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सराफा बाजार इंदौर- जिसकी शान और ठाट-बाट का कोई जबाब नहीं है!

जहां रातें चमकती हों, हवा में मसालों की महक तैरती हो, और हर कदम पर ज़ायके का जादू बिखरता हो? तो आइए, हम आपको ले चलते हैं सराफा बाजार, इंदौर की रंग-बिरंगी सैर पर। वो जगह, जो दिन में ज़ेवरों की चमक और रात में खाने की रौनक से गुलज़ार होती। इस मज़ेदार यात्रा में हम सराफा की तंग गलियों, लज़ीज़ व्यंजनों, और इंदौर की धड़कन को परखेंगे। यह बाजार सिर्फ खाने का ठिकाना नहीं है बल्कि संस्कृति, उमंग और रातों की चहल-पहल का रंगीन कैनवास है।

इंदौर का सराफा बाजार दिन और रात में दो अलग-अलग रंग बिखेरता है। दिन में यह सोने-चांदी के ज़ेवरों का बाजार है, जहां चमचमाते हार, कंगन, और रत्न हर आंख को लुभाते हैं। 18वीं सदी से यह बाजार इंदौर का व्यापारिक दिल रहा है, जो राजवाड़ा पैलेस से सिर्फ 2 किलोमीटर दूर है। लेकिन जैसे ही सूरज डूबता है, सराफा का जादू बदल जाता है। रात 8 बजे के बाद ज़ेवरों की दुकानें बंद होती हैं और गलियां खाने की ठेलियों से सज जाती हैं। यह भारत का एकमात्र ऐसा बाजार है, जो दिन में ज़ेवरों की चमक और रात में ज़ायकों की महक से गुलज़ार होता है।

सराफा बाजार

रात 9:30 से तड़के 3 बजे तक सराफा की तंग गलियां खाने की खुशबू से भर जाती हैं। भुट्टे का किस, जलेबी, दही वड़ा, और मालपुआ जैसे व्यंजन हर यात्री को अपनी ओर खींचते हैं। सराफा का यह दोहरा जादू एक चटकीला रंग है, जो दिन की चमक और रात की रौनक को एक साथ पिरोता है। यहां की हवा में मसालों की महक और भीड़ की उमंग आपको इंदौर की आत्मा से जोड़ती है।

भुट्टे का किस और जलेबी, सराफा के लज़ीज़ सितारों का अनोखा अंदाज-ए-बयां
सराफा बाजार को इंदौर का “खाने का स्वर्ग” कहा जाता है और इसके पीछे कारण हैं यहां के अनोखे व्यंजन। सबसे पहले बात करते हैं भुट्टे का किस की, जो इंदौर का खास ज़ायका है। यह व्यंजन ताज़ा मकई को मसलकर दूध, घी और मसालों के साथ पकाया जाता है और ऊपर से नारियल और धनिया डालकर परोसा जाता है। इसका मीठा-तीखा स्वाद जीभ को ताज़गी देता है। सराफा की गलियों में यह हर ठेले पर मिलता है और हर कौर में इंदौर की माटी की खुशबू आती है।

सराफा बाजार

फिर आता है जलेबा, जो सराफा की विशालकाय जलेबी है। यह आम जलेबी से कई गुना बड़ी होती ह और देसी घी में तलकर चाशनी में डुबी होती है। विजय चाट हाउस की जलेबी और जोशी जी का दही वड़ा सराफा के सितारे हैं। जोशी जी का दही वड़ा अपने “फ्लाइंग” अंदाज़ के लिए मशहूर है, जहां हलवाई दही वड़े को हवा में उछालकर मसाले डालता है, जो देखने में जितना मज़ेदार है, उतना ही स्वादिष्ट भी। ये व्यंजन सराफा के वो रंग हैं, जो आपके मुंह में मिठास और मसाले का तूफान लाते हैं। यहां का हर कौर इंदौर की खाने की संस्कृति की कहानी बयां करता है।

सराफा बाजार रात में एक उत्सव बन जाता है। रात 10 से 11:30 के बीच यहां की भीड़ अपने चरम पर होती है, जब स्थानीय लोग और पर्यटक गलियों में खाने का लुत्फ़ उठाते हैं। ढोल की थाप, हलवाइयों की हंसी और खाने की महक से गलियां जीवंत हो उठती हैं। खासकर दीवाली, होली और नवरात्रि जैसे त्योहारों में सराफा की रौनक दोगुनी हो जाती है। रंग-बिरंगी लाइटें, खास पकवान और सड़क पर नाचते लोग इसे उत्सव का मेला बना देते हैं। यहां के ठेले सिर्फ़ खाना नहीं परोसते बल्कि एक अनुभव देते हैं।

सराफा बाजार

शर्मा जी की चाट पर चटपटी आलू टिक्की और भैरवनाथ मिष्ठान भंडार पर रबड़ी मालपुआ का स्वाद लेते हुए आप इंदौर की गर्माहट महसूस करेंगे। यहां की सबुदाना खिचड़ी और खोपरा पैटीज़ भी ज़रूर आज़माने लायक हैं। सराफा की रातें एक चमकता रंग हैं, जो खाने, हंसी और उमंग का तालमेल बुनती हैं। यहां की सैर रात को जागती इंदौर की आत्मा से मिलवाती है, जहां हर ठेले पर एक नई कहानी इंतज़ार करती है।

इंदौर को भारत की “खाने की राजधानी” कहा जाता है और सराफा बाजार इसकी धड़कन है। यहां के व्यंजन महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान की संस्कृतियों से प्रेरित हैं, जो इंदौर की विविधता को दर्शाते हैं। पोहा-जलेबी इंदौर का सिग्नेचर डिश है, जिसे सुबह से रात तक हर कोने में खाया जाता है। सराफा में पोहा हल्का और मसालेदार होता है, जिसे जलेबी की मिठास के साथ परोसा जाता है। नागोरी शिकंजी, एक गाढ़ा दूध और ड्राई फ्रूट्स से बना पेय, गर्मी में ताज़गी देता है।

सराफा बाजार

सराफा की खासियत इसकी साफ़-सफ़ाई भी है। कई ठेले ISO सर्टिफिकेशन के साथ काम करते हैं, जो यहां के खाने को सुरक्षित और स्वच्छ बनाता है। विजय चाट और जोशी दही वड़ा जैसे पुराने ठेले दशकों से एक ही स्वाद बरकरार रखे हुए हैं। सराफा की खाने की विरासत एक रंग-बिरंगा चित्र है, जो इंदौर की सांस्कृतिक धड़कन और स्थानीय लोगों की मेहमाननवाजी को उजागर करता है। यहां का खाना सिर्फ़ पेट नहीं बल्कि दिल भी भरता है।

सराफा बाजार की सैर को यादगार बनाने के लिए कुछ टिप्स ज़रूरी हैं। सबसे पहले, रात 10 से 11:30 के बीच पहुंचें, जब बाजार अपनी पूरी रौनक में होता है। अगर आप गाड़ी से आ रहे हैं, तो पास के डेज़िग्नेटेड पार्किंग क्षेत्र में गाड़ी पार्क करें, क्योंकि गलियां तंग हैं और वाहनों की अनुमति नहीं है। ऑटो या कैब लेना बेहतर विकल्प है। बारिश के मौसम में सावधानी बरतें, क्योंकि गलियां कीचड़ भरी हो सकती हैं। सर्दियों और अक्टूबर-मार्च के महीने सराफा की सैर के लिए सबसे अच्छे हैं, जब मौसम सुहाना होता है।

खाने के लिए छोटी-छोटी मात्रा में ऑर्डर करें, ताकि आप ज़्यादा व्यंजन आज़मा सकें। पानी पूरी में 5 तरह के पानी, गुलाब जामुन, और कुल्फी फालूदा ज़रूर आज़माएं। अगर आप ज़ेवरों की खरीदारी करना चाहते हैं, तो दिन में 11 बजे से 8 बजे के बीच आएं और भरोसेमंद दुकानों से ही खरीदें। सराफा की सैर एक रंगीन रोमांच है, जो आपको खाने, खरीदारी, और इंदौर की गलियों की गर्माहट से जोड़ता है। यहां की भीड़ में खो जाना और हर ठेले पर नया ज़ायका ढूंढना ही सराफा का असली मज़ा है।

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Hello! I Pardeep Kumar

मुख्यतः मैं एक मीडिया शिक्षक हूँ, लेकिन हमेशा कुछ नया और रचनात्मक करने की फ़िराक में रहता हूं।

लम्बे सफर पर चलते-चलते बीच राह किसी ढ़ाबे पर कड़क चाय पीने की तलब हमेशा मुझे ज़िंदा बनाये रखती
है।

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