क्या आपने कभी पेंटिंग की है? इस सवाल पर अधिकतर लोगों का जवाब हाँ हीं होगा। क्योंकि कहीं ना कहीं बचपन में हम सभी ने अपनी ड्राइंग बुक्स में उन पहाड़ों और फूल पत्तियों को बनाते हुए ही अपना बचपन जिया है। अब आप सोचेंगे कि आज हम अचानक पेंटिंग्स की बात क्यों कर रहे हैं? तो वह इसलिए क्योंकि आज के इस ब्लॉग का पेंटिंग से सीधा-सीधा संबंध है। आज का यह ब्लॉग उत्तर भारत की एक ऐसी चित्रकला के बारे में है, जिसे दुनिया भर में अहम् स्थान मिल रहा है। इस पेंटिंग को बनाने की कला एक ऐसी कला है, जिसे ओलंपिक ने भी अपने गेम्स में शामिल किया है। जी हां, हम बात कर रहे हैं बिहार राज्य की मधुबनी पेंटिंग के बारे में। आप सभी ने इसका नाम जरुर सुना होगा। अगर आप राजधानी दिल्ली में रहते हैं और कभी संसद भवन का चक्कर लगाए हैं तो आपने वहाँ के मुख्य द्वार पर भी मधुबनी पेंटिंग की झलकियां जरूर देखी होगी। लेकिन अब यह सवाल आता है कि ऐसा क्या खास है (Specialty of Madhubani painting) इस पेंटिंग में, कि इसे ओलंपिक तक में शामिल किया गया? तो चलिए इस सवाल के जवाब को हम इस ब्लॉग में ढूंढते हैं–
क्या कहता है इतिहास?
मधुबनी पेंटिंग के अगर इतिहास की बात की जाए तो इसका सबसे पुराना इतिहास हमें श्रृंगार रस के कवि श्री विद्यापति के द्वारा रचित पुस्तक कीर्तिपताका में देखने को मिलता है। विद्यापति एक मैथिली कवि थे और उन्होंने अपने जीवन काल में एक से एक रचनाएं की थी। विद्यापति से जुड़ी एक और कहानी यह भी है कि मिथिला क्षेत्र में माना जाता है कि विद्यापति वह इंसान थे जिसके यहां स्वयं महादेव ने आकर 12 वर्षों तक उनकी सेवा की थी।
अगर बात करें मधुबनी पेंटिंग के प्रकार की तो यह मुख्यतः तीन प्रकार की होती हैं : भित्ति चित्र अरिपन पट्ट चित्र
भित्ति चित्र
भित्ति चित्र की अगर बात की जाए तो यह मुख्यतः दीवारों पर की जाती है और तीन तरह की होती हैं। जिसमें पहले होता है गोसानी घर की सजावट, जो की मुख्यतः घर में बने मंदिर की दीवारों पर की जाती है। जिसमें देवी देवताओं की चित्रकारी की गई होती है।
दूसरी होती है कोहबर घर की सजावट जिसमें दांपत्य जीवन के दर्शन देखने को मिलते हैं। यह वैवाहिक समारोह में देखने को मिलती है और नव विवाहित जोड़ों के कमरे में इस तरह की चित्रकारी से सजावट की जाती है।
तीसरी होती है कोहबर घर की कोनिया सजावट जो की विशेषतः शादी के अवसर पर हीं की जाती है और इस सजावट में फूल पत्तियों और प्राकृतिक संकेत के जरिए दांपत्य जीवन के संदेश दिए जाते हैं। यह सजावट नव विवाह दंपति के कमरे के किसी दीवार के एक कोने पर की जाती है। जहां उनकी विवाह से जुड़ी वैवाहिक रस्में में निभाई जाती हैं।
अरिपन
यह मधुबनी पेंटिंग का एक ऐसा प्रकार है जिसमें भूमि पर चित्रकारी की जाती है। इस चित्रकला में रंग के तौर पर चावल को भींगो कर उसे पीसा जाता है और उसमें आवश्यकता अनुसार पानी मिलाकर उससे पेंटिंग की जाती है। यह चित्रकला आपको अधिकांशत बिहार में मनाए जाने वाले पर्व त्योहारों के अवसर पर देखने को मिलेंगे। इस चित्रकला में मुख्यतः आपको स्वास्तिक, श्री यंत्र, देवी-देवताएं, फूल-पत्तियां, घरों की कोठियाँ, खेतों में काम कर रहे मजदूर आदि देखने को मिलेंगे। आप जब भी कभी बिहार के उत्तरी क्षेत्र में दीपावली के अवसर पर जाएंगे तो आपको वहां हर घर में अरिपन देखने को मिल जाएगा।
पट्ट चित्र
पट्ट चित्र भी मधुबनी पेंटिंग का हीं एक प्रकार है जो ना सिर्फ बिहार बल्कि नेपाल के अधिकांश भागों में भी देखने को मिलता है। मधुबनी पेंटिंग को विश्व प्रसिद्ध बनाने में पट्ट चित्रों का विशेष योगदान रहा है। पट्ट चित्र मुख्यतः छोटे-छोटे कपड़ों या फिर कागज के टुकड़ों पर बनाया जाता है, हालांकि अब आजकल साड़ी, दुपट्टे और बड़े-बड़े शॉल पर भी मधुबनी पेंटिंग की झलक देखने को मिल जाती है। विशेष कर अगर आप ट्रेड फेयर में जाएंगे तो आपको वहां बिहार के पवेलियन में मधुबनी पेंटिंग के जीवंत उदाहरण देखने को मिल जाएंगे। अगर आप दिल्ली में रहते हैं और ट्रेड फेयर को अटेंड करने जा रहे हैं तो आप कोशिश करें कि बिहार के पवेलियन में जरूर जाएं। क्योंकि यहां पर आपको एक से एक मधुबनी पेंटिंग्स देखने को मिल जाएंगी। उनसे आप बिहार के कल्चर को बहुत हीं अच्छे तरीके से एक्सप्लोर कर पाएंगे।
क्यों है मधुबनी पेंटिंग खास?
मधुबनी पेंटिंग के खास होने के पीछे कई सारी वजहें हैं। सबसे पहले इस पेंटिंग को खास बनाने का काम करते हैं इसमें उपयोग में लाए जाने वाले रंग। जहां आज के समय में आधुनिक पेंटिंग ब्रश और आधुनिक रंगों का एक बड़ा बाजार तैयार हो चुका है, वहीं मधुबनी पेंटिंग के कलाकार इन सब से इतर प्रकृति में विश्वास रखते हैं। आपको मधुबनी पेंटिंग में प्राकृतिक रंगों के उपयोग देखने को मिलेंगे। जिन्हें पत्तों और फूलों से रस निकालकर बनाया जाता है। मधुबनी पेंटिंग को खास बनाने के पीछे इन रंगों का बहुत हीं बड़ा योगदान होता है। अगर हम बात करें कि मधुबनी पेंटिंग में कौन-कौन से रंग उपयोग में लाए जाते हैं तो आपको मधुबनी पेंटिंग में गहरे चटक नील, लाल, हरे, नारंगी और काले रंग बहुत हीं बहुतायत मात्रा में देखने को मिलेंगे। हालांकि बाकी रंगों का भी इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन वह रंग बहुत कम होते हैं। या ना की मात्रा में होते हैं।
मधुबनी पेंटिंग में मुख्यतः बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र की संस्कृति की झलक साफ-साफ देखने को मिल जाएंगी। इस पेंटिंग में काम कर रहे मजदूरों, महिलाओं, देवी-देवताओं, खासकर राम-सीता विवाह, पशुओं, पक्षियों, फूलों और पेड़ पौधों आदि की तस्वीरें देखने को मिल जाएंगी। यह पेंटिंग देखने में जितनी सरल लगती है बनाने में उतनी हीं कठिन होती है। इसे बनाने में महंगे ब्रशों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, बल्कि इसे बनाने के लिए प्राकृतिक रूप से कुच तैयार किए जाते हैं और फिर चित्रकारी की जाती है। इस पेंटिंग में महीन से महीन और बारीक से बारीक डिटेल की भी जानकारी रखी जाती है। जो इस पेंटिंग को और भी ज्यादा खास बना देती है। आपको मधुबनी पेंटिंग की झलक बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र में तो हर जगह हीं मिल जाएंगे, लेकिन साथ हीं साथ आपको पटना रेलवे स्टेशन पर भी इसकी झलक देखने को मिलेंगे। इतना हीं नहीं भारत के संसद भवन के गेट पर भी इसकी झलक देखने को मिलती है।
वाल्मीकि नेशनल पार्क (Valmiki National Park) जो बिहार का एकमात्र राष्ट्रीय उद्यान है, पश्चिमी चंपारण जिले में स्थित है। यह नेशनल पार्क वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (Valmiki Tiger Reserve) का हिस्सा है। वाल्मीकि टाइगर रिजर्व लगभग 900 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है और इसकी स्थापना 1978 हुई थी। यह टाइगर रिजर्व भारत का अठारहवाँ टाइगर रिजर्व है। 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में 54 बाघ है। यह टाइगर रिज़र्व बिहार का एकमात्र टाइगर रिजर्व है। यह संरक्षित क्षेत्र शिवालिक हिमालय की तलहटी में है। गंडक नदी इस राष्ट्रीय उद्यान के पश्चिमी सीमा से गुजरती है। वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में फ्लोरा और फॉउना के कई प्रजातियां है जो इस टाइगर रिजर्व को नेचर लवर्स के लिए खास बनाती है।
वाल्मीकि नेशनल पार्क का इतिहास (History of Valmiki National Park)
1950 से पहले यह संरक्षित क्षेत्र, बेतिया महाराज के राज में आता था। सर्वप्रथम, 1978 में इस संरक्षित क्षेत्र को वन्य जीव अभ्यारण घोषित कर दिया गया। इसके पश्चात, 1990 में वाल्मीकि वन्य जीव अभ्यारण्य को नेशनल पार्क का दर्जा दे दिया गया। 1990 में ही, इसे प्रोजेक्ट टाइगर के तहत टाइगर रिजर्व बना दिया गया। वाल्मीकि नेशनल पार्क और वाल्मीकि वन्यजीव अभयारण्य वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (वीटीआर) का हिस्सा है।
वाल्मीकि नेशनल पार्क में फॉउना (Fauna in Valmiki National Park)
वाल्मीकि राष्ट्रीय उद्यान में कई प्रकार के फॉउना (Fauna) निवास करते हैं। यहाँ पाए जाने वाले जीव निम्नलिखित हैं।
1. मैमल्स (Mammals)
बंगाल टाइगर (Bengal Tiger), इंडियन लेपर्ड (Indian Leopard), एशियन एलीफैंट (Indian Elephant), भारतीय गैंडा (Indian Rhinoceros), क्लाउडेड लेपर्ड (Clouded Leopard), वाइल्ड वाटर बफैलो (Wild Water Buffalo), वाइल्ड बोअर (Wild Boar), एशियाई काला भालू (Asiatic Black Bear), भारतीय स्लॉथ भालू (Indian Sloth Bear), इंडियन गौर (Indian Gaur), स्पॉटेड डियर (Spotted Deer), सांभर (Sambar), बार्किंग डियर (Barking Deer), फिशिंग कैट (Fishing Cat), हॉग डियर (Hog Deer), बंदर (Monkey), उड़ने वाली गिलहरी (Flying Squirrel), औटर (Otter), लेपर्ड कैट (Leopard Cat), वाइल्ड डॉग (Wild Dog), ब्लू बुल या नीलगाय (Blue Bull or Nilgai), लंगूर (Langur), नेवला (Mongoose)
बेस्ट टाइम टू विजिट वाल्मीकि नेशनल पार्क (Best time to visit Valmiki National Park)
अगर आप वाल्मीकि राष्ट्रीय उद्यान आने की चाह रख रहे है तो आप समर (Summer) और मानसून (Monsoon) में यहाँ आने से बचें क्योंकि इस समय यहाँ बहुत गर्मी पड़ती है और यह नेशनल पार्क बंद रहता है। यह राष्ट्रीय उद्यान 1 अक्टूबर से 31 मई तक खुला रहता है। आप यहाँ नवंबर से फरवरी के बीच में आने की कोशिश करें क्योंकि इस समय यहाँ का मौसम सुहाना और परिस्थितियां सम रहती हैं और आपको यहाँ ज्यादा से ज्यादा जानवर देखने को मिलेंगे।
कैसे पहुंचे वाल्मीकि राष्ट्रीय उद्यान (How to reach Valmiki National Park)?
सड़क मार्ग- वाल्मीकि नेशनल पार्क सड़क मार्ग द्वारा प्रमुख शहरों (पटना, लखनऊ और प्रयागराज) से जुड़ा हुआ है। निकटतम शहर बेतिया (80 किमी) से यहाँ के डेली बस सर्विस है। रेल मार्ग- इस नेशनल पार्क के पास में निकटम रेलवे स्टेशन ‘वाल्मीकि रेलवे स्टेशन’ है जहाँ से आप टैक्सी या बस लेकर वाल्मीकि नेशनल पार्क पहुंच सकते है। हवाई मार्ग- इस नेशनल पार्क का निकटम एयरपोर्ट पटना (जय प्रकाश नारायण इंटरनेशनल एयरपोर्ट) में है जो नेशनल पार्क से 295 किलोमीटर दूर है।
आज हम आपको लेकर चलेंगे एक ऐसे शहर के सफर पर, जिसका भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। जब बात भारत के इतिहास की हो तो इस शहर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। हम बात कर रहे हैं पटना शहर की। यह शहर गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है। अगर बात किया जाए इस शहर के वर्तमान की तो यह काफी विकसित हो चुका है। शहर के बड़े-बड़े बिल्डिंग्स, बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल और यहां की सड़कें यह बताने के लिए काफी हैं कि यह शहर भी किसी अन्य शहर से पीछे नहीं है। पटना पर्यटन के लिए भी काफी मशहूर है। जिन लोगों को इतिहास में रुचि है, यह शहर उनका बाहें फैलाकर स्वागत करता है। आइए जानते हैं इस शहर के प्रमुख पर्यटन स्थलों के बारे में जो इस शहर की शान माने जाते हैं।(visiting places of Patna)
गोलघर (Golghar)
श्री कृष्ण साइंस सेंटर पटना (Shri Krishna Science Center Patna)
बिस्कोमान भवन (Biscomaun Bhawan)
गांधी मैदान (Gandhi maidan)
बुद्धा स्मृति पार्क (Buddha smriti park)
महावीर मंदिर (Mahaveer mandir)
तारामंडल (Patna Planetarium – Taramandal)
बिहार म्यूजियम (Bihar museum)
गांधी म्यूजियम (Gandhi museum)
पटना म्यूजियम (Patna museum)
संजय गांधी जैविक उद्यान पटना (Sanjay Gandhi Biological Park)
पटना साहिब (Patna sahib)
इको पार्क (Eco park)
गंगा घाट (Ganga Ghat)
अगम कुआं (Agam Kuan)
कुम्हरार (Kumhrar)
1. गोलघर (Golghar) पटना शहर के बीच में स्थित है गोलघर! जिसे अंग्रेजों द्वारा अनाज के संग्रह के लिए 1786 में बनवाया गया था। एक समय था, जब गोलघर के ऊपर से पूरे पटना शहर के दर्शन किया जा सकता था। लेकिन समय के साथ-साथ इस शहर ने भी तरक्की की और यहां भी बड़े बड़े बिल्डिंग्स बन गए। जिसके कारण अब पूरे पटना शहर का तो दर्शन नहीं किया जा सकता है, लेकिन अब भी गोलघर के शीर्ष से तरक्की की राह पर बढ़ते हुए इस शहर को देखना काफी रमणीय दृश्य होता है।
2. श्री कृष्ण साइंस सेंटर पटना (Shri Krishna Science Center Patna)
पटना साइंस सेंटर विज्ञान के क्षेत्र में रुचि रखने वाले लोगों और बच्चों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र है। यहां जाकर आप अचंभित कर देने वाली वैज्ञानिक घटनाओं को देख और समझ सकते हैं। यहां बहुत से गाइड मौजूद होते हैं। जो वैज्ञानिक प्रयोगों और उनके कारणों के बारे में पर्यटकों को समझाते हैं। यहां लेजर शो की भी व्यवस्था की गई है। पटना साइंस सेंटर की स्थापना 1978 में की गई थी और इसका नामकरण बिहार के पहले मुख्यमंत्री डॉ श्रीकृष्ण सिंह के नाम पर किया गया है। आपको जानकारियां हैरानी होगी कि यह देश का पहला क्षेत्रीय स्तर का विज्ञान केंद्र है।
पटना साइंस सेंटर के खुलने का समय सुबह 9:30 बजे से शाम के 6:00 बजे तक का होता है। लेकिन यहां टिकट का काउंटर हर रोज शाम 5:15 बजे हीं बंद हो जाता है।
3. बिस्कोमान भवन (Biscomaun Bhawan)
पटना साइंस सेंटर के बगल में स्थित है बिस्कोमान भवन। यह पटना हीं नहीं बल्कि पूरे बिहार का सबसे ऊंचा बिल्डिंग है। बिस्कोमान भवन में बहुत सारे ऑफिस हैं और इसके टॉप फ्लोर पर एक “पाइंड द रिवाल्विंग रेस्टोरेंट” है। जो अपने जगह पर 360 डिग्री तक घूमता रहता है। घूमते रहने की खासियत के कारण यह रेस्टोरेंट पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। आप भी यहां जाकर बेहद ही शांत माहौल में लंच इंजॉय कर सकते हैं।
बिस्कोमान भवन सुबह 8:00 बजे से शाम के 5:00 बजे तक खुला रहता है।
4. गांधी मैदान (Gandhi maidan)
गांधी मैदान जिसे पटना का हार्ट भी कहा जाता है, 62 एकड़ जमीन में फैला एक खुला मैदान है। जहाँ हर दिन पटना के बच्चे, बूढ़े और जवान आपको व्यायाम करते मिलेंगे। गांधी मैदान का उपयोग मुख्यतः 26 जनवरी या 15 अगस्त के दिन झंडोतोलन, परेड और झांकियों के लिए किया जाता है। इसके अलावा यहां बिहार दिवस के अवसर पर भी कई तरह के कार्यक्रम होते हैं। इससे इतर इस मैदान का उपयोग चुनाव प्रचार प्रसार के लिए भी किया जाता है। इस मैदान के दीवारों पर आपको मधुबनी पेंटिंग्स की झलक देखने को मिल जाएंगी।
गांधी मैदान में हर वीकेंड पर रात को फिल्म चलाई जाती है। जिसके लिए किसी भी तरह का एंट्री फीस नहीं देना होता है। आप आराम से जाकर खुले आसमान के नीचे बैठकर मूवी को इंजॉय कर सकते हैं। अगर आप भी वीकेंड पर पटना में है तो एक बार गांधी मैदान का चक्कर जरुर लगाएं। यकीनन यह आपको काफी पसंद आएगा।
5. बुद्धा स्मृति पार्क (Buddha smriti park)
बुद्धा स्मृति पार्क गांधी मैदान से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस पार्क की खासियत यह है कि यहां पर हर समय होने वाले बुद्धम शरणम गच्छामि के मंत्रोच्चारण के कारण यहां आने वाले पर्यटकों का मन शांत हो जाता है।
इस पार्क में एक 200 फीट ऊंचा एक स्तूप है। जिसमें भगवान बुद्ध की अस्थियों के अवशेष को रखा गया है। इस पार्क का उद्घाटन 27 मई 2010 को दलाई लामा ने किया था। उन्होंने पार्क के स्तूप का नाम पाटलिपुत्र करुणा स्तूप रखा। यह पार्क दुनिया भर के बौद्ध पर्यटकों की आस्था का केंद्र है। यहाँ पार्क ऑफ मेमोरी म्यूजियम, लेजर शो, बोध वृक्ष, लाइब्रेरी और मेडिटेशन सेंटर भी है। इस पार्क में बांकीपुर जेल के अवशेषों को भी सहेज कर रखा गया है। बुद्धा स्मृति पार्क के एंट्री टिकट का प्राइस ₹20 है। यह पार्क सोमवार के अलावा सप्ताह के अन्य दिनों में खुला रहता है और इस पार्क के खुलने की टाइमिंग सुबह के 9:00 से शाम के 7:00 बजे तक की है।
6. महावीर मंदिर (Mahaveer mandir)
बुद्धा स्मृति पार्क से वॉकिंग डिस्टेंस पर हीं स्थित है महावीर मंदिर। जो उत्तर भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं और यह मंदिर देश के प्राचीनतम हनुमान मंदिरों में से एक है। अगर आप इस मंदिर में घूमना चाहते हैं तो इस बात का ध्यान रखें कि सामान्य दिनों में ही यहां आएं। क्योंकि रामनवमी, शिवरात्रि या फिर दशहरा के दिनों में यह मंदिर बहुत हीं व्यस्त रहता है। ऐसे में यहां बहुत अधिक मात्रा में श्रद्धालु आते हैं। इस मंदिर की एक और खासियत यह है कि इस मंदिर का ट्रस्ट उत्तर भारत का सबसे बड़ा धार्मिक ट्रस्ट है। जो गरीब लोगों के कैंसर का इलाज करवाने और जरूरतमंदों की सेवा और परोपकार के कार्यों के लिए जाना है।
7. तारामंडल (Patna Planetarium – Taramandal) पटना का तारामंडल उन लोगों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र है, जिन्हें पृथ्वी के बाहर के ब्रह्मांड के बारे में जानने में अत्यंत रुचि होती है। यहां जाकर आप अंतरिक्ष के बारे में काफी कुछ सीख और समाझ सकते हैं। यह तारामंडल सुबह 10:00 बजे से शाम के 5:00 बजे तक खुला रहता है और यहां की एंट्री फीस ₹50 है। यहां प्रत्येक दिन दो शो चलते हैं जिनकी टाइमिंग 12:00 से 2:00 और 3:00 से 5:00 होती है। तारामंडल पटना शहर के बेली रोड में स्थित है और डाकबंगला चौराहे से वॉकिंग डिस्टेंस पर है।
8. बिहार म्यूजियम (Bihar museum)
बिहार म्यूजियम पटना, तारामंडल से कुछ हीं दूरी पर स्थित है। इस म्यूजियम में आकर ना सिर्फ पटना, बल्कि पूरे देश के इतिहास को देखा, समझा और जिया जा सकता है। यहां कई तरह की एंटी कलाकृतियां संजोकर रखी गईं हैं, जो ऐतिहासिक ज्ञान का केंद्र हैं।
बिहार म्यूजियम पटना के बेली रोड में स्थित है और एक पसंदीदा पर्यटन स्थल के रूप में जाना जाता है। बिहार म्यूजियम का इंटीरियर वाकई काबिल-ए-तारीफ है। यहां का परिसर बहुत साफ सुथरा है।
अगर आप बिहार म्यूजियम जाना चाहते हैं तो, यहां की टाइमिंग सुबह के 10:00 बजे से शाम के 5:00 बजे तक की है और यहां का टिकट प्राइस ₹15 है।
9. गांधी म्यूजियम (Gandhi museum)
पटना में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के यादों को सहेज कर रखा गया है। अगर आप भी महात्मा गांधी के बारे में जानना और समझना चाहते हैं तो पटना का गांधी म्यूजियम आपके लिए बेस्ट डेस्टिनेशन है। जहां गांधी जी के जीवन से संबंधित वस्तुओं का प्रदर्शनी लगवाया गया है। यह एक छोटा सा म्यूजियम है और निशुल्क म्यूजियम है। इस म्यूजियम में गांधीजी के सादे व्यक्तित्व और जीवन के दर्शन किए जा सकते हैं।(visiting places of Patna)
पटना का गांधी संग्रहालय दो शिफ्टों में खुलता है। पहला शिफ्ट सुबह 10:00 बजे से दोपहर के 1:00 बजे तक का होता है और दूसरा शिफ्ट दोपहर के 2:00 बजे से शाम के 5:45 तक होता है। यहां जाने के लिए किसी भी प्रकार का टिकट नहीं लगता है।
10. पटना म्यूजियम (Patna museum)
पटना में एक जिला स्तरीय संग्रहालय भी है। जिसे पटना म्यूजियम के नाम से जाना जाता है। यह म्यूजियम भी बिहार म्यूजियम और गांधी म्यूजियम के तरह हीं बहुत सारे ऐतिहासिक धरोहरों को अपने में संजोए हुए है। अब क्योंकि पटना का इतिहास देश के इतिहास से जुड़ा हुआ है, इसलिए यहां भी भारत के इतिहास के दर्शन किए जा सकते हैं। अगर आपको भी इतिहास में रुचि है तो आप इस म्यूजियम का रुख कर सकते हैं। म्यूजियम सोमवार को बंद रहता है और सप्ताह के दूसरे दिनों में सुबह 10:30 बजे से शाम के 4:30 बजे तक खुला रहता है।
11. संजय गांधी जैविक उद्यान पटना (Sanjay Gandhi Biological Park)
इस शहर में एक चिड़िया घर भी है। जिसका नाम संजय गांधी जैविक उद्यान है। संजय गांधी जैविक उद्यान पटना बेली रोड पर स्थित है। इसे 1973 में एक चिड़ियाघर के रूप में जनता के लिए खोला गया था। इस चिड़ियाघर में आज के समय में लगभग 110 प्रजातियों के 800 से अधिक जानवरों को रखा गया है। जिनमें बाघ, तेंदुआ, हिमालयी काला भालू, सियार हाथी, दरियाई घोड़ा, काला हिरन, चितौदार हिरण, मोर, पहाड़ी मैना, घडियाल, अजगर, आदि शामिल है। यहां एक एक्वेरियम भी है। जिसमें मछलियों की लगभग 35 प्रजातियाँ हैं, और स्नेक हाउस में 5 अलग-अलग प्रजातियों के 32 साँप हैं।
अगर आप चिड़ियाँ घर घूमना चाहते हैं तो आपको चिड़ियों घर के लिए पटना जंक्शन से हीं बस मिल जाएगी। यहाँ के टिकट का शुल्क बड़ों के लिए ₹30, बच्चों के लिए ₹10 और स्टूडेंट्स के ग्रुप के लिए ₹5 है।
12. पटना साहिब (Patna sahib)
पटना सिटी में सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब का जन्म स्थान और गुरुद्वारा है। जिसे तख्त श्री हरमंदिर साहिब के नाम से जाना जाता है। इस गुरुद्वारा को पटना साहिब भी कहते हैं। इस गुरुद्वारे से गुरु नानक देव और गुरु तेग बहादुर सिंह जी की यादें भी जुड़ी हुई हैं। यह गुरुद्वारा भारत के सबसे प्रसिद्ध गुरुद्वारों में से एक है। जहां दूर-दूर से लोग मत्था टेकने आते हैं। इस गुरुद्वारे को महाराणा रंजीत सिंह ने बनवाया था और यह गुरुद्वारा सिख समुदाय के लोगों के लिए एक विशेष आस्था का केंद्र है।
13. इको पार्क (Eco park)
पटना में स्थित इको पार्क इस शहर के लोगों के लिए एक परफेक्ट पिकनिक डेस्टिनेशन है। यहां आप वोटिंग के साथ-साथ कई तरह के के राइट्स का भी मजा ले सकते हैं। यह पार्क पटना के सबसे खूबसूरत और फेमस पार्कों में से एक है। इस पार्क एंट्री फीस ₹20 है। लेकिन अगर आप बोटिंग करना चाहते हैं तो उसके लिए आपको अलग से टिकट लेनी होगी। जो कि ₹60 पर पर्सन का होता है।
यह पार्क सप्ताह के सातों दिन खुला रहता है और इसकी टाइमिंग सुबह के 6:00 से शाम के 8:45 तक की है।
अब क्योंकि पटना शहर गंगा के किनारे बसा हुआ है तो ऐसे में यहाँ कई घाट भी हैं। जिनमें NIT घाट, गांधी घाट, कृष्णा घाट, बंशी घाट, काली घाट, गाय घाट आदि प्रमुख हैं। इन घाटों को जोड़ने के लिए गंगा के किनारे किनारे गंगा पाथवे बना हुआ है। शाम के समय कल कल बहती गंगा और ठंडी हवा के झोंके के बीच इस पाथवे पर चलना आपके दिन भर के थकान को खत्म करके आपको फिर से तरो ताजा कर देगा।
इस पाथवे के किनारे किनारे दीवारों पर खूबसूरत चित्रकारी की गयी है। जिसमें बिहार के अदभुत संस्कृति का झलक देखने को मिलता है।
15. अगम कुआं (Agam Kuan)
पटना शहर में सम्राट अशोक के शासनकाल से जुड़े बहुत सारे ऐसे ऐतिहासिक स्थल हैं जिनके बारे में जाने बिना पटना शहर को पूरी तरह से घुमा नहीं जा सकता है।ऐसे ऐतिहासिक स्थलों की सूची में अगम कुआं भी एक है। बताया जाता है कि सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म को अपनाने से पहले तक अपराधियों को सजा देने के लिए इस कुएं का इस्तेमाल किया जाता था। इसलिए इस कुआं को “धरती का नर्क” भी कहा जाता था। बताया जाता है कि इस कुएं का पानी कभी भी खत्म नहीं होता है और यह कुआं सीधा गंगासागर से जुड़ा हुआ है। कई बार बिहार सरकार के द्वारा इस कुएं के पानी को निकलवाने की कोशिश की गई। लेकिन ऐसा किया नहीं जा सका। बताया जाता है कि मुगल साम्राज्य के समय सम्राट अकबर ने इस कुएं का नवीनीकरण करवाया था। आज के समय में यह कुआं एक पर्यटन स्थल के तौर पर जाना जाता है।
16. कुम्हरार (Kumhrar)
बिहार की राजधानी पटना सम्राट अशोक के समय में अखंड भारत की राजधानी हुआ करती थी। पटना में इसके अवशेष आज भी जगह जगह देखने को मिलते हैं। पटना के कुम्हरार इलाके में आज भी गुप्त वंश के राज महलों के अवशेषों को देखा जा सकता है। अगर आपकी रूचि भी इतिहास को जानने में है और आप भी ऐसे ऐतिहासिक जगहों को एक्सप्लोर करना पसंद करते हैं तो यह जगह आपके लिए सबसे बेस्ट है।
अगर आप भी ऐतिहासिक धरोहरों (Historical monuments) को देखने और उनके इतिहास के बारे में समझने की चाहत रखते हैं तो, आपको बिहार के नालंदा विश्वविद्यालय को देखना और समझना भी काफी पसंद आएगा। ऐसा विश्वविद्यालय जिसे पूरे दुनिया में ज्ञान का केंद्र माना जाता था, आज वह मात्र एक वर्ल्ड हेरिटेज साइट (World Heritage Site) के रूप में सिमट कर रह गया है। आइए जानते हैं इस विश्वविद्यालय के विनाश की कहानी और आप कैसे यहां घूमने जा सकते हैं इसके बारे में। आइए जानते हैं नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में (Lets know about Nalanda University):-
किसने बनवाया ? who was the Founder of Nalanda University? यह विश्वविद्यालय ना सिर्फ भारत बल्कि संपूर्ण संसार के प्राचीनतम विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है। इस विश्वविद्यालय का निर्माण गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त ने पांचवी सदी में करवाया गया था। बाद में कुमारगुप्त के उत्तराधिकारियों (successors) ने इसे सहेज कर रखा। गुप्त वंश के पतन (Downfall) के बाद आने वाले दूसरे शासकों ने भी इसके विकास में सहयोग दिया। इसे महान सम्राट हर्षवर्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण (Protection) मिला।
विश्वविद्यालय का निर्माण मुख्यतः तीन राजाओं के द्वारा करवाया गया था। जिसमें पहले राजा थे कुमारगुप्त जिन्होंने इसकी पहली मंजिल का निर्माण करवाया था और इस विश्वविद्यालय की नींव (foundation) रखी थी। कुमारगुप्त एक महान शासक थे और उनका राज्य मगध कहलाता था। मगध की राजधानी राजगृह होती थी जो नालंदा विश्वविद्यालय से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। राजगृह आज के समय में राजगीर कहलाता है और बिहार के प्रमुख पर्यटन स्थलों (major tourist destinations) में से एक है।
दूसरे थे कन्नौज के राजा हर्षवर्धन जिन्होंने सातवीं शताब्दी में इसकी दूसरी मंजिल का निर्माण करवाया और इसके बाद नालंदा विश्वविद्यालय पूरे दुनिया में प्रसिद्ध (Famous) हो गया।
इसके बाद तीसरे थे बंगाल के राजा देव पाल, जिन्होंने 9वीं शताब्दी में इसकी तीसरी मंजिल का निर्माण करवाया। जिसके बाद इस विश्वविद्यालय को दुनिया भर में और ज्यादा प्रसिद्धि (fame) मिल गई।
किसने खोजा? Discovery of Nalanda University
19वीं शताब्दी में एक अंग्रेज (Englishman) को नालंदा में पढ़ रहे एक चीनी यात्री की डायरी मिली। जब वह उस डायरी (diary) में लिखे पते पर पहुंचा तो वह चारों ओर वीरान खंडहर (deserted ruins) थे। वहाँ टहलते हुए अंग्रेज ने देखा कि वहां कुछ चौथी शताब्दी के बने ईट के अवशेष हैं। फिर उसने हल्के हाथों से उस जगह को कुरेद (scrape) कर देखा तो उसे एक के बाद एक सजी हुई ईटों की श्रंखला (series) दिखाई दिया। उसके बाद उसने हीं वहां की खुदाई (digging) प्रारंभ करवाई और इस प्रकार खोज हुआ विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालय, नालंदा विश्वविद्यालय की।
19वीं सदी में नालंदा विश्वविद्यालय की खुदाई के समय सिर्फ 5% भाग हीं खुदाई करके बाहर निकाला गया। फिर इसकी खुदाई का काम रोक दिया गया। लेकिन नरेंद्र मोदी की गवर्नमेंट (Goverment) के नेतृत्व में 2016 में इसकी खुदाई और पुनरुद्धार (Restoration) का काम प्रारंभ किया गया। आज के समय में नालंदा विश्वविद्यालय भारत के प्रमुख ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों में से एक है। यूनेस्को (UNESCO) ने भी इसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट के रूप में मान्यता दी है।
नालंदा विश्वविद्यालय में 1500 से अधिक शिक्षक थे और 10,000 से अधिक छात्र पढाई किया करते थे। यहां विश्व के कोने-कोने से विद्यार्थी पढ़ने आते थे। यहां छात्रों के रहने के लिए 300 से अधिक कमरे बने हुए थे। सभी कमरे में रोशनी की व्यवस्था थी। विद्यालय के परिसर में जगह जगह पढ़ने का स्थान, प्रार्थना का प्रांगण (prayer hall) और स्टडी हॉल (study hall) बने हुए थे। एक कमरे में एक या एक से अधिक छात्रों के रहने की व्यवस्था थी। इन कमरों का प्रबंधन (management) संस्थानों और छात्र संगठनों (Institutions and student organizations) के द्वारा संभाला जाता था।
नालंदा विश्वविद्यालय के नजदीक हीं एक म्यूजियम बनवाया गया है। यहां पर नालंदा विश्वविद्यालय की खुदाई से मिलने वाले मूर्तियों और अवशेषों को संरक्षित करके रखा गया है। इसमें कई तरह की बुद्ध की काँसे की मूर्तियां भी शामिल हैं।
कैसे पहुंचे? how to reach?
अगर आप नालंदा आना चाहते हैं तो नालंदा का सबसे करीबी हवाई अड्डा पटना में स्थित जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा (Jaiprakash Narayan International Airport) है। जहां से नालंदा शहर की दूरी लगभग 90 किलोमीटर है। आपको बता दें कि पटना का जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, चंडीगढ़, देहरादून, जयपुर, अहमदाबाद और कोयंबटूर के साथ-साथ देश के काफी सारे अन्य हवाई अड्डों से जुड़ा हुआ है। जिसकी वजह से आपको फ्लाइट (Flight) से पटना पहुंचने में कोई भी तकलीफ नहीं होगी।
नालंदा का सबसे करीबी रेलवे स्टेशन नालंदा जिला में ही स्थित है। लेकिन नालंदा रेलवे स्टेशन के लिए आपको सिर्फ नालंदा के नजदीकी रेलवे स्टेशन पटना, दानापुर, गया, बिहार शरीफ और राजगीर से ही ट्रेन की सुविधा मिल पाएगी। अगर आप इन शहरों से जुड़े हुए हैं, तो आप आसानी से अपने शहर से ट्रेन पकड़ कर नालंदा पहुंच सकते हैं और नालंदा शहर को विजिट कर सकते हैं। लेकिन अगर आपके शहर से नालंदा के लिए डायरेक्ट (Direct) ट्रेन की सुविधा उपलब्ध नहीं है तो आपको अपने शहर से गया या पटना जंक्शन के लिए ट्रेन पकड़नी होगी।
अगर प्राचीनतम इमारतों को देखने और उसके बारे में जानने में आपकी भी रुचि है, तो इस जगह पर आना आपके लिए बेहद ही रोमांचक सफर साबित होगा।
अगर भागदौड़ की जिंदगी से कहीं दूर जाना चाहते हैं और खुद को नेचर (Nature) के करीब महसूस करना चाहते हैं तो, आपके लिए बोधगया सबसे बेस्ट ऑप्शन (best option) हो सकता है। जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है, बोधगया महात्मा बुद्ध की धरती है। यह शहर बिहार की राजधानी पटना (Patna) से लगभग 100 किलोमीटर दूर है। खूबसूरत पहाड़ियों और बुद्ध स्मृतियों से जुड़े हुए इस शहर में आकर लाइफ की सारी निगेटिविटी (Negativity) को खत्म किया जा सकता है।
बोधगया का इतिहास (History of Bodhgaya) :
बोधगया एक प्राचीन शहर है। जहां लगभग 500 साल पहले भगवान बुद्ध को फल्गु नदी के तट पर, बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। कहते हैं भगवान बुद्ध को वैशाख महीने में पूर्णिमा के दिन ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। जिसके बाद से वह बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए और यहां बौद्ध भिक्षुओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया। वैशाख की पूर्णिमा जिस दिन भगवान महावीर को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, उस दिन को बौद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाने लगा। माना जाता है कि, बोधगया के महाबोधि मंदिर में स्थित बुद्ध की प्रतिमा उसी अवस्था में है, जिस अवस्था में महावीर बुद्ध ने तपस्या की थी। 13वीं शताब्दी तक यह शहर पूरी दुनिया भर में काफी प्रसिद्ध था।
बोधगया में घूमने की जगह :
1. महाबोधि मंदिर (Mahabodhi temple): बोधगया आने वाले लोगों के लिए महाबोधि मंदिर एक खास आकर्षण (Attraction) का केंद्र होता है। दुनिया भर से भगवान बुद्ध के भक्त यहां इस मंदिर में दर्शन करने आते हैं। इस मंदिर को महाबोधि वृक्ष के चारों ओर बनाया गया है। इस मंदिर को सम्राट अशोक ने बनवाया था। इस मंदिर के बीच स्थित महाबोधि वृक्ष और उसके नीचे मौजूद भगवान बुद्ध की मूर्ति लोगों के बीच काफी पॉपुलर (popular) है। विक्रमशिला विश्वविद्यालय और नालंदा विश्वविद्यालय में भी इस मूर्ति के प्रतिरूप को स्थापित किया गया है।
2. थाई मठ (Thai Monastery): इस शहर में कई सारे प्रसिद्ध बौद्ध मठ भी हैं। इन्हीं प्रसिद्ध मठों में से एक है थाई मठ। इस मठ के निर्माण में सोने से बनी टाइलों (Golden Tiles) का इस्तेमाल किया गया है। इसके दीवारों और छतों में की गई नक्काशी भारतीय संस्कृति का एक बेहतरीन उदाहरण है। यहां का शांत माहौल और स्वच्छ वातावरण इतना सुकून देने वाला है कि आपको यहीं का होकर रह जाने का मन करेगा।
3. भगवान बुद्ध की प्रतिमा (Statue of Buddha) : इस शहर में भगवान बुद्ध की एक 80 फीट ऊंची प्रतिमा भी है। इस प्रतिमा को भगवान बुद्ध के प्रसिद्ध स्मारकों में से एक माना जाता है। इस मूर्ति को देश के सबसे ऊंची बुद्ध की मूर्तियों में से एक माना जाता है। इसका का उद्घाटन (Inaugration) दलाई लामा द्वारा 1989 में किया गया था। इसे बलुआ पत्थर के ब्लॉक (Block of sand stone) और लाल ग्रेनाइट (Red granite) से बनाया गया है। इस मूर्ति की लोकप्रियता (Popularity) का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पर्यटक (Tourist) विशेषकर इस मूर्ति को देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं।
4. जापानी मंदिर (Japanese temple) : प्राकृतिक खूबसूरती (Natural beauty) से भरा हुआ यह शहर वास्तु कला में भी धनी है। इस शहर में एक जापानी मंदिर है, जिसमें जापानी आर्किटेक्चर (Architecture) देखने को मिलता है। इस मंदिर के दीवारों पर महात्मा बुद्ध के उपदेशों की नक्काशी की गई है। इस मंदिर का निर्माण 1972 में किया गया था। यह मंदिर मुख्य शहर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
4. आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम (Archaeological Museum): इस शहर में आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम भी है। यहाँ बौद्ध और हिंदू धर्म तरह-तरह की मूर्तियां और कलाकृतियां मौजूद हैं। साथ ही साथ यहां खुदाई में मिले हुए अन्य वस्तुओं को भी रखा गया है, जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
5. पितृपक्ष मेला (Pitrupaksha Mela): गया का हिंदू धर्म में भी विशेष महत्व रहा है। क्योंकि हिंदू धर्म में इसे मोक्ष भूमि के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि, पितृपक्ष के समय यहां आकर पिंडदान करने से पूर्वजों के आत्मा को शांति मिलती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। हर साल भाद्रपद के पूर्णिमा से अश्विन के कृष्ण पक्ष तक यहां पितृपक्ष का मेला लगता है।
गया जाने के लिए सबसे सही समय (Best time to visit Gaya) :
वैसे तो गया में साल भर सैलानियों (Visitors) की भीड़ लगी रहती है। लेकिन अगर आप मौसम का लुफ्त उठाते हुए और बिना किसी परेशानी के गया घूमना चाहते हैं तो, फरवरी से अप्रैल और सितंबर से नवंबर तक के समय में यहां घूमने जा सकते हैं। सितंबर से नवंबर के बीच यहां पितृपक्ष का मेला लगता है। इस समय लोग यहां जाकर अपने पूर्वजों के मोक्ष की प्राप्ति के लिए पिंडदान करते हैं।
कैसे पहुँचें? (How to reach):
बोधगया हवाई, रेल और सड़क तीनों ही मार्गो से जुड़ा हुआ है। बोधगया जाने के लिए सबसे आसान रास्ता हवाई मार्ग है। गया जिला का एयरपोर्ट बिहार का इंटरनेशनल एयरपोर्ट(International Airport) है, जो भारत के अन्य शहरों से भी अच्छी तरह से जुड़ा (Well connected) हुआ है। बोध गया आने का दूसरा सबसे सरल मार्ग रेल मार्ग है। बोधगया से 13 किलोमीटर दूर स्थित गया जंक्शन (Junction) भी भारत के अलग-अलग शहरों से जुड़ा हुआ है। गया आने के लिए आप पटना जंक्शन तक की ट्रेन भी ले सकते हैं। पटना गया की दूरी लगभग 100 किलोमीटर है। जिससे रोड रेल दोनों ही रास्तों से आसानी से तय किया जा सकता है।
आप यह तो जानते होंगे कि भारत के हर भाग में अलग-अलग तरह की संस्कृति (culture) बसती हैे। ऐसे में हर जगह अलग-अलग तरह के रीति रिवाजों (rituals) और परंपराओं का चलन है। कहीं जनजातियों(tribes) की संस्कृति का बसेरा है तो कहीं शहरी संस्कृति(modern culture) का प्रभाव। अलग अलग कल्चर होने के कारण अलग-अलग जगहों की परंपराओं और प्रथाओं में जमीन आसमान का फर्क होता है। आज इस ब्लॉग में हम आपको बताने वाले हैं एक ऐसे अजीबोगरीब प्रथा के बारे में जिसके बारे में आप शायद हीं जानते होंगे। यूं तो बिहार के मिथिलांचल का नाम भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। क्योंकि मधुबनी पेंटिंग (Madhubani Painting) को ग्लोबल (Globally) लेवल पर रिकॉग्नाइज किया गया है।
बिहार के मिथिलांचल के प्रसिद्धि की अगर बात करें तो, हिंदू धर्म में इस जगह की खास मान्यता है। क्योंकि श्री राम की पत्नी माता सीता का जन्म मिथिलांचल के ही जनकपुर में हुआ था। जनकपुर इंडो नेपाल बॉर्डर पर हीं स्थित है। जनकपुर जाने के लिए आपको सबसे पहले बिहार के मधुबनी जिला पहुंचना पड़ेगा।
लेकिन क्या आपको यहां के इस प्रथा के बारे में पता है? मधुबनी या यूं कहें कि मिथिलांचल में ऐसी परंपरा मानी जाती है जो शायद ही कहीं और मानी जाती हो!
जी हां, मिथिला में नवविवाहिता दुल्हन के अपने ससुराल आने पर, उनसे एक रस्म करवाई जाती है। अब आप कहेंगे कि इसमें कौन सी बड़ी बात है? नई दुल्हन के स्वागत के बाद हर जगह कई सारी रस्में निभाई जाती हैं। लेकिन इसमें बड़ी बात है। क्योंकि यह रस्म मामूली रस्म नहीं होती है। यह होती है मछली (Fish Cutting) को एक हाथ से कटवाने की रीति! जानकर अजीब लगा ना? अजीब लगना वाजिब भी है। लेकिन यह सच है, मिथिलांचल में जब नई दुल्हन मायके से ससुराल जाती है तो, उसके बाद उन्हें 4 दिनों तक कई तरह के रस्मों रिवाजों को पूरा करना होता है और द्विरांगमन (विदाई) के चौथे दिन, यानी चतुर्थी को दुल्हन से एक हाथ से मछली काटने के लिए कहा जाता है।
वैसे तो इस प्रथा के बारे में कई लोगों की अलग-अलग राय हैं, लेकिन कुल मिलाकर देखा जाए तो यह नई नवेली दुल्हन के लिए एक परीक्षा (test) के तरह होता है। इस परीक्षा के जरिए जाना जाता है कि क्या दुल्हन को रसोई और घर गृहस्ती संभालना आता है? एक हाथ से मछली काटना अपने आप में हीं एक चैलेंज (challange) होता है। जिसमें दुल्हन इस विधि को पूरा करके दिखाती है कि, वह आसानी से रसोई संभाल सकती है।
बताया जाता है कि यह परंपरा मिथिलांचल में सालों पहले से चली आ रही है। वैसे आपको यह बता दूँ कि मिथिलांचल की भूमि मछली पालन के लिए शुभ मानी जाती है और बिहार के सहरसा जिला में एक मत्स्यगंधा टेंपल भी है। जहां मत्स्य कन्याओं की पूजा की जाती है।
भारत एक ऐसा देश है जहां के हर राज्य में अलग तरह के रहन-सहन और खानपान के लोग रहते हैं। अगर आप भी खाने के शौकीन इंसान हैं साथ ही साथ ट्रैवलिंग(travelling) भी करते रहते हैं, और आपकी रूचि नई जगह के खानपान को एक्सप्लोर(explore) करने में है तो, यह ब्लॉग आपके लिए ही है। इस ब्लॉग में मैं आपको बिहार के कुछ फेमस फूड्स(famous foods) के बारे में बताऊंगी। अगर आप भी कभी बिहार जाएंगे तो इन फूड आइटम्स(food items) को ट्राई कर सकते हैं।
1. लिट्टी चोखा (Litti Chokha):
जब भी बात बिहार के खान पान की आती है तो सबसे पहले जो नाम दिमाग में आता है वह है लिट्टी चोखा। यह बिहार का सबसे फेमस फूड है। अगर इस लिट्टी के बनाने की विधि की बात की जाए तो इसे दो तरीके से बनाया जाता है। पहली विधि में लिट्टी को आग पर सेंक कर बनाया जाता है और दूसरी विधि है लिट्टी को तेल में छानकर बनाने की। दोनों ही तरीके से बनाई जाने वाली लिट्टियां, खाने में स्वादिष्ट होतीं हैं। अगर आग में सिंकी हुई लिट्टी के स्वाद की बात करें तो उसके सौंधे से स्वाद के कारण आपको ये दिल मांगे मोर वाली फीलिंग आ जाएगी। वहीं जो लिट्टियां तेल में फ्राई होते हैं, वह खाने में बहुत ज्यादा क्रिस्पी होते हैं। अगर आप लिट्टी को समझना चाहते हैं तो समझ लीजिए की यह बिल्कुल कचौड़ी की तरह होता है। जिनमें सत्तू की फीलिंग की रहती है। वहीं अगर चोखा की बात करें तो यह बैंगन बेसन और टमाटर से बनाया जाता है। यह बिहार के लोगों का पसंदीदा डिश (Favourite dish) है। यह आपको बिहार के किसी भी शहर में किसी दुकान पर आसानी से खाने को मिल जाएगा।
2. मखाने की खीर(Makhana’s Kheer) :
बिहार भारत के उन गिने-चुने राज्यों में से एक है, जहां मखाने की खेती जीविका के तौर पर की जाती है। बिहार के दरभंगा जिले के मखाने की पूरी दुनिया भर में डिमांड है। मखाने की खेती होने के कारण, इसके तरह तरह के डिशेज भी बिहार में बनाए जाते हैं। जिसमें से एक है मखाने की खीर! इसका स्वाद इतना लजीज होता है कि, आपका इससे मन हीं नहीं भरेगा। वैसे तो इसे सिंपल तरीके (simple method) से बनाया जाता है। पहले मखाने को भुना जाता है और फिर उसमें दूध डाला जाता है। लेकिन इसके स्वाद (taste) में कोई कमी नहीं होती है। यह मुंह में जाते हीं घुल जाने वाली डिश है। जिसका स्वाद आ कभी नहीं भूल पाएंगे। और मन? मन तो बिल्कुल भी नहीं भरेगा! थोड़ा और वाली फीलिंग आएगी।
3. मालपुआ(Malpua) :
वैसे तो मालपुआ पूरे उत्तर भारत में फेमस है, लेकिन बिहार में इस डिश का अलग ही क्रेज है। चाहे कोई त्यौहार (festival) हो या घर में पूजा हो, मालपुआ आपको हर जगह मिल जाएगा। खासकर होली (Holi) के अवसर पर तो मालपुआ बनना हीं है। मानो बिना मालपुए के यहां होली अधूरी मानी जाती है। ऐसा हो भी क्यों ना? यह होता हीं इतना सॉफ्ट और स्वीट है कि, मुंह में जाते हीं घुल जाता है। मालपुए के बैटर में दूध, चीनी, मैदा और केला के साथ-साथ तरह-तरह के नट्स (nuts) मिले रहते हैं। जो इसके स्वाद को और ज्यादा बढ़ा देते हैं। अगली बार अगर आप भी बिहार जाएं, तो मालपुए को ट्राई करना मत भूलना।
4. सत्तू (Sattu) :
बिहार के फेमस फूड की बात की जाए तो सत्तू को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। सत्तू को पेय पदार्थ की तरह पिया भी जाता है और खाया भी जाता है। सर्दियों के दिनों में सत्तू को खाया जाता है। वहीं गर्मी के दिनों में सत्तू में नींबू पानी और नमक मिलाकर बड़े चाव से पिया जाता है। और पिया भी क्यों न जाए यह होता हीं इतना हेल्दी और टेस्टी है। जी हां यह एक ऐसा पेय पदार्थ है जो प्रोटीन (protein) से भरपूर है। क्योंकि इसे चने की दाल से बनाया जाता है और यह तो सब जानते हैं की दाल में प्रोटीन पाया जाता है। आपको बिहार में सत्तू से बने सत्तू पराठा (Sattu Paratha) भी खाने को मिल जाएंगे जो आलू पराठा के जैसे ही लजीज होता है।
5. खाजा (Khaja):
अगर फास्ट फूड की चर्चा हो और उसमें कुछ मीठा (sweet) ना हो तो चर्चा अधूरी मानी जाती है। अगर आप मिठाई के शौकीन हैं तो बिहार के सिलाव का खाजा आपको जरूर पसंद आएगा। वैसे तो बिहार में हर जगह हीं खाजा मिलते हैं, लेकिन सिलाव की बात ही अलग है। और तो और यहां 54 लेयर्स वाला खाजा मिलता है। इसे बनाने में मैदा दूध का इस्तेमाल किया जाता है और लास्ट में से चाशनी में डुबोकर सर्व किया जाता है। यह परतों वाली मिठाई है जो काफी मीठी होती है। बिहार में कोई भी शुभ काम हो वहां आपको खाजा की उपस्थिति जरूर दिख जाएगी।
6. ठेकुआ (Thekua):
आपने बिहार के छठ पूजा (Chhath puja) का नाम तो सुना ही होगा। बिहार का राजकीय पर्व भी है और इस पूजा से जुड़ा हुआ है एक स्पेशल फूड आइटम। लेकिन ऐसा नहीं है कि आप इसे सिर्फ छठ पूजा में ही खा सकते हैं। बिहार में हर तरह के शुभ कामों में ठेकुआ बनाया जाता है। यह चावल के आटे और शक्कर से बना हुआ एक फेमस फूड आइटम है। अगर आप छठ पूजा के अवसर पर बिहार जाएंगे तो आपको हर घर में ठेकुआ खाने को मिल जाएगा। यह खाने में मीठा सा और क्रिस्पी सा होता है। जो खाने के शौकीन लोगों खासकर बच्चों का ध्यान अपनी और आकर्षित करता है।
7. बगिया (Bagiya) :
अरे अरे यह बगीचे वाला बगिया नहीं है, यह खाने वाला बगिया है। जी हां मिथिलांचल में आपको बगिया खाने को मिल जाएगा। जैसा कि सब जानते हैं कि मिथिलांचल (Mithilanchal) अपने रिच कल्चरल वाइब्स (rich cultural vibes) के लिए पूरे दुनिया में जाना जाता है। मिथिलांचल के कल्चर इतना रिच होने का एक कारण यहां मिलने वाले कई तरह के अतरंगी फूड आइटम्स भी हैं। इन्हीं फूड आइटम्स में से एक है बगिया। वैसे तो बगिया सिर्फ पूष के महीने यानी दिसंबर से जनवरी में बनाया जाता है। लेकिन इसका स्वाद आप सालों तक नहीं भूल पाएंगे। इसे भी चावल के आटे से बनाया जाता है। जिसके अंदर शक्कर या फिर खोए की फीलिंग रहती है। फिर इसे दूध में डिप किया जाता है और उबाला जाता है। जिसके बाद बनकर तैयार होता है यह फेमस फूड बगिया। जिसे सब बड़े ही चाव से खाते हैं। मीठा खाने के शौकीन नहीं है तो भी आप बगिया खा सकते हैं। क्योंकि मिथिलांचल में आपको हर परेशानी का हल मिल जाता है। जी यहां नमकीन बगिया भी मिलता है। जिसमें दाल की फीलिंग रहती है और इसे पानी में उबाला जाता है।
8. तिलकुट और खूबी की लाय (Tilkut and khubi ki Lai) :
जैसा कि आपने महसूस किया होगा उत्तर भारत में मकर संक्रांति का अलग ही क्रेज देखने को मिलता है। उत्तर भारत के हर राज्य में मकर संक्रांति बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है। बस हर राज्य में इस त्यौहार को मनाने का तरीका बदल जाता है कहीं मकरसंक्रांति पर पतंगबाज़ी का रिवाज है, तो कहीं खिचड़ी का! बिहार में भी यह त्यौहार बड़े धूम धाम से मनाया जाता है और इस दिन यहाँ तिलकुट और खूबी की लाय बनाया और खाया जाता है।
तो अगली बार जब भी आप बिहार आए तो आप इन फूड आइटम्स को ध्यान में जरूर रखें। और एक बार इन्हें जरूर टेस्ट करें। यकीन मानिए आपको यह फूड आइटम जरूर पसंद आएंगे।