धनतेरस जिसे “धनत्रयोदशी” भी कहते हैं, हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक-मास की कृष्ण पक्ष की 13वीं तिथि पर मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से तीन देवताओं भगवान धन्वंतरि जो की स्वास्थ्य व आयु के देवता माने जाते हैं, देवता कुबेर जिनको धन के अधिपति कहा जाता है। तथा देवी लक्ष्मी जो समृद्धि की देवी हैं को समर्पित है।

धनतेरस का इतिहास व पौराणिक कथा
एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, जब देव-दानवों ने समुद्र मंथन किया था, तब भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए और इसी दिन देवी लक्ष्मी भी उपलब्ध हुईं। इसके अलावा, राजा हिम के पुत्र की मृत्यु का समय सांप काटने से तय हुआ था, पर उसकी नवविवाहिता पत्नी ने घर को दीपों व सोने-चाँदी से सजाया। यमराज जब आए तो दिलकश प्रकाश और धन-भंडार देखकर चकित हो गए, अंततः रक्षा मिली। (धनतेरस जिसे “धनत्रयोदशी” भी कहते हैं,)

मूल उद्देश्य व महत्व
- यह दिन धन (संपत्ति) का प्रतीक है इसलिए सोना, चाँदी, नए बर्तन आदि खरीदने की परंपरा है।
- साथ ही स्वास्थ्य और जीवन-शक्ति का भी संदेश है क्योंकि भगवान धन्वंतरि का भी इसमें मुख्य स्थान है।
- घर-दफ्तर को साफ-सुथरा, दीप-रंगोली से सजाना, अंधकार को दूर कर प्रकाश व सकारात्मक ऊर्जा लाने की प्रतीक्षा है।

कैसे मनाते हैं?
- शाम को पूजा-अर्चना होती है देवी लक्ष्मी, कुबेर एवं धन्वंतरि की प्रतिमाएँ आदि पूजी जाती हैं।
- सोना-चाँदी, नए बर्तन, नए उपकरण आदि शुभ सामग्री के रूप में खरीदे जाते हैं।
- घर-मुख पर दीपक जलाते हैं खासकर दक्षिण दिशा की ओर एक दीप यम-दर्पण के लिए, ताकि काल-रात्रि व बुराई से रक्षा हो सके।

इस प्रकार, धनतेरस केवल संपत्ति अर्जित करने का दिन नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, शुभारंभ और सकारात्मक ऊर्जा का पर्व भी है। इसे मनाना हमारे लिए एक अवसर है अपने घर-परिवार को बहुमूल्य सामान से सजाने का, अच्छे स्वास्थ्य की कामना करने का, और प्रकाश व आशा के साथ नए समय की शुरुआत करने का।