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छठ पूजा: जानिए आस्था और समर्पण के लोक पर्व के बारे में

छठ की शुरुआत: नहाय-खाय की पवित्रता से होती है

खरना: छठ का दूसरा और महत्वपूर्ण दिन

दूसरा दिन, जिसे खरनाके नाम से जाना जाता है, पर्व का सबसे कठिन और विशेष दिन माना जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को सूर्यास्त के बाद खीर, चावल की रोटी और केला का प्रसाद ग्रहण करते हैं। यह प्रसाद शुद्धता और भक्ति का प्रतीक होता है और इसमें परिवार सदस्य भी शामिल होते हैं। खरना की रात व्रती निर्जल रहते हैं और अगली सुबह तक बिना कुछ खाए-पीए रहते हैं। यह व्रत सिर्फ आस्था नहीं, बल्कि आत्मसंयम और तपस्या का प्रतीक है, जो हमें जीवन में अनुशासन और त्याग का महत्व सिखाता है।

संध्या अर्घ्य: डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा

तीसरे दिन की शाम को संध्या अर्घ्य का विधान होता है। इस दिन व्रती अपने परिवार और समाज के साथ नदी या तालाब के किनारे जाकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। सूर्यास्त का यह समय जीवन में उतार-चढ़ाव और संघर्षों को अपनाने की प्रेरणा देता है। डूबते सूर्य को अर्घ्य देना यह सिखाता है कि जीवन में सुख-दुःख दोनों को अपनाना चाहिए। यहाँ पर श्रद्धालु एक-दूसरे को प्रसाद बाँटते हैं और अपने रिश्तों को सशक्त बनाते हैं। संध्या अर्घ्य का यह अनुष्ठान सिखाता है कि समर्पण और विनम्रता ही सच्ची शक्ति है।

Chhath Puja

उषा अर्घ्य: उगते सूर्य की आराधना

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छठ और पौराणिक मान्यताएं

हमारी पौराणिक कहानियों और मान्यताओं के अनुसार, सबसे पहले छठ त्रेता युग में देवी सीता ने किया था। कहते हैं प्रभु श्रीराम ने सूर्य नारायण देव की आराधना की थी। इसके अलावा छठी मैया की पूजा से जुड़ी एक और कहानी राजा प्रियंवद से भी जुडी है, जिन्होंने सबसे पहले छठी मैया की आराधना की थी। इस लोक प्रिय छठ महापर्व पर माँ अपनी संतान की दीर्घायु, स्वास्थ्य और उज्जवल भविष्य के लिए सूर्य देव और छठी मैया की पूजा-अर्चना करती है। गौर करने लायक बात यह है इस व्रत के दौरान महिलाएं 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं। शायद यही वजह है कि इस व्रत को देश के सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है।

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छठ का प्रसाद: शुद्धता और आस्था का प्रतीक

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छठ: समर्पण, आस्था और परंपरा का प्रतीक

छठ पूजा

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