मध्यप्रदेश जिसको भारत का ह्रदय कहा जाता है! इस खूबसूरत से प्रदेश की धरती पर कई ऐसी परंपराएं आज भी जीवित हैं जो सदियों से चली आ रही हैं और आज भी लोगों के दिल में अपनी खास जगह बनाए हुए हैं। इन्हीं में से एक है भगोरिया हाट, जो मालवा और निमाड़ क्षेत्र की भील और भिलाला आदिवासी समाज की सबसे अनोखी और अद्भुत परंपरा मानी जाती है। यह सिर्फ एक हाट नहीं, बल्कि प्रेम, मेल-जोल, आज़ादी और लोक संस्कृति का असली त्यौहार है। भगोरिया का आयोजन मुख्य तौर पर धार, झाबुआ, खरगोन, अलीराजपुर और बड़वानी जिलों में किया जाता है। होली से एक हफ्ता पहले अलग-अलग गांवों और कस्बों में यह हाट लगती है। इसका नाम भगोर नामक स्थान से पड़ा है, जहां इस परंपरा की शुरुआत मानी जाती है। शुरू में यह हाट युद्ध-जीत और सामाजिक मेलजोल का प्रतीक थी, लेकिन समय के साथ यह युवा लड़के-लड़कियों के प्रेम और स्वतंत्र चयन का त्यौहार बन गई।

क्या सच में स्वयंवर होता है?
भगोरिया हाट की सबसे बड़ी खासियत है इसका माहौल। रंग-बिरंगे कपड़े पहने युवक-युवतियां, चेहरे पर गुलाल, ढोल-मांदल की थाप, नृत्य, गीत और हंसी-ठिठोली पूरा इलाका मानो किसी मेले में बदल जाता है। लड़के और लड़कियां अपने मन की पसंद के साथी को चुनते हैं। कई बार लड़का लड़की को पान, सुपारी या गुलाल देकर अपनी पसंद जताता है। लड़की के स्वीकार करने पर इसे भगोरिया प्रेम कहा जाता है, और बाद में परिवारों में रजामंदी लेकर विवाह की प्रक्रिया शुरू होती है। यही वजह है कि इसे प्रेम का त्यौहार भी कहा जाता है।(मध्यप्रदेश जिसको भारत का ह्रदय कहा जाता है!)

आदिवासी परंपरा के सबसे बड़े उत्सवों में से एक!
हाट में आदिवासी हस्तशिल्प, परंपरागत गहने, कपड़े, लकड़ी के सामान और देसी खानपान की भी खूब धूम रहती है। महुआ की सुगंध, भील नृत्य की थाप और गुलाल की उड़ती खुशबू भगोरिया को बिल्कुल अलग अनुभव बनाती है। आज के समय में भी भगोरिया हाट अपनी जड़ों और खूबसूरती को संभाले हुए है। आधुनिकता ने बहुत कुछ बदला है, पर यह परंपरा आज भी आदिवासी समाज की पहचान है जहां प्रेम भी है, संस्कृति भी और आज़ादी का उत्सव भी। अगर किसी को मध्यप्रदेश की असली लोकसंस्कृति देखनी है, तो एक बार भगोरिया हाट जरूर जाना चाहिए।

भगोरिया हाट का आयोजन कब और कहां होता है?
भगोरिया हाट मध्यप्रदेश के मालवा और निमाड़ क्षेत्र में होली से लगभग एक हफ्ता पहले आयोजित किया जाता है। इसका आयोजन मुख्य रूप से झाबुआ, धार, अलीराजपुर, खरगोन और बड़वानी जिलों के गांवों और कस्बों में होता है। हर दिन अलग-अलग स्थानों पर हाट लगती है और सप्ताहभर पूरा इलाका उत्सव में डूबा रहता है। यह भील और भिलाला आदिवासी समाज का प्रमुख त्योहार है, जहां रंग, संगीत, नृत्य और प्रेम की परंपरा पूरे जोश के साथ दिखती है।
