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क़ुली खान का मकबरा– अंग्रेजों के ज़माने का पसंदीदा हनीमून डेस्टिनेशन

पिछले साल अक्टूबर,2023 में दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना ने महरौली पुरातत्व पार्क के अंदर स्थित छह इमारतों  का जीर्णोद्धार के बाद उद्घाटन किया। इनमें से एक था कुली खान का मकबरा। दिल्ली के दक्षिण में स्थित महरौली पुरातत्विक उद्यान, क़ुतुब मीनार के पास फैला हुआ है। जैसे ही आप इसके अंदर प्रवेश करते हैं, दाईं ओर गुलाबों का एक बेहद खूबसूरत बगीचा नजर आता है और बाईं ओर हरे-भरे विशाल वृक्षों की हरियाली फैली रहती है। यह बगीचा ब्रिटिश काल में बनाया गया था। यहाँ बेहद खूबसूरत झील नजर आती है जिसे देखते ही सचमुच दिल बहुत प्रसन्न हो जाता है। शांतचित माहौल में पक्षियों की मधुर ध्वनि और झील में पानी पर पड़ती आसमान की परछाई को देखकर एकबार तो ऐसा लगेगा कि मानो जैसे आप जन्नत में आ गये हों। इस जगह को ‘बोट हाउस’ के नाम से भी जाना जाता है।

कैफ़े स्टोन

महरौली पार्क में आगे बढ़ते हुए, लगभग चार सौ मीटर चलने के बाद और कुछ सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद सबसे पहले बेहद खूबसूरत तरीके से डिजाईन किया गया कैफ़े स्टोन दिखाई देता है. यह गोलाकार स्मारक के रूप में बना हुआ है,  जो शाम के समय रंग बिरंगी लाइट्स में और भी सुंदर दिखाई देता है। इस कैफ़े में आप दो जगहों पर बैठकर प्रकृति और इतिहास दोनों का खूब आनंद ले सकते हैं- एक कैफ़े के अंदर और दूसरा बाहर लॉन में पेड़ों के नीचे।

कहा जाता है कि इस कैफ़े को किसी जमाने में मेहमानों के लिए डाइनिंग हॉल के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था। यहां आपको हर तरह का लज़ीज़ खाना मिल जायेगा. यहाँ आप अपने दोस्तों और परिवार के साथ क्वालिटी टाइम बिता सकते हैं. दिल्ली में आपको इतनी शांत, एतिहासिक और हरियाली से संपन्न जगह शायद ही कहीं मिलें….

क़ुली ख़ाँ का मकबरा

इस कैफ़े के सामने ही आपको क़ुली ख़ाँ का मकबरा दिखाई देगा. सफेद संगमरमर से बना यह मकबरा अपनी एक अनोखी पहचान रखता है। वैसे तो देश की राजधानी दिल्ली में बहुत से मशहूर और पुराने मकबरे हैं, इनमें से हम कुछ मकबरों के नाम से वाकिफ हैं, जो वक्त से साथ-साथ पर्यटकों के पसंदीदा स्थल भी बन गए हैं। और कुछ मकबरों के बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं. क़ुली ख़ाँ का मकबरा भी कोई बहुत ज्यादा फेमस नहीं है. शायद इसीलिए यहाँ आपको पर्यटकों की भीड़ दिखाई नहीं देगी. लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि मुगलों द्वारा बनवाए गए मकबरे होते ही खास है, जिसकी खूबसूरती से कोई इंकार नहीं कर सकता। इस मकबरे का अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह के शासन काल में पुनर्निर्माण करवाया गया था। यह वो दौर था जब देश में ब्रिटिश हुकूमत थी, उस वक्त यहां के गवर्नर जनरल थॉमस मेटकॉफ थे।

दिलकुशा मतलब दिल की ख़ुशी

मकबरे की वास्तुकला

कुली खान का यह मकबरा एक ऊंचे चबूतरे पर बनाया गया है, जो बाहर से त्रिकोण के शेप में है। मकबरे के मुख्यद्वार पर फारसी में कुरान की आयतें लिखीं हुई थीं, जो वक़्त के साथ लगभग अब धूमिल हो गई हैं। चबूतरे का व्यास लगभग 32.5 मीटर है और इसमें पाँच सीढ़ियाँ शामिल हैं, हालाँकि यह स्पष्ट नहीं है कि संरचना में कौन सी सीढ़ियाँ वास्तविक समय की हैं। क्योंकि मकबरे पर बाद में निर्माण कार्य किया गया. मकबरा खुद भी अष्टकोणीय है, जिसकी चौड़ाई 14 मीटर से थोड़ी ज़्यादा है, जिसमें प्रत्येक तरफ़ लगभग 6.3 मीटर का एक केंद्रीय चौकोर कक्ष है। यह संरचना अष्टकोणीय है।

मकबरे की बाहरी दीवारों पर गचकारी प्लास्टर के डिजाइन बने हैं, जो कि फारसी आर्ट है। इसमें बारीकी से किया गया काम देखने लायक है। इसे बनाने के लिए नीले, हरे और पीले रंगों के चमकदार टाइल्स लगाए गए।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यह मकबरा मुग़ल वास्तुकला का एक बेहतरीन नमूना है।

सबसे शानदार और बारीक़ सजावट आंतरिक भाग के चार मेहराबदार प्रवेश द्वारों के आसपास की गई। प्रत्येक मेहराब के किनारे बेहद बारीक़ सुलेखित पट्टियाँ थीं, और मेहराबों और उनके आयताकार फ्रेम के बीच के रिक्त स्थान, ज्यामितीय पैटर्न या अरबी शिलालेखों वाले गोलाकार पदकों से सजाए गए थे। बाहरी आयताकार पट्टियों के चारों ओर विभिन्न रंगों में ज्यामितीय टाइलें लगी हुई थीं, दुर्भाग्य से, इनमें से अधिकांश टाइलें टूट गई हैं, और जो कुछ बची हैं वे बहुत घिस गई हैं, जिनमें से अब अधिकांश को फिर से उसी अंदाज़ में डेकोरेट किया गया है. आप जब इस मकबरे में जायेंगे तो आपको दिखेगा कि उसी जटिल कलाकारी को उम्दा तरीके से पुनर्जीवित किया गया है.

अपने अनुभव के आधार पर हम कह सकते हैं की यह स्थान अपने आप में उन लोगों के लिए सच में अद्भुत है जो इतिहास के साथ-साथ प्रकृति प्रेमी भी हैं। आपको यहाँ से क़ुतुब मीनार भी नजर आएगा। यहाँ एक बड़ा लॉन भी बना हुआ है, जहाँ आप घंटों बिना किसी शोर-शराबे के बैठ सकते हैं। बेहद इत्मिनान से हरी घास पर बैठकर खुद को कुछ समय देना ऐसा लगता है जैसे पूरी दुनिया की थकान मिट गई हो। लेखको के लिए यह जगह ज़न्नत से कम नहीं.

अगर आप इस स्थान का पूरा आनंद लेना चाहते हैं, तो हमारी सलाह होगी कि आप हमेशा आरामदायक जूते या चप्पल पहनकर आएं, ताकि बिना किसी असुविधा के यहाँ का आनंद ले सकें क्योंकि यहाँ आपको काफी पैदल चलना पड़ेगा.

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Hello! I Pardeep Kumar

मुख्यतः मैं एक मीडिया शिक्षक हूँ, लेकिन हमेशा कुछ नया और रचनात्मक करने की फ़िराक में रहता हूं।

लम्बे सफर पर चलते-चलते बीच राह किसी ढ़ाबे पर कड़क चाय पीने की तलब हमेशा मुझे ज़िंदा बनाये रखती
है।

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