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“Delhi Metro: Beyond Transportation – A Journey Through Sustainability, Social Impact, and Urban Growth”

The Delhi Metro, a lifeline for millions in India’s bustling capital, witnesses a staggering number of commuters each year, more than the entire population of the United States! With Delhi being one of the most densely populated and polluted cities in the world, the Metro plays a crucial role in managing the city’s ever-increasing urban sprawl. But have you ever wondered where your fare goes or how this massive transport system impacts Delhi’s dynamics? In this blog, we’ll explore the most interesting facts about the Delhi Metro, from its cutting-edge technology and sustainability efforts to its effect on pollution, population, and urban growth. While most might think of it as simply a mode of transportation, the Delhi Metro has a much deeper impact on the environment, social welfare, and even popular culture. Let us uncover the fascinating world behind one of the busiest metro systems in the world! (Delhi Metro)

 1.A Positive Contributor to the Environment  

Delhi Metro

 2.Supporting Street Children 

 3.Why Metro Trains Have an Even Number of Coaches 

Have you ever wondered why the Delhi Metro always has an even number of coaches? The answer is quite technical but fascinating! Metro trains once operated with four coaches, and now many have six or eight. This is due to the two types of coaches in the metro system: the ‘D’ car, which is the driver’s cabin that pulls electricity from overhead wires, and the ‘M’ car, which is the motor car. The ‘M’ car houses three-phase induction motors responsible for power transmission. Together, the ‘D’ and ‘M’ cars function as one operational unit, and they cannot run independently. Thus, metro trains always operate with an even number of coaches. 

 4.Asia’s Largest Escalator at Janakpuri 

Delhi Metro

5. A Star of the Silver Screen 

The beauty of the Delhi Metro has not gone unnoticed by filmmakers. Many iconic movies have featured scenes shot on the metro, making it a recognizable symbol across India. The first movie to be filmed here was Bewafaa in 2003, followed by many others like Delhi-6, Love Aaj Kal, PK, and Paa. Its sleek design and modern aesthetic have made it a preferred location for shooting, reflecting the city’s evolving landscape. 

The Delhi Metro Is much more than just a way to get from point A to point B. It’s a sustainable solution for Delhi’s pollution, a supporter of social causes, a host of record-breaking infrastructure, and a favourite among filmmakers. The next time you step into a metro station, take a moment to appreciate the role it plays, both in your life and in the city’s broader landscape

शाहजहां के दूरदर्शिता का प्रतीक है दिल्ली का लाल किला…

दिल्ली की शान कहे जाने वाले ऐतिहासिक स्थलों में लाल किला (Red fort) का नाम सबसे ऊपर लिया जाता है। यह वहीं किला है जहां से हर साल प्रधानमंत्री (Prime Minister) 15 अगस्त और 26 जनवरी के दिन झंडोत्तोलन करने के बाद पूरे देश को संबोधित (speech) करते हैं। बचपन से ही हिस्ट्री (history) की किताबों में इस किले की फोटो देखकर मन में यहां जाने की एक ललक जागती है। इसकी बनावट (Architecture) और इसका इतिहास दोनों हीं लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचता है। यह यूनेस्को का विश्व विरासत स्थल (world heritage site) भी है और इसे भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक माना जाता है। जहां ना सिर्फ भारत से बल्कि दुनिया के अलग-अलग कोने से पर्यटक घूमने आते हैं। आइए आपको बताते हैं इस किले के बारे में कुछ इंटरेस्टिंग फैक्ट्स (interesting facts) :-

लाल किले का इतिहास
(History of Red Fort) :

लाल किला यानी रेड फोर्ट को मुगल साम्राज्य (Mughal Empire) के समय में शाहजहां द्वारा बनवाया गया था। यह किला 1639 में बनकर तैयार हुआ था। मुगल बादशाह शाहजहाँ ने इसे शाहजहाँनाबाद के रूप में बनवाया था। लगभग 200 सालों तक इस किले पर मुगल बादशाहों ने राज किया। इस किले को बनाने में लाल बलुआ पत्थर (Red sandstone) का इस्तेमाल किया गया है। जिसके कारण यह किला लाल रंग का दिखता है। इस किले का नाम भी इस किले के लाल रंग के होने के कारण लाल किला पड़ गया। यह भारत के प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों में से एक है और दिल्ली के पुरानी दिल्ली (Old Delhi) के क्षेत्र में स्थित है। इस किले की दीवारों की ऊंचाई लगभग 35 मीटर है और इसकी विशालता और इंटीरियर लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम है। इस किले का निर्माण शाहजहां ने मुगल साम्राज्य के वर्चस्व (Power of Mughal Empire) को दिखाने के लिए करवाया था।

लाल किले की बनावट :
(Architecture of Red Fort) :

लाल किला 265 एकड़ जगह में बना हुआ है और इस किले के कई सारे हिस्से हैं। जैसे कि दीवान ए खास, रंग महल, हयात बख्श बाग, मोती मस्जिद आदि। इस किले के अंदर बहुत सारे म्यूजियम भी हैं। अगर आपके पास लाल किला प्लस म्यूजियम (museum) वाली टिकट होगी तो आप इन सभी म्यूजियम में जाकर भारतीय इतिहास के बारे में बहुत कुछ नया जान पाएंगे। लाल किले को वर्ष 2007 में यूनेस्को (UNESCO) की वर्ल्ड हेरिटेज साइट (world heritage site) की सूची में स्थान मिला। जिसके बाद से इस किले के रखरखाव की जिम्मेदारी यूनेस्को ने उठाई हुई है।

लाल किले के अंदर सजता है खूबसूरत शाही बाजार (Royal Market of the Red Fort) :

जब आप लाल किले में इंटर करेंगे तो सबसे पहले आपको वह स्थान दिखेगा, जहां से प्रधानमंत्री हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी के दिन झंडोत्तोलन करते हैं। लेकिन उस स्थान पर जाने की इजाजत सामान्य नागरिक को नहीं है। आप बस दूर से ही उस स्थान को देख सकते हैं। वहां से थोड़ा आगे बढ़ने पर आपको दिखेगा एक छोटा सा शाही बाजार (Royal Market)। जहां हर तरह के साज सज्जा के सामान, चूड़ियां, झुमके, गहने, ऑक्सिडाइज्ड ज्वैलरी और कई तरह के रंग-बिरंगे पर्स आपको मिल जाएंगे। यहां बच्चों के लिए कई तरह के खिलौने जैसे रूबिक्स क्यूब आदि भी मिलते हैं। यह बाजार पर्यटकों खासकर लड़कियों को अपनी ओर बहुत ज्यादा आकर्षित करता है।
रंग बिरंगे गहनों को देख आप भी अपने आपको यहां खरीदारी करने से रोक नहीं पाएंगे। इसके अलावा यहां होम डेकोर (Home decor) के सामान भी मिलते हैं। ड्रीम कैचर (Dream catcher), कैंडल्स (candles) , छोटे-छोटे शोपीस (show piece) देखकर आपका दिल करेगा कि सारे ही खरीद ले।

खास महल, रंग महल और हीरा महल (Kash Mahal, Rang Mahal and Hira Mahal) :

खास महल सम्राट का निजी स्थान हुआ करता था। जिसमें तीन कक्ष थे। जिनमें से एक में बादशाह के बैठने का इंतजाम किया गया था। दूसरे में बादशाह के सोने का अरेंजमेंट किया गया था और एक सामान्य कक्ष था। लाल किले के भीतर एक सफेद संगमरमर का बना हुआ रंग महल भी है। इस रंग महल के संगमरमर की दीवारों के ऊपर की गई नक्काशी और इसकी बनावट इस किले की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। वहीं किले के भीतर एक हीरा महल भी है। जिसे बहादुर शाह जफर ने बनवाया था। बताया जाता है कि इस हीरा महल में एक बहुत ही कीमती हीरे (Diamond) को रखा गया था। जो कोहिनूर से भी ज्यादा महंगा हीरा था।

किले की शान है मोती मस्जिद (Moti Masjid) :

लाल किला के भीतर एक मस्जिद है, जिसे मोती मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है। इस मस्जिद में कई सारे गुंबद हैं और यह मस्जिद सफेद संगमरमर का बना हुआ है। मस्जिद में एक बड़ा सा आंगन भी है। जहां नमाज पढ़ा जाता था। यहां के दीवारों पर की गई महीन नक्काशी (Fine Architecture) भारतीय स्थापत्य कला का एक बेहतरीन नमूना है। जैसा कि कहते हैं कि सफेद रंग शांति (peace) का प्रतीक होता है, इस मस्जिद को देखने के बाद आपको इसकी सादगी का अनुभव हो जाएगा।

लाल किला जाने का सबसे बेहतरीन समय (Best times to visit Red Fort) :

अगर आप लाल किला घूमने आना चाहते हैं तो इसके लिए सबसे बेहतरीन समय अक्टूबर से नवंबर और फरवरी से मार्च तक का है। क्योंकि मार्च के बाद दिल्ली के तापमान में काफी तेजी से बढ़ोतरी होती है और यहां का टेंपरेचर (temperature) लगभग 40 डिग्री के पार हो जाता है। ऐसे में यहां घूमने आना आपके लिए अच्छा विकल्प नहीं होगा। क्योंकि इस समय लू लगने की संभावना भी बहुत ज्यादा होती है। वहीं दिसंबर से जनवरी की बात की जाए तो यहां उस समय बहुत ज्यादा ठंड पड़ती है। कई बार तो स्थिति ऐसी होती है कि आपको कुछ कदम आगे का दृश्य भी ना दिखे। ऐसे में इस समय आ कर आप यहां अच्छे से इंजॉय नहीं कर पाएंगे।

लाल किले की टिकट प्राइस (Ticket price for Red Fort) :

अगर आप भारतीय (Indian) हैं तो आपके लिए लाल किले की टिकट प्राइस विदेशी पर्यटकों के मुकाबले बहुत कम होगी। वीकेंड (weekend) पर लाल किले में 15 साल से ऊपर के व्यक्ति का टिकट प्राइस 80 रुपए पर पर्सन होता है। जिसमें म्यूजियम का टिकट भी अटैच होता है। वहीं अगर आप भारतीय नहीं हैं तो आपके लिए एंट्री फी ₹600 रुपए होगा। वहीं वीक डेज (weekdays) में भारतीय पर्यटकों के लिए टिकट प्राइस ₹35 और विदेशी पर्यटकों के लिए ₹500 होता है।

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Qutub Minar Delhi – World Heritage Site

Qutub Minar: कुतुब मीनार नहीं देखा तो दिल्ली दर्शन अधूरा है

सुनहरें लफ़्ज़ों का इतिहास
आज भी तेरे हर पत्थर, तेरी हर दीवार पर है
जो ख़ूबसूरती उस ज़माने में थी
वही क़ातिलाना अदा आज क़ुतुब मीनार पर है।

वैसे तो पूरी दिल्ली ही देखने के लिहाज़ से बहुत खास है पर इसकी कुछ नायाब इमारतों को देखे बिना दिल्ली दर्शन अधूरा है। क़ुतुब मीनार इन्हीं खास और नायाब जगहों में से एक है। इस बात में कोई शक नहीं कि मुगलों ने दिल्ली को खूबसूरत बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। शायद इसी का परिणाम है  दिल्ली चारों दिशाओं से बेहद खूबसूरत मुगल इमारतों से सजी हुई है। आज अपने दिल्ली दर्शन में हम निकले हैं क़ुतुब मीनार के दीदार पर।

कैसे पहुंचे क़ुतुब मीनार

लॉकडाउन के बाद से ही दिल्ली में मेट्रो सेवा कई जगहों पर बदहाल है, मेट्रो स्टेशन के बाहर लम्बी-लम्बी लाइन्स आसानी से देखने को मिल जाएँगी। इसलिए हमें इन सब से बचते हुए  डीटीसी बस यात्रा का आनंद लेना ही मुनासिब लगा। एक लंबी बस यात्रा के बाद हम पहुंचे क़ुतुब मीनार। लेकिन अगर आप मेट्रो से आते हैं तो यहाँ का मेट्रो स्टेशन है क़ुतुब मीनार। सड़क के एक तरफ कुतुब मीनार परिसर है तो दूसरी तरफ टिकट घर। 40 रुपये का टिकट लिया और उत्सुकतावश अपने कदम तेजी से बढ़ा दिए क़ुतुब मीनार की तरफ। भीड़ ठीक-ठाक ही थी, क्योंकि किसी भी ऐतिहासिक इमारत में चहल-पहल के बिना हमारी  दिल्ली अधूरी है जनाब। आपको कुतुबमीनार के परिसर में जहाँ एक तरफ युवा अलग-अलग पोज़ में फोटोशूट करते दिख जायेंगे वहीँ, परिवार के साथ आने वालों के लिए भी यह एक बेहतरीन यादगार जगह है। वैसे तो साल भर यहाँ पर्यटकों का आना लगा रहता है लेकिन फिर भी अक्टूबर से मार्च का महीना यहाँ आने के लिए बेस्ट रहता है।

इन दिनों में जो एक चीज आप सभी पर्यटन स्थलों पर सबसे ज्यादा मिस करेंगे वो है विदेशी सैलानी। कोविड महामारी के कारण विदेशी सैलानियों की कमी महसूस हुई और उनके साथ इतिहास का बखान करने वाले ट्यूरिस्ट गाइड भी मीनार में दूर-दूर तक नज़र नहीं आए। बस सब समय का खेल है, उम्मीद करते हैं जल्द ही सब पहले जैसा हो।

काली गुबंद वाली मस्जिद

पूरा कुतुब मीनार परिसर 13 अलग-अलग व्यूपोइंट्स में बंटा हुआ है। हम में से ज्यादातर लोग मुख्य कुतुब मीनार और लौह स्तम्भ से ही वाकिफ़ हैं पर और भी बहुत कुछ है अपनी नक़्क़ाशी के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध क़ुतुबमीनार के इस परिसर में। परिसर में घुसते ही सबसे पहले नजर आती है काली गुबंद वाली मस्जिद। अंदर आते ही सबसे पहले इस मस्जिद पर ही नजर पड़ती है। आगे बढ़ने पर विशिष्ट मुगल शैली के बगीचें दिखाई देते हैं  जो कि मुगलों की प्रसिद्ध चार बाग की शैली में बने हैं। ये चार बाग शैली किसी भी इमारत में जान डाल देती है। प्रसिद्ध मुगल इमारतों में बागों की इसी शैली का प्रयोग किया जाना आम बात है।

मीनार के पास मण्डप जैसी दिखने वाली संरचना को कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद कहा जाता है। ये जानकारी पास लगे सूचना बोर्ड से ही मिली अन्यथा हम तो इसे एक सामान्य मण्डप भर समझ रहे थे। इस मस्जिद की स्थापना कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1190 के दशक में की थी। इस मस्जिद की खासियत इसकी स्थापत्य कला है। इंडो इस्लामिक शैली से बनी ये मस्जिद और इसकी नक्काशी एक बार तो आपको दीवाना ही बना देगी। नक्काशीदार स्तंभो पर खड़ी यह मस्जिद बनावट के मामले में बेहतरीन है। अगर यूं कहें कि कुतुब मीनार परिसर की शोभा बढ़ाने में इस मस्जिद का भी अमूल्य योगदान है, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।

अलाई मीनार

आप जैसे-जैसे परिसर में आगे बढ़ते जायेंगे वैसे ही अद्भुत स्थापत्य कला के मुरीद बनते चले जायेंगे। आगे दिखी अजीब-सी बेढ़ंगी चट्टान जैसी दिखने वाली एक इमारत। पास पहुंच कर पता चला ये है अलाई मीनार। जी, ये वही मीनार है जिसे दिल्ली के बाद के शासक अलाउद्दीन खिलजी ने बनाने की कोशिश की थी। ये खिलजी के अधूरे सपने जैसा है। खिलजी कुतुबमीनार से भी ऊंची इमारत बनाना चाहता था पर किसी कारणवश ये सपना अधूरा ही रह गया।

इल्तुतमिश का मकबरा

अलाई मीनार से आगे बढ़कर परिसर में एक सफेद और लाल बलुआ पत्थर से बना मकबरा नजर आ रहा था। ये वही मकबरा था जिसमें दिल्ली के दूसरे शासक इल्तुतमिश को दफनाया गया था। ये मकबरा कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के ठीक पीछे ही है। मकबरा अपनी इस्लामिक बनावट के कारण अलग ही नजर आ रहा था। इसकी खूबसूरती को देखकर अंदाजा लगाना मुश्किल था कि ये एक कब्र है। किसी शाही महल जैसी इसकी बनावट वास्तव में अद्भुत है। बीच-बीच में बने सफेद मेहराब और खुली छत इसे और भी आकर्षक बनाते हैं।

इसी के ठीक सामने अलाउद्दीन खिलजी का मदरसा है, जिसे शायद खिलजी ने अपनी छाप छोड़ने के लिए बनवाया था। मेहराबों के समूह जैसा दिखने वाला ये मदरसा शिक्षा का केंद्र रहा होगा, जिसमें छात्रों के लिए कमरें और पुस्तकालय हुआ करते थे। मदरसे का परिसर काफी विशाल है। मार्ग में आगे प्रेमी जोड़े तस्वीरें खिंचवाते दिखे। विचार आया इन्हें इस परिसर के इतिहास से क्या ही लेना देना। इनके लिए ये अब सिर्फ क्वालिटी टाइम बिताने का एक ठिकाना भर है।

लौह स्तम्भ

परिसर का बारीकी से मुआयना करते हुए हम कुतुब मीनार पास ही स्थित लौह स्तम्भ के करीब पहुंचे। बचपन में अपनी किसी किताब में इस लौह-स्तम्भ का जिक्र पढ़ा था। जो कहता था कि इस स्तम्भ को पीठ के बल खड़े होकर दोनों हाथों से गले लगा सकने वाला व्यक्ति भाग्यशाली होता है। इच्छा मेरी भी थी इस किंवदंती को एक बार आजमाने की। दुर्भाग्य से अब लौह स्तम्भ के चारों तरफ ग्रिल लगा दी गई है ताकि पर्यटक उसके पास न पंहुचे। शायद  अब स्तम्भ को देखना भर ही हमारे भाग्य में था। खैर, इसकी वैज्ञानिक खासियत को जान लेना भी जरूरी है। 550 ईस्वी से भी पहले का ये स्तम्भ आज भी अपने पौराणिक रूप में जस का तस है। आज भी जंग का एक कतरा इस स्तम्भ को छू तक नहीं पाया। स्तम्भ पर संस्कृत के शिलालेख उकेरे हुए हैं। स्तम्भ कुल 7.2 मीटर ऊंचा है। कहा जाता है अंग्रेजों ने इसे नष्ट करने के लिए तोप से उड़ाने की भी कोशिश की पर वे विफल रहे। ऐसी अनेकों कहानियां इस स्तम्भ से जुड़ी हैं।

आस पास नजर दौड़ाई तो मेहराब जैसी अधूरी आकृतियां दिखाई देती हैं जो किसी को भी मोहित कर सकती हैं। इनकी बनावट है ही इतनी अनोखी। इसके बाद आखिरकार हम मुख्य मीनार के पास पहुंचे। 73 मीटर ऊंची ये इमारत यूनेस्को की वर्ल्ड हेरीटेज साइट में शामिल है। ये पूरी मीनार लाल बलुआ पत्थर की बनी है। मीनार के करीब जाने पर देखेंगे कि कुरान की आयतें इसके अग्रभाग पर बड़ी सुंदरता से उकेरीं गई हैं। गजब की बात तो ये है कुतुब मीनार में कई शासकों ने अपनी छाप छोड़ी। मीनार की चौथी और पांचवी मंजिल पर लगे संगमरमर फिरोज शाह तुगलक की निशानी है। सिकन्दर लोदी ने भी मीनार के कुछ हिस्सों पर अपना योगदान दिया। मीनार का बन्द दरवाजा निराश करता है। अंदर जाने की बहुत इच्छा थी पर एक हादसे के बाद से इसके दरवाजे बंद पड़े हैं। 1981 का वाकया है बिजली चले जाने से मीनार के अंदर भगदड़ मच गई, जिससे लगभग 47 लोगों की मौत हो गई।(Qutub Minar)

क़ुतुब मीनार को जी भर देख लेने और हर एंगल से तस्वीर ले लेने के बाद हम आगे बढ़े। बगल में एक विशाल दरवाजा दिखा। ये था अलाई दरवाजा। खिलजी ने इसे प्रवेश द्वार के रूप में बनवाया था। द्वार के अंदर बनी जालियों से आती सूर्य की किरणें किसी चमत्कारी शक्ति जैसी प्रतीत होती थी। उस दृश्य का आँखों देखा हाल शब्दों में बयां कर पाना असंभव है।

सफर के आखिरी पड़ाव में हमें एक और छोटा-सा मकबरा दिखा। ये था इमाम ज़ामीन का मकबरा। पूरे परिसर की तुलना में हमें ये उतना कुछ खास महत्व का नहीं लगा। खैर कुतुब मीनार की सुंदरता का जितना बखान करें कम ही होगा। फ़िलहाल क़ुतुबमीनार का ये सफ़र यही समाप्त हुआ। आप बस बने रहिए हमारे सफ़रनामा में।

Edited by Pardeep Kumar

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Dilli Haat INA, Delhi- History, Timings, How to Reach

Dilli Haat-दिल्ली हाट: पारम्परिक भारत की खूबसूरत झलक

अगर आपका लगाव ट्रेडिशनल चीज़ों से हैं और पारम्परिक खरीदारी और हस्तकलाओं का बेहद शौक रखते हैं और शहरी परिवेश में रहते हैं तो दिल्ली के आईएनए स्थित  दिल्ली हाट जरूर जाइएगा।  दिल्ली के शहरी परिवेश में ग्रामीण और पारम्परिक भारत का अहसाह कराने वाले बाजार यानी दिल्ली हाट (आईएनए) का अपना ही एक अलग स्वैग है। मेट्रो के आसान और सुहाने सफर का लुत्फ़ उठाते हुए उतर जाइए आईएनए मेट्रो स्टेशन पर। मेट्रो से बाहर निकलते ही सामने ही है आपका दिल्ली हाट।(Dilli Haat)

किस समय यहाँ आना सबसे बेहतर

हाट के परिसर में घुसते ही सामने ही टिकट घर है। आपको ये  टिकट घर कुछ अलग ही दिखाई देगा, जैसे मधुबनी की कोई हस्तनिर्मित झोपड़ी जो कि किसी का भी ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करेगी । यहाँ कोविड महामारी के बाद से पर्यटकों की कमी साफ दिखाई दी । और यहाँ  खरीददारी के लिए आने वालों की कमी का असर टिकट के दामों पर साफ साफ़ दिखाई दिया, जो टिकट 30 रुपये की  हुआ करती थी, इस वक्त वो 10 रुपये की कर दी गयी थी। पिछले एक साल से इस कोरोना महामारी से सबसे ज्यादा प्रभाव पर्यटन और बाजारों पर ही देखने को मिला है। और खबर ये भी मिली कि दिल्ली हाट में खरीददारों के लिए आने वालों के लिए एक समय ये  एंट्री मुफ्त भी कर दी गई थी।(Delhi Haat)

वैसे तो साल भर यहाँ पर्यटकों और खरीददारों का आना लगा रहता है लेकिन फिर भी अक्टूबर से मार्च का महीना यहाँ आने के लिए बेस्ट रहता है। लेकिन जब भी आपका मन कुछ एंटीक खरीदने का हो तब आप किसी भी समय यहाँ बेधड़क आ सकते हैं फिर चाहे कोई भी मौसम हो।

ख़ूबसूरत पारम्परिक बाजार

आप जैसे ही दिल्ली हाट में अंदर प्रवेश करेंगे  तो आपको लगेगा आप एक बारगी तो जैसे किसी गांव के पारम्परिक बाजार में पहुंच गए हो। ईंटो की जालीदार शैली से बने छोटे-छोटे कमरे एक कतार में बड़ी सुंदरता से बनाए गए हैं वहां सभी दुकानों में सीमेंट के पलस्तर की जगह हाथों से लिपाई-पुताई की गई है, इस तरह हट नुमा घर की बनावट आपको किसी भी सामान्य भारतीय गांव में आसानी से देखने को मिल जाती है। शायद यही ख़ूबसूरती दिल्ली हाट को बाकी सभी बाज़ारों से अलग करता है। इसलिए यहाँ जितने लोग खरीददारी करने आते हैं उतने ही वीकेंड पर मौज मस्ती, खाने-पीने या यूँ कहिये अपना क्वालिटी टाइम बिताने भी आते हैं। ये हाट पूरे भारत की एक छोटी सी पारम्परिक झलक दिखाता है।

हस्तकला और क्राफ्ट से संबंधित गांव

इस जगह घूम कर आपको ऐसा लगेगा जैसे  देश के अलग-अलग हिस्सों से आये कारीगरों ने यहाँ अपना एक अलग हस्तकला और क्राफ्ट से संबंधित गांव बसा दिया दिया हो। कहीं कोई अपने खिलौने बेच रहा था तो कोई महिलाओं से सम्बंधित वस्तुएं। खास बात ये थी कि ज्यादातर पूरे हाट में महिलाओं से सम्बन्धित प्रोडक्ट ही दिखाई दे रहे थे। हर दूसरी शॉप में कोई न कोई  अपनी कारीगरी और कला का प्रदर्शन कर रहा था।  देश के हर कोने से हुनरमंदों को एक छत्त के नीचे लाने से न केवल इन कलाकारों के हुनर को एक विशेष पहचान मिल रही है बल्कि यह उनके लिए आय का भी एक बेहतरीन जरिया सिद्ध हो रहा है। यहाँ ख़रीददारी के लिए आने वाले  लोगो में इन हस्तनिर्मित चीज़ों को खरीदने की चाहत भी साफ देखी जा सकती थी देश के छोटे-छोटे हिस्सों से आए इन कलाकारों के लिए ये जगह किसी सपने से कम नही वरना ऐसी कीमती कला कुछ हिस्सों तक सिमट कर रह जाती हैं और एक समय पर अपना अस्तित्व ही खो बैठती हैं।

ओपन रंगमंच

अगर आप परिवार और दोस्तों के साथ इस जगह पर आने की सोच रहे हों तो यह एक शानदार निर्णय रहेगा।  हाट के परिसर में सामने की ओर एक रंगमंच भी है जो मनोरंजन के उद्देश्य से बनाया गया है। इस ओपन रंगमंच में विभिन्न प्रदेशों के कलाकारों द्वारा  पारम्परिक वाद्ययंत्र और संगीत की ध्वनि आपको थिरकने पर मजबूर कर देगीं।

खान-पान के लिए भी प्रसिद्ध

हस्तनिर्मित वस्तुओं और संगीत संध्या के अलावा दिल्ली हाट अपने खान-पान के लिए भी प्रसिद्ध है। विभिन्न कलाओं के साथ-साथ यहां के भोजन में भी पूरे भारत की झलक मिलती है। गुजराती ढोकला खाने की इच्छा हो या दक्षिण का उत्तपम यहां हर राज्य के पकवान आपका स्वागत करेंगे। सिक्किम से लेकर कश्मीर तक सब कुछ मिलेगा यहां। समझ लीजिए छोटा-सा भारत दिल्ली हाट के रूप में बसा दिया गया है। इतना तय है कि ये जगह आपको निराश तो बिल्कुल नहीं कर सकती।(Delhi Haat)

तो आइये और छोटे भारत के दर्शन पर निकल पड़िए। मधुबनी से लेकर चिकनकारी तक सब कुछ है यहां। कोल्हापुरी हो या गोटापत्ती हर चीज़ आपको यहां देखने को मिलेगी तो इंतज़ार किस बात का शहरों के मॉल देख कर थक गए हो तो आओ कुछ नया अनुभव करने। ग्रामीण अनुभव और सुंदर कलाओं के इस जश्न में।

 

Research – Nikki Rai
Written & Edited by Pardeep Kumar

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Lodhi Garden Delhi

Lodhi Garden: लोधी गार्डन- मकबरों और बागों का स्वर्ग

हम दिल्ली वालों के लिए बारिश किसी वरदान से कम नहीं है। खासतौर पर तब जब हद से ज्यादा गर्मी पड़ रही हो। जून हो या जुलाई, दिल्ली की झुलसा देने वाली गर्मी घर से बाहर निकलने नहीं देती। ऐसे में बारिश का सुहावना मौसम बन जाए तो फिर दिल्ली दर्शन की बात ही क्या। समझ लीजिए आनंद के सागर में डुबकी लगा ली। पिछले दो दिनों से लगातार हो रही बारिश अब थम चुकी थी। मौसम को देखते हुए योजना बनी लोधी गार्डन घूमने की।(Lodhi Garden)

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अब आप सोचेंगे इसमें ऐसा क्या खास है तो बता दें ये केवल एक गार्डन नहीं बल्कि मकबरों से सुसज्जित एक परिसर है, जिसे पर्यटन के लिहाज से गार्डन का नाम दे दिया गया है। प्रकृति प्रेमी बंधुओं के लिए यह जगह स्वर्ग से कम नहीं। इसकी खूबसूरती और इतिहास इतना खास है जिसे जानने के बाद आप खुद को इस जगह जाने से रोक नहीं पाएंगे

कैसे पहुंचे लोधी गार्डन

लोधी गार्डन मेन लोधी रोड, इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के पास स्थित है। लोधी गार्डन जेएनएल मेट्रो स्टेशन से चंद कदम की दूरी पर ही है। खास बात ये कि लोधी गार्डन की एंट्री बिलकुल फ्री है।

बड़ा गुबंद

जैसे ही हमनें गार्डन में प्रवेश किया अंदर जाते हुए केवल पेड़ पौधे ही नजर आ रहे थे। कुछ कदम आगे बढ़ते ही एक बेहद आकर्षक इमारत दिखी। ये था बड़ा गुबंद। सबसे जरूरी बात ये पूरा परिसर लोधियों के अंतर्गत हुआ करता था। आज इस परिसर में लोधी वंश से सम्बन्ध रखने वालों की कब्रें हैं जिनपर मकबरे बने हुए हैं। ये मकबरे ही आज यहाँ आने वाले सैलानियों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें लोधी वंशज सुल्तानों के राज्यकाल (1454-1526) में दो प्रकार के मकबरों का निर्माण हुआ एक चौकोर और दूसरा अठपहलू। बड़ा गुबंद चौकोर मकबरे का उदाहरण है। इस मकबरे के बिल्कुल साथ में एक मस्जिद बनी हुई है जिसे बड़ा गुबंद मस्जिद कहा जाता है। कुछ विद्वान मानते हैं बड़ा गुबंद मकबरा इस मस्जिद का प्रवेश द्वार है परंतु ये एक अलग मकबरा ही है। इस मकबरे में दफनाये गए व्यक्ति की पहचान नहीं कि जा सकी है पर माना जाता है ये व्यक्ति सिकन्दर लोधी के राज्य में किसी विशिष्ट पद पर रहा होगा।

बगल में ही बड़ा गुबंद नाम की मस्जिद भी है जो मेहराबों जैसे आकार की है। स्तम्भों पर स्थित ये मस्जिद सन 1494 के आस पास की है। इसके अंदर की खूबसूरती देखकर कोई भी दंग रह जायेगा। सफेद चूना पत्थर और लाल बलुआ पत्थरों से बनी ये मस्जिद अद्भुत वास्तुशैली की मिसाल है। एक बार जो इसे देख ले उसका मुंह खुला का खुला रह जाए। अरबी शैली में बनी ये मस्जिद पूरी तरह से कुरान की आयतों और रंगीन बेलबूटों से सजी हुई है। हम तो पूरी तरह इसकी सुंदरता के कायल हो गए।

शीश गुबंद

मस्जिद के सामने खड़े होने पर सामने ही एक और अनोखा मकबरा नजर आ रहा था। ये था शीश गुबंद। हम सुंदर बाग और फूलों की महक लेते हुए सामने के मकबरे यानी शीश गुबंद पहुँचे।

शीश-गुबंद अन्य इमारतों से कुछ अलग लगा। इसके ऊपरी भाग पर नीले रंग की टाइलें इसे अलग ही चमक दे रही थी। इस्लामिक शैली से बना ये मकबरा आज भी खूबसूरती में किसी से कम नहीं। यह मकबरा प्रथम लोधी बादशाह बहलोल लोधी का है। मकबरे की छत पर उकेरी गई कलाकृतियां और डिज़ाइन अद्भुत थे। बारीक कारीगरी देखकर नजरें हटने का नाम नहीं ले रही थीं।

अठपुला

दूर-दूर तक देखने पर बाग में बस हरियाली ही हरियाली नजर आ रही थी पर वहां लगा परिसर का नक्शा आगे बहुत कुछ होने की सूचना दे रहा था। कुछ दूरी पर एक मानवनिर्मित झील दिखी जिस पर एक पुल बना हुआ है जिसे अठपुला कहा जाता है। सिकंदर लोधी के मकबरे से थोड़ी ही दूर सात मेहरावों वाला एक पुल है जिसे नाले पर बनाया गया है। सूचना बोर्ड की जानकारी कह रही थी यह मेहराबी पुल अकबर के शासन काल में बनवाया गया जो कि नाले के पानी को यमुना नदी तक पहुँचाने का काम करता था।

सिकन्दर लोधी का मकबरा

लोधी गार्डन की खास बात यही है कि ये पूरा परिसर ही सुंदरता लिए हुए है आप जितना आगे चलते जायेंगे आपको यहाँ उतना ही अच्छा फील होगा। आगे चलते हुए हमें दिखाई दी यहाँ की मुख्य इमारत यानी सिकन्दर लोधी का मकबरा। अठपहलू शैली का ये मकबरा अन्य सब मकबरों से अलग भी था और भव्य भी। सिकन्दर लोधी, लोधी वंश का द्वितीय शासक था। मकबरा ऊंचाई पर बनाया गया है जिसमें मकबरे का एक अलग बाग भी है। यहाँ जितने भी मकबरें दिखाई दिए उन सबकी संरचना एक जैसी ही थी। इसकी खासियत ये है ये मकबरा पूरे परिसर के बीचों-बीच है। ये मकबरा अष्टभुजाकार है जो चारों ओर से देखने पर एक समान दिखता है।

लोधी गार्डन ऐसी जगह है जहाँ आप घंटों प्रकृति का आनंद ले सकते हैं। ज़िंदगी की भागम-भाग से दूर किसी अपने के साथ यहाँ क्वालिटी टाइम बिता सकते हैं। सब कुछ है यहाँ पुरानी इमारतें, मकबरें और पानी की झीलें भी।

मुहम्मद शाह सय्यिद मकबरा

अब वक्त हो चला था घर लौटने का, बस बाहर निकलने के लिए चले ही थे कि अचानक बारिश अपने पूरे शबाब के साथ बरसने लगी, मानो बादलों का सारा गुस्सा आज ही फूट पड़ा हो।

निकलते हुए लोधी गार्डन का एक आखिरी मकबरा जो हमसे छूट रहा था सामने नजर आया। बारिश से बचने के लिए हम भागे मकबरे की ओर। ये था मुहम्मद शाह सय्यिद मकबरा। ये गोलाकार मकबरा दूर से किसी महल के बैठकघर जैसा लगता है। अगर मुझसे पूछा जाए तो पूरे परिसर में सबसे अनोखा मकबरा यही लगा। बारिश से बचते कई लोग इस मकबरे की सीढ़ियों पर बारिश का सुखद आनंद लेते दिखे। और मुझे याद आया क़तील शिफ़ाई का एक मशहूर शेर-

दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया था

इस तरह बरसात का मौसम कभी आया था

बारिश के ऐसे सफर की यादें उम्रभर साथ रहती हैं। सफर तो खत्म हो गया पर चेहरे की मुस्कान साथ चलती रही। अगले सफर में फिर हम किसी नायाब जगह का रुख करेंगे। बस आप बने रहिये हमारे साथ इस सफ़रनामें में….

 

Research – Nikki Rai

Written & Edited by Pardeep Kumar

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Hauz Khas Village – Best Tourist Attraction in Delhi

Hauz Khas- हौज़ ख़ास विलेज: दिल्ली के युवाओं की मनपसंद जगह

Five Colors of Travel

दिल्ली के कल्चर को अच्छे से जानने के लिए सबसे परफेक्ट है हौज़ ख़ास। यही वो जगह है जहाँ आप दिल्ली वालों के स्वैग और स्टाइल दोनों को करीब से देख सकते हैं।

कैसे जाएं हौज़ ख़ास

हौज़ ख़ास मेट्रो स्टेशन से लगभग 3 किलोमीटर दूर बना हौज़ ख़ास विलेज(Hauz Khas Village) अपनी बनावट के लिए बहुत फेमस है, जहाँ जाते वक्त रास्ते में सबसे पहले आपकी नज़र छोटी गुमटी की तरफ जाएगी। अब आप कहेंगे ये क्या है? छोटी गुमटी एक गुमत है जो चारो तरफ से घिरी हरियाली के बीचों-बीच बनी है। यहाँ इतनी शांति है कि इस गुमटी में जाकर आप अलग-अलग किस्म के पक्षियों की आवाज़ें और यहाँ तक की अपनी धड़कनों को महसूस कर पाएंगे। अगर आपको शांत जगह खूब भाती हैं तब यह जगह आपके लिए बिलकुल अनुकूल रहेगी।(Hauz Khas)

        hauz khas vollage- cafe hub

हौज़ ख़ास मार्किट

छोटी गुमटी के बाद थोड़ा आगे चलने पर आएगा डियर पार्क और उसके बाद शुरू हो जाएगी हौज़ ख़ास मार्किट, जहाँ आपको चारों तरफ क्लब, कैफ़े और गानों की ध्वनि सुनाई देगी। आपको बता दें हौज़ ख़ास मार्किट कुछ खरीदने से ज्यादा पेट पूजा और एन्जॉय करने के मकसद से बनाई गयी है। यही कारण है कि वहां हर वक़्त युवाओं का जमावड़ा लगा रहता है। चाहे आपको किसी से मिलना हो, डेटिंग करनी हो या बर्थडे सेलिब्रेट करना हो, उसके लिए हौज़ ख़ास परफेक्ट प्लेस है। हौज़ ख़ास मार्किट में से गुजरते वक्त आपको फुल बेस में बजते हुए गाने और युवा लड़के-लड़कियों की टोलीयां नज़र आएंगी और बस यही इस मार्किट की खासियत है।

हौज़ ख़ास -महक का छोटा किला

हौज़ ख़ास मार्किट के बाद शुरू हो जाता है हौज़ ख़ास विलेज जो दूर तक फैला हुआ है। हौज़ ख़ास को महक का छोटा किला भी कहा जाता है। विलेज में एंट्री के लिए 25 रुपय की टिकट लगती है। टिकट लेते ही आपके सामने होगा हौज़ ख़ास विलेज, उसकी अद्भुत बनावट और चारों और फैली हरियाली ही हरियाली।

    hauz khas fort

वैसे आपको बता दें उर्दू के शब्द हौज़ का अर्थ है पानी की टंकी और ख़ास का अर्थ है राजसी अथार्त राजसी पानी की टंकी। माना जाता है कि इस बड़ी-सी टंकी का निर्माण अल्लाउद्दीन खिलज़ी द्वारा सिरी फ़ोर्ट के निवासियों के लिए करवाया गया था। इस्लामी वास्तुकला से बना ये हेरिटेज हौज़ खास में आकर्षण का मुख्य केंद्र बिंदु है।(Hauz Khas)

हौज़ ख़ास विलेज, विलेज बनने से पहले फिरोज शाह का मदरसा था। फिरोज शाह दिल्ली सल्तनत में तुगलक वंश के तीसरे शासक थे जिन्होंने 37 साल राज किया। फिरोज शाह ने ही हौज़ ख़ास विलेज में मदरसा बनवाया था और यहीं उनका मकबरा भी बनाया गया है।

इस मकबरे के गुंबद का शीर्ष पूरे परिसर में सबसे ऊंचा है। यह खड़े अष्टकोणीय और वर्गाकार छतरियों को मकबरे के रूप में बनाया गया था। इस इमारत की मरम्मत बादशाह सिकंदर लोदी ने करवाई थी। कक्ष के बीचों-बीच बनी कब्र फिरोज शाह की है, जबकि वहीँ आसपास संगमरमर की कुछ अन्य कब्रें भी बनी हैं।

हौज़ ख़ास विलेज फिरोज शाह के मकबरे के पश्चिम में दूर तक फैला है। ऊपरी मंजिल में खुले स्तंभों युक्त कमरे हैं और निचली मंजिल में मेहराबी कमरे हैं। निचली मंजिल में छोटी अंधेरी कोठरियां भी हैं जो शायद छात्रों के लिए बनी होंगी। जिसके अंदर रोशनी और हवा के लिए तंग रोखे हैं, और सामान रखने के लिए छोटे आले बने हैं कहा जाता है कोठरियों के सामने मेहराबी कमरे थे जो अब ढह चुके हैं। इस हिस्से के पश्चिमी छोर में एक बड़ा गुम्बदनुमा दो मंजिला भवन है।(Hauz Khas)

hauz khas fort

पिकनिक स्पॉट

हौज़ ख़ाज़ के परिसर में प्रवेश करते ही इतनी उम्दा वास्तुकला दिखती है जिसे देख कोई भी असमंजस में पड़ जाए कि पहले दाएं जाया जाए या बाएं। बनावट कुछ इस प्रकार की है जो गर्मी में धूप से बचाए और बरसात में बारिश से। पूरे विलेज में कही भी खड़े होने पर चारों तरफ विलेज के साथ बने डिअर पार्क की झील दिखती है जो आँखों को ठंडक देती और मन को तृप्त करती है। पूरे विलेज का एक-एक कोना इतना शानदार है कि वहां न सिर्फ दोस्तों के साथ मजे से घूमा जा सकता है बल्कि यह जगह क्वालिटी टाइम बिताने के लिए भी शानदार है।

selfie time with friends

विलेज के शांत माहौल व सुरक्षा के लिहाज़ से भी देखें तो यह जगह बेहतरीन विकल्प है। हमें अनेक जोड़ें यहाँ इत्मीनान से बैठे दिखाई दिए। साथ ही आप परिवार और दोस्तों के साथ पिकनिक के लिए भी यहाँ आ सकते हैं।

हौज़ ख़ास विलेज अपनी खूबसूरती और बनावट दोनों के कारण यहाँ आने वाले हर ऐज ग्रुप को अपनी ओर आकर्षित करता है। दौड़ती-भागती जिंदगी में दो पल सुकून से बिताने के लिए ये जगह बिल्कुल फिट बैठती है, ऐसे ही थोड़ी इसे महक का छोटा किला कहा जाता है।(Hauz Khas)

 

Research – Geetu Katyal
Written & Edited by Pardeep Kumar

 

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Sunder Nursery – Delhi’s Heritage Park

Sunder Nursery: सुंदर नर्सरी- इतिहास और कुदरत का सुंदर मिलन

Five colors of Travel

भागते-दौड़ते शहरों के लोगों को सबसे ज्यादा कमी अगर किसी चीज की खलती है, तो वो है प्राकृतिक सौंदर्य की। अगर आप किसी ऐसी जगह की तलाश में हैं तो समझ लीजिये आपकी तलाश आज मुक्कमल हुई। क्योंकि आज हम आपको रू-ब-रू करवाएंगे ऐसी ही एक बेहद खास जगह- सुंदर नर्सरी से। जिसके बारे में भले ही आपने कम सुना होगा या पढ़ा होगा लेकिन यहाँ आने के बाद आप महसूस करेंगे की ये शानदार जगह किसी जन्नत से कम नहीं।(Sunder Nursery)

दुनिया की 100 बेहतरीन जगहों में दिल्ली की सुंदर नर्सरी

हुमायूं टॉम्ब के ठीक सामने स्थित ये नर्सरी एक नर्सरी के साथ-साथ बायोडायवर्सिटी पार्क, एक ऐतिहासिक विरासत और गार्डन भी है। आप यहाँ 40 रुपये की टिकट लेकर प्रवेश कर सकते हैं। नाम से समझ आता है ये सिर्फ एक गार्डन भर है पर अंदर जाने पर मालूम हुआ यहां तो बहुत कुछ है। परिवार के साथ क्वालिटी टाइम बिताने और नेचर के करीब जाने के लिए ये जगह बिल्कुल परफेक्ट है। टाइम्स मैगज़ीन ने 2018 के अपने सर्वे में सुंदर नर्सरी (Sunder Nursery) को 100 सर्वश्रेष्ठ घूमने लायक जगहों में शामिल किया है।

 

इस नर्सरी का हर ज़र्रा-ज़र्रा इसके बदलाव की तस्वीरों की गवाही देता है। दरअसल ये जगह लगभग पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी थी। आर्किलोजिकल डिपार्टमेंट के मार्गदर्शन में इस जगह पर पुनर्निर्माण कार्य शुरू किया गया। नतीजा आज ये नर्सरी देखने के लिहाज़ से बेहद खूबसूरत लगती है। मुग़ल आर्किटेचर और बाग-बगीचों से सजी ये नर्सरी लगभग 90 एकड़ में फैली हुई है। एंट्री गेट पर नक्शा देखकर ये तो समझ आ गया था कि आज पैरों की अच्छी-खासी कसरत होने वाली है। आप भी यहां आएं तब ये माइंड सेट करके आएं की खूब सारा पैदल चलना पड़ेगा तभी इसकी नायाब खूबसूरती के दीदार कर पाएंगे।(Sunder Nursery)

अंदर घुसते ही सबसे पहले एक मकबरा नजर आया। छानबीन से मालूम हुआ ये सुंदर बुर्ज़ है। इस मकबरे की अंदरूनी खूबसूरती का बखान करना मुश्किल है। 16वीं सदी की इस मुगलकालीन इमारत के अंदरूनी हिस्सें में सफेद चूना पत्थर से सजावट की गई है। पूरा मकबरा कुरान की आयतों से सजा है। इस बेहतरीन मकबरें के दीदार से सफर की शुरुआत कुछ ज्यादा ही रोमांचित लगने लगी। खास बात ये थी जगह-जगह इस पूरी नर्सरी की बदलती तस्वीरों को दिखाया गया था। जो इस खूबसूरत क्षेत्र की हर कहानी को दिखाने के लिए जरूरी भी है।

लक्कड़वाड़ा बुर्ज

चलते-चलते झील के सुंदर नज़ारे भी आराम से देखने मिल रहे थे। यकीन मानिये आपका मन ऐसी खूबसूरती देख उत्साहित हुए बिना रह ही नहीं सकता। कुदरत की ये बेहतरीन नक्काशी किसी कागज पर उतारना कई बार किसी लेखक के बस में भी नहीं होती। रास्ते में एक और ऐतिहासिक विरासत दिखी। ये था 16वीं सदी का लक्कड़वाड़ा बुर्ज। इस बुर्ज की खासियत ये है कि इसे 2017 में इसकी बनावटी खूबसूरती को देखते हुए विश्व विरासत घोषित किया गया। सामने की ओर से ये पूरा बुर्ज गुलाब बाग से सुसज्जित है।

इस नर्सरी में जगह-जगह पेड़ों की कई प्रजातियां मौजूद है। हर पेड़ पर उसका नाम देख कर आप उसकी प्रजाति का पता आसानी से लगा सकते हैं। साथ ही साथ यहां पक्षियों की लगभग 80 प्रजातियां संरक्षित हैं। घूमते हुए रास्ते भर तरह-तरह के पक्षियों की आवाज़ें सुनाई दे रहीं थी। यहां ये फैसला करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है कि अगली जगह कौन-सी देखी जाए।

शानदार पिकनिक स्पॉट

चलते हुए एक और खास जगह दिखाई दी जिससे मन आनंदित हो गया। बांस के पेड़ों की ओंट में ठीक झील के सामने एक कैफ़े दिखा। सोचिए कुदरत की गोद में बैठ कर लंच का मज़ा ही कुछ और होगा। इसके दूसरी तरफ ठीक सामने फूलों से भरी रंगीन नर्सरी थी। ऐसे में प्रेमी जोड़े और उनके खिलखिलाते चेहरे देख कर नजारा और भी हसीन लगने लगा। जगह-जगह बच्चों के लिए प्लेइंग जोन मिल जाएंगे। न केवल युवाओं के लिए बल्कि परिवार और बच्चों के साथ भी यहां आ के आपका दिन बन सकता है।(Sunder Nursery)

सुन्दरवाला महल

बाहर निकलते हुए एक और महल पर नजर पड़ी। ये था सुन्दरवाला महल। जगह-जगह गार्डन और मकबरों का ऐसा मेल आपको बोरियत का एहसास तो बिल्कुल नहीं होने देगा। इस महल में कब्रगाह के चारों तरफ आठ कमरे बने हैं। जो इसे चौकोर मकबरे का आकार देता है। इस महल की हालत बहुत ज्यादा खराब हो चुकी थी जिसे पुनर्निर्माण के जरिये ठीक किया गया। इसके ठीक सामने एक भूमिगत रंगमंच भी है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजनों में इसका उपयोग किया जाता है।

सफर में आगे बढ़ते हुए तरफ-तरह के पक्षियों और फूलों को देखना लुभाता है। रास्ते में छोटे-छोटे कॉफी पॉइंट नजारों को और भी ज्यादा आकर्षक बना देते हैं। अंतिम पड़ाव में एक और ऐतिहासिक इमारत पर नज़र पड़ी। ये था मिर्जा मुजफ्फर हुसैन का मकबरा। बादशाह अकबर के दामाद का ये मकबरा एक दुर्लभ ढांचा है। इसके अंदर कब्र है जिसे आठ कमरों से घेरा हुआ है। महीन सजावट और आयतों से सजा ये मकबरा देखने के लिहाज से बेहद खास है। इसकी सुंदरता मोहित करती है। (Sunder Nursery)

क्यों जाएँ सुन्दर नर्सरी?    Five Reasons to Visit This Place –

1.आप चाहें तो यहाँ घंटों व्यतीत कर सकते हैं क्योंकि इस जगह बोर होने का तो सवाल ही नहीं उठता।

2. जिन प्रकृति प्रेमियों को नई-नई जगह देखने का शौक हो उनके लिए सुन्दर नर्सरी एक उम्दा विकल्प है

3. वैसे आप यहाँ किसी भी समय आ सकते हैं लेकिन फिर भी जब मौसम थोड़ा ठंडा हो तब यहां आना बेहतर रहता है।

4. यहाँ स्थित झील, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए ओपन एयर थिएटर, भव्य मकबरें और महल आपको प्रकृति और इतिहास दोनों का अहसास कराएंगे।

5. दिल्ली में क्वालिटी टाइम बिताने के लिए यह बेहद शानदार जगह है। 

 

फ़िलहाल हमारा ये सफर तो यहीं खत्म हुआ पर हम फिर मिलेंगे किसी नए सफर पर।

 

Written & Research – Nikki Rai
Edited by Pardeep Kumar

 

some glimpse of Sunder Nursery Garden……

 

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Safdarjung Tomb – History, Facts & Architecture

Safdarjung Tomb: दिल्ली के किसी बादशाह के नहीं बल्कि प्रधानमंत्री के नाम पर बना है यह मकबरा

Five Colors of Travel

आपने दिल्ली की जानी-मानी जगहें तो बहुत घूमी होंगी पर अब वक्त है एक अनजान और नए सफर पर ले चलने का। हम निकले हैं दिल्ली की कुछ नायाब इमारतों की खोज में, जिनका महत्व तो बहुत है पर प्रचार और इतिहास में जगह न मिल पाने के कारण आज ये स्थान पर्यटकों की नजरों में या तो नहीं हैं या बहुत कम हैं।
लम्बे रिसर्च और ढेरों जानकारियां निकालने के बाद फैसला किया सफदरजंग का मकबरा देखने का। गूगल मैप पर अपनी अन्य खोजों के दौरान कई बार मकबरे के नाम पर नजर पड़ी पर अनजान और अनसुने नाम के कारण कभी गौर नहीं किया था। इस बात की भी कोई जानकारी नहीं थी कि मकबरा हुमायूं के मकबरे जैसी ही सुंदरता समेटे हुए है भले ही वह बहुत विशाल और विस्तृत न हो। गूगल पर कुछ तस्वीरें देखीं और मन बनाया सफदरजंग का मकबरा देखने का। सफर का मकसद दुनिया को दिल्ली की अनछुई, अनदेखी लेकिन खूबसूरत जगहों से रु-ब-रु कराना है। Safdarjung Tomb

निकटतम मेट्रो स्टेशन

सफदरजंग मकबरे के लिए सबसे निकटतम मेट्रो स्टेशन येलो लाइन पर स्थित जोर बाग है। इस स्टेशन से मकबरा लगभग चार सौ मीटर की दूरी पर है। मेट्रो स्टेशन से मकबरे तक जाने के लिए आप या तो बैटरी रिक्शा किराये पर ले सकते हैं या फिर मकबरे तक आराम से पैदल यात्रा भी कर सकते हैं।

मकबरे के मुख्य द्वार पर पहुँच कर लगा जैसे हम किसी राजस्थानी महल के सामने विराजमान हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि मक़बरा बेहद सुन्दर लग रहा था। बिलकुल ऐसे कि बाहर से देखकर कोई भी अंदर खिंचा चला जाए। रुख किया टिकटघर की तरफ 25 रुपये के मामूली दाम का टिकट कटाया और चल पड़े दूर से दिख रहे खूबसूरत से मकबरे की तरफ।
मुख्य द्वार (जो एक समय पर मदरसा हुआ करता था) से निकल ही रहे थे कि आवाज़ आई- रुकिए! एंट्री तो कर दीजिए। आवाज़ चौकीदार साहब की थी। एंट्री रजिस्टर देखा तो आश्चर्य से आँखें बड़ी हो गई। केवल 20 लोगों की एंट्री। परिसर में ऐसे तो दूर-दूर तक कोई नहीं दिखा पर थोड़ा आगे चलते ही कुछ प्रेमी परिंदे दिखने लगे तब कुछ राहत मिली। सुनसान और एकांत सा देखकर एक पल थोड़ी घबराहट लाज़िमी है लेकिन थोड़ा आगे बढ़ने पर कुछ ही पलों में यह घबराहट उत्साह में बदल जाती है।(Safdarjung Tomb)

सफदरजंग का मकबरा

सामने सफदरजंग का मकबरा था और उसके आगे बड़ा-सा फव्वारा जो मकबरे की सुंदरता में स्वर्ग-सा तेज प्रदान कर रहा था। फव्वारे के जल में मकबरे का अक्स और भी खूबसूरत लग रहा था, भला कोई कैसे इसकी तस्वीर अपने कैमरे में कैद किए बिना रह सकता था। मकबरे की स्थापत्य शैली बहुत सहज पर शोभनीय लगी। चार बाग शैली इसे और भी आकर्षक बनाती है। कुतुब मीनार, लाल किला के अपने सफर में हम आपको चार बाग शैली के बारे में बता ही चुके हैं।

मुगल कालीन इमारतों में ये शैली बहुत प्रसिद्ध रही है। परिसर में बीचों-बीच सफदरजंग मकबरा है और मकबरे के तीन तरफ एक जैसे दिखने वाले तीन अलग-अलग महल हैं- जंगली महल, बादशाह पसन्द और मोती महल। तीनों महल उत्तर मुगलकालीन वास्तुशैली में बने हैं। मेहराबयुक्त मण्डप जैसे सफेद महल परिसर की सुंदरता बढ़ाते हैं।

अब मकबरे के अंदर पहुंचने की जल्दी थी। एक खास बात ये थी बाहर से देखने पर मकबरा चारों तरफ से एक जैसा ही दिखता था। चारों ओर एक ही शैली में फ़व्वारे बने हैं एक पल को ये मकबरा हुमायूं के मकबरे जैसा ही दिखता है। मकबरे के अंदर की खूबसूरती का क्या ही बखान करें। इसे देखना भर ही इसका जवाब है।

चारों ओर से सूर्य की किरणें छनकर मकबरे को रोशन करती हैं। मकबरे के बीचों-बीच सफदरजंग की मजार सूर्य की किरणों से चमकती नजर आती है। मकबरे की पहली मंजिल से परिसर में बने तीनों महल और परिसर की मस्जिद भी साफ नजर आती है। यहाँ आकर एक बात जो साफ़ नज़र आयी वो ये कि भले ही यह मकबरा ताज या हुमायूँ के मकबरे की तरह भव्य और आलीशान  न हो लेकिन इसकी सादगी और बनावट मन को खूब भाती है, वाकई में ऐसा नजारा देखना जन्नत से कम नहीं। न जाने क्यों दुनिया इतनी हसीन और खूबसूरत जगह से वाकिफ़ नहीं है, ये किसी बदनसीबी से कम नहीं।

 एक प्रधानमंत्री के नाम पर बना है यह मकबरा

अक्सर नाम को लेकर यह भ्रम हो ही जाता है कि सफरदजंग कोई बादशाह था, क्योंकि देश भर में अधिकतर मकबरें तो राजा या किसी बादशाह के ही बने हुए हैं। लेकिन सफदरजंग मकबरे के बारें में यह सोचना गलत है। दरअसल, वह मुगल बादशाह मुहम्मद शाह का प्रधानमंत्री था। 1753-54 में नवाब शुजाउद्दीला ने अपने पिता मिर्जा मुकीम अबुल मंसूर खान जिनकी उपाधि सफदरजंग थी, की स्मृति में सफदरजंग मकबरे का निर्माण करवाया था। सफदरजंग मुगल बादशाह मुहम्मद शाह के शासन काल में अवध के सूबेदार और प्रधानमंत्री रहे।

लाल बलुआ पत्थर से बना भव्य मकबरा वाकई सुंदरता की मिसाल है। मकबरे के गार्ड साहब से बात करने पर इसके अलग-अलग महलों की जानकारी हुई। परिसर की पूरी जानकारी उन्होंने एक गाइड की भांति मुझे दी। ऐसे किसी स्मारक स्थल पर लम्बे समय तक रहते-रहते कोई भी कर्मचारी एक समय के बाद गाइड हो ही जाता है। बातचीत में गार्ड साहब ने ये भी कहा- ‘ये जगह बहुत खूबसूरत है पर लोग कम ही आते हैं। आए दिन लोग इसके ऊपर वीडियो बनाने आते हैं ताकि लोग इस जगह को जान सके। जबसे इसका जीर्णोद्धार हुआ है तबसे पहले से कुछ ज्यादा लोग यहाँ आने भी लगे हैं। बाकी हमारा अनुभव शानदार रहा। और हम वहां से यह सोचकर विदा हुए कि जल्द ही सर्दियों में इस मकबरे का दोबारा दीदार हो। यही सुझाव है कि दिल्ली आए तो एक बार सफदरजंग का मकबरा जरूर घूमें और दिल्ली के ही हैं तो एक बार इस खूबसूरती पर भी अपनी निगाहें अवश्य डालें।

क्यों देखें सफदरजंग मकबरा ? Five reasons to visit this place-

1. मेट्रो स्टेशन से बिलकुल पास है आप आसानी से यहाँ आ सकते हैं।
2. जबसे इस मकबरे का जीर्णोद्धार हुआ है तबसे यह और भी सुन्दर दिखाई देता है।
3. पहला मकबरा है जो किसी शाही बादशाह या राजा का नहीं है बल्कि किसी बादशाह के प्रधानमंत्री का है।बहुत बड़ा और आलीशान नहीं है लेकिन इसकी बनावट दिल को खूब भाती है। इसकी सादगी रिझाने वाली है। 
4. अन्य मुग़लकालीन इमारतों की तरह यहाँ भी प्रसिद्ध चार बाग शैली का प्रयोग किया गया है।
5 . यहाँ पर्यटकों की बहुत अधिक भीड़ नहीं होती। क्वालिटी टाइम बिताने के लिए बेहद माकूल जगह।

 

Research by Nikki Rai

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