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जाने क्यों खास है मधुबनी पेंटिंग?

क्या आपने कभी पेंटिंग की है? इस सवाल पर अधिकतर लोगों का जवाब हाँ हीं होगा। क्योंकि कहीं ना कहीं बचपन में हम सभी ने अपनी ड्राइंग बुक्स में उन पहाड़ों और फूल पत्तियों को बनाते हुए ही अपना बचपन जिया है। अब आप सोचेंगे कि आज हम अचानक पेंटिंग्स की बात क्यों कर रहे हैं? तो वह इसलिए क्योंकि आज के इस ब्लॉग का पेंटिंग से सीधा-सीधा संबंध है। आज का यह ब्लॉग उत्तर भारत की एक ऐसी चित्रकला के बारे में है, जिसे दुनिया भर में अहम् स्थान मिल रहा है। इस पेंटिंग को बनाने की कला एक ऐसी कला है, जिसे ओलंपिक ने भी अपने गेम्स में शामिल किया है। जी हां, हम बात कर रहे हैं बिहार राज्य की मधुबनी पेंटिंग के बारे में। आप सभी ने इसका नाम जरुर सुना होगा। अगर आप राजधानी दिल्ली में रहते हैं और कभी संसद भवन का चक्कर लगाए हैं तो आपने वहाँ के मुख्य द्वार पर भी मधुबनी पेंटिंग की झलकियां जरूर देखी होगी। लेकिन अब यह सवाल आता है कि ऐसा क्या खास है (Specialty of Madhubani painting) इस पेंटिंग में, कि इसे ओलंपिक तक में शामिल किया गया? तो चलिए इस सवाल के जवाब को हम इस ब्लॉग में ढूंढते हैं

मधुबनी पेंटिंग के अगर इतिहास की बात की जाए तो इसका सबसे पुराना इतिहास हमें श्रृंगार रस के कवि श्री विद्यापति के द्वारा रचित पुस्तक कीर्तिपताका में देखने को मिलता है। विद्यापति एक मैथिली कवि थे और उन्होंने अपने जीवन काल में एक से एक रचनाएं की थी। विद्यापति से जुड़ी एक और कहानी यह भी है कि मिथिला क्षेत्र में माना जाता है कि विद्यापति वह इंसान थे जिसके यहां स्वयं महादेव ने आकर 12 वर्षों तक उनकी सेवा की थी।

अगर बात करें मधुबनी पेंटिंग के प्रकार की तो यह मुख्यतः तीन प्रकार की होती हैं :
भित्ति चित्र
अरिपन
पट्ट चित्र

भित्ति चित्र की अगर बात की जाए तो यह मुख्यतः दीवारों पर की जाती है और तीन तरह की होती हैं। जिसमें पहले होता है गोसानी घर की सजावट, जो की मुख्यतः घर में बने मंदिर की दीवारों पर की जाती है। जिसमें देवी देवताओं की चित्रकारी की गई होती है।

दूसरी होती है कोहबर घर की सजावट जिसमें दांपत्य जीवन के दर्शन देखने को मिलते हैं। यह वैवाहिक समारोह में देखने को मिलती है और नव विवाहित जोड़ों के कमरे में इस तरह की चित्रकारी से सजावट की जाती है।

तीसरी होती है कोहबर घर की कोनिया सजावट जो की विशेषतः शादी के अवसर पर हीं की जाती है और इस सजावट में फूल पत्तियों और प्राकृतिक संकेत के जरिए दांपत्य जीवन के संदेश दिए जाते हैं। यह सजावट नव विवाह दंपति के कमरे के किसी दीवार के एक कोने पर की जाती है। जहां उनकी विवाह से जुड़ी वैवाहिक रस्में में निभाई जाती हैं।

यह मधुबनी पेंटिंग का एक ऐसा प्रकार है जिसमें भूमि पर चित्रकारी की जाती है। इस चित्रकला में रंग के तौर पर चावल को भींगो कर उसे पीसा जाता है और उसमें आवश्यकता अनुसार पानी मिलाकर उससे पेंटिंग की जाती है। यह चित्रकला आपको अधिकांशत बिहार में मनाए जाने वाले पर्व त्योहारों के अवसर पर देखने को मिलेंगे। इस चित्रकला में मुख्यतः आपको स्वास्तिक, श्री यंत्र, देवी-देवताएं, फूल-पत्तियां, घरों की कोठियाँ, खेतों में काम कर रहे मजदूर आदि देखने को मिलेंगे। आप जब भी कभी बिहार के उत्तरी क्षेत्र में दीपावली के अवसर पर जाएंगे तो आपको वहां हर घर में अरिपन देखने को मिल जाएगा।

पट्ट चित्र भी मधुबनी पेंटिंग का हीं एक प्रकार है जो ना सिर्फ बिहार बल्कि नेपाल के अधिकांश भागों में भी देखने को मिलता है। मधुबनी पेंटिंग को विश्व प्रसिद्ध बनाने में पट्ट चित्रों का विशेष योगदान रहा है। पट्ट चित्र मुख्यतः छोटे-छोटे कपड़ों या फिर कागज के टुकड़ों पर बनाया जाता है, हालांकि अब आजकल साड़ी, दुपट्टे और बड़े-बड़े शॉल पर भी मधुबनी पेंटिंग की झलक देखने को मिल जाती है। विशेष कर अगर आप ट्रेड फेयर में जाएंगे तो आपको वहां बिहार के पवेलियन में मधुबनी पेंटिंग के जीवंत उदाहरण देखने को मिल जाएंगे। अगर आप दिल्ली में रहते हैं और ट्रेड फेयर को अटेंड करने जा रहे हैं तो आप कोशिश करें कि बिहार के पवेलियन में जरूर जाएं। क्योंकि यहां पर आपको एक से एक मधुबनी पेंटिंग्स देखने को मिल जाएंगी। उनसे आप बिहार के कल्चर को बहुत हीं अच्छे तरीके से एक्सप्लोर कर पाएंगे।

मधुबनी पेंटिंग के खास होने के पीछे कई सारी वजहें हैं। सबसे पहले इस पेंटिंग को खास बनाने का काम करते हैं इसमें उपयोग में लाए जाने वाले रंग। जहां आज के समय में आधुनिक पेंटिंग ब्रश और आधुनिक रंगों का एक बड़ा बाजार तैयार हो चुका है, वहीं मधुबनी पेंटिंग के कलाकार इन सब से इतर प्रकृति में विश्वास रखते हैं। आपको मधुबनी पेंटिंग में प्राकृतिक रंगों के उपयोग देखने को मिलेंगे। जिन्हें पत्तों और फूलों से रस निकालकर बनाया जाता है। मधुबनी पेंटिंग को खास बनाने के पीछे इन रंगों का बहुत हीं बड़ा योगदान होता है। अगर हम बात करें कि मधुबनी पेंटिंग में कौन-कौन से रंग उपयोग में लाए जाते हैं तो आपको मधुबनी पेंटिंग में गहरे चटक नील, लाल, हरे, नारंगी और काले रंग बहुत हीं बहुतायत मात्रा में देखने को मिलेंगे। हालांकि बाकी रंगों का भी इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन वह रंग बहुत कम होते हैं। या ना की मात्रा में होते हैं।


मधुबनी पेंटिंग में मुख्यतः बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र की संस्कृति की झलक साफ-साफ देखने को मिल जाएंगी। इस पेंटिंग में काम कर रहे मजदूरों, महिलाओं, देवी-देवताओं, खासकर राम-सीता विवाह, पशुओं, पक्षियों, फूलों और पेड़ पौधों आदि की तस्वीरें देखने को मिल जाएंगी। यह पेंटिंग देखने में जितनी सरल लगती है बनाने में उतनी हीं कठिन होती है। इसे बनाने में महंगे ब्रशों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, बल्कि इसे बनाने के लिए प्राकृतिक रूप से कुच तैयार किए जाते हैं और फिर चित्रकारी की जाती है। इस पेंटिंग में महीन से महीन और बारीक से बारीक डिटेल की भी जानकारी रखी जाती है। जो इस पेंटिंग को और भी ज्यादा खास बना देती है। आपको मधुबनी पेंटिंग की झलक बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र में तो हर जगह हीं मिल जाएंगे, लेकिन साथ हीं साथ आपको पटना रेलवे स्टेशन पर भी इसकी झलक देखने को मिलेंगे। इतना हीं नहीं भारत के संसद भवन के गेट पर भी इसकी झलक देखने को मिलती है।

एक प्रथा ऐसी भी- जहाँ नवविवाहिता एक हाथ से मछली काटकर करती है गृहस्थ जीवन की शुरुआत

आप यह तो जानते होंगे कि भारत के हर भाग में अलग-अलग तरह की संस्कृति (culture) बसती हैे। ऐसे में हर जगह अलग-अलग तरह के रीति रिवाजों (rituals) और परंपराओं का चलन है। कहीं जनजातियों(tribes) की संस्कृति का बसेरा है तो कहीं शहरी संस्कृति(modern culture) का प्रभाव। अलग अलग कल्चर होने के कारण अलग-अलग जगहों की परंपराओं और प्रथाओं में जमीन आसमान का फर्क होता है। आज इस ब्लॉग में हम आपको बताने वाले हैं एक ऐसे अजीबोगरीब प्रथा के बारे में जिसके बारे में आप शायद हीं जानते होंगे। यूं तो बिहार के मिथिलांचल का नाम भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। क्योंकि मधुबनी पेंटिंग (Madhubani Painting) को ग्लोबल (Globally) लेवल पर रिकॉग्नाइज किया गया है।

बिहार के मिथिलांचल के प्रसिद्धि की अगर बात करें तो, हिंदू धर्म में इस जगह की खास मान्यता है। क्योंकि श्री राम की पत्नी माता सीता का जन्म मिथिलांचल के ही जनकपुर में हुआ था। जनकपुर इंडो नेपाल बॉर्डर पर हीं स्थित है। जनकपुर जाने के लिए आपको सबसे पहले बिहार के मधुबनी जिला पहुंचना पड़ेगा।

लेकिन क्या आपको यहां के इस प्रथा के बारे में पता है? मधुबनी या यूं कहें कि मिथिलांचल में ऐसी परंपरा मानी जाती है जो शायद ही कहीं और मानी जाती हो!

जी हां, मिथिला में नवविवाहिता दुल्हन के अपने ससुराल आने पर, उनसे एक रस्म करवाई जाती है। अब आप कहेंगे कि इसमें कौन सी बड़ी बात है? नई दुल्हन के स्वागत के बाद हर जगह कई सारी रस्में निभाई जाती हैं। लेकिन इसमें बड़ी बात है। क्योंकि यह रस्म मामूली रस्म नहीं होती है। यह होती है मछली (Fish Cutting) को एक हाथ से कटवाने की रीति! जानकर अजीब लगा ना? अजीब लगना वाजिब भी है। लेकिन यह सच है, मिथिलांचल में जब नई दुल्हन मायके से ससुराल जाती है तो, उसके बाद उन्हें 4 दिनों तक कई तरह के रस्मों रिवाजों को पूरा करना होता है और द्विरांगमन (विदाई) के चौथे दिन, यानी चतुर्थी को दुल्हन से एक हाथ से मछली काटने के लिए कहा जाता है।

वैसे तो इस प्रथा के बारे में कई लोगों की अलग-अलग राय हैं, लेकिन कुल मिलाकर देखा जाए तो यह नई नवेली दुल्हन के लिए एक परीक्षा (test) के तरह होता है। इस परीक्षा के जरिए जाना जाता है कि क्या दुल्हन को रसोई और घर गृहस्ती संभालना आता है? एक हाथ से मछली काटना अपने आप में हीं एक चैलेंज (challange) होता है। जिसमें दुल्हन इस विधि को पूरा करके दिखाती है कि, वह आसानी से रसोई संभाल सकती है।

बताया जाता है कि यह परंपरा मिथिलांचल में सालों पहले से चली आ रही है। वैसे आपको यह बता दूँ कि मिथिलांचल की भूमि मछली पालन के लिए शुभ मानी जाती है और बिहार के सहरसा जिला में एक मत्स्यगंधा टेंपल भी है। जहां मत्स्य कन्याओं की पूजा की जाती है।

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