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मानसून वॉक्स: जब भीगते रास्ते प्रकृति से जोड़ते हैं दिल का रिश्ता

मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू, पत्तों पर थिरकती बूंदें और ठंडी हवा का वह शांत संगीत, जो मन के भीतर तक उतर जाता है- मानसून सिर्फ एक मौसम नहीं होता, यह एक एहसास है। जब बारिश की बूंदें शहर की सड़कों या गांव की गलियों को धोती हैं, तो दिल अपने आप ही किसी पुराने गीत, किसी भूले हुए विचार या किसी अधूरे ख़्वाब की ओर खिंचने लगता है।

मानसून में टहलना एक तरह का ध्यान है। जब आप छतरी बंद करके या बिना किसी जल्दी के, बस यूं ही चलने निकलते हैं। तो आसपास की हरियाली, हवा की नमी, और धरती की गंध आपके भीतर ठहराव पैदा करती है।

कई लेखकों और कवियों के लिए बारिश सबसे बड़ा प्रेरणा-स्रोत रही है। रवींद्रनाथ ठाकुर हों या गुलज़ार, हर किसी ने बारिश को अपने शब्दों में मोतियों की तरह पिरोया है। और जब आप इस बारिश में बिना मोबाइल, बिना किसी डिवाइस के चलने निकलते हैं, तो आपको अपनी ही धड़कनों की आवाज़ सुनाई देने लगती है।

मानसून

चाहे कोई हिल स्टेशन की कच्ची सड़क हो, शहर के पार्क की पगडंडी हो या गाँव में घर के पास का छोटा सा तालाब- मानसून वॉक्स इन सभी को खास बना देती हैं। उस वॉक के दौरान चाय की चुस्की, अगर आप चशमिश हैं तो चश्में पर आ जाने वाली ओस, हाथ में किताब, या दोस्तों के साथ की हंसी- ये सारी चीजें एक याद में बदल जाती हैं।

यह मौसम हमें धीमा होना सिखाता है। रुकना, देखना, और महसूस करना सिखाता है। जब बाहर सबकुछ गीला और चलायमान होता है, तभी भीतर कुछ ऐसी भावनाएं पनपती हैं जो शांत और ठहरी हुई होती हैं। यह मौसम अपने साथ केवल जलधारा नहीं लाता, ये लाता है जीवनदर्शन- जिसमें नज़ाकत है, नमी है, और है कुछ पल के लिए भार रहित हो जाने की भावना।

मानसून

तो जब अगली बार बारिश हो, बस बाहर निकलिए – अकेले या किसी अपने के साथ। चलिए, एक ऐसी वॉक पर, जहां न मंज़िल की जल्दी हो, न कोई प्लान। क्योंकि अक्सर, सबसे गहरी बातें उन रास्तों पर होती हैं जहां सिर्फ आप और प्रकृति होती है

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