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Most Famous food of Uttarakhand

तो चलिए करवाते हैं आपको उत्तराखंड के फ़ूड से वाकिफ

उत्तराखंड – नाम सुनते ही पहाड़ों की छवि मन में आना तो लाज़िमी ही है और फिर वो गाना भी तो गुनगुनाना है……


बताया गया है पुराणों में, यहीं से जाती है स्वर्ग की सीढी,
रातों को गुज़रो तुम डांडो से डर लगता,
भूत न मांग ले बीड़ी।।

उत्तराखंड में पहाड़, वादियां, झरनें, ठण्ड और मौसम इन सब के बारे में तो आपने बेशक सुना ही होगा। पर , क्या आप जानते है उत्तराखंड के फेमस फ़ूड क्या हैं, आग में बनी भट्ट की चढ़कानी क्या है, शहर से दूर जाने पर माँ के हाथों से बनें सेल क्या हैं।और अगर आप उत्तराखंड से हैं तो इन्हें खाये बिना तो बेशक ही आपका कोई त्यौहार, त्यौहार सा नहीं लगता होगा।
तो चलिए आज हम आपको पहाड़ों के खान-पान से रूबरू करवाते हैं, जहाँ बुजुर्गों के आशीर्वाद के बिना कुछ काम शुरू नहीं होता और इन पकवानों के बिना त्यौहार खत्म नहीं होता। (Famous Food of Uttarakhand)

Most Famous food of Uttarakhand with name

भटिया(Bhatia)

Bhatiya

अगर आप उत्तराखंड से नहीं है तो “भट्ट” क्या होता है इससे आप बिल्कुल ही अनजान होंगे। भट्ट की खेती उत्तराखंड के कुमाऊँ रीजन में जेठ और आषाढ़ के महीने में की जाती है। भट्ट को एक तरह से दाल कहना गलत नहीं होगा क्योंकि इसे कुमाऊँ के लोग ज्यादातर चावल के साथ खाना पसंद करते हैं। ये ना सिर्फ एक दाल बल्कि सेहत के लिए काफी फायदेमंद भी है काले भट्ट में भरपूर मात्रा में फाइबर पाया जाता है और इस दाल से कोलेस्ट्रॉल को कम करने में भी मदद मिलती है। इसे बहुत ही आसानी से और दालों की तरह बनाया जाता है और फिर आग में नानी या दादी के हाथों से बनी भटिया तो हर पहाड़ी का एनेर्जी बूस्टर है। भटिया बनाने की एकदम सिंपल सी रेसिपी है जिसमें भट्ट को पीस के उसे पानी में पकाया जाता है। पर वो कहते हैं ना चूल्हे में बनी सिंपल दाल का मुकाबला तो शहर की दाल-मखनी क्या ही कर पायेगी। (Famous food of Uttarakhand)

बड़ी की सब्ज़ी (badi ki sabji)

Badi ki sabji

अब आप सोच रहे होंगे कि बड़ी की सब्ज़ी में भी क्या स्पेशल है, बाजार से न्यूट्रीला का पैकेट लेकर हम भी बना लेते हैं, फिर उत्तराखंड में ये स्पेशल कैसे। पर नहीं ये बड़ी न्यूट्रीला के पैकेट वाली बड़ी नहीं है, उत्तराखंड में स्पेशल बड़ी उड़द की दाल से बनाई जाती है। उड़द की दाल को पीस कर उसमें मसाले डालकर उसे बड़ी के शेप में बनाया जाता है, और फिर धूप में सूखाने के लिए रख दिया जाता है और फिर सूखने के बाद फ्राई करके तैयार हो जाती है मसाला बड़ी। इसके स्वाद और क्रंच का अंदाज़ा अब आप बिना खाए भी लगा चुके होंगे। हाँ, सच में ये बेहद लाजवाब होती है।(famous food of Uttarakhand)

सेल

सेल एक ऐसा पकवान है जिसके बिना कुमाऊँ के तो सारे त्यौहार अधुरे हैं। भाई दूज, मकर सक्रान्त, राखी, सभी तैयारों में सेल पकाने की परंपरा कई पुश्तों से चली आ रही है। खासकर ठंड के मौसम में, चूल्हे में, बड़ी सी कढ़ाई में, जलेबी की तरह बनाये गए सेल एक अलग ही माहोल बना देते हैं। सेल चावल के आटे से बनाया जाता है। जिसमें केला और दौन के साथ पानी डालकर घोल बनाया जाता है और एकदम जलेबी की तरह कढ़ाई में गोल-गोल जलेबी का आकर दिया जाता है। और एक बात बता दू कि पहाड़ों में अगर एक घर में सेल बन रहें हो तो बाकि का आधा मोहल्ला भी वहीं गप्पें मारते दिखाई पड़ता है। क्योंकि सेल कहें तो त्यौहार और त्यौहार भला कौन अकेले मनाता है

जौला

उत्तराखंड में आपको न केवल सिर्फ स्वादिष्ट व्यंजन मिलेंगे बल्कि यहाँ के कुछ पकवान स्वास्थ्यवर्धक है, और जौला भी उनमें से एक है। क्योंकि यह खाने में हल्का है। उत्तराखंड में छोटे-छोटे बच्चे तो जौला इतना पसंद करते हैं कि वह सिर्फ बीमारी में ही नहीं बल्कि महीने में एक बार तो जौला खाने की परंपरा का निर्वाह करते है। इसे बनाने का तरीका भी एकदम सरल है, काले भट्ट को पीस कर मसालों में चावल के साथ उबाल दिया जाता है। जौला खासकर बच्चों का पसंदीदा व्यंजन माना जाता है

डुब्का

दुबका सर्दियों में बनाए जाने वाला व्यंजन है और आमतौर पर सर्दियों में ही खाया जाता है। दुबका प्रोटीन का एक पावरहाउस है और कुछ ही समय में तैयार करने के लिए एक आसान रेसिपी है। आमतौर मूंग दाल डुब्का रेसिपी को उबले हुए चावल और कलौंजी गोभी आलू के साथ दोपहर के खाने में बनाया जाता है

तो आप उत्तराखंड के इन परंपरागत और फेमस फ़ूड के बारे में तो जान ही गए पर चूल्हे के खाने का स्वाद लेने समय निकाल कर जरूर आएं इन पहाड़ों में। (Famous food of Uttarakhand)

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Best Places To Eat In Chandni Chowk, Old Delhi

चाँदनी चौक है दिल्ली के वर्ल्ड फेमस स्ट्रीट फ़ूड की पहचान

अलग-अलग संस्कृतियों में रची बसी दिल्ली देश की शान और देश की जान मानी जाती है, फिर चाहे दिल्ली के लाजपत नगर की बात करें या चाँदनी चौक की, दिल्ली अपने आप में एक गहरा इतिहास समेटे हुए है। इसके अलावा अगर दिल्ली के मशहूर खान-पान की बात करें तो यहाँ न तो बंगाल का रोशोगुल्ला इतना फेमस है और ना ही हरियाणा का चूरमा। दिल्ली में सबसे फेमस है दिल्ली का “स्ट्रीट फ़ूड”। जी हाँ, दिल्ली का स्ट्रीट फ़ूड जहाँ आपको मुंबई की भेल पूरी, तिब्बतन मोमोज़, अमृतसरी कुलचा, इंदौर का पोहा, नई दिल्ली की चाट और भी लगभग सभी राज्यों के फेमस फ़ूड का जायका यहाँ हर गली में मौजूद मिलेगा। दिल्ली जितनी अपनी विरासत और ऐतिहासिक जगहों के लिए मशहूर है उतनी ही यहाँ के स्ट्रीट फ़ूड की महक देश भर में स्वाद का परिचय देते दिखाई पड़ती है। तो आज के इस ब्लॉग में हम आपको ले चलेंगे दिल्ली के ऐतिहासिक और मशहूर चाँदनी चौक में। जहाँ के स्ट्रीट फ़ूड का ज़ायका ऐसा है कि सिर्फ खुशबू से ही मुँह में पानी आ जाता है। Best Places To Eat In Chandni Chowk, Old Delhi

चाँदनी चौक की इन 5 दुकानों का स्वाद दिल्ली में आपको और कहीं नहीं मिलेगा, तो चाँदनी चौक आकर यहाँ खाना बिल्कुल ना भूलें।

दौलत की चाट : अगर कभी चाट की बात हो रही हो तो सभी के मन में कुछ तीखा, मसालेदार, चटपटा आने लगता है पर दौलत की चाट एक ऐसी चाट है जिसका स्वाद मीठा है। दौलत की चाट दिल्ली की सबसे मशहूर विंटर डैज़र्ट है जो सिर्फ अक्टूबर से मार्च के महीने में ही खाने को मिलती है दिल्ली के चाँदनी चौक में और जिसके चर्चे आप लोगों ने काफी सुने भी होंगे। चाँदनी चौक की लगभग हर गली में आपको दौलत की चाट के स्टाल्स लगे दिखाई देंगे

क्यों फेमस है – दौलत की चाट एक रहस्यमय मिठाई है जिसे कहा जाता है कि यह मुग़ल शासन के टाइम से बनायी जा रही है। इस चाट का सिर्फ सर्दियों में मिलने का यह कारण है क्योंकि इसकी रेसिपी में सर्दियों की ओस का इस्तमाल किया जाता है। जरूर आप भी सोच रहे होंगे की ओस से रेसिपी ये कैसे मुकम्मल है, पर यही तो खासियत है दौलत के चाट की। इसमें सबसे पहले दूध को उबाल कर बाहर ठण्ड में रख दिया जाता है जिससे ठंडा होने पर उबले हुए दूध के ऊपर ओस बैठ जाती है। इस मिठाई को अपने सुंदर दिखने के लिए लगभग आधे दिन और पूरी रात की आवश्यकता होती है, और इसे केवल 2-3 घंटे के लिए ही खुले में रखा जा सकता है। इस चाट को लखनऊ में निमिष और कानपूर में मलाई मक्खन के नाम से जाना जाता है।

नटराज दही भल्ले : चाँदनी चौक की लगभग सभी दुकानें काफी पुराने समय से हैं। और उन्हीं में से एक है नटराज दही भल्ले जो 1940 से दही भल्लों का स्वाद परोस रही है। यहाँ चौबीसों घंटे लगी भीड़ आपको इसके स्वाद का गवाह दे देगी। नरम, दानेदार, और फुले हुए भल्ले और उसके बहार चढ़ी सुपर क्रिस्पी परत , लाल इमली की चटनी , और उप्पर से छिड़के मसाले। आ गया ना मुँह में पानी ?
यहाँ के दही भल्ले जितने मशहूर हैं वाकई उतने स्वादिष्ट भी हैं। तो चाँदनी चौक जाकर दही भल्ले टेस्ट करना बिलकुल ना भूलें।

पराठें वाली गली :

29 Best Places To Eat In Chandni Chowk, Old Delhi

चाँदनी चौक में सबसे मशहूर पराठें वाली गली का नाम तो न सिर्फ दिल्ली बल्कि देश भर में ही काफी मशहूर है। यहाँ पर आपको पराठों की 40-50 वैरायटी मिल जाएगी। और यहाँ के पराठों की खास बात यह है कि यहाँ पर बनने वाले पराठें देसी घी में डीप फ्राई किए जाते है, और यहाँ पर आकर आप पराठों में तेल की उम्मीद ना ही रखें तो बेहतर है।

और एक चीज़ यहाँ पर खास है कि यहाँ पर सभी लगभग शुद्ध शाकाहारी पराठें ही बनाते हैं जिसमे ना ही प्याज शामिल है और न ही लहसून। इन पराठों को और स्वादिष्ट बनाने के लिए बादाम काजू और सूखे मेवे भी डाले जाते है। अगर आप खाने के ज़रा भी शौकीन हो तो थाली ख़त्म किए बिना आप यहाँ से उठ नहीं पाएंगे क्योंकि यही तो खास बात है पराठें वाली गली की।

कुरेशी कबाब :

जामा मस्जिद के पास, मीना बाजार के बिलकुल सामने अपनी विरासत जमाए कुरेशी कबाब नॉन वेज़ लवर्स का अड्डा है। वैसे तो यहाँ आपको अलग अलग तरह के कबाब खाने को मिल जायेंगे पर लजीज आनंद के लिए आप यहाँ कबाब रायते और चटनी के साथ आर्डर करें। यहाँ कबाब इतने टेस्टी हैं कि आप दुबारा यहाँ आए बिना रह नहीं पाएंगे और ये कबाब न सिर्फ टेस्टी बल्कि बजट फ्रेंडली भी है।

ज्ञानी की हट्टी : तो क्या आप भी हैं रबड़ी के दीवाने हैं तो चल पड़िये ज्ञानी दी हट्टी में खाने। पुरानी दिल्ली के सबसे सीक्रेट फूड्स में से एक है ज्ञानी दी हट्टी जोकि अपने रबड़ी फालूदा के लिए सबसे ज्यादा जानी जाती है। दाल का हलवा, मूंग का हलवा, बादाम का हलवा, सूजी का हलवा और कई तरह की मिठाइयाँ इस जगह आपको मिल जाएँगी।

तो इंतज़ार किस बात का है। चल पड़िये चाँदनी चौक की इन मशहूर जगहों में और चख लीजिये दिल्ली के स्ट्रीट फ़ूड का स्वाद।

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Joy Gaon Picnic Park – Best Picnic spot near Delhi NCR

Joy Gaon Picnic Park Jhajjar – जहाँ आप शहरी कल्चर और एडवेंचर के साथ-साथ गाँव के ट्रेडिशनल लुक से भी रूबरू हो सकेंगे….

प्रदीप कुमार

फाइव कलर्स ऑफ़ ट्रेवल के इस शानदार ब्लॉग में आपका स्वागत है आज इस व्लॉग में हम आपको लेके चलेंगे दिल्ली से लगभग 41 किलोमीटर दूर झज्जर-बहादुरगढ़ रोड पर स्थित जॉय गांव पिकनिक पार्क में – जहाँ आप शहरी कल्चर के साथ-साथ गाँव के ट्रेडिशनल लुक से भी रूबरू हो सकेंगे। Joy Gaon Picnic Park Jhajjar

How to reach Joy Gaon

रोमांचक जिप लाइन का अनुभव लेना हो या फिर दूर-दूर तक फैले हरे भरे खेतों के बीच में सुकून के पल बिताने हो तो जॉय गांव में आपका स्वागत है। यहाँ शहरी जीवन से दूर आपका बिताया हर पल ग्रामीण कल्चर को अपने में समेटे आपके दिल में बस जायेगा।

दिल्ली एनसीआर  में जॉय गांव क्वालिटी टाइम बिताने के लिए एक बेहद शानदार जगह है। अगर आप दिल्ली से पब्लिक ट्रांसपोर्ट में आना चाहते  हैं तो आप ग्रीन लाइन से  श्री राम शर्मा बहादुरगढ़ मेट्रो स्टेशन उतरकर टैक्सी या कैब से जॉय गांव आ सकते हैं। अगर आप दिल्ली की तरफ से अपने पर्सनल वेह्कल में आना पसंद करते हैं तो आप बहदुरगढ़ बायपास से होते हुए झज्जर रोड ले सकते हैं। यह शानदार पिकनिक स्पॉट बहादुरगढ़  से सिर्फ 15 किलोमीटर की दुरी पर ही है।

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Tickets/टिकट्स 

जॉयगाँव में जब आप अंदर जाएंगे तो आपको यहां एक टिकट काउंटर मिलेगा। इस पिकनिक पार्क में अंदर जाने के लिए 5 से 10 साल तक के बच्चों के लिए 650 रूपये  ,10 से 60 साल के लोगों के लिए 1200 रूपये  और सीनियर सिटीजन यानी 60 साल से ज्यादा के ऐज ग्रुप के लिए 1000 रूपये पर पर्सन का टिकट लगता है।  इस टिकट में स्नेक्स, ब्रेकफास्ट लंच और तमाम पिकनिक एक्टिविटीज शामिल है। बता दें कि अगर आप जॉयगांव की ऑफिसियल वेबसाइट से ऑनलाइन बुकिंग करते है तो आपको 5 % का डिस्काउंट भी मिलता है। यहां पर आपको रात को रुकने की व्यवस्था भी मिल जाएगी। यहां आपको रुकने के लिए एकदम लक्ज़री रूम मिलेंगे। जहाँ से आप दूर दूर तक फैली हरयाली और सनसेट के खूबसूरत दृश्य भी देख सकते हैं.

डायनिंग हॉल

 मैंन एंट्री गेट से जैसे ही आप अंदर जाएंगे तो आपको रिसेप्शन मिलेगा, जहां आप जॉय गाँव से रिलेटेड कोई भी जानकारी ले सकते हैं। हमें बेहद कॉपरेटिव स्टाफ मिला.

आप यहां से जैसे ही आगे जाऐंगे तो आपको एक बहुत बड़ा डायनिंग हाल मिलेगा जहां बैठकर आप खाना खा सकते हैं, क्योंकि हम लंच के समय पंहुचे थे इसलिए हमने सबसे यहाँ पहुंच कर लंच किया।  यहां आपको एकदम लजीज खाना मिलेगा, खाने में तरह-तरह की वैराइटी मिलेगी। शाही पनीर, मिक्स वेज, कढ़ी पकोड़ा, पुलाव  से लेकर जलेबी रबड़ी तक यहाँ आपको सब फ़ूड आइटम्स मिल जायेंगे। 

Rain Dance & DJ(रेन डांस और डीजे)

आप जब डायनिंग हॉल से बाहर आएँगे तो आपको पूरा मस्ती भरा वातावरण मिलेगा।  अगर आप डांस के शौकीन है तो आप यहाँ पर डीजे पर जी भर कर थिरक सकते हैं।

यहां आपको रेन डांस की सुविधा भी मिलेगी जिसको हर कोई एन्जॉय करना चाहता है स्पेशलय युथ. अगर आप निशानेबाजी का शोक रखते है तो आप यहाँ तीरंदाजी और शूटिंग का भी लुफ्त उठा सकते हैं। जॉय गांव में आपको लगभग हर ऐज ग्रुप के लिए खूब सारी एक्टिविटीज मिल जाएँगी.

यहां आपको एक 7 डी फिल्म भी दिखाई जाती है , जिसमें स्टूडेंट्स के लिए 70 और बड़ों के लिए 100 रूपये का टिकट एक्स्ट्रा लगता है। आप यहां पर मिरर इलुजन का भी मजा उठा सकते हैं।

एडवेंचर जोन

आप जैसे ही आगे जाएंगे तो आपको एक एडवेंचर जोन मिलेगा यहां आपको  ज़िप लाइन, वॉल क्लाइम्बिंग जैसी बहुत सारी एक्टिविटीज मिल जाएगी, इन एडवेंचर एक्टिविटीज को युथ बड़ी ही मस्ती के साथ करते हैं , यहां पर आपको फोटोज के लिए बहुत सारे खूबसूरत सेल्फी पॉइंट्स भी मिल जाएंगे जैसे रिक्शा ,ट्रैक्टर

आप जब एडवेंचर जोन से आगे बढ़ेंगे तो आपको यहाँ ट्रेडिशनल एक्टिविटीज का जोन मिलेगा जहां जादूगर अपने जादू से सबको आपका मनोरंजन करता दिखाई देगा वहीँ आप  कुम्हार से मिटटी के बर्तन बनाने की आर्ट भी सीख सकते हैं . आपको इसी जोन में एक चम्पी मालिश वाला भी मिलेगा जिससे आप सर में मालिश करवाकर अपनी थकान उतार सकते हैं ,

ऊंट सवारी

इस शानदार पिकनिक स्पॉट में आप झूलों के साथ साथ कार्ट राइड, ट्रेक्टर राइड,कैमल राइड का आनंद भी ले सकतें है ये सब देखकर आपको ऐसा  अनुभव होगा की आप सच में एक गांव में आ गए हो.

जॉय गांव में आपको अमेजिंग टॉय ट्रैन राइड मिलेगी जो आपको एकदम रियल ट्रैन का एहसास कराएगी। बच्चों से लेकर फैमिलीज़ तक आपको यहाँ सभी एन्जॉय करते दिखाई देंगे .

राजस्थानी कालबेलिया

यहां पर आपको राजस्थानी लोक नृत्य कालबेलिया भी देखने को मिलेगा ,जिसे देखकर आप अपने आपको तालियां बजाने से नहीं रोक पाएंगे,

आपको यहाँ ग्रामीण रसोई दिखाई देगी जहां बैठकर आप ग्रामीण खाने का लुफ्त उठा सकते ,यकीनन यहाँ आपको अपने पुराने समय की याद आ जाएगी। 

अगर आप और अधिक मस्ती के मूड में हैं  तो आप यहां मड़ बाथ और टूबवेल बाथ भी कर सकते हैं

यहां आप बहुत सारे गेम भी खेल सकतें है जैसे क्रिकेट वॉलीबाल। जॉय गांव में आप ट्रेडिशनल ड्रेस पहन कर फोटोग्राफी करवा सकते है.

साथ आप यहां अपने हाथों पर बहुत सुन्दर मेहँदी के डिज़ाइन भी बनवा सकते हैं।

साथ ही आपको यहां पर इंडोर गेम्स की फैसिलिटीज भी मिल जाएगी जहां आप तरह तरह के गेम्स खेल सकतें है।

मिनी चिड़ियाघर

इस खूबसूरत पिकनिक पार्क में आपको एक मिनी ज़ू भी देखने को मिलेगा जहां पर आपको पशु पक्षी देखने को मिल जायेंगे.

आप जब भी जॉय गांव आएँ तो यकीं मानिये आपका पूरा दिन कैसे बीत जायेगा पता ही नहीं चलेगा . दिल्ली के नजदीक लगभग सभी ऐज ग्रुप के लिए यह एक लाजवाब पिकनिक प्लेस है.

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Paranthe Wali Gali

Paranthe Wali Gali: परांठे वाली गली के ज़ायकेदार परांठे

by Pardeep Kumar

लॉक डाउन के बाद मेरी यह पहली यात्रा थी। काफी दिनों से मन बाहर घूमने को हिलोरें मार रहा था, काफी दिनों से कुछ ट्रेडिशनल और हट कर खाने का दिल भी कर रहा था। साथ ही अपने निकोन कैमरे के लिए एक अच्छा-सा नया बैग भी खरीदना था। इस बीच अच्छी खबर ये थी कि दिल्ली में कोरोना के भी बस कुछ ही केस बचे थे, इसलिए तमाम सावधानी के बीच निश्चय किया दिल्ली के सबसे पुराने बाज़ारों में से एक चांदनी चौक घूमने का, जहाँ की फोटोग्राफर मार्किट से कैमरे के लिए मुझे बैग भी मिल जायेगा और पराठें वाली गली के ज़ायकेदार पराठें भी।(Paranthe wali gali)’

कैसे पहुंचे  पराठें वाली गली

कोरोना को लेकर थोड़ा डर कम था, क्योंकि पिछले सप्ताह ही वैक्सीन की दूसरी डोज ले ली थी और भीड़-भाड़ वाली जगह बिना मास्क के जाना तो वैसे भी खतरे से खाली नहीं। इसलिए कोरोना बचाव संबंधी सारे साजो-सामान से लैस होकर मैं अपनी कार से चांदनी चौक पहुंचा। लाल किले के सामने वैसे तो एमसीडी की बड़ी पार्किंग है लेकिन उस दिन शायद कुछ निर्माण कार्य चल रहा था इसलिए मुझे पार्किंग की जगह मिली पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के सामने। जिसके बाद चांदनी चौक पहुँचने के लिए मुझे लगभग डेढ़ किलोमीटर पैदल चलना पड़ा।  मेरी सलाह यही रहेगी आप मेट्रो से आराम से आइये, चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन पर उतरिये और बस सामने चंद कदम दूर आपकी मंजिल।

चांदनी चौक बाजार

बताते हैं चांदनी चौक को मुग़ल बादशाह शाहजहां की पुत्री जहाँ आरा बेग़म ने डिज़ाइन किया था। पहले यहाँ चांदी की बहुत सारी दुकानें होती थी बाद में समय के साथ कपड़ों और अन्य आभूषणों की दुकानें भी बढ़ती गयी। लाल किले के साथ ही चांदनी चौक का निर्माण करवाया गया था

लगातार दो दिन से हो रही बारिश के बाद जब आप घर से निकलते हो तब मौसम आप पर थोड़ा  मेहरबान होता है, इसलिए जुलाई के महीने में भी आप पैदल चलने की अच्छी स्थिति में होते हो। क्योंकि चांदनी चौक का अभी हाल ही में नवीनीकरण किया गया है, तो हो सकता है आपको थोड़ा ज्यादा पैदल चलना पड़े। जिनको ज्यादा पैदल चलना पसंद न हो उन्हें पुरानी दिल्ली की इन गलियों के लिए  आसानी से रिक्शें मिल जायेंगे। यह आपकी उम्र, उत्साह और ऊर्जा पर भी निर्भर करता है।

पराठें वाली गली

मैंने पराठें वाली गली के बारे में खूब सुना था, कई हिंदी फिल्मों में भी देखा था। बस अब वक़्त आ गया था इन पराठों का स्वाद चखने का।  गली में एंट्री करते ही कुछ दुकानें छोड़ कर कोने पर एक पराठें की पुरानी दुकान दिखाई दी। जिस पर लिखा था प. बाबू राम देवी दयाल पराठें वाले, सिन्स 1889, दुकान में प्रवेश किया और एक खाली टेबल देखकर अपना आसन जमा लिया। आप आसानी से आर्डर दे सके इसके लिए सामने दीवार पर पूरा मेन्यू कार्ड पेंट करवा रखा था, लेकिन असली जद्दोजहद शुरू होती है तब जब आपको 40-50 तरह के पराठों में से कोई एक आर्डर करना हो। मिक्स वेज, रबड़ी, खोया, आलू गोभी, पापड़, भिंडी, करेला, अचार, मेथी, पनीर, चीज़, गाजर, मटर और भी बहुत तरह के पराठें मेन्यू में थे।

मेन्यू में है हर तरह के परांठे

मैंने दो पराठें आर्डर किये जिसमे एक पापड़ का था और दूसरा मिक्स वेज। 7-8 मिनट के इंतज़ार के बाद एक थाली लगाई गई जिसमे इमली की चटनी, आलू की सब्जी, सीताफल की सब्जी, मूली-गाजर का अचार और एक मिक्स वेज सब्जी और एक अलग प्लेट में दो गर्मागर्म पराठें। दोस्तों, किसी महापुरुष ने बिलकुल सही कहा है कि खाने का मजा तभी है जब आपको जोरदार भूख लगी हो और अगर भोजन स्वादिष्ट हो तो फिर समझ लीजिये आज आप स्वर्ग के चक्कर लगा आये।

 देश भर में प्रसिद्ध पराठें वाली गली के पराठों की खासियत

ईमानदारी से कहूँ तो मुझे यहाँ के पराठें खूब भाये, शायद भूख लगी थी इसलिए थोड़े ज्यादा । लेकिन एक बात और बता दूँ हम अपने घरों में आमतौर पर तवे पर बने पराठें खाते हैं लेकिन यहाँ पर बनने वाले पराठें डीप फ्राई किये जाते हैं देसी घी में। मतलब की यहाँ आकर आप पराठों में कम तेल की उम्मीद न ही रखें तो बेहतर है। मैंने यहाँ पर जो एक चीज नोट की वो ये कि यहाँ पर लगभग सभी बिलकुल शुद्ध शाकाहारी पराठे ही बनाते हैं न प्याज न लहसून। शायद अपनी पुरानी परम्पराओं का निर्वहन करने के लिए। पराठों को स्वादिष्ट बनाने के लिए उनमें बादाम और काजू जैसे सूखे मेवे भी डाले जाते हैं। अगर आप खाने के जरा भी शौक़ीन हैं तो आप थाली में सर्व की गई कोई भी चीज पूरा खत्म किये बिना टेबल से नहीं उठेंगे, बस यही खासियत है देश भर में प्रसिद्ध पराठें वाली गली के पराठों की।

बड़े-बड़े नेता-अभिनेता भी चख चुके है यहाँ का स्वाद

उत्सुकतावश जब मैंने काउंटर पर बैठे दुकानदार से पूछा तो उन्होंने बताया कि उनका परिवार पिछली पांच-छह पीढ़ियों से पराठें वाली दुकान चला रहा है। उन्होंने बड़े गर्व से बताया की हम स्वाद के मामले में किसी तरह का समझौता नहीं करते। बड़े-बड़े नेता-अभिनेता हमारे यहाँ के पराठों का स्वाद चख चुके हैं। उन्होंने एक बात और बताई की यहाँ पर पराठें की जितनी भी दुकाने हैं वो सभी एक ही खानदान की हैं। परिवार बढ़ते गए तो दुकाने भी बढ़ती गयी। मुझे यहाँ की कुछ बाते बेहद पसंद आयी, एक तो ये कि भले ही ये पराठें छोटी कढ़ाई में डीप फ्राई करके बनाये जाते हों पर ये ज्यादा हैवी नहीं लगते, स्वादिष्ट लगते हैं, दूसरा इन दुकान वालों का मीठा  व्यवहार जो इनके खाने में और जायका घोल देता है,  बार-बार यहाँ आने का निमत्रण देता है। देखिये मेरे केस में तो ऐसा हुआ है बाकी हर किसी का अनुभव दूसरे से थोड़ा अलग ही होता है।

खैर, पराठों का आनंद लेने के बाद चांदनी चौक के फोटोग्राफर मार्किट से कैमरे का बैग खरीदा, यहाँ पर भी आपको फोटोग्राफी से संबंधित तमाम इक्विपमेंट्स ठीक-ठाक दाम में मिल जायेंगे।(Paranthe wali gali)

घूमते-घूमते थकान काफी हो चुकी थी इसलिए  वापसी में पार्किंग तक रिक्शा लिया और अपनी गाड़ी तक पहुंचा और देर शाम तक घर….

Written by Pardeep Kumar

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Dilli Haat-दिल्ली हाट: पारम्परिक भारत की खूबसूरत झलक

अगर आपका लगाव ट्रेडिशनल चीज़ों से हैं और पारम्परिक खरीदारी और हस्तकलाओं का बेहद शौक रखते हैं और शहरी परिवेश में रहते हैं तो दिल्ली के आईएनए स्थित  दिल्ली हाट जरूर जाइएगा।  दिल्ली के शहरी परिवेश में ग्रामीण और पारम्परिक भारत का अहसाह कराने वाले बाजार यानी दिल्ली हाट (आईएनए) का अपना ही एक अलग स्वैग है। मेट्रो के आसान और सुहाने सफर का लुत्फ़ उठाते हुए उतर जाइए आईएनए मेट्रो स्टेशन पर। मेट्रो से बाहर निकलते ही सामने ही है आपका दिल्ली हाट।(Dilli Haat)

किस समय यहाँ आना सबसे बेहतर

हाट के परिसर में घुसते ही सामने ही टिकट घर है। आपको ये  टिकट घर कुछ अलग ही दिखाई देगा, जैसे मधुबनी की कोई हस्तनिर्मित झोपड़ी जो कि किसी का भी ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करेगी । यहाँ कोविड महामारी के बाद से पर्यटकों की कमी साफ दिखाई दी । और यहाँ  खरीददारी के लिए आने वालों की कमी का असर टिकट के दामों पर साफ साफ़ दिखाई दिया, जो टिकट 30 रुपये की  हुआ करती थी, इस वक्त वो 10 रुपये की कर दी गयी थी। पिछले एक साल से इस कोरोना महामारी से सबसे ज्यादा प्रभाव पर्यटन और बाजारों पर ही देखने को मिला है। और खबर ये भी मिली कि दिल्ली हाट में खरीददारों के लिए आने वालों के लिए एक समय ये  एंट्री मुफ्त भी कर दी गई थी।(Delhi Haat)

वैसे तो साल भर यहाँ पर्यटकों और खरीददारों का आना लगा रहता है लेकिन फिर भी अक्टूबर से मार्च का महीना यहाँ आने के लिए बेस्ट रहता है। लेकिन जब भी आपका मन कुछ एंटीक खरीदने का हो तब आप किसी भी समय यहाँ बेधड़क आ सकते हैं फिर चाहे कोई भी मौसम हो।

ख़ूबसूरत पारम्परिक बाजार

आप जैसे ही दिल्ली हाट में अंदर प्रवेश करेंगे  तो आपको लगेगा आप एक बारगी तो जैसे किसी गांव के पारम्परिक बाजार में पहुंच गए हो। ईंटो की जालीदार शैली से बने छोटे-छोटे कमरे एक कतार में बड़ी सुंदरता से बनाए गए हैं वहां सभी दुकानों में सीमेंट के पलस्तर की जगह हाथों से लिपाई-पुताई की गई है, इस तरह हट नुमा घर की बनावट आपको किसी भी सामान्य भारतीय गांव में आसानी से देखने को मिल जाती है। शायद यही ख़ूबसूरती दिल्ली हाट को बाकी सभी बाज़ारों से अलग करता है। इसलिए यहाँ जितने लोग खरीददारी करने आते हैं उतने ही वीकेंड पर मौज मस्ती, खाने-पीने या यूँ कहिये अपना क्वालिटी टाइम बिताने भी आते हैं। ये हाट पूरे भारत की एक छोटी सी पारम्परिक झलक दिखाता है।

हस्तकला और क्राफ्ट से संबंधित गांव

इस जगह घूम कर आपको ऐसा लगेगा जैसे  देश के अलग-अलग हिस्सों से आये कारीगरों ने यहाँ अपना एक अलग हस्तकला और क्राफ्ट से संबंधित गांव बसा दिया दिया हो। कहीं कोई अपने खिलौने बेच रहा था तो कोई महिलाओं से सम्बंधित वस्तुएं। खास बात ये थी कि ज्यादातर पूरे हाट में महिलाओं से सम्बन्धित प्रोडक्ट ही दिखाई दे रहे थे। हर दूसरी शॉप में कोई न कोई  अपनी कारीगरी और कला का प्रदर्शन कर रहा था।  देश के हर कोने से हुनरमंदों को एक छत्त के नीचे लाने से न केवल इन कलाकारों के हुनर को एक विशेष पहचान मिल रही है बल्कि यह उनके लिए आय का भी एक बेहतरीन जरिया सिद्ध हो रहा है। यहाँ ख़रीददारी के लिए आने वाले  लोगो में इन हस्तनिर्मित चीज़ों को खरीदने की चाहत भी साफ देखी जा सकती थी देश के छोटे-छोटे हिस्सों से आए इन कलाकारों के लिए ये जगह किसी सपने से कम नही वरना ऐसी कीमती कला कुछ हिस्सों तक सिमट कर रह जाती हैं और एक समय पर अपना अस्तित्व ही खो बैठती हैं।

ओपन रंगमंच

अगर आप परिवार और दोस्तों के साथ इस जगह पर आने की सोच रहे हों तो यह एक शानदार निर्णय रहेगा।  हाट के परिसर में सामने की ओर एक रंगमंच भी है जो मनोरंजन के उद्देश्य से बनाया गया है। इस ओपन रंगमंच में विभिन्न प्रदेशों के कलाकारों द्वारा  पारम्परिक वाद्ययंत्र और संगीत की ध्वनि आपको थिरकने पर मजबूर कर देगीं।

खान-पान के लिए भी प्रसिद्ध

हस्तनिर्मित वस्तुओं और संगीत संध्या के अलावा दिल्ली हाट अपने खान-पान के लिए भी प्रसिद्ध है। विभिन्न कलाओं के साथ-साथ यहां के भोजन में भी पूरे भारत की झलक मिलती है। गुजराती ढोकला खाने की इच्छा हो या दक्षिण का उत्तपम यहां हर राज्य के पकवान आपका स्वागत करेंगे। सिक्किम से लेकर कश्मीर तक सब कुछ मिलेगा यहां। समझ लीजिए छोटा-सा भारत दिल्ली हाट के रूप में बसा दिया गया है। इतना तय है कि ये जगह आपको निराश तो बिल्कुल नहीं कर सकती।(Delhi Haat)

तो आइये और छोटे भारत के दर्शन पर निकल पड़िए। मधुबनी से लेकर चिकनकारी तक सब कुछ है यहां। कोल्हापुरी हो या गोटापत्ती हर चीज़ आपको यहां देखने को मिलेगी तो इंतज़ार किस बात का शहरों के मॉल देख कर थक गए हो तो आओ कुछ नया अनुभव करने। ग्रामीण अनुभव और सुंदर कलाओं के इस जश्न में।

 

Research – Nikki Rai
Written & Edited by Pardeep Kumar

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Hauz Khas Village – Best Tourist Attraction in Delhi

Hauz Khas- हौज़ ख़ास विलेज: दिल्ली के युवाओं की मनपसंद जगह

Five Colors of Travel

दिल्ली के कल्चर को अच्छे से जानने के लिए सबसे परफेक्ट है हौज़ ख़ास। यही वो जगह है जहाँ आप दिल्ली वालों के स्वैग और स्टाइल दोनों को करीब से देख सकते हैं।

कैसे जाएं हौज़ ख़ास

हौज़ ख़ास मेट्रो स्टेशन से लगभग 3 किलोमीटर दूर बना हौज़ ख़ास विलेज(Hauz Khas Village) अपनी बनावट के लिए बहुत फेमस है, जहाँ जाते वक्त रास्ते में सबसे पहले आपकी नज़र छोटी गुमटी की तरफ जाएगी। अब आप कहेंगे ये क्या है? छोटी गुमटी एक गुमत है जो चारो तरफ से घिरी हरियाली के बीचों-बीच बनी है। यहाँ इतनी शांति है कि इस गुमटी में जाकर आप अलग-अलग किस्म के पक्षियों की आवाज़ें और यहाँ तक की अपनी धड़कनों को महसूस कर पाएंगे। अगर आपको शांत जगह खूब भाती हैं तब यह जगह आपके लिए बिलकुल अनुकूल रहेगी।(Hauz Khas)

        hauz khas vollage- cafe hub

हौज़ ख़ास मार्किट

छोटी गुमटी के बाद थोड़ा आगे चलने पर आएगा डियर पार्क और उसके बाद शुरू हो जाएगी हौज़ ख़ास मार्किट, जहाँ आपको चारों तरफ क्लब, कैफ़े और गानों की ध्वनि सुनाई देगी। आपको बता दें हौज़ ख़ास मार्किट कुछ खरीदने से ज्यादा पेट पूजा और एन्जॉय करने के मकसद से बनाई गयी है। यही कारण है कि वहां हर वक़्त युवाओं का जमावड़ा लगा रहता है। चाहे आपको किसी से मिलना हो, डेटिंग करनी हो या बर्थडे सेलिब्रेट करना हो, उसके लिए हौज़ ख़ास परफेक्ट प्लेस है। हौज़ ख़ास मार्किट में से गुजरते वक्त आपको फुल बेस में बजते हुए गाने और युवा लड़के-लड़कियों की टोलीयां नज़र आएंगी और बस यही इस मार्किट की खासियत है।

हौज़ ख़ास -महक का छोटा किला

हौज़ ख़ास मार्किट के बाद शुरू हो जाता है हौज़ ख़ास विलेज जो दूर तक फैला हुआ है। हौज़ ख़ास को महक का छोटा किला भी कहा जाता है। विलेज में एंट्री के लिए 25 रुपय की टिकट लगती है। टिकट लेते ही आपके सामने होगा हौज़ ख़ास विलेज, उसकी अद्भुत बनावट और चारों और फैली हरियाली ही हरियाली।

    hauz khas fort

वैसे आपको बता दें उर्दू के शब्द हौज़ का अर्थ है पानी की टंकी और ख़ास का अर्थ है राजसी अथार्त राजसी पानी की टंकी। माना जाता है कि इस बड़ी-सी टंकी का निर्माण अल्लाउद्दीन खिलज़ी द्वारा सिरी फ़ोर्ट के निवासियों के लिए करवाया गया था। इस्लामी वास्तुकला से बना ये हेरिटेज हौज़ खास में आकर्षण का मुख्य केंद्र बिंदु है।(Hauz Khas)

हौज़ ख़ास विलेज, विलेज बनने से पहले फिरोज शाह का मदरसा था। फिरोज शाह दिल्ली सल्तनत में तुगलक वंश के तीसरे शासक थे जिन्होंने 37 साल राज किया। फिरोज शाह ने ही हौज़ ख़ास विलेज में मदरसा बनवाया था और यहीं उनका मकबरा भी बनाया गया है।

इस मकबरे के गुंबद का शीर्ष पूरे परिसर में सबसे ऊंचा है। यह खड़े अष्टकोणीय और वर्गाकार छतरियों को मकबरे के रूप में बनाया गया था। इस इमारत की मरम्मत बादशाह सिकंदर लोदी ने करवाई थी। कक्ष के बीचों-बीच बनी कब्र फिरोज शाह की है, जबकि वहीँ आसपास संगमरमर की कुछ अन्य कब्रें भी बनी हैं।

हौज़ ख़ास विलेज फिरोज शाह के मकबरे के पश्चिम में दूर तक फैला है। ऊपरी मंजिल में खुले स्तंभों युक्त कमरे हैं और निचली मंजिल में मेहराबी कमरे हैं। निचली मंजिल में छोटी अंधेरी कोठरियां भी हैं जो शायद छात्रों के लिए बनी होंगी। जिसके अंदर रोशनी और हवा के लिए तंग रोखे हैं, और सामान रखने के लिए छोटे आले बने हैं कहा जाता है कोठरियों के सामने मेहराबी कमरे थे जो अब ढह चुके हैं। इस हिस्से के पश्चिमी छोर में एक बड़ा गुम्बदनुमा दो मंजिला भवन है।(Hauz Khas)

hauz khas fort

पिकनिक स्पॉट

हौज़ ख़ाज़ के परिसर में प्रवेश करते ही इतनी उम्दा वास्तुकला दिखती है जिसे देख कोई भी असमंजस में पड़ जाए कि पहले दाएं जाया जाए या बाएं। बनावट कुछ इस प्रकार की है जो गर्मी में धूप से बचाए और बरसात में बारिश से। पूरे विलेज में कही भी खड़े होने पर चारों तरफ विलेज के साथ बने डिअर पार्क की झील दिखती है जो आँखों को ठंडक देती और मन को तृप्त करती है। पूरे विलेज का एक-एक कोना इतना शानदार है कि वहां न सिर्फ दोस्तों के साथ मजे से घूमा जा सकता है बल्कि यह जगह क्वालिटी टाइम बिताने के लिए भी शानदार है।

selfie time with friends

विलेज के शांत माहौल व सुरक्षा के लिहाज़ से भी देखें तो यह जगह बेहतरीन विकल्प है। हमें अनेक जोड़ें यहाँ इत्मीनान से बैठे दिखाई दिए। साथ ही आप परिवार और दोस्तों के साथ पिकनिक के लिए भी यहाँ आ सकते हैं।

हौज़ ख़ास विलेज अपनी खूबसूरती और बनावट दोनों के कारण यहाँ आने वाले हर ऐज ग्रुप को अपनी ओर आकर्षित करता है। दौड़ती-भागती जिंदगी में दो पल सुकून से बिताने के लिए ये जगह बिल्कुल फिट बैठती है, ऐसे ही थोड़ी इसे महक का छोटा किला कहा जाता है।(Hauz Khas)

 

Research – Geetu Katyal
Written & Edited by Pardeep Kumar

 

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Murthal ke Paranthe

Murthal ke Paranthe: मुरथल के परांठे वाले ढाबे -जहाँ रोजाना लगभग 40-50 हजार से अधिक लोग खाने का लुत्फ उठाते हैं

by Pardeep Kumar

अगर आप परांठे खाने के शौक़ीन हैं तो आज हम आपको अपने इस ब्लॉग में रू-ब-रू करवाएंगे तकरीबन देश भर में प्रसिद्ध मुरथल के मशहूर परांठों के स्वाद से। वैसे तो मुरथल के परांठे पूरे देश में फेमस हैं लेकिन फिर भी दिल्ली से लगते सात राज्यों में अपने पराठों के स्वाद के लिए प्रसिद्ध मुरथल के ढाबों का कोई सानी नहीं।

पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, राजस्थान, उत्तराखंड, दिल्ली और उत्तर प्रदेश से भी लोग यहाँ आकर परांठों का लुत्फ़ उठाते हैं। खासकर शनिवार और रविवार को यहां दिल्ली-एनसीआर से परांठों के शौकीनों की भारी भीड़ उमड़ती है। अगर आप दिल्ली से चंडीगढ़ जा रहे हैं तो एन एच 1 पर सोनीपत के नजदीक और दिल्ली से तकरीबन घंटे भर के सफर पर एक छोटे से कस्बे मुरथल में यह ढ़ाबे मौजूद हैं। (Murthal ke Paranthe)

किसान आंदोलन और दिल्ली से मुरथल का सफर

काफी दिनों से मुरथल का प्लान बनाया जा रहा था। क्योंकि आजकल किसान आंदोलन के कारण दिल्ली से मुरथल पहुंचना थोड़ा मुश्किल हो गया था इसलिए कई बार प्रोग्राम बना और बिगड़ भी गया। लेकिन इस बार वीकेंड पर हमने ठान लिया था कि कैसे भी करके मुरथल के परांठे खाने ही हैं। सो दिल्ली से हमने औचंदी बॉर्डर का रास्ता लिया और अंदर अलग-अलग गांव से होते हुए सोनीपत शहर से गुजरते हुए तकरीबन दोपहर के 3 बजे मुरथल पहुंचे।

और जब आप इस तरह का सफर तय करते हैं तब भूख कुछ ज्यादा ही लग जाती है और मैं हमेशा कहता हूँ खाने का असली मजा तब है जब आपको जोर की भूख लगी हो। और ऊपर से मुरथल के विख्यात परांठे हो वो भी ताजा मक्खन के साथ तो बस समझ लीजिये आपका दिन बन गया।
वैसे तो मेरा सारा बचपन सोनीपत शहर में ही गुजरा है। 12वीं कक्षा तक मेरी स्कूली एजुकेशन इसी शहर में हुयी और इसी कारण जब भी मेरा और मेरे कुछ दोस्तों का मन करता तब हम सोनीपत से मुरथल आ जाते थे परांठे खाने। सोनीपत से मुरथल यही 6-7 किलोमीटर है और आजकल तो ऐसा लगता है कि मुरथल सोनीपत शहर में ही मिल गया है। वो नब्बें का दशक था। यही 1997-98 का समय।

स्कूल टाइम की यादें और मुरथल के परांठे

मुझे अच्छे से याद है तब मुरथल बस स्टॉप से पानीपत की तरफ थोड़ा आगे निकल कर गुलशन का ढ़ाबा ही फेमस हुआ करता था और उसके आसपास एक दो ढ़ाबे और थे। तब परांठे का साइज आज के परांठों के साइज से बड़ा होता था। तब मुरथल के ढाबों पर सिर्फ दाल मखनी, परांठे, खूब सारा मक्खन और मीठे में खीर ही मिलती थी लेकिन आज यहां पर हर प्रकार के शाकाहारी स्वादिष्ट व्यंजन मिलते हैं। नब्बे के दशक में हम देखते थे कि पहले सिर्फ ट्रक चालक यहां से गुजरते हुए रुककर खाना खाते थे, या फिर सोनीपत के युवाओं की टोलियां जिनका कभी-कभार बाहर खाने का मन करता। लेकिन आज यहाँ का मंज़र बिलकुल बदल चुका है, अब आपको इन फुली एयर कंडीशंड ढाबों की पार्किंग में सैंकड़ों लक्ज़री कार दिखाई देंगी और कई बार तो भीड़ इतनी बढ़ जाती है कि सैंकड़ों गाड़ियों की पार्किंग की जगह होने के बाद भी यहाँ आपको अपनी कार पार्क करने की जगह नहीं मिलती। Murthal Ke Paranthe

आजकल लोग यहां अपने परिवार के साथ पार्टी व अन्य पारिवारिक कार्यक्रम आयोजित करने आते हैं, मैंने आपको पहले ही बताया कि दिल्ली से महज घंटा भर की ड्राइव कर यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। यही बड़ी वजह है कि दिल्ली और एनसीआर के लोग खासकर युवा यहाँ अक्सर देर रात या वीकेंड पर पराठे खाने के लिए आते हैं। बताते हैं मुरथल के ढाबों की शुरुआत 1950-60 के दशक में हुई थी। बेहद परम्परागत ढाबों के तौर पर शुरू हुए यह ढाबे आज अपनी अलग ही क्रेज बना चुके हैं। एक अनुमान के अनुसार रोजाना लगभग 40-50 हजार से अधिक लोग यहां आकर खाने का लुत्फ उठाते हैं। यह वास्तव में एक अद्भुत संख्या है। वैसे तो यहाँ जितने भी ढाबे हैं चाहे काफी पुराना पहलवान ढाबा हो, आहूजा हो या फिर झिलमिल उन सभी में परांठों का स्वाद लाजवाब है लेकिन फिर भी अमरीक सुखदेव का पिछले एक दशक से यहाँ एक तरफा राज है। शायद यही वजह है अगर आप वीकेंड पर यहाँ आएंगे तो हो सकता है लगभग 20-25 मिनट आपको बैठने के लिए सीट भी न मिले। लेकिन कहते हैं न कि इंतज़ार का फल मीठा होता है, बस यहाँ इंतज़ार का फल बेहद स्वादिष्ट मिलेगा।

सुपर स्टार धर्मेंद्र का गरम-धरम ढाबा

अमरीक सुखदेव के बिलकुल साथ लगता और कुछ साल पहले बना गरम-धरम ढ़ाबा भी है, जोकि अपनी बनावट के कारण लोगों में काफी पॉपुलर भी हो रहा है। इस ढ़ाबे की पूरी थीम बॉलीवुड सुपरस्टार धर्मेंद्र की फिल्मों पर बेस्ड है। पूरे ढ़ाबे को धर्मेंद्र की फिल्मों के अनुसार डिज़ाइन किया गया है।

ढ़ाबे के बाहर मेन गेट पर आपको शोले फिल्म की मशहूर पानी की टंकी दिखाई देगी जिस पर चढ़कर धर्मेंद्र फिल्म की नायिका हेमा मालिनी को परपोज करता है। अंदर ढ़ाबे में आप ऑटो रिक्शा, ट्रक और धर्मेंद्र की फिल्मों के पोस्टरों के बीच में इस ढाबे पर बनने वाले फेमस फ्रूट परांठे का स्वाद भी ले सकते हैं।

हम अमरीक सुखदेव के परांठे कई बार खा चुके थे इसलिए इस बार हमने गरम-धरम ढ़ाबे के परांठे खाने का निर्णय लिया। एंट्री गेट पर ही गार्ड ने हैंड सेनिटाइज करवाए। अंदर वातानुकूलित हॉल में एक अच्छा-सा कार्नर देखकर हमने आसन जमा लिया। भूख लगी थी इसलिए तुरंत चाय और मिक्स वेज परांठे आर्डर किये तकरीबन 10 मिनट के इंतज़ार के बाद परांठे की थाली आ चुकी थी। कड़क चाय, दो-तीन तरह का अचार, हरी मिर्च और ताजे मक्खन की भरी कटोरी और गरमा-गर्म परांठे।

बिना तले स्वादिष्ट परांठे

अगले कुछ लम्हें सब कुछ भूल कर हमने सिर्फ परांठों पर ही फोकस किया। स्वादिष्ट और एकदम फ्रेश। पराठे खाते वक्त हमने देखा कि यहाँ के परांठों की फिलिंग में ज्यादा चीजें नहीं होती हैं सिर्फ आलू, प्याज हरा धनिया पत्ती और नमक वगैरह भरकर इसे तैयार किया जाता है खास बात यह की इन पराठों को तवे पर घी में तलकर नहीं बल्कि तंदूर में सेंका जाता है। और बिना घी में तले इन तंदूरी परांठों पर ताजा मक्खन, सच में अद्भुत।

रोजाना हज़ारों की संख्या में खाने के शौक़ीन लोग यूँ ही यहाँ नहीं आते। परांठे खाने के बाद हमने वहां देखभाल कर रहे मैनेजर से थोड़ी बातचीत की तो उसने बड़े गर्व से बताया कि चाहे एक दिन में कितने ही लोग यहाँ खाना खाने आ जाएँ लेकिन वो क्वालिटी के मामले में कभी समझौता नहीं करते। मुझे लगा शायद यही वो वजह है जब किसान आंदोलन के कारण पिछले कई महीनों से दिल्ली के तमाम बॉर्डर बंद हैं फिर भी यहाँ हज़ारों लोग वीकेंड पर परांठे खाने आते हैं। सब स्वाद की माया है।

मुरथल में जिसने बेचा चिकन-कबाब वो हो गया बर्बाद

आपको यहाँ की एक और बात बता दूँ देश भर में पराठों के स्वाद के लिए मशहूर मुरथल के ढाबों पर दूर-दूर तक आपको सिर्फ शाकाहारी व्यंजन ही मिलेंगे। यहाँ के किसी भी ढाबे पर आपको मांसाहारी भोजन नहीं मिलेगा। फिर चाहे वो कोई ढ़ाबा हो, होटल हो या कोई बड़ा रेस्टोरेंट। इसके पीछे की जो कहानी है वो दरअसल आस्था और धार्मिक भावना से जुड़ी है। बताते हैं पहले मुरथल में सिर्फ दो ही ढाबे होते थे। इस इलाके के प्रसिद्ध बाबा कलीनाथ ने दोनों ढाबों को कभी भी भोजन में मांसाहार न परोसने के लिए कहा था। आज भी यहाँ के अधिकतर ढाबे संचालकों का मानना है कि बाबा के आदेश के विपरीत जो भी यहाँ मांसाहार बेचेगा वह बर्बाद हो जाएगा। ये शायद उसी बाबा कलीनाथ की आस्था ही है कि यहाँ के तमाम ढाबा संचालक सिर्फ शाकाहारी खाना बनाते हैं। यहीं के लोग बताते हैं कि दो-तीन बड़े ढाबा संचालकों ने यहाँ नॉन वेज खाना परोसना शुरू किया था। इनमें से एक तो महीने भर में ही बंद हो गया और बाकियों को भी बर्बादी की हद तक बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। इसलिए बाबा के श्राप के कारण अब यहाँ कोई नॉन वेज ढाबा चलाने की हिम्मत भी नहीं करता। इन कहानियों में कितनी सच्चाई है वो तो यहाँ के लोग और ढाबा संचालक बेहतर जानते हैं। लेकिन हमें इस पूरे इलाके में एक भी नॉन वेज ढाबा दिखाई नहीं दिया। साथ ही यहाँ ढाबों पर काम करने वाले कर्मचारियों से जब इस बाबत बात की तो उन्होंने पूरी सिद्दत से इन कहानियों पर मुहर लगा दी।

पिकनिक, आउटिंग या मस्ती करने के लिए मुरथल के ढाबें एक दम परफेक्ट जगह

बाकी आपको यहाँ लगभग सभी ढ़ाबों में बाहर की और काफी सारी दुकानें दिखाई देंगी जिन पर आप खाने पीने की चीजों के अलावा अचार, मुरब्बें , कैंडी, अलग अलग तरह के चूरन, वुडेन क्राफ्ट का सामान और अन्य जरुरत की चीजें आसानी से खरीद सकते हैं। अगर आप अपने परिवार और बच्चों के साथ पिकनिक या आउटिंग के लिए निकले हो तो वहां हर तरह के झूलें और एडवेंचर जोन भी आपको मिल जायेगा। कहने के लिए यह भले ही ढ़ाबे हैं लेकिन किसी बेहतरीन स्तरीय आधुनिक रेस्टोरेंट से कम नहीं हैं। खाने पीने और खूब सारी मस्ती करने के लिए मुरथल के ढाबें एक दम परफेक्ट जगह है। Murthal ke Paranthe

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Masala Chowk – The Best Open Air Food Court In Jaipur

मसाला चौक,जयपुर – फूड लवर्स के लिए खूबसूरत जगह

By Pardeep Kumar

खाने-पीने के मामले में देखा जाए तो पिंक सिटी जयपुर वास्तव में एक ऐसा शहर है जो कि बहुत फेमस है यहां के बेहद लजीज व्यंजनों के कारण, क्योंकि यहां के प्रसिद्ध व्यंजन, तरह-तरह की स्टाइल और तरह-तरह की चीजों से बने हुए होते हैं। इस रॉयल सिटी के लोग खाने के बहुत ही शौकीन माने जाते हैं और यह शहर फूड लवर्स के लिए खास मायने रखता है। अगर बात खाने से संबंधित हो तो जयपुर की खूबसूरत जगहों में से एक जगह है मसाला चौक जो कि खाने को लेकर अपनी वैरायटी के लिए और अपनी क्वालिटी के लिए बहुत ही मशहूर है।

You can watch Masala Chowk Video @ our You Tube Vlog

जयपुर की इस पसंदीदा फूड डेस्टिनेशन से तो आप परिचित ही होंगे और अगर नहीं है तो आइए आज 5 कलर्स ऑफ ट्रैवल के इस ब्लॉग में आपको ले चलते हैं एक बेहतरीन फूड डेस्टिनेशन मसाला चौक की सैर पर, जहां की व्यंजनों की वैराइटीज को देखकर आप खुद को खाने से रोक नहीं पाएंगे।

दरअसल किसी भी शहर में बहुत सारी पसंदीदा चीजों का एक साथ एक जगह पर मिलना बहुत ही मुश्किल हो जाता हैं। लेकिन जयपुर का मसाला चौक एक ऐसी जगह है जहां आपको सभी लोकप्रिय व्यंजन और स्ट्रीट फूड एक ही जगह पर आसानी से उपलब्ध हो जाएंगे

2018 में अपने बनने के बाद सेआज तक, मसाला चौक ने हर खाने के शौकीन फिर चाहे वह जयपुर शहर का हो या फिर बाहर का कोई टूरिस्ट हर किसी के दिल पर शिद्दत से राज किया है। जयपुर के मसाला चौक की शुरुआत जयपुर के सभी प्रसिद्ध स्ट्रीट फूड को सिर्फ एक जगह पर लाने के उद्देश्य से हुई। यह एक ओपन-एयर फूड कोर्ट है जिसमें बैठने की अच्छी व्यवस्था है, जिसने इसे उन सभी लोगों के लिए एक टॉप हैंगआउट डेस्टिनेशन बना दिया है जो स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद लेना पसंद करते हैं।

मसाला चौक तक कैसे पहुंचे

मसाला चौक का पता लगाना बहुत आसान है। यह बहुत प्रसिद्ध स्मारक, अल्बर्ट हॉल म्यूजियम के ठीक पीछे राम निवास बाग में स्थित है।

आप गूगल मैप्स की मदद से अल्बर्ट हॉल म्यूजियम तक पहुंच सकते हैं। अल्बर्ट हॉल के टिकट काउंटर से थोड़ा आगे साउथ की ओर बढ़ेंगे तो मसाला चौक आपके बायीं तरफ दिखाई देगा। यहां तक पहुंचने के लिए आप जयपुर बस स्टैंड या रेलवे स्टेशन से ऑटो या टैक्सी ले सकते हैं और यदि आपको चलना पसंद है तो आप पैदल यात्रा भी कर सकते हैं।Masala Chowk in Jaipur

कार पार्किंग की व्यवस्था

यहाँ आकर आप अपनी कार अल्बर्ट म्यूजियम की पार्किंग में पार्क कर सकते हैं।  मसाला चौक के बाहर भी रोड पर पार्किंग की लेन बनाई गई है।  बस ध्यान रहें जहाँ तक पार्किंग मार्क की गई है आप अपनी कार वहीँ तक पार्क करें अन्यथा नगर निगम की गाड़ी आपकी कार को उठा ले जाएगी और बेवजह आपको उसके लिए फिर एक नियत जुर्माना अदा करना पड़ेगा। अच्छे खासे रंग में भंग पड़ने की फिर पूरी संभावना भी रहेगी।

मसाला चौक का समय

जयपुर के इस मशहूर हैंगआउट का समय सुबह 10 बजे से रात 10 बजे तक है। भीड़ से बचने के लिए मसाला चौक जाने का सबसे अच्छा समय दिन के समय या शाम को होता है।

प्रवेश शुल्क

मसाला चौक के लिए प्रति व्यक्ति प्रवेश शुल्क के रूप में 10 रुपये लिए जाते हैं।

मसाला चौक मेन्यू

यहां कुल 21 स्टॉल है,  जो शहर के चारों ओर सबसे अच्छा स्ट्रीट फूड परोसते हैं।

इन स्टॉल्स में से प्रमुख हैं -सम्राट, रामकृष्ण कलकट्टी चाटो, सोमिललाल रावत मिष्ठान भंडारी, गोपाल सिंह पटसी भंडारी, शंकर समोसा, सेठानी का ढाबा, भारतीय आइसक्रीम फालूदा, रमन डोसावाला, श्री झारखंड नाथ पोहा और चाटो, गुलाबजी चायवाला, दिल्ली चाट और कैफे, प्रेम प्रकाश समोसा, बहुत खूब!, भगत मिष्ठान भंडारी, ब्रिजवासी फालूदा केसर कुल्फी, पवना राजस्थानी व्यंजनी, जयपुरी चटकारा, घर पर आग, अंडेवालाज़ी, महावीर रबड़ी भंडारी, आइसक्रीम और शेक। Masala Chowk in Jaipur

यहां के आउटलेट्स में चाट, आइसक्रीम, फालूदा, कुल्फी, समोसा, कचौरी, पोहा, चाय, राजस्थानी व्यंजन, पानी पुरी, मिठाई, दक्षिण भारतीय भोजन, मांसाहारी व्यंजन, अंडे के व्यंजन और कई तरह के फूड आइटम्स मिलते हैं

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Surajkund International Crafts Mela (Faridabad)

Surajkund International Crafts Mela (Faridabad): खानपान, संस्कृति और हस्तशिल्प का अनूठा संगम: सूरजकुंडअंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेला फरीदाबाद

by Pardeep Kumar

सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेला आज विश्व में अपनी एक अलग पहचान बना चुका है। फरीदाबाद में  खूबसूरत अरावली पहाड़ियों में लगने वाला यह 35वां अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड हस्तशिल्प मेला है। (Surajkund International Crafts Mela)

19 मार्च से 4 अप्रैल तक होगा आयोजित

आपको बता दें कि कोरोना के चलते वर्ष 2021 में इसका आयोजन नहीं हो पाया था आमतौर पर यह मेला फरवरी के महीने में 1 से 14 फरवरी के बीच लगता है लेकिन इस बार इसका आयोजन 19 मार्च से 4 अप्रैल तक किया गया है।

खानपान, संस्कृति और हस्तशिल्प का अनूठा संगम

सूरजकुंड मेले का प्रथम बार आयोजन सन् 1987 में हुआ था। वर्ष 2009 में पहली बार भारतीय राज्यों के अलावा दूसरे देशों को आमंत्रित करने का प्रचलन शुरू हुआ।  इस कड़ी में सूरजकुंड में शामिल होने वाला पहला देश मिस्र बना था।  तभी से दुनिया भर के हस्तशिल्पकार और अन्य कलाकार इस मेले में आते हैं।

जिस कारण मेले में भारत के अलग-अलग राज्यों की संस्कृति तो देखने को मिलती ही है साथ में विदेशी संस्कृति और हस्तशिल्प कला का यहां पर खूब दीदार होता है विदेशों के मंझे हुए शिल्पकार अपने हाथों से तैयार किए गए सामान का इस मेले में प्रदर्शन करते हैं। (Surajkund International Crafts Mela)

कोरोना के कारण  पिछले साल आयोजित न कर पाने के कारण इस बार हरियाणा सरकार ने इस मेले को भव्य बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है।

टिकट मूल्य और कैसे करें ऑनलाइन टिकटों की बुकिंग

इस बार के मेले में लोगों को बेहतरीन सुविधा देने की व्यवस्था की गई है।  काउंटर के अलावा पेटीएम के सहयोग से मेले की टिकटों की बुकिंग की शानदार व्यवस्था की  गई है। आप आसानी से पेटीएम से टिकट्स बुक कर सकते हो। पर्यटकों को  असुविधा न हो इसके लिए प्रत्येक पार्किंग के पास टिकट काउंटर बनाया गया।  मेले की टिकट आम दिनों में ₹120, वहीं शनिवार और रविवार को टिकट की कीमत ₹180 रखी गई है। मेले की टाइमिंग सुबह 10 बजे से लेकर देर शाम तक है।(Surajkund International Crafts Mela)

करीब 47 एकड़ में लगने वाले इस मेले में एंट्री करने के लिए पांच गेट बनाए गए हैं जिसमें लोकल सिटीजंस के लिए दो गेट, एक गेट वीआईपी एंट्री के लिए, एक गेट मीडियाकर्मियों की एंट्री के लिए और एक गेट स्टाफ वर्कर्स की एंट्री के लिए बनाया गया है। पूरे मेला स्थल को 18 सेक्टरों में बांटा गया है।

फूड कोर्ट

मेले के अंदर खाने पीने के लिए अलग फूड कोर्ट की व्यवस्था की गई है जहां आपको अलग-अलग राज्यों के लज़ीज और स्वादिष्ट पकवान खाने को मिलेंगे।

जिसमें दिल्ली की मशहूर चाट, गोहाना की मशहूर जलेबी ,राजस्थान की कचोरी, जम्मू कश्मीर का फेमस चिकन और मटन, साउथ के उत्तपम डोसा, छोले भटूरे ,मटर कुल्चा आदि सारी चीजें मिल जायेंगी। युवाओं और बच्चों के लिए यहां पर एडवेंचर जोन की व्यवस्था भी की गई है।

जिसमें तरह-तरह के झूले, निशानेबाजी, गुलेल बाजी और भी कई तरह के गेम्स की व्यवस्था की गई है।अगर आप सूरजकुंड मेले में जाए तो एडवेंचर जोन में जाना बिल्कुल भी ना भूले।

सेल्फी प्वाइंट    

मेले के अंदर कई जगह पर सेल्फी प्वाइंट भी बनाए गए हैं, जहां पर आप पौराणिक और सांस्कृतिक धरोहरों के साथ अपनी पिक्चर क्लिक करवा सकते हैं।

पूरे मेले को अलग-अलग राज्यों की पौराणिक धरोहरों के साथ संजोया गया है। मेले के अंदर एक जगह हरियाणा की प्रसिद्ध चौपाल का इंतजाम भी है। जिसमें अलग-अलग राज्यों और बाहरी देशों के कलाकार अपने क्षेत्र के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिए मेले में पहुंचने वाले लोगों का मनोरंजन करते है और उन्हें अपनी सभ्यता और अपनी संस्कृति से रूबरू करवाते हैं।

इसके अलावा आपको हर 10 कदम के बाद अलग-अलग राज्यों की झांकियां देखने को मिलेंगी, जिसमें कलाकार अपने लोकगीतों और लोकनृत्य को प्रस्तुत करते हैं और मेले में आने वाले लोगों को मस्ती में झूमने पर मजबूर कर देते हैं।

मेले में अनेकों प्रकार के स्टॉल लगाए गए हैं जिसमें अलग-अलग राज्यों और अलग-अलग क्षेत्रों के हस्तशिल्पकारों द्वारा बनाए गए प्रोडक्ट्स जैसे कढ़ाई किए गए दुपट्टे, शॉल, सूट, अलग-अलग प्रकार के कपड़े, हिमाचली टोपी, कश्मीरी कालीन, राजस्थानी मोजड़ी, जूते और भी कई प्रकार की हैंड मेड चीजें आपको मिल जायेंगी।

मेले के अंदर कश्मीरी थीम को ध्यान में रखते हुए वहां की परंपरा, वहां की संस्कृति को दर्शाया गया है। मेले में घूमने आए लोग यहां पर खूब फोटोग्राफी करते हैं।  मेले प्रशासन द्वारा जगह-जगह पर साफ पीने योग्य पानी की व्यवस्था भी की गई है जिससे कि मेले में आने वाले यात्रियों को गर्मी में राहत प्रदान हो।

छाता या हैट साथ ले जाना बिल्कुल भी ना भूले

आपको बता दें कि आजकल चिलचिलाती गर्मी से बचने के लिए आप अपना छाता या हैट अपने साथ अवश्य रखें और पानी की बोतल ले जाना बिल्कुल भी ना भूले। इससे आपको गर्मी से अवश्य राहत मिलेगी। क्योंकि यह मेला देर शाम तक चलता है इसलिए आप अपनी सुविधा और दिन में पड़ने वाली गर्मी से बचने के लिए शाम के समय भी यहाँ आ सकते हैं। (Surajkund International Crafts Mela)

Photo Gallery – Surajkund Crafts Fair

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Jama Masjid Street Food: जामा मस्जिद के सामने बरसों पुरानी गली के इन प्रसिद्ध लज़ीज व्यंजनों का जायका कभी नहीं भूल पाएंगे

by Pardeep Kumar

दिल्ली ज़ायकों का शहर है।  दिल्ली के हर कोने में आपको खाने के शौक़ीन लोगों के लिए कोई न कोई ज़ायका ऐसा जरूर मिल जाएगा जो मुद्दतों  से यहां के लोगों के ज़ेहन में अवश्य बसा होगा।(Jama Masjid Street Food)

मुकम्मल तहज़ीब की सबसे खास जगह

लगभग 3000 साल पुरानी दिल्ली की पेचीदा तारीखों में गोते लगाने के बजाए ग़ालिब के दौर से दिल्ली को समझने की कोशिश करते हैं। दरअसल यही वह दौर था जिसकी निशानियां दिल्ली के मिज़ाज की छोटी-मोटी गवाहियां देती आज भी दिखाई देती हैं और इन्हीं  झरोखों से देखते हैं,  बरसों  से फलते फूलते आ रहे बाजार जामा मस्जिद को।

जी हां, दिल्ली का सबसे मोहब्बत भरा बाजार। हम बात कर रहे हैं जामा मस्जिद के गेट न. एक के सामने बने पुराने बाजार की जो सिर्फ एक बाजार नहीं बल्कि मुकम्मल तहज़ीब की सबसे खास जगह है।  जहां का ज़ायका सैकड़ों सालों से खाने के शौकीन लोगो के जेहन में मिठास घोल रहा है।(Jama Masjid Strrt Food)

इस ब्लॉग में हम आपको बताएंगे अपने नए डेस्टीनेशन जामा मस्जिद के बिल्कुल सामने बने इसी बाजार के बारे में। जहां की पुरानी और तंग गलियों में तबीयत को खुश कर देने वाला मुगलाई ज़ायका पैदा होता है। और यह ज़ायका किसी त्यौहार या विशेष दिनों में नहीं बल्कि सारा साल आपको जश्न में डुबोए रखता है। खाने के शौकीन लोग यहां तमाम तरह की बिरयानी, कबाब, कोरमा, शिरमा, जर्दा, और रोटियों का लुत्फ उठा सकते हैं।

तो चलिए अपने फूड ब्लॉग की शुरुआत करते हैं और निकलते हैं एक ऐसे सफर पर जहां आपको रूबरू करवाएंगे कुछ ऐसे ही मशहूर पुश्तैनी और लजीज जायकों से।

दोस्तों अगर खाने में ज़ायके की बात करें और वो भी दिल वालों के दिल्ली की, तो चांदनी चौक और जामा मस्जिद का नाम सबसे पहले लिया जाता है। चांदनी चौक में जहां अधिकतर आपको शाकाहारी खाना दिखाई देगा, तो वही जामा मस्जिद के सामने पुरानी गली में आपको अधिकतर नॉन वेज फ़ूड दिखाए देगा जो दुनिया भर में मशहूर है। आज हम आपको लेकर आए हैं देश की सबसे बड़ी और सबसे प्रसिद्ध मस्जिदों में से एक जामा मस्जिद के सामने सदियों से अपने स्वाद के लिए मशहूर बाजार में। और किस्मत से इस बार हमारा सफर पूरा हुआ रमजान के पाक महीने में, जब सारा जामा मस्जिद एरिया खूबसूरती से सजा हुआ दिखाई दिया। दिल्ली के स्वाद की बात जामा मस्जिद एरिया के बगैर अधूरी है। स्ट्रीट फूड और खास करके चिकन- मटन के शौकीन हो तो आप एक बार यहां जरूर आइए। जामा मस्जिद के पास में नॉन वेज की कुछ ऐसी दुकानें हैं जो अपने लजीज व्यंजनो के लिए खूब जानी जाती है। जामा मस्जिद के गेट नंबर दो के बिल्कुल सामने सैंकड़ों बरसों  से लग रहे मीना बाजार के शोरगुल और भीड़-भाड़ वाले माहौल से गुजरते हुए हमारे कदम बढ़ चले थे उस बेहद खास गली की तरफ जहां खाने के मुरीदों  के चेहरों पर एक अलग ही रौनक दिखाई देती है।

कैसे पहुंचे

आप यहां मेट्रो, बस या कैब से भी आ सकते हैं। लाल किले के बिल्कुल सामने आपको जायकों का यह ठिकाना आसानी से मिल जाएगा। एमसीडी  की पार्किंग में आप अपनी कार को पार्क कीजिए और पैदल ही निकल पड़िए पुरानी दिल्ली की गलियों का आनंद लेते हुए।

जामा मस्जिद के गेट नंबर 1 के सामने बरसों से अपने मुगलाई ज़ायकों के लिए मशहूर यह गली बाहें फैलाए आपका इस्तकबाल करती है।  और अगर किस्मत से रमजान का पाक महीना हो तो समझ लीजिए आप जन्नत में हैं। सबसे पहले गली में एंट्री करते ही हमें दिखाई दिया मोहब्बत का शरबत।

मोहब्बत का शरबत

अमूल प्योर दूध में गुलाब जल, रूह अफ़ज़ा और तरबूज के बारीक-बारीक पीस मिलाकर बना यह शरबत सच में आपको मोहब्बत का रूहानी एहसास करा देगा। जामा मस्जिद का दीदार करने आने वाले यहां आकर मोहब्बत का शरबत अवश्य चखते हैं।

तरबूज के बारीक पीस शरबत को जायकेदार बनाने का बाखूबी काम करते हैं। मजहब चाहे कोई भी हो हर किसी को यहां का यह मोहब्बत का शरबत अपना मुरीद बना ही लेता है।

जामा मस्जिद एरिया की शान- शाही टुकड़ा

आप इसी गली में एक दो दुकानें छोड़कर आगे बढ़ेंगे तो आपका दशकों से जामा मस्जिद एरिया की शान- शाही टुकड़ा भी दिखाई देगा।

हमें एक बेहद तरतीब और स्वच्छता से अपनी ओर खींचती दुकान दिखाई दी और हमारे कदम बढ़ चले शाही टुकडे की ओर। वहां जो शख्स दिखाई दिए उन्होंने अपना नाम तशनीन  बताया। उन्हीं से बातचीत के सिलसिले में हमें पता चला शाही टुकडे की बनावट के बारे में। प्योर दूध, खोए और ड्राई फ्रूट से बना यह स्पेशल फूड सही मायने में शाही कहलाने लायक लगा।

उन्होंने हमसे ₹60 लिए और बड़ी ही मोहब्बत के साथ शाही टुकडे की एक प्लेट हमें दी। साथ में शाही टुकडे के साथ रबड़ी भी जायके को और स्वादिष्ट बनाने के लिए अपनी ओर से कंप्लीमेंट्री तौर पर ऑफर की।  रबड़ी के साथ शाही टुकडे का स्वाद लाज़वाब लगा। रमजान के महीने में यह शाही टुकड़ा खाने दूर-दूर से लोग यहां आते हैं, वैसे यह गली मशहूर है अपने नॉनवेज फूड के लिए, अगर आप नॉनवेज खाने के शौकीन हैं तो समझ लीजिए आप बिल्कुल मुकम्मल जगह पर हैं। जैसे-जैसे आप इस गली में आगे बढ़ेंगे आपको हर दूसरी दुकान पर कुछ पुराना और नायाब दिखाई देगा। कहीं लॉन्ग चुरी के शाकाहारी पकोड़े तो कहीं मुगलई चिकन आपको दिखाई देगा।  क्योंकि यह रमजान का महीना है इसलिए आपको यहां पर बहुत सारी दुकानों पर फेनी खरीदते हुए भी लोग दिखाई देंगे।

असलम का बटर चिकन

शाम का समय हो रहा था इसलिए गली में भीड़ भी लगातार बढ़ रही थी।  इसी भीड़ में हम अपने अगले पड़ाव पर पहुंचे, जो था असलम चिकन। दुकान के बाहर बार-बी- क्यू  की खुशबू फैली हुई थी, जहां कबाब के साथ चिकन भी रोस्ट हो रहा था।  असलम चिकन की शोहरत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की बीसीयों किलो चिकन हमारे सामने ही तैयार किया जा रहा था और इसी तीन मंजिला दुकान में लोग टेबल खाली होने की वेट कर रहे थे। जब मैंने काउंटर पर बैठे शख्स से यहां की स्पेशलिटी के बारे में पूछा तो उन्होंने बटर चिकन और तंदूरी चिकन बताया।  लेकिन जब चिकन परोसा गया तो पता चला की 26 सालों से असलम भाई की खुद की ईज़ाद है ये बटर चिकन।

शायद असली मसालों में चिकन का मेरिनेशन वाकई जबरदस्त था।  हमने ऑर्डर किया रुमाली रोटी और दिल्ली का बेहद फेमस यह असलम का बटर चिकन। दही की चटनी, टमाटर और प्याज के साथ बटर चिकन परोसा गया। मेरा मानना है, यह खाते ही अमूल बटर में पूरी तरह डूबा हुआ यह चिकन आपकी तबीयत को गुलजार कर देगा।  वास्तव में पुरानी दिल्ली के नायाब ज़ायकों  में एक है यह असलम का बटर चिकन।  सच में जामा मस्जिद की पुरानी और लज़्ज़तदार गली के बारे में जितना सुना था, आज वह बिल्कुल हकीकत लगा।Jama Masjid Street Food Places

 करीम रेस्टोरेंट

शाम ढल रही थी।  लौटने का वक्त हो रहा था, लेकिन अगर आप इस मशहूर गली में आए और सैकड़ों साल दुनियाभर में राज करने वाले करीम रेस्टोरेंट पर ना गए तो फिर आप सही में मुगलाई ज़ायकों से महरूम रह गए। करीम के ख़ानसामा  से जब हमने बात की तो उन्होंने हमें अपने मटन और चिकन के पतीलों  के ढक्कन खोल कर अपनी स्पेशलिटी के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि अभी रमजान का महीना है इसलिए वह सिर्फ शाम 7 बजे तक ही चिकन और मटन पैकिंग में ही देते हैं।

7 बजे के बाद आप यहां रेस्टोरेंट में बैठ कर इत्मीनान से चिकन मटन का आनंद ले सकते हैं। जब वह जनाब एक-एक करके बड़े ही नाज़ से पतीलों के ढ़क्कन खोल कर अलग-अलग ज़ायकेदार मटन और चिकन हमें दिखा रहे थे , ढक्कन खोलते ही  मुगलाई ज़ायकों की खुशबू जैसे जता रही हो कि यूं ही हम दशकों से खाने के मुरीद लोगों की पहली पसंद नहीं है। वास्तव में हमारे लिए एक साथ इतने सारे मुगलाई ज़ायकों को देखना ही बेहद खास अनुभव था

चिकन चंगेज़ी और हाजी मोहम्मद हुसैन चिकन 

करीम के लिए जहां गली के अंदर जाना पड़ता है, वहीं इसी गली में  एक और प्रसिद्ध रेस्टोरेंट्स है अल जवाहर, जो अपने चिकन चंगेज़ी के लिए और चिकन निहारी के लिए अच्छा खासा प्रसिद्ध है। आप जब भी यहां आए, यहां के चिकन चंगेजी का जरूर लुत्फ़ उठाएं।  इसके अलावा यहां हाजी हुसैन चिकन का नाम भी बहुत फेमस है। जिसका कुरकुरा चिकन आपको साल भर में ना जाने कितनी बार यहां आने पर मजबूर कर देगा, यहां का चिकन फ्राई खाने के लिए हर मौसम में बेइंतहा भीड़ लगी रहती है। दुकान के बाहर आपको खोलती कढ़ाई में चिकन फ्राई करते हुए खानसामा दिखाई देंगे और मसालों की खुशबू आपको खूब सारी भीड़ होने के बावजूद भी यहां रुकने पर मजबूर कर देगी यही खासियत है 40 सालों से अपने डबल चिकन फ्राई के  कारण हाजी मोहम्मद हुसैन चिकन लोगों के दिलों पर राज कर रहे हैं।Jama Masjid Street Food Places

दुनिया भर में अपने लाजवाब मुगलाई ज़ायकों के लिए मशहूर इस गली से फिलहाल लेते हैं विदा।  फिर मिलते हैं फाइव कलर्स ऑफ़ ट्रेवल के किसी नए ब्लॉग में।

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