घुमक्कड़ स्वभाव का व्यक्ति हमेशा नया खोजता रहता है, घूमने के लिए एहसास करने के लिए, तो आप को बता दूं कि उसी हिसाब के हम हैं। आज हमने एक खास जगह को निशाना बनाया है, नाम है मूसी महारानी की छतरी! एक बहुत ही सुन्दर स्थान। जो मनमोहक तो है ही, साथ-साथ ही साथ यह जगह हमें सिखाती है, इतिहास की बारीकियां और हमारी संस्कृति के किस्से। यह छतरी, एक ऐसी स्मारक है, जो राजा और रानी की याद में बनाई गई है। अलवर राजस्थान का एक खूबसूरत शहर है, जहां पहाड़ियां, किले और झीलें हैं, इसी अलवर में बनी है यह नायाब छतरी। यह स्मारक 1815 में बना थी और आज भी लोगों को अपनी ओर खींचती है अपनी सुंदरता से, अपनी अनोखी बनावट से।
मूसी महारानी की छतरी के अलावा अलवर में और क्या-क्या घूमें?
प्लान के मुताबिक़ हम जाने को थे, बाला फोर्ट। लेकिन हुआ यह की बाला फोर्ट को जाने बाला रास्ता टूट जाने के कारण फोर्ट बंद था, इसलिए फिर हमने मूसी महारानी की छतरी को घूमने का प्लान बनाया। हमने गाड़ी घुमाई और हम निकल पढे सिटी पैलेस की और इसी सिटी पैलेस में, एक दो मंजिला इमारत है, जो लाल पत्थर और सफेद संगमरमर से बनी है। ऊपर छतरी जैसी संरचना है, जो राजपूत शैली की है। यह जगह महाराजा बख्तावर सिंह और उनकी रानी मुसी की याद में बनी है।


रानी मूसी ने राजा की मौत के बाद सती होकर खुद को आग में जला लिया था। इसी कारण यह स्मारक उनकी प्रेम कहानी और समर्पण का प्रतीक है। मैंने जब पहली बार इस जगह के बारे में जाना, तो सोचा कि यह कितनी पुरानी और भावुक कहानी है। आज के समय में जहां प्यार की बातें सोशल मीडिया पर होती हैं, वहां यह स्मारक हमें पुराने जमाने के प्यार की याद दिलाता है। अलवर घूमने आने वाले पर्यटक यहां जरूर आते हैं। यह जगह फोटोग्राफी के लिए भी कमाल की है। हमने तो खूब फ़ोटो और विडिओ निकाले।
दृश्य ऐसा कि आप देखते रह जाएं!
वास्तव में, सूरज ढलते समय यहां का नजारा देखने लायक होता है। लाल पत्थर सूरज की रोशनी में चमकता है, जैसे कोई कोहिनूर हो। आप जानते हैं, अलवर राजस्थान का एक हिस्सा है, जो दिल्ली से ज्यादा दूर नहीं है। हमें मात्र ढाई घंटा लगा था, दिल्ली से अलवर पहुँचने में। वैसे हमने यह यात्रा कार से की थी। लगभग यहां यहां आने वाले सभी लोग सरिस्का टाइगर रिजर्व, अलवर किला और सिलिसेढ झील भी देखते हैं।

इनमें से मूसी महारानी की छतरी के अलावा दो चीजों का तो मजा हमने लिया ही, जिनमें एक सिटी पैलेस और दूसरा सरिस्का की जंगल सफारी। लेकिन मूसी महारानी की छतरी इन सब में अलग है क्योंकि यह छोटी लेकिन अर्थपूर्ण जगह है। यहां आकर आपको शांति मिलती है। बच्चे, परिवार या दोस्तों के साथ आना अच्छा लगता है। अगर आप इतिहास पसंद करते हैं, तो फिर कहने ही क्या! एक मजेदार बात बताता हूं। हम शहर पैलेस गए, फिर छतरी देखी। छतरी की सीढ़ियां चढ़कर ऊपर से अलवर शहर का नजारा कमाल का था। वहां हवा चलती है और चारों तरफ पहाड़ नजर आते हैं। यह जगह सिर्फ देखने की नहीं, बल्कि महसूस करने की है।


दरअसल मूसी महारानी की छतरी अलवर के मुख्य शहर में है। यह पैलेस कॉम्प्लेक्स के पास है। यहां आने वाले लोग अक्सर पैदल या रिक्शा से आते हैं। जगह छोटी है, लेकिन लाजबाब है। पर्यटक यहां फोटो खींचते हैं और कहानियां सुनते हैं। स्थानीय गाइड आपको पूरी जानकारी देते हैं। अगर आप राजस्थान की संस्कृति जानना चाहते हैं, तो यह जगह बेस्ट है। यहां की दीवारों पर चित्रकारी है, जो पुरातन की कहानियां दिखाती है। यह सब देखकर आपको लगेगा कि आप इतिहास के पन्नों में घूम रहे हैं।
इतिहास को समेटे हुए यह प्रतिमान, हमें सिखाते हैं विकास की परिभाषा
मूसी महारानी की छतरी का इतिहास वास्तव में है तो बड़ा रोचक। यह स्मारक 1815 में महाराजा विनय सिंह ने बनवाई थी। यह उनके पिता महाराजा बख्तावर सिंह और रानी मूसी की याद में है। बख्तावर सिंह अलवर के राजा थे। उनकी मौत के बाद रानी मुसी ने सती प्रथा के अनुसार खुद को आग में जला लिया था। उस समय यह प्रथा आम थी, लेकिन आज हम इसे गलत मानते हैं। यह स्मारक उस घटना की याद दिलाता है। कहानी कुछ यूं है। महाराजा बख्तावर सिंह एक बहादुर राजा थे। उन्होंने अलवर को बहुत मजबूत बनाया। रानी मूसी उनकी पत्नी थीं, जो बहुत समर्पित थीं। राजा की मौत पर रानी ने सती होने का फैसला किया। उस जगह पर ही यह छतरी बनाई गई थी। छतरी के नीचे उनकी समाधियां हैं। ऊपर छतरी है, जो राजपूत शैली की है। यह जगह प्यार और त्याग की मिसाल है।


मैंने एक किताब में पढ़ा कि राजस्थान में ऐसी कई छतरियां हैं, लेकिन मूसी महारानी की छतरी सबसे सुंदर है। यह अलवर की शान है। इतिहासकार कहते हैं कि यह स्मारक राजपूतों की बहादुरी और परंपराओं को दिखाता है। यहां आने वाले लोग रानी मूसी की कहानी सुनकर भावुक हो जाते हैं। अलवर का इतिहास भी रोचक है। यह शहर 18वीं सदी में बसाया गया था। यहां कई राजा हुए, जिन्होंने किले और महल बनवाए। मूसी महारानी की छतरी उनमें से एक है। यह जगह ब्रिटिश काल में भी महत्वपूर्ण थी।
सरकार को भी देना चाहिए ध्यान
आज यह पर्यटन स्थल है। सरकार इसे संरक्षित रखती है पर उतना नहीं जितने की हमने उम्मीद की थी। मूसी महारानी की छतरी के बिल्कुल बगल में एक कुंड है जो गंदे और काई के पानी से भरा हुआ है। जिससे बहुत बदबू आती है। राजस्थान सरकार को इस और ध्यान देना चाहिए। यह किले और अन्य इमारतें हमारी संस्कृति और इतिहास को संभाले हुए हैंघुमक्कड़ स्वभाव का व्यक्ति हमेशा नया खोजता रहता है, घूमने के लिए एहसास करने के लिए, तो आप को बता दूं कि उसी हिसाब के हम हैं। आज हमने एक खास जगह को निशाना बनाया है, नाम है मूसी महारानी की छतरी! एक बहुत ही सुन्दर स्थान। जो मनमोहक तो है ही, साथ-साथ ही साथ यह जगह हमें सिखाती है, इतिहास की बारीकियां और हमारी संस्कृति के किस्से। यह छतरी, एक ऐसी स्मारक है, जो राजा और रानी की याद में बनाई गई है।
अलवर, ये तो शहर ही खूबसूरत है..
अलवर राजस्थान का एक खूबसूरत शहर है, जहां पहाड़ियां, किले और झीलें हैं, इसी अलवर में बनी है यह नायाब छतरी। यह स्मारक 1815 में बना थी और आज भी लोगों को अपनी ओर खींचती है अपनी सुंदरता से, अपनी अनोखी बनावट से। तो हमारी भी यह जिम्मेदारी बनती है की हम इन जगहों का ख्याल रखें। इसी, छतरी के पास के कुंड को, सागर कुंड कहते हैं। यह पानी का तालाब है, जो पुराने समय में इस्तेमाल होता था। अब यह पीले पानी से भरा है, लेकिन देखने लायक है। इतिहास की ये छोटी-छोटी बातें जगह को जीवंत बनाती हैं।

अगर आप फिल्में पसंद करते हैं, तो जान लें कि कई बॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग अलवर में हुई है। मूसी महारानी की छतरी भी कभी-कभी दिखती है। रानी मूसी की कहानी आज भी प्रेरणा देती है, हालांकि सती प्रथा गलत थी। यह स्मारक उस दौर की याद है। पर सच में यहां आकर आप समय की यात्रा कर सकते हैं।
वास्तुकला का कमाल, सेकड़ों सालों से खड़े है, अड़े हैं!
मूसी महारानी की छतरी की संरचना देखकर आप हैरान रह जाएंगे। यह दो मंजिला इमारत है। नीचे का हिस्सा लाल बलुआ पत्थर से बना है, जो मजबूत और सुंदर है। ऊपर सफेद संगमरमर है, जो चमकदार लगता है। छतरी राजपूत शैली की है, जिसमें मेहराब और स्तंभ हैं। दीवारों पर नक्काशी है, जो फूल, पत्ते और जानवर दिखाती है। छत पर चित्रकारी है, जो रामायण, महाभारत और कृष्ण लीला की कहानियां बताती है। ये चित्र रंगीन हैं और पुराने समय के हैं। सीढ़ियां चढ़कर ऊपर जाना पड़ता है। ऊपर से अलवर शहर दिखता है। संरचना इतनी मजबूत है कि 200 साल बाद भी वैसी ही है। वास्तुकारों ने इसे बहुत सोच समझकर बनाया है।

एक मजेदार बात छतरी के स्तंभों पर हाथी और घोड़े की नक्काशी है। यह राजा की शक्ति दिखाती है। मैंने जब देखा, तो लगा कि कारीगर कितने कुशल थे। आज के समय में ऐसी नक्काशी मुश्किल है। यह जगह वास्तुकला के छात्रों के लिए बेस्ट है। वे यहां आकर सीख सकते हैं। छतरी के अंदर समाधियां हैं, जो संगमरमर की हैं। यह जगह शांत है। शाम को यहां बैठकर सूरज ढलना देखें, तो मजा आ जाता है। संरचना में मिश्रित शैली है राजपूत और मुगल। मेहराब मुगल स्टाइल के हैं। अगर आप आर्किटेक्चर पसंद करते हैं, तो यहां घंटों बिता सकते हैं। हर कोने में कुछ नया दिखता है। यह जगह सिर्फ देखने की नहीं, बल्कि समझने की भी है।
अलवर पहुंचना बहुत ही आसान है, जानें कैसे?
मुसारानी छतरी पहुंचना आसान है। अलवर दिल्ली से 163 किलोमीटर दूर है। ट्रेन से अलवर जंक्शन उतरें, जो मुख्य स्टेशन है। वहां से ऑटो या टैक्सी से 5 मिनट में पहुंच जाएंगे। अगर हवाई जहाज से, तो जयपुर एयरपोर्ट सबसे करीब है, 150 किलोमीटर। वहां से बस या टैक्सी लें। सड़क से दिल्ली से NH8 पर आएं, 3-4 घंटे लगते हैं। सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च है। तब मौसम ठंडा और सुहावना होता है। गर्मी में तापमान 40 डिग्री से ऊपर होता है, तो बचें। मानसून में बारिश होती है, लेकिन जगह हरी-भरी लगती है। अगर आप जुलाई से सितंबर में आएं, तो छाता ले आएं। एक टिप सुबह जल्दी आएं, क्योंकि भीड़ कम होती है।

शाम को सूरज ढलते देखें। एंट्री फ्री है। कैमरा ले जाने के लिए पैसे लगते हैं पर मोबाइल से आप मनभर फोटो और वीडियो निकाल सकते हैं। अलवर में होटल बहुत हैं, सस्ते से महंगे तक। अगर दिन में घूमना है, तो लोकल बस इस्तेमाल करें। मेरे अनुभव से, ट्रेन से आना बेस्ट है। रास्ते में राजस्थान की सुंदरता दिखती है। वैसे हम अपनी कार से गए थे। और रास्ते भर हमने खूब मजे किए, अंताकछरी खेली और बहुत सारे गाने गाए। इसी हसी मजाक में सफर के ढाई घंटे कब निकल गए पता ही नहीं चला।
क्या-क्या घूमें और कहां समय बिताएं
मूसी महारानी की छतरी में मुख्य रूप से छतरी देखें, सीढ़ियां चढ़ें, चित्रकारी देखें। पास में सागर कुंड को देखें, जो काफी पुराना तालाब है। अलवर पैलेस और किला भी पास हैं, तो उन्हें भी घूमें। साथ ही साथ म्यूजियम भी घूमें और फोटो खींचें, लेकिन जगह साफ रखें। पानी की बोतल साथ रखना जरूरी है। स्थानीय खाना ट्राई करें, जैसे दाल बाटी, मक्खन विद पराठा। यदि आप ग्रुप में हैं, तो गाइड लें। यह जगह यकीनन आपकी यादगार जगह बन जाएगी।









