राजस्थान की भूमि हमेशा से रंगों, संस्कृति और परंपराओं की दहलीज रही है। बूंदी, हाड़ौती क्षेत्र का एक छोटा सा शहर, अपनी नीलगिरी पहाड़ियों, प्राचीन किलों और झीलों के लिए पर्यटकों का मन मोह लेता है। यहां का बूंदी फेस्टिवल, जिसे बूंदी उत्सव भी कहते हैं, इस शहर की विरासत को फूलों की तरह खिलना सिखाता है। आइए जानते हैं, आज के इस फाइव कलर्स ऑफ ट्रैवल की नई पेशकश में नए ब्लॉग के साथ।
आओ जानें इतिहास!
बात तीस साल पुरानी है। बूंदी फेस्टिवल की जड़ें 1995 में पड़ चुकी थीं। तत्कालीन कलेक्टर माधुकर गुप्ता ने इसकी योजना बनाई और 1996 में पहला उत्सव हुआ इन्ही की आगुआई में मनाया गया। कलेक्टर माधुकर गुप्ता का एक ही मकसद था स्थानीय लोगों को अपनी संस्कृति से जोड़ना और उनके द्वारा यह बखूबी किया गया। तब से यह फेस्टिवल राजस्थान के सांस्कृतिक कैलेंडर का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है। बूंदी, जिसे छोटी काशी भी कहते हैं, अपनी हिंदू मंदिरों और राजपूत वास्तुकला के लिए मशहूर है।

यहां का गढ़ पैलेस, तारागढ़ किला और नवल सागर झील फेस्टिवल को और मनमोहक बना देते हैं। एक शहर जहां प्राचीन किले पहाड़ियों पर विराजमान हैं, और नीचे चंबल नदी बह रही है। फेस्टिवल के दौरान यह दृश्य सबको अपनी और आकर्षित करता है। स्थानीय लोग और पर्यटक रंग-बिरंगे परिधानों में सजते-संवरते हैं। महिलाएं घाघरा-चोली में, और पुरुष पगड़ी बांधे नजर आते हैं। यह उत्सव सिर्फ जश्न नहीं, बल्कि बूंदी की राजसी कहानी का अद्भुत अध्याय है। प्राचीन समय में बूंदी मेवाड़ राजवंश का हिस्सा था। यहां के राजा कुश्ती, संगीत और कला के शौकीन थे। और यह फेस्टिवल इन्हीं परंपराओं को पुनर्जीवित करता है।
यदि जाना चाहें तो, बूंदी ज्यादा दूर नहीं
वैसे बूंदी ज्यादा दूर नहीं है यदि आप जाना चाहें तो। बूंदी जयपुर से मात्र 210 किलोमीटर दूर है, लेकिन इसका आकर्षण इतना जबरदस्त है की शब्दों में बयां करना मुश्किल ही मानिए। पहली बात तो यही है की यहां आने वाले पर्यटक इतिहास की हसीन गलियों में खो जाते हैं। फेस्टिवल के दौरान शहर सुकून से भर जाता है, क्योंकि भीड़ के बीच भी शांति बनी रहती है। यह उत्सव हमें सिखाता है कि परंपरा और आधुनिकता का मेल कितना दिलेर हो सकता है। दरअसल, बूंदी फेस्टिवल की हसीन शुरुआत हमें पुराने राजसी दिनों में ले जाती है। यह इतिहास का ऐसा सफर है जो पाठकों को रोमांचित कर देता है। यहां की हर गली, हर कोना लयबद्ध कहानी कहता है। अगर आप राजस्थान घूमने का प्लान बना रहे हैं, तो बूंदी फेस्टिवल को मिस न करें। यह एक ऐसा बाजार है, जहां का इत्र आपको अपने बस में कर लेता है। यहां का खूबसूरत नजारा आपको बहुत कुछ सीख दे जाएगा।
बूंदी फेस्टिवल की शोभायात्रा का जोश, कर देगा मदहोश
इस फेस्टिवल की शुरुआत उत्साह के साथ होती है। पहला दिन ही शोभायात्रा से चिह्नित होता है। सुबह होते ही शहर की सड़कें रंग-बिरंगी सजावट से जगमगा उठती हैं। ऊंट, घोड़े और हाथी सजे धजे बाजारों में चलते हैं, तो ऐसा लगता है की जगन्नाथ की रथ यात्रा हो। इन जानवरों पर रंगीन कपड़े, घुंघरू और आभूषण चढ़े होते हैं। जो खूबसूरती की चादर ओढ़े हुए होते हैं। स्थानीय कलाकार पारंपरिक वेशभूषा में लोक नृत्य करते हैं, ढोल नगाड़े बजाते हैं, जिनकी धुन पर लोग थिरकने से बच नहीं सकते हैं। वास्तव में यह दृश्य मनमोहक होता है। यह शोभायात्रा पुलिस परेड ग्राउंड पर समाप्त होती है। और उत्सव में उपस्थित मुख्य अतिथि इसका उद्घाटन करता है। कलाकार लोक संगीत तो गाते ही हैं। साथ ही साथ ढोल-नगाड़ों की थाप पर पैर खुद-ब-खुद थिरकने लगते हैं।

महिलाओं के तो कहने ही क्या वे घूमर नृत्य में खो जाती हैं। पुरुष कई तरह के करतब दिखाते हैं। यह जोश फेस्टिवल को उल्लास भरी ऊर्जा देता है। पर्यटक इस दृश्य को देखकर सपनों में और अपनों में खो जाते हैं। बूंदी में फेस्टिवल के पहले दिन कला और शिल्प मेला भी लगता है। सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल के मैदान पर स्टॉल सजते हैं। जहां राजस्थानी हस्तशिल्प, कपड़े, आभूषण और मिट्टी के बर्तन बिकते हैं। इन वस्तुओं में कारीगर अपने हाथों का कमाल दिखाते हैं। शाम को समां सजती है और सांस्कृतिक कार्यक्रम शुरू होते हैं। क्लासिकल संगीत और नृत्य की प्रस्तुतियां होती हैं, जो सब का ध्यान खींचती हैं। स्थानीय कलाकारों के अलावा देश भर से मेहमान आते हैं। यह शाम हसीन यादों से भर और सज जाती है। बूंदी की गलियां जोश से गूंज उठती हैं। यह मानिए की शोभायात्रा फेस्टिवल का प्रवेश द्वार है।
बूंदी फेस्टिवल सांस्कृतिक रंगों की जन्नत कैसे है?
बात करें दूसरे दिन की तो इस दिन कार्यक्रम में चार चांद लग जाते हैं। क्योंकि लोक नृत्य और संगीत की प्रस्तुतियां शहर को बेहद हसीन बना देती हैं। घूमर, कालबेलिया और गैर नृत्य देखने लायक होते हैं। महिलाएं रंगीन घाघरों में घूमती हैं, और पुरुष पगड़ी बांधे तालियां बजाते हैं। फेस्टिवल में शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम भी होते हैं। जिसमें सितार, तबला और वायलिन की धुनें मन को आनंद से भर देती हैं। कलाकार राजस्थानी लोकगीत गाते हैं, जो प्रेम, वीरता और प्रकृति की कहानियां कहते हैं। दर्शकों के तो कहने ही अलग हैं, वे तो मंत्रमुग्ध ही हो जाते हैं। यह मेला कला का मनमोहक प्रदर्शन है ही। यहां की हस्तशिल्प प्रदर्शनी फेस्टिवल का एक बड़ा आकर्षण है। बूंदी की मिनिएचर पेंटिंग्स, ब्लू पॉटरी और जरी के काम देखने लायक होते हैं। कारीगर लाइव डेमो देते हैं। पर्यटक इन कृतियों को खरीदकर अपनी यादें संजोते हैं। यह प्रदर्शनी राजस्थान की कारीगरी को सामने लाती है।
एक और खास बात इस सांस्कृतिक कार्यक्रमों में ब्राइडल कॉस्ट्यूम प्रतियोगिता भी होती है। महिलाएं राजपूत वेशभूषा में सजती हैं। पगड़ी बांधने और मूंछ प्रतियोगिता पुरुषों का जोश दिखाती है। शाम को आतिशबाजी होती है, जो आकाश को रंगमय कर देती है। बूंदी फेस्टिवल का यह दिन हमें सांस्कृतिक रंगों से भर जाता है। यह फेस्टिवल हमें राजस्थान की जीवंत कला से जोड़ता है। यहां का हर नृत्य, हर गीत नई यादें बनाता है।
एथनिक खेलों का रोमांच, सच में यह परंपराओं की प्रदर्शनी है!
बूंदी फेस्टिवल में एथनिक खेल तीसरे दिन का मुख्य आकर्षण होते हैं। ये खेल राजस्थानी परंपराओं का सरस प्रदर्शन हैं। ऊंट दौड़, घोड़े की रेस और तीरंदाजी देखते बनती हैं। ऊंट सजे धजे मैदान में सरपट दौड़ते हैं। दर्शक चिल्लाते हैं, और कलाकारों का उत्साह बड़ाते है। कुश्ती और रस्साकशी भी गजब का खेल हैं। युवा इसमें अपनी ताकत दिखाते हैं। मटका रेस में महिलाएं सिर पर घड़ा रखकर दौड़ती हैं। तो वही पुरुषों में मूंछ प्रतियोगिता जोश भरती है। और सबसे लंबी और घनी मूंछ वाले को पुरस्कार मिलता भी है। यह खेल ही तो फेस्टिवल को रोमांचक बनाते हैं। पर्यटक भी इन खेलों में भाग ले सकते हैं। वैसे पगड़ी बांधने की प्रतियोगिता विदेशी पर्यटकों को खूब भाती है। वे राजस्थानी स्टाइल में सजते हैं और मनोरंजन करते हैं।

क्यों जाना चाहिए आपको, राजस्थान के बूंदी फेस्टिवल में?
बूंदी फेस्टिवल का समापन चंबल नदी के तट पर होता है। कार्तिक पूर्णिमा के बाद सुबह लोग दीये जलाते हैं। महिलाएं रंगीन वेशभूषा में नदी किनारे आशीर्वाद मांगती हैं। यह दृश्य मनमोहक तो बहुत होता है। नदी के चमकते पानी में, दीयों की रोशनी सुकूनदेय देती है। फेस्टिवल के दौरान पर्यटन आकर्षण बढ़ जाता हैं। गढ़ पैलेस में हेरिटेज वॉक भी होती है। पर्यटक प्राचीन चित्रकलाएं देखते हैं और खरीदते हैं। इसके अलावा तारागढ़ किला चढ़कर शहर का नजारा लेते हैं। नवल सागर झील पर बोटिंग का मजा लेना मत भूलिए यही तो है जो आपको मनोरंजन से और भर देगा।
कुल मिलाकर बूंदी उत्सव पर्यटकों को राजस्थान की जन्नत दिखाता है। यहां का खाना भी बेमिसाल है। गट्टे की सब्जी, दाल बाटी चूरमा चखने का अपना अलग ही मजा है। फेस्टिवल के दौरान स्टॉल पर ये व्यंजन आसानी से मिल जाते हैं। यह उत्सव राजस्थान की बृहद संस्कृति का प्रतीक है।









