मां वैष्णो देवी मंदिर
जम्मू-कश्मीर की त्रिकुटा पहाड़ियों की गोद में बसा माता वैष्णो देवी मंदिर भारत के सबसे पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक है। समुद्र तल से लगभग 5200 फीट कीऊंचाई पर स्थित यह धाम न सिर्फ श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता से भी भरा है। हर साल करीब एक करोड़ श्रद्धालु यहां माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। माता वैष्णो देवी के दरबार में कोई मूर्ति नहीं, बल्कि तीन प्राकृतिक पिंडियां हैं महालक्ष्मी, महा सरस्वती और महा काली। यही तीनों शक्तियां मिलकर माता वैष्णो देवी का स्वरूप बनाती हैं। इन पवित्र पिंडियों के दर्शन को मां का बुलावा कहा जाता है। कहते हैं कि जब माता बुलाती हैं, तभी कोई यात्री यहां पहुंचता है। यहां की यात्रा भक्ति, रोमांच और आध्यात्मिक ऊर्जा से भरी होती है। रास्ते में जय माता दी के नारे गूंजते रहते हैं और ऐसा लगता है जैसे हर कदम पर माता का आशीर्वाद साथ चल रहा हो। वैष्णो देवी मंदिर की खासियत यह है कि यहां जाने से मन को सिर्फ शांति नहीं मिलती, बल्कि आत्मा तक को एक नया विश्वास और ताकत मिलती है।

आस्था से लेकर आत्मशक्ति तक का सफर
वैष्णो देवी की यात्रा सिर्फ एक धार्मिक यात्रा मात्र नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव है। यहां आने वाला हर व्यक्ति किसी न किसी इच्छा या मन्नत के साथ आता है, लेकिन लौटते समय उसे सिर्फ एक भावना साथ मिलती है शांति। कहते हैं, मां बुलाती हैं तभी यात्रा होती है, और यही इस जगह की सबसे बड़ी पहचान है। यह यात्रा इंसान के भीतर छिपी हुई सहनशीलता, साहस और विश्वास को जगाती है। जब भक्त लगभग 13 किलोमीटर की चढ़ाई तय करते हैं, तो थकान नहीं, बस श्रद्धा महसूस होती है। रास्ते में भक्तों के चेहरे पर जो मुस्कान और विश्वास होता है, वही वैष्णो देवी की असली ताकत है। यात्रा के दौरान हर कदम पर मंदिर के भजन सुनाई देते हैं चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है… ये आवाजें किसी भी थके हुए यात्री को फिर से ऊर्जा से भर देती हैं। भक्त मानते हैं कि माता वैष्णो देवी की कृपा से जीवन की मुश्किलें हल हो जाती हैं, और मन को शांति व दिशा मिलती है। इसलिए यह यात्रा सिर्फ आस्था नहीं, बल्कि आत्मशक्ति और आत्मविश्वास का प्रतीक भी है।

यहां का इतिहास भी रोचक है
माता वैष्णो देवी का इतिहास उतना ही पुराना है जितनी यह पर्वत श्रृंखला। पुराणों के अनुसार, त्रेता युग में माता वैष्णो देवी ने मनुष्य रूप में जन्म लिया था ताकि धर्म की रक्षा की जा सके। उन्होंने तपस्या और भक्ति से शक्ति प्राप्त की और लोगों की मदद करने लगीं। किंवदंती है कि महायोगी गोरखनाथ ने अपने शिष्य भैरवनाथ को माता की परीक्षा लेने भेजा। भैरव ने माता का पीछा किया और उन्हें परेशान किया। माता ने त्रिकुटा पर्वत की गुफाओं में शरण ली, और जब भैरव ने उन्हें परेशान किया, तो उन्होंने अपने मूर्तिशक्ति रूप में उसका सिर काट दिया। भैरव की मृत्यु के बाद, माता ने उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया कि जब तक उनके दर्शन होंगे, तब तक लोग भैरव बाबा के दर्शन भी करेंगे तभी यात्रा पूरी मानी जाएगी। यह कथा भक्ति और क्षमा का अद्भुत उदाहरण है। इसीलिए आज भी भैरव बाबा मंदिर, जो माता के भवन से करीब 2 किलोमीटर ऊपर है, यात्रा का अंतिम पड़ाव माना जाता है। यहां आने वाला हर भक्त पहले माता और फिर भैरव बाबा के दर्शन कर अपनी यात्रा पूरी करता है।

कैसे पहुंचे मां वैष्णो देवी?
वैष्णो देवी मंदिर की यात्रा की शुरुआत होती है कटरा से, जो जम्मू से लगभग 50 किलोमीटर दूर है। कटरा एक छोटा लेकिन बेहद सक्रिय शहर है, जहां हर दिन हजारों श्रद्धालु आते हैं। कटरा से मंदिर तक की दूरी करीब 13 किलोमीटर है, जो पैदल, घोड़े, पालकी या हेलीकॉप्टर से तय की जा सकती है। रास्ता बहुत ही व्यवस्थित और सुरक्षित है हर कुछ किलोमीटर पर रुकने, खाने और आराम की व्यवस्था है। कटरा से बाण गंगा, अर्ध कुमारी, हिम कोटी, और संज़ीछत पड़ावों से गुजरते हुए भक्त माता के भवन तक पहुंचते हैं। अर्ध कुमारी गुफा वह स्थान है जहां माता ने नौ महीने ध्यान लगाया था, और यह जगह यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव मानी जाती है। जो लोग समय या शारीरिक परेशानी के कारण पैदल नहीं चल सकते, उनके लिए हेलीकॉप्टर सेवा भी उपलब्ध है, जो कटरा से संजीछत तक सिर्फ 8 मिनट में पहुंचाती है। वहां से माता का भवन मात्र 2 किलोमीटर दूर है। रेल और हवाई यात्रा की बात करें तो जम्मू तवी रेलवे स्टेशन और जम्मू एयरपोर्ट देश के लगभग सभी बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है। वहां से टैक्सी या बस से कटरा पहुंचना बहुत आसान है।

कहां रुकें और क्या खाएं?
कटरा में रुकने की सुविधा हर वर्ग के लोगों के लिए मौजूद है। श्री माता वैष्णो देवीश्राइन बोर्ड के गेस्टहाउस से लेकर निजी होटल, धर्मशालाएं और होमस्टे सब आसानी से मिल जाते हैं। मंदिर परिसर के पास भी कई विश्राम गृह बने हैं, जहां रात में रुकने और खाने की सुविधा है। भोजन की बात करें तो यहां सात्त्विक खाना ही मिलता है। प्याज-लहसुन रहित थाली, आलू-सब्ज़ी, कढ़ी-चावल, राजमा, पूरी और हलवा सबसे लोकप्रिय हैं। यात्रा मार्ग में लंगर सेवा भी कई जगह मिलती है, जहां भक्तों को मुफ्त भोजन कराया जाता है। कटरा के मुख्य बाजार में आपको जम्मू की प्रसिद्ध कचालू चाट, कलाड़ी और मीठे पेड़े जरूर चखने चाहिए। ठंड के मौसम में मिलने वाली केसर वाली कहवा चाय यात्रा की थकान मिटा देती है। यहां का माहौल, लोग और भोजन सब मिलकर आपको ऐसा महसूस कराते हैं जैसे आप किसी आध्यात्मिक मेले में हैं।

आसपास घूमने के लिए अन्य नजारे!
वैष्णो देवी की यात्रा के बाद भी जम्मू और कटरा में देखने के लिए बहुत कुछ है। सबसे पहले, माता के दर्शन के बाद भैरव बाबा मंदिर जरूर जाएं। पहाड़ी के ऊपरी हिस्से पर बना यह मंदिर माता के दर्शन को पूर्ण बनाता है। कटरा से लगभग 30 किलोमीटर दूर शिव खोरी गुफा है, जहां प्राकृतिक शिवलिंग स्वयंभू रूप में विद्यमान है। यह स्थान शिव भक्तों के लिए बेहद खास है। इसके अलावा जम्मू शहर में रघुनाथमंदिर, रणबीरेश्वर मंदिर, बाहु किला, और मंसार झील जैसे स्थल बेहद लोकप्रिय हैं। अगर आप प्रकृति प्रेमी हैं, तो पटनीटॉप हिल स्टेशन का सफर जरूर जोड़ें। यहां बर्फ से ढके पहाड़ और देवदार के पेड़ हर मौसम में सुंदर लगते हैं। जो यात्री थोड़ा लंबा टूर प्लान कर रहे हैं, वे अमरनाथ, शिवखोरी, या सुदमहादेव जैसे स्थानों को अपनी यात्रा में शामिल कर सकते हैं।

मां वैष्णो देवी यात्रा का अनुभव
वैष्णो देवी की यात्रा में कुछ जादू है। जैसे-जैसे आप ऊपर चढ़ते जाते हैं, शरीर की थकान भक्ति में बदल जाती है। मंदिर के दरबार में पहुंचकर जब घंटियों की आवाज़ और जय माता दी की गूंज एक साथ सुनाई देती है, तो आंखें खुद-ब-खुद नम हो जाती हैं। यह यात्रा आपको सिखाती है कि आस्था किसी डर से नहीं, बल्कि प्रेम सेजुड़ी होती है। जो लोग यहां आते हैं, वे अपने अंदर नई ऊर्जा लेकर लौटते हैं। रात में जब पहाड़ी पर जगमगाती रोशनी दिखती है, तो ऐसा लगता है जैसे आकाश खुद नीचे उतर आया हो। वैष्णो देवी का धाम सिर्फ पूजा की जगह नहीं, बल्कि जीवन की प्रेरणा है यह बताता है कि मुश्किल रास्ते भी आसान हो जाते हैं जब दिल में विश्वास हो।(भक्त मानते हैं कि माता वैष्णो देवी की कृपा से जीवन की मुश्किलें हल हो जाती हैं,)

फाइव कलर्स ऑफ ट्रैवल की तरफ़ से 5 यात्रा सुझाव
1. सही मौसम चुनें- मार्च से जून या सितंबर से नवंबर यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय है।
2. सुबह जल्दी चढ़ाई शुरू करें- ठंडक और ताजगी यात्रा को आसान बनाते हैं।
3. हेलीकॉप्टर टिकट पहले से बुक करें – खासकर छुट्टियों में सीटें जल्दी भर जाती हैं।
4. कम सामान रखें, ज़रूरी चीज़ें साथ लें – पानी, टॉर्च, जैकेट और दवाई जरूर रखें।
5. भैरव बाबा के दर्शन करना न भूलें – माता के दर्शन तभी पूर्ण माने जाते हैं।








