गरबा, गुजरात की धरती से जन्मा एक पुरातन और पवित्र लोक नृत्य है, जो नवरात्रि के दौरान माँ दुर्गा की आराधना के रूप में किया जाता है। यह नौ दिनों का त्यौहार माँ दुर्गा के नौ रूपों को प्रतिबिंबित करता है और इसमें स्त्री की अनंत शक्ति का सम्मान किया जाता है। गरबा शब्द संस्कृत के गर्भ से निकला है, जिसका अर्थ होता है स्त्री का गर्भ यानी womb, और “दीप”का मतलब दिया, जो जीवन और प्रकाश का प्रतीक है। गर्भ दीप का अर्थ है जीवन का प्रारंभ, जो स्त्री के गर्भ में पलता है और माँ दुर्गा का आशीर्वाद होता है। गरबा इसलिए स्त्री के महत्व, उसकी पवित्रता, और जीवन देने की क्षमता का उत्सव है।(Garba)

गरबा की परंपरा और उद्भव
गरबा का उद्भव प्राचीन गुजरात से माना जाता है, जहाँ लोग इस नृत्य को अपनी संस्कृति का हिस्सा समझते थे। पहले के समय में गरबा सिर्फ स्त्री शक्ति और माँ दुर्गा की आराधना के रूप में किया जाता था। यह नृत्य माँ दुर्गा के चिन्हित प्रतिमा के चारों ओर गोल घूमते हुए किया जाता है, जो जीवन के चक्र को दर्शाता है। डांसर्स एक गोलाकार में नृत्य करते हैं, जो जीवन के अनंत चक्र को प्रतिबिंबित करता है, और धीरे-धीरे डांस की गति बढ़ती जाती है।

इस नृत्य का पूरा जो शब्द है “गर्भ दीप”, वह एक मिट्टी के मटके को दर्शाता है जिसमें एक दिया जलता रहता है, और यह दिया जीवन का प्रतीक होता है, जो माँ दुर्गा के आशीर्वाद के रूप में दिया गया है। इसलिए, गरबा स्त्री का जीवन देने का अधिकार और उसके गर्भ का सम्मान करता है। पहले के समय में, यह नृत्य लड़कियों के प्रथम मासिक धर्म चक्र को सेलिब्रेट करने के लिए किया जाता था, जो एक स्त्री के जीवन में एक नए अध्याय की शुरुआत होती थी। शादी के समय भी गरबा एक विशेष रूप में परफॉर्म किया जाता था।

आज के समय में यह नृत्य नवरात्रि के दौरान माँ दुर्गा के नौ रूपों की आराधना में किया जाता है, जो हिंदू महीना आश्विन के दौरान आता है (सितंबर-अक्टूबर)। हर साल यह त्योहार भारत के कई शहरों में बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है। गुजरात के अलावा महाराष्ट्र, राजस्थान, और मध्य प्रदेश में भी इस नृत्य का प्रचलन काफी है। यह नृत्य दुनिया भर की हिंदू कम्यूनिटीज़ के बीच भी काफी पॉपुलर हो चुका है, जहाँ लोग अपनी संस्कृति को यह नृत्य के जरिए जीवंत रखते हैं।
गरबा की साज-सज्जा और नई परंपराएँ
गरबा का ट्रेडिशनल रूप आज भी लोगों के दिलों में बसा है, लेकिन समय के साथ इसमें मॉडर्न एलिमेंट्स भी शामिल हो चुके हैं। पहले के ज़माने में लोग सिर्फ दो तालियाँ बजाकर गरबा करते थे, लेकिन आज के समय में यह नृत्य छह, आठ, दस, और सोलह तालियों के साथ परफॉर्म किया जाता है। हर साल, डांसर्स नए फॉर्मेशन और स्टेप्स के साथ इस डांस को और ज़्यादा एनर्जेटिक और वाइब्रेंट बनाते हैं।
इस नृत्य का अलग चार्म इसमें पहने जाने वाले वस्त्रों और आभूषणों में भी है। लड़कियाँ चणिया-चोली पहनती हैं, जो वाइब्रेंट कलर्स से भरा होता है और सुंदर काम से सजा होता है। इसके साथ लड़कियाँ ट्रेडिशनल ज्वेलरी पहनती हैं, जैसे झुमके, चूड़ियाँ, पायल, और मांग टीका। यह सारी सज्जा एक डांसर के अंदर की ऊर्जा को और ज़्यादा बढ़ाती है। लड़के केडीयूऔर पगड़ीपहनते हैं, जो गुजराती संस्कृति को दर्शाते हैं। आजकल के मॉडर्न गरबा में डिज़ाइनर चणिया-चोली का भी काफी क्रेज़ है, और यह एक फैशन ट्रेंड का हिस्सा बन गया है।

गरबा के ट्रेडिशनल म्यूजिक में ढोल ढोलक और शहनाईका उपयोग होता था, जो डांसर्स को ताल देने का काम करते थे। लेकिन आजकल के मॉडर्न गरबा में सिंथेसाइज़र और हार्मोनिय का उपयोग भी होता है। मॉडर्न बीट्स के साथ यह नृत्य और भी ज़्यादा अपबीट और एनर्जेटिक बन गया है।
गरबा और फाल्गुनी पाठक का जादू
फाल्गुनी पाठक का नाम सुनते ही हर किसी के दिमाग में एक ही चीज़ आती है—गरबा के वाइब्रेंट गाने और उनका बेहतरीन म्यूजिक। उनके गाने हर गरबा नाइट का दिल होते हैं।”मैंने पायल है छनकाई” और “इंधना विनवा”जैसे गाने तो हर गरबा इवेंट का मस्ट-हैव बन चुके हैं। उनका म्यूजिक और उनकी सोलफुल आवाज़ लोगों को घंटों तक नाचने पर मजबूर कर देती है। फाल्गुनी ने गरबा को सिर्फ गुजरात तक सीमित नहीं रखा, बल्कि पूरे देश में उसकी पहचान बनाई है।

अगर आपने दया भाभी का गरबा टीवी पर देखा है तो आप समझ सकते हैं कि यह नृत्य कैसे हर घर का हिस्सा बन चुका है। दया भाभी का “दो ताली” वाला गरबा सबका फेवरेट है, और लोग उनके डांस मूव्स को अपने परफॉरमेंसेस में इनक्लूड करते हैं। इसलिए आजकल के गरबा परफॉरमेंसेस में एक ट्रेडिशनल टच के साथ एक मॉडर्न ट्विस्ट भी देखा जाता है।
गरबा का ग्लोबल रूप

पिछले कुछ वर्षों में गरबा की पॉपुलैरिटी गुजरात के बाहर भी काफी बढ़ गई है। यह नृत्य आज सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी हिंदू कम्यूनिटीज़ के बीच काफी प्रचलित हो चुका है। UK, USA, कनाडा, और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में गरबा नाइट्स ऑर्गनाइज़ की जाती हैं, जहाँ लोग बड़े उत्साह के साथ इस नृत्य को परफॉर्म करते हैं। कॉलेजेस और यूनिवर्सिटीज़ में गरबा कॉम्पिटिशन्स का भी काफी ट्रेंड हो गया है, और अलग-अलग कल्चरल फेस्ट्स में गरबा का जलवा देखा जाता है।
फोक डांसेस का जो ऑरिजिनल एसेंस था, वो अब गरबा के मॉडर्न रेंडिशन में दिखाई देता है। यहाँ तक कि तमिलनाडु और राजस्थान जैसे राज्यों में भी गरबा के प्राचीन रूप के सम्मिलित डांस फॉर्म्स देखने को मिलते हैं।
गरबा बियॉन्ड नवरात्रि
यह बात सच है कि गरबा का असली चार्म नवरात्रि के नौ दिनों में ही होता है, लेकिन आज के समय में यह नृत्य सिर्फ नवरात्रि तक सीमित नहीं रहा। शादी के फंक्शन्स में, संगीत नाइट्स पर, और अलग-अलग खुशी के अवसर पर भी लोग गरबा का आनंद लेते हैं। हर खुशी के पल में जब फैमिली और दोस्तों के बीच जश्न मनाना हो, तो गरबा से बेहतर और क्या हो सकता है?यह नृत्य अपनी पॉजिटिविटी और अपनी ऊर्जा के लिए जाना जाता है। छोटे बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्ग तक, हर कोई इस नृत्य को एंजॉय करता है। गरबा सिर्फ एक नृत्य नहीं, बल्कि एक ऐसी एक्टिविटी है जो सबको झूमने, नाचने, और जीवन का उत्सव मनाने का एक मौका देती है।
गरबा सिर्फ एक लोक नृत्य नहीं, बल्कि एक भावना है। यह नृत्य स्त्री शक्ति का प्रतीक है, जो जीवन देने का आशीर्वाद माँ दुर्गा से प्राप्त करता है। हर नवरात्रि जब यह नृत्य होता है, तो लोगों के दिलों में एक नई ऊर्जा और नया उत्साह भर जाता है। फाल्गुनी पाठक के गाने, दया भाभी का नृत्य, और वाइब्रेंट कॉस्ट्यूम्स सब मिलकर गरबा को एक अल्टीमेट सेलिब्रेशन बना देते हैं। अगर आपने अब तक गरबा का अनुभव नहीं किया है, तो इस साल नवरात्रि जरूर इस नृत्य का मज़ा लीजिए। अपने दोस्तों और परिवार के साथ गरबा ग्राउंड पर जाकर फाल्गुनी के बीट्स पर नाचिए, और इस डिवाइन उत्सव का पूरा आनंद उठाइए!
Written by- Rakhi Mishra/Edited by- Pardeep Kumar