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Dhanaulti Uttarakhand: धनौल्टी- जहाँ की फ़िज़ाओं में ही रोमांस है

by Pardeep Kumar

अक्टूबर महीने की बात है जब कॉलेज ट्रिप के साथ मेरा धनौल्टी जाने का प्लान बना। मेरी बहुत-सी यात्रायें नौजवान विद्यार्थियों के साथ ही मुमकिन हो पाई हैं। हँसते खिल-खिलाते ऊर्जा से भरपूर युवाओं के साथ यात्रा करना वास्तव में गज़ब का अनुभव है। धनौल्‍टी मसूरी से कुछ ही दूरी पर स्थित एक बेहद खूबसूरत हिल स्टेशन है।

किस समय यहाँ आना सबसे बेहतर

चारों और से देवदार से घिरी यह जगह अपनी लंबी-लंबी ढलानें और धीमे गति से चलने वाली ठंडी हवाओं के कारण यहाँ आने वाले पर्यटकों का मन मोह लेती है। यहाँ पहुँचने का सही समय वैसे तो मार्च से जून के बीच है लेकिन अक्टूबर के महीने में भी आप इस जगह की ख़ूबसूरती का भरपूर मजा उठा सकते हैं। अक्टूबर के महीने में दिन में इतनी कड़ाके की सर्दी नहीं महसूस होती, हाँ, रात को किसी भी हिल स्टेशन पर आपको हीटर की जरुरत अवश्य महसूस होगी। शायद यही अदा होती है पहाड़ों की कि अगर सर्दी में भी अलाव सेंकने की नौबत न आये तो फिर आप क्या पहाड़ों में आये।(Dhanaulti, Uttarakhand)

कैसे पहुंचे धनौल्टी

कई हिल स्टेशनों पर विचार विमर्श करने के बाद आखिरकार धनौल्टी जाना तय हुआ। अगर आप एक बड़े ग्रुप में जा रहे हैं तो ट्रैवलर करना सबसे बेहतर रहता है। वरना चार-पांच लोगों के लिए तो अपनी कार से बेहतरीन कुछ भी नहीं। दिल्ली से धनौल्टी लगभग 320 किलोमीटर की दूरी पर है और आपको दिल्ली से धनौल्टी पहुँचने में लगभग 7 घंटे का समय अवश्य लग जायेगा। हम शाम को 4 बजे के करीब दिल्ली से निकले और रात 11 बजे के आसपास धनौल्टी पहुंच गए। क्योंकि सफर लम्बा था, और रास्ते भर अंताक्षरी और शेरों शायरी का कभी न खत्म होने वाला दौर चला था इसलिए थकान लाज़िमी थी, सो डिनर किया और बिस्तर पर गिरते ही नींद की आगोश में चले गए। क्योंकि हमने पहले ही किसी होटल की बजाय कैंप रिज़ोर्ट बुक किया था, धनौल्टी जाएँ और एडवेंचर का आनंद न लें तो बात कुछ जमती नहीं।

और ये टेंट हाउस वाला रिजॉर्ट  इतना खूबसूरत होगा ये हमें सुबह जागने के बाद पता चला। पहाड़ों की तलहटी में एक दूसरे से थोड़ी-थोड़ी दूर बने ये टेंट हाउस सूरज की पहली किरण के साथ ही चमक उठे। सामने हिमालय की बर्फीली चोटियां, दूर से हमारी और कौतुहलता से ताकते देवदार के लम्बे-लम्बे वृक्ष मानों कह रहे हों कि एक बार यहां आ ही गए हो तो अब लौट कर जाने की न सोचना।

खूबसूरत सूर्योदय का रसपान

अगर आप किसी हिल स्टेशन में उगते सूरज के साथ पहाड़ों पर फैली सोने-सी लालिमा और मनभावन दृश्य का आनंद लेना चाहते हैं तो बस सुबह थोड़ा जल्दी जागना पड़ेगा। और मैं चाह कर भी ऐसे दृश्य को मिस नहीं करना चाहता था। इसलिए थोड़ा जल्दी जाग गया। जल्दी-जल्दी दैनिक कार्यों से निवृत होकर बहादुर को चाय के लिए आवाज़ लगाई। सर्द सुबह के छह बजे थे। मेरे और बहादुर के अलावा सब गहरी नींद में सोये हुए थे। बहादुर रिज़ोर्ट का मुख्य कुक था जिससे रात के खाने के समय जान-पहचान हो गई थी। अगर आप खाने के थोड़े भी शौक़ीन हैं तो आपको ये जान पहचान करनी ही पड़ती है। बहरहाल अपने टेंट हाउस के बरामदे में बैठ कर सुबह-सुबह कड़क और एकदम गर्म चाय का आनंद लिया और एकबारगी तो लगा बस यहीं घंटों बैठा रहूं और प्रकृति के निरंतर बदलते मूड्स में खो जाऊं। हवायें  चल रही थी और वो भी ठंडी, लेकिन  एकदम शुद्ध। आजकल ये खुली हवा नए उभरते शहरों में दुर्लभ हो गई है और ये बड़े शहर मानों नए ज़माने के शरणार्थी शिविर जैसे हो गए हैं। आबादी के साथ शहर भी बढ़ रहे हैं और सुविधाएँ भी। साथ में बढ़ रही है एक दूसरे से आगे निकल जाने की होड़। और इन शहरों के कोने-कोने में लगे श्लोगन ‘योर क्लीन सिटी’ ‘योर ग्रीन सिटी’ जैसे वहां के बाशिंदों को देखकर मुँह चिढ़ा रहे हो। हर शहर में कई-कई नए शहर बन रहे हैं। सब कुछ मिल जायेगा इन महानगरों में- सिवाय खुली हवा के, शुद्ध हवा के।

पहाड़ों के गांव और जनजीवन

हमारे रिज़ोर्ट से दो सौ मीटर नीचे, तलहटी में बसा एक छोटा-सा गांव दिखाई दे रहा था। हमारे इधर ऐसे थोड़े बहुत घरों वाले गांव को ढाणी कहते हैं। पहाड़ों में आप कहीं भी चले जाइये ऐसे ही छोटे-छोटे गांव दिखाई देंगे। अभी नाश्ते में काफी समय था इसलिए सोचा आज मॉर्निंग वाक पहाड़ों में ही सही। इसलिए अपना कैमरा उठाया, मफलर पहना और कदम बढ़ा दिए नीचे तलहटी की और। अक्टूबर के महीने में भी दिसंबर जैसी सर्दी का अहसास हो रहा था। नीचे उत्तरते ही सामने एक बूढ़ी अम्मा दिखाई दी, जो बड़े इत्मीनान से अपनी गाय को चारा डाल रही थी। मुझे देखकर थोड़ी ठिठकी और फिर दोबारा से अपने काम में लग गई। शायद मेरे हाथ में कैमरा देख लिया था और ऊपर रिज़ॉर्ट से अनेक सैलानी अक्सर यहाँ आते होंगे, इन पहाड़ी गांव के मनोरम दृश्य कैद करने। लेकिन इन सब में एक बात जो पहाड़ी लोगों की मुझे पसंद आयी, खासकर शहर से थोड़ा दूर इन छोटे छोटे-गांव में  वो ये थी कि ये लोग होते बहुत शांत हैं, एक अलग तरह का संतोष हमेशा मुझे इनके चेहरे पर दिखाई देता है। मुझे दो-तीन छोटे बच्चें वहां खेलते दिखाई दिए। थोड़ी देर वहां ठहर कर प्रकृति के कुछ अनछुए-अनदेखे पलों का रसपान किया और वापिस आ गया अपने रिज़ॉर्ट में। तब तक नाश्ता तैयार हो चुका था और बाकी सब नहाने-धोने में व्यस्त थे।

 देवदार के पेड़ों से घिरा हुआ खूबसूरत इको पार्क

आज हमारा धनौल्टी में ही एक बेहद खूबसूरत जगह इको पार्क जाने का प्रोग्राम था। सबने अच्छे से नाश्ता किया। चाय और परांठे वो भी मक्खन के साथ। गरमा गर्म नाश्ते का लुत्फ़ उठाने के बाद हम निकल पड़ें इको पार्क की और। तकरीबन बारह बजे तक हम पार्क पहुंच गए थे। धनौल्टी चारों और से  लम्बे-लम्बे देवदार के पेड़ों से घिरा हुआ है और इन पेड़ों की सारी  खूबसूरती जैसे ईको पार्क में समा  गई हो। ईको पार्क के गेट के सामने बहुत सारे फ़ूड स्टॉल मिल जायेंगे जहाँ बैठकर आप स्वादिष्ट मैगी और चाय का आनद लेते हुए प्रकृति के विहंगम दृश्यों का मजा ले सकते हैं।

धनौल्टी का यह ईको पार्क लगभग पंद्रह-बीस एकड़ में फैला हुआ है। अपने अनुभव से मैं इतना जरूर कहूंगा की फोटोग्राफरों के लिए यह जगह किसी जन्नत से कम नहीं है। फोटोग्राफी के शौकीन लोगों को यहाँ बेहतरीन स्पॉट मिल जायेंगे। मुझे वहां फैमिलीज़ के अलावा बहुत सारे कपल्स भी दिखाई दिए जो दूर-दूर तक फैली इन वादियों का भरपूर आनंद ले रहे थे। यहां पर बच्चें, युवा या बुज़ुर्ग सभी के लिए कुछ न कुछ मिल ही जायेगा। इस पार्क में बर्मा ब्रिज, फ्लाइंग फॉक्स और झूलें आदि जैसे आकर्षण के साथ लंबे घुमावदार रास्ते, दोनों ओर सुंदर फूलों की क्यारियां और थोड़े एडवेंचर के लिए सीधी सीढ़ियां सब कुछ है।(Dhanaulti, Uttarakhand)

ईको पार्क की प्राकृतिक खूबसूरती और खुशनुमा वातावरण के चलते ही यहां पर्यटकों का हमेशा जमावड़ा लगा रहता है। खैर मैंने यहाँ तसल्ली से बहुत सारे सुन्दर लम्हें अपने कैमरे में कैद किये। हमारे रिज़ॉर्ट से ईको पार्क थोड़ी ही दूर था सो हमनें वापिसी में पैदल चलने का ही फैसला किया। वैसे देखा जाये तो धनौल्टी जैसे पहाड़ी स्थानों पर पैदल ही घूमना ठीक रहता है क्योंकि पहाड़ का मतलब है विहंगम दृश्य। जिसका सबसे ज्यादा लुत्फ़ रुकते-रूकाते पैदल चलने में ही है। और अगर आप अपने पार्टनर के साथ हैं तो यहाँ से बेहतर क्या कुछ होगा क्योंकि यहां की फिजाओं में ही रोमांस बरसता है।

घूमने-देखने के लिहाज़ से धनोल्टी में एक और खूबसूरत जगह है- ईको पार्क से लगभग छह किलोमीटर दूर सुरकंडा देवी मंदिर। अगर आप कलात्मक चीजों और खरीददारी के शौकीन हैं तो मंदिर के आस पास सड़क के दोनों ओर छोटी-छोटी मनियारी की दुकानें आपको मिल जाएँगी। यहाँ पर ये निर्भर करेगा की आप कितना पैदल यात्रा कर सकते हैं क्योंकि आम तौर पर पहाड़ी स्थानों पर मंदिर थोड़े ऊचाईं पर ही होते हैं। धनौल्‍टी में इको पार्क और सुरकंडा देवी मंदिर के अलावा जोरांडा फॉल्‍स, हिमायलन वीवर्स और धनौल्‍टी एडवेंचर पार्क भी पर्यटकों का खूब मन मोहते हैं। अगले दिन हमारा प्रोग्राम था टिहरी बांध देखने का। टिहरी धनौल्टी से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर है। टिहरी के लिए चम्बा से होकर जाना पड़ता है। यात्रा वृतांत के अगले भाग में मैं आपको अपने अनुभव से रू-ब-रू करवाऊंगा नए टिहरी शहर से और बताऊंगा क्यों एक पूरा शहर पानी में डुबो दिया गया।

 

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Glimpse of Dhanaulti..

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New Tehri – Uttarakhand Tourism

Tehri Uttarakhand- टिहरी: एक ऐसा शहर जिसे कभी डूबा दिया गया था

by Pardeep Kumar

धनौल्टी में नेचर व्यू, एडवेंचर स्पॉट्स, ईको पार्क, सुरकंडा देवी मंदिर और स्थानीय गांव और बाजार देखने के बाद शेड्यूल के अनुसार अगले दिन हमारा प्रोग्राम था चम्बा और टिहरी बांध और शहर देखने का। जिसके बारें में हमने काफी सुना था।

धनौल्टी से टिहरी

टिहरी जाने का खास मकसद था एक ऐसे शहर को देखना, समझना जिसे डूबा कर उस पर बांध बना दिया गया था। सम्भवतः जिसकी गिनती देश के सबसे बड़े बांधों में की जाती है।
सुबह नाश्ते में मिक्स वेज परांठे लिए वो भी ताजा मक्खन और गरमा-गर्म चाय के साथ। पहाड़ों की सर्दियों में चाय आपको अवश्य रास आएगी। धनौल्टी से टिहरी लगभग ढाई-तीन घंटे का सफर था। चम्बा शहर के बाजार होते हुए हम तकरीबन एक बजे टिहरी झील पहुंचे। जिसे आज सुमन सागर के नाम से जाना जाता है। जहाँ आज लगभग बयालीस किलोमीटर लम्बी झील दिखाई देती है वहां कभी भरा-पूरा टिहरी शहर था। बताते हैं यह टिहरी शहर दो सौ साल से भी ज्यादा समय तक आबाद रहा। (Tehri, Uttarakhand)

आज भी जब गर्मियों में झील के पानी का लेवल कम हो जाता है तब आप आसानी से इस शहर के राजमहल के कुछ हिस्से इस विशाल झील में देख सकते हैं। आज इस पूरे क्षेत्र को एक सुन्दर टूरिस्ट स्पॉट के रूप में डेवेलप किया गया है। झील के किनारे पर बहुत सारे छोटे-छोटे फ़ूड स्टाल बनाये गए हैं जहाँ पर पर्यटक जलपान करते हुए पहाड़ों की तलहटी में दूर-दूर तक फैली झील को निहार सकते हैं, प्राकृतिक दृश्यों का आनंद ले सकते हैं।

जब विकास की भेंट चढ़ा एक भरा पूरा आबाद शहर

हमने वहां पहुँच कर सबसे पहले मैगी आर्डर की और चाय पीते हुए इत्मीनान से अपनी थकान उतारी। चाय के शौकीन लोगों के लिए इससे बेहतर तो क्या ही होगा। नीला आसमान और सर्द तेज हवाएं बड़े मेट्रो शहर और पहाड़ों के दरमियान जो बड़ा अंतर् है उसे बयान कर रही थी। वही चाय पीते हुए पता चला कि सिर्फ एक बांध बनाने के लिए एक पूरे टिहरी शहर को डूबा दिया गया। एक पूरा शहर विकास की भेंट चढ़कर सदा के लिये पानी में समा गया। बताते हैं इस बांध के निर्माण से यहाँ के लगभग 125 गांवों पर असर पड़ा था। इस दौरान 37 गांव पूरी तरह से डूब गए थे जबकि 88 गांव आंशिक रूप से प्रभावित हुए थे। और फिर नए टिहरी शहर को बनाने के लिए पहाड़ और असंख्य पेड़ों को अपनी कुबानी देनी पड़ी। यह नया टिहरी शहर वहां से लगभग चौदह-पंद्रह किलोमीटर दूर थोड़ी ऊंचाई पर बनाया गया।

वाटर स्पोर्ट्स और एक्टिविटीज का हब – टिहरी झील

यह बांध और झील जहाँ पर तरह-तरह के वाटर स्पोर्ट्स, जेट स्कीइंग से हॉट एयर बैलून सवारी तक कई अलग-अलग एक्टिविटीज शामिल हैं, और शायद वहां के बहुत सारे स्थानीय लोगों के लिए रोजगार का अवसर भी। टिहरी झील आकर पर्यटक नौका विहार, जेट स्पीड बोट सवारी, वाटर स्कीइंग, जोर्बिंग, बनाना वोट सवारी, बैंडवेगन वोट सवारी, हॉटडॉग सवारी और पैराग्लाइडिंग जैसे स्पोर्ट्स एडवेंचर्स कर सकते हैं।

वहीं टिहरी झील के किनारे एक जगह वाटर एक्टिविटीज के लिए टिकट काउंटर था जहाँ से हमने बोटिंग करने के लिए टिकट लिया और खूबसूरत पहाड़ों के बीच दूर तक फैली टिहरी झील का लगभग 4० मिनट जी भर कर आनंद लिया। आप एक लम्बा सफर तय करने के बाद जब इस झील में एक शिकारे टाइप बोट से प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेते हैं तब ऐसा लगेगा कि इतनी दूरी तय करके यहाँ आना किसी भी तरह घाटे का सौदा नहीं है।

झील के पास पहुँचते ही आपका हाथ अपने आप कैमरे या फोन तक जायेगा और आप स्वयं को यहाँ के खूबसूरत लम्हों को कैद करने से बिलकुल भी नहीं रोक पाओगे। मन करेगा यहाँ से सब कुछ समेट ले जाओ। आपको यहाँ अनगिनत नेचुरल सेल्फी पॉइंट मिल जायेंगे जहाँ आप जी भर कर फोटो ले सकते हैं।

दरअसल हिल स्टेशन अपने दृश्यों के लिए जाने जाते हैं ऐसे में वहां अगर आपको नेचुरल व्यूज के अलावा झील और एडवेंचर स्पॉट मिल जाये तो समझ लीजिए यात्रा सफल। इसी मनभावन सौदर्यता से परिपूर्ण टिहरी शहर में और इसके आसपास की खूबसूरत जगहों पर बॉलीवुड स्टार शाहीद कपूर और श्रद्धा कपूर की फिल्म बत्ती गुल मीटर चालू की लगभग सारी शूटिंग हुयी है।
हमने टिहरी में अच्छा-खासा समय व्यतीत किया। और शाम तक नए टिहरी शहर और चम्बा होते हुए वापिस धनौल्टी अपने रिज़ोर्ट पहुँच गए। अगले दिन वापिसी तय थी और फिर शामिल हो जाना था उसी भीड़ भाड़ और व्यस्तता भरी दुनिया में जहाँ लौटना हमारी मजबूरी थी।  (Tehri, Uttarakhand)

 

Written by Pardeep Kumar

 

some glimpse of Tehri Lake….

 

 

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