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सिर्फ कत्थक ही नहीं और भी कई प्रकार के नृत्य कलाओं का उद्गम स्थल है उत्तर प्रदेश

कथक भारतीय शास्त्रीय नृत्यों में से एक है, जो मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ और वाराणसी क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। यह नृत्य अपनी गहरी गाहक के साथ कहानी का प्रस्तुतिकरण करता है और इसमें ताल, तालिका, भाव, अभिनय, और तकनीकी पहलुओं का मिश्रण होता है। कथक का इतिहास बहुत पुराना है और इसे मुग़ल शासकों के दरबारों में विकसित किया गया था। इसका नाम “कथा” (कहानी) और “कथा वाचन” (कहानी का पाठ) से आया है, क्योंकि यह नृत्य कहानी का प्रस्तुतिकरण करता है।

कथक के विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

गहरा भावनात्मक संवाद: कथक में भाव का महत्वपूर्ण स्थान है। नृत्यांग (दिल, हृदय) के माध्यम से नायक-नायिका के भावों का प्रस्तुतिकरण किया जाता है।

ताल, तालिका, और लय: कथक में ताल, तालिका (बोल) और लय की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ये सभी तत्व एक सही तरीके से प्रदर्शित किए जाते हैं और उन्हें सही समय पर और सही ढंग से उपयोग किया जाता है।

चौक, तारीक, अमाद, अवर्तन: कथक के लिए चार प्रमुख नृत्यांग होते हैं – चौक, तारीक, अमाद, और अवर्तन। इन्हें प्रकट करने के लिए विभिन्न तकनीकी चालें और पद्धतियाँ होती हैं।

अभिनय: कथक में अभिनय की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। नृत्य के माध्यम से भाव, भावनाएँ, और कहानी का प्रस्तुतिकरण किया जाता है।

तकनीकी पहलू: कथक में तकनीकी पहलू का महत्वपूर्ण स्थान है। यह नृत्य की गतिशीलता, तरलता, और समता को संरक्षित करता है।

    कथक एक बहुत ही सुंदर, गहरा, और उत्तेजक नृत्य है जो भारतीय सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह विभिन्न सांस्कृतिक उत्सवों, धार्मिक पाठ्यक्रमों, और समारोहों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कथक नृत्य कई सामाजिक और राजनीतिक संदेशों को बताता है। इसके माध्यम से जाति, धर्म, और समाज के महत्वपूर्ण मुद्दे उजागर किए जाते हैं। कथक नृत्य को आधुनिक संगीत, चित्रकला, और टेक्नोलॉजी के साथ मिलाकर नवीनता और उत्थान में मदद मिलती है, जिससे यह आधुनिक युग में भी आधिकारिक रूप से महत्वपूर्ण रहता है। कथक नृत्य न केवल एक कला है, बल्कि एक धार्मिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक अनुभव का सदुपयोग करने का एक माध्यम भी है। इसका महत्व उसकी गंभीरता और उदारता में निहित है, जो भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर का हिस्सा बनाता है।

    रासलीला एक प्रसिद्ध पारंपरिक नृत्य शैली है जो भगवान कृष्ण और उनकी प्रिय गोपियों के प्रेम की कथा को दर्शाता है। इस नृत्य के माध्यम से, लोग भगवान कृष्ण की लीलाओं को याद करते हैं और उनके प्रेम के रस का आनंद लेते हैं।

    रासलीला के बारे में विस्तार से जानकारी:

    कथा: रासलीला का मुख्य विषय भगवान कृष्ण की ब्रज की गोपियों के साथ रास लीला है। इसमें भगवान कृष्ण गोपियों के साथ गोपिका वस्त्राहरण, माखन चोरी, गोपियों के साथ गोपीका हरण आदि के लीलाओं का नृत्य किया जाता है।

    अभिनय: रासलीला में अभिनय की बड़ी महत्वपूर्णता होती है। नृत्यांगों के माध्यम से कथा के विभिन्न पलों का अभिनय किया जाता है।

    रस: यह नृत्य रस के महत्व को प्रकट करता है। गोपियों के प्रेम और भगवान कृष्ण के साथ उनकी भावनाओं को प्रस्तुत करने के माध्यम से, इस नृत्य में भक्ति और प्रेम का अभिव्यक्ति किया जाता है।

    संगीत: रासलीला के नृत्य के साथ-साथ संगीत भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। श्रीकृष्ण की लीलाओं को संगीत के माध्यम से व्यक्त किया जाता है।

    परंपरा: रासलीला का अंदाज़ और परंपरा भारतीय सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह हर्षोत्सवों और विशेष अवसरों पर खास रूप से प्रदर्शित किया जाता है।

      रासलीला एक सुंदर और प्रसिद्ध नृत्य शैली है जो भारतीय संस्कृति के अनमोल भाग को प्रस्तुत करता है। रासलीला नृत्य भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का महत्वपूर्ण प्रस्तुतिकरण है और इसका मुख्य उद्देश्य धार्मिक भावनाओं को संबोधित करना है। यह हिन्दू धर्म में भक्ति और प्रेम का प्रतीक है। रासलीला नृत्य कलात्मक रूप से भी महत्वपूर्ण है, जो नृत्य कला के उदात्ततम रूपों में से एक है। इसमें गायन, नृत्य, और अभिनय का सहयोग होता है और एक साहित्यिक कहानी का अद्वितीय रूपांतरण किया जाता है। रासलीला नृत्य के द्वारा समाज में एकता, सहयोग और सामूहिक भावनाओं को प्रोत्साहित किया जाता है। इसका प्रयोग सामाजिक समूहों के साथ बोंडिंग के लिए भी किया जाता है। रासलीला नृत्य भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और इसका महत्व विभिन्न आयामों में है। यह प्रक्रिया महाभारत और भागवत पुराण की अद्वितीय कहानी “कृष्ण लीला” से प्रेरित है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न लीलाओं का वर्णन किया गया है।

      ठुमरी एक उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत की गायन प्रणाली है, जो अधिकतर उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र के साथ जुड़ी हुई है। इसे अवधी भाषा में गाया जाता है और इसमें प्रेम, विरह, लोभ, और भक्ति जैसे विविध भावों का अभिव्यक्ति किया जाता है।

      ठुमरी के विशेषताएँ:

      गायन शैली: ठुमरी का गायन संगीत की लयबद्धता और भावपूर्णता को ध्यान में रखता है। इसमें आवाज की मधुरता और अभिनय की विशेषता होती है।

      भावप्रद गान: ठुमरी गाने में भावप्रदता को महत्व दिया जाता है। गायक अपनी आवाज़ के माध्यम से विविध भावों को प्रकट करता है, जो सुनने वालों के दिलों को छू लेते हैं।

      गायन तत्व: ठुमरी में विभिन्न संगीत तत्वों का समाहार होता है, जैसे कि ताल, लय, स्वर, और राग। गायन के माध्यम से भावनाओं का संवेदनशील अभिव्यक्ति किया जाता है।

      कहानी की भावना: ठुमरी गानों में कहानी की भावना को बहुत महत्व दिया जाता है। गायक अपनी आवाज़ के माध्यम से कहानी के प्रमुख अंशों को दर्शाता है और सुनने वालों को भावनाओं में ले जाता है।

      संगीतीय सामग्री: ठुमरी में संगीतीय सामग्री के रूप में ताल, ताल, मेलोडी, और बोलों का प्रयोग होता है, जिससे गायन का संवेदनशीलता बढ़ती है।

        ठुमरी एक सुंदर और भावनात्मक गायन प्रणाली है जो उत्तर भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके माध्यम से, लोग भावनाओं को व्यक्त करते हैं और संगीत के साथ भावनाओं को साझा करते हैं। यह नृत्य गंगा-यमुना की सांस्कृतिक संख्या और भावनाओं का प्रतिनिधित्व करता है और उत्तर भारतीय नृत्य की एक महत्वपूर्ण शाखा है। ठुमरी नृत्य एक सार्वजनिक आयोजन होता है जो लोगों को विभिन्न सांस्कृतिक अनुभवों के लिए एक साथ लाता है और कला के प्रशंसकों के बीच संचार को बढ़ावा देता है। ठुमरी नृत्य भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसका संरक्षण और प्रसारण किया जाता है। यह ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखने में मदद करता है। ठुमरी नृत्य का महत्व उसकी रमणीयता, भावपूर्णता, और संगीतीयता में है जो लोगों को आकर्षित करता है और उन्हें संगीत और नृत्य के रस का आनंद दिलाता है।

        चरकुला नृत्य उत्तर प्रदेश के ब्रज क्षेत्र का प्रमुख नृत्य है, जो ब्रज के गांवों में खासकर प्रदर्शित किया जाता है। यह नृत्य प्रस्तुतिकरण का एक अनूठा और रंगीन तरीका है, जिसमें एक बड़े आकर्षक लकड़ी का पात्र (चरकुला) सिर पर बालंस करते हुए विभिन्न गतिमय नृत्य किया जाता है।

        चरकुला नृत्य के विशेषताएँ:

        चरकुला प्रदर्शन: चरकुला नृत्य का मुख्य अंग चरकुला है, जो एक बड़े लकड़ी के पात्र को सिर पर बालंस करते हुए नृत्य किया जाता है। इसमें नृत्यारंगों का अभ्यास और स्थैतिक नृत्य शामिल होता है।

        गीत और संगीत: चरकुला नृत्य के दौरान, चरकुला नृत्यकार और संगीतकार द्वारा प्रस्तुत गाने और संगीत का महत्वपूर्ण भूमिका होता है। ये गीत और संगीत अधिकतर भगवान कृष्ण की लीलाओं और गोपियों के प्रेम को स्तुति करते हैं।

        रंगबज़ारी: चरकुला नृत्य के दौरान, अक्सर गांव के लोगों के सामने नृत्य किया जाता है, जिससे उन्हें आनंद का अनुभव होता है। इसमें रंगबज़ारी (रंगीन वस्त्रों का प्रयोग) का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है।

        धारावाहिक नृत्य: चरकुला नृत्य अक्सर एक धारावाहिक नृत्य के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें भगवान कृष्ण की लीलाओं को दर्शाने के लिए विभिन्न दृश्यों का प्रस्तुतिकरण किया जाता है।

        समृद्ध भारतीय सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा: चरकुला नृत्य उत्तर प्रदेश की समृद्ध भारतीय सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह नृत्य भगवान कृष्ण के जन्मभूमि ब्रज के प्रसिद्धता को और अधिक बढ़ाता है।

        चरकुला नृत्य एक अनूठा और रंगीन नृत्य है जो भारतीय सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है और ब्रज की रिच फोल्कलोर और परंपराओं को प्रस्तुत करता है। चरकुला नृत्य में शामिल होने से कलाकारों का आत्मविश्वास और उत्साह बढ़ता है। यह उन्हें स्वांग, अभिनय और नृत्य कौशल में सुधार का अवसर प्रदान करता है। चरकुला नृत्य का आयोजन बड़े समूहों में किया जाता है, जिससे समूह के सदस्य एक-दूसरे के साथ अच्छे रिश्तों को बढ़ावा देते हैं। चरकुला नृत्य के रंगीन और उत्साहजनक प्रस्तुतिकरण से लोगों को मनोरंजन का अद्वितीय अनुभव मिलता है। यह लोगों को रंगों, संगीत और नृत्य का आनंद लेने का अवसर प्रदान करता है। चरकुला नृत्य उत्तर प्रदेश और हरियाणा के लोक नृत्य का एक प्रमुख अंग है, जो मुख्य रूप से ब्रजभूमि के क्षेत्र में प्रस्तुत किया जाता है। यह नृत्य अत्यधिक रंगीन, उत्साहजनक और परंपरागत महसूस कराता है, जो लोगों को एकत्रित करता है और उन्हें मनोरंजन का अद्वितीय अनुभव प्रदान करता है।

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          अद्भुत और रोमांचक है हिमाचल की नृत्यों की संस्कृति

          हिमाचल के प्रमुख नृत्य:

          जाची (Jachi Dance of Himachal Pradesh)
          जाची नृत्य हिमाचल प्रदेश के कई क्षेत्रों में प्रसिद्ध (Famous) एक लोकनृत्य है, जो लोगों के बीच आदिवासी संस्कृति का प्रतिनिधित्व (represents) करता है। यह नृत्य विभिन्न समाजिक और धार्मिक अवसरों पर प्रदर्शित किया जाता है और इसमें प्राचीन रूप, गायन, और नृत्य का मिश्रण होता है। जाची नृत्य को विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश के कुल्लू, मंडी, और शिमला जिलों में प्रस्तुत किया जाता है। हिमाचल प्रदेश में विवाह समारोहों में जाची नृत्य का प्रदर्शन एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। इसमें लोग आदिवासी परंपराओं को महसूस करते हैं और इसे अपनाते हैं। हर्षोत्सवों और त्योहारों में भी जाची नृत्य का प्रदर्शन किया जाता है। इसमें स्थानीय समुदाय (local community ) का सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का संदेश होता है। जाची नृत्य में अपनी अद्वितीय भावनाओं को व्यक्त करने की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कलाकारों की आंखों में जीवंतता और उत्साह देखने को मिलता है, जो नृत्य को और भी आकर्षक बनाता है। हिमाचल प्रदेश में विभिन्न धार्मिक उत्सवों में भी जाची नृत्य का महत्वपूर्ण स्थान होता है।

          गढ़वाली (Garhwali Dance of Himachal Pradesh)
          गढ़वाली नृत्य हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में प्रचलित है, जैसे कि कुल्लू और गढ़वाल क्षेत्र। इस नृत्य में गीत, संगीत, और नृत्य का समाहार होता है, जो स्थानीय समुदाय की भावनाओं और सांस्कृतिक पहचान को प्रकट करता है। गढ़वाली नृत्य का एक प्रमुख विशेषता उसके रंगीन और समृद्ध परिधान हैं। परिधानों का अनुसरण विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक आयोजनों में किया जाता है और इसे उत्सवी और रंगीन बनाने के लिए बड़ी धूमधाम के साथ विशेष ध्यान दिया जाता है। गढ़वाली नृत्य के साथ गायन और संगीत का अभिन्न हिस्सा है। स्थानीय लोगों द्वारा गाए जाने वाले गीत और लोकसंगीत के साथ, नृत्य कलाकारों को संगीत के साथ नृत्य करने का सौभाग्य मिलता है। गढ़वाली नृत्य में कलाकारों की भूमिका और व्यक्तित्व का बहुत महत्व है। नृत्य के माध्यम से, कलाकार अपने भावनाओं, भावों, और आदिवासी संस्कृति को समाहित करते हैं। गढ़वाली नृत्य में विभिन्न गतिविधियों और आवाजों का उपयोग किया जाता है, जो इसे अत्यंत विविध (Diverse) बनाता है। यह नृत्य विभिन्न प्रकार के भावों को उत्कृष्टता से प्रस्तुत करता है। गढ़वाली नृत्य का प्रदर्शन विवाह, त्योहार, समाजिक उत्सव, और अन्य सामाजिक अवसरों पर किया जाता है। इसमें समाज की भावनाओं का प्रतिबिम्ब होता है और सांस्कृतिक (cultural) एकता और समरसता (Unity) को बढ़ावा दिया जाता है।

          छाम (Chham Dance of Himachal Pradesh)
          छाम हिमाचली लोकनृत्यों की अद्वितीय पहचान है। इसमें लोग विविध रंगों और परंपरागत वस्त्रों में सजे होते हैं। यह नृत्य अक्सर धर्मिक और सामाजिक अवसरों पर प्रदर्शित किया जाता है और इसमें देवी-देवताओं के रूप में विभिन्न चित्रित चेहरे भी होते हैं। छाम के नृत्य में गीत, संगीत और नृत्य का संगम होता है जो इसे अद्वितीय बनाता है। छाम नृत्य के परिधान में विभिन्न रंगों का प्रयोग किया जाता है जो नृत्य को और भी आकर्षक बनाता है। नृत्य कलाकार आदिवासी परंपरागत वस्त्र पहनते हैं जो इस नृत्य की विशेषता हैं।
          छाम नृत्य समुदाय के विभिन्न सामाजिक और धार्मिक अवसरों पर प्रदर्शित किया जाता है, जैसे कि धार्मिक उत्सव, विवाह, और अन्य समाजिक समारोह। यह समुदाय की सांस्कृतिक पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा है और उनकी आत्मविश्वास को मजबूत करता है। छाम नृत्य हिमाचल प्रदेश की विशेष सांस्कृतिक धरोहर (Cultural heritage) का प्रतिनिधित्व करता है और इसके माध्यम से लोग अपनी आदिवासी सांस्कृतिक पहचान को गर्व से महसूस करते हैं।

          राखड़ौंडा (Rakhdaunda Dance of Himachal Pradesh)

          यह नृत्य भारतीय सेना के सैनिकों की बलिदान को अभिव्यक्त करता है और इसे विशेष पर्वतीय अवसरों पर प्रस्तुत किया जाता है। राखड़ौंडा एक पारंपरिक लोक नृत्य है जो हिमाचल के वीर सैनिकों की शौर्य की कथाओं को याद करता है। इसमें सैनिकों के युद्ध की कथाओं को दर्शाते हुए गायन और नृत्य होता है। यह नृत्य प्राय: हिमाचल प्रदेश के स्वांगीय नृत्य के रूप में जाना जाता है, जो किसी खुशी के अवसर पर नृत्य किया जाता है। राखड़ौंडा नृत्य समाज में एकता, सामूहिकता, और सम्मान के संदेश को प्रोत्साहित करता है। यह नृत्य समाज के सदस्यों को साथ में लाता है और उन्हें एक संगठित और खुशहाल समुदाय के भागीदार बनाता है। राखड़ौंडा नृत्य हिमाचल प्रदेश की गहरी सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा है, जो समुदाय के आत्मविश्वास और सामूहिक संबंधों को मजबूत करता है। इसके माध्यम से लोगों के बीच आनंद, उत्साह, और सामूहिक खुशियों का माहौल बनाए रखा जाता है। राखड़ौंडा नृत्य हिमाचल प्रदेश के अलावा पंजाब, उत्तराखंड और हरियाणा के कुछ क्षेत्रों में भी प्रचलित है।

          बिज्जू (Bijju Dance of Himachal Pradesh)
          हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में लोकनृत्य (Folk dance) ‘बिज्जू’ का प्रचलन है। इस नृत्य में लोग अपने लोकगीतों के साथ गतिविधि करते हैं और अपनी संगीतिक परंपरा को प्रस्तुत करते हैं। बिज्जू का प्रदर्शन विवाह, त्योहार, या किसी अन्य सामाजिक अवसर पर किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य समाज में खुशहाली और समृद्धि का संदेश पहुँचाना होता है। यह नृत्य आदिवासी समुदायों की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा है और इसके माध्यम से वे अपनी प्राचीनतम ट्रेडीशन्स (Traditions) को संजीवनी देते हैं। बिज्जू नृत्य का उद्भव हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में हुआ, जैसे कि चम्बा, कुल्लू, और किन्नौर। यह नृत्य विभिन्न प्राचीन कथाओं, लोक गाथाओं और धार्मिक अनुष्ठानों से प्रेरित होता है। बिज्जू नृत्य के परिधान आमतौर पर स्थानीय रंगीन और पारंपरिक वस्त्र होते हैं। ये परिधान कलाकारों को उत्साहित करते हैं और उन्हें अपने आदिवासी आभूषणों के साथ संगीत और नृत्य का आनंद लेने में मदद करते हैं। बिज्जू नृत्य हिमाचल प्रदेश की गहरी सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसके माध्यम से लोग अपनी प्राचीन और विशेष सांस्कृतिक भूमिका को बनाए रखते हैं। इसके द्वारा समुदाय की सामूहिकता और एकता को समझाया जाता है और लोग अपनी आदिवासी विरासत को मजबूत करते हैं।

          जागर (Jagar Dance of Himachal Pradesh)

          यह एक अन्य प्रसिद्ध नृत्य है जो हिमाचल में अत्यधिक लोकप्रिय है। इसमें ध्वनि, नृत्य, और नृत्यार्चना का एक अद्वितीय संगम होता है। जागर हिमाचल की जनपद साहित्य की एक प्रमुख धारा है, जो अपने ध्वनियों, नृत्य, और नृत्यार्चना के माध्यम से जाति, जाति, और सामाजिक समूहों के बीच एकता का सन्देश प्रस्तुत करता है। हिमाचल प्रदेश का जागर नृत्य एक प्रसिद्ध लोकनृत्य (Folk Dance) है जो सामाजिक और धार्मिक अवसरों पर प्रदर्शित किया जाता है। यह नृत्य प्राय: हिमाचल प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्रों में प्रस्तुत किया जाता है और लोगों को एक साथ मिलकर गाने और नृत्य का आनंद लेने का अवसर देता है। यह नृत्य अपने विशेष और उत्साही अभिनय (Exciting acting) के लिए प्रसिद्ध है। जागर नृत्य समाज में भक्ति, श्रद्धा, और सामूहिक ध्यान को प्रोत्साहित करता है। इसके माध्यम से लोग अपनी देवी-देवताओं की प्रति आदर और समर्पण का अभिवादन करते हैं।
          जागर नृत्य हिमाचल प्रदेश की गहरी सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसके माध्यम से लोग अपने धार्मिक और सामाजिक विचारों को दिखाते हैं। इसके माध्यम से लोग अपनी परंपरागत संदेशों को समझते हैं और अपने सामूहिक भक्ति का अभिव्यक्ति करते हैं।

          एक प्रथा ऐसी भी- जहाँ नवविवाहिता एक हाथ से मछली काटकर करती है गृहस्थ जीवन की शुरुआत

          आप यह तो जानते होंगे कि भारत के हर भाग में अलग-अलग तरह की संस्कृति (culture) बसती हैे। ऐसे में हर जगह अलग-अलग तरह के रीति रिवाजों (rituals) और परंपराओं का चलन है। कहीं जनजातियों(tribes) की संस्कृति का बसेरा है तो कहीं शहरी संस्कृति(modern culture) का प्रभाव। अलग अलग कल्चर होने के कारण अलग-अलग जगहों की परंपराओं और प्रथाओं में जमीन आसमान का फर्क होता है। आज इस ब्लॉग में हम आपको बताने वाले हैं एक ऐसे अजीबोगरीब प्रथा के बारे में जिसके बारे में आप शायद हीं जानते होंगे। यूं तो बिहार के मिथिलांचल का नाम भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। क्योंकि मधुबनी पेंटिंग (Madhubani Painting) को ग्लोबल (Globally) लेवल पर रिकॉग्नाइज किया गया है।

          बिहार के मिथिलांचल के प्रसिद्धि की अगर बात करें तो, हिंदू धर्म में इस जगह की खास मान्यता है। क्योंकि श्री राम की पत्नी माता सीता का जन्म मिथिलांचल के ही जनकपुर में हुआ था। जनकपुर इंडो नेपाल बॉर्डर पर हीं स्थित है। जनकपुर जाने के लिए आपको सबसे पहले बिहार के मधुबनी जिला पहुंचना पड़ेगा।

          लेकिन क्या आपको यहां के इस प्रथा के बारे में पता है? मधुबनी या यूं कहें कि मिथिलांचल में ऐसी परंपरा मानी जाती है जो शायद ही कहीं और मानी जाती हो!

          जी हां, मिथिला में नवविवाहिता दुल्हन के अपने ससुराल आने पर, उनसे एक रस्म करवाई जाती है। अब आप कहेंगे कि इसमें कौन सी बड़ी बात है? नई दुल्हन के स्वागत के बाद हर जगह कई सारी रस्में निभाई जाती हैं। लेकिन इसमें बड़ी बात है। क्योंकि यह रस्म मामूली रस्म नहीं होती है। यह होती है मछली (Fish Cutting) को एक हाथ से कटवाने की रीति! जानकर अजीब लगा ना? अजीब लगना वाजिब भी है। लेकिन यह सच है, मिथिलांचल में जब नई दुल्हन मायके से ससुराल जाती है तो, उसके बाद उन्हें 4 दिनों तक कई तरह के रस्मों रिवाजों को पूरा करना होता है और द्विरांगमन (विदाई) के चौथे दिन, यानी चतुर्थी को दुल्हन से एक हाथ से मछली काटने के लिए कहा जाता है।

          वैसे तो इस प्रथा के बारे में कई लोगों की अलग-अलग राय हैं, लेकिन कुल मिलाकर देखा जाए तो यह नई नवेली दुल्हन के लिए एक परीक्षा (test) के तरह होता है। इस परीक्षा के जरिए जाना जाता है कि क्या दुल्हन को रसोई और घर गृहस्ती संभालना आता है? एक हाथ से मछली काटना अपने आप में हीं एक चैलेंज (challange) होता है। जिसमें दुल्हन इस विधि को पूरा करके दिखाती है कि, वह आसानी से रसोई संभाल सकती है।

          बताया जाता है कि यह परंपरा मिथिलांचल में सालों पहले से चली आ रही है। वैसे आपको यह बता दूँ कि मिथिलांचल की भूमि मछली पालन के लिए शुभ मानी जाती है और बिहार के सहरसा जिला में एक मत्स्यगंधा टेंपल भी है। जहां मत्स्य कन्याओं की पूजा की जाती है।

          बिहार के वर्ल्ड फेमस फूड-जिनको खाकर पेट भर जाता है पर नीयत नहीं

          भारत एक ऐसा देश है जहां के हर राज्य में अलग तरह के रहन-सहन और खानपान के लोग रहते हैं। अगर आप भी खाने के शौकीन इंसान हैं साथ ही साथ ट्रैवलिंग(travelling) भी करते रहते हैं, और आपकी रूचि नई जगह के खानपान को एक्सप्लोर(explore) करने में है तो, यह ब्लॉग आपके लिए ही है। इस ब्लॉग में मैं आपको बिहार के कुछ फेमस फूड्स(famous foods) के बारे में बताऊंगी। अगर आप भी कभी बिहार जाएंगे तो इन फूड आइटम्स(food items) को ट्राई कर सकते हैं।

          1. लिट्टी चोखा (Litti Chokha):

          जब भी बात बिहार के खान पान की आती है तो सबसे पहले जो नाम दिमाग में आता है वह है लिट्टी चोखा। यह बिहार का सबसे फेमस फूड है। अगर इस लिट्टी के बनाने की विधि की बात की जाए तो इसे दो तरीके से बनाया जाता है। पहली विधि में लिट्टी को आग पर सेंक कर बनाया जाता है और दूसरी विधि है लिट्टी को तेल में छानकर बनाने की। दोनों ही तरीके से बनाई जाने वाली लिट्टियां, खाने में स्वादिष्ट होतीं हैं। अगर आग में सिंकी हुई लिट्टी के स्वाद की बात करें तो उसके सौंधे से स्वाद के कारण आपको ये दिल मांगे मोर वाली फीलिंग आ जाएगी। वहीं जो लिट्टियां तेल में फ्राई होते हैं, वह खाने में बहुत ज्यादा क्रिस्पी होते हैं। अगर आप लिट्टी को समझना चाहते हैं तो समझ लीजिए की यह बिल्कुल कचौड़ी की तरह होता है। जिनमें सत्तू की फीलिंग की रहती है। वहीं अगर चोखा की बात करें तो यह बैंगन बेसन और टमाटर से बनाया जाता है। यह बिहार के लोगों का पसंदीदा डिश (Favourite dish) है। यह आपको बिहार के किसी भी शहर में किसी दुकान पर आसानी से खाने को मिल जाएगा।

          2. मखाने की खीर(Makhana’s Kheer) :


          बिहार भारत के उन गिने-चुने राज्यों में से एक है, जहां मखाने की खेती जीविका के तौर पर की जाती है। बिहार के दरभंगा जिले के मखाने की पूरी दुनिया भर में डिमांड है। मखाने की खेती होने के कारण, इसके तरह तरह के डिशेज भी बिहार में बनाए जाते हैं। जिसमें से एक है मखाने की खीर! इसका स्वाद इतना लजीज होता है कि, आपका इससे मन हीं नहीं भरेगा। वैसे तो इसे सिंपल तरीके (simple method) से बनाया जाता है। पहले मखाने को भुना जाता है और फिर उसमें दूध डाला जाता है। लेकिन इसके स्वाद (taste) में कोई कमी नहीं होती है। यह मुंह में जाते हीं घुल जाने वाली डिश है। जिसका स्वाद आ कभी नहीं भूल पाएंगे। और मन? मन तो बिल्कुल भी नहीं भरेगा! थोड़ा और वाली फीलिंग आएगी।

          3. मालपुआ(Malpua) :


          वैसे तो मालपुआ पूरे उत्तर भारत में फेमस है, लेकिन बिहार में इस डिश का अलग ही क्रेज है। चाहे कोई त्यौहार (festival) हो या घर में पूजा हो, मालपुआ आपको हर जगह मिल जाएगा। खासकर होली (Holi) के अवसर पर तो मालपुआ बनना हीं है। मानो बिना मालपुए के यहां होली अधूरी मानी जाती है। ऐसा हो भी क्यों ना? यह होता हीं इतना सॉफ्ट और स्वीट है कि, मुंह में जाते हीं घुल जाता है। मालपुए के बैटर में दूध, चीनी, मैदा और केला के साथ-साथ तरह-तरह के नट्स (nuts) मिले रहते हैं। जो इसके स्वाद को और ज्यादा बढ़ा देते हैं। अगली बार अगर आप भी बिहार जाएं, तो मालपुए को ट्राई करना मत भूलना।

          4. सत्तू (Sattu) :

          बिहार के फेमस फूड की बात की जाए तो सत्तू को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। सत्तू को पेय पदार्थ की तरह पिया भी जाता है और खाया भी जाता है। सर्दियों के दिनों में सत्तू को खाया जाता है। वहीं गर्मी के दिनों में सत्तू में नींबू पानी और नमक मिलाकर बड़े चाव से पिया जाता है। और पिया भी क्यों न जाए यह होता हीं इतना हेल्दी और टेस्टी है। जी हां यह एक ऐसा पेय पदार्थ है जो प्रोटीन (protein) से भरपूर है। क्योंकि इसे चने की दाल से बनाया जाता है और यह तो सब जानते हैं की दाल में प्रोटीन पाया जाता है। आपको बिहार में सत्तू से बने सत्तू पराठा (Sattu Paratha) भी खाने को मिल जाएंगे जो आलू पराठा के जैसे ही लजीज होता है।

          5. खाजा (Khaja):

          अगर फास्ट फूड की चर्चा हो और उसमें कुछ मीठा (sweet) ना हो तो चर्चा अधूरी मानी जाती है। अगर आप मिठाई के शौकीन हैं तो बिहार के सिलाव का खाजा आपको जरूर पसंद आएगा। वैसे तो बिहार में हर जगह हीं खाजा मिलते हैं, लेकिन सिलाव की बात ही अलग है। और तो और यहां 54 लेयर्स वाला खाजा मिलता है। इसे बनाने में मैदा दूध का इस्तेमाल किया जाता है और लास्ट में से चाशनी में डुबोकर सर्व किया जाता है। यह परतों वाली मिठाई है जो काफी मीठी होती है। बिहार में कोई भी शुभ काम हो वहां आपको खाजा की उपस्थिति जरूर दिख जाएगी।

          6. ठेकुआ (Thekua):

          आपने बिहार के छठ पूजा (Chhath puja) का नाम तो सुना ही होगा। बिहार का राजकीय पर्व भी है और इस पूजा से जुड़ा हुआ है एक स्पेशल फूड आइटम। लेकिन ऐसा नहीं है कि आप इसे सिर्फ छठ पूजा में ही खा सकते हैं। बिहार में हर तरह के शुभ कामों में ठेकुआ बनाया जाता है। यह चावल के आटे और शक्कर से बना हुआ एक फेमस फूड आइटम है। अगर आप छठ पूजा के अवसर पर बिहार जाएंगे तो आपको हर घर में ठेकुआ खाने को मिल जाएगा। यह खाने में मीठा सा और क्रिस्पी सा होता है। जो खाने के शौकीन लोगों खासकर बच्चों का ध्यान अपनी और आकर्षित करता है।

          7. बगिया (Bagiya) :

          अरे अरे यह बगीचे वाला बगिया नहीं है, यह खाने वाला बगिया है। जी हां मिथिलांचल में आपको बगिया खाने को मिल जाएगा। जैसा कि सब जानते हैं कि मिथिलांचल (Mithilanchal) अपने रिच कल्चरल वाइब्स (rich cultural vibes) के लिए पूरे दुनिया में जाना जाता है। मिथिलांचल के कल्चर इतना रिच होने का एक कारण यहां मिलने वाले कई तरह के अतरंगी फूड आइटम्स भी हैं। इन्हीं फूड आइटम्स में से एक है बगिया। वैसे तो बगिया सिर्फ पूष के महीने यानी दिसंबर से जनवरी में बनाया जाता है। लेकिन इसका स्वाद आप सालों तक नहीं भूल पाएंगे। इसे भी चावल के आटे से बनाया जाता है। जिसके अंदर शक्कर या फिर खोए की फीलिंग रहती है। फिर इसे दूध में डिप किया जाता है और उबाला जाता है। जिसके बाद बनकर तैयार होता है यह फेमस फूड बगिया। जिसे सब बड़े ही चाव से खाते हैं। मीठा खाने के शौकीन नहीं है तो भी आप बगिया खा सकते हैं। क्योंकि मिथिलांचल में आपको हर परेशानी का हल मिल जाता है। जी यहां नमकीन बगिया भी मिलता है। जिसमें दाल की फीलिंग रहती है और इसे पानी में उबाला जाता है।

          8. तिलकुट और खूबी की लाय (Tilkut and khubi ki Lai) :

          जैसा कि आपने महसूस किया होगा उत्तर भारत में मकर संक्रांति का अलग ही क्रेज देखने को मिलता है। उत्तर भारत के हर राज्य में मकर संक्रांति बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है। बस हर राज्य में इस त्यौहार को मनाने का तरीका बदल जाता है कहीं मकरसंक्रांति पर पतंगबाज़ी का रिवाज है, तो कहीं खिचड़ी का! बिहार में भी यह त्यौहार बड़े धूम धाम से मनाया जाता है और इस दिन यहाँ तिलकुट और खूबी की लाय बनाया और खाया जाता है।

          तो अगली बार जब भी आप बिहार आए तो आप इन फूड आइटम्स को ध्यान में जरूर रखें। और एक बार इन्हें जरूर टेस्ट करें। यकीन मानिए आपको यह फूड आइटम जरूर पसंद आएंगे।

          These Places are Best for Solo trip for Women

          • सोलो ट्रिप का मतलब होता है कुछ दिन के लिए अपने काम से दूर और अपनों से दूर होकर खुद के साथ समय बिताना और अगर सोलो ट्रिप किसी महिला का हो तो यह और भी ज्यादा स्पेशल हो जाता है। क्योंकि यह उन्हें आजादी का एहसास दिलाता है कि वह भी अकेले कहीं जा सकती हैं और बेफिक्र होकर घूम सकती हैं। यहीं असल खुशी (happiness) है। अब अगर महिलाओं को कहीं जाने की इच्छा होती है तो, उन्हें किसी से पूछने की और किसी को साथ ले जाने की जरूरत नहीं होती। वह खुद ही अपना ट्रिप प्लान भी करती हैं और कहीं घूमने भी जाती हैं। अगर आप भी ऐसे ही अकेले कहीं घूमने का प्लानिंग कर रही हैं तो आइए हम आपको इस ब्लॉग में बताते हैं आपके लिए उन सबसे बेस्ट जगहों के बारे में, जहां आप जाकर ना सिर्फ अपनी आजादी (independence) को महसूस कर सकती हैं, बल्कि साथ ही साथ आपको सामान्य तौर पर किसी भी तरह का खतरा भी नहीं होगा।
          1. GOA :

          महिलाओं के लिए फ्रीडम महसूस करने के लिए सबसे बेस्ट जगह है, गोवा। जब आप गोवा के किसी बीच पर खड़े होकर दूर फैले समुंदर को देखेंगे और अपने चेहरे पर आ रही हवा की झोंकों को महसूस करेंगी तो आपको अपने आप ही हर बंधन से आजादी महसूस होगी। हर तरह के तनाव और थकान पल भर में गायब हो जाएंगे।  गोवा है ही ऐसी जगह, जहां आकर समुद्र की लहरों के साथ खुद को महसूस किया जा सकता है। महिलाओं के सोलो ट्रिप के लिए तो यह जगह सबसे बेस्ट है। ऐसा मैं नहीं कह रही, यह तो पिछले कुछ सालों के रिकॉर्ड कह रहे हैं। पिछले कई सालों में महिलाओं का गोवा की ओर रुझान काफी बढ़ा है।

          आइए जानते हैं गोवा की कुछ मशहूर घूमने लायक जगहों के बारे में (places to visit in Goa) :-

          कलंगुट बीच :- अगर गोवा के बीचों के बारे में बात की जाए तो सबसे पहले आता है – कलंगुट बीच। जिसे समुद्रों की रानी के नाम से भी जाना जाता है। यह गोवा के सबसे खूबसूरत बीचों में से एक है। लेकिन यह ध्यान देने वाली बात यह होती है कि यहां समुद्र की लहरें बहुत ही तेज होती हैं। गोवा का यह कलंगुट बीच लगभग 4 मील तक फैला हुआ है।

          बागा बीच :- कलंगुट बीच के बगल में बागा बीच जहां कलंगुट बीच की सीमा खत्म होती है, वहां से बागा बीच की सीमा शुरू होती है। बागा बीच पर आप सुबह से शाम तक इंजॉय कर सकती हैं। यहां जैसे ही सनसेट होता है, चारों ओर पार्टी का माहौल बन जाता है। अगर आपको बीच पार्टी पसंद है तो आपके लिए सबसे बेस्ट डेस्टिनेशन हो सकता है।

          बागा बीच और कलंगुट बीच के अलावा गोवा में बटरफ्लाई बीच और पालोलम बीच भी है। यह भी पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं। बीजों के अलावा इस शहर में दूधसागर वॉटरफॉल, बॉम जीसस बेसिलिका, चोराव द्वीप, अगवाड़ा किला, सैटरडे नाइट मार्केट, मंगेशी मंदिर, नेवेल एवियशन म्यूजियम,  टीटू नाइटक्लब, मार्टिन कॉर्नर आदि भी हैं जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

          गोवा कैसे जाएं? (How to visit Goa) :-

          गोवा आने के लिए आप गोवा एयरपोर्ट का रुख कर सकते हैं। या फिर आप सड़क मार्ग से भी गोवा आसानी से जा सकते हैं।  अगर बात किया जाए दिल्ली से गोवा के फ्लाइट के खर्च की तो आपको कम से कम करीब 5000 तक का खर्च आएगा। आप ट्रेन से भी गोवा जा सकती हैं। इसके अलावा सड़क मार्ग से भी गोवा जाया जा सकता है।

          1. Shimla :

          अपने आप को नेचुरल रिट्रीट(natural retreat) देने का सबसे बेहतरीन तरीका है पहाड़ों की सैर पर निकल जाना। अब पहाड़ों की बात हो और शिमला का नाम ना आए ऐसा हो नहीं सकता। शोर-शराबे से दूर और प्रकृति के नजदीक स्थित इस शहर की ओर लोगों का काफी रुझान होता है। चारों ओर दिखने वाली बर्फ से ढकी सफेद पहाड़ियां और हरे-भरे देवदार के पेड़ किसी का भी मन मोह लेने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं।

          शिमला में घूमने के बेहतरीन जगह
          (best places to visit Shimla) :

          यह जगह सिर्फ सीनरी(scenery) के लिए नहीं बल्कि शॉपिंग के लिए भी प्रसिद्ध है। शिमला स्थित माल रोड शॉपिंग के लिए एक बेहतरीन जगह है। यहां आपको खान-पान से लेकर पुरानी एंटिक चीजों तक का एक बड़ा कलेक्शन देखने को मिल जाएगा। यहां शिमला के पारंपरिक परिधान भी खरीद सकते हैं।
          शिमला में एक और फेमस जगह है वह जाखू हिल्स। इस जगह पर हनुमान जी का एक बड़ा मंदिर है। साथ हीं एक बहुत बड़ी मूर्ति भी है, जो काफी दूर से हीं दिख जाती है। इस मंदिर की खासियत है यहां आपको सैकड़ों दर्जनों लंगूर और बंदर खेलते हुए मिल जाएंगे। चारों ओर हरियाली से घिरा यह मंदिर उन लंगूरों और बंदरों के लिए घर की तरह है।

          शिमला कैसे आए? (How to reach shimla?) :

          शिमला की दिल्ली से दूरी लगभग 340 किलोमीटर है और यहां आप बाय रोड, ट्रेन और फ्लाइट तीनों ही रास्तों से जा सकते हैं। अगर आप टैक्सी(taxi) से शिमला जाना चाहते हैं तो आपको ₹5500 से ₹6000 तक का खर्च आता है। वहीं अगर आप ट्रेन से शिमला जाते हैं तो ₹700 से ₹800 में आपको टिकट मिल जाएगी। अगर आप फ्लाइट से शिमला जाते हैं तो इकोनामी क्लास के फ्लाइट की टिकट्स ₹2900 से शुरू हो जाते हैं।

          1. Mussoorie

          खूबसूरत पहाड़ियों के बीच से अगर आप सनराइज सनसेट देखना चाहती हैं तो, इसके लिए मसूरी के गन हिल पॉइंट (gun hill point) और लाल टिब्बा पॉइंट(lal tibba point) से बेहतर कोई जगह नहीं हो सकता। लाल टिब्बा पॉइंट पर अपनों के साथ बैठकर सन सेट को देखना, अपने आप में ही एक अविस्मरणीय दृश्य होता है। वैसे तो यह जगह कपल्स के लिए बेस्ट माना जाता है लेकिन यहां सोलो ट्रिप के लिए भी जाया जा सकता है। मसूरी पहाड़ों झरनों और हरियाली के प्राकृतिक सौंदर्य का एक अद्भुत संगम है।

          मसूरी में घूमने की जगह (Best places to visit in Mussoorie) :

          अगर आपको वॉटरफॉल (water fall) में ज्यादा इंटरेस्ट है तो, आप यहां के केंपटी फॉल्स(campty falls) का रुख कर सकते हैं। इस शहर में पहाड़ों के बीच एक ज्वाला जी मंदिर भी है, जो अक्सर पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है।

          मसूरी में आप कई तरह के एडवेंचरस एक्टिविटीज कर सकते हैं। जिनमें कुछ एडवेंचरस एक्टिविटीज की डिटेल नीचे दी गई है।
          स्काईवॉक : यहां आप 120 फुट की ऊंचाई पर स्काईवॉक कर सकते हैं। जिसका खर्च आपको ₹300 पर पर्सन के हिसाब से आएगा। मसूरी में स्काईवॉक करने का समय सुबह 9:00 से श्याम 6:00 तक का होता है।
          रिवर राफ्टिंग : यहां आफ रिवर राफ्टिंग का भी लुफ्त उठा सकते हैं, जो बारकोट से लखामंडल तक का एक ट्रिप होता है। यहां रिवर राफ्टिंग का टाइमिंग सुबह 10:00 से दोपहर 3:00  तक का होता है और इसका प्राइस आपके द्वारा तय की गई दूरी पर डिपेंड करता है।

          रैपलिंग : मसूरी पहाड़ों का शहर है इसलिए आप यहां रैपलिंग भी कर सकते हैं।  जिसका प्राइस आपको ₹1000 तक का आएगा। रैपलिंग करने का समय सुबह 8:00 से दोपहर 2:00 बजे तक का होता है।

          रैपलिंग के अलावा आप यहां रॉक क्लाइंबिंग कैंपिंग ट्रैकिंग आदि भी कर सकते हैं। अगर आप मसूरी को अच्छे से घूमना चाहते हैं तो, आप को कम से कम 3 दिन का समय निकालकर यहां आना होगा।

          मसूरी कैसे आए ? (How to reach mussoorie?) :

          दिल्ली से मसूरी तक की दूरी तकरीबन 274 किलोमीटर है। मसूरी से सबसे नजदीक एयरपोर्ट भुंटर एयरपोर्ट है। न्यू दिल्ली से भुंटर एयरपोर्ट जाने के लिए आपको ₹3500 से फ्लाइट टिकट मिलने स्टार्ट हो जाते हैं। आप वाया रोड और वाया ट्रेन में मसूरी जा सकते हैं। ट्रेन के लिए आपको ₹250 से ₹1500 तक का खर्च आएगा। वहीं बाय रोड टैक्सी से जाने के लिए आपको 4000 से 5000 तक का खर्च आ सकता है।

          1. जैसलमेर (jaisalmer) :

          अगर आपको सोने जैसा रेत (Golden sand) वाला रेगिस्तान (desert), शानदार किले, पुरानी हवेलियां और राजसी ठाट बाट की झलक देखनी हो तो राजस्थान के जैसलमेर से बेहतरीन कोई दूसरा जगह नहीं हो सकता है। जैसलमेर किलों से तो भरा हुआ है हीं, यहां के बाजार में बेहतरीन राजस्थानी ज्वेलरी और राजस्थानी ब्लॉक प्रिंट (Block printing) के कपड़े भी मिल जाते हैं, जो शॉपिंग को पसंद करने वाली महिलाओं का ध्यान अपनी और आकर्षित करते हैं। आज के समय में महिलाओं के लिए जैसलमेर काफी पसंदीदा जगह बनता जा रहा है। अगर आप भी भारतीय संस्कृति को करीब से देखना चाहती हैं तो जैसलमेर आपके लिए एक अच्छा डेस्टिनेशन ऑप्शन हो सकता है।

          जैसलमेर में घूमने लायक जगह :

          गोल्डन फोर्ट (Golden Fort) :

          यह किला दिन के समय में सूरज की रोशनी में बहुत ज्यादा चमकता है। इसलिए इसे सोनार किला के नाम से भी जाना जाता है। यह किला काफी बड़ा है और देखने में बहुत खूबसूरत है। इसे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ रेगिस्तानी किलों में से एक माना जाता है। सुबह के समय जब सूरज की पहली किरण इस पर पड़ती है तो यह किला सुनहरे रंग में चमक उठता है। इस किले को पीले रेत के पत्थरों (yellow sandstone) से जोड़कर बनाया गया है और इस किले को राजा रावल जैसल ने बनवाया था।

          पटवों की हवेली :

          अगर जैसलमेर के सबसे खूबसूरत नक्काशी दार हवेली की बात की जाए तो पटवों की हवेली का नाम सबसे पहले लिया जाता है। इस हवेली को गुमान चंद पटवा ने बनवाया था। इस को बनाने में 50 साल का समय लगा था। दरअसल यह घर 5 हवेलियों का समूह है। जिसे गुमान चंद ने अपने पांच बेटों के लिए बनवाया था।  लेकिन इस हवेली तक पहुंचने के लिए आपको संकरी गली से गुजरना होगा। यह हवेली शहर के मुख्य रोड (Main road) पर स्थित नहीं है।

          बड़ी झील :

          राजस्थान में झील या यूं कहें कि रेगिस्तान में झील,,,,, सुनकर थोड़ा अटपटा लगा ना? लेकिन यह सच है! राजस्थान के जैसलमेर में झील भी है। यह झील जैसलमेर के किले से मात्र 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसे गड़ी सागर झील भी कहा जाता है। इसे लेक गार्सीयर के नाम से भी जाना जाता है। यह झील सैलानियों के बीच काफी प्रसिद्ध है। इस झील तक जाने के लिए एक शाही विशाल द्वार से रास्ता जाता है। जो फोटोग्राफी (photography) का मुख्य केंद्र बनता है।

          बड़ा बाग स्मारक

          जैसलमेर से लगभग 6 कि. मी. दूर चलने पर हम बड़ा बाग़ पहुंचे। दरअसल बड़ा बाग़ एक खूबसूरत पार्क है जो भाटी राजाओं की याद में बनाया गया है। यहाँ जैसलमेर के राजाओं की कब्रें मौजूद हैं, वो छतरियों की शेप में बनाई गयी हैं। छतरियों की अद्भुत कलाकृति एक बार तो आपको अचंभित कर सकती है। 

          इसके अलावा इस शहर में कुलधारा हांटेड विलेज (haunted village) भी है। जिस गांव के उजड़ने के पीछे कई तरह की भूतिया कहानी बताई जाती हैं। अगर आप हांटेड प्लेस जाने में रुचि रखते हैं तो, आप यहां का रूख कर सकते हैं।

          यहां घूमने जाने का सबसे बेस्ट समय :

          वैसे तो साल भर यहां पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। लेकिन फिर भी अक्टूबर से मार्च का महीना यहां आने के लिए सबसे अच्छा रहता है। क्योंकि देखा जाए तो राजस्थान में साल भर गर्मी ही रहती है।
          जब आप कहीं भी घूमने जाए तो किस दिन कहां जाएं? क्या दिख रहा है? सब का शेड्यूल पहले ही बना लें। इसका फायदा यह होता है कि आप बिना किसी फालतू के आपाधापी के आराम से घूम पाएंगी।  जैसलमेर घूमने के लिए आपको कम से कम 3 दिनों के ट्रिप का शेड्यूल बनाना होगा।

          जैसलमेर कैसे जाएं
          (How to visit Jaisalmer) :

          अगर आप जैसलमेर हवाई रास्ते से जाना चाहते हैं तो इसके लिए आपको जोधपुर हवाई अड्डा तक का टिकट बुक करना होगा। अगर आप ट्रेन या बस के माध्यम से जैसलमेर जाना चाहते हैं तो जैसलमेर रेलवे स्टेशन भारत के अन्य राज्यों से अच्छी तरीके से जुड़ा हुआ है। बस की सुविधा के लिए आपको परेशानी आ सकती है। लेकिन आप अपनी गाड़ी से भी जैसलमेर आ सकती हैं।

          1. जयपुर (Jaipur) :

          जयपुर का नाम सुनते ही सबसे पहला ख्याल आता है गुलाबी शहर (pink city) पिछले कई वर्षों से जयपुर महिला सैलानियों (women visitors) के लिए एक पसंदीदा जलन की तरह उभरा है जहां ना सिर्फ भारत के दूसरे कोनों से बल्कि पूरी दुनिया से लोग घूमने आते हैं। जयपुर का नाम आते ही मन गुलाबी हो उठता है। चाहे दिन का समय हो या रात का, इस नगर का प्रकाश और मन स्थिर नहीं है। चारों और अरावली के पहाड़ों से घिरे, चौड़े और स्पष्ट सुथरी घूमते और अपने संकेत और सैकड़ों साल पुराने बाज़ारों के कारण यह शहर किसी भी पर्यटक के मन को खुश करने में पूरी तरह सक्षम है।

          जयपुर में घूमने के बेहतरीन जगह (best places to visit in Jaipur) :

          जल महल जयपुर (Jaipur jal Mahal) :

          पिंक सिटी जयपुर की ‘मानसागर’ झील के बीचों बीच बना ‘जलमहल’ अद्वितीय सौन्दर्य और अद्भुत स्थापत्यकला का बेजोड़ उदाहरण है। इस महल का निर्माण आज से लगभग 300 साल पहले आमेर के महाराज सवाई मानसिंह ने सन् 1799 में किया था। 
          सैर सपाटे और घूमने के साथ-साथ यह क्षेत्र अब लोगों के लिए आय का साधन भी बन गया है। यहां पर आपको राजस्थानी मोजड़ी, राजस्थानी जूती, हैंड बैग, होम डेकोरेटिव आइटम्स, ज्वैलरी और अलग-अलग क्लॉथ्स, मैग्नेटोनेट और कई डेली यूज के सामान मिलते हैं, इसी के साथ आपको यहां खाने-पीने के कई सारे आइटम भी मिलेंगे।

          मसाला चौक (Masala chauk) :

          भोजन-पीने के मामले में देखें तो पिंक सिटी जयपुर वास्तव में एक ऐसा शहर है जो कि बहुत प्रसिद्ध (famous) है यहां के बेहद लजीज ब्रेक के कारण, यहां के प्रसिद्ध व्यंजन, तरह-तरह की शैली और तरह-तरह की चीजों से बने हुए हैं। इस रॉयल सिटी (Royal city) के लोग खाने के बहुत ही शौकीन माने जाते हैं और यह सिटी फूड लवर्स (food lovers) के लिए विशेष मायने रखता है। अगर बात खाने से जुड़ी हो तो जयपुर की खूबसूरत जगहों में से एक जगह है मसाला चौक जो कि खाने को लेकर अपनी वैरायटी (variety) के लिए और अपनी खूबियों के लिए बहुत ही मशहूर है।

          हवा महल जयपुर (Jaipur Hawa Mahal) :

          यूं तो जयपुर में बहुत से पर्यटन स्थल (historical places) हैं, लेकिन हवा महल की बात हीं कुछ और है। इस महल का इतिहास, इसकी वास्तुकला, और यहां की शांति पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है। इसके हल्की गुलाबी रंग की बालकनी और जालीदार खिड़कियां आप का मन मोह लेंगे। अगर इसके वास्तुकला की बात की जाए तो, इसमें मुगल और राजपूतानी वास्तुकला का मिश्रण देखने को मिलता है। अगर आप जयपुर आती हैं तो आप यहां खड़े होकर पूरे सिटी का एक बेहतरीन व्यू (view) देख सकती हैं।

          जयपुर कैसे जाएं? (How to visit Jaipur) :


          जयपुर जाने के लिए आप डायरेक्ट जयपुर एयरपोर्ट (Airport) का टिकट (tickets) ले सकते हैं। अगर आप सड़क या रेल मार्ग से जयपुर आना चाहते हैं तो इसके लिए भी साधन मौजूद हैं। जयपुर हर मार्ग से देश के अन्य शहरों से भलीभांति जुड़ा हुआ है। आप आसानी से ट्रेन या बस से भी जयपुर आ सकते हैं।

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