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Best Places to Visit in Mount Abu

Mount Abu- राजस्थान का एक मात्र हिल स्टेशन

Five Colors of Travel

जब भी हमारे जेहन में राजस्‍थान का नाम आता है तो स्वतः ही दूर-दूर तक फैले रेत के धोरे, तेज गर्म हवाएं, कीकर के झाड़, भव्य हवेलियां या गर्वीले इतिहास की विरासत को अपने अंदर संजोए  रजवाड़ों के किले और महल तैरने लगते हैं या फिर राजपूताना शान के प्रतीक अनेक रंगों को अपनी पहचान बनाए यहाँ के शहर लेकिन अलग-अलग रंगों को अपने में संजोए इस राजस्‍थान का एक खूबसूरत रंग ऐसा भी है जिसकी पहचान एक शानदार हिल स्टेशन के तौर पर दुनिया भर में है और वो है माउंट आबू। यह खूबसूरत जगह किसी जमाने में राजस्थान की जबरदस्त गरमी से बदहाल राजघरानों के शाही लोगो का ‘समर-रिज़ॉर्ट’ हुआ करता था। (Mount Abu)

mount abu

धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक केंद्र के रूप में

क्योंकि इस शहर के साथ अनेक धार्मिक और सामाजिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं इसलिए भी माउंट आबू धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक केंद्र के रूप में भी अच्छा खासा प्रसिद्ध है। यहां की चटटानों एवं जंगलों में ऋषियों, मुनियों और साधकों की आज भी अनेकों गुफाएं आसानी से देखने को मिल जाती हैं जो प्राचीन भारतीय संस्कृति और अध्यात्म की याद को तरोताजा कर देती हैं। बेइंतहा तेजी से भागती-दौड़ती जिन्दगी में सुकून के पलों की तलाश करते आदमी को सच्चे सुख और अदद शान्ति का अहसास कराने में सक्षम है राजस्थान के कश्मीर के रूप में प्रसिद्ध- माउंट आबू।

कैसे पहुंचे माउन्ट आबू

आप यहाँ सड़क मार्ग के अलावा रेल मार्ग से भी यहाँ आसानी से पहुँच सकते हैं। माउन्ट आबू के पास में आबू रोड रेलवे स्टेशन है जो लगभग सभी बड़े शहरों से कनेक्ट है। हवाई मार्ग द्वारा माउंट आबू पहुँचने के लिए आप उदयपुर की उड़ान ले सकते हैं जो माउंट आबू का निकटतम हवाई अड्डा है। उदयपुर हवाई अड्डा इस शहर से लगभग 185 किमी. की दूरी पर स्थित है। मेरी ये दूसरी माउन्ट आबू यात्रा थी। हम देर रात यहाँ पहुंचे थे, होटल पहले से बुक था। आबू रोड से माउंट आबू तक पहुँचने के लिए लगभग 30 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। अरावली शृंखला के सर्पीले रास्तों से गुजरते हुए जब आप चढ़ाई चढ़ते हैं तब थोड़ी थकान लाज़िमी है, लेकिन ऐसी यात्रायें रोमांचक भी होती हैं अगर वो दिन में हो। रात का सफर अक्सर थका देता है, सो होटल पहुंचे, डिनर किया और बिस्तर पर लेटते ही कब नींद आ गई पता ही नहीं चला।  अगले दिन सुबह नाश्ता किया और निकल पड़े माउंट आबू की हृदयस्थली नक्की झील की और।

माउंट आबू बाजार और गुजराती टच

चारों और पहाड़ों से घिरी इस झील की ख़ूबसूरती ही यही है कि यहां आने वाले पर्यटक झील में बोटिंग किए बिना वापसी का रूख नहीं करते। झील के पास स्थित बाजार में आपको  गुजराती संस्कृति का ज्यादा बोलबाला दिखाई देगा वजह शायद यही कि यह जगह बिलकुल गुजरात की सीमा से सटी हुई है। आपको यहाँ के खाने में मीठेपन के साथ ही गुजराती टच का अहसास हो जायेगा। इस बाजार में  हस्तकला निर्मित सामग्री जैसे- वस्त्र, चादरें, पर्स, गहने, चप्पलें, खिलौने आदि मिलते हैं।

माउंट आबू का हार्ट – नक्की झील

 

नक्की झील के बारे में हिन्दू पौराणिक मान्यता है कि इसे देवताओं द्वारा राक्षसों से बचाने के लिए अपने नाखूनों से खोदा गया था। पहले इसे नख की झील ही कहा जाता था, बाद में इसका नाम  नक्की झील पड़ गया।

नक्की झील में आपको बोटिंग के अलावा कुछ वाटर स्पोर्ट्स एक्टिविटीज भी दिखाई देंगी जहाँ आप अपनी पसंद के अनुसार उन एक्टिविटीज का आनंद ले सकते हैं। झील के किनारे पर एक खूबसूरत रेस्तरां बना हुआ है जहाँ आप चाय कॉफी के साथ प्राकृतिक नज़ारों से घिरी झील की ख़ूबसूरती का रसपान कर सकते हैं।

यहाँ पैडल और शिकारा बोट दोनों ही उपलब्ध हैं। हमने पहले बोटिंग की और फिर इत्मीनान से खाया-पिया। जहाँ हम बैठे कॉफी पी रहे थे वहीं से सामने झील के किनारे भारत माता का भव्य मंदिर भी दिखाई दे रहा था। इस तरह के मंदिर आपको कुछ चुनिंदा जगहों पर ही मिलेंगे। (Mount Abu)

जब आप पार्किंग से झील की तरफ जाते हैं तब रास्ते में आपको घुड़सवारी और ऊंट सवारी  का विकल्प भी मिलता है। आपको आसानी से बच्चे और कुछ न्यू  मैरिड कपल वहां सवारी करते और फोटोग्राफी करते दिख जायेंगे। यह झील नेचर लवर्स और फोटोग्राफी के शौकीनों के लिए एक बेहद पॉपुलर जगह है। हमने यहाँ फुरसत से अच्छा-खासा समय बिताया

दिलवाड़ा के प्रसिद्ध जैन मंदिर

और फिर शेड्यूल के अनुसार निकल पड़े अगले पड़ाव दिलवाड़ा के प्रसिद्ध जैन मंदिर की और।

अगर कहें कि दिलवाड़ा जैन मंदिर जैनियों के सबसे सुंदर तीर्थ स्थलों में से एक है तो बिलकुल भी गलत नहीं होगा। इस मंदिर का निर्माण 11वीं और 13वीं शताब्दी के बीच चालुक्य राजाओं वास्तुपाल और तेजपाल द्वारा किया गया था। यह मंदिर अपनी अद्भुत नक्काशी और  संगमरमर से सजे होने के लिए प्रसिद्ध है।

बाहर से देखने पर भले ही यह मंदिर सामान्य दिखाई दे लेकिन जैसे ही आप मंदिर के अंदर प्रवेश करते हैं आप यहाँ की छत, मेहराबों, दीवारों और स्तंभों पर करीने से बनाये गए डिजाइनों को देखकर हैरत में पड़ जायेंगे। क्योंकि मंदिर के अंदर फोटोग्राफी मना है इसलिए बहुत से लोग इसकी सुंदरता से महरूम हैं। लेकिन फिर भी गूगल करने पर आपको दिलवाड़ा मन्दिर की बहुत सारी फ़ोटोज़ मिल जाएँगी, जिसे देखकर आप इसकी अद्भुत नक्काशी और सुन्दरता का अंदाजा लगा सकते हैं। यहाँ की मूर्तियों पर पॉलिशिंग इतनी चमकदार है कि सैकड़ों वर्ष पुरानी होने के बाद भी बिलकुल नई-सी लगती है। यहाँ की सभी मूर्तियां संगमरमर की है और उन पर बेहद फाइन कारीगरी की गई है। बताते हैं ये मन्दिर बनाने में लगभग 1500 शिल्पकार और 1200 श्रमिकों की कड़ी मेहनत लगी है। अपनी महीन नक्काशी और बनावट के लिए दुनिया भर में फेमस दिलवाड़ा मन्दिर बनने में 14 साल लगे और करीब 18 करोड़ रुपये खर्च हुए थे।

जैन मंदिर जैन भक्तों के लिए सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक खुला रहता है और अन्य धर्म के लोगो के लिए यह दोपहर 12 से शाम 6 बजे तक खुला रहता है। मौसम के अनुसार समय में बदलाव संभव है। यहाँ जाने से पहले इस बात का जरुर ध्यान रखे कि इस मंदिर में किसी भी पर्यटक और तीर्थ यात्री को मंदिर परिसर में फोटो खींचने की अनुमति नहीं है।

हमने तकरीबन दो घंटे में इस मंदिर के प्रांगण में बने पांच अलग-अलग मंदिरों को अच्छे से देखा। संगमरमर के बड़े-बड़े पत्थरों पर नक्काशी कर बनाये गए ये अद्भुत मंदिर दुनिया भर में अपनी नायब कारीगरी का बेहतरीन नमूना है। शाम को चार बजे तक हम मंदिर के बाहर आ चुके थे।

हीराभाई की प्रसिद्ध चाय की दुकान

मंदिर के सामने ही पर्यटन की दृष्टि से समृद्ध एक छोटा सा बाजार है जहाँ आप वुडेन क्राफ्ट और मार्बल से बने प्रोडक्ट्स खरीद सकते हैं। वही उसी बाजार में हमें दिखाई दी दशकों पुरानी हीराभाई की प्रसिद्ध चाय की दुकान। हमें चाय का मुरीद जान कर दुकान संभाल रहे सज्जन ने कड़क मसाला चाय बना कर दी।

चाय ठीक-ठाक लगी। लेकिन हमें तरोताजा करने के लिए इतना मसाला काफी था।

प्रकृति प्रेमियों और कपल्स का फेवरिट प्लेस – सनसेट पॉइंट

खैर शाम को हमें सनसेट देखने के लिए सनसेट पॉइंट भी पहुंचना था इसलिए हम चाय पीने के बाद माउंट आबू की एक और प्रसिद्ध जगह सनसेट पॉइंट की और बढ़ चलें। सनसेट पॉइंट नक्की झील के पास ही है। यह पॉइंट प्रकृति प्रेमियों और खासकर कपल्स को बेहद पसंद आता है। यहाँ सनसेट का दीदार करने के लिए अलग-अलग पॉइंट्स बनाये गए हैं जहाँ से आप अरावली के पहाड़ों में डूबते सूरज के विहंगम दृश्यों  का मजा ले सकते हैं।

यहाँ सनसेट का दीदार करने के लिए अलग-अलग पॉइंट्स बनाये गए हैं जहाँ से आप अरावली के पहाड़ों में डूबते सूरज के विहंगम दृश्यों  का मजा ले सकते हैं। यहाँ पर आपको चाय-पकौड़े, गरमा-गर्म मैगी और अन्य खाने पीने की चीजें  भी मिल जाएँगी। यहाँ पहुँचने के लिए घोड़े भी उपलब्ध हैं (जिनका किराया बढ़ता घटता रहता है) क्योंकि यह पॉइंट एक-डेढ़ किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित है इसलिए आप वहां तक आसानी से पहुँचने के लिए घुड़सवारी का भी प्रयोग कर सकते हैं। शाम के समय यहाँ पर्यटकों की अच्छी खासी भीड़ देखने को मिल जाती है। हमने यहाँ सनसेट देखते हुए गर्मागर्म चाय और मैगी का आनंद लिया। पहाड़ों के शिखर से प्रकृति के सौंदर्य पान के साथ बिताये ये यादगार लम्हें लम्बे समय तक याद रहेंगे।

देर शाम तक हम अपने होटल वापिस लौट आये। अगले दिन अध्यात्म के लिए प्रसिद्ध प्रजापिता ब्रह्मकुमारीज, पीस पार्क, गुरुशिखर, अंचलगढ़ और हनीमून पॉइंट जैसी खूबसूरत जगहों का भ्रमण किया, जिसे किसी और ब्लॉग में आपके साथ साँझा करूंगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रकृति के करीब आकर सारा तनाव दूर हो जाता है तथा सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। यकीनन भागदौड़ भरी जिंदगी में से कुछ समय निकालकर ऐसे शुद्ध प्राकृतिक वातावरण में आकर समय बिताना बेहद सुकूनभरा लगता है। (Mount Abu)

 

Written by Pardeep Kumar

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Bangla Sahib Gurudwara Delhi

गुरुद्वारा बंगला साहिब- दिल्ली का गोल्डन टेम्पल

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दिल्ली के केंद्र में बसे कनॉट प्लेस में स्थित बंगला साहिब गुरुद्वारा यूँ तो कई मायनों में खास है। पर इसकी सबसे बड़ी खासियत है इसका उदार स्वभाव। जी हां, करीब साढ़े तीन सौ साल पुराना ये गुरुद्वारा सभी धर्मों के लोगों का खुले दिल और गर्मजोशी से स्वागत सत्कार करता है। इसका परिसर 24 घण्टे मुसाफिरों के लिए किसी घर की तरह खुला रहता है। संगमरमर ओर सोने के गुबंद से बनी गुरुद्वारे की अनोखी शैली, 24 घण्टे सेवा देने वाली भव्य रसोई, पवित्र जलाशय ये सब मिलकर इस गुरुद्वारे को और भी खास बनाते हैं। Gurudwara Bangla Sahib

बंगला साहिब गुरुद्वारा परिसर

गुरुद्वारे के परिसर में जाते ही सीढ़ियों के नीचे बनी नलियों से निकलता पानी खुद ही पैरों को साफ करने की क्षमता रखता है। सीढ़ियों पर चढ़ते हुए सामने अरदास स्थल है। शर्त बस इतनी है अंदर प्रवेश करने के बाद आपका सर ढका होना चाहिए वरना जगह-जगह खड़े सेवादारों की डांट आपको इत्मीनान से झेलनी पड़ सकती है। अरदास स्थल की भव्यता और शांति मोहित कर देने वाली है। सामने गुरु ग्रन्थ साहिब और उसके ऊपर लगा बड़ा-सा शाही झूमर अलौकिक अनुभव देता है और लगता है वाकई ये स्थल एक वक्त पर किसी राजा का महल रहा होगा।

गुरु ग्रन्थ साहिब की परिक्रमा करते ही पिछले दरवाजे से हम बाहर निकले। एक तरफ कुंड का पवित्र जल दर्शनार्थियों को दिया जा रहा था तो दूसरी तरफ घी से बना हलवे का प्रसाद। सामने ही सुंदर जल कुंड है जो किसी भी श्रद्धालु को अपनी तरफ आने का आमन्त्रण देता है।

तालाब के अंदर रंग-बिरंगी मछलियां इस तालाब की सुंदरता में चार चांद लगा देती हैं और हां, खास बात ये यहां तस्वीरें खींचना सख्त मना है। अगर आप यहाँ गलती से तस्वीर लेते मिल गए तो सेवादारों के गुस्से का शिकार हो सकते हैं और मोबाइल छीनने का भी खतरा हो सकता है, तो सावधान रहिएगा।

24 घंटे लंगर सेवा

परिसर में आगे बढ़ने पर लंगर सेवा दिखी। इस लंगर के निस्वार्थ भाव से आसपास के सैंकड़ों-हज़ारों जरूरतमन्दों का पेट पलता है। श्रद्धालु भले ही इसे गुरु का प्रसाद समझते हों पर गरीब बेसहारा लोगों के लिए ये पोष्टिक भोजन किसी वरदान से कम नहीं। दाल और रोटी के इस लंगर में ज़ायक़ा उतना ही है जितना किसी मां के हाथ में होता है। आश्चर्य की बात तो ये है कि ये लंगर सेवा 24 घण्टे चलती है और तो और इसे बनाने के लिए किसी खास रसोइए को नहीं रखा गया है बल्कि सेवा भाव रखने वाले लोग खुद से पूरा भोजन तैयार करते हैं और परोसते भी हैं।

यहाँ की सबसे खास बात यही कि किसी काम के लिए कोई किसी को आदेश नहीं देता बल्कि सब अपने इच्छा भाव से काम करते हैं। यही तो इस गुरुद्वारे को और भी अनोखा बनाता है। इस तरह का मैनेजमेंट बिना किसी नियंत्रण के, ये देखना हमारे लिए भी आश्चर्य से कम नहीं था। Gurudwara Bangla Sahib

बंगला साहिब का इतिहास

बंगला साहिब का इतिहास इसे और भी समृद्ध बनाता है। ऐसे तो दिल्ली में कई जाने पहचाने नामी गुरुद्वारे हैं लेकिन इनमें से सबसे खास है सिखों के आठवें गुरु श्री गुरु हरिकृष्ण जी से सम्बंधित ये स्थल। आज सिखों में बेहद पवित्र माने जाने वाला ये गुरुद्वारा बंगला साहिब 1664 के दौर में मिर्जा राजा जय सिंह का बंगला हुआ करता था। बात उन दिनों की है जब दिल्ली शहर में हैजा और चेचक की महामारी फैली हुई थी। तब गुरु साहिब ने यहां आकर हजारों लोगों की सेवा-सत्कार किया था। ऐसा माना जाता है कुंड के जल में अपने चरण डाल कर गुरु हरिकृष्ण ने जल को आरोग्य बनाया जिसके बाद इस जल को पीकर लोग रोगमुक्त होने लगे। मान्यता है कि गुरु साहिब ने ही यहां इस प्याऊ की शुरुआत की थी, जिसका जल आज लोग विदेशों तक ले जाते हैं। गुरुद्वारे के दूसरे छोर पर हमें एक म्यूजियम दिखा जो फिलहाल बन रहा है। कुछ समय बाद सिख धर्म को प्रदर्शित करने वाला ये म्यूजियम आम जनता के लिए भी खुल जाएगा।

कहा जाता है यदि आप अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर को नहीं देख पाए तो इस गुरुद्वारे को देख लीजिए ये स्वर्ण मंदिर की एक छवि माना जाता है इसे दिल्ली का गोल्डन टेम्पल भी कहा जाता है। इसके प्याज जैसे आकार के सोने के गुबंद और संगमरमर का परिसर आँखों को अपनी ओर खींच ही लेता है। दिल्ली में रह कर इस जगह नहीं आये तो क्या ही दिल्ली में रहना।

बंगला साहिब गुरुद्वारा सिर्फ एक गुरुद्वारा नहीं बल्कि दिल्ली का एक प्रमुख टूरिस्ट स्पॉट भी है। सेन्ट्रल दिल्ली का ये मशहूर गुरुद्वारा काफी बड़े एरिये में फैला हुआ है

यहां आने के लिए राजीव चौक मेट्रो सबसे पास पड़ेगा। मेट्रो से रिक्शा लेकर आसानी से बंगला साहिब गुरुद्वारे तक पहुंचा जा सकता है। इस गुरुद्वारे की सुंदर बनावट आपको दूर से ही नजर आने लगेगी। लेकिन जब भी यहाँ यहां आएं तो लंगर का लुत्फ़ जरूर उठाएं।

 

Research by Nikki Rai
Edited by Pardeep Kumar
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BEST Places to Visit in Kurukshetra

Kurukshetra: नवंबर के महीने में गीता जयंती उत्सव का लुत्फ़ उठाते हुए घूमिए कुरुक्षेत्र की ये खास जगह

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अधिकांश भारत में सर्दियों की शुरुआत नवंबर महीने से होती है। यह महीना देश भर में फेस्टिवल सीजन का महीना भी होता है। यात्रा के लिहाज से देश भर में मौसम और उत्सव नवंबर को आदर्श बनाते हैं, खासकर उन जगहों पर जहां विशेष पर्व, उत्सव और त्यौहार होते हैं, आप सच में उन रंगों, प्रेम और आनंद से भर जाते हैं। ऐसी ही एक जगह है जहाँ आस्था और श्रद्धा दोनों ही आपको बेशुमार मिलेगी, जी हाँ, हम बात कर रहे हैं पावन धरती कुरुक्षेत्र की। जहाँ नवंबर महीने में धूमधाम से अंतर्राष्ट्रीय गीता जयंती उत्सव मनाया जाता है।

तो आइये इस ऐतिहासिक शहर की कुछ खूबसूरत जगहों का अवलोकन करते हैं, शायद आपका मन कर जाए वहां जाने का। हम इस ब्लॉग में आपको कुरुक्षेत्र की कुछ बेहद खास जगह  के बारे में बता रहे हैं। कुरुक्षेत्र जा रहे हैं तो इन जगहों पर घूमना मत भूलना ।

ब्रह्म सरोवर का हमने विस्तारपूर्वक वर्णन पिछले ब्लॉग में किया था। नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके आप इसे पढ़ सकते हैं।

ब्रह्मसरोवर घूमने के बाद स्टेशन की ओर जब आप जाते हैं तो रास्ते में आपको छठी पातशाही गुरुद्वारा, सन्नहित सरोवर, श्री कृष्ण संग्रहालय, पैनोरमा विज्ञान केंद्र, यह सभी स्थान लगभग कुछ ही कदम की दूरी पर आपको मिल जाएंगे।

सन्नहित सरोवर

ब्रह्मसरोवर से 500 मीटर की दूरी पर  सन्नहित  सरोवर स्थित है। मात्र 5 मिनट पैदल चलने पर आसानी से सन्नहित सरोवर पहुंच जायेंगे। हालांकि ब्रह्मसरोवर और इस सरोवर में फर्क सिर्फ विशालता का है।

जहां ब्रह्मसरोवर विशालता के लिए जाना जाता है। वही सन्नहित सरोवर अपनी सुंदरता के लिए जाना जाता है। सरोवर के मुख्य द्वार पर सामने की तरफ आपको छठी पातशाही गुरुद्वारा भी दिख जाएगा।

हमारे प्राचीन ग्रंथों में इस सरोवर का अपना महत्वपूर्ण स्थान है। सरोवर की गणना कुरुक्षेत्र के सबसे प्राचीन सरोवरों में की जाती है। इस सरोवर को ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव का निवास स्थान भी कहा गया है। श्रीमद भगवत पुराण के अनुसार पूर्ण सूर्य ग्रहण के दिन श्री कृष्ण अपने सगे संबंधियों के साथ  इस सरोवर में स्नान करने आए थे। साथ ही महाभारत के युद्ध के बाद पांडव यहीं पर पिंडदान करने के लिए आए थे। सरोवर के तट पर सूर्य नारायण, लक्ष्मी नारायण, धुर्व नारायण के मंदिर स्थित हैं। सिख गुरु भी अपने समय पर यहां स्नान करने आए थे।

अमावस्या के दिन और सूर्य ग्रहण के दिन यहां पर हजारों की संख्या में लोग स्नान करने के लिए आते हैं।

छठी पातशाही गुरुद्वारा

सन्नहित सरोवर के ठीक सामने छठी पातशाही गुरुद्वारा दिखाई देता है। सरोवर के मुख्य द्वार से 10 कदम की दूरी पर यह गुरुद्वारा स्थित है। सिख धर्म के अनुसार सिखों के पहले गुरु श्री गुरु नानक देव जी अमावस वाले दिन कुरुक्षेत्र पधारे थे और सन्नहित सरोवर के सामने डेरा लगाया था। इस दौरान गुरु नानक देव जी ने हिंदुओं के प्रसिद्ध नियम जिसमे सूर्य ग्रहण के समय आग नहीं जलाने का नियम होता है, उस नियम को तोड़ते हुए गुरु का लंगर चालू किया। यहां पर सिखों के लगभग अधिकतर गुरु समय-समय पर आते जाते रहे हैं। गुरु श्री हरगोबिंद सिंह जी यहां पर दो बार पधारे थे। Kurukshetra

गुरुद्वारे के अंदर मुंह हाथ धोने के बाद सर पर कपड़ा बांधे प्रवेश किया, आपकी जानकारी के लिए बता दूँ  कि किसी भी गुरुद्वारे में बिना सर पर कपड़ा बांधे प्रवेश की  इजाजत नहीं मिलती है। सबसे पहले नजर सामने सरोवर पर पड़ी, सरोवर बिलकुल साफ सुथरा था, आसपास किसी भी तरह की गंदगी नहीं थी फिलहाल गुरुद्वारे का मरम्मत का कार्य चल रहा है, मगर दर्शन करने के लिए कोई मनाही नहीं।

श्री कृष्ण संग्रहालय और पैनोरमा विज्ञान केंद्र

गुरुद्वारे से निकलने के मात्र कुछ कदम की दूरी पर ही आपको पैनोरमा विज्ञान केंद्र और श्री कृष्ण संग्रहालय दिख जाएगा। आप पैदल ही वहां पर आसानी से पहुंच सकते हैं। कुरुक्षेत्र में पैनोरमा और विज्ञान केंद्र की एक सुंदर बेलनाकार इमारत है,

कुरुक्षेत्र पैनोरमा और विज्ञान केंद्र  दोनों में ही ग्राउंड फ्लोर और पहली मंजिल पर बेलनाकार दीवारों के साथ दो अलग-अलग प्रकार के एक्ज़ीबिशन देखने को मिलेंगी। पैनोरमा में बहुत सी  वैज्ञानिक वस्तुओं को भी प्रदर्शित किया गया है। ग्राउंड फ्लोर पर लगी एक्ज़ीबिशन में  परमाणु संरचना, ज्यामिति, खगोल विज्ञान और सर्जरी की प्राचीन भारतीय अवधारणा पर अंकगणितीय नियम, काम और इंटरैक्टिव शामिल हैं। यहाँ आपको अधिकतर युवा खासकर स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थी दिखाई देंगे। बाकि यहाँ सभी आयु वर्ग के लोग आते हैं।

पैनोरमा के साथ ही एक और सुंदर  इमारत श्री कृष्ण संग्रहालय स्थित है, यहाँ प्रवेश करते ही आपको अपने सुरुचिपूर्ण वास्तुकला और वातावरण के साथ, केंद्र का मुख्य आकर्षण कुरुक्षेत्र के महाकाव्य युद्ध का सजीव चित्रण दिखाई देगा। यहाँ आपको पूरी महाभारत एक ही जगह दिखाई देगी।  जिसका साउंड सच में अद्भुत है और सच में पांडवों और कौरवों के बीच महाभारत का टकराव उनकी आंखों के सामने जीवित हो जाता है।

Research by Pravesh Chauhan
Edited by Pardeep Kumar

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Khari Baoli Market: Asia’s Largest Spice Market

Khari Baoli: एशिया की सबसे बड़ी मसाला मार्किट

जब भी किसी बाजार का नाम आता है तो स्वतः ही कपड़े और खानपान हमारे ज़ेहन में घूम जाते हैं। आमतौर पर जब भी हम चाँदनी चौक का नाम सुनते हैं तब हमें वहाँ बिकने वाले शानदार मैरिड क्लॉथ खासकर सूट और शानदार लहंगों की याद आती है, पर चाँदनी चौक में एक ऐसा बाज़ार भी है जहाँ वस्त्र, ज्वेलरी और चप्पल-जूतों से कुछ अलग मिलता है। जी हाँ, चाँदनी चौक के बीचों बीच बनी है खारी बावली जो एशिया की सबसे बड़ी मसाला मार्किट है। (Khari Baoli: Asia’s Largest Spice Market)

चावड़ी बाज़ार मेट्रो स्टेशन से खारी बावली सबसे पास पड़ती है, अब ये आप पर निर्भर करता है कि आप बाज़ार तक पैदल जाना चाहे या ई रिक्शा से। फतेहपुरी मज्सिद से सीधे हाथ पर खारी बावली की शुरुवात हो जाती है। आगे बढ़ते ही आपको खुद-ब-खुद महसूस हो जाएगा कि आप खारी बावली में कदम रख चुके हैं क्योंकि चारों ओर से आ रही मसालों की खुशबू सब बयान कर देती है।

ये है खारी बावली का इतिहास

खारी बावली को 1650 में मुगल सम्राट शाहजहाँ की पत्नी फतहपुरी बेगम ने बनवाया था। खारी बावली शब्द सुनने में जितना दिलचस्प लगता है उतना ही उम्दा ये बाज़ार हकीकत में भी है। खारी का अर्थ नमकीन है वहीं बावली से मतलब सीढ़ीनुमा कुआँ से है। यहाँ बनी बावड़ियों का प्रयोग जानवरों के स्नान के प्रयोग में लाया जाता था। समय और विकास के साथ बावड़िया कहीं गायब हो गयीं हैं अब उस जगह इतिहास समेटे खारी बावली मौजूद है।

आपकी रसोई में प्रयोग होने वाला दुर्लभ से दुर्लभ मसाला और ड्राई फ्रूट आपको खारी बावली में चुटकीयों में उपलब्ध हो जाएगा। हर प्रकार का ड्राई फ्रूट जैसे-फ्रूटबादाम, किशमिश मखाना, काजू, अखरोट, अंजीर, केसर, पिस्ता, खजूर, मूंगफली और न जाने कितने प्रकार के सूखे मेवे खारी बावली में आँख मूँद कर मिल जाते हैं। आपके ज़ेहन में ये सवाल जरूर आएगा कि ड्राई फ्रूट खरीदने के लिए खारी बावली जाने की जरूरत क्या है, वह तो कहीं से भी ले सकते हैं? पर आपको बता दें खारी बावली में आपको असली और बढ़िया गुणवत्ता का मेवा मिलेगा। कहीं और मेवा आसानी से उपलब्ध तो हो सकता है लेकिन खारी बावली का मेवा सबसे उम्दा और विश्वसनीय माना जाता है।

इसके अलावा खारी बावली मसालों को लेकर भी बहुत प्रसिद्ध है। हल्दी, धनिया पाउडर, काली-लाल मिर्च, जीरा, काला जीरा अमचूर पाउडर, हींग, जायफल और हर वह नायाब और दुर्लभ मसाला जिसका प्रयोग रसोई में किया जाता है वह खारी बावली में उत्तम गुणवत्ता के साथ मिल जाएगा आप यहाँ अपने बालों को चमकदार बनाने के लिए रीठा और अन्य प्रकार की जड़ी बूटीयाँ आदि भी खरीद सकते हैं।

400 साल पुरानी है दुकानें

पूरी खारी बावली मार्किट में आपको दुकानों के नाम भी बेहद दिलचस्प मिलेंगे। यहाँ स्थित कुछ दुकानों के नाम आज भी, चावल वाले 13, 21 नंबर की दुकान, 15 नंबर की दुकान आदि है इस ऐतिहासिक और पुराने बाज़ार को लगभग 400 वर्ष हो चुके हैं इसलिए यहाँ अधिकतर दुकानें खानदानी हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी यूँ ही चली आ रही है।

दिल्ली के आसपास और दूरवर्ती इलाकों से शायद ही कोई किराने की दुकान वाला हो जो खारी बावली से सामान न खरीदता हो। देश की विभिन्न उत्पादक मंडियों जैसे निजामाबाद से हल्दी, कोटा से धनिया, ऊंझा से जीरा, गुंटूर से लाल मिर्च, कोच्चि या मंगलूर से इलायची खारी बावली में उपलब्ध होती है।

यहाँ न सिर्फ देशी बल्कि अमेरिका, अफगानिस्तान जैसे देशों का भी ड्राई फ्रूट आसानी से मिल जाता है। दिन का चाहे कोई भी समय हो यहाँ आपको हर वक़्त लोगो की भीड़ आसानी से मिल जाएगी।

दीपावली जैसे त्यौहार के समय तो आप को यहाँ पैर रखने की भी जगह नहीं मिलेगी। फेस्टिवल के समय यहाँ तरह-तरह ड्राई फ्रूट की भारी डिमांड होती है। आपको अपनी आँखों के सामने जितना बाज़ार दिखेगा वह असल में यह बाज़ार उससे कही ज़्यादा बड़ा है।

यहीं दुकानों के ऊपर अलग-अलग मसालों और मेवे के गोदाम भी  बने हुए हैं। हर बाज़ार की अपनी अलग विशेषता होती है ठीक उसी प्रकार खारी बावली की विशेषता यहाँ मिलने वाले ख़ास मसालें और मेवे हैं।

इसलिए जब भी उम्दा और कुछ खास मेवे और मसालों की इच्छा हो तो पुरानी दिल्ली में खारी बावली एक बेहतरीन विकल्प है।

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Fatehpuri Masjid, Chandni Chowk, Delhi

Fatehpuri Masjid – दिल्ली की एक ऐसी मस्जिद जिसे कभी अंग्रेजों ने नीलाम कर दिया था

यूँ तो हमारे देश की पुरानी इमारतों और धरोहरों की अनगिनत खासियत हैं लेकिन एक चीज जो उन्हें बाकी सबसे अलग करती है वो है इनकी वास्तुकला।  कितने शासक आये और कितने गए लेकिन कुछ नहीं गया तो वो है यहाँ की इमारतों की अनूठी वास्तुकला  बनावट।  आज आपको हम इस ब्लॉग में ऐसी एक इमारत की वास्तुकला के दर्शन कराएंगे, जिसका नाम है फतेहपुरी मस्जिद। यह मस्जिद भले ही देश की अन्य जानी-पहचानी  और बड़ी मस्जिदों की तरह लाइम लाइट में न हो पर वक़्त के थपेड़े और बहुत से उतार-चढाव से गुजरी चाँदनी चौक की रौनक बढ़ाती फतेहपुरी मस्जिद  अपने आप में लाजवाब निर्माण कला की मिसाल है। सड़क के एक छोर पर बना है लाल किला और पश्चिम छोर पर फतेहपुरी मस्जिद। भीड़भाड़ वाली सड़कें पार करके जैसे ही आप फतेहपुरी मस्जिद के सामने पहुंचेंगे आपको ऐसा आभास होगा मानो सारी भागमदौड़ और शोर कहीं पीछे छूट गया हो।  380 साल पुरानी मस्जिद अपने अंदर न जाने कितने शासकों का इतिहास समेटे  हुए है जो इसे और भी अधिक दर्शनीय बनाता है।

ये है फ़तेहपुरी मस्जिद का इतिहास

चाँदनी चौक मेट्रो स्टेशन से 2 किलोमीटर दूर बनी फतेहपुरी मस्जिद का निर्माण 1650 में हुआ था। मस्जिद का निर्माण मुगल बादशाह की बेगम फतेहपुरी द्वारा करवाया गया था।  इसलिए मस्जिद का नाम फतेहपुरी मस्जिद पड़ा आपको बता दें मस्जिद के पास ही एशिया का सबसे बड़े मसालों का बाजार- खारी बावली भी है।

मस्जिद के इतिहास को लेकर विभिन्न कथाएँ हैं लेकिन माना जाता है कि 1857 में प्रथम भारतीय संग्राम के बाद अंग्रेजों ने मस्जिद को नीलाम कर दिया था।  उस समय राय लाला चुन्नामल ने मस्जिद को मात्र 11000 रुपय में खरीदा था।  जिनके वंशज आज भी चाँदनी चौक में चुन्नामल हवेली में रहते हैं।  1877 में लॉर्ड लिटन ने मस्जिद को वक्फ बोर्ड को सौंप दिया और यही बोर्ड आज तक मस्जिद संभाल रहा है।

जानिए मस्जिद की बनावट की खासियत

फतेहपुरी मस्जिद की खूबसूरती का मुख्य कारण है उसकी बनावट में इस्तेमाल लाल पत्थर। दिल्ली के लालकिला और जामा मस्जिद की तरह इसका निर्माण भी लाल पत्थरों से किया गया है। मस्जिद परंपरागत डिजाइन में है लेकिन इबादत हॉल की आकृति धनुषाकार है।  मस्जिद के बड़े  दरवाज़े से आप जैसे ही अंदर प्रवेश करेंगे विशाल परिसर आपका दिल जीत लेगा परिसर के बीच इस्लामी विद्वानों की  20 से अधिक कब्र हैं।  हजरत नानू शाह, मुफ्ती मोहम्मद, मज़हर उल्लाह शाह, मौलाना मोहम्मद आदि की कब्र मस्जिद में मौजूद है।

आपको बता दें मस्जिद में तीन विशाल दरवाजे हैं, जिसमें से 2 दरवाजे उत्तर में हैं और एक दक्षिण में।  आगे बढ़ते ही आपकी नजर सफेद संगमरमर से बने  एक पानी के कुंड पर जाएगी।  मस्जिद के दोनों तरफ लाल पत्थर से बने स्तंभों की कतारें हैं जो बिल्कुल बराबर संतुलन में बनी हुई हैं।  दो मंजिला मस्जिद में सात विशाल मेहराब बने हैं और यह दिल्ली की अकेली एकल गुंबददार मस्जिद है। इस्लाम धर्म के अनुयायी और लोग आज भी अपने दो प्रमुख त्योहारों ईद-उल-फितर और ईद-उल-जुहा ने बड़ी संख्या में फतेहपुरी मस्जिद पहुंचते हैं।

मस्जिद में बैठे एक मौलवी ने बताया की मस्जिद की बहुत मान्यता है, जिन लोगों पर अल्लाह का मेहरबानी होती है वही इस मस्जिद में प्रवेश कर पाते हैं और जो प्रवेश करता है अल्लाह उसे सारे दुखों से दूर रखते हैं। लेकिन अगर मस्जिद के रख रखाव की और थोड़ा विशेष ध्यान दिया जाए तो यह और भी सुन्दर  दिखाई दे।

लगभग 380 साल पुरानी धरोहर होने के बावजूद भी फतेहपुरी मस्जिद आज भी उतनी दमदार है जितनी अपनी शुरुवाती दौर में रही होगी। मस्जिद के अंदर हर दीवार पर उर्दू में अलग-अलग कलमें लिखें हुए हैं। और कुरान की करीब 100 प्रतियाँ रखी हुई हैं।

मस्जिद तो पुरानी दिल्ली की शान दुगनी करती ही है लेकिन मस्जिद आये लोगों के लिए बोनस है मस्जिद के बाहर मिलने वाला बढ़िया समान और स्वादिष्ट भोजन। क्योंकि देश के सबसे पुराने और प्रसिद्ध बाज़ारों में से एक में यह मस्जिद स्थित है।

निकटतम मेट्रो स्टेशन

यहाँ आने के लिए निकटतम मेट्रो स्टेशन चांदनी चौक है।

धर्म और मज़हब से ऊपर उठ कर अगर आप एक शानदार शांतचित और अपनी बनावट और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध ईमारत का दीदार करना चाहते हैं तो आपके  लिए फतेहपुरी मस्जिद परफेक्ट है।

 

Research by Geetu Katyal
Edited by Pardeep Kumar

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Culture Punjab

Maharaja Ranjit Singh Fort, Phillaur, Ludhiana

Ludhiana: महाराजा रंजीत सिंह के किले और डेरा बाबा मुराद शाह दरगाह के कारण वीरवार का दिन लुधियानवियों के लिए है बेहद खास

हर शहर की अपनी अलग खासियत होती है। यह खासियत खाने-पीने की चीजों से लेकर घूमने वाली जगहों से संबंधित भी हो सकती है। पंजाब का लुधियाना शहर जो देश भर में कपड़ा उद्योग और इंडस्ट्रियल कामकाज की वजह से जाना जाता है, इस शहर में आपको इनके अलावा भी बहुत कुछ देखने को मिलेगा। अगर आप लुधियाना के आसपास हैं या इस रुट से गुजर रहे हैं तो आप यहाँ की कुछ खूबसूरत जगहों का अच्छे से लुत्फ़ उठा सकते हैं। लुधियाना एक ऐतिहासिक शहर है, क्योंकि ऐतिहासिक स्मारक लोधी किला यही स्थित है। इस शहर को सन् 1480 में मुस्लिम शासक सिकंदर लोदी द्वारा सतलुज नदी के तट पर बसाया गया था, लोधी की वजह से शहर का नाम लुधियाना पड़ा। आज हम फाइव कलर्स ऑफ ट्रेवल के इस ब्लॉग में आपको लुधियाना की  प्रमुख जगहों से रूबरू करवाएंगे।

लुधियाना से 15 किलोमीटर के दायरे में आप एक साथ कई प्रमुख जगह घूम सकते हैं। सबसे पहले टाइगर सफारी, बुध विहार हार्डिस वर्ल्ड, शनि गांव, मैयाजी सरकार की दरगाह और महाराजा रणजीत सिंह किला, यह सब जगह आपको समराला चौक से फिल्लोर के रास्ते में मिल जाएंगी लेकिन ध्यान रहे इन सभी जगहों को घूमने के लिए आपको वीरवार का दिन ही चुनना होगा। तभी इन प्रमुख जगहों को घुमा जा सकता है।

महाराजा रंजीत सिंह किला

महाराजा रंजीत सिंह किले के अंदर प्रवेश करने के लिए किसी भी तरह की टिकट की आवश्यकता नहीं होती है। एंट्री बिल्कुल फ्री होती है। मुख्य द्वार पर पुलिस के जवान आपको टेंपरेचर चेक करने के बाद अंदर जाने देते हैं। किला अंदर से बहुत ही अद्भुत और विशालकाय दीवारों के साथ एक अलग ही नजारा पेश कर रहा था। किले के दरवाजे किसी फिल्मी किले से बिल्कुल भी कम नहीं थे। सच में  फिल्मों में दिखने वाले किलों से भी एक अलग नजारा वहां पर देखने को मिल रहा था आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि महाराजा जीत सिंह किला भी केवल वीरवार वाले दिन ही खुलता है, क्योंकि इसके अंदर भी दरगाह स्थित है।

जहाँ  श्रद्धालु वीरवार वाले दिन ही आते है। किले के अंदर बड़ा-सा दरवाजा पार करने के बाद दरगाह आती है। आसपास पुलिस का पहरा दिखाई देता है। किले के अंदर पुलिस प्रशिक्षण केंद्र भी है। फोटोग्राफी करने की यहां सुरक्षा कारणों की वजह से सख्त मनाही है।आप फोटोग्राफी नहीं कर सकते हैं हालांकि लोग छुप-छुपा के एक दो फोटो ले रहे थे। अंदर एक संग्रहालय भी है।

डेरा बाबा मुराद शाह, नकोदर

लुधियाना से लगभग 35 किलोमीटर दूर स्थित नकोदर में  डेरा बाबा मुराद शाह जी की दरगाह स्थित है जहाँ श्रद्धालुओं की खूब भीड़ उमड़ती है। अक्सर लुधियानवी वीरवार वाले दिन नकोदर घूमने जाते हैं। डेरा बाबा मुराद शाह जी की दरगाह का नजारा बहुत ही भव्य है।

बाबा मुराद शाह के बारे में कुछ रोचक बातें हैं जिसके कारण यह दरगाह दुनिया भर में प्रसिद्ध है। बताते हैं  ”बाबाजी बिजली बोर्ड दिल्ली में एसडीओ के पद पर तैनात थे, उनके साथ एक मुस्लिम महिला काम करती थी। बाबा मुराद शाह जी का नाम पहले विद्यासागर था, वह उस मुस्लिम महिला से बेइंतहा मोहब्बत करते थे। एक दिन उस मुस्लिम महिला की शादी किसी और से तय हो गई। बाबा जी ने उस मुस्लिम महिला को कहा कि वह शादी करना चाहते हैं। मगर मुस्लिम महिला ने यह कहकर शादी करने के लिए मना कर दिया कि वह मुस्लिम नहीं है,अगर शादी करनी है तो पहले मुसलमान बनना पड़ेगा। बस फिर क्या था मुस्लिम महिला की बात बाबा जी को इतनी चुभी कि उन्होंने नौकरी छोड़ दी और वापस अपने गांव नकोदर की ओर चल दिए। रास्ते में उन्होंने वारिस शाह की हीर पुस्तक खरीदी,उसके बाद बाबाजी की जिंदगी में नया मोड़ आ गया। हीर पुस्तक पढ़ते-पढ़ते बाबाजी नकोदर अपने घर के पास पहुंचे तो रास्ते में बाबा शेरेशाह जी ने उनको आवाज लगाते हुए कहा कि ओह विद्यासागर कहां जा रहे हो बाबा जी उनके पास गए, फिर शेरशाह जी कहते हैं “क्यों मुसलमान नहीं बनना है”। इतना सुनते ही बाबाजी सोच में पड़ गए। वह सोचने लगे कि आखिर उनको मेरा नाम और मेरी बातें कैसे पता चली। बाबा जी ने मन में सोचा कि यह जरूर कोई रूहानी इंसान हैं। इसके बाद बाबा जी ने कभी मुड़ कर पीछे नहीं देखा और घर वार छोड़कर शेरेशाह जी की शरण में आ गए। आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि बाबा शेरे शाह पाकिस्तान से आए हुए थे और जब वह पाकिस्तान लौट कर जा रहे थे तो जाते वक्त शेरे शाह जी ने कहा की मेरे जाने के बाद “तुम मेरे गद्दी के मालिक होगे और दुनिया तुम्हें मुराद शाह के नाम से जानेगी”। 24 साल की उम्र में बाबा मुराद शाह जी ईश्वर की भक्ति में इतना लीन हो गए कि मात्र 28 साल की उम्र में वह फकीर बन गए। मौजूदा समय में यहां की गद्दी पंजाबी सूफी गायक गुरदास मान के पास है।”(बाबा मुराद शाह वेबसाइट में छपे एक लेख के मुताबिक)

यहां पर वीरवार वाले दिन हजारों की संख्या में लोग आते हैं। यहां की साज-सज्जा बहुत ही अद्भुत है। वीरवार वाले दिन दरगाह में भंडारा दिन भर चलता रहता है। दरगाह के साथ ही बहुत बड़ी झील भी है जो कि मन को खूब शीतलता प्रदान करती है।

इस दरगाह तक आप बस और ट्रेन किसी भी तरह आसानी से पहुंच सकते हैं। लेकिन ट्रैन की की तुलना में आप यहाँ बस से आसानी से पहुँच सकते हैं।

 

Report by Pravesh Chauahan
Edited by Pardeep Kumar

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Bazar Delhi

Lajpat Nagar Central Market (New Delhi)

Lajpat Nagar Central Market (New Delhi) -आम से लेकर खास हर किसी की पसंदीदा मार्किट

Five Colors of Travel

शॉपिंग करना किसी के लिए भी एक अलग दुनिया में एंट्री करने जैसा होता है। जहाँ जाकर हम बस खरीदारी में डूब जाते हैं। देखा जाए तो शॉपिंग और मार्किट एक दूसरे के पूरक हैं। फाइव कलर्स ऑफ़ ट्रेवल का एक मकसद आपको देश भर के प्रसिद्ध और थोड़े यूनिक बाज़ारों से रूबरू करवाना भी है। बाजार दर्शन की इसी कड़ी में आज हम हाज़िर हैं दिल्ली की बेहद खास लाजपत नगर मार्किट के साथ। जहाँ जाकर आप न केवल बढ़िया खरीदारी करते हैं बल्कि खरीदारी करने के गुर भी सीख सकते हैं।

लाजपत नगर मार्किट

लाजपत नगर मेट्रो स्टेशन से कुछ मिनटों की दूरी पर स्थित सेंट्रल मार्किट में वह सब मिलेगा जो आप लेना चाहते हैं। 1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद लाजपत नगर में बहुत से लोगो ने शरण ली और यहीं से एक मार्किट की शुरुवात हुई, जिसको आज हम सेंट्रल मार्किट और लाजपत नगर मार्किट के नाम से जानते हैं। समय के साथ सेंट्रल मार्किट विकसित और विस्तारित होती गयी। आज सेंट्रल मार्किट न सिर्फ़ दिल्ली की बल्कि पूरे भारत की फेमस शॉपिंग मार्किट्स में से एक है।

मल्टी फ्लोर पार्किंग

अक्सर मार्केट्स में पार्किंग की समस्या का सामना करना पड़ता है लेकिन सेंट्रल मार्किट में मल्टी फ्लोर पार्किंग मौजूद है। जहाँ कोई भी रिसनेबल चार्ज में गाड़ी पार्क कर सकता है। पार्किंग के बाद सरगम, विजय सेल्स और वीवो जैसे बड़े-बड़े शोरूम आते हैं जहाँ मोबाइल, होम अप्लायंस और इलेक्ट्रॉनिक आइटम खरीदें जा सकता हैं। आगे बढ़ने पर आती है फेमस सिंधी ड्राई फ़ूड की दुकान जहाँ आपको बढ़िया, ओपन और पैक्ड दोनों तरह का ड्राई फ्रूट मिल जाएगा।

डेकोरेटिव आइटम्स का हब

थोड़ा आगे बढ़ने पर मिलता हैं डेकोरेशन का सामान। जहाँ फ्लावर पोट, गमलें, सीनरी और हर छोटी-बड़ी आकर्षित करने वाली आइटम आसानी से मिल जाती है। सड़क किनारे बिकने वाली ये डेकोरेटिव आइटम ऐसी लगती हैं मानो बेचने के लिए नहीं बल्कि सजाने के मकसद से रखी हुई हो। इसके बाद शुरू हो जाता है कपड़ों का संसार। सेंट्रल मार्किट अपने ट्रेंडी कपड़ों को लेकर सबसे अलग इमेज रखती है। आप चाहे कुछ भी इंडियन क्लोथ्स पहनते हों या वेस्टर्न, सेंट्रल मार्किट में आपको सब चुटकीयों में मिलेगा।

महंगी तो बिलकुल नहीं है ये मार्किट

इस मार्किट के बारे में एक मिथ है जो लोगों के बीच फैला हुआ है, कि सेंट्रल मार्किट में बहुत महंगे कपड़े मिलते हैं। जबकि ऐसा बिलकुल भी नहीं है,आपकों बता दें यहाँ आम आदमी से लेकर खास सभी बड़े इत्मीनान से शॉपिंग कर सकते हैं। इस मार्किट में कदम-क़दम पर आपकों 200-400 रुपय में सूट, टॉप और जीन्स आसानी से मिल जाएगी, वह भी बिल्कुल फैशनेबल इसके अलावा यहाँ आपके पास बार्गेनिंग का भी विकल्प मौजूद है जो कोई भी आसानी से मिनटों में कर सकता है।

शादियों की शॉपिंग हो या घर से जुड़ा छोटा-बड़ा सामान सेंट्रल मार्किट में सब कुछ मिलता है

 

अगर आप ब्रांडेड कपड़ों के शौकीन हैं तो भी सेंट्रल मार्किट आपके लिए परफेक्ट है जहाँ आपको लगभग सभी ब्रांड के शोरूम आसानी से मिल जाएंगे। सेंट्रल मार्किट में इंसेंस, चुनमुन, डब्लू, पीटर इंग्लैंड, मोंटे कारलो, किन्स, लक्की, नरगिस, क्यू, सीता फैब्रिक्स, रितु वियर्स, इनर सर्कल, मान्यवर, नारंग संस और बहुत सारे नामी शोरूम मौजूद हैं इन में से किस शोरूम में ज़्यादा भीड़ होती है, ये कहना मुश्किल है क्योंकि सारे लोगो से खचाखच भरे होते हैं।

इनके अलावा सेंट्रल मार्किट में कुछ ऐसे शोरूम भी हैं जो आपको किसी और मार्किट में आसानी से नहीं मिलेंगे। क्योंकि इन शोरूम में आपको अच्छी वैरायटी के अलावा सभी ब्रैंड के कपड़े मिल जायेंगे। आमतौर पर सेंट्रल मार्किट के रेगुलर कस्टमर यहीं से शॉपिंग करते हैं। आपकों बता दें इन शोरूम में क्वालिटी और प्राइज का बहुत अच्छे से ध्यान रखा जाता है। इसी तरह फुट वेयर के लिहाज़ से भी सेंट्रल मार्किट एक परफेक्ट प्लेस है। यहाँ आपको 150 रुपए में बढ़िया बेली या स्लीपर आसानी से मिल जाएगी। वहीं बड़े-बड़े शोरूम भी हैं जहाँ आप अपनी मनचाही ब्रैंड का फुट वेयर आसानी से खरीद सकते हैं। सेंट्रल मार्किट में स्टश, स्टीलाटोज़ और सोना जैसे शोरूम फुट वेयर के लिए फेमस हैं।

शादियों की शॉपिंग हो या घर से जुड़ा छोटा-बड़ा सामान सेंट्रल मार्किट में सब कुछ मिलता है। वह भी स्टाइलिश और ट्रेंडी लुक में। अब आप ही बताएँ इसके अलावा और क्या चाहिए? आपकों बता दें सेंट्रल मार्किट न सिर्फ़ शॉपिंग के लिहाज से परफेक्ट है बल्कि यहाँ के मोमोज़ और चाट भी बहुत फेमस है। सेंट्रल मार्किट घूमने के बाद कोई भी व्यक्ति इसे लाजपत नगर का दिल कहने में संकोच नहीं करेगा। सेंट्रल मार्किट सच में न जाने कितने लोगों का फैशन संजोये हुए है। ये मार्किट एक परफेक्ट उदाहरण है- बिज़नेस और लाइफस्टाइल दोनों का।

Edited by Pardeep Kumar

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Haryana Lifestyle

Sultanpur Bird Sanctuary

Sultanpur Bird Sanctuary: सुल्तानपुर नेशनल पार्क- खूबसूरत प्रवासी पक्षियों की आरामगाह

By Pardeep Kumar

नि:संदेह पक्षियों की फितरत है उड़ना और पक्षियों की तरह बेफ़िक्री से आसमान की सैर करना किसे पसंद नहीं होगा।  चाहे आप प्रकृति प्रेमी हैं या नहीं, लेकिन कभी न कभी आपके मन में भी यह ख्याल अवश्य आता-जाता रहता होगा कि काश हम भी इन पक्षियों की तरह एक जगह से दूसरे जगह और एक देश से दूसरे देश में उड़ सकते।आज हम इस ब्लॉग में आपको ले चलते है पक्षियों की उस आरामगाह में जहाँ इत्मीनान से वक़्त बिताने के लिए वो सैंकड़ों हज़ारों मील उड़कर आते हैं। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं देश की राजधानी दिल्ली से सटे हरियाणा के सुल्तानपुर नेशनल पार्क की जो देश भर में पक्षियों के स्वर्ग के रूप में अच्छा-खासा प्रसिद्ध है।

सुल्तानपुर नेशनल पार्क, गुड़गाँव-झज्जर हाईवे पर फर्रुखनगर के नजदीक स्थित है। दिल्ली एनसीआर में होने के कारण सुल्तानपुर नेशनल पार्क वीकेंड बिताने का एक बेहतरीन डेस्टिनेशन है। आप दिल्ली मेट्रो से यहाँ आना चाहें तो येलो लाइन से  हुडा सिटी सेंटर मेट्रो स्टेशन पर पहुँच कर, वहां से कोई निजी कैब या ऑटो बुक करके आप इस खूबसूरत पक्षी विहार तक पहुँच सकते हैं।अगर आप गुड़गाँव से जाएँ तो यह लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर है और दिल्ली से लगभग 42 किलोमीटर की दूरी पर।

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सुल्तानपुर जाने का सही समय

सुल्तानपुर बर्ड सैंक्चुअरी में वैसे तो आप साल भर कभी भी आ सकते हैं। लेकिन अक्टूबर से जनवरी के बीच यहाँ आने का सबसे उपयुक्त समय रहता है। दरअसल इसी समय देश विदेश के प्रवासी पक्षी यहाँ भरी तादाद में आते हैं और कुछ महीने उनका ठहराव यहीं होता है। दिसंबर-जनवरी के महीने में अक्सर यहाँ विदेशी पक्षी आवास करते हैं।

प्रवेश टिकट

यहाँ प्रवेश करने के लिए आपको दस रुपए का टिकट लेना पड़ता है। साथ ही अगर आप फोटोग्राफी के लिए कैमरा ले जाना चाहते हैं तो उसका भी नाममात्र का चार्ज है। कार पार्किंग के लिए बेहतरीन सुविधा है। टिकट खिड़की के सामने ही आप अपनी कार पार्क कर सकते हैं।

142.52 हेक्टेयर में फैले  इस बर्ड सैंक्चुअरी में आपको जन्नत-सी एक अलग ही दुनिया दिखाई देगी। प्रकृति प्रेमियों के लिए तो यहाँ सब कुछ है। इस नेशनल पार्क में थोड़ा अंदर चलते ही आपको मिलेगी पानी से लबालब झील, जिनके किनारे पेड़ों पर सुन्दर और दुर्लभ पक्षियों की अनेक प्रजातियां दिखाई देती हैं। देसी-विदेशी पक्षियों के अलावा आपको यहाँ नीलगाय, गाय, हिरण, लंगूर और  बन्दर जैसे अन्य जीव जंतु भी दिखाई देंगे। जो यहाँ के माहौल को एक अलग ही रंग रुप प्रदान करते हैं।

प्रवासी पक्षियों की प्रजातियां

पेलिकन, साइबेरियाई सारस, काले पंखों वाला स्टिल्ट, जलकाग, कॉमन ग्रीनशैंक्स, कुरजां आदि कुछ ऐसे प्रमुख प्रवासी पक्षियों की प्रजातियां हैं जो सर्दियों के मौसम में इस नेशनल पार्क में आपको अवश्य मिल जायेंगे। क्योंकि हम अभी नवंबर महीने के अंत में इस पार्क में गए तो हमें साइबेरियाई सारस की प्रजाति दिखाई दी।

झील के ऊपर लम्बी उड़ान भरता दिखने में बाज़ और चील जैसा विशालकाय यह पक्षी बेहद सुन्दर और आकर्षक लगता है।

आप जैसे ही इस पार्क के बीचो-बीच बनी सुन्दर सी झील के पास पहुँचते हैं आपको पक्षियों के चहचहाने की मधुर आवाज़ सुनाई देगी। देश विदेश के इन दुर्लभ पक्षियों के जमावड़े व अठखेलियों से नेशनल पार्क की खूबसूरती में चार चाँद लग जाते हैं। यहाँ आकर आपके मन को एक अलग ही सुकून का अनुभव होगा। दरअसल नवंबर दिसंबर के महीनों में झील के चारों और लगे पेड़ों पर फलों की तरह लदे ये पक्षी आपकी नज़रों को एक पल के लिए भी इधर उधर नहीं होने देंगे। वाईल्ड लाईफ फोटोग्राफर्स के लिए तो यह जगह जैसे कुदरत का एक नायाब तोहफा है। किस पल उनके कैमरे में कौन-सा दुर्लभ पक्षी कैद हो जाये कह नहीं सकते।

बेहद सिस्टेमेटिक ढंग से बना नेशनल पार्क

आपको बता दें सुल्तानपुर को 1972 में ‘वाटर बर्ड रिर्जव’ के रूप में घोषित किया गया जुलाई 1991 में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम के तहत  नेशनल पार्क का दर्जा दिया गया। इस बर्ड सैंक्चुअरी को बेहद सिस्टेमेटिक ढंग से बनाया गया है।

यहाँ पर बहुत सारी झाडि़याँ, घास के मैदान और बहुत अधिक संख्या में बोगनवेलिया सहित अलग -अलग किस्म के पेड़ पौधे हैं। प्रकृति की खूबसूरती और पक्षी विहार की गरिमा  को बरक़रार रखते हुए अभ्यारण्य में काफ़ी अच्छी सुविधाएँ उपलब्ध हैं।  इस नेशनल पार्क के अलग-अलग कोनों  पर पक्षियों की खूबसूरती को अच्छी तरह से निहारने के लिए चार वाच टावर बनाये गए हैं।  पर्यटकों की सुविधा के लिए यहाँ दूरबीन भी उपलब्ध हैं, जिसका प्रयोग करके आप दूर पेड़ों पर बैठे या झील में तैरते हुए पक्षियों को आसानी से देख सकते हैं।

आप जैसे ही टिकट लेकर गेट से अंदर प्रवेश करते हैं सबसे पहले आपको दिखाई देता है इंटरप्रटेशन सेंटर। जहाँ आप पक्षियों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। जहाँ आपको चिड़िया और मोर जैसे पक्षियों के खूबसूरत स्टेचू दिखाई देंगे। जो एक बार अवश्य ही आपको यहाँ एक गेस्ट हाउस और जंगल विश्राम घर की भी व्यवस्था है, साथ ही खाने और जलपान के लिए छोटा-सा रेस्टोरेंट भी है।

तो सोचिये मत, निकल पड़िये सुल्तानपुर नेशनल पार्क की और क्योंकि सर्दियों का समय आ चुका है और यह वही समय है जब प्रवासी पक्षियों का यहाँ शानदार जमघट लगना शुरू हो जाता है। जितनी ज्यादा सर्दी उतने सुन्दर पक्षी देखने का अवसर।

Glimpse of Sultanpur National Park……

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Jal Mahal Jaipur the Water Palace

Jal Mahal - झील के बीचों-बीच बना अनोखे सौन्दर्य और अद्भुत स्थापत्यकला का बेजोड़ उदाहरण

by Pardeep Kumar

अपनी यात्रा के अगले पड़ाव पर हम आ पहुंचे हैं राजस्थान के एक ऐसे शहर जो प्रेम, शांति और कला की अपनी एक अलग ही कहानी बयां करता है। कुछ शहर खूबसूरत होते हैं और कुछ सुन्दर बनने की चेष्टा करते हैं। लेकिन राजस्थान का जयपुर शहर तो शायद सुंदरता के लिए बनाया गया है जिसका नाम जेहन में आते ही मन गुलाबी हो उठता है। चाहे दिन का समय हो या रात का, इस शहर की चमक और बनावट मन से उतरती ही नहीं। चारों और अरावली की पहाडयों से घिरा, चौड़ी और साफ़ सुथरी सड़कों और अपने चमकीले और सैकड़ों साल पुराने बाज़ारों के कारण यह शहर किसी भी पर्यटक के मन को खुश करने में पूरी तरह सक्षम है। हमनें  अपने जयपुर ट्रिप में न केवल यहाँ के ऐतिहासिक और भव्य किलों को एक्सप्लोर किया बल्कि यहाँ की जीवन शैली, कल्चर, वास्तुकला, बाजार और खानपान को भी समझने की कोशिश की। इसी कड़ी में आज के इस ब्लॉग में हम आपको बता रहे हैं जयपुर की एक बेहद खूबसूरत जगह जलमहल के बारे में।

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कैसे पहुंचे जलमहल

झील के बीचोंबीच बना ये जलमहल राजस्थान के जयपुर जिले के आमेर मार्ग पर स्थित है, दिल्ली से लगभग 260 किलो मीटर और अजमेर से 146 किलो मीटर की दूरी पर बना ये महल पर्यटकों के आकर्षण का विशेष केंद्र है।

किस समय और किस मौसम में यहाँ आना बेस्ट रहता है

वैसे तो यह महल 24 घंटे खुला रहता है पर यहां आने का सबसे उपयुक्त समय सुबह दस बजे से रात नौ बजे तक है इस समय अधिकतर लोग यहां पिकनिक करने, क्वालिटी टाइम स्पेंड करने और सुबह शाम यहां के लोकल लोग वॉक करने भी आते हैं। यहां आने का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर से मार्च के बीच का है । दरअसल इन दिनों सर्दियों की खिली-खिली धूप में जल महल का नजारा बहुत ही अद्भुत और खूबसूरत लगता है।

जानिए जलमहल का इतिहास

पिंक सिटी जयपुर की ‘मानसागर’ झील के बीचों बीच बना ‘जलमहल’ अनोखे सौन्दर्य और अद्भुत स्थापत्यकला का बेजोड़ उदाहरण है। इस महल का निर्माण आज से लगभग 300 साल पहले आमेर के महाराज सवाई मानसिंह ने सन् 1799 में करवाया था। आपको बता दें यह पाँच मंज़िला इमारत और इस झील की सुंदरता उस समय के राजाओं के आकर्षण का केंद्र हुआ करती थी और राजा अक्सर नाव में बैठकर इस महल की सैर किया करते थे ।

जल महल की वास्तुकला

जलमहल एक पाँच मंज़िला इमारत है जिसकी 4 मंज़िल पानी के भीतर बनी हैं और एक पानी के ऊपर नज़र आती है। उस समय के राजा इस महल का उपयोग अपने मनोरंजन के लिए करते थे. धीरे-धीरे यहां राजाओं की आवाजाही कम हो गयी जिसके कारण यह महल लगभग 200 सालों के लिए वीरान हो गया। उसके बाद साल 2000 में इसकी मरम्मत का काम दोबारा शुरू किया गया और इसे दोबारा सैलानियों के लिए खोला गया। बाहरी परिसर से देखने पर आपको यू लगेगा मानो कोई विशाल नाव झील में उतरी हो।

जलमहल के किनारे लगने वाला शानदार बाजार

सैर सपाटे और घूमने के साथ-साथ यह क्षेत्र अब  लोगों के लिए आय का साधन भी बन गया है. यहां पर आपको राजस्थानी मोजड़ी, राजस्थानी जूती, हैंड बैग, होम डेकोरेटिव आइटम्स, ज्वेलरी और एडिशनल क्लोथ्स, मैग्नेट और भी कई डेली यूज़ के सामान मिलते हैं, इसी के साथ आपको यहां खाने-पीने के बहुत सारे आइटम भी मिल जाएंगे.

यहां पर स्पेशली आपको मैग्नेट के आइटम्स बेचते बहुत से पुराने परंपरागत लोग दिख जायेंगे साथ ही आप यहां पर ऊंट और घोड़े की सवारी का आनंद भी उठा सकते हैं ।

पिकनिक, नेचर लवर्स और क्वॉलिटी टाइम बिताने के लिए यह जगह एक बेहतरीन प्लेस है। आप यहां आकर पक्षियों और मछलियों को दाना देते हुए पहाड़ों के बीच में बनी इस झील के बेहतरीन नजारो का आनंद ले सकते हैं। बहुत से कपल्स यहां पर आपको राजस्थानी पोशाक में फोटो शूट करते हुए भी नजर आएंगे।

पिकनिक स्पॉट

वैसे जल महल का निर्माण आवासीय तौर पर ना होकर एक पिकनिक स्पॉट के तौर पर किया गया था. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जल महल के अंदर कोई कमरा नहीं है। और न ही कभी इस महल में राजाओं ने कभी रात्रि विश्राम नहीं किया। एक चीज जो इस महल को बेहद खूबसूरत और थोड़ा हटकर बनाती है वो है इस महल के अंदर बने गलियारे और छत पर बनाया शानदार बगीचा। इसकी खूबसूरत बनावट के कारण ही किसी जमाने में इसे ‘रोमांटिक महल’ के नाम से भी जाना जाता था।  महल की खासियत की बात करें तो तपते रैगिस्तान के बीच बसे इस महल में गरमी नहीं लगती, क्‍योंकि इसके कई तल पानी के अंदर बनाए गए हैं। आप आसानी से इस महल से पहाड़ और झील का ख़ूबसूरत नज़ारा भी देख सकते हैं। चांदनी रात में झील के पानी में इस महल का नजारा बेहद आकर्षक लगता है।

पक्षी विहार

जलमहल अब पक्षी विहार के रूप में भी विकसित हो रहा है। बताते हैं जल महल की  नर्सरी में तकरीबन एक लाख से ज्‍यादा पेड़ लगे हुए हैं। दिन रात बहुत से माली पेड़-पौधों की देखभाल में लगे रहते हैं। यह नर्सरी राजस्थान की सबसे उंचे पेड़ों वाली नर्सरी भी मानी  जाती  है।

रात के समय में ये महल न केवल अद्भुत रूप ले लेता है बल्कि रंग बिरंगी लाइटों से जगमग होकर हर किसी को अपनी खूसूरती का कायल भी बना लेता है। अगर आपकी जरा भी दिलचस्पी फोटोग्राफी में है तो जल महल आपके लिए एक बेहद सुन्दर और लाज़वाब जगह है। इस महल के आसपास के नज़ारे इतने आकर्षक हैं कि यह सिर्फ फोटो खींचने के लिए ही नहीं बल्कि आपको अपने फोटो खिंचवाने पर भी मजबूर कर देंगे।

 

some glimpse of Jal Mahal……..

 

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Amer Fort : राजस्थान की आन-बान और शान- आमेर का ऐतिहासिक किला

by Pardeep Kumar

गुलाबी शहर के नाम से प्रसिद्ध जयपुर से कोई विरला ही होगा जो वाकिफ न हो। भारत के सबसे बड़े राज्यों में से एक राजस्थान की राजधानी जो अपने खानपान से लेकर समृद्ध इतिहास, संस्कृति और कला के कारण भी दुनिया भर में फेमस है।

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कहा जाता है कि इस शहर को वेल्स के राजकुमार के स्वागत की खुशी में गुलाबी रंग से रंगा गया था और तभी से इसे गुलाबी शहर (पिंक सिटी ) के नाम से जाना जाता है। जयपुर शहर का नाम आते ही यहाँ के बड़े-बड़े और भव्य किले दिलोदिमाग में तैरने लगते हैं। और इन्हीं किलों में निसंदेह सबसे पहले जिस किले की छवि उभरती है वो है खूबसूरत आमेर का किला। राजस्थान के जयपुर शहर को और ज्यादा खूबसूरत बना देने वाला ये आमेर का किला, अम्बर किला के नाम से भी जाना जाता है। ये किला ना केवल जयपुर शहर बल्कि पूरे राजस्थान के शानदार पर्यटन स्थलों में से एक है। आमेर का किला इतना प्रसिद्ध है कि यहाँ पर हर रोज छह हजार से भी अधिक लोग घूमने के लिए आते हैं। यह किला राज्य की राजधानी जयपुर से 11 किलोमीटर की दूरी पर है।

आमेर जाने का सबसे अच्छा समय

अगर आप इस किले की खूबसूरती का आनंद लेना चाहते हैं, तो सर्दियों के समय में नवंबर से मार्च महीने के बीच यहां जाना सबसे अच्छा माना जाता है। इसका कारण ये है कि रेतीले राजस्थान में दिन के समय मौसम गर्म ही रहता है। ऐसे में धूप और सूरज की गर्मी कभी-कभी आपको बहुत ज्यादा परेशान कर सकती है। इसलिए बेहतर होगा कि आप सर्दियों में ही जयपुर जैसे शहर की यात्रा करने की प्लानिंग करें।

आमेर कैसे पहुंचे

इस किले तक पहुंचने के लिए जयपुर से बस, ऑटो-रिक्शा, टैक्सी या कैब ली जा सकती है। आप अजमेरी गेट और एमआई रोड से आमेर शहर के लिए रोडवेज या प्राइवेट बसों से भी जा सकते हैं। आमेर का किला एक पहाड़ी पर है, इसलिए किले का दीदार करने के लिए आपको किले के थोड़ी दूर पहले से ही या तो पैदल चलना होगा या फिर आप टैक्सी या जीप से भी किले के मुख्य द्वार तक पहुँच सकते हैं। या फिर आप अपनी पर्सनल गाड़ी से भी यहां जा सकते हैं। किले के मुख्य द्वार के पास थोड़ी सपाट चढ़ाई है, इसलिए अगर आप एक्सपर्ट ड्राइवर हैं तो ही अपनी पर्सनल गाड़ी से किले तक जाने का रिस्क लें। अगर आप सीजन के दौरान यहां जा रहे हैं, तो खुद की गाड़ी से जाने से बचना ही बेहतर होगा, क्योंकि ट्रैफिक जाम आपके लिए सिरदर्द साबित हो सकता है। हालांकि ऐसा सीजनल टाइम में ही ज्यादा होता है।

अंदर प्रवेश करके आप हाथी की सवारी का भी अपना आनंद और रोमांच ले सकते हैं। हाथी सवारी आपके लिए तब और ज्यादा फायदेमंद साबित हो जाती है, जब आप परिवार के साथ किला घूमने गए हो, हालांकि अगर आप हाथी की सवारी करते हुए किले की सैर करना चाहते है, तो एक हाथी की सवारी के लिए आपको लगभग 1000-1,200 रुपये का तक देना पड़ सकता है। याद रहे कि एक हाथी पर दो से ज्यादा पर्यटक सवार नहीं हो सकते। हाथियों की ये सवारी सुबह से ही शुरू हो जाती है।

टिकट और लागत

आमेर के किले के लिए विदेशी सैलानियों से 250 रुपये और भारतीयों सैलानियों से टिकट के 50 रुपये लिए जाते हैं। अगर आप स्टूडेंट हैं, तो जयपुर शहर की यात्रा करते समय अपना स्कूल या कॉलेज आईडी कार्ड ले जाना कभी मत भूलिए, किले की सैर के लिए मिलने वाली टिकटों पर स्टूडेंट्स को भारी छूट दी जाती है, इसके अलावा सात साल से कम उम्र के बच्चे के लिए यहां ज्यादातर जगहों पर टिकट निःशुल्क हैं।

आमेर के किले में टिकट काउंटर सूरज पोल के सामने जलेब चौक प्रांगण में मौजूद है। आप वहां एक ऑफिसियल टूरिस्ट गाइड भी ले सकते हैं। इसके अलावा लंबी लम्बी लाइनों से बचने के लिए आप टिकट ऑनलाइन भी खरीद सकते हैं।

आमेर का इतिहास

आमेर के किले की इतिहास की बात करें, तो यह कभी जयपुर रियासत की राजधानी हुआ करती थी। यह किला राजपूत शासकों का निवास स्थान हुआ करता था। मुगल सम्राट अकबर की सेना का नेतृत्व करने वाले महाराजा मान सिंह प्रथम ने 1592 में 11वीं सदी के किले के अवशेषों पर इसका निर्माण शुरू करवाया था।

राजस्थान में छह पहाड़ी किलों के समूह के हिस्से के रूप में किले को 2013 में यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट भी घोषित किया गया। इस किले की वास्तुकला राजपूत (हिंदू) और मुगल (इस्लामी) शैलियों का एक उल्लेखनीय उदाहरण है।

माना जाता है कि 967 ई. में मीणाओं के एक उप कुल में आमेर शहर और आमेर का किला राजा एलन सिंह चंदा द्वारा बसाया और बनाया गया था. चूंकि मीना अंबा माता की भक्त थीं, इसलिए उन्होंने अपने किले का नाम उनके नाम पर आमेर का किला रखा. पहाड़ी पर ऊंचे स्थान पर स्थित इस किले से माओटा झील दिखाई देती है, यह झील ही आमेर पैलेस के लिए पानी का मुख्य स्रोत है।

आपको बता दें आमेर और जयगढ़ किले को एक ही संरचना के रूप में माना जाता है, क्योंकि ये दोनों किले लगभग एक ही परिसर में हैं और खास बात ये कि एक ही भूमिगत मार्ग दोनों किलों को आपस में जोड़ता है। ऐसा माना जाता है कि किसी युद्ध के समय या जब कभी दुश्मन हमला कर दें तो उन हमलों से बचने के लिए इस मार्ग का उपयोग किया जाता था। किले का निर्माण सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक राजा मान सिंह प्रथम ने करवाया था। बाद में, अन्य राजपूत शासकों द्वारा इसका आगे विस्तार किया गया। अपनी अद्भुत वास्तुकला के साथ, जो मुगल और हिंदू शैलियों को जोड़ती है, लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर से बना किला, अपने उच्च प्राचीर, कई द्वारों, पत्थरों वाले रास्तों और शानदार दृश्यों के कारण खासा प्रसिद्ध है। वैसे आमेर का यह किला चार भागों में बँटा है जिसका प्रत्येक भाग अपने अलग प्रवेश द्वार और आंगन से सजा हुआ है।

आप किले के परकोटों या खिड़कियों से माओटा झील की खूबसूरती को निहार सकते हैं। बारिशों के बाद यह झील शानदार दिखती है इन्हीं खूबसूरत वजहों से यह किला जयपुर के प्रमुख आकर्षणों में से एक है, यही कारण है कि यहां लगभग बारहों महीने अच्छी खासी भीड़-भाड़ रहती है।

हालांकि भीड़-भाड से बचने का एक तरीका ये भी है कि वीकेंड्स से अलग दिनों में यहां आया जाए। तब निसंदेह आप यहाँ आकर और भी बेहतर महसूस करेंगे, और इत्मीनान से इस किले की अद्भुत निर्माण कला का आनंद ले पाएंगे।

यह किला बड़ा है इसलिए कुछ एहतियात अवश्य बरतें 

किले के विशाल परिसर की सुंदरता का आनंद लेने के लिए ध्यान रखें कि आपने आरामदायक जूते और कपड़े पहन रखें हों। क्योंकि यह किला काफी बड़ा है इसलिए पानी की बोतलें, शेड्स और हैट या कैप अपने साथ जरूर रखें। आपको जानकार अवश्य ही अच्छा फील होगा कि परिसर के भीतर विश्राम कक्ष और कैफे मौजूद हैं, घूमते-घूमते थक जाएँ तो इनका आनंद भी लिया जा सकता है और एनर्जी बूस्ट की जा सकती है।

यह एक ऐसा स्थान है, जहां हर भारतीय और हर कला प्रेमी को जरूर जाना चाहिए, क्योंकि यह अद्भुत कलात्मक चमत्कारों से भरा है, चाहे इसकी पेंटिंग हो, दीवारों की खूबसूरत नक्काशी हो, या फिर किले की वास्तुकला हो। आपको रिझाने के लिए यहाँ लगभग सब कुछ है।

और क्या देख सकते हैं यहां

यहां मौजूद अंबर फोर्ट पैलेस इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देता है. किले के भीतर मुख्य परिसर में दीवान-ए-आम, जनता के लिए एक हॉल, दीवान-ए-खास, निजी दर्शकों के लिए एक अलग हॉल और शानदार शीश महल, जय मंदिर, सुख निवास महल आदि मौजूद है। आप किले का दीदार करते करते इन शानदार इमारतों के कारण आपने आप को एक अलग ही दुनिया में महसूस करोगे।

शीश महल

जैसे ही आप शीश महल में जायेंगे आपको हैरान कर देने वाली नक्काशी दिखाई देगी, जिसे ‘जादुई फूल’ के रूप में जाना जाता है. इसे महल के एक स्तंभ पर संगमरमर के पैनल पर उकेरा गया है. इस पर कमल, शेर की पूंछ, बिच्छू, हुड वाला कोबरा, मछली की पूंछ, सिल या मकई और एक हाथी की सूंड सहित सात सुंदर डिजाइन उकेरे गए हैं. हर एक डिज़ाइन को देखने के लिए आपको पैनल को अपने हाथों से आंशिक रूप से ढंकना होगा. यह नक्काशी एक कलात्मक चमत्कार से कम नहीं लगती.

शीश महल आमेर किले के मुख्य आकर्षणों में से एक है, जिसमें चारों ओर दर्पण और रंगीन कांच का प्रयोग किया गया हैं। यहां अगर एक भी मोमबत्ती जलाई जाती है, तो शीश महल के अंदर हजारों दर्पणों में उसके प्रतिबिंब हजारों सितारों की तरह दिखाई देते हैं। अद्भुत कारीगरी का बेहतरीन नमूना है ये शीश महल।

बलुआ पत्थर और संगमरमर से बने, एम्बर किले में चार आंगनों, महलों, हॉल और उद्यानों की एक श्रृंखला है। आपको इसके प्रवेश द्वार पर एक प्रमुख प्रांगण दिखाई देगा, जिसे जलेब चौक के नाम से जाना जाता है। यहीं पर राजा के सैनिक इकट्ठे होते थे और चारों ओर परेड करते थे। सूरज पोल और चांद पोल इस प्रांगण में आते हैं।

किले के अंदर जलेब चौक प्रांगण से आप इसकी आलीशान सीढ़ियों से दूसरे प्रांगण में पहुंचेंगे जिसमें दीवान-ए-आम है, जहाँ आपको अनेक स्तम्भ दिखाई देंगे ।

किले के पीछे चौथा प्रांगण और मान सिंह का महल है, जो कि महिलाओं के लिए बनाया गया था। किले के सबसे पुराने हिस्सों में से एक, यह 1599 में बनकर तैयार हुआ था। इसके चारों ओर कई कमरे हैं जहाँ राजा अपनी सभी पत्नियों को रखते थे और जब चाहें उनसे मिलने जाते थे। इसके केंद्र में एक मंडप है, जहां रानियां मिलती थीं। आंगन का निकास आमेर शहर की ओर जाता है।

राज्य के समृद्ध इतिहास, परंपरा और संस्कृति को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से आमेर किले में हर शाम लाइट एंड साउंड शो दिखाया जाता है। अधिकतर टूरिस्ट स्पेशली यह शो देखने भी आते हैं। यह शो लगभग 50 मिनट तक चलता है। टूरिस्ट्स  को इस शो के लिए अलग से टिकट लेनी होगी।

आमेर किले में पर्यटकों के लिए मीना बाजार भी बनाया गया है जहाँ से देसी विदेशी पर्यटक अलग-अलग तरह के परफ्यूम, राजस्थानी ज्यूलरी, परम्परागत परिधान और अन्य होम डेकोरेटिव आइटम्स भी खरीद सकते हैं। राजस्थान के इस सबसे भव्य और आकर्षित किले में कई सुपरहिट हिंदी फिल्मों जिसमें बाजीराव मस्तानी, शुद्ध देसी रोमांस, मुगले आजम, भूल भुलैया, जोधा अकबर आदि शामिल हैं, की भी शूटिंग हो चुकी है।

 

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