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भारतीय शिल्पकला को दर्शाती हैं सदियों पुरानी अजंता की गुफाएं

महाराष्ट्र का संभाजी नगर जिसे पहले औरंगाबाद कहा जाता था वह अजंता और एलोरा की गुफाओं के लिए मशहूर है। आज के इस ब्लॉ में हम आपको बताएंगे अजंता की गुफाओं के इतिहास के बारे में, यहां की कलाकृतियों के बारे में, और यहां कैसे पहुंचे इसके बारे में।

संभाजी नगर के पहाड़ियों को खोदकर बनाई गई यह गुफाएं और उनके अंदर उकेरी गई कलाकृतियां भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया से पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इतिहास में रुचि रखने वाले लोगों के लिए अजंता कई वर्षों से शोध का एक महत्वपूर्ण स्थान बना हुआ है। अजंता की गुफाएं बौद्ध धर्म के उपासकों के लिए किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं है। इन गुफाओं में भगवान बुद्ध के हजारों मूर्तियों को उकेरा गया है।

इतिहास (History of Ajanta caves)

अगर इतिहास की बात करें तो अजंता की गुफाओं का निर्माण कई सौ सालों के मेहनत की परिणिति है। इतिहासकारों का मानना है कि गुफा नंबर 9 और 10 को बनाने में 400 सालों का वक्त लगा था और इनका निर्माण 200 ईसा पूर्व से 200 ई के बीच करवाया गया था। गुफा नंबर 9 और 10 को अजंता की सबसे पुरानी गुफा के रूप में जाना जाता है। वहीं गुफा नंबर 4, 6, 11, 15, 16 और 17 के निर्माण के बारे में बताया जाता है कि इनका निर्माण 350 ई से 500 ई तक के बीच में हुआ।
अजंता की गुफाएं दो भागों में विभाजित थीं। जिनमें एक भाग का उपयोग विहार के रूप में किया जाता था, वहीं दूसरे भाग का उपयोग आराधना के लिए किया जाता था। इस स्थान को चैत्य महाकक्ष कहा जाता था।

अद्भुत है यहां की वास्तुकला (Amazing architecture)

सहयाद्री पर्वत के चट्टानों को काटकर यहां लगभग 29 गुफाओं का निर्माण करवाया गया है। यह गुफाएं भारत के समृद्ध इतिहास और भारतीय स्थापत्य कला के उत्कृष्टता को बहुत ही बेहतरीन तरीके से दुनिया के सामने रखने की कोशिश करते हैं। यहाँ के वास्तु कला के कलाकार इतने कुशल थे कि यहां के कुछ गुफाओं को 100 फीट तक खोदकर बनाया गया है।


विहार का भाग बहुत ही सीधा-साधा और सरल वास्तुकला का क्षेत्र था, वहीं चैत्य महाकक्ष में दीवारों पर कई प्रकार के मूर्तियों को बनवाया गया था। यह कक्ष भगवान बुद्ध को समर्पित था और उपासना के लिए उपयोग में लाया जाता था। इन कक्षों में चित्रों और मूर्तियों के द्वारा भगवान बुद्ध के अवतार के बारे में विस्तृत वर्णन देखने को मिलता है। विहार का उपयोग भिक्षुओं के द्वारा बुद्ध के धार्मिक उपदेशों के ज्ञान और अध्ययन के लिए किया जाता था।
अजंता की गुफाओं का निर्माण दो समय काल में करवाया गया था। पहला तेहरवाड काल और दूसरा महायान काल।

तेहरवाड काल में गुफा नंबर 9 और 10 का निर्माण आराधना के लिए करवाया गया था। वहीं गुफा नंबर 8, 12, 13 और 15 का निर्माण विहार कक्ष के रूप में करवाया गया था। वहीं महायान कल में तीन चैत्य कक्ष गुफा नंबर 19, 26 और गुफा नंबर 29 का निर्माण आराधना कक्ष के रूप में करवाया गया था। वहीं अन्य 11 गुफाओं का निर्माण वास स्थान अर्थात विहार परिसर के रूप में करवाया गया था।

अजंता की गुफाओं में मुख्यतः बौद्ध के जीवन से संबंधित चित्र देखने को मिलते हैं। इसके अलावा चित्रों के जरिए जातक कथाओं का वर्णन देखने को मिलता है। इन चित्रों में राज दरबारों की तत्कालीन स्थितियों आपको भी उकेरा गया है और रोजमर्रा की जिंदगी को दिखाया गया है। इन सबसे परे गुफाओं में फूलों और पशुओं का भी चित्रण किया गया है।

अजंता की गुफाओं तक कैसे पहुंचे (How to reach Ajanta Caves)?
अगर आप अजंता की गुफाओं को घूमना चाहते हैं तो इसके लिए तीनों तरह के परिवहन माध्यमों का उपयोग कर सकते हैं। अजंता की गुफाएं महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित है। इसलिए अगर आप बाय रोड आना चाहते हैं तो आप सबसे पहले औरंगाबाद पहुंच सकते हैं। औरंगाबाद से अजंता की गुफाओं तक पहुंचने में आपको लगभग 45 मिनट का समय लगेगा। अगर आप वाया ट्रेन आना चाहते हैं तो उसके लिए भी आपको औरंगाबाद रेलवे स्टेशन तक आना पड़ेगा। वहीं फ्लाइट से आने के लिए आप जलगांव एयरपोर्ट तक का फ्लाइट ले सकते हैं। जलगांव एयरपोर्ट अजंता की गुफाओं से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

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जानिए बुद्ध की भूमि बोधगया के बारे में…

अगर भागदौड़ की जिंदगी से कहीं दूर जाना चाहते हैं और खुद को नेचर (Nature) के करीब महसूस करना चाहते हैं तो, आपके लिए बोधगया सबसे बेस्ट ऑप्शन (best option) हो सकता है।
जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है, बोधगया महात्मा बुद्ध की धरती है। यह शहर बिहार की राजधानी पटना (Patna) से लगभग 100 किलोमीटर दूर है। खूबसूरत पहाड़ियों और बुद्ध स्मृतियों से जुड़े हुए इस शहर में आकर लाइफ की सारी निगेटिविटी (Negativity) को खत्म किया जा सकता है।

बोधगया का इतिहास (History of Bodhgaya) :

बोधगया एक प्राचीन शहर है। जहां लगभग 500 साल पहले भगवान बुद्ध को फल्गु नदी के तट पर, बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। कहते हैं भगवान बुद्ध को वैशाख महीने में पूर्णिमा के दिन ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। जिसके बाद से वह बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए और यहां बौद्ध भिक्षुओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया। वैशाख की पूर्णिमा जिस दिन भगवान महावीर को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, उस दिन को बौद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाने लगा। माना जाता है कि, बोधगया के महाबोधि मंदिर में स्थित बुद्ध की प्रतिमा उसी अवस्था में है, जिस अवस्था में महावीर बुद्ध ने तपस्या की थी। 13वीं शताब्दी तक यह शहर पूरी दुनिया भर में काफी प्रसिद्ध था।

बोधगया में घूमने की जगह :

1. महाबोधि मंदिर (Mahabodhi temple):
बोधगया आने वाले लोगों के लिए महाबोधि मंदिर एक खास आकर्षण (Attraction) का केंद्र होता है। दुनिया भर से भगवान बुद्ध के भक्त यहां इस मंदिर में दर्शन करने आते हैं। इस मंदिर को महाबोधि वृक्ष के चारों ओर बनाया गया है। इस मंदिर को सम्राट अशोक ने बनवाया था।
इस मंदिर के बीच स्थित महाबोधि वृक्ष और उसके नीचे मौजूद भगवान बुद्ध की मूर्ति लोगों के बीच काफी पॉपुलर (popular) है। विक्रमशिला विश्वविद्यालय और नालंदा विश्वविद्यालय में भी इस मूर्ति के प्रतिरूप को स्थापित किया गया है।

2. थाई मठ (Thai Monastery):
इस शहर में कई सारे प्रसिद्ध बौद्ध मठ भी हैं। इन्हीं प्रसिद्ध मठों में से एक है थाई मठ। इस मठ के निर्माण में सोने से बनी टाइलों (Golden Tiles) का इस्तेमाल किया गया है। इसके दीवारों और छतों में की गई नक्काशी भारतीय संस्कृति का एक बेहतरीन उदाहरण है। यहां का शांत माहौल और स्वच्छ वातावरण इतना सुकून देने वाला है कि आपको यहीं का होकर रह जाने का मन करेगा।

3. भगवान बुद्ध की प्रतिमा (Statue of Buddha) :
इस शहर में भगवान बुद्ध की एक 80 फीट ऊंची प्रतिमा भी है। इस प्रतिमा को भगवान बुद्ध के प्रसिद्ध स्मारकों में से एक माना जाता है। इस मूर्ति को देश के सबसे ऊंची बुद्ध की मूर्तियों में से एक माना जाता है। इसका का उद्घाटन (Inaugration) दलाई लामा द्वारा 1989 में किया गया था। इसे बलुआ पत्थर के ब्लॉक (Block of sand stone) और लाल ग्रेनाइट (Red granite) से बनाया गया है। इस मूर्ति की लोकप्रियता (Popularity) का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पर्यटक (Tourist) विशेषकर इस मूर्ति को देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं।

4. जापानी मंदिर (Japanese temple) :
प्राकृतिक खूबसूरती (Natural beauty) से भरा हुआ यह शहर वास्तु कला में भी धनी है। इस शहर में एक जापानी मंदिर है, जिसमें जापानी आर्किटेक्चर (Architecture) देखने को मिलता है। इस मंदिर के दीवारों पर महात्मा बुद्ध के उपदेशों की नक्काशी की गई है। इस मंदिर का निर्माण 1972 में किया गया था। यह मंदिर मुख्य शहर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

4. आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम (Archaeological Museum):
इस शहर में आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम भी है। यहाँ बौद्ध और हिंदू धर्म तरह-तरह की मूर्तियां और कलाकृतियां मौजूद हैं। साथ ही साथ यहां खुदाई में मिले हुए अन्य वस्तुओं को भी रखा गया है, जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

5. पितृपक्ष मेला (Pitrupaksha Mela):
गया का हिंदू धर्म में भी विशेष महत्व रहा है। क्योंकि हिंदू धर्म में इसे मोक्ष भूमि के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि, पितृपक्ष के समय यहां आकर पिंडदान करने से पूर्वजों के आत्मा को शांति मिलती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। हर साल भाद्रपद के पूर्णिमा से अश्विन के कृष्ण पक्ष तक यहां पितृपक्ष का मेला लगता है।

गया जाने के लिए सबसे सही समय (Best time to visit Gaya) :

वैसे तो गया में साल भर सैलानियों (Visitors) की भीड़ लगी रहती है। लेकिन अगर आप मौसम का लुफ्त उठाते हुए और बिना किसी परेशानी के गया घूमना चाहते हैं तो, फरवरी से अप्रैल और सितंबर से नवंबर तक के समय में यहां घूमने जा सकते हैं। सितंबर से नवंबर के बीच यहां पितृपक्ष का मेला लगता है। इस समय लोग यहां जाकर अपने पूर्वजों के मोक्ष की प्राप्ति के लिए पिंडदान करते हैं।

कैसे पहुँचें? (How to reach):

बोधगया हवाई, रेल और सड़क तीनों ही मार्गो से जुड़ा हुआ है। बोधगया जाने के लिए सबसे आसान रास्ता हवाई मार्ग है। गया जिला का एयरपोर्ट बिहार का इंटरनेशनल एयरपोर्ट(International Airport) है, जो भारत के अन्य शहरों से भी अच्छी तरह से जुड़ा (Well connected) हुआ है। बोध गया आने का दूसरा सबसे सरल मार्ग रेल मार्ग है। बोधगया से 13 किलोमीटर दूर स्थित गया जंक्शन (Junction) भी भारत के अलग-अलग शहरों से जुड़ा हुआ है। गया आने के लिए आप पटना जंक्शन तक की ट्रेन भी ले सकते हैं। पटना गया की दूरी लगभग 100 किलोमीटर है। जिससे रोड रेल दोनों ही रास्तों से आसानी से तय किया जा सकता है।

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