किताब और पाठक का रिश्ता दुनिया के सबसे अटूट रिश्तों में से एक है। जिसे और मजबूत बनाती है देश के सबसे बड़ी पुस्तक मार्किट में से एक दरियागंज बुक मार्किट(Dariya ganj Book Market)। दिल्ली में स्थित दरियागंज मार्किट के बारे में तो आपने सुना ही होगा, जो देश विदेश के फेमस पब्लिशर्स का जाना पहचाना ठिकाना है। लेकिन क्या आपको पता है कि दरियागंज मार्किट में अलग-अलग विषयों पर आधारित किताबें भी मिलती है? जी हाँ, वही सारी किताबें जिनके बारे में हम सुनते और पढ़ते हैं। चाहे फिर वो किताब भारत के किसी भी कोने से प्रकाशित क्यों न हो। पुरानी दिल्ली का प्रसिद्ध इलाका दरियागंज विभिन्न कारणों से फेमस है जिसमें से एक बड़ा कारण वहां किताबों का भंडार होना भी है, जो पाठकों और बुक लवर्स के लिए एक अलग ही दुनिया का आभास कराता है। Daryaganj Book Market
दरियागंज बुक मार्किट
हाल-फ़िलहाल दरियागंज बुक मार्किट खूब चर्चा में रही, कारण था पिछले 50 वर्ष से भी अधिक समय से लगते आ रहे फेमस संडे बुक बाजार का हटना। संडे बुक बाजार का पूरे उत्तर भारत में नाम है। खासियत ये कि यहां पुस्तकें काफी कम दाम पर मिलती हैं। इसमें राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय लेखकों के साहित्य से लेकर विज्ञान, धर्म, संगीत व पाक कला की पुस्तकें मिल जाती हैं। इसी तरह प्रतियोगी परीक्षाओं तथा पाठ्यक्रमों की पुस्तकें भी सस्ती दर पर उपलब्ध होती हैं। लेकिन देखा जाए तो दरियागंज में किताबें केवल संडे को ही नहीं मिलती, बल्कि देश विदेश से किताबों का मार्किट में आना और पाठकों का इन किताबों को ले जाना पूरे सप्ताह भर लगा रहता है। वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दें दरियागंज की संडे बुक मार्किट अब चांदनी चौक में ब्रॉडवे होटल के सामने महिला हाट मैदान में लगती है। कोरोना के कारण फ़िलहाल यहाँ नियम थोड़े सख्त हैं। लेकिन सप्ताह के बाकी 6 दिन दरियागंज में ही किताबें मिलती हैं।
वैसे दिल्ली गेट से थोड़ी ही दूरी पर दरियागंज शुरू हो जाता है। दुकानों के बाहर तक लगी पुस्तकें बुक लवर्स को खूब भाती हैं। जो पुस्तकें कहीं और नहीं मिलेगी वह यहां मिल जाएंगी। यहाँ लगभग पांच सौ बुक सेलर्स हैं। चाहे साहित्य प्रेमी हों, प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे विद्यार्थी हों या फिर स्कूल-कालेजों में पढ़ने वाले छात्र यहाँ सभी बुक्स खरीदने आते हैं।
जैसे आप यहाँ की किसी दुकान में घुसते हैं, पुस्तकों के आकर्षित कवर लुभाने लगते हैं। जैसे-जैसे आप अपने मतलब की किताबें ढूंढोगे यहाँ मौजूद हर रेक में कुछ अलग और बढ़िया मिलेगा। आप यकीन नहीं करेंगे यहाँ चार किताबों की क्या कीमत होगी? सिर्फ 200 रुपए। हाँ, सही पढ़ा सिर्फ 200 रुपए।
प्रेमचंद, सूरदास, और महादेवी वर्मा से लेकर एलन मस्क, चार्ल्स डिकीन तक सब कुछ
जब हम किसी दुकान पर पुस्तकें लेने जाते हैं, तब सबसे बड़ी परेशानी ये आती है कि हमें सारी पुस्तकें एक जगह नहीं मिलती। किताबों के लिए कितने मोहल्ले नापने पड़ते हैं। लेकिन दरियागंज की ये बुक शॉप्स आपको कहीं और नहीं जाने देंगी। सारा किताबी संसार दरियागंज की पुस्तकों की दुकानों में समाया हुआ लगता है, चाहे फिर आपको कुछ भी पढ़ना हो। आप इतिहास, समाजशास्त्र, रचनात्मक, पत्रकारिता विषय से संबंधित कुछ भी पढ़ना चाहें वो सब कुछ यहाँ मिलेगा। प्रेमचंद, सूरदास, और महादेवी वर्मा से लेकर एलन मस्क, चार्ल्स डिकीन तक सब कुछ।
200 रुपए की एक किलो किताबें
आपकी जहाँ तक नज़र जाएगी आपको दुकानों के बाहर लगे रंग-बिरंगे बोर्ड दिखाई देंगे, जिन पर लिखा होगा 20 रुपए , 50 या ज्यादा से ज्यादा 100 रुपए। फिर फर्क नहीं पड़ता आप कितनी मोटी और किस लेखक की पुस्तक खरीदें। कई बार यहाँ आने वाले नए नवेले बुक लवर्स असमंजस में पड़ जाते हैं कि हजारों किताबों में से क्या खरीदा जाए और क्या छोड़ा जाए। और हाँ , सस्ती किताबों के अलावा दरियागंज में आपको किलो के भाव से भी किताबें मिल जाएँगी। 200 रुपए की एक किलो किताबें। निर्भर करता है की आपकी पसंद की किताब आपको कितना ढूंढने पर मिलती है। लेकिन फिर भी जो किताबें पढ़ने के लिए अपना बेस बनाना चाहते हैं खासकर नॉवेल पढ़ कर, उनके लिए तो यह जगह जन्नत है।
किताबों के अलावा यहाँ आपको स्टेशनरी में भी बहुत साड़ी वैरायटी मिल जाएँगी। चाहे मोटे-मोटे रजिस्टर हों या डायरी जिनकी आमतौर पर कीमत 150 रुपए से भी ज्यादा होती है लेकिन दरियागंज पुस्तक मार्किट में वही आपको 50-70 रुपए में मिल जाएगा। चाहे आप किसी परीक्षा की तैयारी कर रहे हो या आपको साहित्य पढ़ना अच्छा लगता हो, दरियागंज पुस्तक मार्किट में आपको न केवल पुस्तकें बल्कि पढ़ने-लिखने से जुड़ी हर सामग्री मिलेगी, चाहे फिर वो पेन-पेंसिल हो, स्टडी टेबल या परीक्षा का बोर्ड। (Dariya ganj Book Market)।
गुलाबकेसूखेफूलअबकिताबोंमेंनहींमिलतेक्योंकिआजशायदतेजीसेभागतेवक़्तकेसाथकिताबपढ़नेवालोंकाअंदाज़बदलगयाहै, उनकीदुनियाबदलगईहै।भलेहीनएज़मानेकीनईतकनीकोंकेकारणलोगकिताबोंकोअबऊपरकीदराज़मेंरखनेलगेहैंलेकिनउन्हेंपढ़नेवालोंकीचाहतऔरमोहब्बतआजभीकमनहींहुईहै।शायदइसलिएदरियागंजमेंआजभीहज़ारोंबुकलवर्सकिताबेंखरीदनेकेलिएजातेहैं। Daryaganj Book Market Delhi
क्यों जाएँ दरियागंज बुक हब ? Five Reasons to visit this place-
1.यहाँ लगभग पांच सौ बुक सेलर्स हैं। चाहे साहित्य प्रेमी हों, प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे विद्यार्थी हों या फिर स्कूल-कालेजों में पढ़ने वाले छात्र यह जगह सभी के लिए माकूल है। 2.यह देश विदेश के फेमस पब्लिशर्स का जाना पहचाना ठिकाना है। 3.किताबों के अलावा यहाँ आपको स्टेशनरी में भी बहुत साड़ी वैरायटी मिल जाएँगी। 4.जो किताबें पढ़ने के लिए अपना बेस बनाना चाहते हैं खासकर नॉवेल पढ़ कर, उनके लिए तो यह जगह जन्नत है। 5.आप इतिहास, समाजशास्त्र, रचनात्मक, पत्रकारिता विषय से संबंधित कुछ भी पढ़ना चाहें वो सब कुछ यहाँ मिलेगा।
Research by Geetu Katyal Written & Edited by Pardeep Kumar
दूसरे दिन हमारा उदयपुर के शिल्पग्राम, सज्जन गढ़ किले और फतेहसागर झील का शेड्यूल था। इसलिए सुबह नाश्ता करने के बाद हम निकल पड़े शिल्पग्राम की और।
उदयपुर का शिल्पग्राम- राजस्थानी ग्रामीण कल्चर की शानदार झांकी
उदयपुर सिटी से लगभग 6 किलोमीटर दूर शिल्पग्राम, जो एक विस्तृत परिसर में बिलकुल गाँव जैसा वातावरण विकसित करके बनाया गया जीवंत संग्रहालय जैसा है। अंदर प्रवेश करते ही आपको एक बार तो ऐसा लगेगा जैसे किसी राजस्थानी गांव में ही प्रवेश कर गए हो। शिल्पग्राम में पारम्परिक संस्कृति को दर्शाती सात झोपडियां बनाई गयी हैं, जो राजस्थान के अलावा गोवा, गुजरात और महाराष्ट्र के पारंपररिक घरों और अलग-अलग आदिवासी समुदाय के प्रतिरूप को परिभाषित करती हैं। कुल मिलाकर आप जितना भी समय यहाँ गुजारोगे आपको उतना ही आनंद की अनुभूति होगी। जिस समय हमनें शिल्पग्राम में प्रवेश किया तब टिकट काउंटर पर बैठे महाशय ने बताया की दो घंटे बाद ओपन एयर थिएटर में सांस्कृतिक कार्यक्रम शुरू होंगे, आप वहां राजस्थानी लोक गायन और नृत्य दोनों का आनंद ले सकते हैं। तब तक आप मजे से पूरे परिसर को घूमिये, देखिये।
हमने दो घंटे में वहां बने हुए अलग-अलग तरह के झूले, शिल्प बाज़ार, मृण कला संग्रहालय, मिटटी और शिल्पकला के बेहतरीन नमूने देखे। यहाँ बनी झोपड़ियों में, आप कढ़ाई का काम, लकड़ी का काम, दर्पण और मनका काम और मिटटी के बर्तन देख सकते हैं। घोड़े व ऊँट की सवारी की भी व्यवस्था थी। देखा जाए तो पूरे शिल्प ग्राम में राजस्थानी ग्रामीण कल्चर की शानदार झांकी देखने को मिली। बाजार से थोड़ी खरीददारी की और चल पड़े सांस्कृतिक कार्यक्रम स्थल की और।
ओपन एयर थिएटर में सामने छोटा-सा मंच बना हुआ था जिसमें लोक नृत्यों का रंगा-रंग कार्यक्रम चल रहा था। लगभग एक घंटा हमने जम कर नृत्य और गायन का आनंद लिया। वहां जितनी भी देर रहे ऐसा लगा जैसे थकान को कहीं पीछे ही छोड़ आये हो।
आप राजस्थान के किसी भी पर्यटन स्थल पर चले जाएँ वहां आपको राजस्थानी कल्चर के लिए मशहूर चौखी ढाणी मिल ही जाएँगी लेकिन उदयपुर का ये शिल्पग्राम अपनी संजीदगी और अरावली की मनोहर घाटियों के कारण उन सबमें बहुत अलग है। (Udaipur- Shilpgram)
हमें शिल्पग्राम में दो बज गए थे। वहां से निकल कर सबसे पहले लंच किया और वहीँ से चल पड़े अगले पड़ाव की और शहर से करीब 8 किलोमीटर दूर एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित सज्जनगढ़ का किला देखने जिसे मानसून पैलेस भी कहते हैं।
सज्जनगढ़ का किला- मानसून पैलेस
ये किला काफी ऊँचाई पर है, उदयपुर सिटी से भी आप इस किले को आसानी से देख सकते हैं। पहाड़ी पर चढ़ते हुए दोनों ओर घने-गहरे जंगल है जिसमें कई बार जंगली जानवर भी दिखाई देते हैं। बरसात के मौसम में बादलों को देखने के लिए मेवाड़ के महाराणा सज्जनसिंह ने यह महल बनवाया था। यह सफ़ेद संगमरमर से बनी सुन्दर इमारत है जो कि उनकी मृत्यु के बाद महाराणा फतहसिंह द्वारा पूरी कराई गयी। ऊपर किले के बिलकुल साथ लगते परिसर में एक शानदार कैफ़े है जहाँ आप कॉफी और स्नैक्स का आनंद ले सकते हैं। यहाँ से सूर्यास्त का दृश्य देखने के लिए पर्यटक शाम ढ़लने का इंतज़ार करते हैं। क्योंकि हमें इसके बाद फ़तेह सागर झील जाना था इसलिए हम तक़रीबन पांच बजे वहां से निकल कर फ़तेह सागर झील पहुंचे।
फ़तेह सागर झील
क्योंकि फ़तेह सागर झील घूमने और देखने का सबसे उपयुक्त समय शाम का ही रहता है। फतह सागर झील का पुनर्निर्माण महाराणा फतह सिंह द्वारा कराया गया था। यह पिछोला झील से जुडी हुई है और जिसके जल प्रवाह को रोकने के लिए एक छोटा-सा बाँध भी बनाया गया है। हमने वहां जाकर सबसे पहले साइकिल किराये पर ली और चल पड़े एक लम्बी राइडिंग पर बिलकुल झील के किनारे-किनारे। हमारी लगभग तीन किलोमीटर राइडिंग खत्म हुई झील के एक कोने पर बने उस छोटे से बांध पर जाकर, उस जगह से दूर-दूर तक फैली ये झील बेहद शानदार लग रही थी। एक खास बात जो मैंने नोट की वो ये कि फ़तेह सागर झील के आसपास रहने वाले बहुत से लोग शाम की वॉक के लिए यहाँ रोजाना आते हैं। जितनी चहल-पहल सैलानियों की थी, उतनी ही वहां रोजाना वॉक पर आने वालों की भी थी।
जैसे-जैसे शाम गहरा रही थी झील की ख़ूबसूरती बढ़ती ही जा रही थी। झील के किनारे आपको बहुत सारे चाय, मैग्गी और समोसे वाले मिल जायेंगे। हमने साइकिलिंग करने के बाद वहीँ झील के किनारे चाय और मैगी का आनंद लिया। यहाँ सूर्यास्त के समय नीले आकाश में आपको बहुत सारे पक्षी भी उड़ते दिखेंगे।
ऐसे शानदार दृश्य देखकर आप यहां फोटोग्राफी से अपने आपको रोक ही नहीं पाओगे। एक बात और फतेह सागर झील में बोटिंग करे बिना आपकी यहां की यात्रा पूरी नहीं हो सकती, इसलिए अगर आप इस झील को घूमने के लिए आ रहे हैं तो बोटिंग करते हुए चले जाईये झील के बीचों-बीच बने शानदार उद्यान में। जहाँ सूर्यास्त के समय जाकर आपको ऐसा लगेगा जैसे जन्नत यहीं हैं, यहीं हैं और यहीं हैं। झील के मध्य एक टापू पर बना यह उद्यान अपने शांत वातावरण से यहां आने वाले पर्यटकों को एक अद्भुद शांति का एहसास कराता है। आप जब भी किसी यात्रा पर होते हैं तो यकीनन ऐसी शांति और प्राकृतिक सुंदरता आपकी सारी थकान पल भर में मिटा देती है। यहाँ आकर पहली बार महसूस हुआ क्यों दुनिया भर के शायर अपनी महबूबा की आँखों की ख़ूबसूरती की तुलना झील से करते हैं। सच में ऐसे ही थोड़े उदयपुर को देश के सबसे रोमांटिक शहरों में शुमार किया जाता है। फतेह सागर झील के ऐसे मनमोहक दृश्य आपको लम्बें समय तक अनायास ही याद रहते हैं।
क्यों जाएँ उदयपुर? Five Reasons to Visit Udaipur–
1.उदयपुर के शिल्पग्राम में आप पारम्परिक खरीददारी के अलावा राजस्थानी लोक गायन और नृत्य दोनों का आनंद ले सकते हैं। 2.उदयपुर झीलों का शहर है एक से बढ़कर एक सुन्दर झील आपको यहाँ दिखाई देगी। 3.सज्जनगढ़ फोर्ट उदयपुर की एक बेहद खूबसूरत जगह है जहाँ से आप सूर्यास्त का अद्भुत नज़ारा देख सकते हैं। 4.फतेहसागर झील के मध्य एक टापू पर बना उद्यान अपने शांत वातावरण से यहां आने वाले पर्यटकों को एक अद्भुद शांति का एहसास कराता है। 5.क्वालिटी टाइम बिताने के लिए उदयपुर एक बेहतरीन जगह है।
Tehri Uttarakhand- टिहरी: एक ऐसा शहर जिसे कभी डूबा दिया गया था
by Pardeep Kumar
धनौल्टी में नेचर व्यू, एडवेंचर स्पॉट्स, ईको पार्क, सुरकंडा देवी मंदिर और स्थानीय गांव और बाजार देखने के बाद शेड्यूल के अनुसार अगले दिन हमारा प्रोग्राम था चम्बा और टिहरी बांध और शहर देखने का। जिसके बारें में हमने काफी सुना था।
धनौल्टी से टिहरी
टिहरी जाने का खास मकसद था एक ऐसे शहर को देखना, समझना जिसे डूबा कर उस पर बांध बना दिया गया था। सम्भवतः जिसकी गिनती देश के सबसे बड़े बांधों में की जाती है। सुबह नाश्ते में मिक्स वेज परांठे लिए वो भी ताजा मक्खन और गरमा-गर्म चाय के साथ। पहाड़ों की सर्दियों में चाय आपको अवश्य रास आएगी। धनौल्टी से टिहरी लगभग ढाई-तीन घंटे का सफर था। चम्बा शहर के बाजार होते हुए हम तकरीबन एक बजे टिहरी झील पहुंचे। जिसे आज सुमन सागर के नाम से जाना जाता है। जहाँ आज लगभग बयालीस किलोमीटर लम्बी झील दिखाई देती है वहां कभी भरा-पूरा टिहरी शहर था। बताते हैं यह टिहरी शहर दो सौ साल से भी ज्यादा समय तक आबाद रहा। (Tehri, Uttarakhand)
आज भी जब गर्मियों में झील के पानी का लेवल कम हो जाता है तब आप आसानी से इस शहर के राजमहल के कुछ हिस्से इस विशाल झील में देख सकते हैं। आज इस पूरे क्षेत्र को एक सुन्दर टूरिस्ट स्पॉट के रूप में डेवेलप किया गया है। झील के किनारे पर बहुत सारे छोटे-छोटे फ़ूड स्टाल बनाये गए हैं जहाँ पर पर्यटक जलपान करते हुए पहाड़ों की तलहटी में दूर-दूर तक फैली झील को निहार सकते हैं, प्राकृतिक दृश्यों का आनंद ले सकते हैं।
जब विकास की भेंट चढ़ा एक भरा पूरा आबाद शहर
हमने वहां पहुँच कर सबसे पहले मैगी आर्डर की और चाय पीते हुए इत्मीनान से अपनी थकान उतारी। चाय के शौकीन लोगों के लिए इससे बेहतर तो क्या ही होगा। नीला आसमान और सर्द तेज हवाएं बड़े मेट्रो शहर और पहाड़ों के दरमियान जो बड़ा अंतर् है उसे बयान कर रही थी। वही चाय पीते हुए पता चला कि सिर्फ एक बांध बनाने के लिए एक पूरे टिहरी शहर को डूबा दिया गया। एक पूरा शहर विकास की भेंट चढ़कर सदा के लिये पानी में समा गया। बताते हैं इस बांध के निर्माण से यहाँ के लगभग 125 गांवों पर असर पड़ा था। इस दौरान 37 गांव पूरी तरह से डूब गए थे जबकि 88 गांव आंशिक रूप से प्रभावित हुए थे। और फिर नए टिहरी शहर को बनाने के लिए पहाड़ और असंख्य पेड़ों को अपनी कुबानी देनी पड़ी। यह नया टिहरी शहर वहां से लगभग चौदह-पंद्रह किलोमीटर दूर थोड़ी ऊंचाई पर बनाया गया।
वाटर स्पोर्ट्स और एक्टिविटीज का हब – टिहरी झील
यह बांध और झील जहाँ पर तरह-तरह के वाटर स्पोर्ट्स, जेट स्कीइंग से हॉट एयर बैलून सवारी तक कई अलग-अलग एक्टिविटीज शामिल हैं, और शायद वहां के बहुत सारे स्थानीय लोगों के लिए रोजगार का अवसर भी। टिहरी झील आकर पर्यटक नौका विहार, जेट स्पीड बोट सवारी, वाटर स्कीइंग, जोर्बिंग, बनाना वोट सवारी, बैंडवेगन वोट सवारी, हॉटडॉग सवारी और पैराग्लाइडिंग जैसे स्पोर्ट्स एडवेंचर्स कर सकते हैं।
वहीं टिहरी झील के किनारे एक जगह वाटर एक्टिविटीज के लिए टिकट काउंटर था जहाँ से हमने बोटिंग करने के लिए टिकट लिया और खूबसूरत पहाड़ों के बीच दूर तक फैली टिहरी झील का लगभग 4० मिनट जी भर कर आनंद लिया। आप एक लम्बा सफर तय करने के बाद जब इस झील में एक शिकारे टाइप बोट से प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेते हैं तब ऐसा लगेगा कि इतनी दूरी तय करके यहाँ आना किसी भी तरह घाटे का सौदा नहीं है।
झील के पास पहुँचते ही आपका हाथ अपने आप कैमरे या फोन तक जायेगा और आप स्वयं को यहाँ के खूबसूरत लम्हों को कैद करने से बिलकुल भी नहीं रोक पाओगे। मन करेगा यहाँ से सब कुछ समेट ले जाओ। आपको यहाँ अनगिनत नेचुरल सेल्फी पॉइंट मिल जायेंगे जहाँ आप जी भर कर फोटो ले सकते हैं।
दरअसल हिल स्टेशन अपने दृश्यों के लिए जाने जाते हैं ऐसे में वहां अगर आपको नेचुरल व्यूज के अलावा झील और एडवेंचर स्पॉट मिल जाये तो समझ लीजिए यात्रा सफल। इसी मनभावन सौदर्यता से परिपूर्ण टिहरी शहर में और इसके आसपास की खूबसूरत जगहों पर बॉलीवुड स्टार शाहीद कपूर और श्रद्धा कपूर की फिल्म बत्ती गुल मीटर चालू की लगभग सारी शूटिंग हुयी है। हमने टिहरी में अच्छा-खासा समय व्यतीत किया। और शाम तक नए टिहरी शहर और चम्बा होते हुए वापिस धनौल्टी अपने रिज़ोर्ट पहुँच गए। अगले दिन वापिसी तय थी और फिर शामिल हो जाना था उसी भीड़ भाड़ और व्यस्तता भरी दुनिया में जहाँ लौटना हमारी मजबूरी थी। (Tehri, Uttarakhand)
Jal Mahal - झील के बीचों-बीच बना अनोखे सौन्दर्य और अद्भुत स्थापत्यकला का बेजोड़ उदाहरण
byPardeep Kumar
अपनी यात्रा के अगले पड़ाव पर हम आ पहुंचे हैं राजस्थान के एक ऐसे शहर जो प्रेम, शांति और कला की अपनी एक अलग ही कहानी बयां करता है। कुछ शहर खूबसूरत होते हैं और कुछ सुन्दर बनने की चेष्टा करते हैं। लेकिन राजस्थान का जयपुर शहर तो शायद सुंदरता के लिए बनाया गया है जिसका नाम जेहन में आते ही मन गुलाबी हो उठता है। चाहे दिन का समय हो या रात का, इस शहर की चमक और बनावट मन से उतरती ही नहीं। चारों और अरावली की पहाडयों से घिरा, चौड़ी और साफ़ सुथरी सड़कों और अपने चमकीले और सैकड़ों साल पुराने बाज़ारों के कारण यह शहर किसी भी पर्यटक के मन को खुश करने में पूरी तरह सक्षम है। हमनें अपने जयपुर ट्रिप में न केवल यहाँ के ऐतिहासिक और भव्य किलों को एक्सप्लोर किया बल्कि यहाँ की जीवन शैली, कल्चर, वास्तुकला, बाजार और खानपान को भी समझने की कोशिश की। इसी कड़ी में आज के इस ब्लॉग में हम आपको बता रहे हैं जयपुर की एक बेहद खूबसूरत जगह जलमहल के बारे में।
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कैसे पहुंचे जलमहल
झील के बीचोंबीच बना ये जलमहल राजस्थान के जयपुर जिले के आमेर मार्ग पर स्थित है, दिल्ली से लगभग 260 किलो मीटर और अजमेर से 146 किलो मीटर की दूरी पर बना ये महल पर्यटकों के आकर्षण का विशेष केंद्र है।
किस समय और किस मौसम में यहाँ आना बेस्ट रहता है
वैसे तो यह महल 24 घंटे खुला रहता है पर यहां आने का सबसे उपयुक्त समय सुबह दस बजे से रात नौ बजे तक है इस समय अधिकतर लोग यहां पिकनिक करने, क्वालिटी टाइम स्पेंड करने और सुबह शाम यहां के लोकल लोग वॉक करने भी आते हैं। यहां आने का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर से मार्च के बीच का है । दरअसल इन दिनों सर्दियों की खिली-खिली धूप में जल महल का नजारा बहुत ही अद्भुत और खूबसूरत लगता है।
जानिए जलमहल का इतिहास
पिंक सिटी जयपुर की ‘मानसागर’ झील के बीचों बीच बना ‘जलमहल’ अनोखे सौन्दर्य और अद्भुत स्थापत्यकला का बेजोड़ उदाहरण है। इस महल का निर्माण आज से लगभग 300 साल पहले आमेर के महाराज सवाई मानसिंह ने सन् 1799 में करवाया था। आपको बता दें यह पाँच मंज़िला इमारत और इस झील की सुंदरता उस समय के राजाओं के आकर्षण का केंद्र हुआ करती थी और राजा अक्सर नाव में बैठकर इस महल की सैर किया करते थे ।
जल महल की वास्तुकला
जलमहल एक पाँच मंज़िला इमारत है जिसकी 4 मंज़िल पानी के भीतर बनी हैं और एक पानी के ऊपर नज़र आती है। उस समय के राजा इस महल का उपयोग अपने मनोरंजन के लिए करते थे. धीरे-धीरे यहां राजाओं की आवाजाही कम हो गयी जिसके कारण यह महल लगभग 200 सालों के लिए वीरान हो गया। उसके बाद साल 2000 में इसकी मरम्मत का काम दोबारा शुरू किया गया और इसे दोबारा सैलानियों के लिए खोला गया। बाहरी परिसर से देखने पर आपको यू लगेगा मानो कोई विशाल नाव झील में उतरी हो।
जलमहल के किनारे लगने वाला शानदार बाजार
सैर सपाटे और घूमने के साथ-साथ यह क्षेत्र अब लोगों के लिए आय का साधन भी बन गया है. यहां पर आपको राजस्थानी मोजड़ी, राजस्थानी जूती, हैंड बैग, होम डेकोरेटिव आइटम्स, ज्वेलरी और एडिशनल क्लोथ्स, मैग्नेट और भी कई डेली यूज़ के सामान मिलते हैं, इसी के साथ आपको यहां खाने-पीने के बहुत सारे आइटम भी मिल जाएंगे.
यहां पर स्पेशली आपको मैग्नेट के आइटम्स बेचते बहुत से पुराने परंपरागत लोग दिख जायेंगे। साथ ही आप यहां पर ऊंट और घोड़े की सवारी का आनंद भी उठा सकते हैं ।
पिकनिक, नेचर लवर्स और क्वॉलिटी टाइम बिताने के लिए यह जगह एक बेहतरीन प्लेस है। आप यहां आकर पक्षियों और मछलियों को दाना देते हुए पहाड़ों के बीच में बनी इस झील के बेहतरीन नजारो का आनंद ले सकते हैं। बहुत से कपल्स यहां पर आपको राजस्थानी पोशाक में फोटो शूट करते हुए भी नजर आएंगे।
पिकनिक स्पॉट
वैसे जल महल का निर्माण आवासीय तौर पर ना होकर एक पिकनिक स्पॉट के तौर पर किया गया था. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जल महल के अंदर कोई कमरा नहीं है। और न ही कभी इस महल में राजाओं ने कभी रात्रि विश्राम नहीं किया। एक चीज जो इस महल को बेहद खूबसूरत और थोड़ा हटकर बनाती है वो है इस महल के अंदर बने गलियारे और छत पर बनाया शानदार बगीचा। इसकी खूबसूरत बनावट के कारण ही किसी जमाने में इसे ‘रोमांटिक महल’ के नाम से भी जाना जाता था। महल की खासियत की बात करें तो तपते रैगिस्तान के बीच बसे इस महल में गरमी नहीं लगती, क्योंकि इसके कई तल पानी के अंदर बनाए गए हैं। आप आसानी से इस महल से पहाड़ और झील का ख़ूबसूरत नज़ारा भी देख सकते हैं। चांदनी रात में झील के पानी में इस महल का नजारा बेहद आकर्षक लगता है।
पक्षी विहार
जलमहल अब पक्षी विहार के रूप में भी विकसित हो रहा है। बताते हैं जल महल की नर्सरी में तकरीबन एक लाख से ज्यादा पेड़ लगे हुए हैं। दिन रात बहुत से माली पेड़-पौधों की देखभाल में लगे रहते हैं। यह नर्सरी राजस्थान की सबसे उंचे पेड़ों वाली नर्सरी भी मानी जाती है।
रात के समय में ये महल न केवल अद्भुत रूप ले लेता है बल्कि रंग बिरंगी लाइटों से जगमग होकर हर किसी को अपनी खूसूरती का कायल भी बना लेता है। अगर आपकी जरा भी दिलचस्पी फोटोग्राफी में है तो जल महल आपके लिए एक बेहद सुन्दर और लाज़वाब जगह है। इस महल के आसपास के नज़ारे इतने आकर्षक हैं कि यह सिर्फ फोटो खींचने के लिए ही नहीं बल्कि आपको अपने फोटो खिंचवाने पर भी मजबूर कर देंगे।
Amer Fort : राजस्थान की आन-बान और शान- आमेर का ऐतिहासिक किला
by Pardeep Kumar
गुलाबी शहर के नाम से प्रसिद्ध जयपुर से कोई विरला ही होगा जो वाकिफ न हो। भारत के सबसे बड़े राज्यों में से एक राजस्थान की राजधानी जो अपने खानपान से लेकर समृद्ध इतिहास, संस्कृति और कला के कारण भी दुनिया भर में फेमस है।
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कहा जाता है कि इस शहर को वेल्स के राजकुमार के स्वागत की खुशी में गुलाबी रंग से रंगा गया था और तभी से इसे गुलाबी शहर (पिंक सिटी ) के नाम से जाना जाता है। जयपुर शहर का नाम आते ही यहाँ के बड़े-बड़े और भव्य किले दिलोदिमाग में तैरने लगते हैं। और इन्हीं किलों में निसंदेह सबसे पहले जिस किले की छवि उभरती है वो है खूबसूरत आमेर का किला। राजस्थान के जयपुर शहर को और ज्यादा खूबसूरत बना देने वाला ये आमेर का किला, अम्बर किला के नाम से भी जाना जाता है। ये किला ना केवल जयपुर शहर बल्कि पूरे राजस्थान के शानदार पर्यटन स्थलों में से एक है। आमेर का किला इतना प्रसिद्ध है कि यहाँ पर हर रोज छह हजार से भी अधिक लोग घूमने के लिए आते हैं। यह किला राज्य की राजधानी जयपुर से 11 किलोमीटर की दूरी पर है।
आमेर जाने का सबसे अच्छा समय
अगर आप इस किले की खूबसूरती का आनंद लेना चाहते हैं, तो सर्दियों के समय में नवंबर से मार्च महीने के बीच यहां जाना सबसे अच्छा माना जाता है। इसका कारण ये है कि रेतीले राजस्थान में दिन के समय मौसम गर्म ही रहता है। ऐसे में धूप और सूरज की गर्मी कभी-कभी आपको बहुत ज्यादा परेशान कर सकती है। इसलिए बेहतर होगा कि आप सर्दियों में ही जयपुर जैसे शहर की यात्रा करने की प्लानिंग करें।
आमेर कैसे पहुंचे
इस किले तक पहुंचने के लिए जयपुर से बस, ऑटो-रिक्शा, टैक्सी या कैब ली जा सकती है। आप अजमेरी गेट और एमआई रोड से आमेर शहर के लिए रोडवेज या प्राइवेट बसों से भी जा सकते हैं। आमेर का किला एक पहाड़ी पर है, इसलिए किले का दीदार करने के लिए आपको किले के थोड़ी दूर पहले से ही या तो पैदल चलना होगा या फिर आप टैक्सी या जीप से भी किले के मुख्य द्वार तक पहुँच सकते हैं। या फिर आप अपनी पर्सनल गाड़ी से भी यहां जा सकते हैं। किले के मुख्य द्वार के पास थोड़ी सपाट चढ़ाई है, इसलिए अगर आप एक्सपर्ट ड्राइवर हैं तो ही अपनी पर्सनल गाड़ी से किले तक जाने का रिस्क लें। अगर आप सीजन के दौरान यहां जा रहे हैं, तो खुद की गाड़ी से जाने से बचना ही बेहतर होगा, क्योंकि ट्रैफिक जाम आपके लिए सिरदर्द साबित हो सकता है। हालांकि ऐसा सीजनल टाइम में ही ज्यादा होता है।
अंदर प्रवेश करके आप हाथी की सवारी का भी अपना आनंद और रोमांच ले सकते हैं। हाथी सवारी आपके लिए तब और ज्यादा फायदेमंद साबित हो जाती है, जब आप परिवार के साथ किला घूमने गए हो, हालांकि अगर आप हाथी की सवारी करते हुए किले की सैर करना चाहते है, तो एक हाथी की सवारी के लिए आपको लगभग 1000-1,200 रुपये का तक देना पड़ सकता है। याद रहे कि एक हाथी पर दो से ज्यादा पर्यटक सवार नहीं हो सकते। हाथियों की ये सवारी सुबह से ही शुरू हो जाती है।
टिकट और लागत
आमेर के किले के लिए विदेशी सैलानियों से 250 रुपये और भारतीयों सैलानियों से टिकट के 50 रुपये लिए जाते हैं। अगर आप स्टूडेंट हैं, तो जयपुर शहर की यात्रा करते समय अपना स्कूल या कॉलेज आईडी कार्ड ले जाना कभी मत भूलिए, किले की सैर के लिए मिलने वाली टिकटों पर स्टूडेंट्स को भारी छूट दी जाती है, इसके अलावा सात साल से कम उम्र के बच्चे के लिए यहां ज्यादातर जगहों पर टिकट निःशुल्क हैं।
आमेर के किले में टिकट काउंटर सूरज पोल के सामने जलेब चौक प्रांगण में मौजूद है। आप वहां एक ऑफिसियल टूरिस्ट गाइड भी ले सकते हैं। इसके अलावा लंबी लम्बी लाइनों से बचने के लिए आप टिकट ऑनलाइन भी खरीद सकते हैं।
आमेर का इतिहास
आमेर के किले की इतिहास की बात करें, तो यह कभी जयपुर रियासत की राजधानी हुआ करती थी। यह किला राजपूत शासकों का निवास स्थान हुआ करता था। मुगल सम्राट अकबर की सेना का नेतृत्व करने वाले महाराजा मान सिंह प्रथम ने 1592 में 11वीं सदी के किले के अवशेषों पर इसका निर्माण शुरू करवाया था।
राजस्थान में छह पहाड़ी किलों के समूह के हिस्से के रूप में किले को 2013 में यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट भी घोषित किया गया। इस किले की वास्तुकला राजपूत (हिंदू) और मुगल (इस्लामी) शैलियों का एक उल्लेखनीय उदाहरण है।
माना जाता है कि 967 ई. में मीणाओं के एक उप कुल में आमेर शहर और आमेर का किला राजा एलन सिंह चंदा द्वारा बसाया और बनाया गया था. चूंकि मीना अंबा माता की भक्त थीं, इसलिए उन्होंने अपने किले का नाम उनके नाम पर आमेर का किला रखा. पहाड़ी पर ऊंचे स्थान पर स्थित इस किले से माओटा झील दिखाई देती है, यह झील ही आमेर पैलेस के लिए पानी का मुख्य स्रोत है।
आपको बता दें आमेर और जयगढ़ किले को एक ही संरचना के रूप में माना जाता है, क्योंकि ये दोनों किले लगभग एक ही परिसर में हैं और खास बात ये कि एक ही भूमिगत मार्ग दोनों किलों को आपस में जोड़ता है। ऐसा माना जाता है कि किसी युद्ध के समय या जब कभी दुश्मन हमला कर दें तो उन हमलों से बचने के लिए इस मार्ग का उपयोग किया जाता था। किले का निर्माण सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक राजा मान सिंह प्रथम ने करवाया था। बाद में, अन्य राजपूत शासकों द्वारा इसका आगे विस्तार किया गया। अपनी अद्भुत वास्तुकला के साथ, जो मुगल और हिंदू शैलियों को जोड़ती है, लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर से बना किला, अपने उच्च प्राचीर, कई द्वारों, पत्थरों वाले रास्तों और शानदार दृश्यों के कारण खासा प्रसिद्ध है। वैसे आमेर का यह किला चार भागों में बँटा है जिसका प्रत्येक भाग अपने अलग प्रवेश द्वार और आंगन से सजा हुआ है।
आप किले के परकोटों या खिड़कियों से माओटा झील की खूबसूरती को निहार सकते हैं। बारिशों के बाद यह झील शानदार दिखती है। इन्हीं खूबसूरत वजहों से यह किला जयपुर के प्रमुख आकर्षणों में से एक है, यही कारण है कि यहां लगभग बारहों महीने अच्छी खासी भीड़-भाड़ रहती है।
हालांकि भीड़-भाड से बचने का एक तरीका ये भी है कि वीकेंड्स से अलग दिनों में यहां आया जाए। तब निसंदेह आप यहाँ आकर और भी बेहतर महसूस करेंगे, और इत्मीनान से इस किले की अद्भुत निर्माण कला का आनंद ले पाएंगे।
यह किला बड़ा है इसलिए कुछ एहतियात अवश्य बरतें
किले के विशाल परिसर की सुंदरता का आनंद लेने के लिए ध्यान रखें कि आपने आरामदायक जूते और कपड़े पहन रखें हों। क्योंकि यह किला काफी बड़ा है इसलिए पानी की बोतलें, शेड्स और हैट या कैप अपने साथ जरूर रखें। आपको जानकार अवश्य ही अच्छा फील होगा कि परिसर के भीतर विश्राम कक्ष और कैफे मौजूद हैं, घूमते-घूमते थक जाएँ तो इनका आनंद भी लिया जा सकता है और एनर्जी बूस्ट की जा सकती है।
यह एक ऐसा स्थान है, जहां हर भारतीय और हर कला प्रेमी को जरूर जाना चाहिए, क्योंकि यह अद्भुत कलात्मक चमत्कारों से भरा है, चाहे इसकी पेंटिंग हो, दीवारों की खूबसूरत नक्काशी हो, या फिर किले की वास्तुकला हो। आपको रिझाने के लिए यहाँ लगभग सब कुछ है।
और क्या देख सकते हैंयहां
यहां मौजूद अंबर फोर्ट पैलेस इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देता है. किले के भीतर मुख्य परिसर में दीवान-ए-आम, जनता के लिए एक हॉल, दीवान-ए-खास, निजी दर्शकों के लिए एक अलग हॉल और शानदार शीश महल, जय मंदिर, सुख निवास महल आदि मौजूद है। आप किले का दीदार करते करते इन शानदार इमारतों के कारण आपने आप को एक अलग ही दुनिया में महसूस करोगे।
शीश महल
जैसे ही आप शीश महल में जायेंगे आपको हैरान कर देने वाली नक्काशी दिखाई देगी, जिसे ‘जादुई फूल’ के रूप में जाना जाता है. इसे महल के एक स्तंभ पर संगमरमर के पैनल पर उकेरा गया है. इस पर कमल, शेर की पूंछ, बिच्छू, हुड वाला कोबरा, मछली की पूंछ, सिल या मकई और एक हाथी की सूंड सहित सात सुंदर डिजाइन उकेरे गए हैं. हर एक डिज़ाइन को देखने के लिए आपको पैनल को अपने हाथों से आंशिक रूप से ढंकना होगा. यह नक्काशी एक कलात्मक चमत्कार से कम नहीं लगती.
शीश महल आमेर किले के मुख्य आकर्षणों में से एक है, जिसमें चारों ओर दर्पण और रंगीन कांच का प्रयोग किया गया हैं। यहां अगर एक भी मोमबत्ती जलाई जाती है, तो शीश महल के अंदर हजारों दर्पणों में उसके प्रतिबिंब हजारों सितारों की तरह दिखाई देते हैं। अद्भुत कारीगरी का बेहतरीन नमूना है ये शीश महल।
बलुआ पत्थर और संगमरमर से बने, एम्बर किले में चार आंगनों, महलों, हॉल और उद्यानों की एक श्रृंखला है। आपको इसके प्रवेश द्वार पर एक प्रमुख प्रांगण दिखाई देगा, जिसे जलेब चौक के नाम से जाना जाता है। यहीं पर राजा के सैनिक इकट्ठे होते थे और चारों ओर परेड करते थे। सूरज पोल और चांद पोल इस प्रांगण में आते हैं।
किले के अंदर जलेब चौक प्रांगण से आप इसकी आलीशान सीढ़ियों से दूसरे प्रांगण में पहुंचेंगे जिसमें दीवान-ए-आम है, जहाँ आपको अनेक स्तम्भ दिखाई देंगे ।
किले के पीछे चौथा प्रांगण और मान सिंह का महल है, जो कि महिलाओं के लिए बनाया गया था। किले के सबसे पुराने हिस्सों में से एक, यह 1599 में बनकर तैयार हुआ था। इसके चारों ओर कई कमरे हैं जहाँ राजा अपनी सभी पत्नियों को रखते थे और जब चाहें उनसे मिलने जाते थे। इसके केंद्र में एक मंडप है, जहां रानियां मिलती थीं। आंगन का निकास आमेर शहर की ओर जाता है।
राज्य के समृद्ध इतिहास, परंपरा और संस्कृति को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से आमेर किले में हर शाम लाइट एंड साउंड शो दिखाया जाता है। अधिकतर टूरिस्ट स्पेशली यह शो देखने भी आते हैं। यह शो लगभग 50 मिनट तक चलता है। टूरिस्ट्स को इस शो के लिए अलग से टिकट लेनी होगी।
आमेर किले में पर्यटकों के लिए मीना बाजार भी बनाया गया है जहाँ से देसी विदेशी पर्यटक अलग-अलग तरह के परफ्यूम, राजस्थानी ज्यूलरी, परम्परागत परिधान और अन्य होम डेकोरेटिव आइटम्स भी खरीद सकते हैं। राजस्थान के इस सबसे भव्य और आकर्षित किले में कई सुपरहिट हिंदी फिल्मों जिसमें बाजीराव मस्तानी, शुद्ध देसी रोमांस, मुगले आजम, भूल भुलैया, जोधा अकबर आदि शामिल हैं, की भी शूटिंग हो चुकी है।
अजमेर शरीफ़ दरगाह - जहाँ हर किसी की मुराद होती है पूरी
By Pardeep Kumar
राजस्थान यात्रा के अपने अगले पड़ाव में, हम आपको ले कर आये हैं एक बेहद धार्मिक स्थान अजमेर शरीफ दरगाह।
अजमेर शहर के सबसे अधिक देखे जाने वाले स्थानों में से एक, अजमेर शरीफ दरगाह एक सूफी दरगाह है। जिसे राजस्थान के सबसे पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है। अजमेर शरीफ, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का भव्य एवं बेहद खूबसूरत मकबरा है। इसे ख्वाजा गरीब नवाज दरगाह के नाम से भी जाना जाता है। आपको बता दें कि ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती एक प्रसिद्ध सूफी संत होने के साथ-साथ इस्लामिक विद्धान और दार्शनिक भी थे। ऐसा माना जाता है कि अजमेर दरगाह पर अगर आप सच्चे मन से किसी भी चीज के लिए प्रार्थना करते हैं, इबादत करते हैं तो आपकी प्रार्थना अवश्य ही पूरी होती है।
अजमेर शरीफ़ कैसे पहुंचे
राजस्थान का अजमेर शहर देश के लगभग सभी प्रसिद्ध शहरों से रेल, सड़क या हवाई मार्ग से जुड़ा हुआ है। अगर आप दिल्ली से अपने पर्सनल व्हीकल से आ रहे हैं तो आरामदायक नेशनल हाईवे का प्रयोग करते हुए यहाँ बेहद आसानी से पहुँच सकते हैं।
रास्ते में आपको बहुत सारे पांच सितारा टाइप के ढाबे जलपान के लिए मिल जायेंगे। जयपुर हवाई अड्डा अजमेर शहर के सबसे नजदीक है। हवाई अड्डे से, आप या तो टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या अजमेर शरीफ दरगाह तक पहुंचने के लिए बस से भी जा सकते हैं।
watch Ajmer sharif Vlog with english subtitles
अगर आप यहाँ ट्रैन से आना चाहते हैं तो अजमेर के लिए लगभग सभी बड़े शहरों से आपको नियमित ट्रेनें मिल जाएँगी, स्टेशन से आप कैब बुक कर सकते हैं या अजमेर शरीफ दरगाह तक पहुंचने के लिए स्थानीय बस ले सकते हैं।
हालांकि कैब किराए पर लेना एक विकल्प है, लेकिन दिल्ली, जयपुर, जोधपुर और जैसलमेर से अजमेर के लिए सीधी बसें चलती हैं। अजमेर दरगाह तक पहुँचने के लिए आप बस स्टॉप से टैक्सी या अन्य स्थानीय साधन ले सकते हैं।
यहां साल के किसी भी महीने में आ सकते हैं
दिल्ली से लगभग 400 किलोमीटर और अजमेर बस अड्डे से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यह दरगाह भक्तों के आकर्षण का महत्वपूर्ण केंद्र है। देश विदेश से लोग यहां अपनी मनोकामना पूरी करने आते हैं दिन-रात यहां भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है। अगर आपके मन में श्रद्धा भाव है तो आप यहां साल के किसी भी महीने में आ सकते हैं। सर्दियों के दौरान यहां गेट सुबह 5 बजे से रात 9 बजे तक खुले रहते हैं और गर्मियों के दौरान के सुबह 4 बजे से रात 10 बजे तक। आप किसी भी समय यहां पर आ सकते हैं।
पार्किंग
आपको बता दें कि अजमेर शरीफ दरगाह से लगभग एक किलोमीटर पहले ही आपको अपना वाहन किसी उचित पार्किंग स्थल पर छोड़कर दरगाह तक पैदल ही जाना होगा, तंग गलियों में वाहन ले जाने की कोई सुविधा नहीं है। कार पार्किंग को लेकर आप थोड़ा ध्यान रखें, क्योंकि दरगाह से एक डेढ़ किलोमीटर पहले ही आपको बहुत से पार्किंग स्लॉट मिलेंगे, जो तकरीबन सौ रुपए में आपकी कार अपने प्लॉट या दुकान के सामने पार्क करवा देंगे। ध्यान रहें कार में कोई भी कीमती सामान न छोड़ें। क्योंकि अधिकतर पार्किंग वाले किसी भी तरह की स्लिप नहीं देंगे। हाँ, आप यहाँ पैदल चलने के अलावा रिक्शा से भी जा सकते हैं, यहां की सैंकड़ों साल पुरानी छोटी-छोटी गलियों से निकलकर आपको सामने की ओर दरगाह का गेट दिखाई देगा।
दरगाह जाने के रास्ते
वैसे दरगाह जाने के लिए चारों और दरवाजे हैं लेकिन रूटीन में दो ही दरवाजे खुले रहते हैं बाकी दरवाजे विशेष मौकों और त्यौहारों पर ही खुलते हैं। दो दरवाजे – एक गेट नंबर 4 और दूसरा गेट नंबर 2, गेट नंबर 2 से दरगाह में एंट्री थोड़ी आसान है क्योंकि गेट नंबर 2 तक लोकल रिक्शा वगैरह जाते हैं और इसलिए यहां पर भीड़ नहीं लगती। वहीं अगर आप गेट नंबर 4 पर आपको भीड़ भी मिलेगी और काफी चलना भी होगा। वैसे आमतौर पर यहाँ भीड़ फेस्टिवल सीजन के दौरान ज्यादा होती है। गेट नंबर 4 पर दरगाह का मुख्य प्रवेश द्वार है। आप अपनी पार्किंग की सुविधा के हिसाब से किसी भी गेट से एंट्री कर सकते हैं।
इन संकरी गलियों से गुजरते हुए आपको गुलाब के फूलों, मनमोहक इत्र, अजमेर शरीफ की स्पेशल मिठाई और अगरबत्ती की दुकान दिखाई देंगी। आप यहां से दरगाह के लिए चादर, फूल या अपने अनुसार कोई भी चढ़ाने की वस्तु ले सकते हैं।
याद रहे कि प्रवेश करते वक्त आप अपने जूते-चप्पल दरगाह के गेट के बाहर ही उतार कर जाए। अजमेर शरीफ दरगाह में कैमरा इत्यादि चीजें ले जाने की इजाजत नहीं है इसलिए आप अपना कीमती सामान किसी सुरक्षित स्थान पर छोड़कर जाएं।
गेट में प्रवेश करते ही आपकी यात्रा शुरू हो जाती है। जैसे ही आप दरगाह में प्रवेश करेंगे मुगल सम्राट हुमायूं द्वारा निर्मित सुंदर नक्काशी वाले विशाल दरवाजों की एक श्रृंखला आपको दिखाई देगी। ये सभी दरवाजे शुद्ध चांदी से बने हैं, और इन पर बेहतरीन नक्काशी देखने लायक है। एक विशाल गेट से होते हुए आप एक बड़े से प्रांगण में पहुंचेंगे। जहाँ आपको ख़वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के मकबरे की एक झलक दिखाई देगी, जो संगमरमर से बना है। दरगाह के शीर्ष पर, सोने की परत चढ़ी हुई है, जो शुद्ध चांदी और संगमरमर से बनी रेलिंग से सुरक्षित है।
दरगाह के प्रांगण के अंदर पहुँचते ही आपको असीम सुकून का अहसास होता है जो आपको और कहीं मिलना दुर्लभ है। यहीं प्रांगण के बीच में स्थित अजमेर शरीफ दरगाह के चारों ओर बहुत सारे लोग इबादत करते दिखाई देंगे।
यहाँ सिर्फ इस्लाम धर्म को मानने वाले ही नहीं बल्कि सभी धर्मों के लोग दूर-दूर से अपनी-अपनी मुरादें लेकर आते हैं। इतना ही नहीं मुराद पूरी होने पर ख्वाजा का शुक्राना अदा करने भी आते हैं। यहाँ चादर और फूलों की टोकरी चढ़ाते हैं। आम लोगों के अलावा अक्सर बॉलीवुड स्टार भी अपनी फिल्मों की सफलता के लिए यहाँ दुआ मांगने आते हैं।
यहाँ आपको बहुत सारे श्रद्धालु धागा बांध कर मन्नत मांगते हुए दिखाई देंगे। कहते हैं यहाँ धागा बांध कर मन्नत मांगने से आपकी मुराद अवश्य पूरी होती है।
मुगल बादशाह अकबर कीसबसे पसंदीदा जगह
बताते हैं मुगल बादशाह अकबर के लिए यह दरगाह बरसों तक सबसे पसंदीदा जगह थी। वह बेटे की ख्वाहिश पूरी होने पर सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर यहां आया था। अकबर ने दरगाह पर मन्नत मांगी थी कि अगर मेरे घर बेटे का जन्म हुआ तो मैं आगरा से अजमेर पैदल चल कर दरगाह पर आऊंगा, आखिर ईश्वर ने अकबर की सुन ली और उसके घर जहांगीर का जन्म हुआ। जहांगीर के जन्म के बाद अकबर 1570 में पैदल चलकर अजमेर गया और वहां कई दिन बिताए। कहा जाता है कि अकबर आगरा से चार सौ किलोमीटर से भी ज्यादा पैदल चलकर इस दरगाह तक पहुंचा था।
अजमेर शरीफ की दरगाह का इतिहास
इतिहासकारों की माने तो खिलज़ी वंश के सुलतान गयासुद्दीन खिलजी ने लगभग 1465 में अजमेर शरीफ की दरगाह का निर्माण करवाया था। बाद में मुगल शासक हुंमायूं, अकबर, शाहजहां और जहांगीर ने इस दरगाह का जमकर विकास करवाया।
अजमेर शरीफ दरगाह का दौरा करते समय आपको कुछ प्रसिद्ध इमारतें जिसमें बुलंद दरवाज़ा, निज़ाम गेट, महफ़िल खाना , बेग़मी दालान, जन्नती दरवाज़ा मिलेंगी। इन सभी इमारतों का निर्माण भारत के विभिन्न शासकों के द्वारा करवाया गया।
इस दरगाह के अंदर दो बड़े-बड़े कढ़ाहे रखे गए हैं, चितौड़गढ़ से युद्ध जीतने के बाद मुगल सम्राट अकबर ने बड़े कढ़ाहे को दान किया था, जबकि जहांगीर द्धारा छोटा कढाहा भेंट किया गया था।
अजमेर शरीफ के अंदर हॉल महफिलखाना में सूफी गायकों के द्धारा रोजाना नमाज के बाद बेहद खूबसूरत कव्वाली गाईं जाती हैं, जिसका यहां आने वाले भक्त लुत्फ़ उठा सकते हैं। इसके अलावा ख्वाजा गरीब नवाज की इस दरगाह में ऑलिया मस्जिद, सनडली मस्जिद, बीबी हाफिज जमाल की मजार समेत कुछ अन्य स्मारक भी बने हुए हैं।
दरगाह के अंदर शाह जहानी मस्जिद मुगल वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना है। इसके गुंबद में अल्ला के 99 पवित्र नामों को 33 खूबसूरत छंदों में लिखा गया है। अजमेर शरीफ दरगाह के अंदर बनी हुई अकबर मस्जिद अकबर ने तब बनवाई थी जब जहाँगीर का जन्म हुआ था आज यहाँ मुस्लिम धर्म के बच्चों को कुरान की तामिल प्रदान की जाती है। आपको यहाँ प्रांगण में बहुत से लोग नमाज़ पढ़ते हुए दिखाई देंगे।
Jantar Mantar-Jaipur- प्राचीन भारत की विश्व प्रसिद्ध खगोल विद्या का जीता जागता उदाहरण
by Pardeep Kumar
राजस्थान की राजधानी जयपुर में सवाई जय सिंह द्वारा बनवाया गया जंतर-मंतर यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज सूची में शामिल है। यहाँ पर मौजूद उपकरण और यंत्र बेहद पुराने होने के बावजूद भी आधुनिकता का प्रमाण देते हैं। इन बेहद पुराने उपकरणों से समय को मापा जाता है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें सिटी पैलेस, गोवर्धन मंदिर, हवा महल और भी कई सुन्दर और फेमस जगह जयपुर के जंतर-मंतर के आस-पास ही कुछ क़दमों की दूरी पर स्थित है। गुलाबी शहर का लुत्फ़ उठाते हुए आप इन जगह का दीदार करके अपने सफर को हमेशा के लिए यादगार बना सकते है। जयपुर यात्रा के तमाम ब्लोग्स आप फाइव कलर्स ऑफ़ ट्रेवल के ब्लॉग से पढ़ सकते हैं और अपनी यात्रा को बेहद आसान बना सकते हैं।
आपने कभी सूर्य तो कभी चंद्र ग्रहण के बारे में अवश्य सुना होगा, इन यंत्रो से भविष्य में आने वाले ऐसे ग्रहण के विषय में पता लगाया जाता है। वैसे भी जयपुर स्थित जंतर-मंतर भारत के सबसे बेहतरीन वेधशालाओं में से एक है।
सवाई जयसिंह ने देश के अलग अलग स्थानों पर जंतर-मंतर जैसी वेधशालाओं का निर्माण करवाया। जयपुर के अलावा उज्जैन, मथुरा, दिल्ली और वाराणसी में भी ऐसी ही वेधशाला का निर्माण करवाया था। इस कड़ी में पहली वेधशाला 1725 में दिल्ली में बनी। इसके 10 वर्ष बाद1734 में जयपुर में जंतर मंतर का निर्माण हुआ। इसके लगभग पंद्रह वर्ष बाद 1748 में मथुरा, उज्जैन और बनारस में भी ऐसी ही वेधशालाएं खड़ी की गईं।
कहते हैं महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने जयपुर की वेधशाला का निर्माण करवाने से पहले विभिन्न देशों में अपने शांति दूत भेजे और वहां से खगोल शास्त्र पर उम्दा दर्जे की पांडुलिपियां मंगवाई, जिनसे उन्होंने खगोल विज्ञान को समझा।
जंतर मंतर की टिकट
जंतर-मंतर जयपुर में भारतीय एडल्ट्स के लिए टिकट की कीमत 50 रुपए है और भारतीय स्टूडेंट के लिए 15 रुपए है। वही दूसरी तरफ विदेशी पर्यटकों के लिए टिकट की कीमत ₹200 और फॉरेन स्टूडेंट के लिए 100 निर्धारित की गई है।
जंतर-मंतर जयपुर के खुलने का समय
जंतर-मंतर जयपुर के खुलने का समय सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक है। यह हफ्ते के सातों दिन खुला रहता है, और आप पूरे जंतर-मंतर को अच्छे से घंटे भर में देख सकते हैं।
कौन सा समय जंतर-मंतर जाने के लिए उपयुक्त रहेगा
किसी भी टूरिस्ट के लिए जंतर मंतर जाने का सबसे उपयुक्त समय दोपहर का है क्योंकि इस दौरान आप यहाँ मौजूद उपकरणों की कार्य प्रणाली को बेहतर समझ पाएंगे। सबसे बढ़िया है कि आप एक एक्सपर्ट गाइड की हेल्प लें।
जंतर मंतर में स्थित यहाँ के उपकरण आपको एक पल के लिए बांध देने की क्षमता रखते हैं और जैसे ही आप इनकी बनावट देखोगे, इनकी खूबियां देखते ही रह जाओगे। यहाँ पर बहुत सारे उपकरण हैं जो आपको अलग-अलग ज्यामितीय आकारों के दिखाई देंगे। यही वो उम्दा उपकरण हैं जो जयपुर के जंतर मंतर को दुनिया के बेहतरीन वेधशालाओं में से एक बनाते हैं।
सबसे पहले लेते हैं सम्राट यंत्र को
इसके विशाल आकार के कारण ही इसे सम्राट यंत्र नाम दिया गया। 90 फीट की ऊंचाई वाला यह यंत्र जंतर मंतर का सबसे बड़ा यंत्र है। इस यंत्र के ऊपरी हिस्से में एक छतरी बनी हुई दिखाई देती है। यह उपकरण ग्रह-नक्षत्रों में समय-समय पर होने वाली उथल-पुथल व समय का पता लगाने के बनाया गया है।
दिशा यंत्र
जंतर मंतर के ठीक बीचो-बीच आपको दिखाई देगा वर्ग के आकार की समतल भूमि पर लाल पत्थर से बना दिशा यंत्र, जिसके केंद्र से चारों दिशाओं की ओर समकोण बनाए गए हैं। जैसा कि नाम से जाहिर हो रहा है इस यंत्र द्वारा दिशाओं का पता लगाया जाता है। दिखने में भले ही यह साधारण सा ही लगे लेकिन इस यंत्र का भी अपना विशेष महत्त्व है।
जयप्रकाश यन्त्र
आपको जानकार हैरानी होगी कि खगोल विद्या में माहिर महाराजा जयसिंह ने ही जय प्रकाश यंत्रों का आविष्कार किया। अपनी बनावट में बेजोड़ यह यंत्र कटोरे के आकार के दिखाई देते हैं। जंतर मंतर में ये यंत्र सम्राट यंत्र और दिशा यंत्र के बिलकुल बीचो बीच बनाये गए हैं। इन यंत्रों से सूर्य की किसी राशि में अवस्थिति का पता चलता है। ये दोनो यंत्र एक दुसरे के पूरक हैं।
क्रांति वृत
क्रांति यंत्र का प्रयोग सौर मंडल में दिन के वक्त सूरज के चिन्हों को देखने के लिए किया जाता है। इस बेहद उम्दा प्रकार के और दिखने में भी खूबसूरत से यंत्र को देखे बिना आपकी जंतर मंतर की यात्रा अधूरी ही समझिये।
ध्रुव दर्शक यंत्र
ध्रुवदर्शक यंत्र से ध्रुव तारे की स्थिति और दिशा ज्ञान के बारे में पता चलता है । उत्तर दक्षिण दिशा की ओर दीवारनुमा यह पट्टिका दक्षिण से उत्तर की ओर क्रमश: उठी हुई है।अगर आप इसके दक्षिणी सिरे पर आँख टिका कर देखेंगे तो उत्तरी सिरे पर ध्रुव तारे की स्थिति बिलकुल स्पष्ट होगी।
रामयंत्र
राम यंत्र में स्तंभों के वृत्त के बीच केंद्र तक डिग्रियों के फलक दर्शाए गए हैं। इन फलकों से भी महत्वपूर्ण और जरुरी खगोलीय गणनाएं की जाती थीं। जंतर मंतर की पश्चिमी दीवार के पास स्थित राम यंत्र में आपको दो यंत्र दिखाई देंगे। इन यंत्रों के दो लघु रूप भी जंतर मंतर में इन्हीं यंत्रों के पास स्थित हैं।
इसके अलावा आपको जयपुर के जंतर मंतर में अलग-अलग ज्यामितीय आकारों के षष्ठांश यंत्र, नाड़ीवलय यंत्र, राशि वलय यंत्र और चक्र यंत्र जैसे अन्य उम्दा और बेजोड़ यंत्र भी दिखाई देंगे। जंतर मंतर के ये उपकरण बेहद आकर्षक है और ये अपनी खूबी देखते ही बयान करते है।
जब भी आप जयपुर के जंतर मंतर जाएँ एक बात का विशेष ख्याल रखें की जंतर मंतर जाने का सबसे उचित समय दोपहर का ही माना जाता है क्योंकि इस दौरान आप यहाँ मौजूद उपकरणों को न केवल बखूबी कार्य करते हुए देख पाऐंगे बल्कि आप इनके कार्यों को उचित ढंग से समझ भी पाऐंगे।
बापू बाजार -गुलाबी शहर जयपुर की सबसे पसंदीदा मार्किट
by Pardeep Kumar
गुलाबी शहर जयपुर अपनी रॉयल् लुक और अद्भुत महलों, स्मारकों के लिए जाना जाता है। लेकिन, इसी के साथ यहां मिलने वाले ट्रेडिशनल आइटम्स इसे एक बेहतरीन शॉपिंग डेस्टिनेशन बना देते हैं। इस बात में कोई संदेह नहीं कि जयपुर में कई ऐसी बड़ी-बड़ी मार्केट हैं जहां आपको बहुत सारी अलग-अलग वेरायटीज की चीजें बहुत ही उचित दामों पर मिल जायेंगी। अपनी जयपुर यात्रा के अगले पड़ाव के इस ब्लॉग में आज हम आपको बताएंगे ऐसे ही एक बेहद खास बाजार के बारे में –
जयपुर शहर के केंद्र में, सांगानेर गेट और गुलाबी शहर के नए गेट के बीच, बापू बाजार जूते से लेकर हैंडीक्राफ्ट्स तक, आर्टिफीसियल जूलरी से लेकर पीतल के काम और कीमती पत्थरों तक की खरीदारी के लिए एक बेहतरीन डेस्टिनेशन है, जहां आपको अपनी मनपसंद का हर एक सामान आसानी से मिल जाएगा।
राजस्थान जिस चीज के लिए प्रसिद्ध है वह है इसकी जीवंतता और भव्यता। और अगर आप इसकी राजधानी जयपुर में घूमने के लिए आते हो तो आप बापू बाजार में शॉपिंग करके अपनी ट्रिप को यादगार बना सकते हो।
बापू बाजार यहां मिलने वाली फेमस राजस्थानी आइटम्स जैसे कलाकृतियों, हैंडीक्राफ्ट, परम्परागत कपड़े और आर्टिफिशियल जूलरी के लिए देश भर में प्रसिद्ध है।
बापू बाजार स्थानीय लोगों के साथ-साथ पर्यटकों के बीच भी अपने अट्रैक्शन के लिए खासी पहचान रखता है, जो इसे जयपुर सिटी के सबसे पसंदीदा मार्केट में से एक बनाता है।
बापू बाजार चाहे कोई मिडल क्लास हो या रिच क्लास, शॉपिंग के मामले में सबके लिए एकदम फिट बैठता है। कहा जाता है कि अगर आपको अच्छी तरह से बारगेनिंग करनी आती है तो आपको यहां हर चीज सही दामों में उपलब्ध हो जाएगी। यह पूरा बाजार भरा पड़ा है यहां मिलने वाले राजस्थान के कल्चरल आइटम से और यह उन लोगों के लिए एक परफेक्ट डेस्टिनेशन है जो कि पारंपरिक चीजें पहनना और रखना पसंद करते हैं।
इस बाजार में कुछ चीजें हैं जो इसे एक खास बाजार बनाती है –
मोजरी फुटवियर– पारंपरिक राजस्थानी फुटवियर को मोजरी कहा जाता है। मोजरी ज्यादातर चमड़े से बने होते हैं, फुटवियर को विभिन्न पैटर्न और जीवंत रंगों के साथ खूबसूरती से डिजाइन और कढ़ाई की जाती है। बापू बाजार में मोजरी के जूते प्रामाणिक होने के साथ-साथ सस्ते भी हैं।
आर्टफिशियल ज्यूलरी- बापू बाजार में आपको आर्टिफिशियल जूलरी की जबर्दस्त वैरायटी मिल जायेंगी जिसमें गले के हार, झुमके, पायल, लाख (लाख के बर्तन) से बनी चूड़ियाँ और साथ ही रंगीन रेशम के धागों से बनी चूड़ियाँ शामिल हैं। यहाँ आपको इन सभी में हज़ारों डिज़ाइन मिल जायेंगे।
राजस्थानी क्लोथ्स- अगर आपको राजस्थान में पारंपरिक बंधेज या टाई और डाई साड़ी या सूट खरीदना है तो आपको यहां पर लहरिया, सांगानेरी प्रिंट से लेकर बाटिक प्रिंट तक बंधेज के पैटर्न और अलग-अलग डिजाइंस मिल जाएंगे। यहां के दुपट्टों और साड़ियों पर जीवंत और जटिल कढ़ाई के अलावा, उन पर सुंदर दर्पण का काम और गोटा-पट्टी का काम भी किया जाता है।
जयपुरी रजाई– जयपुरी रजाई अपने सॉफ्टनेस के लिए जानी जाती है। एक विशेष प्रकार के महीन सूती कपड़े से बनी जयपुरी रज़ाई हल्की होने के साथ-साथ गर्म और टिकाऊ होती है। रजाई को हाथ से बुनने के सदियों पुराने शिल्प के बाद, रजाई के कवर पर डिजाइन ब्लॉक प्रिंट किये जाते हैं। वे अपनी गर्माहट के साथ-साथ कपास की कोमलता के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं।
हस्तशिल्प, शोपीस और सजावटी प्रोडक्ट्स – जयपुर के बापू बाजार में छोटी स्मारिका की दुकानों की कोई कमी नहीं है, यहाँ पर सड़क की दुकानें कलाकृतियों, पेन स्टैंड, कीचेन, मिरर वर्क वाली एक्सेसरीज से भरी पड़ी हैं।
कठपुतली- कठपुतली शो और राजस्थानी परंपरा साथ-साथ चलती है। आमतौर पर, कठपुतली जीवंत रंग की प्रतीक होती हैं। आपको बापू बाजार में हर तरह की कठपुतलियाँ देखने को मिल जाएँगी।
बापू बाजार में फ़ूड – जयपुर के बापू बाजार की गलियों से गुजरते समय दुकानों से आती हुई चाट की खुशबू से आप खुद को रोक नहीं पाएंगे। इसके अलावा फालूदा कुल्फी एक अन्य पसंदीदा स्थानीय व्यंजन है, जो दूध के साथ गुलाब की चाशनी के साथ मिलता है।
इसके अलावा सेंवई, मीठी तुलसी के बीजों का पारंपरिक मिश्रण भी यहां बेहद फेमस है। इसे अपनी पसंद की आइसक्रीम के स्कूप के साथ परोसा जाता है।
बाजार का समय –
बापू बाजार सप्ताह के सभी दिनों में सुबह 11 बजे से रात 10 बजे के बीच खुला रहता है।
कौन-सा मौसम यहाँ आने के लिए सबसे बेहतर
वैसे तो आप साल में किसी समय बापू बाजार आ सकते हैं, लेकिन नवंबर से मार्च के बीच सर्दियों के समय, दिन के ठंडे तापमान के कारण यहाँ शॉपिंग करना बेहतर माना जाता हैं। गर्मियां वास्तव में गर्म होती हैं और दिन में घूमना और खरीदारी करना मुश्किल हो जाता है। आप यहां सर्दियों में दिन में और गर्मियों के समय शाम में शॉपिंग कर सकते हैं।
कैसे जाएँ
बापू बाजार जयपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन से 4 किलोमीटर दूर है। आप कोई भी ऑटो रिक्शा किराए पर ले सकते है या कैब बुक करके भी यहां आसानी से पहुंच सकते हैं। इसके अलावा आप यहां पर किसी लोकल बस से भी आ सकते हैं।
दिल्ली से लगभग 232 किलो मीटर दूर आगरा शहर अपनी ऐतिहासिकता के कारण आज भी बेहद प्रासंगिक है। गंगा-जमुनी तहजीब की विरासत का यह शहर अपनी सांस्कृतिक विविधता के लिए दुनिया भर में जाना पहचाना जाता है। मंदिर की लुभावनी घंटियों और मस्जिदों की अजान से जैसे आगरा शहर हर रोज नींद से जागता हो। न केवल होली दिवाली बल्कि ईद और रमजान में भी यह शहर जश्न में डूब जाता है।
आगरा में दुनिया के सात आश्चर्यों में से एक ताजमहल के अलावा आगरा का किला भव्यता का एक दूसरा नमूना है। इस किले की अद्भुत बनावट को देखकर आप बड़े बड़े किलों को भूल जायेंगे। जब तक की मुगलों ने अपनी राजधानी आगरा से दिल्ली स्थानांतरित नही कर दी थी तब तक यानि के 1638 तक मुगल शासकों का मुख्य निवास यही किला था। इसे आगरा का लाल किला भी कहा जाता है क्योंकि यह दिल्ली के लाल किले की तरह ही लाल पत्थरों से बना है।
आगरा का किला यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है। यह वर्ल्ड फेमस ताजमहल से लगभग 2.5 किमी दूर उत्तर-पश्चिम में स्थित है। अपनी बड़ी-बड़ी शक्तिशाली दीवारों के कारण हमेशा सुरक्षित रहा यह किला अपने वैभव शाली इतिहास के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है।
जानिए आगरा के किले का इतिहास
अगर इतिहास की बात करें तो 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई के बाद, मुगल शासक बाबर इसी किले में, इब्राहिम लोदी के महल में रहा। उनके उत्तराधिकारी हुमायूँ को 1530 में इसी किले में ताज पहनाया गया था। लेकिन हुमायूं 1540 में बिलग्राम में शेर शाह सूरी से हार गया था। तब यह किला 1555 तक शेरशाह सूरी के पास उसके अधिकार में रहा, जब तक की हुमायूँ ने इस पर दोबारा अधिकार न कर लिया। बाद में इसकी केंद्रीय स्थिति के महत्व को समझते हुए, अकबर ने इसे अपनी राजधानी बनाया और 1558 में फतेहपुर सीकरी से आगरा पहुंचे। इतिहासकार अबुल फजल ने एक जगह दर्ज किया कि यह एक ईंट का किला था जिसे ‘बादलगढ़’ के नाम से जाना जाता था। तब यह बहुत ही खंडहर हालत में था।
अकबर ने राजस्थान के धौलपुर जिले के बरौली क्षेत्र से लाल बलुआ पत्थर मंगवा कर इसका दोबारा नए सिरे से निर्माण करवाया था। उस समय के बेहतरीन आर्किटेक्ट्स ने इस किले की नींव रखी और इसे बाहरी सतहों पर बलुआ पत्थर के साथ आंतरिक कोर में ईंटों के साथ बनाया गया था।
लगभग 4,000 कारीगरों ने आठ वर्षों तक प्रतिदिन इस पर काम किया, और इसे 1573 में पूरा किया।
शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में खूबसूरत ताजमहल बनवाया था। अपने दादा के विपरीत, शाहजहाँ का झुकाव सफेद संगमरमर से बनी इमारतों की तरफ अधिक था। इतिहास के अनुसार अपने जीवन के अंतिम वर्षों में, शाहजहाँ को उसके बेटे औरंगजेब ने किले में कैद कर दिया था।
18 वीं शताब्दी की शुरुआत में किले पर मराठा साम्राज्य द्वारा आक्रमण किया गया और कब्जा कर लिया गया। 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई में अब्दाली के द्वारा अपनी विनाशकारी हार के बाद, मराठा अगले दशक तक इस क्षेत्र से बाहर रहे। अंत में महादजी शिंदे ने 1785 में इस किले पर कब्जा कर लिया। इस तरह इस ऐतिहासिक किले पर शासकों की अदला-बदली चलती रही। यह किला 1857 के पहले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लड़ाई का प्रमुख स्थल रहा , जिसने बाद में भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का अंत किया।
क्या है इस किले में खास
जहांगीर महल: आगरा किले में जब आप अमर सिंह द्वार से प्रवेश करेंगे, तो जो भी आपको सबसे पहला महल नजर आएगा, वही जहांगीर महल है। यहीं से जहाँगीर का न्याय लोकप्रिय हुआ और उसने आम जन के लिए घण्टियों की श्रंखला बनाई, जिसे न्याय पाने वाला इसे बजा कर अपनी फरियाद कर सकता था।
जहांगीर महल के सामने ही आपको एक हौज़ दिखाई देगा। यह केवल एक ही पत्थर से बना टैंक है जो जहाँगीर ने बनवाया था और इसलिए इसे उन्हीं का नाम दिया गया है। यह टैंक मुख्य रूप से स्नान करने के लिए बनवाया गया था और यह लगभग 1.22 मीटर गहरा है।
दीवान ए आम और दीवान ए खास: दीवाने आम वह हॉल है जहाँ मुगल बादशाह आम जनता के साथ उनकी समस्याओं पर बात करते थे। और दीवाने खास वह हाल है जहां बादशाह अपने बेहद खास मंत्रियों के साथ विभिन्न मुद्दों पर सलाह मशविरा और बातचीत किया करते थे।
आरामगाह : आगरा किले की सबसे महत्वपूर्ण संरचना आरामगाह है। यह खास महल का निर्माण मुगल वंश के सम्राट के विश्राम कक्ष के रूप में किया गया था। इस महल की सबसे अनोखी विशेषता इसमें संगमरमर के पत्थरों पर खूबसूरत पेंटिंग्स और नक्काशी की गई हैऔर इन्ही पेंटिंग के कारण ही इस महल को खास महल कहा जाता है।
थोड़ा आगे बढ़ने पर, आप नगीना मस्जिद और मीना मस्जिद, शाहजहानी महल और जनाना मीना बाजार, शीश महल जैसी बेहतरीन इमारत देखेंगे। नगीना मस्जिद को शाहजहाँ ने एक ऐसे पवित्र स्थान के रूप में बनवाया था, जहाँ जाकर वह निजी रूप से पूजा-अर्चना कर सके।
आगरा के किले में आप जटिल नक्काशी और इसके निर्माण में उपयोग किए गए बेहद खास पत्थरों से अवश्य प्रभावित होंगे। इसके अलावा, मंडप की बालकनियों से यमुना नदी और ताजमहल के लुभावने दृश्य आपको बिल्कुल मंत्रमुग्ध कर देंगे।
कैसे पहुंचे आगरा
दिल्ली से आगरा की उड़ान एक घंटे से भी कम लंबी है। आगरा शहर से खेरिया हवाई अड्डा 13 किलो मीटर दूर है। यहां से आगरा सिटी जाने के लिए आप ऑटो या कैब बुक कर सकते हैं। आगरा दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-चेन्नई मार्ग पर स्थित है और पूरे भारत के अधिकांश शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। दिल्ली, जयपुर, ग्वालियर और झांसी जैसे शहरों से आगरा के लिए नियमित ट्रेनें हैं। आगरा देश के अन्य हिस्सों जैसे कोलकाता, मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों से भी अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आगरा में पांच रेलवे स्टेशन हैं – आगरा कैंट स्टेशन (मुख्य स्टेशन), आगरा किला रेलवे स्टेशन, राजा की मंडी, आगरा शहर और ईदगाह रेलवे स्टेशन। ताजमहल और आगरा का किला आगरा कैंट रेलवे स्टेशन से थोड़ी दूरी पर हैं और यहां तक जाने के लिए आप कोई टैक्सी, ऑटो रिक्शा भी किराए पर ले सकते हैं। सड़क मार्ग से आगरा NH2 और नए यमुना एक्सप्रेसवे द्वारा दिल्ली से सीधा जुड़ा हुआ है। इस एक्सप्रेस वे से आप आराम से लगभग तीन से चार घंटे में आगरा पहुंच सकते हैं। जयपुर NH11 भी आगरा से जुड़ा हुआ है और यह भी लगभग 4 घंटे की ड्राइव पर है।
आगरा का किला, जिसे “लाल-किला”, “फोर्ट रूज” या “किला-ए-अकबरी” के रूप में भी जाना जाता है, आगरा फोर्ट शहर के प्रमुख टूरिस्ट स्पॉट्स में से मुख्य आकर्षण है। शक्ति और सौहार्द का प्रतीक, यह किला आज भी पूरी शान और गौरव के साथ सीना तान के खड़ा है।
किले में एंट्री
अमर सिंह गेट से ही आगरा किले में प्रवेश की अनुमति है। इस किले के कुछ हिस्से का इस्तेमाल भारतीय सेना करती है। उस हिस्से में सार्वजनिक पहुंच प्रतिबंधित कर दी गई है। तो आप उस क्षेत्र को नहीं देख सकते हैं। हालाँकि, यह किला बहुत विस्तृत है और इसमें कई इमारतें हैं जो देखने लायक हैं इसलिए आप उन्हें बहुत अच्छी तरह से देख सकते हैं। आगरा का किला देखने पर आपको दीवान-ए-आम या हॉल ऑफ पब्लिक ऑडियंस मिल जाएगी। कई खंभों वाला यह हॉल 1628 में शाहजहाँ द्वारा बनवाया गया था।
थोड़ा आगे बढ़ने पर, आप नगीना मस्जिद और मीना मस्जिद, खास महल, शीश महल जैसे महलों सहित भव्य मस्जिदों में शाही मंडप देखेंगे। आगरा के किले में आप जटिल नक्काशी और इसके निर्माण में उपयोग किए गए बेहद खास पत्थरों से अवश्य प्रभावित होंगे। इसके अलावा, मंडप की बालकनियों से यमुना नदी और ताजमहल के लुभावने दृश्य आपको बिल्कुल मंत्रमुग्ध कर देंगे।
प्रवेश टिकट
आगरा के किले में प्रवेश के लिए सप्ताह के छह दिन विदेशी पर्यटकों से टिकट के 650/- लिए जाते हैं। वहीं भारतीय पर्यटक मात्र 50/- की राशि का टिकट लेकर किले में प्रवेश पा सकते हैं ।
आगरा जाने के लिए बेस्ट मौसम
वैसे तो यहां साल भर टूरिस्ट आते रहते हैं लेकिन फिर भी अक्टूबर से मार्च का महीना यहां आने के लिए सबसे बेहतरीन माना जाता है। सर्दियों के मौसम में खिली धूप में यहां घूमने का आनंद ही अलग होता है।
GLIMPSE OF AGRA FORT
by Pardeep Kumar
दिल्ली से लगभग 232 किलो मीटर दूर आगरा शहर अपनी ऐतिहासिकता के कारण आज भी बेहद प्रासंगिक है। गंगा-जमुनी तहजीब की विरासत का यह शहर अपनी सांस्कृतिक विविधता के लिए दुनिया भर में जाना पहचाना जाता है। मंदिर की लुभावनी घंटियों और मस्जिदों की अजान से जैसे आगरा शहर हर रोज नींद से जागता हो। न केवल होली दिवाली बल्कि ईद और रमजान में भी यह शहर जश्न में डूब जाता है। Agra fort
आगरा में दुनिया के सात आश्चर्यों में से एक ताजमहल के अलावा आगरा का किला भव्यता का एक दूसरा नमूना है। इस किले की अद्भुत बनावट को देखकर आप बड़े बड़े किलों को भूल जायेंगे। जब तक की मुगलों ने अपनी राजधानी आगरा से दिल्ली स्थानांतरित नही कर दी थी तब तक यानि के 1638 तक मुगल शासकों का मुख्य निवास यही किला था। इसे आगरा का लाल किला भी कहा जाता है क्योंकि यह दिल्ली के लाल किले की तरह ही लाल पत्थरों से बना है।
आगरा का किला यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है। यह वर्ल्ड फेमस ताजमहल से लगभग 2.5 किमी दूर उत्तर-पश्चिम में स्थित है। अपनी बड़ी-बड़ी शक्तिशाली दीवारों के कारण हमेशा सुरक्षित रहा यह किला अपने वैभव शाली इतिहास के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है।
जानिए आगरा के किले का इतिहास
अगर इतिहास की बात करें तो 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई के बाद, मुगल शासक बाबर इसी किले में, इब्राहिम लोदी के महल में रहा। उनके उत्तराधिकारी हुमायूँ को 1530 में इसी किले में ताज पहनाया गया था। लेकिन हुमायूं 1540 में बिलग्राम में शेर शाह सूरी से हार गया था। तब यह किला 1555 तक शेरशाह सूरी के पास उसके अधिकार में रहा, जब तक की हुमायूँ ने इस पर दोबारा अधिकार न कर लिया। बाद में इसकी केंद्रीय स्थिति के महत्व को समझते हुए, अकबर ने इसे अपनी राजधानी बनाया और 1558 में फतेहपुर सीकरी से आगरा पहुंचे। इतिहासकार अबुल फजल ने एक जगह दर्ज किया कि यह एक ईंट का किला था जिसे ‘बादलगढ़’ के नाम से जाना जाता था। तब यह बहुत ही खंडहर हालत में था।
अकबर ने राजस्थान के धौलपुर जिले के बरौली क्षेत्र से लाल बलुआ पत्थर मंगवा कर इसका दोबारा नए सिरे से निर्माण करवाया था। उस समय के बेहतरीन आर्किटेक्ट्स ने इस किले की नींव रखी और इसे बाहरी सतहों पर बलुआ पत्थर के साथ आंतरिक कोर में ईंटों के साथ बनाया गया था।
लगभग 4,000 कारीगरों ने आठ वर्षों तक प्रतिदिन इस पर काम किया, और इसे 1573 में पूरा किया।
शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में खूबसूरत ताजमहल बनवाया था। अपने दादा के विपरीत, शाहजहाँ का झुकाव सफेद संगमरमर से बनी इमारतों की तरफ अधिक था। इतिहास के अनुसार अपने जीवन के अंतिम वर्षों में, शाहजहाँ को उसके बेटे औरंगजेब ने किले में कैद कर दिया था।
18 वीं शताब्दी की शुरुआत में किले पर मराठा साम्राज्य द्वारा आक्रमण किया गया और कब्जा कर लिया गया। 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई में अब्दाली के द्वारा अपनी विनाशकारी हार के बाद, मराठा अगले दशक तक इस क्षेत्र से बाहर रहे। अंत में महादजी शिंदे ने 1785 में इस किले पर कब्जा कर लिया। इस तरह इस ऐतिहासिक किले पर शासकों की अदला-बदली चलती रही। यह किला 1857 के पहले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लड़ाई का प्रमुख स्थल रहा , जिसने बाद में भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का अंत किया।
क्या है इस किले में खास
जहांगीर महल: आगरा किले में जब आप अमर सिंह द्वार से प्रवेश करेंगे, तो जो भी आपको सबसे पहला महल नजर आएगा, वही जहांगीर महल है। यहीं से जहाँगीर का न्याय लोकप्रिय हुआ और उसने आम जन के लिए घण्टियों की श्रंखला बनाई, जिसे न्याय पाने वाला इसे बजा कर अपनी फरियाद कर सकता था।
जहांगीर महल के सामने ही आपको एक हौज़ दिखाई देगा। यह केवल एक ही पत्थर से बना टैंक है जो जहाँगीर ने बनवाया था और इसलिए इसे उन्हीं का नाम दिया गया है। यह टैंक मुख्य रूप से स्नान करने के लिए बनवाया गया था और यह लगभग 1.22 मीटर गहरा है।
दीवान ए आम और दीवान ए खास: दीवाने आम वह हॉल है जहाँ मुगल बादशाह आम जनता के साथ उनकी समस्याओं पर बात करते थे। और दीवाने खास वह हाल है जहां बादशाह अपने बेहद खास मंत्रियों के साथ विभिन्न मुद्दों पर सलाह मशविरा और बातचीत किया करते थे।
आरामगाह : आगरा किले की सबसे महत्वपूर्ण संरचना आरामगाह है। यह खास महल का निर्माण मुगल वंश के सम्राट के विश्राम कक्ष के रूप में किया गया था। इस महल की सबसे अनोखी विशेषता इसमें संगमरमर के पत्थरों पर खूबसूरत पेंटिंग्स और नक्काशी की गई हैऔर इन्ही पेंटिंग के कारण ही इस महल को खास महल कहा जाता है।
थोड़ा आगे बढ़ने पर, आप नगीना मस्जिद और मीना मस्जिद, शाहजहानी महल और जनाना मीना बाजार, शीश महल जैसी बेहतरीन इमारत देखेंगे। नगीना मस्जिद को शाहजहाँ ने एक ऐसे पवित्र स्थान के रूप में बनवाया था, जहाँ जाकर वह निजी रूप से पूजा-अर्चना कर सके।
आगरा के किले में आप जटिल नक्काशी और इसके निर्माण में उपयोग किए गए बेहद खास पत्थरों से अवश्य प्रभावित होंगे। इसके अलावा, मंडप की बालकनियों से यमुना नदी और ताजमहल के लुभावने दृश्य आपको बिल्कुल मंत्रमुग्ध कर देंगे।
कैसे पहुंचे आगरा
दिल्ली से आगरा की उड़ान एक घंटे से भी कम लंबी है। आगरा शहर से खेरिया हवाई अड्डा 13 किलो मीटर दूर है। यहां से आगरा सिटी जाने के लिए आप ऑटो या कैब बुक कर सकते हैं। आगरा दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-चेन्नई मार्ग पर स्थित है और पूरे भारत के अधिकांश शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। दिल्ली, जयपुर, ग्वालियर और झांसी जैसे शहरों से आगरा के लिए नियमित ट्रेनें हैं। आगरा देश के अन्य हिस्सों जैसे कोलकाता, मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों से भी अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आगरा में पांच रेलवे स्टेशन हैं – आगरा कैंट स्टेशन (मुख्य स्टेशन), आगरा किला रेलवे स्टेशन, राजा की मंडी, आगरा शहर और ईदगाह रेलवे स्टेशन। ताजमहल और आगरा का किला आगरा कैंट रेलवे स्टेशन से थोड़ी दूरी पर हैं और यहां तक जाने के लिए आप कोई टैक्सी, ऑटो रिक्शा भी किराए पर ले सकते हैं। सड़क मार्ग से आगरा NH2 और नए यमुना एक्सप्रेसवे द्वारा दिल्ली से सीधा जुड़ा हुआ है। इस एक्सप्रेस वे से आप आराम से लगभग तीन से चार घंटे में आगरा पहुंच सकते हैं। जयपुर NH11 भी आगरा से जुड़ा हुआ है और यह भी लगभग 4 घंटे की ड्राइव पर है।
आगरा का किला, जिसे “लाल-किला”, “फोर्ट रूज” या “किला-ए-अकबरी” के रूप में भी जाना जाता है, आगरा फोर्ट शहर के प्रमुख टूरिस्ट स्पॉट्स में से मुख्य आकर्षण है। शक्ति और सौहार्द का प्रतीक, यह किला आज भी पूरी शान और गौरव के साथ सीना तान के खड़ा है।
किले में एंट्री
अमर सिंह गेट से ही आगरा किले में प्रवेश की अनुमति है। इस किले के कुछ हिस्से का इस्तेमाल भारतीय सेना करती है। उस हिस्से में सार्वजनिक पहुंच प्रतिबंधित कर दी गई है। तो आप उस क्षेत्र को नहीं देख सकते हैं। हालाँकि, यह किला बहुत विस्तृत है और इसमें कई इमारतें हैं जो देखने लायक हैं इसलिए आप उन्हें बहुत अच्छी तरह से देख सकते हैं। आगरा का किला देखने पर आपको दीवान-ए-आम या हॉल ऑफ पब्लिक ऑडियंस मिल जाएगी। कई खंभों वाला यह हॉल 1628 में शाहजहाँ द्वारा बनवाया गया था।
थोड़ा आगे बढ़ने पर, आप नगीना मस्जिद और मीना मस्जिद, खास महल, शीश महल जैसे महलों सहित भव्य मस्जिदों में शाही मंडप देखेंगे। आगरा के किले में आप जटिल नक्काशी और इसके निर्माण में उपयोग किए गए बेहद खास पत्थरों से अवश्य प्रभावित होंगे। इसके अलावा, मंडप की बालकनियों से यमुना नदी और ताजमहल के लुभावने दृश्य आपको बिल्कुल मंत्रमुग्ध कर देंगे।
प्रवेश टिकट
आगरा के किले में प्रवेश के लिए सप्ताह के छह दिन विदेशी पर्यटकों से टिकट के 650/- लिए जाते हैं। वहीं भारतीय पर्यटक मात्र 50/- की राशि का टिकट लेकर किले में प्रवेश पा सकते हैं ।
आगरा जाने के लिए बेस्ट मौसम
वैसे तो यहां साल भर टूरिस्ट आते रहते हैं लेकिन फिर भी अक्टूबर से मार्च का महीना यहां आने के लिए सबसे बेहतरीन माना जाता है। सर्दियों के मौसम में खिली धूप में यहां घूमने का आनंद ही अलग होता है।
गोरखपुर के रामगढ़ ताल की विशालता किसी समुद्र के किनारे से कम नहीं
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में स्थित गोरखपुर, बाबा गोरखनाथ के नाम से देश भर में जाना-पहचाना जाता है। अगर गोरखपुर की बात की जाये तो यह जगह अनेक अध्यात्मिक, पुरातात्विक और प्राकृतिक धरोहरों को अपने में समेटे हुए है। प्रेमचन्द की कर्मभूमि, फिराक गोरखपुरी की जन्मभूमि, शहीद राम प्रसाद बिस्मिल व चौरीचौरा आन्दोलन के शहीदों की शहादत स्थली के रुप मे गोरखपुर को पूर्वांचल के गौरव का प्रतीक माना जाता है।
यात्राओं के अपने अद्भुत और खास सफर में फाइव कलर आफ ट्रेवल की टीम आज पहुंच चुकी है यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर में।
आज अपने इस ब्लॉग में हम आपको बताएंगे गोरखपुर के बेहद खूबसूरत रामगढ़ ताल के बारे में। एक समय था जब रामगढ़ ताल को कोई पूछता नहीं था, क्योंकि वहां पर ऐसी कोई भी व्यवस्था नहीं थी जिससे पर्यटन को बढ़ावा मिल सके। मगर पिछले कुछ सालों में रामगढ़ ताल को पर्यटन की दृष्टि से डेवलप किया गया है, इस तरह संवारा गया है कि आज वह घूमने फिरने के लिए प्रसिद्ध जगह बन चुका है। पहले तो यहां पर केवल गोरखपुर के लोग ही जाया करते थे, मगर आज इसके सौंदर्यीकरण किये के बाद यहां दूर-दूर से लोग घूमने के लिए आते हैं।
रामगढ़ ताल का इतिहास
इतिहासकार डॉ. राजबली पांडे के मुताबिक ईसा पूर्व छठी शताब्दी में गोरखपुर का नाम पहले कभी रामग्राम था। यहां पर कोलिय गणराज्य स्थापित हुआ करता था। कोलिया गणराज्य वही गणराज्य है जो हमें गौतम बुध के समय में देखने को मिलता है उस समय की राप्ती नदी आज के रामगढ़ ताल से होकर गुजरती थी। कुछ समय पश्चात राप्ती नदी की दिशा बदलने की वजह से उसके कुछ अवशेष बच गए, जिससे रामगढ़ ताल अस्तित्व में आया। रामग्राम से ही इसका नाम रामगढ़ ताल पड़ा। दूसरी जनश्रुति यह भी है कि प्राचीन समय में इस ताल के स्थान पर एक बहुत बड़ा नगर हुआ करता था। एक राजा का अहंकार ले डूबा। यह नगर एक ऋषि के श्राप की वजह से जमीन में समा गया। जिस वजह से यह पूरा नगर ताल में तबदील हो गया, जिसे आज हम रामगढ़ ताल कहते हैं। यह जनश्रुति गोरखपुरियों से सुनने को बखुबी मिलती है।
रामगढ़ ताल राप्ती नदी से महज कुछ मिनटों की दूरी पर स्थित है। जब आप ताल की विशालता देखोगे तो आपको यह नजारा किसी समुद्र के किनारे से कम नहीं लगेगा। रामगढ़ ताल के किनारे की सड़कें बिल्कुल साफ-सुथरी और ताल का किनारा देखने योग्य है। कहा जाता है कि आज तक ताल की गहराई को नापा नहीं जा सका है। शायद यही कारण होगा कि किसी को भी ताल के किनारे नहाते हुए नहीं देखा गया। यह ताल लगभग 18 किलोमीटर तक फैला हुआ है। ताल का किनारा तो बहुत पहले ही आरंभ हो जाता है। मगर ताल के किनारे बने पार्कनुमा जगह जिसे नौका विहार कहते हैं वहां पर जाने के लिए महज 500 मीटर का सफर तय करना होता है।
पार्किंग की व्यवस्था
अगर आप बाइक से जा रहे हैं तो आपको स्टैंड पर गाड़ी खड़ी करने के लिए 10 रूपये देने होते हैं। अगर चार पहिया है तो उसके 20 रू लिए जाते हैं। स्टैंड पर गाड़ी खड़ी करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि गाड़ी चोरी होने का रिस्क नहीं रहता है जिस से बेफिक्र होकर हम सफर का आनंद ले सकते हैं।
नौका विहार
गाड़ी खड़ी करने के बाद जैसे ही नौका विहार की और प्रवेश करते हैं तो बड़ा सा बुध द्वार देखने को मिलता है।
पार्कनुमा नौका विहार के अंदर चहल-पहल इस तरह की थी मानो यहां पर कोई मेला लगा हुआ है। मगर ऐसा कोई भी मेला वहां पर नहीं लगा हुआ था, फिर भी वहां घूमने वालों की संख्या कम नहीं थी। इससे इस बात का अंदाजा भी लगाया जा सकता है कि ताल की प्रसिद्धि और वहां की व्यवस्था लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
फेमिली और कपल्स के लिए सबसे बेस्ट जगह
आसपास लगे बाजार को देखकर ऐसा लग रहा था मानो ताल नहीं बाजार में घूमने आये हो। वहां पर बैठने की व्यवस्था किसी पार्क से कम नहीं थी। कपल्स भी यहां पर घूमने के लिए आते हैं और कपल्स के लिए यह सबसे बेस्ट जगह भी है। कपल्स के लिए किसी भी तरह की रोक टोक नहीं है।
स्पेशली यहां पर अधिकतर लोग फोटोशूट के लिए भी आते हैं। सेल्फी लेने वालों की संख्या कि कोई गिनती नहीं थी। बाजारों में मिल रहा समान बहुत ज्यादा महंगा नहीं है। आप 20 से 100 रूपये तक बहुत अच्छा समान खरीद सकते हैं।
अगर किश्ती में घूमने का आनंद लेना चाहते हैं तो उसका भी मूल्य बहुत ज्यादा नहीं है, आप महज 60 से 100 रू के बीच में 15 या 20 मिनट तक बोटिंग का आनंद ले सकते हैं।
ठिठुरन पैदा करने वाली ठंड और खिलखिलाती धूप दोनों के मेलजोल ने शरीर में एनर्जी का लेवल इस कदर बढ़ाया हुआ था कि लोग वहां पर कई घंटों तक समय बिता रहे थे। घर से सुबह के निकले लोग शाम में वापसी कर रहे थे। लोग ठंड में धूप सेकने का आनंद भी ले रहे थे।
जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था वैसे-वैसे भीड़ लगातार बढ़ती जा रही थी और भीड़ कम होने का नाम नहीं ले रही थी। हालांकि ताल के किनारे किसी भी तरह की कोरोना गाइडलाइन को फॉलो नहीं किया जा रहा था, ना ही अधिकतर लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे थे। बस वहां पर इक्का-दुक्का लोग ही मास्क पहने हुए दिख रहे थे।
अभी ताल पर सौन्दर्यकरण का काम चल रहा है। जिससे उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले समय में इसकी सुंदरता में और भी इजाफा होगा। यहाँ आने वाले पर्यटक इस ताल की खूबसूरती की तुलना मुंबई के मरीन ड्राइव और जुहू चौपाटी से करते हैं।
यहां से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर आपको सबसे पहले बौद्ध संग्रहालय और चिड़ियाघर देखने को मिल जाएगा। अगर आप गोरखपुर घूमने का प्लान बना रहे हैं या गोरखपुर के पास से गुजर रहे हैं या गोरखपुर के आस-पास रहते हैं तो एक बार जरूर रामगढ़ ताल और उसके पास बने पार्कनुमा नौका विहार का आनंद जरूर उठाएं।
कैसे पहुंचे रामगढ़ ताल
अगर आप ट्रेन से आ रहे हैं तो गोरखपुर रेलवे स्टेशन से आपको आसानी से कैब या ऑटो रिक्शा मिल सकता है। गोरखपुर स्टेशन से रामगढ़ ताल की दूरी महज 6 किलोमीटर की है।
अगर आप सड़क मार्ग से आ रहे हैं तो गोरखपुर बस अड्डा से रामगढ़ ताल की दूरी भी महज 6 किलोमीटर के आसपास ही है।
हवाई अड्डे की बात करें तो गोरखपुर एयरपोर्ट से रामगढ़ ताल लगभग छह किलोमीटर की दूरी पर है यहां से भी आप टैक्सी से आसानी से रामगढ़ ताल पहुँच सकते हैं।
Written and Research by Pravesh Chauhan Edited & compiled by Pardeep Kumar