ग्वालियर नाम सुनते ही संगीत की धुन मन में बजने लगती है। यह शहर मध्य प्रदेश का एक ऐसा शहर है जो इतिहास की किताबों से निकलकर हकीकत में सांस लेता है। यक़ीनन, यहां की हर गली, हर इमारत एक पुरानी कहानी बयां करती है। यदि इसके इतिहास को खंगाला जाए तो ग्वालियर की शुरुआत 8वीं शताब्दी से मानी जाती है, जब यह एक मजबूत किला था जो राजाओं की रक्षा करता था। समय के साथ यह शहर राजपूत, मुगल और मराठा शासकों का गढ़ बना। बाबर ने इसे हिंद के किलों में मोती कहा था, क्योंकि इसकी मजबूती और सुंदरता बेहिसाब थी। एक ऊंचे पहाड़ पर बसा किला जो दूर से ही आकर्षित करता है।
आओ जानें ग्वालियर का इतिहास!
ग्वालियर का नाम ग्वाल वर्ण के एक राजा से पड़ा, जिन्होंने इस जगह को बसाया था। यह शहर संगीत का भी घर है माना जाता है। क्योंकि तानसेन जैसे महान संगीतकार यहीं पैदा हुए हैं। यूनेस्को ने तो ग्वालियर को संगीत का रचनात्मक शहर भी घोषित किया है। यहां की हवा में अभी भी रागों की धुन गूंजती लगती है। शहर की सड़कें आज भी पुराने दिनों की याद दिलाती हैं। बाजारों में घूमते हुए लगता है, जैसे समय रुक गया हो।

ग्वालियर में इतिहास और आधुनिकता सामंजस्य बेहद खास है। ग्वालियर की कहानी राजा मान सिंह तोमर से जुड़ी है, जिन्होंने 15वीं शताब्दी में शहर को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उन्होंने किले को मजबूत किया और संगीत को बढ़ावा दिया। आज भी तानसेन संगीत समारोह में दुनिया भर के कलाकार यहां आते हैं। यह शहर इतिहास से प्रेम करने वालों के लिए बिल्कुल सही है। यहां घूमते हुए लगता है जैसे आप एक किताब के पन्नों में खो गए हों।
सुरक्षा की दृष्टि से दी जाती है इस किले की मिसाल, क्यों ?
ग्वालियर फोर्ट को देखते ही आनंद का एहसास होता है। यह किला शहर के ऊपर एक पहाड़ी पर बसा है, जो दूर से ही अपनी सुंदरता से लोगों को आकर्षित करता है। यह भारत के सबसे मजबूत किलों में से एक माना जाता है। किले का इतिहास 6वीं शताब्दी से है, लेकिन इसका मुख्य निर्माण तोमर राजाओं ने करवाया था ऐसा माना जाता है। यह किला 3 वर्ग किलोमीटर में फैला है और इसमें कई महल, मंदिर और तालाब भी मौजूद हैं। किले में घुसते ही हाथी पोल का स्वागत मिलता है। यह दरवाजा हाथियों से प्रेरित है।
अंदर मन मंदिर महल है, जो राजा मान सिंह तोमर ने बनवाया था। इस महल की दीवारें कलरफुल टाइलों से सजी हैं, जो पीली, हरी और नीली रंगों के चित्र से सजी हुई हैं। हाथी, बाघ और मगरमच्छ जैसे जानवरों के चित्र देखकर लगता है जैसे कला जीवित हो उठी हो। यह महल, चित्र मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। फिर गुजरी महल आता है, जो राजा की पत्नी मृगनयनी के लिए बनाया गया था। यह महल गुजरी शैली में है और अब पुरातत्व संग्रहालय का हिस्सा है। यहां पर आज कई देखने लायक प्राचीन मूर्तियां और कलाकृतियां भी मौजूद हैं।
भारत की मोना लीसा?
एक मूर्ति शालभंजिका को भारत की मोना लीसा कहा जाता है। किले में तेली का मंदिर भी है, जो 11वीं शताब्दी का है। यह भगवान विष्णु को समर्पित है और इसकी ऊंचाई 100 फीट के लगभग है। मंदिर की नक्काशी तो लाजवाब ही है। गोपचल पर्वत पर जैन तीर्थंकरों की चट्टान काटकर मूर्तियां बनाई गईं हैं। यहां सबसे बड़ी मूर्ति पार्श्वनाथ की है, जो दुनिया की सबसे बड़ी एक ही पत्थर से बनी मूर्ति है। अद्भुत मंदिर जो हमेशा चर्चा का विषय बनता है सास बहू मंदिर भी इसी किले में हैं।

ये 11वीं शताब्दी के हैं और विष्णु को समर्पित माने जाते हैं। नाम सास बहू नहीं, सहस्रबाहु से आया है। वास्तव में मंदिरों की नक्काशी बहुत ही मनमोहक है। शाम को किले में लाइट एंड साउंड शो होता है। जिसमें अमिताभ बच्चन की आवाज में इतिहास की कहानियां सुनाई जाती हैं। यह शो किले को सिनेमाघरों के जैसा बना देता है। किले की दीवारें तो मानो समय की कहानियां बयां करती सी प्रतीत होती हैं।
ग्वालियर के महल के अंदर का नजारा देख, चौंक उठेंगे आप!
ग्वालियर के महल इतने हसीन हैं कि देखते ही दिल जीत लेते हैं। सबसे खास है जय विलास पैलेस, जो आज सिंधिया परिवार का घर है। यह 19वीं शताब्दी में बना और अब इसका आधा हिस्सा संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है। पैलेस में टस्कन, इतालवी और कोरिंथियन शैली का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। अंदर दुनिया का सबसे बड़ा झाड़ फानूस मौजूद है, जो 250 बल्बों से चमकता है। राजा ने इसे वर्साय पैलेस से प्रेरित होकर बनवाया था। संग्रहालय में प्राचीन हथियार, तस्वीरें और सिंधिया परिवार की कहानियां हैं। एक कमरा तो पूरी तरह सोने से सजा हुआ है। यह पैलेस राजसी वैभव की झलक देता है। जो वास्तव में, यहां घूमना सपने साकार करने जैसा है।
शाहजहां महल..
इसके बाद आते हैं शाहजहां महल पर, जो मुगल शैली में बना हुआ है। यह जय विलास के पास ही है जो सिंधिया राजाओं का ही था। किले में जहांगीर महल भी देखने को मिलता है, जो शेर शाह सूरी ने बनवाया था। बाद में जहांगीर ने इसे नया रूप दिया। महल की बालकनियां और मेहराबें बहुत ही खूबसूरत हैं। इस किले का करण महल तोमर राजा किर्ति सिंह का है। और विक्रम महल शिव मंदिर था, जो विक्रमादित्य सिंह ने बनवाया। ये महल राजाओं की जिंदगी की कहानियां बयां करते हैं। यहां की दीवारों पर चित्र बने हैं जो संगीत और नृत्य दिखाते हैं। ग्वालियर संगीत का शहर है, इसलिए महलों में राग रागिनी के चित्र हैं आप खूब देख पाएंगे। यह दुनिया पर्यटकों को नया एहसास देती है। महलों में घूमते हुए लगता है जैसे आप स्वयं ही राजा बन गए हों। सुकून भरी शामें यहां बिताना तकरीबन जन्नत के जैसा महसूस कराती हैं।
इतिहास के साथ अध्यात्म का मनोरम स्थल है ग्वालियर
ग्वालियर के मंदिर इतने मनभावक हैं कि देखकर आस्था जाग उठती है। सास बहू मंदिर किले में ही हैं। ये 11वीं शताब्दी के हैं और लाल बलुआ पत्थर से बने हैं। मंदिरों की नक्काशी बेजोड़ है। दीवारों पर रामायण और महाभारत के दृश्य उकेरे गए हैं। एक मंदिर में बहुत सारी कामुक मूर्तियां भी हैं, जो खजुराहो की याद दिलाती हैं। चतुर्भुज मंदिर 9वीं शताब्दी का माना जाता है। यह भगवान विष्णु को समर्पित है। मंदिर की दीवार पर शून्य का सबसे पुराने चित्र हैं। यह वैज्ञानिक इतिहास का हिस्सा हैं। किले का सूर्य मंदिर 1988 में बना था और कोणार्क से प्रेरित है। यह मंदिर सूर्य देव को समर्पित है और सुबह की पड़ती किरणें इसे सूर्य के जैसा ही चमका देती हैं।

मुगल शैली के भी कई नमूने यहां देखने को मिलते हैं। गौस मोहम्मद का मकबरा मुगल शैली में है। यह एक अफगान के राजकुमार का है। मकबरे की जालीदार दीवारें सुंदर हैं। इसके बाद हम बात करते हैं, अचलेश्वर मंदिर की। तो अचलेश्वर मंदिर शिव को समर्पित है। यह किले के ही पास है। बटेश्वर मंदिर के बारे में तो आपने सुना ही होगा। बटेश्वर मंदिर समूह 200 छोटे मंदिरों का क्लस्टर है। ये शिव और विष्णु को समर्पित हैं। मंदिरों की नक्काशी तो अद्भुत है ही। मंदिरों का आकर्षण आस्था और कला का अद्भुत संगम है। यहां घूमना मन को शांति देता है।
ग्वालियर को क्यों कहा जाता है संगीत और कला का संगम
ग्वालियर की संस्कृति इतनी उम्दा है कि यहां आकर लगता है जैसे हम ठहर से गए हों। यह शहर संगीत का गढ़ है। संगीत सम्राट तानसेन का जन्म भी यहीं हुआ है। यहां तानसेन संगीत समारोह हर साल अप्रैल में होता है। और दुनिया भर के कलाकार इस ऐतिहासिक जगह पर आते हैं। उस दौरान रागों की धुनें हवा में घुल जाती हैं। दरअसल, ग्वालियर घराना संगीत की एक शैली है। यह खयाल गायकी के लिए मशहूर है। शहर में कई संगीत स्कूल हैं, जिनमें लोक संस्कृति का संरक्षण किया जाता है। यदि आप यहां के बाजारों में घूमने निकलते हैं तो बाजारों में घूमते हुए आपको लोक गीत सुनाई देते हैं।
कला का खजाना है यह शहर। राग रागिनी तो पहचान है इस शहर की। त्योहारों के समय की तो बात निराली है, पूरा शहर रौनक से भर जाता है। हर अच्छे मौके या उत्सव पर, जैसे दीवाली के समय किले को खूब सजाया जाता है।









