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आपने दिल्ली की जानी-मानी जगहें तो बहुत घूमी होंगी पर अब वक्त है एक अनजान और नए सफर पर ले चलने का। हम निकले हैं दिल्ली की कुछ नायाब इमारतों की खोज में, जिनका महत्व तो बहुत है पर प्रचार और इतिहास में जगह न मिल पाने के कारण आज ये स्थान पर्यटकों की नजरों में या तो नहीं हैं या बहुत कम हैं।
लम्बे रिसर्च और ढेरों जानकारियां निकालने के बाद फैसला किया सफदरजंग का मकबरा देखने का। गूगल मैप पर अपनी अन्य खोजों के दौरान कई बार मकबरे के नाम पर नजर पड़ी पर अनजान और अनसुने नाम के कारण कभी गौर नहीं किया था। इस बात की भी कोई जानकारी नहीं थी कि मकबरा हुमायूं के मकबरे जैसी ही सुंदरता समेटे हुए है भले ही वह बहुत विशाल और विस्तृत न हो। गूगल पर कुछ तस्वीरें देखीं और मन बनाया सफदरजंग का मकबरा देखने का। सफर का मकसद दुनिया को दिल्ली की अनछुई, अनदेखी लेकिन खूबसूरत जगहों से रु-ब-रु कराना है। Safdarjung Tomb
सफदरजंग मकबरे के लिए सबसे निकटतम मेट्रो स्टेशन येलो लाइन पर स्थित जोर बाग है। इस स्टेशन से मकबरा लगभग चार सौ मीटर की दूरी पर है। मेट्रो स्टेशन से मकबरे तक जाने के लिए आप या तो बैटरी रिक्शा किराये पर ले सकते हैं या फिर मकबरे तक आराम से पैदल यात्रा भी कर सकते हैं।
मकबरे के मुख्य द्वार पर पहुँच कर लगा जैसे हम किसी राजस्थानी महल के सामने विराजमान हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि मक़बरा बेहद सुन्दर लग रहा था। बिलकुल ऐसे कि बाहर से देखकर कोई भी अंदर खिंचा चला जाए। रुख किया टिकटघर की तरफ 25 रुपये के मामूली दाम का टिकट कटाया और चल पड़े दूर से दिख रहे खूबसूरत से मकबरे की तरफ।
मुख्य द्वार (जो एक समय पर मदरसा हुआ करता था) से निकल ही रहे थे कि आवाज़ आई- रुकिए! एंट्री तो कर दीजिए। आवाज़ चौकीदार साहब की थी। एंट्री रजिस्टर देखा तो आश्चर्य से आँखें बड़ी हो गई। केवल 20 लोगों की एंट्री। परिसर में ऐसे तो दूर-दूर तक कोई नहीं दिखा पर थोड़ा आगे चलते ही कुछ प्रेमी परिंदे दिखने लगे तब कुछ राहत मिली। सुनसान और एकांत सा देखकर एक पल थोड़ी घबराहट लाज़िमी है लेकिन थोड़ा आगे बढ़ने पर कुछ ही पलों में यह घबराहट उत्साह में बदल जाती है।(Safdarjung Tomb)
सामने सफदरजंग का मकबरा था और उसके आगे बड़ा-सा फव्वारा जो मकबरे की सुंदरता में स्वर्ग-सा तेज प्रदान कर रहा था। फव्वारे के जल में मकबरे का अक्स और भी खूबसूरत लग रहा था, भला कोई कैसे इसकी तस्वीर अपने कैमरे में कैद किए बिना रह सकता था। मकबरे की स्थापत्य शैली बहुत सहज पर शोभनीय लगी। चार बाग शैली इसे और भी आकर्षक बनाती है। कुतुब मीनार, लाल किला के अपने सफर में हम आपको चार बाग शैली के बारे में बता ही चुके हैं।
मुगल कालीन इमारतों में ये शैली बहुत प्रसिद्ध रही है। परिसर में बीचों-बीच सफदरजंग मकबरा है और मकबरे के तीन तरफ एक जैसे दिखने वाले तीन अलग-अलग महल हैं- जंगली महल, बादशाह पसन्द और मोती महल। तीनों महल उत्तर मुगलकालीन वास्तुशैली में बने हैं। मेहराबयुक्त मण्डप जैसे सफेद महल परिसर की सुंदरता बढ़ाते हैं।
अब मकबरे के अंदर पहुंचने की जल्दी थी। एक खास बात ये थी बाहर से देखने पर मकबरा चारों तरफ से एक जैसा ही दिखता था। चारों ओर एक ही शैली में फ़व्वारे बने हैं। एक पल को ये मकबरा हुमायूं के मकबरे जैसा ही दिखता है। मकबरे के अंदर की खूबसूरती का क्या ही बखान करें। इसे देखना भर ही इसका जवाब है।
चारों ओर से सूर्य की किरणें छनकर मकबरे को रोशन करती हैं। मकबरे के बीचों-बीच सफदरजंग की मजार सूर्य की किरणों से चमकती नजर आती है। मकबरे की पहली मंजिल से परिसर में बने तीनों महल और परिसर की मस्जिद भी साफ नजर आती है। यहाँ आकर एक बात जो साफ़ नज़र आयी वो ये कि भले ही यह मकबरा ताज या हुमायूँ के मकबरे की तरह भव्य और आलीशान न हो लेकिन इसकी सादगी और बनावट मन को खूब भाती है, वाकई में ऐसा नजारा देखना जन्नत से कम नहीं। न जाने क्यों दुनिया इतनी हसीन और खूबसूरत जगह से वाकिफ़ नहीं है, ये किसी बदनसीबी से कम नहीं।
अक्सर नाम को लेकर यह भ्रम हो ही जाता है कि सफरदजंग कोई बादशाह था, क्योंकि देश भर में अधिकतर मकबरें तो राजा या किसी बादशाह के ही बने हुए हैं। लेकिन सफदरजंग मकबरे के बारें में यह सोचना गलत है। दरअसल, वह मुगल बादशाह मुहम्मद शाह का प्रधानमंत्री था। 1753-54 में नवाब शुजाउद्दीला ने अपने पिता मिर्जा मुकीम अबुल मंसूर खान जिनकी उपाधि सफदरजंग थी, की स्मृति में सफदरजंग मकबरे का निर्माण करवाया था। सफदरजंग मुगल बादशाह मुहम्मद शाह के शासन काल में अवध के सूबेदार और प्रधानमंत्री रहे।
लाल बलुआ पत्थर से बना भव्य मकबरा वाकई सुंदरता की मिसाल है। मकबरे के गार्ड साहब से बात करने पर इसके अलग-अलग महलों की जानकारी हुई। परिसर की पूरी जानकारी उन्होंने एक गाइड की भांति मुझे दी। ऐसे किसी स्मारक स्थल पर लम्बे समय तक रहते-रहते कोई भी कर्मचारी एक समय के बाद गाइड हो ही जाता है। बातचीत में गार्ड साहब ने ये भी कहा- ‘ये जगह बहुत खूबसूरत है पर लोग कम ही आते हैं। आए दिन लोग इसके ऊपर वीडियो बनाने आते हैं ताकि लोग इस जगह को जान सके। जबसे इसका जीर्णोद्धार हुआ है तबसे पहले से कुछ ज्यादा लोग यहाँ आने भी लगे हैं। बाकी हमारा अनुभव शानदार रहा। और हम वहां से यह सोचकर विदा हुए कि जल्द ही सर्दियों में इस मकबरे का दोबारा दीदार हो। यही सुझाव है कि दिल्ली आए तो एक बार सफदरजंग का मकबरा जरूर घूमें और दिल्ली के ही हैं तो एक बार इस खूबसूरती पर भी अपनी निगाहें अवश्य डालें।
क्यों देखें सफदरजंग मकबरा ? Five reasons to visit this place-
1. मेट्रो स्टेशन से बिलकुल पास है आप आसानी से यहाँ आ सकते हैं।
2. जबसे इस मकबरे का जीर्णोद्धार हुआ है तबसे यह और भी सुन्दर दिखाई देता है।
3. पहला मकबरा है जो किसी शाही बादशाह या राजा का नहीं है बल्कि किसी बादशाह के प्रधानमंत्री का है।बहुत बड़ा और आलीशान नहीं है लेकिन इसकी बनावट दिल को खूब भाती है। इसकी सादगी रिझाने वाली है।
4. अन्य मुग़लकालीन इमारतों की तरह यहाँ भी प्रसिद्ध चार बाग शैली का प्रयोग किया गया है।
5 . यहाँ पर्यटकों की बहुत अधिक भीड़ नहीं होती। क्वालिटी टाइम बिताने के लिए बेहद माकूल जगह।
Research by Nikki Rai