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एक होली ऐसी भी : चिता के भस्म से खेली जाती है यहाँ होली

The most famous story of Masan Holi of Banaras

क्या है इतिहास?

मणिकर्णिका घाट बनारस के सबसे प्रसिद्ध घाटों में से एक घाट है, जो पूरे भारतवर्ष में मोक्ष स्थल के नाम से जाना जाता है। महारानी अहिल्याबाई होलकर ने इस शमशान का निर्माण करवाया था। कहते हैं जो काशी में मरता है वह मोक्ष को प्राप्त करता है और इसी काशी के गंगा घाटों में से एक है यह मणिकर्णिका घाट जहां बाकी के गंगा घाट अपनी गंगा आरती, पूजा अर्चना और सैर सपाटा के लिए प्रसिद्ध है, वहीं मणिकर्णिका घाट जीवन के अंतिम यात्रा की गवाही देता है। हिंदू धर्म में विश्वास रखने वाले लोगों की यह ख्वाहिश होती है कि उनका अंतिम संस्कार मणिकर्णिका घाट पर किया जाए। लेकिन ऐसा क्यों है? क्यों यह घाट इतनी पवित्र है कि यहां के चिता के भस्म से होली खेली जाती है? यह होली सिर्फ यहां के स्थानीय लोग नहीं खेलते, बल्कि देश के अलग-अलग हिस्सों से यहां लोग इस होली में भाग लेने आते हैं।

The most famous story of Masan Holi of Banaras

क्यों है इतना खास?

मणिकर्णिका घाट के मसान होली को समझने के लिए आपको पहले जानना होगा कि मणिकर्णिका घाट इतना प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण क्यों है?
दरअसल मणिकर्णिका देश के गिने चुने महाशमशानों में से एक है। बताया जाता है कि यह यहां चिता की अग्नि कभी ठंडी नहीं पड़ती है और यह शमशान कभी शांत नहीं होता है। चाहे कोई भी परिस्थिति हो, कोई भी मौसम हो, कोई भी दिन हो यहां चिताएं जलती रहती हैं। कहा जाता है कि जब से इस शमशान का निर्माण हुआ है तब से लेकर आज तक यह शमशान कभी शांत नहीं हुआ। यहाँ एक चिता की आग बुझने वाली होती है तो दूसरे को आग दे दी जाती है और यह प्रक्रिया सतत चलता रहती है।

कैसे पड़ा मणिकर्णिका नाम?

मणिकर्णिका घाट के बारे में बहुत सारी किंवदंतियाँ सामने आती हैं। लेकिन सबसे प्रसिद्ध लोक कथा के अनुसार माता पार्वती महादेव के व्यस्तताओं के कारण बहुत हीं परेशान थी। तो उन्होंने महादेव के साथ समय व्यतीत करने के लिए एक उपाय ढूंढा। उन्होंने अपने कर्णफूल को यहीं गिरा दिया और महादेव को ढूंढने के लिए कहा। महादेव उस कर्णफूल को नहीं ढूंढ पाए और मान्यता है कि यहां आने वाली प्रत्येक अर्थी के कान में महादेव स्वयं पूछते हैं कि वह कर्णफूल कहां है? साथ हीं साथ उन्हें तारक मंत्र का उपदेश देकर मोक्ष भी दिलाते हैं।

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क्यों मनाई जाती है मसान होली?

पुराणों के अनुसार मसान होली मनाने के पीछे का कारण स्वयं भूतनाथ महादेव हैं। उन्होंने हीं सबसे पहले मसान होली मनाना आरंभ किया था। बताया जाता है कि जब महादेव और पार्वती जी का विवाह हुआ तो वह कुछ दिनों के लिए काशी घूमने आए थे। उस दिन रंगभरी एकादशी का दिन था। महादेव ने पार्वती माता को गुलाल लगाकर होली मनाई । लेकिन उनके भक्तगण में अधिकतर भूत पिशाच हीं थे। जो उन्हें दूर से देखकर हीं खुश हो रहे थे लेकिन खुद होली नहीं मना पा रहे थे। उनकी दुविधा को देखते हुए महादेव ने रंगभरी एकादशी के अगले दिन अपने उन भक्तों के साथ मणिकर्णिका के शमशान में होली खेली थी। उन्होंने चिता के भस्म को अपने शरीर पर मलकर अपने गणों के साथ नृत्य किया था। उसी दिन से यह प्रथा चली जा रही है कि हर साल रंगभरी एकादशी के अगले दिन यहां साधु संत और अघोर पंथ को मानने वाले लोग यहां आकर मसान होली खेलते हैं और जीवन के साथ-साथ मृत्यु का उत्सव मनाते हैं

The most famous story of Masan Holi of Banaras

कब मनाई जाती है मसान होली?

यहाँ हर साल रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन चिता के भस्म से होली खेली जाती है, जिसे मसान होली या भस्म होली के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है की महादेव स्वयं अपने गणों के साथ उस दिन होली खेलते हैं। अघोर पंथ को मानने वाले लोग इस होली में हिस्सा लेना पसंद करते हैं। क्योंकि यह होली संसार के मोह माया को त्यागने के लिए लोगों को प्रेरित करती है।

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हर नव वधू के वार्डरोब में शामिल होने चाहिए ये सिल्क की साड़ियां, जानिए इनकी खासियत और कीमत

अगर मूल रूप से सिल्क की बात की जाए तो भारत में चार प्रकार के सिल्क के रेशे बनाए जाते हैं- शहतूत रेशम, ओक तसर सिल्क, एरी सिल्क और मुगा रेशम।

अगर आप कांजीवरम सिल्क की साड़ियां खरीद रहे हैं तो उन्हें खरीदते वक्त आप यह स्योर करें कि आप असली कांजीवरम हीं खरीद रहे हैं। क्योंकि आजकल कांजीवरम साड़ियों के नाम पर धोखाधड़ी के भी मामले देखे जाते हैं। कांचीपुरम साड़ियों को पहचानने का सबसे आसान तरीका है कि असली कांजीवरम साड़ी के प्लेट्स को एक दूसरे से घिसने पर किसी भी प्रकार की आवाज नहीं आती है।

बलूचरी साड़ी की एक खास वैरायटी होती है जिसमें सोने के धागों से साड़ी पर बुनावट की जाती है। ये साड़ियां स्वर्णचेरी साड़ियां कहलाती हैं। अधिकतर बलूचरी साड़ियां चटक रंगों में पसंद की जाती हैं। इनका निर्माण बंगाल के मुर्शिदाबाद में किया जाता है

27 नवंबर को मनाया जाएगा बनारस का सबसे बड़ा त्योहार देव दिवाली

बनारस की देव दीपावली हजारों लाखों लोगों का ध्यान अपनी और आकर्षित करती है। कहते हैं बनारस के लोगों में दीपावली को लेकर जितना उत्साह होता है उससे कई गुना ज्यादा देव दीपावली को लेकर उत्साह होता है। क्योंकि बनारस में देव दीपावली का आयोजन हीं इतना भव्य तरीके से किया जाता है कि यहां देश-विदेश से लोग उस आयोजन का हिस्सा बने आते हैं। इस साल भी बनारस में देव दीपावली का आयोजन किया जाना है। ऐसे में फाइव कलर्स ऑफ ट्रेवल (five colors of travel) के इस ब्लॉग (Blog) में हम आपको बताने जा रहे हैं बनारस के देव दीपावली के बारे में।

कब मनाया जाएगा देव दीपावली (When will Dev Diwali be celebrated)?

काशी में मनाए जाने वाले देव दीपावली के तारीखों को लेकर इस बार बहुत ही ज्यादा विवाद की स्थिति उत्पन्न हो रही है। क्योंकि हिंदी पंचांग के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा की तिथि 26 नवंबर और 27 नवंबर की है। ऐसे में दोनों दोनों में से किस दिन देव दीपावली का आयोजन होगा इसको लेकर पर्यटकों में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है। लेकिन काशी में देव दीपावली का आयोजन करने वाली समिति के अनुसार देव दीपावली का आयोजन 27 नवंबर को किया जाएगा। क्योंकि 27 नवंबर को हीं स्नान दान की तिथि है और दीपदान स्नान दान के बाद ही होता है।

क्यों है खास बनारस की देव दीपावली (What is special about Dev Diwali) ?

बनारस के घाटों की खूबसूरती के बारे में तो आपने सुना ही होगा। हो सकता है कि आपने पहले कभी वहां जाकर इस खूबसूरती को महसूस भी किया होगा। लेकिन इन घाटों की खूबसूरती तब कई गुना ज्यादा बढ़ जाती है, जब इन घाटों पर लाखों की संख्या में दिए जलाए जाते हैं। जी हाँ! बनारस की देव दीपावली के अवसर पर यहां के घाटों पर लाखों दिए जलाए जाते हैं। यह दिए क्रमबद्ध तरीके से और काफी सजावटी तरीके से व्यवस्थित किए गए होते हैं। जिसके कारण घाटों की खूबसूरती और भी कई गुना ज्यादा बढ़ जाती है। जब आप बनारस के देव दीपावली के दिन गंगा नदी में रात को वोटिंग करने के लिए उतरेंगे तो यहां की खूबसूरती देखकर आपको बनारस की भव्यता और देव दीपावली के उत्सव के लिए लोगों के उत्साह का कारण समझ में आएगा। यह आयोजन इतना भव्य होता है कि देश-विदेश से यहां पर्यटक इस अवसर पर घूमने आते हैं। अगर आप भी इस बार फेस्टिव सीजन में कहीं घूमने की प्लानिंग कर रहे हैं तो बनारस आपके लिए बहुत ही अच्छा ऑप्शन हो सकता है। क्योंकि यहां आकर आप फेस्टिव वाइब्स भी इंजॉय कर पाएंगे और छुट्टियों का मजा भी ले पाएंगे।

यहां गंगा किनारे घाटों पर जलाए जाने वाले दियों और घाटों पर चलने वाले लेजर शो बनारस की खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं। देव दीपावली दीपावली के 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। आस्था के पर्व के अवसर पर यहां के घाटों पर हर साल लाखों दिए जलाए जाते हैं। उन लाखों दियों की जगमगाहट सभी के मनो को मोह लेती हैं। इस पर्व को त्रिपुरोत्सव और त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

बनारस कैसे आए (How to visit Banaras) ?

अगर आपको बनारस आना है तो बनारस सड़क मार्ग और रेल मार्ग दोनों से भारत के प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। NH 44 वाराणसी से जुड़ा हुआ है और आप NH 44 द्वारा वाराणसी आ सकते है। वाराणसी में दो रेलवे स्टेशन है: जिनमें से एक है वाराणसी जंक्शन और दूसरा मुगलसराय जंक्शन। बनारस हवाई मार्ग से दिल्ली और मुंबई से जुड़ा हुआ है।

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मन को मोह लेते हैं मोक्ष नगरी बनारस के ये खूबसूरत घाट

कहते हैं एक शहर है जिसकी हवा में भी खुला हुआ है और इस शहर का नाम है बनारस। बनारस,,,, गंगा किनारे बसे इस शहर के रंग ही अलग हैं। कहीं चिता के भस्म से होली खेली जाती है, तो कहीं गंगा के जल में खड़े होकर सूर्य को नमस्कार किया जाता है। आज के दौर में जहां बाकी सारे शहर आधुनिकीकरण की ओर बढ़ रहे हैं और अपनी संस्कृति के मूल स्वरूप को भूलते जा रहे हैं वहीं यह शहर यह शहर भारतीय संस्कृति को अपने अंदर सहेज कर एक अद्भुत उदाहरण पेश करता है।
इस शहर को वाराणसी और काशी के नाम से भी जाना जाता है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरे हुए शहर का सिर्फ हिंदू धर्म में ही नहीं बल्कि जैन और बौद्ध धर्म में भी बहुत ही विशेष महत्व है, और लोग इसे मोक्ष नगरी के नाम से भी जानते हैं। पुराणों की मान्यता है कि, बनारस आकर मृत्यु को प्राप्त करने वाले लोग सीधा मोक्ष को प्राप्त करते हैं। इसलिए अध्यात्म में विश्वास रखने वाले लोग अपने जीवन के आखिरी क्षणों को बनारस आकर व्यतीत करना पसंद करते हैं।

1. गंगा घाट (Ganga Ghaat)
अब क्योंकि यह शहर नदी के किनारे बसा हुआ है इसलिए यहां 80 से भी अधिक घाट हैं और इसे घाटों का शहर भी कहते हैं।
अगर बात करें यहां के प्रमुख घाटों की तो उनमें दशाश्वमेध घाट, अस्सी घाट, मणिकर्णिका घाट, पंच गंगा घाट आदि प्रमुख हैं।

(i) मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat)
मणिकर्णिका घाट को शमशान स्थल के रूप में भी जाना जाता है। जहां हर साल रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन चिता के भस्म से होली खेली जाती है, जिसे मसान होली या भस्म होली के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है की महादेव स्वयं अपने गणों के साथ उस दिन होली खेलते हैं।

(ii) दशाश्वमेध घाट (Dashashwamedh Ghat)
यहां का दशाश्वमेध घाट बनारस की सबसे प्रसिद्ध घाटों में से एक है। मान्यता है कि आदि काल में ब्रह्मा जी ने यहां 10 अश्वमेध यज्ञ करवाया था। जिसके कारण इसे दशाश्वमेध घाट के नाम से जाना जाने लगा। इसे बनारस के सबसे पुराने घाट के रूप में भी जाना जाता है।

(iii) अस्सी घाट (Assi Ghat)
अस्सी घाट बनारस का दक्षिणतम घाट है जो आगंतुकों और विदेशी पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र होता है। यह बनारस के सबसे खूबसूरत घाटों में से एक माना जाता है।

2. गंगा आरती (Ganga Aarti)
गंगा घाट की बात हो और गंगा आरती का जिक्र ना हो भला ऐसा हो सकता है?
जब यहां के घाटों पर संध्या के समय गंगा आरती होती है तब, चारों ओर हो रहे शंखनाद, गंगा की कलकल बहती धारा, ठंडी हवा के झोंके और मंत्र उच्चारण की मधुर ध्वनि वातावरण में एक अलग ही प्रकार की सकारात्मकता का प्रसार करती है। जिसके कारण यहां आने वाले लोगों की संख्या बहुत ज्यादा होती है, और कई खास मौकों पर तो यहां पैर रखने का भी जगह नहीं होता है।
यहां के घाट नदियां और यहां के प्राचीन मंदिर, प्रकृति और संस्कृति के एक अद्भुत समन्वय को दर्शाती है। यही वजह है कि बनारस सिर्फ घाटों ही नहीं बल्कि अपने गंगा आरती के लिए भी सुप्रसिद्ध है।

काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple)
भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक श्री विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग भी बनारस में ही स्थित है। जिसे काशी विश्वनाथ के नाम से भी जाना जाता है।
काशी विश्वनाथ दशाश्वमेघ घाट के निकट स्थित है और श्रद्धालु दशाश्वमेध घाट के पानी में डुबकी लगाकर महाकाल के दर्शन के लिए मंदिर जाया करते हैं। कुछ समय पहले तक घाट और मंदिर के बीच में भवनों के बन जाने के कारण घाट से मंदिर जाना कठिन होता था। लेकिन हाल ही में यहां गंगा कॉरिडोर के निर्माण हो जाने के बाद गंगा नदी से मंदिर पूरी तरह जुड़ गया है।
मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ वास किया था। इस मंदिर का इतिहास भी काफी चर्चा और विवाद का विषय रहा है क्योंकि इसे बार-बार तोड़ा और बनाया गया। वर्तमान के मंदिर को रानी अहिल्याबाई ने मंदिर के बचे अवशेषों के साथ 1770 ईस्वी में बनवाया था। जिसके बाद 1835 में राजा रंजीत सिंह ने इसके गुंबद को सोने से मंडवा दिया था जो इस मंदिर को और भी आकर्षक बनाता है।

3. रामनगर का किला (Ramnagar Fort)
घाटों और मंदिरों के अतिरिक्त यहां एक बेहद खूबसूरत 18वीं शताब्दी का रामनगर का किला भी है, जिसकी शिल्प कला मुगल शिल्प का बेहतरीन उदाहरण पेश करती है।

4. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University)
बनारस सिर्फ संस्कृति के क्षेत्र में आगे नहीं है, बल्कि यह शिक्षा के क्षेत्र में भी बहुत आगे है और इसका जीता जागता उदाहरण है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय जिसे काशी हिंदू विश्वविद्यालय के नाम से भी जाना जाता है। इस की स्थापना स्वतंत्रता पूर्व ही हुई थी। जिसकी नींव पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा रखी गई थी। इसके स्थापना में एनी बेसेंट का भी बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा। आज बनारस हिंदू विश्वविद्यालय भारत के सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में से एक है। इस विश्वविद्यालय को “राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान” का

दर्जा प्राप्त है। इस विश्वविद्यालय के दो परिसर हैं, जिनमें मुख्य परिसर वाराणसी में स्थित है। इसके परिसर में हाल ही में एक नए काशी विश्वनाथ मंदिर की स्थापना की गई है। जो लोगों के बीच विशेष आकर्षण का केंद्र होता है। 75 छात्रावासों के साथ यह विश्वविद्यालय एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय है।

5. बनारस का खान पान (food of banaras)
बनारस के खानपान भी बाकी शहरों से काफी अलग हैं। यहां के बनारसी पान और मलइयो की तो बात ही अलग है। यहां के सबसे प्रसिद्ध व्यंजन में से एक है टमाटर चाट, जो आपको बनारस की गलियों में कहीं भी मिल जाएगा। चाट का खट्टा मीठा और तीखा स्वाद आपको उंगलियां चाटने पर मजबूर हो जाएंगे।

बनारस आने का सबसे सही समय (Best time to visit Banaras)
यूं तो आप बनारस कभी भी जा सकते हैं यह शहर हर समय हर मौसम में आने वाले पर्यटकों का भी खोलकर स्वागत करता है लेकिन महाशिवरात्रि और देव दीपावली के अवसर पर यहां जाना आपके लिए सबसे वर्थईट साबित होगा।
अगर बात महाशिवरात्रि की हो तो इस दिन भारत के कोने कोने से महादेव के भक्त बनारस आकर काशी विश्वनाथ के दर्शन और गंगा स्नान करते हैं। यूं तो बनारस की गलियों में गंगा आरती को लेकर हर दिन ही भीड़ होती है, लेकिन महाशिवरात्रि एक ऐसा दिन है जिस दिन यहां अन्य दिनों के मुकाबले कई गुनी हो जाती है। पुराणों के अनुसार इस नगरी का महादेव के साथ विशेष संबंध रहा है। इसलिए शिव भक्तों के लिए यह शहर किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं है। इस दिन भी विवाह उत्सव से पहले बाबा विश्वनाथ को हल्दी लगाई जाती है और मंगल गीत गाए जाते हैं। शाम के समय भगवान शिव को हल्दी लगाते देखने के लिए श्रद्धालुओं में बेहद उत्साह होता है। इसके बाद शिव की बारात निकलती है।

बनारस में देव दिवाली(Dev Diwali in Banaras)
अगर यहां के देव दीपावली की बात की जाए तो यहां गंगा किनारे घाटों पर जलाए जाने वाले दियों और घाटों पर चलने वाले लेजर शो बनारस की खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं। देव दीपावली दीपावली के 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। आस्था के पर्व के अवसर पर यहां के घाटों पर हर साल लाखों दिए जलाए जाते हैं। उन लाखों दियों की जगमगाहट सभी के मनो को मोह लेती हैं। इस पर्व को त्रिपुरोत्सव और त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

  • अगर आपको बनारस आना है तो बनारस सड़क मार्ग और रेल मार्ग दोनों से ही जुड़ा हुआ है।
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भारत में आस्था के प्रमुख केंद्र माने जाते हैं यह धार्मिक स्थल

आज के समय में आस्था और भक्ति लोगों के लिए, अपनी जिंदगी से स्ट्रेस को कम करने का सबसे आसान माध्यम बन गया है। आस्तिक लोगों को तो मंदिर जाना पसंद होता ही है, लेकिन आजकल लोग इस भागदौड़ की जिंदगी से शांति के लिए भी मंदिरों का रुख कर रहे हैं। अगर आप भी भारत के ऐतिहासिक मंदिरों के दर्शन करना चाहते हैं तो यह ब्लॉग आपके लिए ही है।

१. भोजपुर शिव मंदिर (Bhojpur Shiva temple)

भोपाल शहर से करीब 27 किलोमीटर की दूरी पर भोजपुर नामक स्थान पर एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है। इसके बारे में बताया जाता है कि इसका निर्माण महाराजा भोजराज प्रथम ने 1010 ई से 1055 ई के बीच करवाया था। अगर आप इस मंदिर में सुबह-सुबह आ जाएंगे तो यहां की सुबह की आरती देखकर आपका मन बहुत हीं प्रसन्न हो जाएगा। यह मंदिर इतनी खूबसूरत लोकेशन (beautiful location) पर है कि यहां आने के बाद आपको चारों ओर बस ग्रीनरी हीं ग्रीनरी देखने को मिलेगी। यह मंदिर पर्यटकों के बीच काफी प्रसिद्ध है। यहां भारत के कोने-कोने से लोग भोजेश्वर महादेव का दर्शन करने आते हैं। अगर आप भी भोपाल जा रहे हैं तो आप भी इस मंदिर को एक बार जरुर विजिट (Must visit) करें। यहां के हवाओं में घुली हुई पॉजिटिविटी (positivity and divinity) आपको बहुत हीं बेहतरीन एहसास दिलाएगा।

 2. इस्कॉन टेंपल बेंगलुरु (Iskcon temple)

अगर आप बैंगलोर आ रहे हैं तो आपको भारत के सबसे बड़े कृष्ण मंदिर का विजिट बिल्कुल भी मिस नहीं करना चाहिए। इस्कॉन एक ऐसी समिति है जो पूरे दुनिया में जगह-जगह भगवान कृष्ण से जुड़े मंदिरों का निर्माण करवाती है। भारत में इस्कॉन का सबसे मुख्य ब्रांच बेंगलुरु में हीं स्थित है। इस्कॉन ने बेंगलुरु में भारत का सबसे बड़ा कृष्ण मंदिर बनवाया है। जो बेंगलुरु आने वाले पर्यटकों के लिए सेंटर आफ अट्रैक्शन (Centre of attraction) माना जाता है। इस मंदिर का आर्किटेक्चर भी काफी यूनिक और अट्रैक्टिव है। इस मंदिर के दीवारों में ग्लास वर्क (Glass work) भी किया गया है। इस मंदिर का पूरे भारत में बहुत अधिक मान्यता है। भारत के कोने कोने से लोग यहां पूजा करने और दर्शन करने के लिए आते हैं। इस मंदिर में होने वाला कीर्तन लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। जहां लोग सब कुछ भूल कर बस कृष्ण की भक्ति में लीन हो जाते हैं। जिस जगह पर कीर्तन होता है जब आप उसे हॉल (hall) में इंटर करेंगे तो आपके पैर अपने आप हीं थिरकने लगेंगे और आप भी सब कुछ भूल कर बस कृष्णा का नाम लेते हुए कीर्तन करने लगेंगे। यहां आकर आपको एक पॉजिटिव एनर्जी (positive energy) का एहसास होगा।

3. महावीर मंदिर (Mahaveer mandir)

यह मंदिर पटना जंक्शन से वाकिंग डिस्टेंस पर स्थित है। जो उत्तर भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं और यह मंदिर देश के प्राचीनतम हनुमान मंदिरों में से एक है। अगर आप इस मंदिर में घूमना चाहते हैं तो इस बात का ध्यान रखें कि सामान्य दिनों में ही यहां आएं। क्योंकि रामनवमी, शिवरात्रि या फिर दशहरा के दिनों में यह मंदिर बहुत हीं व्यस्त रहता है। ऐसे में यहां बहुत अधिक मात्रा में श्रद्धालु आते हैं। इस मंदिर की एक और खासियत यह है कि इस मंदिर का ट्रस्ट उत्तर भारत का सबसे बड़ा धार्मिक ट्रस्ट है। जो गरीब लोगों के कैंसर का इलाज करवाने और जरूरतमंदों की सेवा और परोपकार के कार्यों के लिए जाना है।

4. प्रेम मंदिर (Prem mandir)

इस मंदिर को सफेद संगमरमर से बनाया गया है और इसके दीवारों पर श्री कृष्ण के जीवन के महत्वपूर्ण कहानियों को कलाकृतियों में उकेरा गया है। जो इस मंदिर को और भी खूबसूरत बनाता है। चारों ओर सफेद संगमरमर और मार्बल से बनाए गए इस मंदिर के परिसर में छोटी-छोटी वाटिकाऐं भी हैं। जहां कहीं कृष्ण के बचपन की झांकियां मिलती हैं, तो कहीं श्री कृष्ण अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए मिलते हैं।  यहां कृष्ण की गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा उंगली पर उठाने की मुद्रा में भी मूर्ति स्थापित है। वृंदावन स्थित इस मंदिर की आधारशिला 2001 में रखी गई थी और इसे तैयार होने में 12 वर्षों का समय लग गया। इस मंदिर की आधारशिला जगतगुरु कृपाल आचार्य ने रखी थी। यहीं वजह है कि इस मंदिर के परिसर में उनके स्मृतियों को भी सहेज कर रखा गया है। प्रेम मंदिर आने का सबसे उचित समय शाम का होता है। क्योंकि शाम ढलते हीं यहां लाइटिंग शो शुरू हो जाते हैं, जो इस मंदिर की खूबसूरती में चार चांद लगाने का काम करते हैं।

5. बनारस (Banaras)

तू बन जा गली बनारस की
मैं शाम तलक भटकूँ तुझमें,,,

गंगा के किनारे बसे बनारस शहर में जाने की ख्वाहिश सभी को होती है। वैसे तो यह शहर ज्यादा आधुनिक नहीं है, फिर भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। हर आयु के लोग यहां घूमने आना चाहते हैं। इस शहर की गंगा आरती की खूबसूरती देश ही नहीं बल्कि दुनिया के कोने-कोने से लोगों को अपनी ओर खींच लाती है।

उत्तराखंड को देवों की भूमि के नाम से जाना जाता है और यहां कई सारे तीर्थ स्थल भी हैं। उन्हीं तीर्थ स्थलों में से प्रमुख तीर्थ स्थल हैं गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ। इन्हीं चारों तीर्थ स्थलों को मिलाकर बनता है चार धाम! जिसका हिंदू धर्म में बहुत ही खास महत्व है। चार धाम यात्रा ना सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से प्रसिद्ध है बल्कि पर्यटन के दृष्टिकोण से भी यह लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। चारों ओर हिमालय की पहाड़ियां और पहाड़ियों के बीच से पतली सी धारा में बहती गंगा नदी किसी का भी मन मोह लेने में सक्षम है। यहां आकर आपको प्राकृतिक खूबसूरती (scenic beauty) के बेहतरीन नजारे देखने को मिलेंगे। इसके साथ ही पोलूशन फ्री (pollution free) वातावरण (environment) I आपको फिर से तरोताजा कर देंगे।

बनारस टूर के लिए आईआरसीटीसी (IRCTC) लेकर आया है एक नया पैकेज

तू बन जा गली बनारस की
मैं शाम तलक भटकूँ तुझमें,,,

गंगा के किनारे बसे बनारस शहर में जाने की ख्वाहिश सभी को होती है। वैसे तो यह शहर ज्यादा आधुनिक नहीं है, फिर भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। हर आयु के लोग यहां घूमने आना चाहते हैं। इस शहर की गंगा आरती की खूबसूरती देश ही नहीं बल्कि दुनिया के कोने-कोने से लोगों को अपनी ओर खींच लाती है।

अगर आप भी बनारस (banaras) जाना चाहते हैं तो आपके लिए एक खुशखबरी है। यह सफर आपके लिए और भी आसान होने वाला है। अगर आप भी इस सफर को बजट (Budget) में पूरा करना चाहते हैं तो आईआरसीटीसी (IRCTC) का यह पैकेज आपके लिए ही है। आईआरसीटीसी के इस पैकेज का नाम वाराणसी एक्स जोधपुर जयपुर (VARANASI EX JODHPUR JAIPUR) है। आइए इस पैकेज के बारे में डिटेल (Detail) में जानते हैं।

आईआरसीटीसी का यह पैकेज 4 दिन और 3 रातों का है और यह पैकेज 10 जुलाई 2023 के लिए है।

पहले दिन ट्रेन जयपुर (Jaipur) से जोधपुर (Jodhpur) होते हुए वाराणसी (Varanasi) के लिए निकलेगी और दूसरे दिन सुबह लगभग 10:00 बजे वाराणसी पहुंचेगी। इसके बाद आप होटल में चेक इन (Check In) करेंगे और ब्रेकफास्ट (Breakfast) करने के बाद आप यहां के मंदिरों की सैर के लिए निकल सकते हैं। इन मंदिरों की सूची में आप काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple), काल भैरव मंदिर (Kal Bhairav Temple), अनुपमा टेंपल (Anupama Temple) और भारत माता मंदिर (Bharat Mata Temple) की सैर करते हुए शाम के समय गंगा आरती (Ganga aarti) देखने के लिए जाएंगे। फिर आपको रात में वाराणसी के उसी होटल में रुकना होगा। अगले दिन आप होटल में ब्रेकफास्ट करके फिर से रेलवे स्टेशन (Railway station) पहुंच जाएंगे। जहां से फिर आपको जयपुर के लिए ट्रेन (train) लेनी होगी। जो कि चौथे दिन आपको जोधपुर (Jodhpur) पहुंचा देगी।

किस तरह की सुविधाएं दी जाएंगी?

  • इस पैकेज में आपको ट्रेन का रिजर्वेशन (Reservation) मिलेगा जोकि डीलक्स पैकेज (Deluxe Package) में थर्ड एसी क्लास (Third AC Class) का होगा वही स्टैंडर्ड पैकेज (Standard Package) में स्लीपर क्लास (Sleeper Class) का होगा।
  • अगर आप शेड्यूल (Shedule) के हिसाब से मंदिर घूमने जाएंगे तो आपका ट्रांसपोर्टेशन (Transportation) दी पैकेज में शामिल होगा।
  • एक रात के लिए आपकी होटल की बुकिंग करवाई जाएगी और 2 दिनों का ब्रेकफास्ट और एक रात का डिनर (Dinner) भी इस पैकेज में इंक्लूड (Include) होगा।


क्या नहीं होगा शामिल?

  • इस पैकेज में आपको ट्रेन यात्रा के दौरान खाना उपलब्ध नहीं करवाया जाएगा।
  • किसी भी प्रकार के हवाई यात्रा का खर्च नहीं उठाया जाएगा।
  • होटल में किए जाने वाले किसी भी तरह के खर्च जैसे टिप (Tip), इंश्योरेंस (Insurance), मिनरल वाटर (Minral Water), टेलीफोन चार्ज (Telephone Charge) या लॉन्ड्री (Laundry) इन सब की जिम्मेदारी नहीं ली जाएगी।
  • किसी भी पर्यटन स्थल का एंट्री फीस (Entry Fees) पैकेज में शामिल नहीं होगा।
  • अगर आप बनारस में बोटिंग (Boating) करना चाहे तो इसका खर्च भी आपको खुद ही देना होगा।
  • किसी तरह के टूर गाइड (Tour Guide) की सर्विस (Service) नहीं दी जाएगी।
  • अगर आप अलग से कुछ खाना खाते हैं तो उसका खर्च भी नहीं उठाया जाएगा।

क्या होगा टिकट प्राइस?

आईआरसीटीसी के इस पैकेज का अगर आप अकेलेे ठहरते हैं तो कंफर्ट क्लास (Comfort Class) के लिए ₹14825 रुपया पे होगा। वहीं अगर आप स्टैंडर्ड क्लास (Standard Class) के लिए जाते हैं तो ₹11575 पे करना होगा।
अगर आप डबल शेयरिंग (Double Sharing) में जाते हैं तो पर पर्सन (Per Person) ₹10665 रुपया कंफर्ट क्लास के लिए और ₹7420 रूपया स्टैंडर्ड क्लास के लिए देना होगा। ट्रिपल शेयरिंग कंफर्ट क्लास (Triple Sharing Comfort Class) की फीस प्रति व्यक्ति ₹9405 है और स्टैंडर्ड क्लास की फीस ₹6155 रुपया है। अगर आप 5 से 11 साल के बच्चे के साथ जाते हैं तो उस बच्चे के टिकट की प्राइस कंफर्ट क्लास के लिए विथ बेड (With Bed) ₹6680 होगी और विदाउट बेड (Without Bed) ₹5520 होगी। वहीं स्टैंडर्ड क्लास के लिए बच्चे के टिकट की फीस विथ बेड ₹3635 और विदाउट बेड ₹2275 होगी।

इस पैकेज के बारे में ज्यादा जानकारी (information) के लिए आप आईआरसीटीसी की वेबसाइट (Website) को विजिट (Visit) कर सकते हैं।

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