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भारत के समृद्ध इतिहास के गवाह हैं नालंदा विश्वविद्यालय के ये खंडहर

अगर आप भी ऐतिहासिक धरोहरों (Historical monuments) को देखने और उनके इतिहास के बारे में समझने की चाहत रखते हैं तो, आपको बिहार के नालंदा विश्वविद्यालय को देखना और समझना भी काफी पसंद आएगा। ऐसा विश्वविद्यालय जिसे पूरे दुनिया में ज्ञान का केंद्र माना जाता था, आज वह मात्र एक वर्ल्ड हेरिटेज साइट (World Heritage Site) के रूप में सिमट कर रह गया है। आइए जानते हैं इस विश्वविद्यालय के विनाश की कहानी और आप कैसे यहां घूमने जा सकते हैं इसके बारे में।
आइए जानते हैं नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में (Lets know about Nalanda University):-

किसने बनवाया ? who was the Founder of Nalanda University?
यह विश्वविद्यालय ना सिर्फ भारत बल्कि संपूर्ण संसार के प्राचीनतम विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है। इस विश्वविद्यालय का निर्माण गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त ने पांचवी सदी में करवाया गया था। बाद में कुमारगुप्त के उत्तराधिकारियों (successors) ने इसे सहेज कर रखा। गुप्त वंश के पतन (Downfall) के बाद आने वाले दूसरे शासकों ने भी इसके विकास में सहयोग दिया। इसे महान सम्राट हर्षवर्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण (Protection) मिला।

  • विश्वविद्यालय का निर्माण मुख्यतः तीन राजाओं के द्वारा करवाया गया था। जिसमें पहले राजा थे कुमारगुप्त जिन्होंने इसकी पहली मंजिल का निर्माण करवाया था और इस विश्वविद्यालय की नींव (foundation) रखी थी। कुमारगुप्त एक महान शासक थे और उनका राज्य मगध कहलाता था। मगध की राजधानी राजगृह होती थी जो नालंदा विश्वविद्यालय से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। राजगृह आज के समय में राजगीर कहलाता है और बिहार के प्रमुख पर्यटन स्थलों (major tourist destinations) में से एक है।
  • दूसरे थे कन्नौज के राजा हर्षवर्धन जिन्होंने सातवीं शताब्दी में इसकी दूसरी मंजिल का निर्माण करवाया और इसके बाद नालंदा विश्वविद्यालय पूरे दुनिया में प्रसिद्ध (Famous) हो गया।
  • इसके बाद तीसरे थे बंगाल के राजा देव पाल, जिन्होंने 9वीं शताब्दी में इसकी तीसरी मंजिल का निर्माण करवाया। जिसके बाद इस विश्वविद्यालय को दुनिया भर में और ज्यादा प्रसिद्धि (fame) मिल गई।

किसने खोजा? Discovery of Nalanda University

19वीं शताब्दी में एक अंग्रेज (Englishman) को नालंदा में पढ़ रहे एक चीनी यात्री की डायरी मिली। जब वह उस डायरी (diary) में लिखे पते पर पहुंचा तो वह चारों ओर वीरान खंडहर (deserted ruins) थे। वहाँ टहलते हुए अंग्रेज ने देखा कि वहां कुछ चौथी शताब्दी के बने ईट के अवशेष हैं। फिर उसने हल्के हाथों से उस जगह को कुरेद (scrape) कर देखा तो उसे एक के बाद एक सजी हुई ईटों की श्रंखला (series) दिखाई दिया। उसके बाद उसने हीं वहां की खुदाई (digging) प्रारंभ करवाई और इस प्रकार खोज हुआ विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालय, नालंदा विश्वविद्यालय की।

19वीं सदी में नालंदा विश्वविद्यालय की खुदाई के समय सिर्फ 5% भाग हीं खुदाई करके बाहर निकाला गया। फिर इसकी खुदाई का काम रोक दिया गया। लेकिन नरेंद्र मोदी की गवर्नमेंट (Goverment) के नेतृत्व में 2016 में इसकी खुदाई और पुनरुद्धार (Restoration) का काम प्रारंभ किया गया। आज के समय में नालंदा विश्वविद्यालय भारत के प्रमुख ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों में से एक है। यूनेस्को (UNESCO) ने भी इसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट के रूप में मान्यता दी है।

नालंदा विश्वविद्यालय में 1500 से अधिक शिक्षक थे और 10,000 से अधिक छात्र पढाई किया करते थे। यहां विश्व के कोने-कोने से विद्यार्थी पढ़ने आते थे।
यहां छात्रों के रहने के लिए 300 से अधिक कमरे बने हुए थे। सभी कमरे में रोशनी की व्यवस्था थी। विद्यालय के परिसर में जगह जगह पढ़ने का स्थान, प्रार्थना का प्रांगण (prayer hall) और स्टडी हॉल (study hall) बने हुए थे। एक कमरे में एक या एक से अधिक छात्रों के रहने की व्यवस्था थी।
इन कमरों का प्रबंधन (management) संस्थानों और छात्र संगठनों (Institutions and student organizations) के द्वारा संभाला जाता था।

नालंदा विश्वविद्यालय के नजदीक हीं एक म्यूजियम बनवाया गया है। यहां पर नालंदा विश्वविद्यालय की खुदाई से मिलने वाले मूर्तियों और अवशेषों को संरक्षित करके रखा गया है। इसमें कई तरह की बुद्ध की काँसे की मूर्तियां भी शामिल हैं।

कैसे पहुंचे? how to reach?

अगर आप नालंदा आना चाहते हैं तो नालंदा का सबसे करीबी हवाई अड्डा पटना में स्थित जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा (Jaiprakash Narayan International Airport) है। जहां से नालंदा शहर की दूरी लगभग 90 किलोमीटर है। आपको बता दें कि पटना का जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, चंडीगढ़, देहरादून, जयपुर, अहमदाबाद और कोयंबटूर के साथ-साथ देश के काफी सारे अन्य हवाई अड्डों से जुड़ा हुआ है। जिसकी वजह से आपको फ्लाइट (Flight) से पटना पहुंचने में कोई भी तकलीफ नहीं होगी।

नालंदा का सबसे करीबी रेलवे स्टेशन नालंदा जिला में ही स्थित है। लेकिन नालंदा रेलवे स्टेशन के लिए आपको सिर्फ नालंदा के नजदीकी रेलवे स्टेशन पटना, दानापुर, गया, बिहार शरीफ और राजगीर से ही ट्रेन की सुविधा मिल पाएगी। अगर आप इन शहरों से जुड़े हुए हैं, तो आप आसानी से अपने शहर से ट्रेन पकड़ कर नालंदा पहुंच सकते हैं और नालंदा शहर को विजिट कर सकते हैं। लेकिन अगर आपके शहर से नालंदा के लिए डायरेक्ट (Direct) ट्रेन की सुविधा उपलब्ध नहीं है तो आपको अपने शहर से गया या पटना जंक्शन के लिए ट्रेन पकड़नी होगी।

अगर प्राचीनतम इमारतों को देखने और उसके बारे में जानने में आपकी भी रुचि है, तो इस जगह पर आना आपके लिए बेहद ही रोमांचक सफर साबित होगा।

ताजमहल के उन बंद 22 कमरों की वह अनकही बातें जो शायद हीं आपको पता होगी,,,,

ताजमहल प्यार की एक निशानी ( Taj Mahal the Significance of Love)

कहते हैं मोहब्बत के बिना जिंदगी अधूरी है और ऐसी हजारों किस्से कहानियां हैं जो मोहब्बत के सही मायने को बताते हैं। उन्हीं हजारों कहानियों में से एक कहानी है शाहजहाँ और मुमताज बेगम की कहानी। जिसकी गवाही दुनिया का सातवां अजूबा ताजमहल देता है। संगमरमर के सफेद पत्थरों पर लिखी गई मोहब्बत की ऐसी कहानी जो ना सिर्फ लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है, बल्कि यह कहानी लोगों को हैरान भी करती है। आज इस ब्लॉग में हम आपको मुमताज के लिए शाहजहां की मोहब्बत की निशानी ताजमहल के बारे में कुछ ऐसे राज बताएंगे जिनके बारे में आपमें से बहुत कम लोगों को ही पता होगा।

ताजमहल को मोहब्बत की निशानी (significance of love) के तौर पर देखा जाता है। किसी के लिए यह एक ऐतिहासिक स्मारक है तो, किसी के लिए यह एक मोहब्बत की निशानी है। कोई यहां सिर्फ इसकी खूबसूरती की वजह से घूमने जाता है तो किसी को ताजमहल से जुड़े उन रहस्यों के बारे में दिलचस्पी है, जिन पर चर्चा तो होती है लेकिन वह आज भी अनसुलझे (unresolved mysteries) हैं। अपनी बेहतरीन खूबसूरती के लिए यह स्मारक दुनिया भर में प्रसिद्ध है और हर साल देश-विदेश से हजारों लाखों पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

इतिहास (History) :

ताजमहल के इतिहास के बारे में बात की जाए तो इस मकबरे (tomb) को मुगल बादशाह(Mughal Emperor) शाहजहाँ ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद और प्यार में बनवाया था। इस मकबरे का निर्माण 1632 में करवाया गया था। बताया जाता है कि शाहजहाँ ताजमहल के निर्माण के बाद उसके सामने काले ताजमहल (Black Taj Mahal) का निर्माण करवाना चाहते थे। लेकिन उनके बेटे औरंगजेब ने उन्हें आगरा के किले में हाउस अरेस्ट करके रख दिया था। अगर ताजमहल के आधुनिक इतिहास की बात की जाए तो इसे 1983 में यूनेस्को ने विश्व विरासत स्थल (world heritage site) के तौर पर चुना। साथ ही साथ इसे 2007 में दुनिया के सातवें अजूबे की उपाधि भी मिली।

ताजमहल के वास्तुकला का महत्व (Architectural value of the Taj Mahal)

अगर आर्किटेक्चर (architecture) की बात की जाए तो भारत में ताजमहल के जितना भव्य (grandeur) शायद ही कोई दूसरा ऐतिहासिक धरोहर होगा। अगर ताजमहल के नक्काशी के बारे में बात किया जाए तो इसमें पारसी इस्लामी और भारतीय वास्तुकला का मिला जुला प्रभाव देखने को मिलता है। ताजमहल को यमुना नदी के दक्षिणी तट पर बनवाया गया है। इसके निर्माण में सफेद संगमरमर का इस्तेमाल किया गया है। जो इसकी सुंदरता (beauty) में चार चांद लगाते हैं।

ताजमहल की चारों मीनारें बाहर की तरफ झुकी हुईं हैं। इनको बनाते समय ही बाहर की तरफ झुका हुआ बनाया गया था। इसका कारण यह बताया जाता है कि अगर कभी भूकंप (earthquake) आने पर ये मीनारें गिरेंगे तो वह ताजमहल के मुख्य गुंबद को हानि नहीं पहुंचाएंगे। ताजमहल के आसपास चारबाग भी है। जो पानी के नलों से 4 भाग में बँट जाते हैं। इस बाग को इस तरह से बनाया गया है कि यह बाग ताजमहल की खूबसूरती को कई गुना ज्यादा बढ़ा देता है। हरे-भरे घास के मैदान चमकीले फूल और यहां का शांत माहौल पर्यटकों को जहां बैठकर आराम करने और फोटोग्राफी करने के लिए आकर्षित (Attracts) करते हैं।

ताजमहल को बनवाने में शाहजहाँ को 22 साल का समय लग गया। इसका निर्माण कार्य 1631 में शुरू हुआ था और 1653 में यह बनकर तैयार हुआ था। बताया जाता है कि ताजमहल के निर्माण में 20000 से भी ज्यादा मजदूरों को काम पर लगाया गया था। ताजमहल के आर्किटेक्चर में भारतीय, फारसी और इस्लामिक शैली की कारीगरी दिखने का कारण यह भी है कि ताजमहल के निर्माण के लिए जिन मजदूरों को चुना गया था। उनमें भारतीय मजदूरों के साथ-साथ कुछ तुर्की और फारसी मजदूर भी थे। इसलिए ही तीन अलग-अलग संस्कृतियों के मेल से यह शानदार(magnificent) मकबरा (tomb) बनकर तैयार हुआ।

ताजमहल से जुड़ी कुछ अनकही बातें (Untold things about Taj Mahal)

जब आप ताजमहल में एंटर करेंगे तो आपको वहां दो कब्र दिखेंगे। पर्यटकों को लगता है कि यह शाहजहाँ और मुमताज का असली कब्र है। लेकिन ऐसा नहीं है। शाहजहाँ और मुमताज का असली कब्र मुख्य गुंबद के नीचे है। जहां तक जाने के लिए नीचे की ओर सीढ़ियां बनाई गईं हैं। जो आम दिनों में हमेशा बंद रहते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि यह कब्र वाला कमरा हमेशा ही बंद रहता है। हर साल उर्स (Urs festival) के मौके पर पर्यटकों के लिए उस कमरे को खोला जाता है। तब आप वहां जाकर असली कब्र को देख सकते हैं।

ताजमहल के 22 बंद कमरों में दफन हैं कई राज (Secrets buried in the 22 locked rooms of Taj Mahal)

ताजमहल के नीचे कुल 22 कमरे हैं। जिन्हें सामान पर्यटकों के लिए खोला नहीं जाता है। यह कमरे बंद रहने के कारण से पर्यटकों के बीच उत्सुकता का कारण बनते हैं। यहां आने वाले लोगों को इन कमरों में छिपे रहस्यों (mysteries) को जानने में काफी दिलचस्पी (interest) होती है।

बताया जाता है कि इन कमरों को समय-समय पर साफ सफाई के लिए खोला जाता है। वैसे तो इन कमरों के ऊपर कई बार काफी विवाद हुआ है और इसे संप्रदायिकता (secularism) से भी जोड़ा गया है, लेकिन अगर रिसर्च की माने तो ताजमहल के नीचे के कमरे ताजमहल से लेकर नदी तक एक लाइन में बनाए गए हैं। जिनमें कुछ अंडर ग्राउंड (Under Ground) कमरे भी हैं। ये कमरें मुगल काल के स्थापत्य कला के प्रमुख (prominent) उदाहरण हैं। बताया जाता है कि पाकिस्तान के लाहौर में भी एक महल से नदी तक लगातार लाइन में कमरे बनाए गए थे।

शोधकर्ताओं (researchers) का मानना है कि इस तरह से बनाए गए कमरों का इस्तेमाल एक हवादार कमरे की तरह होता था। ताजमहल के नीचे के कमरों में भी बेहतरीन नक्काशी की गई है। यहां की खिड़कियों के जालियों पर काफी महीन नक्काशी उकेरी गई है। जो मुगल काल के वास्तुकला का एक नायाब नमूना है।

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Vatican Museum-Largest and Most Visited Museums in the World



The Vatican Museum is a world-renowned museum located within the Vatican City in Rome, Italy. It is one of the largest and most visited museums in the world, with a collection that spans thousands of years of history and encompasses many different cultures and art forms. Visitors from around the globe flock to the Vatican Museum each year to experience its vast array of treasures, from ancient sculptures and paintings to religious relics and tapestries.

The Vatican Museum is a testament to the cultural richness of the Catholic Church and its role in shaping the artistic and cultural heritage of Western civilization. The museum’s origins date back to the early 16th century when Pope Julius II began collecting works of art to display in the Vatican Palace. Over the centuries, subsequent popes continued to acquire new pieces and expand the collection, eventually leading to the creation of the Vatican Museum in the early 19th century.


Vatican is incomplete without a visit to the museum


If you’re planning a visit to Vatican City, securing Vatican Museum tickets is a must. With over 20,000 works of art and countless masterpieces, the Vatican Museums offer an unforgettable cultural experience. From the awe-inspiring Sistine Chapel to the mesmerizing Raphael Rooms, a trip to the Vatican is incomplete without a visit to the museum. Be sure to book your Vatican Museum tickets in advance to avoid the long queues and make the most of your visit.

Today, the Vatican Museum houses a vast collection of art and artifacts, ranging from ancient Egyptian and Greco-Roman sculptures to Renaissance masterpieces and modern artworks. Visitors can explore over 50 galleries, each dedicated to a specific era or style, and admire works by some of the greatest artists of all time, including Michelangelo, Raphael, Caravaggio, and Bernini.

One of the highlights of the Vatican Museum is the Sistine Chapel, a masterpiece of Renaissance art and one of the most famous landmarks in Rome. The chapel was commissioned by Pope Sixtus IV in the late 15th century as a venue for papal ceremonies and is renowned for its stunning frescoes, most notably Michelangelo’s ceiling depicting scenes from the Book of Genesis. The Sistine Chapel is also home to several other works by Renaissance masters, including Botticelli, Perugino, and Ghirlandaio.

Gallery of Maps

Another popular attraction in the Vatican Museum is the Gallery of Maps, a long hallway lined with a series of large, intricate maps of Italy and its regions. Commissioned by Pope Gregory XIII in the late 16th century, the maps are an impressive example of the Renaissance cartography and provide a fascinating glimpse into the geography and culture of Italy at the time.

Other notable galleries in the Vatican Museum include the Pinacoteca, which houses a collection of Renaissance and Baroque paintings by Italian masters such as Raphael, Caravaggio, and Titian, and the Egyptian Museum, which features a vast collection of artifacts from ancient Egypt, including mummies, sarcophagi, and hieroglyphic inscriptions.

Visiting the Vatican Museum can be an overwhelming experience due to the sheer size and scale of the collection. To make the most of your visit, it’s recommended to plan ahead and purchase tickets in advance, as queues can be long and waiting times can be upwards of several hours. Visitors also have the option of booking a guided tour, which can provide a more in-depth and informative experience of the museum and its artworks.

In addition to its impressive collection of art and artifacts, the Vatican Museum is also home to a number of other fascinating sites and attractions. These include the Vatican Gardens, a sprawling network of landscaped gardens and parks that covers over half of the Vatican City and provides a peaceful oasis away from the crowds of the museum.

Another must-see attraction in the Vatican City is St. Peter’s Basilica, one of the largest and most impressive churches in the world. Located adjacent to the Vatican Museum, the basilica was designed by some of the greatest architects of the Renaissance, including Michelangelo and Bernini, and is adorned with countless works of art and religious iconography.


Apostolic Palace

The Apostolic Palace is one of the most significant and iconic buildings in the world, located within the Vatican City in Rome, Italy. It is the official residence of the Pope, the spiritual leader of the Roman Catholic Church, and has been the center of papal power for centuries.

The palace complex is a vast network of buildings and structures that cover over 55,000 square meters and includes numerous chapels, apartments, offices, and administrative areas. It also houses some of the most important and historically significant artworks and artifacts in the world, including the Sistine Chapel, the Raphael Rooms, and the Vatican Library.

The history of the Apostolic Palace dates back to the early days of the Catholic Church, when the first popes lived in modest accommodations near the Basilica of St. Peter. Over time, as the power and influence of the papacy grew, so too did the need for a more substantial and secure residence. The current palace complex was constructed in the 16th century during the reign of Pope Sixtus V and has been expanded and renovated numerous times since then.

One of the most famous and impressive parts of the Apostolic Palace is the Sistine Chapel, which is widely regarded as one of the greatest masterpieces of Renaissance art. The chapel was commissioned by Pope Sixtus IV in the late 15th century and was decorated with frescoes by some of the most celebrated artists of the time, including Michelangelo, Botticelli, and Perugino. Michelangelo’s ceiling fresco, depicting scenes from the Book of Genesis, is considered one of the greatest works of art ever created and attracts millions of visitors each year.

Another significant part of the Apostolic Palace is the Raphael Rooms, a series of four interconnected rooms decorated by the famous Renaissance artist Raphael and his workshop. The rooms are adorned with a stunning array of frescoes, depicting scenes from classical mythology, biblical stories, and historical events, and are considered some of the finest examples of Renaissance art in the world.

The Vatican Library is another essential part of the Apostolic Palace, containing one of the most extensive and valuable collections of books and manuscripts in the world. The library dates back to the 15th century and holds over 1.5 million volumes, including rare and priceless works of art and literature. The library is also home to a number of significant historical artifacts, including ancient maps, globes, and scientific instruments.

In addition to its cultural and historical significance, the Apostolic Palace also serves as the administrative center of the Catholic Church, housing numerous offices and departments that oversee the day-to-day operations of the Vatican. These include the Secretariat of State, which handles the Pope’s diplomatic and political affairs, and the Congregation for the Doctrine of the Faith, which is responsible for promoting and safeguarding Catholic doctrine and tradition.

The Apostolic Palace also plays a vital role in the life of the Catholic Church, serving as the site of numerous important religious ceremonies and events. These include the election of a new Pope, which takes place in the Sistine Chapel, and the annual Christmas and Easter Masses, which are celebrated by the Pope in St. Peter’s Basilica.

Visiting the Apostolic Palace can be an awe-inspiring experience, as visitors have the opportunity to witness some of the most significant and influential works of art and architecture in the world. The palace is open to the public on a limited basis, with guided tours available that provide a comprehensive overview of the history and significance of the complex.

In conclusion, the Apostolic Palace is a vital symbol of the Catholic Church’s spiritual and cultural heritage, as well as an essential center of power and authority for the world’s 1.3 billion Catholics. Its rich history and architectural grandeur continue to inspire and captivate visitors from around the world.

Vatican Museums’ Ticket Price

While one can also book Vatican museum tickets online from the Vatican Museums’ official website.

The price break-up per person:

Adults: €16 or INR 1,280 approx.
Children: 8€ or INR 640 approx.
Students: 8€ or INR 640 approx
The entrance is free on the last Sunday of every month

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Taj Mahal-One of Seven Wonders

Taj Mahal: मोहब्बत और तहज़ीब की अनोखी विरासत – ताज महल

by Pardeep Kumar

दुनिया में कितनी ही अनगिनत जगह हैं जिन्हें ज़िंदग़ी में एक बार देख लेना भी किसी सपने के मुक़्क़मल होने से कम नहीं लगता। ऐसी ही नायाब जगहों में से एक है ताज महल।(Taj mahal)

देश की राजधानी से मात्र 234 किलोमीटर की दूरी पर बसा आगरा शहर न केवल ऐतिहासिक है बल्कि सदैव देश की सियासत का अहम् केंद्र भी रहा है। और आगरा को दुनिया भर में शौहरत दिलाने का काम किया है ताजमहल ने। जब  माँ बाप अपने बच्चों के नाम से जाने जाएँ तब उन्हें बेहद सुखद अहसास होता है और ऐसे ही ताजमहल के नाम से अपनी विशेष पहचान बनाने में निसंदेह आगरा फ़क़्र महसूस करता होगा।

दरअसल जब भी हम कहीं घूमने का कार्यक्रम बनाते हैं तो ज़हन में सबसे पहले नाम आता है, ताजमहल इक़लौती ऐसी कविता जिसे संगमरमर से तराशा गया है। जिसका ऑरा कुछ ऐसा है कि सामने पाकर भी विश्वास कर पाना मुश्क़िल लगता है।

बात कुछ ऐसी थी कि एक शाम जब परिवार के साथ बैठकर चाय का लुत्फ़ उठाया जा रहा था तो ख़्याल आया क्यूं न कहीं घूमने जाया जाए। आमतौर पर मध्यवर्गीय परिवारों में थोड़ा क्वालिटी टाइम बिताने के लिए ही हम कहीं आउट ऑफ़ स्टेशन जाते हैं। किसी ने सुझाया ताजमहल। तो इस सुझाव को फाइनल होने में जरा भी समय नहीं लगा। बस फिर क्या, यहीं से जाने की तैयारियां शुरू हुई और क्योंकि सफ़र लंबा था तो यकीनन मज़ा भी बहुत आने वाला था। खाने-पीने की चीज़ें सबसे पहले पैक की गई, साथ ही चाय का एक बड़ा थर्मस। यूं तो रास्ते में ढ़ेरों ढ़ाबों ने रूकने का इशारा दिया लेकिन जब रास्ता इतना आरामदायक हो तो कहां कहीं रूकने का दिल करता है। बस तमाम सफर के दौरान यमुना एक्सप्रेस वे के बिलकुल मिडल में ही एक जगह रुक कर अपने घर की बनी चाय का मजा लिया गया। एक प्याला चाय सारी थकान दूर भगाय।

यमुना एक्सप्रेसवे से हम आगरा की तरफ बढ़ते जा रहे थे। क्या सुहाना सफ़र था। उगते सूरज को सलाम कर हम निकले और भरी दोपहरी में आगरा पहुंचे, जहां का तापमान उबाल मार रहा था। इतनी गर्मी कि कोई हद-हिसाब नहीं इसीलिए सबसे पहले हमने होटल बुक करना ज़्यादा बेहतर समझा। सोचा पहले थोड़ा आराम फ़रमा लिया जाए फिर निकलेंगे ताजमहल के दीदार के लिए। दो-तीन घंटे आराम कर हल्की शाम होते ही हमने ताजमहल जाने की तैयारी की। संकरी गलियों से होकर ट्र्ैफिक की जद्दोजहद से निकलकर आख़िरकार हम उस अविश्वसनीय मीनार के क्षेत्र में पहुंच गए।

ताजमहल परिसर और ऊंट गाड़ी

ताजमहल परिसर में प्रवेश करते ही ताज से लगभग एक डेढ़ किलोमीटर दूर आपको अपनी कार पार्क करनी पड़ेगी। प्रदूषण के मध्यनज़र पार्किंग क्षेत्र को परिसर से थोड़ा दूर बनाया गया है। अच्छी बात ये है कि पार्किंग से ताज तक पैदल जाने के अलावा आपको मिलेगी ऊंट गाड़ी। आप आराम से ऊंट गाड़ी की सवारी करते हुए टिकट खिड़की तक पहुँच सकते हैं।  हमने थोड़ा समय बचाते हुए ऊंट गाड़ी की सवारी का भी आनंद उठाया।

जैसे ही ताज के पास पहुंचे महसूस हुआ जैसे मोहब्बत का नूर टपक रहा हो, वहां के हर एक पत्थर में, फूलों में, पत्तों में। जैसे रूहानियत का अलग ही जहां हो। सारी विशेष चीज़ें मानो एक ही थाली में परोस दी गईं हो। मुग़ल सम्राट शाहजहां के अरमानों को पूरा करता यह अद्भुत स्मारक बेग़म मुमताज़ के लिए बनाई गई अविश्वास्य इमारत जिसे हम मुमताज़ महल के नाम से भी जानते हैं। अकेले मक़बरे को बनने में क़रीब 11 वर्ष का समय लगा। ज़ाहिर है, इतनी ख़ूबसूरत इमारत जिसकी एक-एक ईंट अकल्पनीय कला की ग़वाही दे रही हों, चार दिन में तो बनकर तैयार हो नहीं सकती। इसीलिए समय तो लगना ही था और परिसर में मौजूद बाक़ी की इमारतों को भी तक़रीबन 21 से 22 वर्ष लगे।

ताज को यमुना का स्पर्श

ताजमहल केवल पर्यटक स्थल ही नहीं बल्क़ि कई प्रकार की कारीगरी का खज़ाना भी है। जैसे-जैसे आप इसके नज़दीक़ जाएंगे तो पाएंगे कि सिर्फ ताज ही नहीं, उसके आसपास बनाई गई सभी इमारतें अपने आप में बेमिसाल कारीगरी का नमूना है। वैसे यह झूठ नहीं है जिसे आर्किटेक्चर में दिलचस्पी है उसके लिए तो ताजमहल की यात्रा सोने की ख़दान से कम नहीं है। हिमालय की गोद से निकलती यमुना अपने 1370 कि.मी. के लंबे सफ़र में कई मोड़ और ठिकानों से होकर ग़ुज़रती है। उन्हीं ठिकानों में से एक है ताजमहल। वैसे शाहजहां ने भी क्या ख़ूब दिमाग़ दौड़ाया, सोचा अगर ताज को यमुना का स्पर्श मिल जाए तो क्या बात होगी, ताज की ख़ूबसूरती दोगुनी हो जाएगी और देखिए ऐसा ही हुआ।

यमुना नदी पर ख़ासा ध्यान देते हुए मक़बरे तक जाने से पहले यह विशाल बालकनी बनाई गई है जहां खड़े होकर आप यमुना नदी को निहार सकते हैं और नदी की ओर से आने वाली ठंडी हवाएं आपको एकदम तरोताज़ा कर देती हैं। बेशक़ यह दृश्य आपको आश्चर्यचकित करने में ज़रा भी विफल नहीं होगा। ताजमहल को ग़ौर से देख लेने के बाद आपका दिल चाहेगा कि यहां बैठकर मन मोह लेने वाले गीत सुनते रहें और बस यहां की हवा में खो जाएं। कुछ ऐसा ही जादू है इस जगह में।

दरवाज़ा ए रोज़ा

बहरहाल, आइए इतिहास को थोड़ा खंगालते हुए मुग़लों के दौर में एक बार फिर चलते हैं और शुरूआत करते हैं दरवाज़ा ए रोज़ा से। आप जैसे ही ताजमहल के अंदर प्रवेश करते हैं तब आपको सबसे पहले दिखाई देता है एक विशाल दरवाज़ा जो दूर से ही ताज की अद्भुत झलक पेश करता है। ये इमारतें महज़ ख़ूबसूरती ही नहीं बल्क़ि मज़बूत इरादों की भी मिसाल क़ायम करती हैं। ताजमहल को अपने इतना नज़दीक पाना वाक़ई में सपने सा लग रहा था। ज़ाहिर है जिसे लोग देशभर से निहारने आते हैं, जिसकी सुंदरता की दुनियाभर में प्रशंसा की जाती है उससे भला हम कैसे अछूते रह जाते।

दरवाज़ा ए रोज़ा ताजमहल परिसर के महत्वपूर्ण भागों में से एक है। जहां पहुंचने के लिए हमें कई पड़ाव पार करने होते हैं। वो कहते हैं ना किसी भी सुंदर चीज़ को देखने के लिए कुछ क़ीमत तो चुकानी पड़ती है। लिहाज़ा हमने भी टिकट ली और आगे बढ़े।

दरवाज़े की बात की जाए तो उसके बाहरी छोर पर बहुत बड़ा आंगन है जिसे जिलाउख़ाना कहते हैं, हरे भरे पौधों से सुसज्जित यह जगह, जहां छोटे छोटे कमरे बनाए गए हैं जिसे हुज्रा कहा जाता है। इस जगह को  औपचारिक उद्देश्यों के लिए काम में लिया जाता था। यह शुरूआती दौर के मुग़ल सम्राटों की वास्तुकला का एक स्मारक है। क्योंकि दरवाज़े की बनावट ऐसी है कि उसके उपर की ओर चारों तरफ छतरियां बनाई गई है जिसे दूर से देखने पर यह दरवाज़ा आपको रक्षात्मक इमारत की तरह लगेगा जहां आप कल्पना कर सकते हैं कि सैनिक खड़े होकर अपने महल की रक्षा कर रहे हैं। दरवाज़ा ए रोज़ा चारों तरफ से आने वाली हवाओं को दिशा देने के लिए माक़ूल साबित होता है। इसलिए जब आप इस दरवाज़े से ग़ुज़रेंगे तो बंद इमारत कि बजाए यह आपको ग़लियारे-सा प्रतीत होगा। वैसे किसने सोचा था कि महज़ एक दरवाज़ा भी इतना आलीशान हो सकता है।

कहा जाता है कि हुज्रा में बनाए गए छोटे कमरे उस दौर में ग़रीब लोगों को अपना सामान बेचने के लिए दिए जाते थे। यह एक बहुत बड़े चौक जैसा है जहां आप बैठकर विश्राम भी कर सकते हैं।

जैसे ही आप इस आलिशान दरवाज़े के बीच खड़े होंगे तो आपको ताज की अद्भुत झलक मिलेगी।

इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल

सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है

– शकील बदायूंनी

ताज की बनावट

जब भी हम कभी ऐतिहासिक इमारतों को देखते हैं तो मन में ये ख़्याल ज़रूर आता है कि आख़िर कोई ढ़ांचा इतने सालों तक मज़बूती के साथ कैसे टिका रह सकता है। अगर हम थोड़ा इतिहास के पन्नों को पलटें तो भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था इसलिए इसका एक जवाब यह भी हो सकता है कि पुराने समय में जब राजा महाराजा किसी भी चीज़ का निर्माण करवाते थे तो अव्वल दर्जे का कच्चा माल दुनिया भर से मंगवाया जाता था। अपने काम में माहिर क़ारीग़रों को भी देश विदेश से बुलवाया जाता था। अतः इस दरवाज़े के लिए रेड सैंड स्टोन का इस्तेमाल किया गया है जिसमें संगमरमर से आकर्षक रूप दिया गया है। क्योंकि द्वार के उपर का अर्धमंडलाकार या मेहराब ताजमहल के मेहराब की ही अनुकृति है तो जब आप दरवाज़े के बीच खड़े होकर ताज को देखेंगे तो एकाएक महसूस करेंगे कि दोनों इमारतें एक दूसरे में सटीक रूप से फिट हो सकती है। हैरानग़ी होती है, उस ज़माने में जहां कला तो अपने चरम पर थी ही साथ ही पैमाइशों में भी कोई कमी नहीं बरती गई। मेहराब को नज़दीक़ से देखने पर आप पाएंगे कि उसे सजाने के लिए उस पर सुलेख अलंकृत किए गए हैं जो बेहद ही ख़ूबसूरत दिखाई पड़ते हैं। अलग-अलग जगहों से मंगवाए गए क़ीमती पत्थरों को रचनात्मक ढ़ंग से चित्रों का आकार देकर जड़ा गया है, बता दें कि इस तरह की क़ारीग़री को पिएत्रा दूरा कहा जाता है। काले रंग के चमकदार पत्थरों से लिखी गई क़ुरान की आयतें, ज्यामितीय और फूल पत्तियों की बनी आकृति आपको मंत्रमुग्ध कर देंगी। एक बात यहां समझने वाली यह है कि इस्लाम धर्म में बहुत सी मान्यताएं हैं जिनका बड़ी ही निष्ठा से पालन किया जाता रहा है। मुग़लों द्वारा जिन भी इमारतों का निर्माण किया गया उन्हें कहीं न कहीं क़ुरान से भी जोड़ा गया है। जिसकी बदौलत ये सभी जगहें और भी ज़्यादा पाक़ और पवित्र हो जाती हैं। ये पूरी बनावट इस दरवाज़े की शोभा को जितना हो सके उतना ख़ूबसूरत बनाती है।

मुग़ल वास्तुकला का सबसे बेहतरीन उदाहरण

कहते हैं कि अगर क़लाकार को आज़ाद छोड़ दिया जाए तो ऐसा कौन सा जादू है जो वो कर नहीं सकता। दरवाज़ा ए रोज़ा से होकर जैसे ही आप भीतर की तरफ आते हैं तो आपको बेहद ख़ूबसूरत बाग़ नज़र आएगा। बेशक़ ताज सामने हो तो ध्यान कहीं और लगना तो मुमक़िन नहीं। लेकिन यक़ीन जानिए ये बाग़ आपके मन को प्रफुल्लित करने में कोई क़सर नहीं छोड़ेंगे।

यह संकल्पना ईरानी या पर्शियन बाग़ों से ली गई है जिसका अर्थ है स्वर्ग उद्यान। पेड़ पौधों और रंग बिरंगे फूलों से इस बाग़ीचे की सुंदरता को बढ़ाया गया है। ये ग़ज़ब का नज़ारा हमें अपनी बाहों में समेट अविश्वसनीय सा एहसास तोहफें के रूप में देता है। इस बाग़ में खड़े यदि आपकी तबीयत बाग़-बाग़ ना हो जाए तो ऐसा संभव नहीं है।

चारबाग़ के बीचों-बीच हमें संगमरमर के पत्थरों से बना तालाब नज़र आएगा जिसमें लगे फव्वारे बहुत ही शानदार लगते हैं। ज़रा ग़ौर कीजिए इस बात पर कि जब आप एक निश्चित जगह पर खड़े होकर पानी को देखेंगे तो उसमें ताज का प्रतिबिंब दिखाई देगा।

भले ही यह सिर्फ एक बार का अनुभव हो लेकिन मेरा विश्वास है कि तमाम ज़िंदग़ी में पछतावा करने की कोई ग़ुंजाइश बाक़ी ना रहेगी। साहिर लुधियानवी कहते हैं कि-

‘ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है

क्यूं देखें ज़िंदग़ी को किसी की नज़र से हम’

जब आप ताजमहल को अपनी नज़र से देखेंगे तो यक़ीन करेंगे कि असल ख़ूबसूरती क्या होती है। ज़ाहिर है जब मोहब्बत परवान चढ़ती है तो क्या कुछ नहीं किया जा सकता महबूब के लिए।

42 एकड़ में फैला यह पूरा परिसर जिसके मध्य में ऐतिहासिक मक़बरे का निर्माण किया गया। मक़बरे के बाइं ओर मेहमानख़ाना और दाइं ओर मस्जिद बनाई गई। दोनों इमारतें एक दूसरे की दर्पण छवि दिखाई पड़ती है। मानो दो सैनिक अपने प्रिय राजा की रक्षा के लिए हमेशा तैयार है। केवल मक़बरे की बात करें तो यह अद्भुत स्मारक 1632 ई. में निर्मित होनी शुरू हुई और बनते बनते इसे पूरे 11 वर्ष का समय लगा। 1983 में ताजमहल को यूनेस्को के द्वारा विश्व धरोहर का दर्जा दिया गया जो भारत के लिए बड़ी ही गर्व की बात है। भारत में ताजमहल को मुग़ल वास्तुकला का सबसे बेहतरीन उदाहरण माना गया है।

ताजमहल में आपको मुग़ल वास्तुकला के साथ-साथ इंडो-इस्लामिक परंपराएं भी देखने को मिलेंगी। जहां बाक़ी  मुग़ल वास्तुकलाओं को लाल बलुआ पत्थरों से बनाया गया है वहीं शाहजहां ने ताजमहल के लिए ख़ास संगमरमर के पत्थर का इस्तेमाल किया और उसमें क़ीमती पत्थरों को भी जड़ा गया। सम्पूर्ण ताजमहल में मक़बरा ध्यान का केन्द्र बना जो एक चौकोर चबूतरे पर खड़ी ख़ूबसूरत संरचना है। मुख्य कक्ष में सामने की ओर बनाए गए मक़बरे कृत्रिम हैं जो कि असली मक़बरों की हुबहू नक़ल है।

असल मक़बरों को देख पाना आम व्यक्ति के लिए नामुमकिन है। इस पूरी इमारत पर अलग-अलग तरीक़े की बारीक़ डिज़ाइन की गई है जिसमें ज्यामितीय, पुष्प संबंधी टाइलें, जालीनुमा डिज़ाइन और क़ुरान की आयतें यहां भी लिखी गई हैं। इन सभी ख़ूबसूरत कलाकृतियों की वजह से यह पूरी संरचना बेहद ही आकर्षक दिखाई देती है।

कैसी जादुई जगह है ना ताजमहल। भारत की संस्कृति और परंपराओं में मुग़लों के बड़े योगदान से हमारा देश और अधिक धनी हो जाता है। क्योंकि बात ताजमहल की हो रही है तो थोड़ा सा इसके इतिहास को समझना ज़रूरी है। जिसके कारण यहां घूमने में और अधिक मज़ा आता है।

ताजमहल के दोनों छोर पर बनी इमारतों के आकार भले ही एक से नज़र आते हैं लेकिन उनकी डिज़ाइन में महीन अंतर है जो आपको देखने से ही पता चल जाएगा। ताजमहल की ही तरह इनका इतिहास भी हम हमेशा पढ़ते रहेंगे। ख़ैर अब ताजमहल के इतिहास से ज़रा बाहर आते हैं और सीधा चलते हैं मीना बाज़ार की ओर। अब क्योंकि मीना बाज़ार भी क़ाफ़ी लोकप्रिय है तो ज़रा सा उसके इतिहास को भी छू लिया जाए।

ये समझने वाली बात है कि जब भी हम किसी ऐतिहासिक धरोहर पर घूमने निकलते हैं तो उसके इतिहास की बुनियादी समझ हमें होनी ही चाहिए जो उस जगह को और भी ज़्यादा दिलचस्प बना देती है। और यक़ीन मानिए ऐसी जगहों पर जाने के बाद हमारी कल्पनाओं के घोड़े भी तेज़ी से दौड़ने लगते है।

प्रसिद्ध मीना बाज़ार

बहरहाल, बात करते हैं प्रसिद्ध मीना बाज़ार की तो इसे क़ुह्स रूज़ यानी हर्षाल्लास का दिन भी कहा जाता था। यह बाज़ार विशेष रूप से महिलाओं के लिए सजाया जाता था और पुरूषों में केवल सम्राट और कुछ राजकुमार ही मौजूद हुआ करते थे। नौरोज़ यानी नए साल के उत्सव के दौरान बाज़ार केवल 5 से 8 दिन के लिए लगाया जाता था। सम्राट हुंमायूं ने इसे सबसे पहले संगठित किया लेकिन अक़बर और उनके उत्तराधिकारियों ने इसे और विस्तृत बना दिया। उत्सव के दौरान बाज़ार को आम जनता कि लिए बंद कर दिया जाता था जबकि हरम की महिलाएं, दरबार के कुलीनों की पत्नियां और बेटियां कपड़ा, हस्तशिल्प, आभूषण आदि के अपने स्वयं के स्टॉल लगाया करती थीं। और इन्हीं सामानों को ख़रीदने के लिए केवल सम्राट, राजकुमारों और कुछ रईस लोगों को ही अनुमति दी जाती थी। यह सारा माल उंचे दामों पर बेचा जाता था और कमाई हुई रक़म को बाद में दान में दे दिया जाता था।

आज यह बाज़ार चहल-पहल और लुत्फ़ उठाने वाली जगहों में से एक है। ताजमहल को बारीक़ी से देख लेने के बाद आप यहां आकर अपनी यात्रा को और मज़ेदार बना सकते हैं। ताजमहल परिसर के साथ में ही आप तरह-तरह का लज़ीज़ खाना, हाथ से बनी साज-सज्जा की चीज़ें ख़रीद सकते हैं। ताजमहल के मुख्य दरवाजे के बाहर साथ में पूरा पुराना शहर बसा हुआ है।  आपको ताज से निकलते ही शानदार और लज़ीज़ बिरयानी की बहुत सारी पुरानी और परम्परागत दुकानें दिखाई देंगी। आप थोड़ा सा रिसर्च करके ही बिरयानी का आनंद ले तो बेहतर रहेगा।  क्योंकि जितनी प्रसिद्ध जगह उतना नक्कालों से सावधान रहने की आवश्यकता पड़ती है।

one of seven wonders

हालांकि मैंने पहले भी ऐतिहासिक धरोहरें देखी हैं पर बचपन की यादों को क़ाग़ज़ पर उकेरना ज़रा मुश्किल सा लगता है। अपने हवासों को सही दिशा देने के बाद अगर किसी धरोहर से रूबरू होना हुआ है तो वो है ताजमहल। हो सकता है ताज को लेकर मेरे एहसासों को ज्यों का त्यों मेरी क़लम ना समेट पाए लेकिन यादें आज भी बख़ूबी साथ निभाती हैं। और क़लम बस लिखती चली जाती है।

ताजमहल का अनुभव तो ग़ज़ब का रहा, अगले कोरे क़ाग़ज़ का प्रतिनिधित्व किस सफ़र के हिस्से में लिखा जाता है, ये जानना क़ाफ़ी दिलचस्प होगा

Research: Sonia Naval

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The Great Wall of India – Kumbhalgarh

Kumbhalgarh Fort: कुम्भलगढ़ - ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया

by Pardeep Kumar

जबसे मेरी विशेष रूचि भारत का इतिहास जानने में हुई खासकर बड़े-बड़े किलों और महलों का, तब से कुम्भलगढ़ की दीवार के बारे में खूब सुना था। चौदहवीं सदी में बना कुम्भलगढ़ परकोटा दुनिया भर में अपनी अलग पहचान रखता है। चीन की दीवार के बाद कुम्भलगढ़ के परकोटे की चौड़ाई सबसे अधिक है।(Kumbhalgarh Fort)

किस समय यहाँ आना सबसे बेहतर

राजस्थान के राजसमन्द जिले में स्थित कुम्भलगढ़ के किले को इत्मीनान से देखने के लिए आपको पूरा एक दिन लग ही जाता है। अपने शेड्यूल के हिसाब से हम सुबह 11 बजे तक कुम्भलगढ़ पहुँच गए थे। पार्किंग से कुम्भलगढ़ किले तक जाने के दो तरीके हैं एक आप लगभग दो किलोमीटर चढ़ाई पैदल चलें, दूसरा वहां बहुत सारी जीप आपको मिल जाएँगी जिसमें सौ रुपए सवारी के हिसाब से वो किले तक पहुंचा देंगे। जहाँ से आपको टिकट लेना और अंदर प्रवेश करना है। अक्टूबर का महीना था इसलिए अभी 11 बजे तक इतनी खास गर्मी नहीं थी। पानी और कुछ खाने पीने का सामान अपने पास अवश्य रखें क्योंकि ये किला बहुत बड़ा है, ऊपर से पूरे किले में सिर्फ चढ़ाई ही चढ़ाई है जोकि अमूमन सभी किलों में होती ही है। लेकिन यहाँ आपको सीढियां भी बहुत चढ़नी पड़ेंगी इसलिए शारीरिक और मानसिक रूप से अपने आप को मजबूत रखें।

वैसे तो साल भर यहाँ पर्यटकों का आना लगा रहता है लेकिन फिर भी अक्टूबर से मार्च का महीना यहाँ आने के लिए बेस्ट रहता है। क्योंकि देखा जाए तो राजस्थान में साल भर गर्मी ही रहती है।

कुंभलगढ़ का किला

राजस्थान के किलों का अपना एक अलग समृद्ध इतिहास है, जो इसे देसी-विदेशी सैलानियों के लिए आकर्षण का केन्द्र बनाता है। यहां के किले व महल अपनी बनावट के कारण अनजाने ही लोगों को अपनी ओर खींचते हैं। वैसे राजस्थान के लगभग सभी किले चाहे वो जैसलमेर का सोनार किला हो या जयपुर का आमेर या जयगढ़ का किला सभी सैलानियों में अच्छे खासे प्रसिद्ध हैं, लेकिन फिर भी कुंभलगढ़ का किला अपना एक अलग महत्व रखता है। वो इसलिए कि इस किले की खासियत है उसकी दीवार, जिस पर चार घुड़सवार एक साथ चल सकते हैं।(Kumbhalgarh Fort)

दुनिया के सात आश्चर्यों में से एक चीन की दीवार के बारे में तो सब जानते हैं, लेकिन यहाँ आपको बता दें कुंभलगढ़ को भी ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया कहा जाता है। चित्तौड़गढ़ किले के बाद कुंभलगढ़ किला राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा किला माना जाता है यूनेस्को द्वारा वर्ल्ड हेरिटेज घोषित यह किला मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप का जन्मस्थान है। इस किले को युद्ध में कभी भी जीता नहीं गया। कहते हैं हल्दी घाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप भी काफी समय तक इसी किले में रहे।

कुम्भलगढ़ किला परिसर

बता दें किसी समय कुम्भलगढ़ किला परिसर में छोटे-बड़े लगभग 400 मंदिर होते थे। कुछ एक मंदिरों को छोड़कर बाकी अब नष्ट हो गए हैं। किले के मुख्य दरवाजे से जैसे ही प्रवेश करते हैं वैसे ही सामने दाहिने हाथ की तरफ नीलकंठ महादेव जी का एक भव्य मंदिर दिखाई देता है। मुख्य दरवाजे से अंदर जाते ही मंदिर की तरफ छोटा-सा बाजार बना हुआ है जहाँ आप खाने-पीने से लेकर हल्की-फुल्की खरीददारी कर सकते हैं। आपकी चढ़ाई इस किले के सबसे ऊपरी हिस्से में बादल महल व कुम्भा महल में जाकर समाप्त होती है, बदल महल से आप दूर-दूर तक फैली हुई अरावली श्रंखला की ख़ूबसूरती निहार सकते हैं। हमनें वहां से आसपास के खूबसूरत नज़ारों को कैमरे में कैद किया। किले में कई जगह ऐसी हैं जहाँ से आप कुम्भलगढ़ की दीवार को भी देख सकते हैं जिससे इस किले की विशालता का सहज ही अनुमान हो जाता है।

अबुल फजल किले की ऊंचाई के विषय में लिखते हैं यह दुर्ग इतनी बुलंदी पर बना हुआ है कि नीचे से ऊपर की तरफ देखने पर सिर से पगड़ी गिर जाती है।

सच कहूं तो इस ऐतिहासिक किले का अनुभव बेहद शानदार रहा। यहाँ से लौटने के बाद मन सोचने पर विवश हो जाता है कि किस तरह इंसान जीवन के किस्से लिखता है और साम्राज्यों की कहानियां भी। और भले ही इन किलों की गर्वीली कहानियां कितनी ही पुरानी क्यों न हो जाये लेकिन फिर भी सदियों तक दोहराई जाती रहेंगी। (Kumbhalgarh Fort)

Written by Pardeep Kumar

 

Glimpse of Kumbhalgarh Fort….

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