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सोरों- क्या वाक़ई धरती का केंद्र है ये मंदिरों की नगरी, मेरा सफरनामा

सोरों

सोरों जी एक तीर्थ स्थल है। ये जगह मंदिरों से घिरी हुई है। पग पग पर यहाँ मंदिरों की खूबसूरत शृंखलाएँ हैं। हर रास्ते से गुजरते हुए आपको एक न एक नया-पुराना मंदिर जरूर दिखेगा। और बल्कि यहाँ तो कुछ ऐसे पुराने मकान भी मौजूद हैं जो किसी मंदिर से कम मालूम नहीं होते। यहाँ की गलियों से गुजरते हुए आप ऐसा अनुभव करते हैं जैसे आप किसी पुरानी दुनिया में आ गए हों और जहाँ आप पौराणिकता को भी महसूस करने लग जाएं।

सोरों

यहाँ मंदिरों की बात ही कुछ और है। क्योंकि कुछ विकसित शहरों की तरह यहाँ के मंदिरों में लोग आपको केवल तस्वीरें खींचते या खिंचवाते नहीं मिलेंगे बल्कि शांति से बैठे या भजन कीर्तन में संलग्न दिखेंगे। जब मैं थोड़ी और छोटी थी और अपने गांव जाती थी, तो हमारे बाबा हमें गंगाजी की एक परिक्रमा लगवाते थे जिसमें न जाने कितने मंदिर आते थे। और ये मंदिर आज भी उतने ही जीवंत लगते हैं। कुछ मंदिरों का जीर्णोद्धार हो गया है लेकिन ज्यादातर मंदिरों में आज भी वो पारंपरिक और सांस्कृतिक झलक देखने को मिलती है जो केवल यहीं मिल सकती है।

जब भी मैं सोरों जाती हूंँ वहाँ पर मुझे लोगों से एक बात अक्सर सुनने को मिलती है कि यह नगरी नदियों की गोद में एक पावन तीर्थ स्थल होने के साथ संसार का केंद्र भी है। मान्यताओं के अनुसार पृथ्वी के प्रलय में डूबने के समय भगवान वराह ने अपनी नाक पर पृथ्वी को रखकर इसकी रक्षा की थी।

कुछ दिनों पहले जब हम यहाँ जा रहे थे तो बस में बैठे एक अनजान अंकल से मेरे पापा की बात होने लगी। वे दोनों एक दूजे को इस स्थान की पारंपरिक और सांस्कृतिक सुंदरता का बखान करने लगे। मैं उन दोनों की बातें सुन रही थी और सोच रही थी क्या वाकई गंगा की उपनदियों से घिरा ये छोटा सा गांव, इतने बड़े संसार का केंद्र हो सकता है। क्योंकि पृथ्वी तो गोल है और इसका कोई छोर नहीं।

जब हम यहाँ अपने पुराने घर पहुंचे तो हमारे घर से कुछ ही कदम की दूरी पर स्थित चारों ओर से घिरी गंगा जी की परिक्रमा के लिए गए। ऐसा मनोरम दृश्य मैंने उसे दिन से पहले कभी नहीं देखा था। गंगा आरती शुरू हुई और हम पुजारी के हाथ में जल रही, दिये की लौ को देखकर उसमें खो गए। हमें इस बात का बिल्कुल आभास नहीं था कि आगे क्या होने वाला है, लेकिन जब वह हुआ तो यह पल मेरे लिए पूरी जिंदगी की याद बन गया।

सोरों

अचानक हल्की-हल्की बूंदा-बांदी शुरू हो गई। और कब ये बूंदा-बांदी बारिश में तब्दील हो गई हमें पता भी नहीं चला। और फिर शाम का वक्त हो चला था तो पूरे क्षेत्र में रंग बिरंगी चमचमाती लाइटें जला दी गईं। बारिश की गिरती बूंदों के साथ उन चमचमाती रंग बिरंगी लाइट का जो प्रतिबिंब गंगा की धारा में दिख रहा था वह मेरे दिल को एक ऐसा सुकून दे रहा था जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी।
‎उस दिन मैंने जाना कि कभी-कभी हम बिना बोले भी बहुत सारी बातें कर जाते हैं। जो उस दिन मैंने उस नदी से और अपने दिल से की।

सोरों

अपने घर के पास वाली गंगा नदी से दूर हम एक प्रचलित नदी, कछला पहुंचे। हम खूब नहाए और हमने बहुत सारे मजे किए। लेकिन जैसे ही मैंने नाव देखी मेरा मन उसमें बैठने को कर गया। मैंने अपने पिताजी से कहा कि मुझे इस नाव में बैठना है पर उन्होंने साफ इनकार कर दिया। मन थोड़ा दुखी हुआ पर सोचा, कि चलो यह सब तो जिंदगी का हिस्सा है। लेकिन मैंने हार नहीं मानी अगर मैं उसमें बैठकर नहीं घूम पाई तब भी मैंने उसमें बैठकर एक तस्वीर जरूर ली। और वह तस्वीर इतनी सुंदर आई कि आज तक मेरे ज़हन और मेरी इंस्टाग्राम की पोस्ट में छपी हुई है

कभी कभी मेरे दिल में ख़्याल आता है..
एकान्त ही शोर से बेहतर है।
शान्त ही शोख से बेहतर है।

जब भी मैं यहाँ जाती हूँ, यह ख्याल मेरे जहन में जरूर उमड़ता है कि शांति कितनी अच्छी हो सकती है और एकांत में रहना आपके दिल को कितना सुकून दे सकता है। भले ही, आप उत्तर प्रदेश में रहते हैं या दिल्ली में या फिर भारत के किसी और कोने में। आपको एक बार इस शांति का अनुभव करने के लिए और इस पौराणिकता को महसूस करने के लिए यहाँ जरूर जाना चाहिए।

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