं। खासकर टिहरी क्षेत्र की महिलाओं का नथ काफी भारी होता है। कहा जाता है कि जो महिला जितने धनी परिवार से होगी वह उतना ही भारी नथ पहनेगी।

पुलिया बिछिया और बिछुआ सब हैं एक :
थारू और जोहरी जनजाति की औरतें पुलिया पहने हुए दिख जाती हैं, जिसे उत्तराखंड के दूसरे भाग में बिछिया या बिछुआ के नाम से जाना जाता है। गढ़वाल में बिछुवा कहने का प्रचलन है तो कुमाऊं में इसे बिछिया कहते हैं। दरअसल पुलिया बिछिया अथवा बिछुआ पैरों में पहने जाने वाला एक गहना है जिसे पैर की उंगलियों में पहनते हैं। भारत के अन्य भागों में भी अक्सर विवाहित महिलाएं पैरों में बिछिया पहना करती हैं।

गले में पहनी जाती है विशेष हार :
यहां की महिलाओं के गले में आपको सिक्कों की मालाएं दिख जाएंगी। जहाँ इन मालाओं को कुमाऊं में अठन्नीमाला, रुपैयामाला, चवन्नीमाला, हंसुली, कंठीमाला, गुलूबंद तथा लॉकेट कहते हैं तो वहीं गढ़वाल में यह माला हमेल के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा गले में चंद्रहार, कंठीमाला और तिलहरी जैसे गहने पहनने का भी प्रचलन है।

कमर बंद है खास :-
गढ़वाल क्षेत्र की महिलाएं कमरबंद के रूप में कपड़े का कमरबंद पहनती हैं। जिससे उन्हें काम करने में किसी भी प्रकार की बाधा नहीं आती है। इसके अलावा वहां की महिलाएं अपने कमर में करधनी, तगड़ी, कमर ज्योड़ी जैसे आभूषण पहना करती हैं।









