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अहमदाबाद का रविवारी बाजार- टिकाऊ पर्यावरण की एक जीवंत मिसाल

अहमदाबाद शहर जिसको को भारत की व्यापारिक राजधानी कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह शहर न केवल कपड़े और उद्योगों के लिए प्रसिद्ध है बल्कि यहाँ की ट्रेडिश्नल लाइफस्टाइल, कल्चर और लोगों के व्यवहार का अनूठा गठजोड़ भी देखने को मिलता है। इसी संस्कृति का सजीव और जीवंत उदाहरण है हमारे अहमदाबाद का रविवारी बाजार। जो हर रविवार को शहर के दिल की तरह धड़कता है। इस बाजार को संडे मार्केट या फिर रविवारी बाजार के नाम से भी जाना जाता है

रविवारी बाजार आम बाजारों से अलग है। यहाँ केवल जरूरत की चीजें नहीं मिलती  बल्कि यहाँ वो सुकून, सभ्यता का अनुभव, संस्कराती का एहसास भी मिलता है। यह बाजार एक ऐसी जगह है, जहाँ आम आदमी अपने सपनों को थोड़े पैसों में पूरा करने को आता है। कोई अपनी टूटी कुर्सी के बदले एक पुराना पंखा ढूंढ़ता है, तो कोई किताबों की ढेर में ज्ञान का मोती तलाशता है।

रविवारी बाजार

रविवारी बाजार की जड़ें बहुत गहरी हैं, और पुरानी हैं जो हमें एक लंबे समय से संरक्षित संस्कराती का संकेत देती हैं। कह सकते हैं की इस बाजार की जड़ें समय के इतिहास में कई सदियों तक फैली हुई हैं। यह भी कहा जाता है कि इस बाजार की शुरुआत मुग़लकाल या मराठा शासन के समय हुई थी। उस समय शहरों और गाँवों के बीच व्यापार करने वाले छोटे व्यापारी एक दिन निर्धारित करके अपना सामान बेचने आते थे। धीरे-धीरे इस परंपरा ने एक बड़ा रूप ले लिया और हर रविवार को यह बाजार लगने लगा। वैसे वह बाजार जो हफ्ते में किसी एक दिन को लगते हैं उसे हाट कहा जाता है। आज के समय में इसको कहा जा सकता है की यह एक प्रकार का बड़ा हाट है, जिसे अहमदाबाद के सबसे बड़े बाजारों में शामिल किया गया है।

शुरू-शुरू में यह बाजार साबरमती नदी के किनारे लगता था, जहाँ लोग अपनी चादरें बिछाकर अपने पुराने सामान, खेती उपकरण, लोहे के औजार, मिट्टी के बर्तन और अन्य घरेलू सामान बेचते थे। और इस बाजार की जड़े बिल्कुल बस्तु विनिमय प्रणाली से जुड़ी हुई हैं। जिसे इंग्लिश में बार्टर सिस्टम कहा जाता है। यहाँ आने वाले अधिकांश ग्राहक गरीब और मिडिल क्लास या उससे छोटे वर्ग के तबके से होते हैं, जिनके लिए नया सामान खरीदना मुश्किल होता था। जैसे आज कई जगह के चोर बाजार हैं जिनमे पुरानी चीजों को या सेकंड हेंड चीजों को कम दामों में बेचा जाता है। लगभग वैसा ही इस बाजार का रंग ढंग है।

समय के साथ यह बाजार इतना लोकप्रिय हो गया कि अहमदाबाद नगर निगम ने इसे 1997 में और अधिक संगठित करने के उद्देश्य से एलिस ब्रिज के पास एक निश्चित क्षेत्र में स्थानांतरित कर दिया था। आज यह बाजार लगभग 80,000 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैला हुआ है और यहां 1,000 से अधिक छोटे-बड़े विक्रेता हर रविवार को अपनी दुकानें सजाते हैं। जिनमें कई तरह के सामान को बेचा और खरीदा जाता है। इस बाजार की सबसे खास बात यह रही है कि यह समय के साथ बदला जरूर है लेकिन अपनी आत्मा को नहीं खोया है। पुराने सामान के व्यापार से लेकर, कबाड़ी संस्कृति को बढ़ावा देने तक, रविवारी बाजार ने अहमदाबाद के व्यापारिक ताने-बाने में एक अनोखा स्थान बना लिया है।

रविवारी बाजार

समय के साथ रविवारी बाजार में कई आधुनिक बदलाव हुए हैं। पहले जहाँ लोग जमीन पर बैठकर व्यापार करते थे, अब वहाँ स्टॉल्स हैं, पहचान पत्र हैं, टिकट सिस्टम है, और यहां तक कि सीसीटीवी कैमरे और साफ-सफाई की आधुनिक व्यवस्था भी है। यहाँ इलेक्ट्रॉनिक सामान, पुराने मोबाइल, कंप्यूटर पार्ट्स, कार के स्पेयर पार्ट्स, पुराने फर्नीचर, किताबें, कपड़े, जूते, साइकिल, खिलौने, बर्तन, घरेलू उपकरण, और कुछ हद तक आर्टिफैक्ट्स भी मिलते हैं। इस बाजार में रियूज़ और रिसायकल की अवधारणा न केवल पर्यावरण हितैषी है, बल्कि सामाजिक रूप से भी सार्थक है। इसीलिए इस बाजार को सस्टेन्बल एनवायरनमेंट का प्रतीक माना जा सकता है।

यह बाजार सिर्फ  रियूज़ और रिसायकल को बढ़ावा नहीं दे रहा है बल्कि एक तरह से पर्यावरण को बचा भी रहा है। यही चीज इस बाजार को अलग और विशेष बनाती है। इस बाजार का ग्राहक वर्ग भी विविध है, एक ओर गाँव से आया किसान है, तो दूसरी ओर विश्वविद्यालय का छात्र, कोई गृहिणी है तो कोई रिटायर्ड बुज़ुर्ग, और कई बार विदेशी सैलानी भी अपनी आँखों से इस संस्कृति को देखने आते हैं।

यह बाजार केवल खरीददारी का केंद्र नहीं बल्कि यह एक भावनात्मक और मानवीय रिश्ता बनाता है, अपने आने वालों के साथ। कई ऐसे परिवार हैं, जिनकी कमाई का एकमात्र साधन यह रविवारी बाजार ही है। वे पूरे सप्ताह पुराना सामान इकट्ठा करते हैं, मरम्मत करते हैं, और फिर रविवार को बेचने लाते हैं। यहाँ एक व्यापारी द्वारा बेचा गया टूटा हुआ रेडियो, किसी दूसरे के घर में सजावट का टुकड़ा बन सकता है। यह बाजार उन लोगों के लिए अवसर है, जिनके पास बहुत कम संसाधन हैं लेकिन आगे बढ़ने की ललक है।

रविवारी बाजार का महत्व केवल एक व्यापारिक केंद्र के रूप में नहीं है बल्कि यह अहमदाबाद की सामाजिक-आर्थिक संरचना का हिस्सा है। यहां हर वर्ग के लोग न केवल सामान खरीदने आते हैं बल्कि एक-दूसरे से संवाद करने मिलने और समझने भी आते हैं। यह बाजार समानता और सहभागिता का प्रतीक है। कोई अमीर या गरीब नहीं, कोई बड़ा या छोटा नहीं, सब एक साथ इस बाज़ार में सामान ढूंढ़ते हैं, मोलभाव करते हैं और ज़रूरतें पूरी करते हैं।

यहाँ पर बहुत सारे अनौपचारिक कामगार भी जुड़े होते हैं जैसे ठेले वाले चाय बेचने वाले, रिक्शा चालक, सामान ढोने वाले, मरम्मत करने वाले आदि। यह बाजार रोज़गार का एक विशाल अप्रत्यक्ष स्रोत है। रविवारी बाजार उन लोगों के लिए भी उम्मीद की किरण है, जो स्वरोजगार करना चाहते हैं, लेकिन संसाधनों की कमी के कारण स्टोर या दुकान नहीं खोल सकते। यहां बिना ज्यादा पूंजी लगाए लोग अपना व्यापार शुरू कर सकते हैं। अहमदाबाद नगर निगम द्वारा बाजार में साफ-सफाई, प्रकाश व्यवस्था और पार्किंग जैसी सुविधाएं प्रदान करने से यह बाजार और भी सशक्त हुआ है। साथ ही यह बाजार पर्यावरण की दृष्टि से भी सकारात्मक प्रभाव डालता है क्योंकि यह पुराने सामान के पुनः उपयोग को प्रोत्साहित करता है।

रविवारी बाजार का भविष्य भी उतना ही उज्ज्वल है, जितना उसका अतीत। डिजिटल युग में भी यह बाजार अपनी विशिष्टता के कारण जीवित है और फल-फूल रहा है। अब कई युवा भी इस बाजार से जुड़ रहे हैं, कोई आर्ट इंस्टॉलेशन के लिए पुराने पुर्जे ढूंढ़ रहा है, तो कोई विंटेज आइटम्स इकट्ठा करने आया है। इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर भी कई लोग इस बाजार को दिखाकर इसके अनोखे पहलुओं को लोगों तक पहुंचा रहे हैं।

रविवारी बाजार

भविष्य में अगर इस बाजार को और व्यवस्थित किया जाए जैसे कि डिजिटल भुगतान की सुविधा, ऑनलाइन सूची, अपडेट करना क्यूआर कोड आधारित रसीद व्यवस्था आदि तो यह बाजार अन्य आधुनिक बाजारों के लिए एक मॉडल बन सकता है। पर्यटन विभाग भी इस बाजार को हेरिटेज टूरिज्म से जोड़कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिला सकता है। इसका एक स्थायी संग्रहालय भी स्थापित किया जा सकता है। जहाँ पुराने सामान, पुराने रेडियो, टाइपराइटर, ग्रामोफोन आदि को संरक्षित किया जाए।

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Hello! I Pardeep Kumar

मुख्यतः मैं एक मीडिया शिक्षक हूँ, लेकिन हमेशा कुछ नया और रचनात्मक करने की फ़िराक में रहता हूं।

लम्बे सफर पर चलते-चलते बीच राह किसी ढ़ाबे पर कड़क चाय पीने की तलब हमेशा मुझे ज़िंदा बनाये रखती
है।

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