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Murthal ke Paranthe

Murthal ke Paranthe: मुरथल के परांठे वाले ढाबे -जहाँ रोजाना लगभग 40-50 हजार से अधिक लोग खाने का लुत्फ उठाते हैं

by Pardeep Kumar

अगर आप परांठे खाने के शौक़ीन हैं तो आज हम आपको अपने इस ब्लॉग में रू-ब-रू करवाएंगे तकरीबन देश भर में प्रसिद्ध मुरथल के मशहूर परांठों के स्वाद से। वैसे तो मुरथल के परांठे पूरे देश में फेमस हैं लेकिन फिर भी दिल्ली से लगते सात राज्यों में अपने पराठों के स्वाद के लिए प्रसिद्ध मुरथल के ढाबों का कोई सानी नहीं।

पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, राजस्थान, उत्तराखंड, दिल्ली और उत्तर प्रदेश से भी लोग यहाँ आकर परांठों का लुत्फ़ उठाते हैं। खासकर शनिवार और रविवार को यहां दिल्ली-एनसीआर से परांठों के शौकीनों की भारी भीड़ उमड़ती है। अगर आप दिल्ली से चंडीगढ़ जा रहे हैं तो एन एच 1 पर सोनीपत के नजदीक और दिल्ली से तकरीबन घंटे भर के सफर पर एक छोटे से कस्बे मुरथल में यह ढ़ाबे मौजूद हैं। (Murthal ke Paranthe)

किसान आंदोलन और दिल्ली से मुरथल का सफर

काफी दिनों से मुरथल का प्लान बनाया जा रहा था। क्योंकि आजकल किसान आंदोलन के कारण दिल्ली से मुरथल पहुंचना थोड़ा मुश्किल हो गया था इसलिए कई बार प्रोग्राम बना और बिगड़ भी गया। लेकिन इस बार वीकेंड पर हमने ठान लिया था कि कैसे भी करके मुरथल के परांठे खाने ही हैं। सो दिल्ली से हमने औचंदी बॉर्डर का रास्ता लिया और अंदर अलग-अलग गांव से होते हुए सोनीपत शहर से गुजरते हुए तकरीबन दोपहर के 3 बजे मुरथल पहुंचे।

और जब आप इस तरह का सफर तय करते हैं तब भूख कुछ ज्यादा ही लग जाती है और मैं हमेशा कहता हूँ खाने का असली मजा तब है जब आपको जोर की भूख लगी हो। और ऊपर से मुरथल के विख्यात परांठे हो वो भी ताजा मक्खन के साथ तो बस समझ लीजिये आपका दिन बन गया।
वैसे तो मेरा सारा बचपन सोनीपत शहर में ही गुजरा है। 12वीं कक्षा तक मेरी स्कूली एजुकेशन इसी शहर में हुयी और इसी कारण जब भी मेरा और मेरे कुछ दोस्तों का मन करता तब हम सोनीपत से मुरथल आ जाते थे परांठे खाने। सोनीपत से मुरथल यही 6-7 किलोमीटर है और आजकल तो ऐसा लगता है कि मुरथल सोनीपत शहर में ही मिल गया है। वो नब्बें का दशक था। यही 1997-98 का समय।

स्कूल टाइम की यादें और मुरथल के परांठे

मुझे अच्छे से याद है तब मुरथल बस स्टॉप से पानीपत की तरफ थोड़ा आगे निकल कर गुलशन का ढ़ाबा ही फेमस हुआ करता था और उसके आसपास एक दो ढ़ाबे और थे। तब परांठे का साइज आज के परांठों के साइज से बड़ा होता था। तब मुरथल के ढाबों पर सिर्फ दाल मखनी, परांठे, खूब सारा मक्खन और मीठे में खीर ही मिलती थी लेकिन आज यहां पर हर प्रकार के शाकाहारी स्वादिष्ट व्यंजन मिलते हैं। नब्बे के दशक में हम देखते थे कि पहले सिर्फ ट्रक चालक यहां से गुजरते हुए रुककर खाना खाते थे, या फिर सोनीपत के युवाओं की टोलियां जिनका कभी-कभार बाहर खाने का मन करता। लेकिन आज यहाँ का मंज़र बिलकुल बदल चुका है, अब आपको इन फुली एयर कंडीशंड ढाबों की पार्किंग में सैंकड़ों लक्ज़री कार दिखाई देंगी और कई बार तो भीड़ इतनी बढ़ जाती है कि सैंकड़ों गाड़ियों की पार्किंग की जगह होने के बाद भी यहाँ आपको अपनी कार पार्क करने की जगह नहीं मिलती। Murthal Ke Paranthe

आजकल लोग यहां अपने परिवार के साथ पार्टी व अन्य पारिवारिक कार्यक्रम आयोजित करने आते हैं, मैंने आपको पहले ही बताया कि दिल्ली से महज घंटा भर की ड्राइव कर यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। यही बड़ी वजह है कि दिल्ली और एनसीआर के लोग खासकर युवा यहाँ अक्सर देर रात या वीकेंड पर पराठे खाने के लिए आते हैं। बताते हैं मुरथल के ढाबों की शुरुआत 1950-60 के दशक में हुई थी। बेहद परम्परागत ढाबों के तौर पर शुरू हुए यह ढाबे आज अपनी अलग ही क्रेज बना चुके हैं। एक अनुमान के अनुसार रोजाना लगभग 40-50 हजार से अधिक लोग यहां आकर खाने का लुत्फ उठाते हैं। यह वास्तव में एक अद्भुत संख्या है। वैसे तो यहाँ जितने भी ढाबे हैं चाहे काफी पुराना पहलवान ढाबा हो, आहूजा हो या फिर झिलमिल उन सभी में परांठों का स्वाद लाजवाब है लेकिन फिर भी अमरीक सुखदेव का पिछले एक दशक से यहाँ एक तरफा राज है। शायद यही वजह है अगर आप वीकेंड पर यहाँ आएंगे तो हो सकता है लगभग 20-25 मिनट आपको बैठने के लिए सीट भी न मिले। लेकिन कहते हैं न कि इंतज़ार का फल मीठा होता है, बस यहाँ इंतज़ार का फल बेहद स्वादिष्ट मिलेगा।

सुपर स्टार धर्मेंद्र का गरम-धरम ढाबा

अमरीक सुखदेव के बिलकुल साथ लगता और कुछ साल पहले बना गरम-धरम ढ़ाबा भी है, जोकि अपनी बनावट के कारण लोगों में काफी पॉपुलर भी हो रहा है। इस ढ़ाबे की पूरी थीम बॉलीवुड सुपरस्टार धर्मेंद्र की फिल्मों पर बेस्ड है। पूरे ढ़ाबे को धर्मेंद्र की फिल्मों के अनुसार डिज़ाइन किया गया है।

ढ़ाबे के बाहर मेन गेट पर आपको शोले फिल्म की मशहूर पानी की टंकी दिखाई देगी जिस पर चढ़कर धर्मेंद्र फिल्म की नायिका हेमा मालिनी को परपोज करता है। अंदर ढ़ाबे में आप ऑटो रिक्शा, ट्रक और धर्मेंद्र की फिल्मों के पोस्टरों के बीच में इस ढाबे पर बनने वाले फेमस फ्रूट परांठे का स्वाद भी ले सकते हैं।

हम अमरीक सुखदेव के परांठे कई बार खा चुके थे इसलिए इस बार हमने गरम-धरम ढ़ाबे के परांठे खाने का निर्णय लिया। एंट्री गेट पर ही गार्ड ने हैंड सेनिटाइज करवाए। अंदर वातानुकूलित हॉल में एक अच्छा-सा कार्नर देखकर हमने आसन जमा लिया। भूख लगी थी इसलिए तुरंत चाय और मिक्स वेज परांठे आर्डर किये तकरीबन 10 मिनट के इंतज़ार के बाद परांठे की थाली आ चुकी थी। कड़क चाय, दो-तीन तरह का अचार, हरी मिर्च और ताजे मक्खन की भरी कटोरी और गरमा-गर्म परांठे।

बिना तले स्वादिष्ट परांठे

अगले कुछ लम्हें सब कुछ भूल कर हमने सिर्फ परांठों पर ही फोकस किया। स्वादिष्ट और एकदम फ्रेश। पराठे खाते वक्त हमने देखा कि यहाँ के परांठों की फिलिंग में ज्यादा चीजें नहीं होती हैं सिर्फ आलू, प्याज हरा धनिया पत्ती और नमक वगैरह भरकर इसे तैयार किया जाता है खास बात यह की इन पराठों को तवे पर घी में तलकर नहीं बल्कि तंदूर में सेंका जाता है। और बिना घी में तले इन तंदूरी परांठों पर ताजा मक्खन, सच में अद्भुत।

रोजाना हज़ारों की संख्या में खाने के शौक़ीन लोग यूँ ही यहाँ नहीं आते। परांठे खाने के बाद हमने वहां देखभाल कर रहे मैनेजर से थोड़ी बातचीत की तो उसने बड़े गर्व से बताया कि चाहे एक दिन में कितने ही लोग यहाँ खाना खाने आ जाएँ लेकिन वो क्वालिटी के मामले में कभी समझौता नहीं करते। मुझे लगा शायद यही वो वजह है जब किसान आंदोलन के कारण पिछले कई महीनों से दिल्ली के तमाम बॉर्डर बंद हैं फिर भी यहाँ हज़ारों लोग वीकेंड पर परांठे खाने आते हैं। सब स्वाद की माया है।

मुरथल में जिसने बेचा चिकन-कबाब वो हो गया बर्बाद

आपको यहाँ की एक और बात बता दूँ देश भर में पराठों के स्वाद के लिए मशहूर मुरथल के ढाबों पर दूर-दूर तक आपको सिर्फ शाकाहारी व्यंजन ही मिलेंगे। यहाँ के किसी भी ढाबे पर आपको मांसाहारी भोजन नहीं मिलेगा। फिर चाहे वो कोई ढ़ाबा हो, होटल हो या कोई बड़ा रेस्टोरेंट। इसके पीछे की जो कहानी है वो दरअसल आस्था और धार्मिक भावना से जुड़ी है। बताते हैं पहले मुरथल में सिर्फ दो ही ढाबे होते थे। इस इलाके के प्रसिद्ध बाबा कलीनाथ ने दोनों ढाबों को कभी भी भोजन में मांसाहार न परोसने के लिए कहा था। आज भी यहाँ के अधिकतर ढाबे संचालकों का मानना है कि बाबा के आदेश के विपरीत जो भी यहाँ मांसाहार बेचेगा वह बर्बाद हो जाएगा। ये शायद उसी बाबा कलीनाथ की आस्था ही है कि यहाँ के तमाम ढाबा संचालक सिर्फ शाकाहारी खाना बनाते हैं। यहीं के लोग बताते हैं कि दो-तीन बड़े ढाबा संचालकों ने यहाँ नॉन वेज खाना परोसना शुरू किया था। इनमें से एक तो महीने भर में ही बंद हो गया और बाकियों को भी बर्बादी की हद तक बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। इसलिए बाबा के श्राप के कारण अब यहाँ कोई नॉन वेज ढाबा चलाने की हिम्मत भी नहीं करता। इन कहानियों में कितनी सच्चाई है वो तो यहाँ के लोग और ढाबा संचालक बेहतर जानते हैं। लेकिन हमें इस पूरे इलाके में एक भी नॉन वेज ढाबा दिखाई नहीं दिया। साथ ही यहाँ ढाबों पर काम करने वाले कर्मचारियों से जब इस बाबत बात की तो उन्होंने पूरी सिद्दत से इन कहानियों पर मुहर लगा दी।

पिकनिक, आउटिंग या मस्ती करने के लिए मुरथल के ढाबें एक दम परफेक्ट जगह

बाकी आपको यहाँ लगभग सभी ढ़ाबों में बाहर की और काफी सारी दुकानें दिखाई देंगी जिन पर आप खाने पीने की चीजों के अलावा अचार, मुरब्बें , कैंडी, अलग अलग तरह के चूरन, वुडेन क्राफ्ट का सामान और अन्य जरुरत की चीजें आसानी से खरीद सकते हैं। अगर आप अपने परिवार और बच्चों के साथ पिकनिक या आउटिंग के लिए निकले हो तो वहां हर तरह के झूलें और एडवेंचर जोन भी आपको मिल जायेगा। कहने के लिए यह भले ही ढ़ाबे हैं लेकिन किसी बेहतरीन स्तरीय आधुनिक रेस्टोरेंट से कम नहीं हैं। खाने पीने और खूब सारी मस्ती करने के लिए मुरथल के ढाबें एक दम परफेक्ट जगह है। Murthal ke Paranthe

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Hello! I Pardeep Kumar

मुख्यतः मैं एक मीडिया शिक्षक हूँ, लेकिन हमेशा कुछ नया और रचनात्मक करने की फ़िराक में रहता हूं।

लम्बे सफर पर चलते-चलते बीच राह किसी ढ़ाबे पर कड़क चाय पीने की तलब हमेशा मुझे ज़िंदा बनाये रखती
है।

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