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तुगलकाबाद फोर्ट: एक श्राप, एक ख़्वाब और नियति की कहानी

दिल्ली में स्थित तुगलकाबाद का किला कुतुब मीनार से महज 8 किलोमीटर की दूरी पर है, 1321 में यह किला ग़ियासुद्दीन तुगलक ने बनाया था, जो तुगलक वंश का संस्थापक था। यह फोर्ट कभी दिल्ली के तीसरे शहर का हिस्सा था, लेकिन 1327 में इसे छोड़ दिया गया। बताया जाता है कि यह किला 4 साल में बना था. आज भी इसका नाम आस-पास के रेजिडेंशियल और कमर्शियल क्षेत्रों के साथ जुड़ा हुआ है, जिसमें तुगलकाबाद इंस्टीट्यूशनल एरिया भी शामिल है।आज यह किला एक खंडहर के रूप में है, लेकिन फिर भी इसकी अच्छे से देख रेख करने की वजह से यहाँ आना पर्यटक काफी पसंद करते हैं। पर दूर-दूर तक फैले इन खँडहरों और ऊँची-ऊँची दीवारों के कारण आज भी इस किले की भव्यता और विशालता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है.

ग़ियासुद्दीन तुगलक

ग़ियासुद्दीन तुगलक (या ग़ाज़ी मलिक) ने तुगलक वंश की शुरुआत की और 1320 से 1325 तक दिल्ली सल्तनत पर राज किया। उन्होंने दिल्ली के साउथ में तुगलकाबाद फोर्ट बनाया था ताकि मंगोल आक्रमणकारियों से अपने राज्य को सुरक्षित कर सकें।

फोर्ट बनाने का उद्देश्य

13वीं शताब्दी के दौरान मंगोल आक्रमण काफी आम बात थी। ग़ियासुद्दीन तुगलक ने एक ऐसा किला बनाने का निर्णय लिया जो सल्तनत ऑफ़ दिल्ली को प्रबल रक्षा दे सके। इस किले के अंदर बुलंद दीवारें, बुर्ज और बस्तियों का निर्माण किया गया जो दुश्मनों के आक्रमण को रोकने के लिए थे। किले के अंदर रेजिडेंशियल और पैलेस एरिया भी बनाए गए, जहां राज-परिवार रह सके। एक बाँध भी बनवाया गया जो एक पास की नदी से पानी लेकर एक तालाब का काम करता था, जो किले की रक्षा के लिए भी उपयोगी था।(Tughlaqabad Fort)

बेहतरीन वास्तुकला

तुगलकाबाद फोर्ट अपने विशाल पत्थर की किलेबंदी के लिए मशहूर है जो पूरी सिटी को घेरती है। दीवारों की ऊंचाई 10 से 15 मीटर तक है, और 6.4 किमी की परिधि में यह किला फैला हुआ है।

Tughlaqabad Fort

पहले 52 गेट्स इस किले में होते थे, लेकिन आज केवल 13 बचे हैं। इस किले के अंदर कई रेनवॉटर टैंक भी थे। किले का लेआउट एक हाफ-हैक्सागन आकार में है, और यह तीन मुख्य सेक्शन में विभाजित है:

1. सिटी एरिया:इसमें रेक्टैंगुलर ग्रिड में घर बने थे जो किले के गेट्स के बीच स्थित हैं।

Tughlaqabad Fort
Tughlaqabad Fort

2. सिटाडेल: यहां एक ऊँचा टॉवर है जिसे ‘बिजाई मंडल’ कहते हैं, और यहां कुछ हॉल्स और एक अंडरग्राउंड पैसेज भी बचा है।

Tughlaqabad Fort

3. पैलेस एरिया: यहां राज-परिवार के रहने के लिए महल बनाया गया था।

Tughlaqabad Fort

लेकिन, जो चीज़ इस किले को और भी यूनिक बनाती है, वो है इस जगह का प्राकृतिक वातावरण। ठंडी-ठंडी हवाएं इस किले के अंदर चलती रहती हैं जो इस जगह को एक्सप्लोर करने का एक अल्टीमेट एक्सपीरियंस बनाती हैं। जब आप किले के ऊपर पहुंचते हो, तो हवा का एक अलग ही रूप महसूस होता है जो आपको पूरी सिटी का नज़ारा करवाता है।

Tughlaqabad Fort
Tughlaqabad Fort
Tughlaqabad Fort

नीचे एक अमीना बाज़ार भी बनाया गया था, जो वहां के सैनिकों के लिए था। यहां एक *फांसी देने की जगह, एक मस्जिद, एक मक़बरा, और एक जगह है जहां राजा बैठा करते थे। ये सब चीज़ें इस किले को ऐतिहासिक महत्व के साथ स्पिरिचुअल और रॉयल एसेंस भी देती हैं

Tughlaqabad Fort

ग़ियासुद्दीन तुगलक का मक़बरा: लाल दीवारें और खूबसूरत डिटेलिंग

Tughlaqabad Fort
Tughlaqabad Fort

तुगलकाबाद फोर्ट के सामने जो ग़ियासुद्दीन तुगलक का मक़बरा है, वो अपने आप में एक अद्भुत कला का नमूना है। बड़ी लाल दीवारों से घिरा हुआ यह मक़बरा अपनी डिटेलिंग के लिए प्रसिद्ध है। इस मक़बरे के अंदर की छोटी-छोटी नक्काशी और पैटर्न्स काफी इंट्रीकेटली बनाए गए हैं। इस लाल सैंडस्टोन और मार्बल से बने मक़बरे को देखने पर एक शानदार आर्किटेक्चरल क्रिएटिविटी का एहसास होता है।

Tughlaqabad Fort

मक़बरे के अंदर घुसने पर आप एक स्पिरिचुअल शांति महसूस करते हो। इसके अंदर का काम इतना डेलिकेट है कि छोटी से छोटी चीज़ पर भी आपको मेहनत दिखाई देगी। इतनी फाइनली क्राफ़्टेड जाली वर्क और जियोमेट्रिकल पैटर्न्स आपको पुरानी दिल्ली की क्राफ्ट्समैनशिप की याद दिलाते हैं।

Tughlaqabad Fort

मक़बरे तक पहुंचने के लिए एक *एलिवेटेड कॉज़वे* है जो किले से कनेक्टेड है, और यह स्ट्रक्चर अपने आप में एक आर्किटेक्चरल अचीवमेंट है। मक़बरा सिर्फ ग़ियासुद्दीन की याद नहीं है, बल्कि तुगलक वंश के ग्रैंड्योर और उस पीरियड की कला और सामाजिक सोच का एक जीवंत उदाहरण है।

श्राप की कहानी

इस किले के बारे में एक कहानी मशहूर हैं कि जब ग़ियासुद्दीन तुगलक ने तुगलकाबाद किले का निर्माण करना शुरू किया, तब हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया अपनी ख़ानक़ाह में एक बाओली (स्टेपवेल) बनवा रहे थे। ग़ियासुद्दीन ने उनके काम को रोकने के लिए उन्हें तेल की सप्लाई बंद कर दी, जिससे उनका कार्य रुक गया। निज़ामुद्दीन औलिया ने गुस्से में तुगलकाबाद को श्राप दिया: “या तो यह जगह उजड़ जाएगी या इस पर गुज्जर बसेंगे।” कहते हैं कि जब ग़ियासुद्दीन बंगाल से जीत कर लौट रहे थे, तब उसकी मौत एक पविलियन गिरने से हो गई, जो उनके सम्मान में बनाया गया था। हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया ने कहा था, “हुनूज़ दिल्ली दूर अस्त,” यानी “दिल्ली अभी दूर है,” और यह श्राप सच हो गया।

हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया

हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया एक बड़े सूफ़ी संत थे और उन्होंने सूफ़ी चिश्ती सिलसिले को प्रचलित किया। उन्होंने अपनी ज़िंदगी में सादगी और आध्यात्मिकता का पालन किया। उनके शिष्यों में प्रसिद्ध कवि *अमीर ख़ुसरो* भी थे। निज़ामुद्दीन का आश्रम एक आध्यात्मिक केंद्र था जहां हर जाति और धर्म के लोग आते थे।

तुगलकाबाद फोर्ट मीडियवल इंडिया के आर्किटेक्चर का एक शानदार उदाहरण है और साथ ही यह एक श्रापित इतिहास को भी दर्शाता है। यह किला सिर्फ एक रक्षा का माध्यम नहीं था, बल्कि एक राजा के सपनों का किला था जो एक आध्यात्मिक और आर्किटेक्चरल लेगेसी को दर्शाता है। ठंडी हवाएं, ऊँची दीवारें, और इंट्रीकेट डिटेलिंग इस जगह को घूमने का एक परफेक्ट स्पॉट बनाते हैं। इस किले की कहानी हमारे इतिहास और सांस्कृतिक विरासत की एक अजीब और शानदार दास्तां है।

Research by-Rakhi Mishra/Edited by- Pardeep Kumar

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