अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में बसी सेल्यूलर जेल एक ऐसी जगह है, जो इतिहास की सबसे दर्दनाक और प्रेरक कहानियों को अपने सीने में छिपाए हुए है। पोर्ट ब्लेयर में खड़ा यह जेल सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक चीखता हुआ नमूना है। इसे काला पानी कहते हैं, क्योंकि चारों तरफ समुद्र की काली लहरें और घने जंगल इसे भागने की हर उम्मीद को नामुमकिन कर देते थे। ब्रिटिश शासन ने इसे 1906 में बनवाया था, ताकि स्वतंत्रता सेनानियों को मुख्य भूमि से दूर रखा जाए। आइए फाइव कलर्स ऑफ ट्रैवल पेश करता है एक खौफनाक कहानी की दास्तां।
काला पानी का रहस्यमयी ब्लैक एण्ड व्हाइट सच
इस जेल का नाम इसके अनोखे डिजाइन से आया है। इसमें 696 छोटे-छोटे कमरे थे, हर एक में एक कैदी को अकेले बंद किया जाता था। जिसका मकसद था उन्हें पूरी तरह अलग-थलग करना। वीर सावरकर, बटुकेश्वर दत्त जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने यहीं यातनाएं सहीं। आज यह एक राष्ट्रीय स्मारक है, जो हर साल हजारों पर्यटकों को अपनी कहानियां सुनाने बुलाता है। जरा सोचिए, एक ऐसी जेल जहां समुद्र की लहरें हर रात कैदियों को आजादी की उम्मीद तोड़ती थीं। फिर भी, इन दीवारों में बसी कहानियां हिम्मत और बलिदान की हैं। यह जेल सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि उन लोगों की वीरता की गवाही है, जिन्होंने आजादी के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया। इस लाजबाब पेशकश में हम सेल्यूलर जेल की बनावट, कैदियों के जीवन, इसके सांस्कृतिक महत्व और पर्यटक अनुभव को करीब से देखेंगे। यह एक ऐसी यात्रा है, जो आपको इतिहास के पन्नों में ले जाएगी और देशभक्ति की भावना जगा देगी।
आखिर क्यों इस जगह का नाम सुनकर ही लोगों रूह कांप जाती थी?
सेल्यूलर जेल की बनावट देखकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इसे 1896 में शुरू करके 1906 में पूरा किया गया। इसका डिजाइन अंग्रेज दार्शनिक जेरेमी बेंथम के पैनोप्टिकॉन मॉडल से प्रेरित था। जेल में सात पंख थे, जो एक टावर से जुड़े हुए थे, जैसे साइकिल की तीलियां जुड़ी होती हैं। हर पंख में छोटे-छोटे कमरे थे, जिनमें हर एक कैदी को रखा जाता था। हर कमरा 13.5 फीट लंबा और 7.5 फीट चौड़ा था। इसमें एक छोटी सी खिड़की होती थी, जो इतनी ऊंची थी कि बाहर का आसमान भी मुश्किल से दिख पाता था। दरवाजे लोहे के थे, और डिजाइन ऐसा था कि कैदी एक-दूसरे से बात भी न कर सकें। बीच में लगे टावर से पहरेदार हर कमरे पर नजर रखते थे। यह डिजाइन कैदियों को मानसिक और शारीरिक रूप से तोड़ने के लिए बनाया गया था।

जेल की दीवारें बर्मा से लाई गई गुलाबी ईंटों से बनी थीं। जो बेहद मजबूत और भव्य थी, लेकिन इसका मकसद डर पैदा करना था। 1941 के भूकंप और दूसरे विश्व युद्ध में इसके चार पंख टूट गए। बाद में दो और पंख हटाए गए ताकि पास में अस्पताल बन सके। आज सिर्फ तीन पंख और बीच का टावर मात्र बचा हुआ हैं, लेकिन वे भी इतिहास की गहराई को बयां करते हैं। सोचिए, एक छोटे से कमरे में अकेले रहना, जहां दिन-रात सिर्फ दीवारें और सलाखें दिखें। यह जेल एकांत का किला थी, लेकिन स्वतंत्रता सेनानियों ने इसमें भी हिम्मत दिखाई। उनकी कहानियां इन दीवारों में आज भी गूंजती हैं।
यातनाओं की गाथा कैदियों का दर्दनाक जीवन कैसे गुजरता था?
सेल्यूलर जेल में कैदियों का जीवन किसी बुरे सपने से कम नहीं था। स्वतंत्रता सेनानियों को यहां भेजा जाता था ताकि वे देश से कट जाएं। उन्हें सुबह से रात तक कठोर मेहनत करनी पड़ती थी। जंगल साफ करना, इमारतें बनाना, नारियल के रेशे तोड़ना—ये काम उनके लिए सजा थे। खाना इतना कम और खराब मिलता था कि कई कैदी बीमार पड़ जाते थे और अक्सर उनको मौत का शिकार भी होना पढ़ता था। कमरों में हवा और रोशनी मुश्किल से आती थी। इसके अलावा कैदियों को अकेले रहना पड़ता था, जिससे मानसिक तनाव बढ़ता था। अगर कोई हड़ताल करता या नियम तोड़ता था, तो उसे दोगुनी यातनाएं दी जाती थीं। जैसे, लोहे की जंजीरों में बांधना, कोड़े मारना या अंधेरे कमरे में बंद करना।
जेलर डेविड बैरी की क्रूरता तो आज भी मशहूर है। जेलर डेविड बैरी कैदियों को ताने मारता था कि समुद्र से कोई नहीं भाग सकता। इन सब में वीर सावरकर की कहानी सबसे मार्मिक है। उन्हें 1911 में यहां लाया गया। उनके भाई गणेश सावरकर भी यहीं थे, लेकिन एक साल तक उन्हें इसकी खबर नहीं मिली थी। कुछ कैदियों ने यातनाओं से तंग आकर आत्महत्या तक कर ली, जैसे उल्लासकर दत्त और इंदु भूषण रॉय। लेकिन कई सेनानियों ने हिम्मत नहीं हारी। और सन 1937 की भूख हड़ताल ने ब्रिटिश सरकार को हिलाकर रख दिया। महात्मा गांधी और रवींद्रनाथ टैगोर के दबाव से इस जेल को बंद कराया गया। इन कैदियों की कहानियां दर्द और साहस का मेलजोल हैं। ये कहानियां हमें बताती हैं कि आजादी कितनी कीमत चुकाकर मिली है। यह गाथा हर भारतीय को गर्व से भर देती है।
जेल भी स्मारक हो बन सकती है?
सेल्यूलर जेल आज एक राष्ट्रीय स्मारक है। 1979 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया। यह जेल स्वतंत्रता संग्राम की उन अनगिनत कहानियों का प्रतीक है, जिनमें बलिदान और हिम्मत की मिसालें हैं। यह हमें याद दिलाती है कि आजादी मुफ्त में नहीं मिली। आज जेल में एक संग्रहालय भी है, जहां स्वतंत्रता सेनानियों की तस्वीरें, उनके पत्र और निजी सामान रखे हुए हैं। फांसी घर आज भी मौजूद है, जहां कैदियों को सजा दी जाती थी। यह देखकर मन सिहर उठता है। संग्रहालय में 1857 की क्रांति और अन्य आंदोलनों की जानकारी भी सहेज राखी हैं। वीर सावरकर का कमरा विशेष रूप से देखने लायक है। उनके लेख और किताबें यहां प्रदर्शित हैं।
हालांकि यह जेल देशभक्ति की भावना को जगाती है। स्कूल और कॉलेज के बच्चे यहां आकर इतिहास सीखना चाहें तो स्वागत है। हर साल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर यहां विशेष कार्यक्रमों का आयोजन होता है। जेल की दीवारें उन नायकों की कहानियां चुपचाप सुनाती हैं, जिन्होंने आजादी के लिए सब कुछ छोड़ दिया था। सेल्यूलर जेल का महत्व सिर्फ इतिहास तक नहीं है। यह नई पीढ़ी को सिखाता है कि एकता और हिम्मत से कोई भी मुश्किल हल हो सकती है। यह हमें अपने देश की कीमत समझाता है। यह जेल काला पानी की यादों को जीवित रखती है और हमें गर्व से भर देती है।
इतिहास में डूबता अनुभव पर्यटकों की यात्रा साक्षी
सेल्यूलर जेल घूमना एक भावनात्मक और अविस्मरणीय अनुभव है। यह पोर्ट ब्लेयर के अटलांटा पॉइंट में है, जो वीर सावरकर हवाई अड्डे से सिर्फ 4 किलोमीटर दूर है। पर्यटक टैक्सी, ऑटो या बस से आसानी से पहुंच सकते हैं। जेल सुबह 9 बजे से दोपहर 12:30 बजे और फिर 1:30 बजे से शाम 5 बजे तक खुली रहती है। लेकिन सोमवार और किसी राष्ट्रीय अवकाश पर यह बंद रहता है। प्रवेश शुल्क की बात की जाए तो भारतीयों के लिए 30 रुपये और विदेशियों के लिए 150 रुपये है। बच्चे मुफ्त में घूम सकते हैं बच्चों के लिए यह निःशुल्क है। जेल में एक लाइट एंड साउंड शो हर शाम 6 बजे और 7:15 बजे होता है। पहला शो हिन्दी में होता है, और दूसरा अंग्रेजी में। यह शो जेल की कहानी को बताता है। आवाज और लाइट का अनोखा प्रदर्शन पर्यटकों को इतिहास में ले जाता है।
जेल के गलियारे संकरे और उदास हैं एवं हर कमरे में एक कहानी छिपी हुई है। वीर सावरकर का कमरा सबसे ज्यादा ध्यान खींचता है। पर्यटक तस्वीरें लेने को हमेशा आतुर रहते हैं और गाइड से कहानियां सुनते हैं। फांसी घर और संग्रहालय देखकर मन भावुक हो जाता है। कुछ पर्यटक कहते हैं कि वे यहां आकर अपने देश के लिए गर्व महसूस करते हैं। आसपास रॉस आइलैंड, नॉर्थ बे और विपर आइलैंड जैसे और भी कई पर्यटक स्थल हैं। दिन में जेल घूमकर शाम को इन जगहों का मजा लिया जा सकता है, यदि आप चाहें तो। सेल्यूलर जेल की यात्रा सागर के जैसे इतिहास में डुबो देती है। यह हर भारतीय को एक बार जरूर देखना चाहिए। यकीनन यह अनुभव आपको देशभक्ति और इतिहास से जोड़ेगा।









