Jantar Mantar-Jaipur- प्राचीन भारत की विश्व प्रसिद्ध खगोल विद्या का जीता जागता उदाहरण
by Pardeep Kumar
राजस्थान की राजधानी जयपुर में सवाई जय सिंह द्वारा बनवाया गया जंतर-मंतर यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज सूची में शामिल है। यहाँ पर मौजूद उपकरण और यंत्र बेहद पुराने होने के बावजूद भी आधुनिकता का प्रमाण देते हैं। इन बेहद पुराने उपकरणों से समय को मापा जाता है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें सिटी पैलेस, गोवर्धन मंदिर, हवा महल और भी कई सुन्दर और फेमस जगह जयपुर के जंतर-मंतर के आस-पास ही कुछ क़दमों की दूरी पर स्थित है। गुलाबी शहर का लुत्फ़ उठाते हुए आप इन जगह का दीदार करके अपने सफर को हमेशा के लिए यादगार बना सकते है। जयपुर यात्रा के तमाम ब्लोग्स आप फाइव कलर्स ऑफ़ ट्रेवल के ब्लॉग से पढ़ सकते हैं और अपनी यात्रा को बेहद आसान बना सकते हैं।
आपने कभी सूर्य तो कभी चंद्र ग्रहण के बारे में अवश्य सुना होगा, इन यंत्रो से भविष्य में आने वाले ऐसे ग्रहण के विषय में पता लगाया जाता है। वैसे भी जयपुर स्थित जंतर-मंतर भारत के सबसे बेहतरीन वेधशालाओं में से एक है।
सवाई जयसिंह ने देश के अलग अलग स्थानों पर जंतर-मंतर जैसी वेधशालाओं का निर्माण करवाया। जयपुर के अलावा उज्जैन, मथुरा, दिल्ली और वाराणसी में भी ऐसी ही वेधशाला का निर्माण करवाया था। इस कड़ी में पहली वेधशाला 1725 में दिल्ली में बनी। इसके 10 वर्ष बाद1734 में जयपुर में जंतर मंतर का निर्माण हुआ। इसके लगभग पंद्रह वर्ष बाद 1748 में मथुरा, उज्जैन और बनारस में भी ऐसी ही वेधशालाएं खड़ी की गईं।
कहते हैं महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने जयपुर की वेधशाला का निर्माण करवाने से पहले विभिन्न देशों में अपने शांति दूत भेजे और वहां से खगोल शास्त्र पर उम्दा दर्जे की पांडुलिपियां मंगवाई, जिनसे उन्होंने खगोल विज्ञान को समझा।
जंतर मंतर की टिकट
जंतर-मंतर जयपुर में भारतीय एडल्ट्स के लिए टिकट की कीमत 50 रुपए है और भारतीय स्टूडेंट के लिए 15 रुपए है। वही दूसरी तरफ विदेशी पर्यटकों के लिए टिकट की कीमत ₹200 और फॉरेन स्टूडेंट के लिए 100 निर्धारित की गई है।
जंतर-मंतर जयपुर के खुलने का समय
जंतर-मंतर जयपुर के खुलने का समय सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक है। यह हफ्ते के सातों दिन खुला रहता है, और आप पूरे जंतर-मंतर को अच्छे से घंटे भर में देख सकते हैं।
कौन सा समय जंतर-मंतर जाने के लिए उपयुक्त रहेगा
किसी भी टूरिस्ट के लिए जंतर मंतर जाने का सबसे उपयुक्त समय दोपहर का है क्योंकि इस दौरान आप यहाँ मौजूद उपकरणों की कार्य प्रणाली को बेहतर समझ पाएंगे। सबसे बढ़िया है कि आप एक एक्सपर्ट गाइड की हेल्प लें।
जंतर मंतर में स्थित यहाँ के उपकरण आपको एक पल के लिए बांध देने की क्षमता रखते हैं और जैसे ही आप इनकी बनावट देखोगे, इनकी खूबियां देखते ही रह जाओगे। यहाँ पर बहुत सारे उपकरण हैं जो आपको अलग-अलग ज्यामितीय आकारों के दिखाई देंगे। यही वो उम्दा उपकरण हैं जो जयपुर के जंतर मंतर को दुनिया के बेहतरीन वेधशालाओं में से एक बनाते हैं।
सबसे पहले लेते हैं सम्राट यंत्र को
इसके विशाल आकार के कारण ही इसे सम्राट यंत्र नाम दिया गया। 90 फीट की ऊंचाई वाला यह यंत्र जंतर मंतर का सबसे बड़ा यंत्र है। इस यंत्र के ऊपरी हिस्से में एक छतरी बनी हुई दिखाई देती है। यह उपकरण ग्रह-नक्षत्रों में समय-समय पर होने वाली उथल-पुथल व समय का पता लगाने के बनाया गया है।
दिशा यंत्र
जंतर मंतर के ठीक बीचो-बीच आपको दिखाई देगा वर्ग के आकार की समतल भूमि पर लाल पत्थर से बना दिशा यंत्र, जिसके केंद्र से चारों दिशाओं की ओर समकोण बनाए गए हैं। जैसा कि नाम से जाहिर हो रहा है इस यंत्र द्वारा दिशाओं का पता लगाया जाता है। दिखने में भले ही यह साधारण सा ही लगे लेकिन इस यंत्र का भी अपना विशेष महत्त्व है।
जयप्रकाश यन्त्र
आपको जानकार हैरानी होगी कि खगोल विद्या में माहिर महाराजा जयसिंह ने ही जय प्रकाश यंत्रों का आविष्कार किया। अपनी बनावट में बेजोड़ यह यंत्र कटोरे के आकार के दिखाई देते हैं। जंतर मंतर में ये यंत्र सम्राट यंत्र और दिशा यंत्र के बिलकुल बीचो बीच बनाये गए हैं। इन यंत्रों से सूर्य की किसी राशि में अवस्थिति का पता चलता है। ये दोनो यंत्र एक दुसरे के पूरक हैं।
क्रांति वृत
क्रांति यंत्र का प्रयोग सौर मंडल में दिन के वक्त सूरज के चिन्हों को देखने के लिए किया जाता है। इस बेहद उम्दा प्रकार के और दिखने में भी खूबसूरत से यंत्र को देखे बिना आपकी जंतर मंतर की यात्रा अधूरी ही समझिये।
ध्रुव दर्शक यंत्र
ध्रुवदर्शक यंत्र से ध्रुव तारे की स्थिति और दिशा ज्ञान के बारे में पता चलता है । उत्तर दक्षिण दिशा की ओर दीवारनुमा यह पट्टिका दक्षिण से उत्तर की ओर क्रमश: उठी हुई है।अगर आप इसके दक्षिणी सिरे पर आँख टिका कर देखेंगे तो उत्तरी सिरे पर ध्रुव तारे की स्थिति बिलकुल स्पष्ट होगी।
रामयंत्र
राम यंत्र में स्तंभों के वृत्त के बीच केंद्र तक डिग्रियों के फलक दर्शाए गए हैं। इन फलकों से भी महत्वपूर्ण और जरुरी खगोलीय गणनाएं की जाती थीं। जंतर मंतर की पश्चिमी दीवार के पास स्थित राम यंत्र में आपको दो यंत्र दिखाई देंगे। इन यंत्रों के दो लघु रूप भी जंतर मंतर में इन्हीं यंत्रों के पास स्थित हैं।
इसके अलावा आपको जयपुर के जंतर मंतर में अलग-अलग ज्यामितीय आकारों के षष्ठांश यंत्र, नाड़ीवलय यंत्र, राशि वलय यंत्र और चक्र यंत्र जैसे अन्य उम्दा और बेजोड़ यंत्र भी दिखाई देंगे। जंतर मंतर के ये उपकरण बेहद आकर्षक है और ये अपनी खूबी देखते ही बयान करते है।
जब भी आप जयपुर के जंतर मंतर जाएँ एक बात का विशेष ख्याल रखें की जंतर मंतर जाने का सबसे उचित समय दोपहर का ही माना जाता है क्योंकि इस दौरान आप यहाँ मौजूद उपकरणों को न केवल बखूबी कार्य करते हुए देख पाऐंगे बल्कि आप इनके कार्यों को उचित ढंग से समझ भी पाऐंगे।
बापू बाजार -गुलाबी शहर जयपुर की सबसे पसंदीदा मार्किट
by Pardeep Kumar
गुलाबी शहर जयपुर अपनी रॉयल् लुक और अद्भुत महलों, स्मारकों के लिए जाना जाता है। लेकिन, इसी के साथ यहां मिलने वाले ट्रेडिशनल आइटम्स इसे एक बेहतरीन शॉपिंग डेस्टिनेशन बना देते हैं। इस बात में कोई संदेह नहीं कि जयपुर में कई ऐसी बड़ी-बड़ी मार्केट हैं जहां आपको बहुत सारी अलग-अलग वेरायटीज की चीजें बहुत ही उचित दामों पर मिल जायेंगी। अपनी जयपुर यात्रा के अगले पड़ाव के इस ब्लॉग में आज हम आपको बताएंगे ऐसे ही एक बेहद खास बाजार के बारे में –
जयपुर शहर के केंद्र में, सांगानेर गेट और गुलाबी शहर के नए गेट के बीच, बापू बाजार जूते से लेकर हैंडीक्राफ्ट्स तक, आर्टिफीसियल जूलरी से लेकर पीतल के काम और कीमती पत्थरों तक की खरीदारी के लिए एक बेहतरीन डेस्टिनेशन है, जहां आपको अपनी मनपसंद का हर एक सामान आसानी से मिल जाएगा।
राजस्थान जिस चीज के लिए प्रसिद्ध है वह है इसकी जीवंतता और भव्यता। और अगर आप इसकी राजधानी जयपुर में घूमने के लिए आते हो तो आप बापू बाजार में शॉपिंग करके अपनी ट्रिप को यादगार बना सकते हो।
बापू बाजार यहां मिलने वाली फेमस राजस्थानी आइटम्स जैसे कलाकृतियों, हैंडीक्राफ्ट, परम्परागत कपड़े और आर्टिफिशियल जूलरी के लिए देश भर में प्रसिद्ध है।
बापू बाजार स्थानीय लोगों के साथ-साथ पर्यटकों के बीच भी अपने अट्रैक्शन के लिए खासी पहचान रखता है, जो इसे जयपुर सिटी के सबसे पसंदीदा मार्केट में से एक बनाता है।
बापू बाजार चाहे कोई मिडल क्लास हो या रिच क्लास, शॉपिंग के मामले में सबके लिए एकदम फिट बैठता है। कहा जाता है कि अगर आपको अच्छी तरह से बारगेनिंग करनी आती है तो आपको यहां हर चीज सही दामों में उपलब्ध हो जाएगी। यह पूरा बाजार भरा पड़ा है यहां मिलने वाले राजस्थान के कल्चरल आइटम से और यह उन लोगों के लिए एक परफेक्ट डेस्टिनेशन है जो कि पारंपरिक चीजें पहनना और रखना पसंद करते हैं।
इस बाजार में कुछ चीजें हैं जो इसे एक खास बाजार बनाती है –
मोजरी फुटवियर– पारंपरिक राजस्थानी फुटवियर को मोजरी कहा जाता है। मोजरी ज्यादातर चमड़े से बने होते हैं, फुटवियर को विभिन्न पैटर्न और जीवंत रंगों के साथ खूबसूरती से डिजाइन और कढ़ाई की जाती है। बापू बाजार में मोजरी के जूते प्रामाणिक होने के साथ-साथ सस्ते भी हैं।
आर्टफिशियल ज्यूलरी- बापू बाजार में आपको आर्टिफिशियल जूलरी की जबर्दस्त वैरायटी मिल जायेंगी जिसमें गले के हार, झुमके, पायल, लाख (लाख के बर्तन) से बनी चूड़ियाँ और साथ ही रंगीन रेशम के धागों से बनी चूड़ियाँ शामिल हैं। यहाँ आपको इन सभी में हज़ारों डिज़ाइन मिल जायेंगे।
राजस्थानी क्लोथ्स- अगर आपको राजस्थान में पारंपरिक बंधेज या टाई और डाई साड़ी या सूट खरीदना है तो आपको यहां पर लहरिया, सांगानेरी प्रिंट से लेकर बाटिक प्रिंट तक बंधेज के पैटर्न और अलग-अलग डिजाइंस मिल जाएंगे। यहां के दुपट्टों और साड़ियों पर जीवंत और जटिल कढ़ाई के अलावा, उन पर सुंदर दर्पण का काम और गोटा-पट्टी का काम भी किया जाता है।
जयपुरी रजाई– जयपुरी रजाई अपने सॉफ्टनेस के लिए जानी जाती है। एक विशेष प्रकार के महीन सूती कपड़े से बनी जयपुरी रज़ाई हल्की होने के साथ-साथ गर्म और टिकाऊ होती है। रजाई को हाथ से बुनने के सदियों पुराने शिल्प के बाद, रजाई के कवर पर डिजाइन ब्लॉक प्रिंट किये जाते हैं। वे अपनी गर्माहट के साथ-साथ कपास की कोमलता के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं।
हस्तशिल्प, शोपीस और सजावटी प्रोडक्ट्स – जयपुर के बापू बाजार में छोटी स्मारिका की दुकानों की कोई कमी नहीं है, यहाँ पर सड़क की दुकानें कलाकृतियों, पेन स्टैंड, कीचेन, मिरर वर्क वाली एक्सेसरीज से भरी पड़ी हैं।
कठपुतली- कठपुतली शो और राजस्थानी परंपरा साथ-साथ चलती है। आमतौर पर, कठपुतली जीवंत रंग की प्रतीक होती हैं। आपको बापू बाजार में हर तरह की कठपुतलियाँ देखने को मिल जाएँगी।
बापू बाजार में फ़ूड – जयपुर के बापू बाजार की गलियों से गुजरते समय दुकानों से आती हुई चाट की खुशबू से आप खुद को रोक नहीं पाएंगे। इसके अलावा फालूदा कुल्फी एक अन्य पसंदीदा स्थानीय व्यंजन है, जो दूध के साथ गुलाब की चाशनी के साथ मिलता है।
इसके अलावा सेंवई, मीठी तुलसी के बीजों का पारंपरिक मिश्रण भी यहां बेहद फेमस है। इसे अपनी पसंद की आइसक्रीम के स्कूप के साथ परोसा जाता है।
बाजार का समय –
बापू बाजार सप्ताह के सभी दिनों में सुबह 11 बजे से रात 10 बजे के बीच खुला रहता है।
कौन-सा मौसम यहाँ आने के लिए सबसे बेहतर
वैसे तो आप साल में किसी समय बापू बाजार आ सकते हैं, लेकिन नवंबर से मार्च के बीच सर्दियों के समय, दिन के ठंडे तापमान के कारण यहाँ शॉपिंग करना बेहतर माना जाता हैं। गर्मियां वास्तव में गर्म होती हैं और दिन में घूमना और खरीदारी करना मुश्किल हो जाता है। आप यहां सर्दियों में दिन में और गर्मियों के समय शाम में शॉपिंग कर सकते हैं।
कैसे जाएँ
बापू बाजार जयपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन से 4 किलोमीटर दूर है। आप कोई भी ऑटो रिक्शा किराए पर ले सकते है या कैब बुक करके भी यहां आसानी से पहुंच सकते हैं। इसके अलावा आप यहां पर किसी लोकल बस से भी आ सकते हैं।
दिल्ली से लगभग 232 किलो मीटर दूर आगरा शहर अपनी ऐतिहासिकता के कारण आज भी बेहद प्रासंगिक है। गंगा-जमुनी तहजीब की विरासत का यह शहर अपनी सांस्कृतिक विविधता के लिए दुनिया भर में जाना पहचाना जाता है। मंदिर की लुभावनी घंटियों और मस्जिदों की अजान से जैसे आगरा शहर हर रोज नींद से जागता हो। न केवल होली दिवाली बल्कि ईद और रमजान में भी यह शहर जश्न में डूब जाता है।
आगरा में दुनिया के सात आश्चर्यों में से एक ताजमहल के अलावा आगरा का किला भव्यता का एक दूसरा नमूना है। इस किले की अद्भुत बनावट को देखकर आप बड़े बड़े किलों को भूल जायेंगे। जब तक की मुगलों ने अपनी राजधानी आगरा से दिल्ली स्थानांतरित नही कर दी थी तब तक यानि के 1638 तक मुगल शासकों का मुख्य निवास यही किला था। इसे आगरा का लाल किला भी कहा जाता है क्योंकि यह दिल्ली के लाल किले की तरह ही लाल पत्थरों से बना है।
आगरा का किला यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है। यह वर्ल्ड फेमस ताजमहल से लगभग 2.5 किमी दूर उत्तर-पश्चिम में स्थित है। अपनी बड़ी-बड़ी शक्तिशाली दीवारों के कारण हमेशा सुरक्षित रहा यह किला अपने वैभव शाली इतिहास के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है।
जानिए आगरा के किले का इतिहास
अगर इतिहास की बात करें तो 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई के बाद, मुगल शासक बाबर इसी किले में, इब्राहिम लोदी के महल में रहा। उनके उत्तराधिकारी हुमायूँ को 1530 में इसी किले में ताज पहनाया गया था। लेकिन हुमायूं 1540 में बिलग्राम में शेर शाह सूरी से हार गया था। तब यह किला 1555 तक शेरशाह सूरी के पास उसके अधिकार में रहा, जब तक की हुमायूँ ने इस पर दोबारा अधिकार न कर लिया। बाद में इसकी केंद्रीय स्थिति के महत्व को समझते हुए, अकबर ने इसे अपनी राजधानी बनाया और 1558 में फतेहपुर सीकरी से आगरा पहुंचे। इतिहासकार अबुल फजल ने एक जगह दर्ज किया कि यह एक ईंट का किला था जिसे ‘बादलगढ़’ के नाम से जाना जाता था। तब यह बहुत ही खंडहर हालत में था।
अकबर ने राजस्थान के धौलपुर जिले के बरौली क्षेत्र से लाल बलुआ पत्थर मंगवा कर इसका दोबारा नए सिरे से निर्माण करवाया था। उस समय के बेहतरीन आर्किटेक्ट्स ने इस किले की नींव रखी और इसे बाहरी सतहों पर बलुआ पत्थर के साथ आंतरिक कोर में ईंटों के साथ बनाया गया था।
लगभग 4,000 कारीगरों ने आठ वर्षों तक प्रतिदिन इस पर काम किया, और इसे 1573 में पूरा किया।
शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में खूबसूरत ताजमहल बनवाया था। अपने दादा के विपरीत, शाहजहाँ का झुकाव सफेद संगमरमर से बनी इमारतों की तरफ अधिक था। इतिहास के अनुसार अपने जीवन के अंतिम वर्षों में, शाहजहाँ को उसके बेटे औरंगजेब ने किले में कैद कर दिया था।
18 वीं शताब्दी की शुरुआत में किले पर मराठा साम्राज्य द्वारा आक्रमण किया गया और कब्जा कर लिया गया। 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई में अब्दाली के द्वारा अपनी विनाशकारी हार के बाद, मराठा अगले दशक तक इस क्षेत्र से बाहर रहे। अंत में महादजी शिंदे ने 1785 में इस किले पर कब्जा कर लिया। इस तरह इस ऐतिहासिक किले पर शासकों की अदला-बदली चलती रही। यह किला 1857 के पहले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लड़ाई का प्रमुख स्थल रहा , जिसने बाद में भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का अंत किया।
क्या है इस किले में खास
जहांगीर महल: आगरा किले में जब आप अमर सिंह द्वार से प्रवेश करेंगे, तो जो भी आपको सबसे पहला महल नजर आएगा, वही जहांगीर महल है। यहीं से जहाँगीर का न्याय लोकप्रिय हुआ और उसने आम जन के लिए घण्टियों की श्रंखला बनाई, जिसे न्याय पाने वाला इसे बजा कर अपनी फरियाद कर सकता था।
जहांगीर महल के सामने ही आपको एक हौज़ दिखाई देगा। यह केवल एक ही पत्थर से बना टैंक है जो जहाँगीर ने बनवाया था और इसलिए इसे उन्हीं का नाम दिया गया है। यह टैंक मुख्य रूप से स्नान करने के लिए बनवाया गया था और यह लगभग 1.22 मीटर गहरा है।
दीवान ए आम और दीवान ए खास: दीवाने आम वह हॉल है जहाँ मुगल बादशाह आम जनता के साथ उनकी समस्याओं पर बात करते थे। और दीवाने खास वह हाल है जहां बादशाह अपने बेहद खास मंत्रियों के साथ विभिन्न मुद्दों पर सलाह मशविरा और बातचीत किया करते थे।
आरामगाह : आगरा किले की सबसे महत्वपूर्ण संरचना आरामगाह है। यह खास महल का निर्माण मुगल वंश के सम्राट के विश्राम कक्ष के रूप में किया गया था। इस महल की सबसे अनोखी विशेषता इसमें संगमरमर के पत्थरों पर खूबसूरत पेंटिंग्स और नक्काशी की गई हैऔर इन्ही पेंटिंग के कारण ही इस महल को खास महल कहा जाता है।
थोड़ा आगे बढ़ने पर, आप नगीना मस्जिद और मीना मस्जिद, शाहजहानी महल और जनाना मीना बाजार, शीश महल जैसी बेहतरीन इमारत देखेंगे। नगीना मस्जिद को शाहजहाँ ने एक ऐसे पवित्र स्थान के रूप में बनवाया था, जहाँ जाकर वह निजी रूप से पूजा-अर्चना कर सके।
आगरा के किले में आप जटिल नक्काशी और इसके निर्माण में उपयोग किए गए बेहद खास पत्थरों से अवश्य प्रभावित होंगे। इसके अलावा, मंडप की बालकनियों से यमुना नदी और ताजमहल के लुभावने दृश्य आपको बिल्कुल मंत्रमुग्ध कर देंगे।
कैसे पहुंचे आगरा
दिल्ली से आगरा की उड़ान एक घंटे से भी कम लंबी है। आगरा शहर से खेरिया हवाई अड्डा 13 किलो मीटर दूर है। यहां से आगरा सिटी जाने के लिए आप ऑटो या कैब बुक कर सकते हैं। आगरा दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-चेन्नई मार्ग पर स्थित है और पूरे भारत के अधिकांश शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। दिल्ली, जयपुर, ग्वालियर और झांसी जैसे शहरों से आगरा के लिए नियमित ट्रेनें हैं। आगरा देश के अन्य हिस्सों जैसे कोलकाता, मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों से भी अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आगरा में पांच रेलवे स्टेशन हैं – आगरा कैंट स्टेशन (मुख्य स्टेशन), आगरा किला रेलवे स्टेशन, राजा की मंडी, आगरा शहर और ईदगाह रेलवे स्टेशन। ताजमहल और आगरा का किला आगरा कैंट रेलवे स्टेशन से थोड़ी दूरी पर हैं और यहां तक जाने के लिए आप कोई टैक्सी, ऑटो रिक्शा भी किराए पर ले सकते हैं। सड़क मार्ग से आगरा NH2 और नए यमुना एक्सप्रेसवे द्वारा दिल्ली से सीधा जुड़ा हुआ है। इस एक्सप्रेस वे से आप आराम से लगभग तीन से चार घंटे में आगरा पहुंच सकते हैं। जयपुर NH11 भी आगरा से जुड़ा हुआ है और यह भी लगभग 4 घंटे की ड्राइव पर है।
आगरा का किला, जिसे “लाल-किला”, “फोर्ट रूज” या “किला-ए-अकबरी” के रूप में भी जाना जाता है, आगरा फोर्ट शहर के प्रमुख टूरिस्ट स्पॉट्स में से मुख्य आकर्षण है। शक्ति और सौहार्द का प्रतीक, यह किला आज भी पूरी शान और गौरव के साथ सीना तान के खड़ा है।
किले में एंट्री
अमर सिंह गेट से ही आगरा किले में प्रवेश की अनुमति है। इस किले के कुछ हिस्से का इस्तेमाल भारतीय सेना करती है। उस हिस्से में सार्वजनिक पहुंच प्रतिबंधित कर दी गई है। तो आप उस क्षेत्र को नहीं देख सकते हैं। हालाँकि, यह किला बहुत विस्तृत है और इसमें कई इमारतें हैं जो देखने लायक हैं इसलिए आप उन्हें बहुत अच्छी तरह से देख सकते हैं। आगरा का किला देखने पर आपको दीवान-ए-आम या हॉल ऑफ पब्लिक ऑडियंस मिल जाएगी। कई खंभों वाला यह हॉल 1628 में शाहजहाँ द्वारा बनवाया गया था।
थोड़ा आगे बढ़ने पर, आप नगीना मस्जिद और मीना मस्जिद, खास महल, शीश महल जैसे महलों सहित भव्य मस्जिदों में शाही मंडप देखेंगे। आगरा के किले में आप जटिल नक्काशी और इसके निर्माण में उपयोग किए गए बेहद खास पत्थरों से अवश्य प्रभावित होंगे। इसके अलावा, मंडप की बालकनियों से यमुना नदी और ताजमहल के लुभावने दृश्य आपको बिल्कुल मंत्रमुग्ध कर देंगे।
प्रवेश टिकट
आगरा के किले में प्रवेश के लिए सप्ताह के छह दिन विदेशी पर्यटकों से टिकट के 650/- लिए जाते हैं। वहीं भारतीय पर्यटक मात्र 50/- की राशि का टिकट लेकर किले में प्रवेश पा सकते हैं ।
आगरा जाने के लिए बेस्ट मौसम
वैसे तो यहां साल भर टूरिस्ट आते रहते हैं लेकिन फिर भी अक्टूबर से मार्च का महीना यहां आने के लिए सबसे बेहतरीन माना जाता है। सर्दियों के मौसम में खिली धूप में यहां घूमने का आनंद ही अलग होता है।
GLIMPSE OF AGRA FORT
by Pardeep Kumar
दिल्ली से लगभग 232 किलो मीटर दूर आगरा शहर अपनी ऐतिहासिकता के कारण आज भी बेहद प्रासंगिक है। गंगा-जमुनी तहजीब की विरासत का यह शहर अपनी सांस्कृतिक विविधता के लिए दुनिया भर में जाना पहचाना जाता है। मंदिर की लुभावनी घंटियों और मस्जिदों की अजान से जैसे आगरा शहर हर रोज नींद से जागता हो। न केवल होली दिवाली बल्कि ईद और रमजान में भी यह शहर जश्न में डूब जाता है। Agra fort
आगरा में दुनिया के सात आश्चर्यों में से एक ताजमहल के अलावा आगरा का किला भव्यता का एक दूसरा नमूना है। इस किले की अद्भुत बनावट को देखकर आप बड़े बड़े किलों को भूल जायेंगे। जब तक की मुगलों ने अपनी राजधानी आगरा से दिल्ली स्थानांतरित नही कर दी थी तब तक यानि के 1638 तक मुगल शासकों का मुख्य निवास यही किला था। इसे आगरा का लाल किला भी कहा जाता है क्योंकि यह दिल्ली के लाल किले की तरह ही लाल पत्थरों से बना है।
आगरा का किला यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है। यह वर्ल्ड फेमस ताजमहल से लगभग 2.5 किमी दूर उत्तर-पश्चिम में स्थित है। अपनी बड़ी-बड़ी शक्तिशाली दीवारों के कारण हमेशा सुरक्षित रहा यह किला अपने वैभव शाली इतिहास के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है।
जानिए आगरा के किले का इतिहास
अगर इतिहास की बात करें तो 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई के बाद, मुगल शासक बाबर इसी किले में, इब्राहिम लोदी के महल में रहा। उनके उत्तराधिकारी हुमायूँ को 1530 में इसी किले में ताज पहनाया गया था। लेकिन हुमायूं 1540 में बिलग्राम में शेर शाह सूरी से हार गया था। तब यह किला 1555 तक शेरशाह सूरी के पास उसके अधिकार में रहा, जब तक की हुमायूँ ने इस पर दोबारा अधिकार न कर लिया। बाद में इसकी केंद्रीय स्थिति के महत्व को समझते हुए, अकबर ने इसे अपनी राजधानी बनाया और 1558 में फतेहपुर सीकरी से आगरा पहुंचे। इतिहासकार अबुल फजल ने एक जगह दर्ज किया कि यह एक ईंट का किला था जिसे ‘बादलगढ़’ के नाम से जाना जाता था। तब यह बहुत ही खंडहर हालत में था।
अकबर ने राजस्थान के धौलपुर जिले के बरौली क्षेत्र से लाल बलुआ पत्थर मंगवा कर इसका दोबारा नए सिरे से निर्माण करवाया था। उस समय के बेहतरीन आर्किटेक्ट्स ने इस किले की नींव रखी और इसे बाहरी सतहों पर बलुआ पत्थर के साथ आंतरिक कोर में ईंटों के साथ बनाया गया था।
लगभग 4,000 कारीगरों ने आठ वर्षों तक प्रतिदिन इस पर काम किया, और इसे 1573 में पूरा किया।
शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में खूबसूरत ताजमहल बनवाया था। अपने दादा के विपरीत, शाहजहाँ का झुकाव सफेद संगमरमर से बनी इमारतों की तरफ अधिक था। इतिहास के अनुसार अपने जीवन के अंतिम वर्षों में, शाहजहाँ को उसके बेटे औरंगजेब ने किले में कैद कर दिया था।
18 वीं शताब्दी की शुरुआत में किले पर मराठा साम्राज्य द्वारा आक्रमण किया गया और कब्जा कर लिया गया। 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई में अब्दाली के द्वारा अपनी विनाशकारी हार के बाद, मराठा अगले दशक तक इस क्षेत्र से बाहर रहे। अंत में महादजी शिंदे ने 1785 में इस किले पर कब्जा कर लिया। इस तरह इस ऐतिहासिक किले पर शासकों की अदला-बदली चलती रही। यह किला 1857 के पहले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लड़ाई का प्रमुख स्थल रहा , जिसने बाद में भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का अंत किया।
क्या है इस किले में खास
जहांगीर महल: आगरा किले में जब आप अमर सिंह द्वार से प्रवेश करेंगे, तो जो भी आपको सबसे पहला महल नजर आएगा, वही जहांगीर महल है। यहीं से जहाँगीर का न्याय लोकप्रिय हुआ और उसने आम जन के लिए घण्टियों की श्रंखला बनाई, जिसे न्याय पाने वाला इसे बजा कर अपनी फरियाद कर सकता था।
जहांगीर महल के सामने ही आपको एक हौज़ दिखाई देगा। यह केवल एक ही पत्थर से बना टैंक है जो जहाँगीर ने बनवाया था और इसलिए इसे उन्हीं का नाम दिया गया है। यह टैंक मुख्य रूप से स्नान करने के लिए बनवाया गया था और यह लगभग 1.22 मीटर गहरा है।
दीवान ए आम और दीवान ए खास: दीवाने आम वह हॉल है जहाँ मुगल बादशाह आम जनता के साथ उनकी समस्याओं पर बात करते थे। और दीवाने खास वह हाल है जहां बादशाह अपने बेहद खास मंत्रियों के साथ विभिन्न मुद्दों पर सलाह मशविरा और बातचीत किया करते थे।
आरामगाह : आगरा किले की सबसे महत्वपूर्ण संरचना आरामगाह है। यह खास महल का निर्माण मुगल वंश के सम्राट के विश्राम कक्ष के रूप में किया गया था। इस महल की सबसे अनोखी विशेषता इसमें संगमरमर के पत्थरों पर खूबसूरत पेंटिंग्स और नक्काशी की गई हैऔर इन्ही पेंटिंग के कारण ही इस महल को खास महल कहा जाता है।
थोड़ा आगे बढ़ने पर, आप नगीना मस्जिद और मीना मस्जिद, शाहजहानी महल और जनाना मीना बाजार, शीश महल जैसी बेहतरीन इमारत देखेंगे। नगीना मस्जिद को शाहजहाँ ने एक ऐसे पवित्र स्थान के रूप में बनवाया था, जहाँ जाकर वह निजी रूप से पूजा-अर्चना कर सके।
आगरा के किले में आप जटिल नक्काशी और इसके निर्माण में उपयोग किए गए बेहद खास पत्थरों से अवश्य प्रभावित होंगे। इसके अलावा, मंडप की बालकनियों से यमुना नदी और ताजमहल के लुभावने दृश्य आपको बिल्कुल मंत्रमुग्ध कर देंगे।
कैसे पहुंचे आगरा
दिल्ली से आगरा की उड़ान एक घंटे से भी कम लंबी है। आगरा शहर से खेरिया हवाई अड्डा 13 किलो मीटर दूर है। यहां से आगरा सिटी जाने के लिए आप ऑटो या कैब बुक कर सकते हैं। आगरा दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-चेन्नई मार्ग पर स्थित है और पूरे भारत के अधिकांश शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। दिल्ली, जयपुर, ग्वालियर और झांसी जैसे शहरों से आगरा के लिए नियमित ट्रेनें हैं। आगरा देश के अन्य हिस्सों जैसे कोलकाता, मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों से भी अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आगरा में पांच रेलवे स्टेशन हैं – आगरा कैंट स्टेशन (मुख्य स्टेशन), आगरा किला रेलवे स्टेशन, राजा की मंडी, आगरा शहर और ईदगाह रेलवे स्टेशन। ताजमहल और आगरा का किला आगरा कैंट रेलवे स्टेशन से थोड़ी दूरी पर हैं और यहां तक जाने के लिए आप कोई टैक्सी, ऑटो रिक्शा भी किराए पर ले सकते हैं। सड़क मार्ग से आगरा NH2 और नए यमुना एक्सप्रेसवे द्वारा दिल्ली से सीधा जुड़ा हुआ है। इस एक्सप्रेस वे से आप आराम से लगभग तीन से चार घंटे में आगरा पहुंच सकते हैं। जयपुर NH11 भी आगरा से जुड़ा हुआ है और यह भी लगभग 4 घंटे की ड्राइव पर है।
आगरा का किला, जिसे “लाल-किला”, “फोर्ट रूज” या “किला-ए-अकबरी” के रूप में भी जाना जाता है, आगरा फोर्ट शहर के प्रमुख टूरिस्ट स्पॉट्स में से मुख्य आकर्षण है। शक्ति और सौहार्द का प्रतीक, यह किला आज भी पूरी शान और गौरव के साथ सीना तान के खड़ा है।
किले में एंट्री
अमर सिंह गेट से ही आगरा किले में प्रवेश की अनुमति है। इस किले के कुछ हिस्से का इस्तेमाल भारतीय सेना करती है। उस हिस्से में सार्वजनिक पहुंच प्रतिबंधित कर दी गई है। तो आप उस क्षेत्र को नहीं देख सकते हैं। हालाँकि, यह किला बहुत विस्तृत है और इसमें कई इमारतें हैं जो देखने लायक हैं इसलिए आप उन्हें बहुत अच्छी तरह से देख सकते हैं। आगरा का किला देखने पर आपको दीवान-ए-आम या हॉल ऑफ पब्लिक ऑडियंस मिल जाएगी। कई खंभों वाला यह हॉल 1628 में शाहजहाँ द्वारा बनवाया गया था।
थोड़ा आगे बढ़ने पर, आप नगीना मस्जिद और मीना मस्जिद, खास महल, शीश महल जैसे महलों सहित भव्य मस्जिदों में शाही मंडप देखेंगे। आगरा के किले में आप जटिल नक्काशी और इसके निर्माण में उपयोग किए गए बेहद खास पत्थरों से अवश्य प्रभावित होंगे। इसके अलावा, मंडप की बालकनियों से यमुना नदी और ताजमहल के लुभावने दृश्य आपको बिल्कुल मंत्रमुग्ध कर देंगे।
प्रवेश टिकट
आगरा के किले में प्रवेश के लिए सप्ताह के छह दिन विदेशी पर्यटकों से टिकट के 650/- लिए जाते हैं। वहीं भारतीय पर्यटक मात्र 50/- की राशि का टिकट लेकर किले में प्रवेश पा सकते हैं ।
आगरा जाने के लिए बेस्ट मौसम
वैसे तो यहां साल भर टूरिस्ट आते रहते हैं लेकिन फिर भी अक्टूबर से मार्च का महीना यहां आने के लिए सबसे बेहतरीन माना जाता है। सर्दियों के मौसम में खिली धूप में यहां घूमने का आनंद ही अलग होता है।
गोरखपुर के रामगढ़ ताल की विशालता किसी समुद्र के किनारे से कम नहीं
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में स्थित गोरखपुर, बाबा गोरखनाथ के नाम से देश भर में जाना-पहचाना जाता है। अगर गोरखपुर की बात की जाये तो यह जगह अनेक अध्यात्मिक, पुरातात्विक और प्राकृतिक धरोहरों को अपने में समेटे हुए है। प्रेमचन्द की कर्मभूमि, फिराक गोरखपुरी की जन्मभूमि, शहीद राम प्रसाद बिस्मिल व चौरीचौरा आन्दोलन के शहीदों की शहादत स्थली के रुप मे गोरखपुर को पूर्वांचल के गौरव का प्रतीक माना जाता है।
यात्राओं के अपने अद्भुत और खास सफर में फाइव कलर आफ ट्रेवल की टीम आज पहुंच चुकी है यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर में।
आज अपने इस ब्लॉग में हम आपको बताएंगे गोरखपुर के बेहद खूबसूरत रामगढ़ ताल के बारे में। एक समय था जब रामगढ़ ताल को कोई पूछता नहीं था, क्योंकि वहां पर ऐसी कोई भी व्यवस्था नहीं थी जिससे पर्यटन को बढ़ावा मिल सके। मगर पिछले कुछ सालों में रामगढ़ ताल को पर्यटन की दृष्टि से डेवलप किया गया है, इस तरह संवारा गया है कि आज वह घूमने फिरने के लिए प्रसिद्ध जगह बन चुका है। पहले तो यहां पर केवल गोरखपुर के लोग ही जाया करते थे, मगर आज इसके सौंदर्यीकरण किये के बाद यहां दूर-दूर से लोग घूमने के लिए आते हैं।
रामगढ़ ताल का इतिहास
इतिहासकार डॉ. राजबली पांडे के मुताबिक ईसा पूर्व छठी शताब्दी में गोरखपुर का नाम पहले कभी रामग्राम था। यहां पर कोलिय गणराज्य स्थापित हुआ करता था। कोलिया गणराज्य वही गणराज्य है जो हमें गौतम बुध के समय में देखने को मिलता है उस समय की राप्ती नदी आज के रामगढ़ ताल से होकर गुजरती थी। कुछ समय पश्चात राप्ती नदी की दिशा बदलने की वजह से उसके कुछ अवशेष बच गए, जिससे रामगढ़ ताल अस्तित्व में आया। रामग्राम से ही इसका नाम रामगढ़ ताल पड़ा। दूसरी जनश्रुति यह भी है कि प्राचीन समय में इस ताल के स्थान पर एक बहुत बड़ा नगर हुआ करता था। एक राजा का अहंकार ले डूबा। यह नगर एक ऋषि के श्राप की वजह से जमीन में समा गया। जिस वजह से यह पूरा नगर ताल में तबदील हो गया, जिसे आज हम रामगढ़ ताल कहते हैं। यह जनश्रुति गोरखपुरियों से सुनने को बखुबी मिलती है।
रामगढ़ ताल राप्ती नदी से महज कुछ मिनटों की दूरी पर स्थित है। जब आप ताल की विशालता देखोगे तो आपको यह नजारा किसी समुद्र के किनारे से कम नहीं लगेगा। रामगढ़ ताल के किनारे की सड़कें बिल्कुल साफ-सुथरी और ताल का किनारा देखने योग्य है। कहा जाता है कि आज तक ताल की गहराई को नापा नहीं जा सका है। शायद यही कारण होगा कि किसी को भी ताल के किनारे नहाते हुए नहीं देखा गया। यह ताल लगभग 18 किलोमीटर तक फैला हुआ है। ताल का किनारा तो बहुत पहले ही आरंभ हो जाता है। मगर ताल के किनारे बने पार्कनुमा जगह जिसे नौका विहार कहते हैं वहां पर जाने के लिए महज 500 मीटर का सफर तय करना होता है।
पार्किंग की व्यवस्था
अगर आप बाइक से जा रहे हैं तो आपको स्टैंड पर गाड़ी खड़ी करने के लिए 10 रूपये देने होते हैं। अगर चार पहिया है तो उसके 20 रू लिए जाते हैं। स्टैंड पर गाड़ी खड़ी करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि गाड़ी चोरी होने का रिस्क नहीं रहता है जिस से बेफिक्र होकर हम सफर का आनंद ले सकते हैं।
नौका विहार
गाड़ी खड़ी करने के बाद जैसे ही नौका विहार की और प्रवेश करते हैं तो बड़ा सा बुध द्वार देखने को मिलता है।
पार्कनुमा नौका विहार के अंदर चहल-पहल इस तरह की थी मानो यहां पर कोई मेला लगा हुआ है। मगर ऐसा कोई भी मेला वहां पर नहीं लगा हुआ था, फिर भी वहां घूमने वालों की संख्या कम नहीं थी। इससे इस बात का अंदाजा भी लगाया जा सकता है कि ताल की प्रसिद्धि और वहां की व्यवस्था लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
फेमिली और कपल्स के लिए सबसे बेस्ट जगह
आसपास लगे बाजार को देखकर ऐसा लग रहा था मानो ताल नहीं बाजार में घूमने आये हो। वहां पर बैठने की व्यवस्था किसी पार्क से कम नहीं थी। कपल्स भी यहां पर घूमने के लिए आते हैं और कपल्स के लिए यह सबसे बेस्ट जगह भी है। कपल्स के लिए किसी भी तरह की रोक टोक नहीं है।
स्पेशली यहां पर अधिकतर लोग फोटोशूट के लिए भी आते हैं। सेल्फी लेने वालों की संख्या कि कोई गिनती नहीं थी। बाजारों में मिल रहा समान बहुत ज्यादा महंगा नहीं है। आप 20 से 100 रूपये तक बहुत अच्छा समान खरीद सकते हैं।
अगर किश्ती में घूमने का आनंद लेना चाहते हैं तो उसका भी मूल्य बहुत ज्यादा नहीं है, आप महज 60 से 100 रू के बीच में 15 या 20 मिनट तक बोटिंग का आनंद ले सकते हैं।
ठिठुरन पैदा करने वाली ठंड और खिलखिलाती धूप दोनों के मेलजोल ने शरीर में एनर्जी का लेवल इस कदर बढ़ाया हुआ था कि लोग वहां पर कई घंटों तक समय बिता रहे थे। घर से सुबह के निकले लोग शाम में वापसी कर रहे थे। लोग ठंड में धूप सेकने का आनंद भी ले रहे थे।
जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था वैसे-वैसे भीड़ लगातार बढ़ती जा रही थी और भीड़ कम होने का नाम नहीं ले रही थी। हालांकि ताल के किनारे किसी भी तरह की कोरोना गाइडलाइन को फॉलो नहीं किया जा रहा था, ना ही अधिकतर लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे थे। बस वहां पर इक्का-दुक्का लोग ही मास्क पहने हुए दिख रहे थे।
अभी ताल पर सौन्दर्यकरण का काम चल रहा है। जिससे उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले समय में इसकी सुंदरता में और भी इजाफा होगा। यहाँ आने वाले पर्यटक इस ताल की खूबसूरती की तुलना मुंबई के मरीन ड्राइव और जुहू चौपाटी से करते हैं।
यहां से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर आपको सबसे पहले बौद्ध संग्रहालय और चिड़ियाघर देखने को मिल जाएगा। अगर आप गोरखपुर घूमने का प्लान बना रहे हैं या गोरखपुर के पास से गुजर रहे हैं या गोरखपुर के आस-पास रहते हैं तो एक बार जरूर रामगढ़ ताल और उसके पास बने पार्कनुमा नौका विहार का आनंद जरूर उठाएं।
कैसे पहुंचे रामगढ़ ताल
अगर आप ट्रेन से आ रहे हैं तो गोरखपुर रेलवे स्टेशन से आपको आसानी से कैब या ऑटो रिक्शा मिल सकता है। गोरखपुर स्टेशन से रामगढ़ ताल की दूरी महज 6 किलोमीटर की है।
अगर आप सड़क मार्ग से आ रहे हैं तो गोरखपुर बस अड्डा से रामगढ़ ताल की दूरी भी महज 6 किलोमीटर के आसपास ही है।
हवाई अड्डे की बात करें तो गोरखपुर एयरपोर्ट से रामगढ़ ताल लगभग छह किलोमीटर की दूरी पर है यहां से भी आप टैक्सी से आसानी से रामगढ़ ताल पहुँच सकते हैं।
Written and Research by Pravesh Chauhan Edited & compiled by Pardeep Kumar
Fatehpur Sikri – ऐतिहासिक शहर फतेहपुर सीकरी में देखने के लिए बहुत कुछ है खास
by Pardeep Kumar
भारतीय सभ्यता दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है। राजा, नवाबों और यहां के दूसरे शासकों ने यहां एक से एक बेहतरीन महल बनवाए, इमारतें बनवाई और आलीशान किले बनवाए और कुछ राजा ऐसे भी हुए जिन्होंने पूरे शहर बसाये। ये शहर और उनमें स्थित ऐतिहासिक इमारतें कई राजवंशों के उत्थान और पतन के जीते-जागते उदाहरण हैं। और उन्हीं उदाहरणों में से एक है फतेहपुर सीकरी। आज के इस ब्लॉग में हम आपको बता रहें हैं फतेहपुर सीकरी शहर के बारे में।
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यह शहर आगरा से लगभग 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आगरा तक आप अपने बजट के अनुसार किसी भी मार्ग का चुनाव कर सकते हैं। आगरा शहर बड़े-बड़े शहरों से हवाई मार्ग, रेलवे लाइंस और नेशनल हाईवे से जुड़ा हुआ है। आगरा से फतेहपुर सीकरी का सफर आप किसी स्थानीय बस, टैक्सी या कैब से भी कर सकते हैं।
जानिए फतेहपुर सीकरी का इतिहास
मुगल सम्राट अकबर ने 1569 में शहर की स्थापना की और 1571 से 1585 तक इसे अपनी राजधानी बनाया। शहर के निर्माण में लगभग 15 साल लगे जहां अदालतों, महलों, मस्जिदों और अन्य संरचनाओं का निर्माण किया गया। पहले इसका नाम फतेहाबाद था जहां फतेह का मतलब जीत होता है। बाद में इसका नाम बदलकर फतेहपुर सीकरी कर दिया गया। यहां उनके दरबारियों से नौ रत्नों का चयन किया गया था। आपकी जानकारी के लिए बता दें फतेहपुर और सीकरी दो अलग-अलग जगह हैं।
फतेहपुर में आपको बुलंद दरवाज़ा, शैख़ सलीम चिश्ती की दरगाह और जामा मस्जिद जैसी खूबसूरत जगह देखने को मिलेंगी।
वहीं सीकरी अकबर का किला था जिसमें अकबर लगभग पंद्रह वर्षों तक रहा। यही वह जगह है जहाँ अकबर ने दीन-ए-इलाही धर्म की बुनियाद रखी। लेकिन पानी की भारी किल्लत के कारण अकबर ने फतेहपुर सीकरी को छोड़कर आगरा को अपनी राजधानी बनाया। अकबर ने चित्तौड़ और रणथंभौर को जीतकर 1569 में शहर की स्थापना की थी। शहर का निर्माण लगभग 15 वर्षों में पूरा हुआ और इसमें महल, हरम, कोर्ट और अन्य संरचनाएं शामिल थीं। आप देखेंगे कि शहर में इमारतों का निर्माण लाल बलुआ पत्थर से किया गया था। शाही महल के मंडप ज्यामितीय रूप से अरब वास्तुकला से बनाये गए हैं।
पानी की कमी और मुगलों और राजपूतों के बीच लगातार युद्धों के कारण अकबर ने यह शहर छोड़ दिया। फतेहपुर सीकरी तीन तरफ से दीवार और चौथी तरफ से एक झील से घिरा हुआ है। इमारतों की वास्तुकला मुगल और भारतीय खासकर हिंदू और जैन वास्तुकला पर आधारित थी। यहां कई उम्दा और खूबसूरत संरचनाएं जैसे मस्जिद, महल, मकबरे आदि हैं, जिन्हें टूरिस्ट देख सकते हैं। उनमें से कुछ के नाम हैं – बुलंद दरवाजा, जामा मस्जिद, इबादत खाना, जमात खाना, सलीम चिश्ती का मकबरा, दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, जोधा बाई पैलेस, पंच महल, बीरबल का घर, अनूप तलाओ, हुजरा-ए-अनूप तलाओ, नौबत खाना, पचीसी कोर्ट।
जब भी आप यहाँ घूमने आएं, अगर आप कपल्स हैं तब एक बात का अवश्य ख्याल रखिये शहर में एंट्री करते ही यहाँ के कुछ लोग आपको गाइड के रूप में बार्गेनिंग करते मिल जायेंगे, जो आपको अलग-अलग तरीके से चादर या कुछ अन्य चीजें खरीदने के लिए ठगने का प्रयास करेंगे। इन सबसे बचने के एक ही तरीका है आप सिर्फ ऑथोराइजड गाइड से बात करें।
जोधा बाई पैलेस
आप जैसे ही किले में एंट्री करेंगे बाईं तरफ आपको सबसे पहले जोधा बाई का महल दिखाई देगा। जोधा बाई का यह महल रानीवास और जेनानी द्योढ़ी के नाम से भी जाना जाता है। महल विशाल है और दो मंजिला है। महल का प्रवेश द्वार पूर्व दिशा में स्थित है और बहुत ही शानदार है।
वैसे तो यह महल अकबर का हरम था जिसमें अकबर अपनी शाही बेगमों के साथ रहता था लेकिन महल के निर्माण में प्रयुक्त हिंदू रूपांकनों से पता चलता है कि महल एक हिंदू महिला के लिए बनाया गया था। इसलिए शायद इसे जोधा बाई का महल समझा गया।
इस शानदार इमारत निर्माण में नीले रंग के टाइलों का प्रयोग किया गया था, जो कि मुल्तान से लाये गये थे। फ़तेहपुर सीकरी में जितने भी भवन थे उन भवनों के आकार में यह महल सबसे बड़ा है। अकबर ने जोधाबाई को ही मरियम-उज्जमानी का नाम दिया था। जहांगीर जोधा बाई के बेटा था। जोधा बाई का यह महल गर्मी और सर्दी दोनों मौसमों के अनुकूल बनाया गया था।
पंच महल
पंच महल का निर्माण अकबर ने करवाया था। महल महिलाओं के हरम के पास था और इसे इस तरह से बनाया गया है कि यह गर्मियों के दौरान आराम प्रदान करता है। पंच महल एक पांच मंजिला महलनुमा संरचना है जिसमें हर मंजिल धीरे-धीरे आकार में घटती जाती है।
नीचे से ऊपर की ओर जाने पर प्रत्येक मंजिल दूसरी से छोटी होती है। प्रत्येक स्तंभ में एक जाली थी जहां से महिलाएं शहर में होने वाली घटनाओं को आसानी से देख सकती थी। इसमें कुल 176 स्तंभ हैं।
बीरबल का महल
बीरबल न केवल अकबर के नौ रत्नों में से एक था और बल्कि उसके सब मंत्रियों में सबसे खास भी था।
इसलिए बादशाह अकबर ने बीरबल के लिए महल बनवाया। यह महल अकबर की बड़ी रानियों- रुकैया बेगम तथा सलमा बेगम का निवास स्थान के रूप में भी इस्तेमाल किया गया था। यह दो मंजिला महल मुगल और फारसी वास्तुकला के आधार पर बनाया गया था।
खास महल
देखने में बेहद सुन्दर यह खास महल मुगल बादशाह अकबर का महल था। भूतल में दो कमरे हैं और पहली मंजिल में ख्वाबगाह है। भूतल के एक कमरे का उपयोग भोजन कक्ष के रूप में और दूसरे का उपयोग पुस्तकालय के रूप में किया जाता था।
एक झरोखा है जहां से अकबर आम जनता से संपर्क करता था। ख्वाबगाह महिलाओं के हरम से जुड़ा था और जाली से ढका हुआ था। इसी ख्वाबगाह के सामने अनूप तालाब भी बना है। यहाँ की छते अन्य महलों के अपेक्षाकृत नीची हैं।
अनूप तलाब
अनूप तलाव ख्वाबगाह के सामने बना एक तालाब है। टैंक लाल बलुआ पत्थर से बना है। उभरी हुई सीट के साथ बीच में जालीदार कटघरा है। एक जल कार्य प्रणाली थी जिससे टैंक को ताजे पानी से भरने के लिए जोड़ा गया था। पानी के अतिप्रवाह को रोकने के लिए टैंक को सुख ताल से भी जोड़ा गया था। टैंक के पैनल में जंगलों और बगीचों के दृश्य हैं।
यह तालाब बेहद खूबसूरत है और इसके बीचों बीच एक प्लेटफॉर्म बना हुआ है। कहा जाता है की इस प्लेटफार्म का प्रयोग संगीत सम्राट तानसेन के गायन के लिए किया जाता था। अनूप तलाव के आस पास ही मुग़ल बेगमों के खूबसूरत महल भी दिखाई देते हैं जिनकी दीवारों और छतों पर संगमरमर, लाल बलुआ पत्थर और कांच की बारीक़ कारीगरी और अदभुत वास्तुकला देखने को मिल जाएगी। कहते हैं इन छोटे महलों से ही वो खास बेगम तानसेन के संगीत और अन्य शाही क्रियाकलापों का आनंद लेती थी।
दीवान-ए-आम औरदीवान-ए-खास
दीवान-ए-आम और दीवान-ए-खास परिसर के दो खास हॉल हैं। दीवान-ए-आम का इस्तेमाल स्थानीय जनता को संबोधित करने, उनकी शिकायतों को सुनने और निर्णय लेने के लिए किया जाता था, जबकि दीवान-ए-खास को शाही लोगों, दरबारियों और मेहमानों के साथ बैठकें करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
दीवान-ए-खास किले की वह इमारत है जिसका इस्तेमाल बादशाह शाही मेहमानों के स्वागत और शाही सभाओं के लिए करते थे। यह वह स्थान है जहाँ अकबर विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधियों से उनके विश्वासों और धर्मों पर चर्चा करता था। दीवाने खास में एक स्तम्भ पर विभिन्न धर्मों के प्रतीक बेहद सुन्दर ढंग से उकेरे गए हैं जो अकबर की उदार नीति का परिचय देते हैं।
इसी इमारत के सामने बिलकुल पास सोने और चांदी का खज़ाना कक्ष भी था जिसे आंख मिचौली के नाम से जाना जाता था। इमारत चौकोर आकार में है और लाल बलुआ पत्थर से बनी है। दीवान-ए-खास के चार मुख हैं और ये सभी दो मंजिला हैं।
इमारत के प्रत्येक कोने में चार अष्टकोणीय खोखे हैं। प्रत्येक कियोस्क में एक गुंबद होता है जो एक उल्टे कमल के साथ सबसे ऊपर होता है।
पचीसी कोर्ट
पचीसी शतरंज की तरह ही एक शाही खेल था जिसे मुग़ल शाषकों द्वारा खेला जाता था। बताते हैं इस खेल को खेलने के लिए अकबर ने एक पचीसी दरबार बनवाया था। काले और सफेद चेक के साथ एक मैदान बनाया गया था और खेल खेलने के लिए मोहरों के बजाय इंसानों का इस्तेमाल किया जाता था।
फतेहपुर सीकरी घूमने की टाइमिंग
फतेहपुर सीकरी लोगों के लिए सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे तक खुला रहता है और शहर को घूमने में लगभग एक घंटे का समय लगता है। यह सार्वजनिक छुट्टियों पर भी सभी दिनों में खुला रहता है। आप दीवान-ए-आम बुकिंग काउंटर के पास एक संग्रहालय भी देख सकते हैं। संग्रहालय सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है।
टिकट
जैसे ही आप फतेहपुर सीकरी पहुंचेंगे, आपको दो जगह दिखाई देंगी एक फतेहपुर जिसमें आपको बुलंद दरवाज़ा, शैख़ सलीम चिश्ती की दरगाह और जामा मस्जिद जैसी खूबसूरत जगह देखने को मिलेंगी। इन जगहों के लिए प्रवेश बिल्कुल निःशुल्क है वहीं फतेहपुर से लगभग पांच सौ मीटर दूर सीकरी है जो अकबर का किला था जिसमें दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, जोधा बाई पैलेस, पंच महल, बीरबल का घर, अनूप तलाओ, नौबत खाना, पचीसी कोर्ट, ख्वाबगाह और अन्य महल मौजूद हैं। यहाँ किले के प्रवेश द्वार पर टिकट काउंटर है जहाँ से भारतीय पर्यटकों के लिए 35 रुपए और विदेशी पर्यटकों के लिए 550 का टिकट है।
घूमने का सबसे अच्छा समय
फतेहपुर सीकरी में फरवरी से अप्रैल के बीच और जुलाई से नवंबर के बीच जाया जा सकता है क्योंकि यहां का मौसम बहुत ही सुहावना होता है। बाकी के महीनों में, मौसम या तो बहुत गर्म या बहुत ठंडा होता है जो कि परेशानी का कारण बन सकता है।
फतेहपुर सीकरी किले तक कैसे पहुंचे?
फतेहपुर सीकरी में हवाई अड्डा नहीं है। रेलवे स्टेशन है लेकिन यह भी देश के बड़े शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ नहीं है क्योंकि यहां बहुत कम ट्रेनों का ठहराव है।लेकिन फतेहपुर सीकरी सड़क मार्ग से आसपास के शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। फतेहपुर सीकरी से आगरा मात्र 36 किमी और दिल्ली लगभग 243 किलोमीटर की दूरी पर है।
फतेहपुर सीकरी की सड़कों का रखरखाव अच्छी तरह से किया जाता है। यह शहर आगरा, दिल्ली, नोएडा, भरतपुर से जुड़ा हुआ है और टूरिस्ट वोल्वो, डीलक्स और नियमित उत्तर प्रदेश रोडवेज की बसें पकड़ सकते हैं।
Pinjore Garden – पिंजौर गार्डन- राजस्थानी और मुगल शैली का एक बेहतरीन उदाहरण
by Pardeep Kumar
भारत के हरियाणा राज्य में पंचकूला जिले में पिंजौर स्थित है और यहीं पर है राजस्थानी और मुगल शैली का एक बेहतरीन उदाहरण पिंजौर गार्डन। उत्तर भारत के सबसे प्राचीन और सबसे आकर्षक बागों में शामिल यह पिंजौर गार्डन 17वीं शताब्दी में मुग़ल शहंशाह औरंगजेब के शासन काल में वास्तुकार नवाब फिदाई खान द्वारा बनाया गया था।
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नवाब फ़िदई ख़ान उस दौरान मुग़ल सल्तनत में राज्यपाल के रूप में भी काम कर रहे थे। इतिहास में उल्लेख मिलता है कि एक बार जब वह पिंजौर घाटी का दौरा कर रहे थे, तो वह इस घाटी की सुंदरता से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने यहीं इसी स्थान पर सुन्दर से बगीचे के डिजाइन को लागू करने का फैसला कर लिया। (Pinjore Garden)
बताते हैं फिदाई खान इस बाग़ का सुख ज्यादा नहीं भोग सका। और कुछ ही सालों में वापस लौटना पड़ा। तब पिंजौर के बागानों और आसपास की जमीनों को भुगतान के रूप में पटियाला राज्य को दे दिया गया। तब उस समय पटियाला के राजा अमर सिंह शासन कर रहे थे। पिंजौर के अधिग्रहण करने के उपरान्त उन्होंने इस बगीचे पर काम फिर से शुरू कर दिया। बाद में देश आज़ाद होने के उपरांत और हरियाणा राज्य बनने के बाद उनके बेटे, महाराजा यादवेंद्र सिंह ने पिंजौर गार्डन राष्ट्र को दान कर दिया और तभी से पिंजौर गार्डन को आम जनता के लिए खोल दिया गया।
पिंजौर गार्डन कैसे पहुंचे
पिंजौर गार्डन देश के सबसे खूबसूरत शहरों में से एक चंडीगढ़ से तकरीबन 22 किलोमीटर दूर चंडीगढ़-शिमला नेशनल हाईवे पर पिंजोर कस्बें में स्थित है। चंडीगढ़ से आप बहुत ही आसानी से टैक्सी या कैब करके पिंजौर जा सकते हैं।
अगर आप रेलवे मार्ग से यहाँ आना चाहें तो कालका रेलवे स्टेशन से यह गार्डन लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
पिंजौर गार्डन को किसी समय मुगल गार्डन भी कहा जाता था। वास्तव में यह गार्डन मुगल वास्तुशिल्प कला का अद्भुत नमूना है। मुगल शैली से निर्मित इस गार्डन में हरी मखमली घास और रंग बिरंगे फूल पर्यटको को बरबस ही अपनी और आकर्षित करते हैं। पिंजौर गार्डन भारत में टैरेस गार्डन का एक अनोखा और अद्भुत उदाहरण है। बताते हैं कि पांडवों ने अपने निर्वासन के दौरान कुछ समय के लिए इस जगह आराम किया था।
पिंजौर गार्डन में चारबाग पैटर्न है और यह पारंपरिक मुगल शैली में बनाया गया है। आप अगर घूमने के शौक़ीन हैं या इतिहास के जानकार हैं तो जानते ही होंगे की मुगलों की बनाई अधिकतर इमारतें या स्मारक चार बाग़ पैटर्न पर आधारित हैं।
आपको बता दें यह गार्डन देश भर में टैरेस गार्डन के रूप में एक बेहतरीन मुकाम क्यों रखता है।
इस बगीचे में कुल सात छते हैं जो कुछ दूरी पर नीचे उतरते हुए एक के बाद एक बनी हुई हैं। लगभग 100 एकड़ में फैले इस बगीचे को बेहद खूबसूरती से सात छतों पर बनाया गया है। जैसे ही आप इस गार्डन में एंट्री करते हैं सबसे पहले आपको दिखाई देगी यहाँ की पहली छत। बगीचे का मुख्य द्वार इसी पहली छत पर खुलता है जहाँ से आप बगीचे में कल-कल करते पानी के झरने देख सकते हैं। इस छत को राजस्थानी-मुगल शैली में डिजाइन किया गया है। एंट्री करते ही मुख्य द्वार के ऊपरी हिस्से पर आपको राजस्थानी शैली की सुन्दर और बारीक़ नक्काशी दिखाई देगी। जो यहाँ आने वाले किसी भी टूरिस्ट का मन मोह लेती है।
जैसे ही आप कुछ कदम आगे चलेंगे आपको मुगल-राजस्थान शैली की वास्तुकला में निर्मित शीश महल दिखाई देगा। इस महल को इसके वास्तुकार फिदाई खान का दरबार कहा जाता है। इसी छत पर आपको पंक्तिबद्ध ऊँचे-ऊँचे पेड़ दिखाई देते हैं जो यहाँ आने वाले टूरिस्ट्स को गर्मियों में ठंडी छाया प्रदान करते हैं।
इसी शीशमहल के सामने दूसरी छत पर रोमांटिक रंग महल हैं जहाँ से आप इस बगीचे की सुंदरता का जी भर के आनंद ले सकते हैं। रंग महल फिदाई खान की बेगमो के मनोरंजन स्थल के रूप में बनाया गया था। यहाँ से आप दूर दूर तक फैली खूबसूरत वादियां और प्रकृति के खुशनुमा नज़ारों का आनंद ले सकते हैं।
अगले टैरेस पर सुन्दर जल महल है, जिसमें एक वर्गाकार फव्वारा है। जल महल फिदाई खान की बेगमो के स्नानगार के रूप में जाना जाता है। यहा आने वाले देशी विदेशी पर्यटक इस खुबसूरत महल की सुदंरता को निहारते रह जाते है।
जैसे-जैसे आप इस बगीचे में आगे बढ़ेंगे एक से बढ़कर एक मन मोहते फव्वारे और दुर्लभ किस्म के पेड़ पौधे बाहें फैलाएं आपका सहर्ष स्वागत करते दिखाई देंगे, बाग़ के सबसे निचले हिस्से में या यूँ कह लीजिये की सबसे निचली छत पर एक ओपन-एयर थिएटर है।
जहां संभवतः प्राचीन काल में कलाकार अपनी प्रस्तुतियां दिया करते थे। यहाँ पर आपको बहुत सी फैमिलीज़ और कपल्स क्वालिटी टाइम एन्जॉय करते हुए मिल जायेंगे। वनस्पतियों में विभिन्न प्रकार के सुगंधित फूलों के पौधे, आम के बाग, झाड़ियाँ और अन्य पेड़ हैं। रास्ते में चलने वाले पर्यटकों के लिए के लिए लम्बे वृक्ष छाया प्रदान करते हैं। यह गार्डन इतने नायब ढंग से बनाया गया है कि आप एक बार यहाँ आएंगे तो बस यहीं के होकर रह जायेंगे।
शिमला और कसौली जाने वाले सैलानी अक्सर कालका से पहले यहां की हरियाली देखकर ठहर जाते हैं। आमों की खुशबू को समेटे वास्तुशिल्प का यह अनूठा उदाहरण वास्तव में अभी भी मुगलकालीन इतिहास को संजोये हुए है।
पिंजौर गार्डन जाने का सबसे अच्छा समय
वैसे पिंजौर गार्डन की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय फरवरी से अप्रैल और अक्टूबर से दिसंबर तक है क्योंकि इस दौरान मौसम सुखद रहता है। लेकिन आप हर साल जुलाई महीने में आयोजित होने वाले मैंगो फेस्टिवल को भूलकर भी मिस नहीं करना चाहेंगे। इस त्यौहार का सबसे महत्वपूर्ण पहलू मैंगो प्रदर्शनी है जहाँ पूरे भारत में उगाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के आम मिलते हैं। इस फेस्टिवल के दौरान देश भर से पर्यटक आमों की अलग अलग वैराइटी देखने उमड़ पड़ते हैं।
प्रवेश शुल्क
पिंजौर गार्डन की प्रवेश फीस एडल्ट्स के लिए 25 रु प्रति व्यक्ति है और 3 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए प्रवेश नि:शुल्क है। यहाँ जाने से पहले एक बात अवश्य ध्यान रखिये यहाँ पर डीएसएलआर कैमरा ले जाना मना है अगर आप कैमरा ले जाना चाहते हैं तो उसके लिए आपको तक़रीबन 11 हज़ार रुपए पे करना पड़ेगा। आप अपना मोबाइल फोन अंदर ले जा सकते हैं।
Rajaji National Park, Rishikesh- नेचर लवर्स का बेस्ट डेस्टिनेशन
By Pardeep Kumar
राजाजी नेशनल पार्क उत्तराखंड के देहरादून में ऋषिकेश से 6 किमी की दूरी पर स्थित है और यह नेशनल पार्क लगभग 830 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसकी स्थापना 1983 में मोतीचूर सैंक्चुअरी, चिल्ला सैंक्चुअरी और राजाजी सैंक्चुअरी मिलाकर की गई है। यह नेशनल पार्क चारों और से पहाड़ों, वादियों और नदी से घिरा हुआ है, जिस कारण यहां की प्राकृतिक सुंदरता टूरिस्ट्स खासकर नेचर लवर्स को अपनी ओर खींच लाती है। (Rajaji National Park Rishikesh)
जंगली जानवरों और विभिन्न पक्षियों से प्रेम करने वाले टूरिस्ट देश के कोने-कोने से इस पार्क में घूमने फिरने छुटियां मनाने आते हैं। यदि आप भी राजाजी नेशनल पार्क के बारे में जानना चाहते हैं तो हमारे इस ब्लॉग को पूरा जरूर पढ़े –
इस पार्क का नाम प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी और आज़ाद भारत के प्रथम गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के नाम पर रखा गया है।
आध्यात्मिक नगरी ऋषिकेश के बिलकुल करीब स्थित भारत के प्रमुख वाइल्ड लाइफ सैंक्चुअरी में गिना जाना वाला यह पार्क पक्षियों की लगभग 315 प्रजातियों का घर है। एशियाई हाथी, हिरन ,चीता, भालू, कोबरा, जंगली सुअर, साँभर, भारतीय खरगोश, जंगली बिल्ली जैसे जन्तु इस पार्क में पाये जाते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें चीता, सुस्त भालू, हिरण और भौंकने वाले हिरण भी इस पार्क में आसानी से देखे जा सकते हैं। इस पार्क की सबसे खास बात जो इसे पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनाती है वो ये कि गंगा नदी इस पार्क में लगभग 24 किमी की दूरी तय करती है। जब आप यहाँ जंगल सफारी करते हैं तो यकीनन इसमें से बहने वाली वाली नदी की छोटी छोटी धाराएं आपकी यात्रा को सुख़नुमा अहसास के साथ रोमांचक भी बनाती है।
पार्क में साल, पश्चिमी गंगा के नमी वाले जंगल,उत्तरी शुष्क पतझड़ वाले वन और खैर-शीशम के जंगल पाये जाते हैं ।
यहाँ आने के लिए बेस्ट मौसम और सफारी टाइमिंग
पर्यटकों के लिये पार्क प्रतिवर्ष 15 नवम्बर से 15 जून के बीच खुला रहता है। कुछ स्पेशल सरकमस्टान्सेस में समय में बदलाव संभव है। पर्यटक अपने 34 किमी लम्बे जंगल सफारी के दौरान पहाड़ियों की सुन्दरता, घाटियों और नदियों के मनोरम दृश्य का आनन्द ले सकते हैं। यहाँ पर आप जंगल सफारी का आनंद दिन में दो बार ले सकते हैं एक सुबह छह बजे से 10 बजे तक और दूसरा शाम को तीन बजे से छह बजे तक। नेशनल पार्क में जीप सफारी के लिए आपको सभी तरह के टैक्स और एंट्री फी के साथ लगभग 3200 रुपए पे करने पड़ते हैं।
बफर जोन सफारी और मैग्गी पॉइंट
यहाँ जंगल सफारी के लिए आप चीला रेंज जो की यहाँ का फेमस एरिया है के अलावा बफर जोन सफारी भी कर सकते हैं अगर आप यहाँ के जंगल को अच्छे से एक्स्प्लोर करना चाहते हैं तो बफर जोन एक अच्छा अल्टेरनाते हो सकता है।
जहाँ जंगल के बीचोबीच नदी के किनारे मैग्गी पॉइंट पर चाय, पकौड़े और गर्मागर्म मैग्गी का आनंद लिया जा सकता है साथ ही यहाँ पर पहाड़ी की छोटी पर विंध्य वासिनी टेम्पल भी है जो यहाँ आने वाले नेचर लवर्स को अपनी और आकर्षित करता है।
ठहरने के लिए उपयुक्त जगह
ठहरने के लिए आपको इस नेशनल पार्क में आपके बजट के अनुसार बहुत सारे होटल और रिसॉर्ट्स मिल जायेंगे। फिर भी सभी मील्स के साथ आप एक रिसोर्ट के लिए कम से कम चार-पांच हज़ार का बजट मान के चलिए। अगर आप नेशनल पार्क में घूमने के लिए या अपना क्वालिटी टाइम बिताने के लिए आना चाह रहे हैं तो होटल की बजाय रिसोर्ट में रुकना ज्यादा बेहतर रहता है। बाकि यहाँ सब कुछ आपके बजट पर डिपेंड करता है।
राजाजी नेशनल पार्क कैसे पहुंचे
राजाजी नेशनल पार्क आने के लिए अगर आप प्लेन से आ रहे हैं तो जॉली ग्रांट देहरादून हवाई अड्डा, यहाँ का निकटतम हवाई अड्डा है जो यहाँ से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जॉली ग्रांट हवाई अड्डे से आपको टैक्सी या कैब आसानी से उपलब्ध हो जायेगी। और अगर आप ट्रैन से आना चाहें तो निकटतम रेलवे स्टेशन हरिद्वार है जो भारत के प्रमुख शहरों के साथ रेलवे नेटवर्क द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यहां से आपको आसानी से सभी बड़े शहरों के लिए ट्रेन मिल जायेंगी। अगर आप अपनी कार से या बस से यहाँ आना चाहें तो दिल्ली से मेरठ एक्सप्रेसवे और हरिद्वार से होते हुए आप आसानी से यहाँ पहुंच सकते हैं। दिल्ली से लगभग 239 किलो मीटर की दूरी पर हरिद्वार स्थित है।
दोस्तों, आज इस ब्लॉग में हम आपको बताने वाले हैं चंडीगढ़ की मशहूर सुखना झील के बारे में। इससे पहले कि हम आज के सफर में आगे बढ़े, आप यह अवश्य जान लें कि इस शहर की एक नहीं, दो नहीं बल्कि कई खासियते हैं। अक्सर हम इस शहर को हिंदी पंजाबी गानों या फिल्मों में देखते हैं। जितनी खूबसूरत ये सिटी आपको स्क्रीन पर दिखाई जाती है यकीन मानिए यह देखने में उससे भी कहीं ज्यादा खूबसूरत है। बेहद ही तरतीब से बसाया गया यह शहर शांत वातावरण और हरियाली के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। (Sukhna Lake)
वहीं शिवालिक रेंज की तलहटी में सुंदर सुखना झील प्रकृति के साथ एक शांत, क्वालिटी टाइम स्पेंड करने और वॉटर राइड्स जैसे एडवेंचर्स के लिए एक बेस्ट डेस्टिनेशन है। सुखना झील एक मानव निर्मित झील है जिसे 1958 में ले कोर्बुसीयर और पी एल वर्मा द्वारा निर्मित किया गया था। कॉर्बूसियर ने सोचा था कि शहर के निवासी इसे ‘शरीर और आत्मा की देखभाल’ के लिए आकर्षित करेंगे। चंडीगढ़ शहर के योजनाकार इस झील से गहराई से जुड़े हुए थे।
सुखना झील चंडीगढ़ में 3 वर्ग किलोमीटर में फैली वर्षा आधारित झील है। सन 1958 में शिवालिक पहाड़ियों से नीचे आने वाली मौसमी धारा सुखना चो को बांधकर बनाई गई थी। मूल रूप से मौसमी प्रवाह सीधे झील में प्रवेश करता है जिससे भारी गाद निकलती है। गाद के प्रवाह को रोकने के लिए जलग्रहण क्षेत्र में लगभग 25.42 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया गया और 1974 में, चो को मोड़ दिया गया और झील को पूरी तरह से बाय-पास कर दिया गया।
जब भी आप अपनी फैमली या फ्रेंड्स के साथ सुखना झील आयेंगे तो झील के किनारे क्वालिटी टाइम स्पेंड कर सकते है।
अद्भुद नजारें और वाटर एक्टिविटीज
झील में बोट राइड एक्टिविटीज के अलावा आप शिकारा की सवारी भी एन्जॉय कर सकते है। यदि आप डेली की बिजी और थकान भरी लाइफ से दूर कुछ समय अपनी फैमली के साथ रिलेक्स करते हुए स्पेंड करना चाहते हैं तो आपको पूरे एक दिन के लिए सुखना लेक जरूर आना चाहिए। यकीन मानिये सुखना लेक चंडीगढ़ का शांतिप्रिय वातावरण, अद्भुद नजारें और यहाँ की वाटर एक्टिविटीज आपको तरो ताजा कर देंगी।
कैफेटेरिया की सुविधाएं
बता दे झील के पास एक फेमस केफे भी है जिसे सिटको कैफेटेरिया के रूप में जाना जाता है जिसमें इनडोर और आउटडोर दोनों बैठने की जगह है। जहाँ आप अपने फ्रेंड्स के साथ कॉफ़ी, चाय या ब्रेक फ़ास्ट कर सकते है। झील के आसपास के क्षेत्र में भी छोटे क्यूरियस खरीदने के लिए स्मारिका दुकानें हैं यहाँ शोपिंग करके आप अपनी ट्रिप को मेमोरिबल बना सकते है। अगर आप इस झील पर ज्यादा कुछ करना नहीं चाहते’ तो बस एक काम कीजिये इसके किनारे पर बैठकर सूर्यास्त का मज़ा लीजिये।
झील के दक्षिण में एक गोल्फ कोर्स और इसके पश्चिम में प्रसिद्ध रॉक गार्डन है। झील के बाहर पर्यटकों को ऊंट की सवारी भी कराई जाती है, यदि आपने अभी तक की ऊंट की सवारी नही की हैं तो आप यहाँ ऊंट की सवारी का अनुभव भी ले सकते है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यदि आप पूरे 1 दिन की ट्रिप पर हैं तो सूर्यास्त होने तक यहाँ जरूर रुकें क्योंकि सूर्यास्त के अद्भुद और अविस्मरणीय नजारों के साथ अपनी ट्रिप खत्म करने से बेहतर कुछ हो ही नही सकता है।
एंट्री शुल्क
आपको बता दें कि यहां एंट्री करने का कोई भी शुल्क नहीं है उसके पश्चात आप यदि बोटिंग करना चाहते हैं या कुछ खाना पीना चाहते हैं तो उसके लिए आपको काउंटर पर जाकर एक कार्ड बनवाना होगा जिसका इस्तेमाल आप हर दुकान पर हर चीज के लिए कर सकते हैं।
किस समय जाएँ
सुखना झील घूमने के लिए आप किसी भी समय जा सकते हैं गर्मियों में ठंडी हवा खाने और सर्दियों में खिली-खिली धूप का आनंद लेने आप यहां पहुंच सकते हैं, यहां जाने का सबसे उचित समय सूर्योदय और सूर्यास्त का है क्योंकि दिन की गर्मी में यहां ज्यादा देर घूम पाना काफी मुश्किल है।
सुखना झील कैसे पहुंचे
हवाई अड्डा शहर से 11 किमी दूर है। हवाई अड्डे के स्थानांतरण के लिए टैक्सी उपलब्ध हैं। इंडियन एयरलाइंस, जेट एयरवेज और एयर डेक्कन चंडीगढ़ को राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली से जोड़ता है।चंडीगढ़ राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली और अन्य बड़े शहरों से रेल द्वारा जुड़ा हुआ है। चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन सेक्टर 17 में शहर के केंद्र से 8 किलोमीटर दूर है। चंडीगढ़ सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है और लगभग हर बड़े और छोटे शहरों से यहां के लिए बस आती जाती रहती है।
चंडीगढ़ से महज 110 किमी की दूरी पर है खूबसूरत चैल हिल स्टेशन
by Pardeep Kumar
मैं प्रदीप कुमार फाइव कलर्स ऑफ ट्रैवल के इस नए ब्लॉग में आप सभी का स्वागत करता हूं। इस ब्लॉग में मैं आपको हिमाचल प्रदेश के शिमला के पास ही स्थित एक बेहद खूबसूरत हिल स्टेशन चैल की हाल ही की यात्रा के बारे में बताऊंगा।
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ठंडी हवाओं को ख़ुद में समेटे चैल की मीठी सुबह ने जैसे हमारे मिज़ाज को तरोताज़ा कर दिया। जून के महीने में भी चैल का मौसम बेहद सुहाना लग रहा था, और ऐसे सुहाने मौसम में जो कि हिल स्टेशन के लिए पीक का समय माना जाता है एक अच्छा रिसाॅर्ट मिलना हमारे लिए क़ाफ़ी क़िफ़ायती साबित हुआ। (Chail, Solan)
बलखाती नागिन जैसी सड़कों पर जब हिचकोले लेती हमारी गाड़ी दौड़ रही थी तो एक अलग ही रोमांच का एहसास हो रहा था।
चायल में एंट्री के दौरान हमें महादेव के दर्शन हुए मानो जैसे भगवान का आशीर्वाद भी हमें मिल गया हो। दरअसल चायल (चैल) में प्रवेश करते समय हमें भगवान शिव का मंदिर दिखाई दिया, यहाँ हम थोड़ी देर रुके और फिर आगे चल पड़े अपने रिज़ॉर्ट की और। एक तरफ़ पहाड़ और दूसरी ओर गहरी खाई से जबरदस्त रोमांच में जैसे डर का हल्का तड़का लग गया हो। यक़ीनन अब सफ़र और भी ज़्यादा हसीं और दिलचस्प होने वाला है।
होटल्स, रिजोर्ट्स और होम स्टे
दोस्तों, आप जब पहाड़ों में घूमने आते हैं तो आपको ठहरने के लिए दो से तीन अच्छे विकल्प मिल जाते हैं जैसे होटल्स, रिजोर्ट्स और होम स्टे, तीनों में अच्छा ख़ासा फ़र्क़ होता है जो आपकी सहूलियत और बजट पर असर डाल सकता है।
जैसे होटल्स की बात की जाए तो वो आपको नार्मल दिनों में 1500/- तक में मिल जाते हैं वहीं पीक टाइम में इन्हीं होटलों के रेट तीन गुणा बढ़ जाते हैं। होम स्टे की बात करें तो नार्मल दिनों में 1000/- तक और पीक टाइम में 2000-2500/- तक रेट बढ़ जाते हैं। लेकिन होम स्टे के कुछ फायदे भी हैं जनाब अगर आप घर से दूर रहकर भी घर जैसा माहौल चाहते हैं तो होम स्टे को आजमा सकते हैं । रिजोर्ट्स की जहाँ तक बात आती है तो रिज़ॉर्ट में आपको ढेरों विकल्प मिल जाते हैं थ्री स्टार से लेकर फाइव स्टार तक या इससे भी ऊपर जो पूरी तरह से आप पर निर्भर करता है क्योंकि इनके शुरूआती रेट 2500/- से लेकर ज़्यादा से ज्यादा कितने भी हो सकते हैं।
ये सब जानकारी देने का मक़सद बस इतना है कि ट्रिप प्लान करते समय आप अपना बजट सही तरीक़े से मैनेज कर सकें। पर एक बात का ज़रूर ध्यान रखें कि बुकिंग आप एडवांस में ही करें क्यूँकि ऑन द स्पॉट बुकिंग करने पर आपका वक्त ज़ाया होने की संभावना बढ़ जाती है, ज़ाहिर है पहाड़ों और वादियों के ख़ूबसूरत ट्रिप की शुरुआत आप ऐसे तो नहीं करना चाहेंगे। खै़र हमने भी अपना रिज़ॉर्ट एडवांस में बुक कर लिया था। जिससे जून के महीने में बेवजह की भागा दौड़ी से बच गए। यह समर वेकेशन का वो टाइम होता है जहाँ किसी भी हिल स्टेशन में पैर रखने की भी जगह नहीं होती।
अगर आप अच्छा क्वालिटी टाइम बिताना चाहते हैं तो होटल या रिज़ॉर्ट थोड़ा सा रिसर्च करके ही बुक करें। मद्धम धूप में सराबोर देवदार के पेड़ों की चादर ओढ़े ये ऊँची-ऊँची पहाडियाँ ग़ज़ब लग रही हैं। बहरहाल, हम सुबह दस बजे के क़रीब अपने रिज़ॉर्ट में दाख़िल हुए, जो मुख्य सड़क से थोड़ी ढ़लान पर बना हुआ था, बिल्कुल हिमालय की गोद में, जिसकी बदौलत हमने हर तरफ़ पहाड़ों के शानदार नज़ारों का खूब आनंद लिया। नाश्ता करने के बाद हम घंटों तक पहाड़ों में खोए रहे, उसके बाद हमने थोड़ा आराम किया जो उस वक़्त एनर्जी और रोमांच को बरक़रार रखने के लिये बेहद ज़रूरी था।
अब तक़रीबन साढ़े बारह बजे हमने चैल की नई जगहों को एक्स्प्लोर करने का प्लान बनाया और बस फिर क्या अगले ही पल हमने ख़ुद को उन्हीं नागिन सी बलखाती सड़कों पर पाया। घुमावदार रास्तों से होते हुए हम अपनी धुन में खोए ही थे कि चैल के मेन बाज़ार ने हमारा ध्यान अपनी ओर खींचा,
चैल बाज़ार और चैल पैलेस
पहाड़ी जगह पर बने बाज़ार को घूमने का अपना ही मजा है क्योंकि यहां पर ज़रूरत की हर चीज़ मौजूद है। बाज़ार में हमने थोड़ा ही समय बिताया क्योंकि हमारा मुख्य लक्ष्य था उस जगह घूमना जहाँ के बारे में लोग इतना अवगत नहीं है। इसके अलावा आप चैल में सेल्फी पॉइंट, काली का टिब्बा मंदिर और चैल पैलेस भी घूम सकते हैं। बताते हैं लोर्ड़ किच्नर के आदेशानुसार पटियाला के राजा भूपिंदर सिंह को शिमला से निकाल दिया गया था, इसका बदला लेने के लिए उन्होंने शिमला के पास ही खूबसूरत चैल को अपनी गीष्मकालीन राजधानी बना कर यहाँ सुंदर चैल पैलेस का निर्माण करवाया। चैल पैलेस को 1891 में बनवाया गया था और यह चैल की शाही वीरासत मानी जाती है जिसे आज एक शानदार होटल में बदल दिया गया है। यहाँ पर्यटकों को घूमने के लिए सौ रुपए का टिकट लेना पड़ता है। टूरिस्ट चाहे तो यहाँ रूम बुक करके भी रह सकते हैं। जिसके रूम की सुविधाओं के हिसाब से अलग-अलग चार्ज हैं। यहाँ से आप चैल के पहाड़ों और वादियों के शानदार नज़ारों का आनंद ले सकते हैं।
अश्विनी खड़
अच्छा ख़ासा रास्ता तय करके हम अपनी डेस्टिनेशन पर आख़िरकार पहुँच ही गए।
हिमाचल प्रदेश एक ऐसी जगह है जो हमें कभी निराश नहीं करती और हमेशा कुछ न कुछ नए और खूबसूरत मंजर देखने पर मजबूर करती है, एक ऐसी जगह जहां बहुत सारी अनछुई या यूँ कह लीजिये कि बहुत सारे छिपे हुए रत्न हैं। इन्हीं हिडेन जेम्स में से एक जगह है अश्विनी खड़। चायल से तकरीबन 33 km दूर अश्वनी खड़ में है पहाड़ों के बीच छिपा बहुत सुंदर वाटरफॉल, जहां आप ठंडे पानी में पैर रखके तरोताजा हो सकते हैं, लेकिन हमने समय बिताया नदी के पानी में जो झरने से होते हुए इस विशाल घाटी से गुजर रहा था।
सूरज सर पर था लेकिन इस धारा का पानी इतना ठंडा मानो बर्फ अभी-अभी पिघली हो। यहाँ पर दूर-दूर से आये लोगों को एंजॉय करते देख आप अंदाजा लगा सकते हैं की इस जगह में कितना सुकून है। हमने भी यहां अच्छा खासा वक्त बिताया और ठंडे पानी के छींटों से एक दूसरे को जम कर भिगोया। शाम होने लगी तो सोचा अब यहाँ से चला जाए, क्योंकि जिस रास्ते से हम आए थे वहां कई किलोमीटर तक का रास्ता खराब था तो अंधेरे में उसी रास्ते से वापिस जाना ठीक नही लगा, इसलिए हमने दूसरे रास्ते से जाने की योजना बनाई जो कंडाघाट और साधुपुल से होते हुए चैल तक जाता है। आप जब भी यहां आएं तो रास्तों का खास ख्याल रखें।
मैगी और टोमेटो सूप
बहरहाल वापसी के दौरान हमने रोमांच से भरे इस सफ़र को एक लेवल और ऊपर उठाने की ठानी, नहीं-नहीं हम बड़े और ऊँचे पहाड़ों पर बिना किसी तैयारी के नहीं चढे़ बल्कि सड़क किनारे छोटी पहाडियों पे चढ़के कुकिंग का आनंद ज़रूर लिया। वाक़ई में बड़ा मज़ा आया। वाह जी वाह, मैगी और टोमेटो सूप ने तो मुँह का ज़ायका ही बना दिया।
साधुपुल
खाना पीना करने के बाद सफ़र फिर से शुरू हुआ। अंधेरा भी होने लगा था इसलिए गाड़ी की रफ्तार को बढ़ा कर सीधा ब्रेक लगाए साधुपुल में, साधुपुल एक पिकनिक स्पॉट है, जहां आप फैमिली के साथ या फ्रेंड्स के साथ पार्टी कर सकते हैं।
साधुपुल सोलन से लगभग 23 किलोमीटर और चैल से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पहाड़ों से घिरी और अश्वनी नदी की बहती धारा इस जगह को और भी ज्यादा खूबसूरत बना रही थी, इसमें तो कोई शक नहीं की साधुपुल एंजॉय करने की बेस्ट जगह है। बच्चों के लिए यहाँ वाटर पार्क और एडवेंचर जोन भी है, जहाँ वो खूब मौज-मस्ती कर सकते हैं। हमने कुछ समय यहां बिताने के बाद फिर से अपनी गाड़ी की ओर रुख किया और थोड़े से सफर के बाद अपने रिसोर्ट में वापिस आ गए। सच में चैल एक बेहद खूबसूरत और मनोरम जगह है जहाँ आप अपना बेहतरीन वक़्त बिता सकते हैं।