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डीटीसी बस का सफर, यादों के पिटारे का एक बेहद खूबसूरत हिस्सा!

डीटीसी बस (DTC Bus) का सफर वाक़ई एक ऐसा अनुभव होता है जो शायद कहीं और से कभी नहीं मिल सकता। भीड़ का आगे निकलने के लिए चिल्लाना हो या कभी बिना कहे किसी जरूरतमंद को अपनी सीट दे देना। ऐसी विरोधाभासी बातों और यादों का पिटारा एक DTC में सफर करने वाले यात्री के पास ज़रूर होता है।

ज़रा सोचिए, आप एक लगभग खाली बस की विंडो सीट पर बैठे हैं और मौसम सुहाना होने लगता है। आप सब कुछ भूल जाते हैं, बस वह हवा के झोंके आपकी जुल्फों को सहलाते हैं। हालांकि, DTC बसों में अमूमन ऐसा नहीं होता है पर जब होता है तो एक रोजमर्रा की यात्री के लिए ये कमाल का अनुभव होता है।

डीटीसी बस

“तकलीफ हुई मगर इस बात की खुशी भी थी कि यादों का एक बड़ा सा सूटकेस अपने साथ लेकर जा रही थी।”

“ये जवानी है दीवानी” मूवी का यह डायलॉग DTC बसों के सफर पर बड़ा जचता है, क्योंकि यहाँ आप भीड़ के धक्के खाते हैं, कभी पैर रखने की भी जगह नहीं होती, लेकिन इस सब में कुछ ऐसे पलों से रूबरू हो जाते हैं जो स्मृतियों में सदा के लिए छप जाते हैं।

डीटीसी बस

अक्सर इस बात पर व्यंग भरी बातें होती हैं कि महिला सीट पर कभी पुरुष बैठ जाए तो उसकी वाट लग जाए। पर यह लड़ाई सिर्फ महिला या पुरुष ही नहीं वरिष्ठ नागरिकों की भी हो जाती है जब एक हट्टा- कट्टा नौजवान व्यक्ति, एक कमजोर वृद्ध के आने पर भी खड़ा ना हो तो आधी बस उसके पीछे पड़ जाती है। फिर वह स्तब्ध हो उठता है और अपनी सीट छोड़, खड़े होने पर मजबूर हो जाता है।

मगर इन आनाकानी में ही तो DTC का मज़ा आता है।

DTC का सफर आपको यह यकीन दिला सकता है कि दुनिया बड़ी जरूर है पर कभी भी कहीं भी किसी से भी, फिर से टकराना हो सकता है। सुबह आप जिस इंसान से टकराएं हो, उससे शायद आप शाम को घर लौटते हुए फिर मिल जाएं। कभी-कभी तो DTC में यात्रियों की मुलाकात ऐसी होती है कि यह दोस्ती में तब्दील हो जाती हैं।

DTC की तमाम लड़ाइयों और नोक-झोंक के बाद भी, कभी-कभी ऐसे लोगों से मुलाकात हो जाती है जो हमने सोचा भी न हो। एक थके हुए इंसान को सीट दे देना हो या सोते हुए को स्टैन्ड आने से पहले उठा देना। DTC में आज भी संवेदना के धरातल पर मजबूत, अफ़साने मिल सकते हैं। एक अंकल जो अचानक आपको कोई किस्सा सुनाने लगें या आंटी जो आपसे बात शुरू कर दें और आपको बोर होने का मौका ही न मिले।

हालांकि कुछ लोग आपको ऐसे भी मिल सकते हैं जो आपके सफर को मुश्किल कर दें या आपका रास्ता काटना भी दूभर हो जाए, लेकिन इससे भी आपको अधिक साहसी और जागरूक बनने की सीख मिलती है।

डीटीसी बस

स्कूल, कॉलेज, दफ्तर, अस्पताल या किसी घूमने की जगह DTC से जाना और बल्कि हर रोज़ जाना एक यात्री की आदत बन जाने के लिए काफी है।
हो सकता है, एक यात्री इसकी यात्रा छोड़ दे लेकिन सैकड़ों की भीड़ में ये कारवाँ हमेशा यूं ही चलता रहेगा

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Hello! I Pardeep Kumar

मुख्यतः मैं एक मीडिया शिक्षक हूँ, लेकिन हमेशा कुछ नया और रचनात्मक करने की फ़िराक में रहता हूं।

लम्बे सफर पर चलते-चलते बीच राह किसी ढ़ाबे पर कड़क चाय पीने की तलब हमेशा मुझे ज़िंदा बनाये रखती
है।

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