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अलवर की ग्रीन वैली: राजस्थान की गोद में छुपी कुफरी जैसी हरियाली

जब हम राजस्थान की बात करते हैं, तो हमारे ज़हन में रेगिस्तान, रेत के टीलों और राजसी किलों की तस्वीर उभरती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि राजस्थान के दिल में एक ऐसी जगह भी है, जो हरियाली और शांति के मामले में हिमाचल की कुफरी जैसी लगती है?

जी हाँ, हम बात कर रहे हैं अलवर जिले की एक छुपी हुई खूबसूरत घाटी की — जिसे अब लोग “ग्रीन वैली” (Green valley) के नाम से जानने लगे हैं। यह अद्भुत जगह अलवर के ऐतिहासिक बाला किला (Bala Quila) की ओर जाने वाले रास्ते में पड़ती है।

अलवर शहर से जब आप बाला किले के और निकलेंगे वो भी खासकर मानसून के मौसम में क्योंकि उस दौरान मौसम सुहावना रहता है, और हवा में हल्की नमी भी महसूस होती है। जैसे-जैसे आप बाला किला की ओर चढ़ाई करते जायेंगे, वैसे-वैसे शहरी हलचल पीछे छूटती जाएगी और हरियाली का एक नया जहाँ, एक नई खूबसूरत और मनमोहक दुनिया से रूबरू होते जायेंगे.

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किले की ओर जाने वाली पहाड़ी सड़कें संकरी और रोमांचक हैं, और हर मोड़ पर कोई नया दृश्य सामने आता है — कहीं चट्टानों के बीच बहता पानी, तो कहीं जंगल की घनी छांव। और बीच सड़क में अठखेलियाँ करते हिरण आपकी यात्रा को खूबसूरत बनाने में को कोर कसर नहीं छोड़ते।

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चलते चलते करीब आधे रास्ते पर अचानक एक खुला मैदान सा सामने आता है, चारों ओर पहाड़ियों से घिरा हुआ, और हरियाली से लबालब। यह है अलवर की ग्रीन वैली।
यह जगह इतनी अप्रत्याशित रूप से हरी-भरी है कि एक पल के लिए यकीन ही नहीं होता कि आप राजस्थान में हैं। हरे मैदान, झाड़ियाँ, बेलें, और हवा में घुली मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू — यकीन मानिए आपको यह अनुभव किसी हिल स्टेशन से कम नहीं लगेगा।

यहां रुककर आप फोटोग्राफी कर सकते हैं। हर एंगल एक पोस्टकार्ड जैसा लगेगा। अगर आप प्रकृति प्रेमी, फोटोग्राफर या शांतिप्रिय यात्री हैं, तो यह जगह आपके लिए एकदम परफेक्ट है।

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पेड़ों की छांव में बैठकर जब आंखें बंद करेंगे, तो दूर से सिर्फ पंछियों की आवाजें और पत्तों की सरसराहट सुनाई देगी — एक ऐसा सुकून जो शायद आजकल बड़े शहरों में कहीं खो गया है।

यहाँ कुछ देर रुकने के बाद आप बाला किले की ओर चढ़ाई जारी रखिये। राजस्थान के अलवर जिले में स्थित बाला किला, जिसे स्थानीय रूप से ‘कुंवारा किला’ भी कहा जाता है, ऐतिहासिक और वास्तुकला की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण जगह है। यह किला अरावली पर्वत श्रृंखला की ऊँचाई पर स्थित है, जिससे अलवर शहर का मनोरम दृश्य दिखाई देता है।

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यह किला लगभग 5 किलोमीटर लंबा और 1.6 किलोमीटर चौड़ा है। किले में प्रवेश के लिए कुल छह दरवाजे हैं: जय पोल, सूरज पोल, लक्ष्मण पोल, चांद पोल, कृष्णा पोल और अंधेरी पोल। किले की दीवारों में 446 गोलियों के लिए छेद बनाए गए थे, जिनसे दुश्मनों पर हमला किया जा सकता था। किले में 15 बड़े और 51 छोटे बुर्ज हैं, साथ ही 3359 कंगूरे हैं, जो इसकी सुरक्षा को सुनिश्चित करते थे।

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कहा जाता है कि इस किले में बाबर और जहाँगीर भी ठहरे थे। बाबर ने यहाँ एक रात बिताई थी, जबकि जहाँगीर ने निर्वासन के दौरान तीन साल इस किले में बिताए। जहाँगीर जिस कमरे में ठहरे थे, उसे आज ‘सलीम महल’ के नाम से जाना जाता है।

जैसे-जैसे आप किले की और बढ़ेंगे ऊंचाई बढती जाएगी, पीछे मुड़कर ग्रीन वैली का दृश्य और भी सुंदर दिखाई देगा. ऊपर से देखो तो यह घाटी एक विशाल हरे कालीन की तरह लगती है, जो पहाड़ियों के बीच मुस्कुरा रही हो।

यह यात्रा “बाला किला सफारी” सरिस्का टाइगर रिज़र्व के बफ़र ज़ोन वाली एक खास यात्रा है। यहाँ पर आप जीप द्वारा जंगल सफारी पर निकलते हैं, जहाँ आपको किले का नजारा साथ-साथ इस जगह विशेष की जैव विविधता का आनंद मिल सकता है।

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क़िले की ऊँचाई से बैठकर अलवर व आसपास के हरे-भरे जंगलों और पहाड़ियों का शानदार व्यूपॉइंट मिलता है। बफ़र ज़ोन होने के कारण कभी-कभी आपको तेंदुए, हिरण या पक्षी देखने को मिल सकते हैं, हालांकि यह सफारी टाइगर विंडो नहीं होती। सफारी किले के बाजू से होकर गुजरती है, जिससे मध्ययुगीन स्थापत्य कला और निर्माण की खूबसूरती दिखाई देती है।

अगर आप भी प्रकृति से जुड़ना चाहते हैं, कुछ समय मोबाइल और शोर से दूर बिताना चाहते हैं, तो अलवर की यह ग्रीन वैली आपकी अगली यात्रा का हिस्सा बननी चाहिए।
यह घाटी बारिश के मौसम में और भी जीवंत हो जाती है, लेकिन गर्मी और सर्दी दोनों में यहाँ की हरियाली चौंकाती है।

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दिल्ली से सिर्फ 3-4 घंटे की दूरी पर एक ऐसी घाटी, जो आपको हिमाचल की याद दिला दे- है ना कमाल की बात?
जरूरी टिप्स:
• सुबह या शाम के समय जाएं, जब धूप नरम हो
• ट्रेकिंग शूज़ पहनें
• कैमरा ज़रूर साथ रखें! कैमरे के बिना यहाँ की यादें संजोना थोड़ा मुश्किल रहेगा।
• बारिश में जाएं तो स्लिपरी रास्तों का ध्यान रखें

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Hello! I Pardeep Kumar

मुख्यतः मैं एक मीडिया शिक्षक हूँ, लेकिन हमेशा कुछ नया और रचनात्मक करने की फ़िराक में रहता हूं।

लम्बे सफर पर चलते-चलते बीच राह किसी ढ़ाबे पर कड़क चाय पीने की तलब हमेशा मुझे ज़िंदा बनाये रखती
है।

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