सबरीमाला मंदिर, जो कि केरल के पठानमथिट्टा जिले के घने जंगलों और ऊंचे पर्वतों के बीच बसा है, भारत के सबसे प्रसिद्ध और रहस्यमयी धार्मिक स्थलों में गिना जाता है। इस मंदिर का संबंध भगवान अयप्पा से है, जिन्हें “धर्म शास्ता” कहा जाता है। मान्यता है कि भगवान अयप्पा का जन्म भगवान शिव और मोहिनी जो कि भगवान विष्णु का स्त्री रूप थीं के संगम से हुआ था। उनके जीवन का उद्देश्य राक्षसी महिषी का वध करना और धरती पर धर्म की रक्षा करना था।
कहा जाता है कि अपने जीवनकाल में अयप्पा ने सबरी नामक एक वृद्ध महिला को मोक्ष का वरदान दिया और वचन दिया था कि वे पर्वत की चोटी पर स्थित मंदिर में स्थापित होकर भक्तों को दर्शन देंगे। इसी कारण इस स्थान को सबरीमाला कहा जाने लगा। सबरीमाला की विशेषता यह है कि यहां केवल 41 दिन की कठिन तपस्या, व्रत और संयम के बाद ही भक्त भगवान अयप्पा के दर्शन कर सकते हैं। यह तपस्या ‘वृतम’ कहलाती है, जिसमें भक्त काले वस्त्र पहनते हैं। शराब, मांस, तामसिक भोजन और सभी प्रकार के विलास से दूर रहते हैं।

यह अनुशासन भक्त को शरीर और आत्मा दोनों से शुद्ध बनाता है। सबरीमाला मंदिर के चारों ओर के जंगल और पर्वत इसे और भी रहस्यमयी और खूबसूरत बनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां की प्राकृतिक आभा और ऊर्जा साधकों को दिव्य अनुभव प्रदान करती है। अयप्पा भगवान की यह भूमि केवल पूजा का स्थान नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा का केंद्र भी है, जो हर साल करोड़ों श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचती है।
यात्रा होगी रोमांचक, लेकिन आ सकती हैं ये कठिनाइयां
सबरीमाला मंदिर की यात्रा आसान नहीं है। यह तीर्थयात्रा भक्तों की आस्था, धैर्य और अनुशासन की परीक्षा लेती है। मंदिर समुद्र तल से लगभग 3,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और वहां तक पहुंचने के लिए भक्तों को घने जंगल, ऊबड़-खाबड़ रास्तों और खतरनाक पहाड़ी पगडंडियों से गुजरना पड़ता है। तीर्थयात्री परंपरागत रूप से ‘इरणीमलई’ और ‘निलक्कल’ जैसे रास्तों से होकर मंदिर तक पहुंचते हैं। सबसे प्रसिद्ध मार्ग ‘पंबा नदी’ से शुरू होता है। भक्त पंबा तक वाहन से पहुंचते हैं, लेकिन इसके बाद लगभग 5 किलोमीटर की कठिन चढ़ाई वाला रास्ता पैदल ही तय करना होता है। इस दौरान भक्त अपने सिर पर ‘इरुमुडी’ लेकर चलते हैं, जो कि एक कपड़े की पोटली होती है और इसमें प्रसाद और आवश्यक सामान रखा जाता है।
इस यात्रा के दौरान जंगलों में ऊंचे-ऊंचे पेड़, गहरी घाटियां, और कभी-कभी जंगली जानवरों की आवाजें भी सुनाई देती हैं, जिससे यह मार्ग और भी रोमांचक हो जाता है। भक्त रास्ते में भजन गाते हुए, “स्वामीये शरणम अयप्पा” का उद्घोष करते हुए चलते हैं। यह उद्घोषणा थकान मिटाकर मन में नई ऊर्जा भर देती है। यात्रा की कठिनाइयां ही इसे खास बनाती हैं। शरीर पसीने से भीगता है, पैरों में छाले पड़ते हैं, लेकिन भगवान अयप्पा के दर्शन की आस यह सब कष्ट हल्का कर देती है। यही कारण है कि सबरीमाला की यात्रा को केवल तीर्थयात्रा नहीं बल्कि जीवन के गहरे सत्य से जुड़ने की आध्यात्मिक साधना माना जाता है।
मंदिर की अनोखी परंपराएं और अनुष्ठान
सबरीमाला मंदिर से जुड़ी परंपराएं इसे अन्य धार्मिक स्थलों से अलग बनाती हैं। यहां पहुंचने से पहले भक्तों को 41 दिन का ‘व्रतम’ रखना होता है। इस दौरान वे साधारण जीवन जीते हैं, शाकाहार अपनाते हैं, ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं और अहंकार त्यागते हैं। यह अनुशासन हर भक्त को आध्यात्मिक शुद्धि की ओर ले जाता है।

सबरीमाला की सबसे अनोखी परंपरा है कि यहां केवल 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चे और 50 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं ही दर्शन कर सकती हैं। इसका कारण यह है कि भगवान अयप्पा को ‘नैष्ठिक ब्रह्मचारी’ माना जाता है। इस नियम पर कई बार विवाद भी हुए, लेकिन आस्था रखने वाले भक्त इसे भगवान की इच्छा मानते हैं। एक और खास परंपरा ‘इरुमुडी’ की है। भक्त अपने सिर पर इरुमुडी लेकर ही मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं। यह दो हिस्सों में बंटी होती है एक हिस्सा भगवान को अर्पित करने के लिए और दूसरा यात्री के व्यक्तिगत उपयोग के लिए। इसे बिना खोले मंदिर तक पहुंचना पड़ता है। सबरीमाला में ‘मकर ज्योति’ का भी खास महत्व है।
हर साल जनवरी में मकर संक्रांति के अवसर पर भक्तों को आकाश में एक रहस्यमयी दिव्य ज्योति दिखाई देती है। इसे भगवान अयप्पा का आशीर्वाद माना जाता है और इसे देखने के लिए लाखों लोग यहां जुटते हैं। इन परंपराओं के कारण सबरीमाला केवल पूजा का स्थान नहीं बल्कि आस्था, अनुशासन और त्याग का प्रतीक बन चुका है।
इसके रहस्य और सौंदर्य पर एक नज़र..
सबरीमाला मंदिर की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह घने जंगलों और ऊंचे पर्वतों से घिरा हुआ है। पश्चिमी घाट के बीच बसा यह मंदिर मानो प्रकृति की गोद में छिपा हुआ कोई रत्न हो। रास्ते भर ऊंचे-ऊंचे देवदार और सघन पेड़ यात्रियों को ठंडी छाया देते हैं। सुबह की धुंध और रात की ठंडी हवा इस यात्रा को और रहस्यमयी बना देती है। पंबा नदी, जो इस यात्रा का आरंभिक बिंदु है, गंगा की तरह पवित्र मानी जाती है। भक्त मानते हैं कि यहां स्नान करने से पाप धुल जाते हैं और आत्मा शुद्ध हो जाती है। पंबा नदी का ठंडा, तेज बहता पानी यात्रियों को ताजगी और नई ऊर्जा देता है।

मंदिर के चारों ओर का वातावरण न केवल धार्मिक बल्कि प्राकृतिक दृष्टि से भी अद्भुत है। यहां की जैव विविधता, दुर्लभ पौधे और पशु-पक्षी यात्रियों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। यहां की शांति और प्राकृतिक सुंदरता भक्त को एक अलग ही संसार में ले जाती है, मानो वह भगवान के साथ सीधा संवाद कर रहा हो। कहा जाता है कि सबरीमाला की इस पवित्र भूमि में एक अनोखी दिव्य शक्ति विद्यमान है। भक्त जब चढ़ाई पूरी करके मंदिर तक पहुंचते हैं, तो न केवल भगवान अयप्पा के दर्शन का सुख पाते हैं बल्कि प्रकृति की अद्भुत गोद में आत्मिक शांति का अनुभव भी करते हैं।
आस्था में विवाद या विवाद में आस्था!?
सबरीमाला मंदिर केवल आस्था और परंपरा का केंद्र ही नहीं रहा, बल्कि कई बार यह सामाजिक और कानूनी चर्चाओं का विषय भी बना। खासकर महिलाओं के प्रवेश को लेकर वर्षों तक विवाद होता रहा। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में दस से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी हटाने का फैसला सुनाया, लेकिन इसके बाद भी यह मुद्दा आस्था और कानून के बीच संतुलन का प्रतीक बना हुआ है। भले ही विवाद रहे हों, लेकिन भक्तों की आस्था कभी डगमगाई नहीं। हर साल लाखों श्रद्धालु कठिन तपस्या के बाद यहां पहुंचते हैं।

आधुनिक समय में सरकार और प्रशासन ने यहां की यात्रा को सुरक्षित और सुविधाजनक बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं। डिजिटल टिकटिंग, स्वास्थ्य सेवाएं, और सुरक्षा इंतज़ामों से तीर्थयात्रा अब और भी व्यवस्थित हो गई है। फिर भी सबरीमाला की मूल आत्मा वही है त्याग, अनुशासन और आध्यात्मिकता। यहां आकर हर व्यक्ति अपनी कमजोरियों को पीछे छोड़ता है और एक नए, पवित्र जीवन की शुरुआत करता है।
सबरीमाला केवल एक मंदिर नहीं बल्कि जीवन की एक अनोखी साधना है। यह हमें सिखाता है कि सच्चा सुख केवल भगवान के दरबार में सिर झुकाने से नहीं मिलता, बल्कि अपने भीतर अनुशासन, संयम और आस्था जगाने से मिलता है।









