जानिए… दिल्ली से मेहंदीपुर बालाजी का यात्रा अनुभव यायावर अजय राज की जुबानी
दिल्ली की आपाधापी भरी जिंदगी से निकलकर कुछ दिनों के लिए शांति और सुकून की तलाश में मैंने मेहंदीपुर बालाजी के लिए एक यात्रा की योजना बनाई। द्वारका के अपने फ्लैट से सुबह तड़के निकला, मन में भक्ति और जिज्ञासा का अनोखा मेल था। यह यात्रा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शांति और ऐतिहासिक धरोहरों को करीब से जानने का एक अवसर भी थी। यह मेरे लिए बहुत रोचक थी।(बालाजी का चमत्कार)

यात्रा का शुभारंभ: दिल्ली से आगरा होते हुए…
दिल्ली से सुबह-सुबह निकलना हमेशा मुझे पसंद रहा है, क्योंकि हाईवे पर ट्रैफिक कम मिलता है। मैंने अपनी कार से यात्रा शुरू की और सबसे पहले आगरा की ओर बढ़ा। मथुरा-वृंदावन जाने का रास्ता मुझे पहले ही पता था, पर इस बार मन में श्रीबालाजी के दर्शन की ही धुन थी। आगरा पहुंचते ही यमुना एक्सप्रेसवे की शानदार सड़क ने सफर को और भी सुहाना बना दिया। रास्ते में मैंने कुछ देर के लिए फतेहपुर सीकरी के पास रुकने का विचार किया। यह मुगल सम्राट अकबर द्वारा बनवाया गया ऐतिहासिक शहर है, जिसकी बुलंद दरवाजा जैसी संरचनाएं वास्तुकला का अद्भुत नमूना हैं। यहां के शांत वातावरण और ऐतिहासिक इमारतों को देखकर मन को एक अलग ही सुकून मिला। थोड़ी देर यहां बिताकर मैं फिर अपनी मंजिल की ओर अग्रसर हुआ।
फतेहपुर सीकरी का महत्व
फतेहपुर सीकरी 16वीं शताब्दी में मुगल सम्राट अकबर द्वारा स्थापित एक योजनाबद्ध शहर था। यह अपनी शानदार वास्तुकला, विशेषकर ‘बुलंद दरवाजा’ और ‘पंच महल’ के लिए प्रसिद्ध है। अकबर ने इस शहर को अपनी राजधानी के रूप में बनवाया था, लेकिन पानी की कमी के कारण इसे बाद में छोड़ दिया गया। यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है।
सफर आगे बढ़ा और जल्द ही मैं राजस्थान की सीमा में दाखिल हो गया। राजस्थान की पहचान, उसके रंगीन परिदृश्य और राजस्थानी लोकगीतों की हल्की धुन मुझे अपने भीतर महसूस हो रही थी। रास्ते में कई छोटे-बड़े गांव और कस्बे भी आए, जिनकी सादगी और ग्रामीण जीवनशैली ने शहरी भागदौड़ से दूर एक अलग ही दुनिया का अहसास कराया।

मेहंदीपुर बालाजी की पावन भूमि पर आगमन
दोपहर होते-होते मैं मेहंदीपुर बालाजी धाम पहुंच गया। जैसे ही मंदिर परिसर के करीब पहुंचा, वहां का माहौल ही बदल गया। एक अलग तरह की ऊर्जा और भक्ति का संचार महसूस होने लगा। मंदिर के आसपास सैकड़ों दुकानें थीं, जहां प्रसाद, पूजा सामग्री और बालाजी से जुड़ी चीजें मिल रही थीं। मैंने अपनी गाड़ी पार्किंग में लगाई और मंदिर की ओर कदम बढ़ाए।
मेहंदीपुर बालाजी धाम हनुमान जी को समर्पित एक बहुत ही प्रसिद्ध और चमत्कारी मंदिर है। यह स्थान भूत-प्रेत बाधाओं और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति के लिए जाना जाता है। मंदिर में प्रवेश करते ही मुझे भक्तों की भीड़ और एक विशेष तरह का माहौल मिला। लोग जोर-जोर से हनुमान चालीसा का पाठ कर रहे थे और जयकारे लगा रहे थे।
मेहंदीपुर बालाजी की विशेषता
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर राजस्थान के दौसा जिले में स्थित है। इस मंदिर के पास से ही करौली जिले की सीमा शुरु हो जाती है। इसी के पास टोड़ा की घाटी है, जो पहाड़ अपने आप में जन्नत से कम नहीं है। यह मंदिर भूत-प्रेत और बुरी आत्माओं से प्रभावित लोगों को ठीक करने के लिए जाना जाता है। यहां पर हनुमान जी की बाल स्वरूप की पूजा की जाती है। मंदिर में ‘प्रेतराज सरकार’ और ‘भैरव बाबा’ के भी स्थान हैं, जिनकी अपनी विशेष महत्ता है।
मंदिर में दर्शन के लिए लंबी कतारें लगी हुई थीं। मैंने भी कतार में लगकर अपनी बारी का इंतजार किया। मंदिर के अंदर का वातावरण बहुत ही अलग था। मैंने पहले कभी ऐसा कुछ नहीं देखा था। लोग अजीबो-गरीब हरकतें कर रहे थे, कुछ रो रहे थे, कुछ चिल्ला रहे थे, और कुछ मूर्छित हो रहे थे। कहा जाता है कि यह सब नकारात्मक ऊर्जाओं के प्रभाव के कारण होता है, जो बालाजी के आशीर्वाद से दूर होती हैं। यह सब देखकर मन में एक अजीब सी मिश्रित भावनाएं थीं – थोड़ी श्रद्धा, थोड़ी जिज्ञासा।
मैंने हनुमान जी के दर्शन किए, प्रसाद चढ़ाया और अपनी मनोकामनाएं मांगीं। मंदिर परिसर में ही प्रेतराज सरकार और भैरव बाबा के भी दर्शन किए। यहां पर ‘दर्ख्वास्त’ और ‘सवाई’ की विशेष प्रक्रियाएं होती हैं, जिन्हें लोग अपनी बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए करते हैं। इन प्रक्रियाओं में लोग मंदिर परिसर में ही बैठकर कुछ विशेष अनुष्ठान करते हैं।

दर्ख्वास्त और सवाई
दर्ख्वास्त: यह बालाजी को अपनी समस्या बताने का एक तरीका है। इसमें लोग विशेष प्रसाद (जैसे लड्डू) चढ़ाते हैं और अपनी समस्या के निवारण के लिए प्रार्थना करते हैं।
सवाई: यह समस्या के निवारण के बाद बालाजी को धन्यवाद देने या उनका आभार व्यक्त करने का एक तरीका है। इसमें लोग अपनी क्षमतानुसार दान करते हैं या भंडारा करवाते हैं।
मैंने मंदिर परिसर में कुछ समय बिताया और वहां की ऊर्जा को महसूस किया। कई लोगों से बातचीत भी की, जिन्होंने अपने अनुभवों को साझा किया कि कैसे बालाजी के आशीर्वाद से उनकी परेशानियां दूर हुई हैं। यह सब सुनकर मेरा विश्वास और भी गहरा हो गया।
मंदिर के नियम और मान्यताएं…
बालाजी मंदिर में कई विशेष नियम और मान्यताएं हैं। जैसे, यहां से कोई भी प्रसाद घर नहीं ले जाया जाता है। लोग अक्सर अपनी समस्याओं को पीछे छोड़ने के प्रतीक के रूप में कपड़े या अन्य वस्तुएं मंदिर परिसर में छोड़ जाते हैं। यहां मांस-मदिरा का सेवन वर्जित है और भक्तों को शुद्धता का पालन करना होता है।
शाम तक मैं मंदिर के आसपास ही रहा। यहां कई धर्मशालाएं और छोटे-बड़े होटल भी थे, जहां भक्त रुक सकते थे। मैंने एक स्थानीय भोजनालय में सात्विक भोजन किया, जो मंदिर के वातावरण के अनुकूल था।
वापसी की यात्रा: दिल्ली की ओर…
अगले दिन सुबह मैंने फिर से बालाजी के दर्शन किए और फिर दिल्ली के लिए अपनी वापसी की यात्रा शुरू की। मन में एक अलग तरह की शांति और सकारात्मकता का अनुभव हो रहा था। मेहंदीपुर बालाजी की यात्रा ने मुझे न केवल एक धार्मिक अनुभव दिया, बल्कि जीवन की कुछ अनसुलझी पहेलियों पर विचार करने का अवसर भी प्रदान किया।
वापसी के रास्ते में मैंने एक और ऐतिहासिक स्थल ‘नीलकंठ महादेव मंदिर’ के बारे में सुना था। यह मंदिर अलवर जिले में स्थित है और शिव भगवान को समर्पित है। हालांकि, समय की कमी के कारण मैं वहां रुक नहीं पाया, लेकिन अगली बार इस क्षेत्र की यात्रा पर इसे देखने मन बना लिया है। अगली बार जरूर इसे देखकर ही आगे बढूंगा।
शाम तक मैं द्वारका, दिल्ली स्थित अपने फ्लैट पर वापस पहुंच गया। यात्रा की थकान तो थी, लेकिन मन में एक आध्यात्मिक ऊर्जा और संतोष का भाव था। मेहंदीपुर बालाजी की यह यात्रा मेरे लिए सिर्फ एक दर्शनीय स्थल का भ्रमण नहीं, बल्कि एक गहरा आत्मिक अनुभव बन गई, जिसने मुझे जीवन के कुछ अदृश्य पहलुओं से रूबरू कराया। यह निश्चित रूप से एक ऐसी यात्रा थी जिसे मैं लंबे समय तक याद रखूंगा।