दोस्तों, इन दिनों देश-विदेश सब जगह पुष्कर मेले की धूम है. साल भर सैलानी इस मेले के आयोजन का इंतज़ार करते हैं. आज इस ब्लॉग में हम दुनिया भर में यह मेला यहाँ के ऊँटों के लिए इतना प्रसिद्ध क्यों है, इसके बारे में विस्तार से जानेंगे. (Pushkar Mela)

पुष्कर मेला न केवल ऊँटों के व्यापार के लिए एक प्रमुख मेला है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजन भी है। दुनिया के सबसे बड़े ऊँट व्यापार मेले के रूप में यह ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, और पिछले कई सालों से यह राजस्थान के ग्रामीण जीवन और पारंपरिक अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा बन गया है। इस मेले के माध्यम से ना सिर्फ व्यापारिक गतिविधियाँ होती हैं, बल्कि यह राजस्थानी कला, संस्कृति और धार्मिक आस्थाओं का बेहतरीन मिश्रण भी प्रस्तुत करता है।
दुनिया का सबसे बड़ा ऊँट व्यापार मेला
पुष्कर मेला न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह दुनिया का सबसे बड़ा ऊँट व्यापार मेला भी है। यह मेला ऊँटों का सबसे बड़ा वाणिज्यिक बाजार बन चुका है। यहाँ प्रत्येक साल लगभग 50,000 से 60,000 ऊँटों की खरीद-बिक्री होती है। व्यापारी इन ऊँटों को एक जगह से दूसरी जगह लेकर जाते हैं, जहां वे उन्हें विभिन्न कार्यों के लिए इस्तेमाल करते हैं, जैसे कि खेती, परिवहन, पर्यटन, और मेलों में सवारी के लिए।यह मेला ऊँटों की नस्लों, उनके आकार, और उनके स्वास्थ्य के आधार पर व्यापार का अवसर प्रदान करता है। यहाँ के ऊँट विभिन्न किस्मों के होते हैं, जैसे राजस्थानी ऊँट, कच्छी ऊँट, और जोधपुरी ऊँट।

मिस ऊँट प्रतियोगिता होती है मेले का प्रमुख आकर्षण -पुष्कर मेला में ऊँटों को रंग-बिरंगे कपड़ों से सजाया जाता है, और उनके साथ पारंपरिक राजस्थान संगीत और नृत्य भी होते हैं। एक विशेष प्रतियोगिता में ऊँटों को सजाकर विभिन्न कला रूपों का प्रदर्शन किया जाता है। ऊँटों के लिए नृत्य प्रतियोगिता भी आयोजित होती है, जहाँ ऊँट विभिन्न करतब दिखाते हैं, जैसे की ऊँट की दौड़, ऊँट का नृत्य, और मिस ऊँट प्रतियोगिता। मिस ऊँट प्रतियोगिता बहुत ही आकर्षक होती है और दर्शक इस प्रतियोगिता का खूब आनंद उठाते हैं।

इसके अलावा यहाँ मेले के दौरान देसी-विदेशी पर्यटकों के लिए क्रिकेट मैच, फुटबाल, रस्साकसी, सतोलिया और कबड्डी मैच का आयोजन होता है. ऊंट-घोड़ों की सजावट, नृत्य आदि की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं, सैलानियों के लिए मूंछ, टरबन, दुल्हा-दुल्हन बनो, रंगोली, मांडना जैसी कई प्रतियोगिताएं भी मेले का हिस्सा होती हैं. जिससे यहाँ आने वाले सैलानियों को खूब मस्ती और मनोरंजन करने को मिलता है .
यहाँ पर राजस्थानी कलाकृतियाँ, सुवेनियर, हथकरघा वस्त्र, और आभूषण की दुकानें भी लगती हैं, जहां पर्यटक राजस्थानी कला और हस्तशिल्प का आनंद ले सकते हैं।

पुष्कर मेले का इतिहास भी है खास
पुष्कर मेला का इतिहास बहुत प्राचीन है और इसे ब्रह्मा जी से जुड़ी धार्मिक परंपराओं से जोड़ा जाता है। माना जाता है कि पुष्कर झील का निर्माण ब्रह्मा जी ने स्वयं किया था। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, पुष्कर वह स्थान है जहाँ भगवान ब्रह्मा ने अपनी पत्नी सावित्री के साथ यज्ञ किया था। यह स्थान अत्यंत पवित्र माना जाता है और हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। प्राचीन काल में भी, कार्तिक माह (अक्टूबर-नवंबर) में आयोजित होने वाला यह मेला एक धार्मिक और व्यापारिक आयोजन था। इस समय भारत के विभिन्न हिस्सों से लोग यहाँ आकर स्नान करते थे और पूजा अर्चना करते थे। धीरे-धीरे इस धार्मिक मेले में व्यापारिक गतिविधियाँ भी जुड़ने लगीं, विशेषकर पशु व्यापार, जैसे ऊंट, घोड़े, बैल आदि की खरीद-फरोख्त।
मेला कब होता है
पुष्कर मेला कार्तिक माह (अक्टूबर-नवंबर) में आयोजित होता है। यह मेला आमतौर पर पांच दिनों तक चलता है, लेकिन कभी-कभी इसकी अवधि और भी बढ़ सकती है। मेला कार्तिक पूर्णिमा के आसपास अपने चरम पर होता है, जब बड़ी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक पुष्कर आते हैं। आधुनिक पुष्कर मेला अब एक सांस्कृतिक उत्सव बन चुका है, जिसमें ऊंटों की दौड़, पारंपरिक संगीत और नृत्य, हस्तशिल्प प्रदर्शनी, और विभिन्न प्रकार के प्रतियोगिताएँ होती हैं। यहाँ स्थानीय राजस्थानी कला, संस्कृति और परंपराओं को भी प्रदर्शित किया जाता है।
पुष्कर झील
पुष्कर मेला और पुष्कर झील दोनों का गहरा संबंध है। मेले का मुख्य आकर्षण पुष्कर झील में पवित्र स्नान और पूजा-अर्चना होती है, जो श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है। मेले के दौरान, विशेष रूप से कार्तिक पूर्णिमा के दिन, लाखों श्रद्धालु यहाँ आते हैं और झील में स्नान करने के बाद पूजा करते हैं।

पुष्कर झील (Pushkar Lake) एक प्रमुख हिंदू तीर्थ स्थल है और इसे राजस्थान की पवित्र झील के रूप में जाना जाता है। यह झील ब्रह्मा जी के साथ जुड़ी हुई है, और हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह झील विशेष रूप से पवित्र है। पुष्कर झील के बारे में मान्यता है कि यह ब्रह्मा जी द्वारा बनाई गई थी। किंवदंती के अनुसार, ब्रह्मा जी ने इस झील में स्नान किया और यहाँ पूजा अर्चना की। इसलिए यह झील हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। माना जाता है कि जो भी व्यक्ति पुष्कर झील में स्नान करता है, उसके पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से कार्तिक पूर्णिमा के दिन लाखों श्रद्धालु यहाँ स्नान करने आते हैं, और उस दिन विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन होता है।

पुष्कर झील के चारों ओर 52 घाट (ghats) हैं, जिन पर श्रद्धालु स्नान करते हैं और पूजा करते हैं। यह घाट प्राचीन वास्तुकला का उदाहरण हैं और यहाँ पर धार्मिक अनुष्ठान और संस्कृतियाँ होती हैं। घाटों पर होने वाली धार्मिक क्रियाएँ और पुजारियों द्वारा की जाने वाली पूजा आमतौर पर बहुत ही भावनात्मक और आध्यात्मिक होती हैं। पुष्कर मेला के दौरान, खासकर कार्तिक पूर्णिमा के समय, हर साल लाखों श्रद्धालु पुष्कर झील में स्नान करते हैं। यह समय विशेष रूप से धार्मिक महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन को पवित्र स्नान और ब्रह्मा जी की पूजा के लिए सबसे उत्तम समय माना जाता है। पुष्कर झील न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका प्राकृतिक सौंदर्य भी पर्यटकों को आकर्षित करता है। यह झील सूर्योदय और सूर्यास्त के समय विशेष रूप से सुंदर दिखाई देती है। झील के किनारे सुंदर मंदिर और घाट स्थित हैं, जो इसे एक शांतिपूर्ण और आकर्षक स्थल बनाते हैं।
टैंट सिटी और कैम्पिंग है इस मेले की जान

पुष्कर मेला के दौरान टैंट सिटी का आयोजन भी किया जाता है, जहाँ पर्यटकों को ट्रेंडी और आरामदायक टैंट आवास की सुविधा मिलती है। यहाँ आने वाले सैलानियों के लिए यह एक अद्वितीय अनुभव होता है, जो शहर की हलचल से दूर प्राकृतिक वातावरण का आनंद लेने का मौका देता है। टैंट सिटी में आपको होटल जैसी सुविधाएं मिलती हैं जैसे कि बिस्तर, टॉयलेट, गर्म पानी, और कभी-कभी तो खास डाइनिंग सुविधा भी होती है। ये टैंट विशेष रूप से उन पर्यटकों के लिए आदर्श होते हैं, जो मेले की भीड़-भाड़ में भी एक अनोखा और कनेक्टेड अनुभव चाहें। टैंट सिटी में प्रायः रात्रि में आग जलाने का आयोजन(बॉन फायर), लोक नृत्य (कालबेलिया और घूमर), और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं, जो मेले की जीवंतता में और इजाफा करते हैं।

पुष्कर मेले के दौरान बहुत अधिक भीड़ होती है, इसलिए यदि आप मेले के दौरान पुष्कर जाने की योजना बना रहे हैं तो पहले ही एडवांस बुकिंग करना सबसे अच्छा होता है। ऑनलाइन होटल बुकिंग साइट्स (जैसे कि MakeMyTrip, Booking.com, Goibibo, आदि) और ट्रैवल एजेंट्स के माध्यम से आप पहले से बुकिंग कर सकते हैं।
15 नवंबर को है कार्तिक पूर्णिमा महास्नान-आप की जानकारी के लिए बता दें इस साल 9 नवंबर को झंडा चढ़ने के साथ धार्मिक मेले की विधिवत शुरूआत हो गई है. इसी दिन एकादशी और पंचतीर्थ स्नान साधु संतो के साथ होता है, जबकि 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन महास्नान का दिन निश्चित हुआ है. इस धार्मिक मेले में देशभर से 13 अखाड़ों के साधु-संत जुटेंगे. साथ देसी सैलानियों का भी सर्वाधिक आगमन इसी दौरान होगा. साधु संतों के स्नान से पहले पुष्कर तीर्थ नगरी के विभिन्न मार्गो से साधु संतों की धार्मिक यात्राएं भी निकाली जाती हैं.
पुष्कर मेला कैसे जाएं–
अगर आप पुष्कर मेला में भाग लेने की योजना बना रहे हैं, तो आपको सही यात्रा मार्ग और योजना बनानी होगी। पुष्कर राजस्थान के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। आप अपनी सुविधा के अनुसार कार, बस या कैब द्वारा पुष्कर जा सकते हैं। जयपुर से पुष्कर का रास्ता लगभग 150 किलोमीटर है और यह 3-4 घंटे में तय किया जा सकता है। आप स्ट्रेट हाइवे (NH-48) का इस्तेमाल कर सकते हैं, जो बेहद आसान और सुगम मार्ग है। वहीँ अजमेर से पुष्कर लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, और यहाँ तक जाने के लिए आप बस, कैब या ऑटो ले सकते हैं। यह यात्रा 20-30 मिनट में पूरी हो जाती है। सवाई मानसिंह एयरपोर्ट, जयपुर (Jaipur International Airport): जयपुर एयरपोर्ट पुष्कर से लगभग 150 किलोमीटर दूर स्थित है।जयपुर में फ्लाइट्स की अच्छी कनेक्टिविटी है, और यहाँ से आप ट्रेन, बस या कैब द्वारा पुष्कर पहुंच सकते हैं।