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एक होली ऐसी भी : चिता के भस्म से खेली जाती है यहाँ होली

The most famous story of Masan Holi of Banaras

क्या है इतिहास?

मणिकर्णिका घाट बनारस के सबसे प्रसिद्ध घाटों में से एक घाट है, जो पूरे भारतवर्ष में मोक्ष स्थल के नाम से जाना जाता है। महारानी अहिल्याबाई होलकर ने इस शमशान का निर्माण करवाया था। कहते हैं जो काशी में मरता है वह मोक्ष को प्राप्त करता है और इसी काशी के गंगा घाटों में से एक है यह मणिकर्णिका घाट जहां बाकी के गंगा घाट अपनी गंगा आरती, पूजा अर्चना और सैर सपाटा के लिए प्रसिद्ध है, वहीं मणिकर्णिका घाट जीवन के अंतिम यात्रा की गवाही देता है। हिंदू धर्म में विश्वास रखने वाले लोगों की यह ख्वाहिश होती है कि उनका अंतिम संस्कार मणिकर्णिका घाट पर किया जाए। लेकिन ऐसा क्यों है? क्यों यह घाट इतनी पवित्र है कि यहां के चिता के भस्म से होली खेली जाती है? यह होली सिर्फ यहां के स्थानीय लोग नहीं खेलते, बल्कि देश के अलग-अलग हिस्सों से यहां लोग इस होली में भाग लेने आते हैं।

The most famous story of Masan Holi of Banaras

क्यों है इतना खास?

मणिकर्णिका घाट के मसान होली को समझने के लिए आपको पहले जानना होगा कि मणिकर्णिका घाट इतना प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण क्यों है?
दरअसल मणिकर्णिका देश के गिने चुने महाशमशानों में से एक है। बताया जाता है कि यह यहां चिता की अग्नि कभी ठंडी नहीं पड़ती है और यह शमशान कभी शांत नहीं होता है। चाहे कोई भी परिस्थिति हो, कोई भी मौसम हो, कोई भी दिन हो यहां चिताएं जलती रहती हैं। कहा जाता है कि जब से इस शमशान का निर्माण हुआ है तब से लेकर आज तक यह शमशान कभी शांत नहीं हुआ। यहाँ एक चिता की आग बुझने वाली होती है तो दूसरे को आग दे दी जाती है और यह प्रक्रिया सतत चलता रहती है।

कैसे पड़ा मणिकर्णिका नाम?

मणिकर्णिका घाट के बारे में बहुत सारी किंवदंतियाँ सामने आती हैं। लेकिन सबसे प्रसिद्ध लोक कथा के अनुसार माता पार्वती महादेव के व्यस्तताओं के कारण बहुत हीं परेशान थी। तो उन्होंने महादेव के साथ समय व्यतीत करने के लिए एक उपाय ढूंढा। उन्होंने अपने कर्णफूल को यहीं गिरा दिया और महादेव को ढूंढने के लिए कहा। महादेव उस कर्णफूल को नहीं ढूंढ पाए और मान्यता है कि यहां आने वाली प्रत्येक अर्थी के कान में महादेव स्वयं पूछते हैं कि वह कर्णफूल कहां है? साथ हीं साथ उन्हें तारक मंत्र का उपदेश देकर मोक्ष भी दिलाते हैं।

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क्यों मनाई जाती है मसान होली?

पुराणों के अनुसार मसान होली मनाने के पीछे का कारण स्वयं भूतनाथ महादेव हैं। उन्होंने हीं सबसे पहले मसान होली मनाना आरंभ किया था। बताया जाता है कि जब महादेव और पार्वती जी का विवाह हुआ तो वह कुछ दिनों के लिए काशी घूमने आए थे। उस दिन रंगभरी एकादशी का दिन था। महादेव ने पार्वती माता को गुलाल लगाकर होली मनाई । लेकिन उनके भक्तगण में अधिकतर भूत पिशाच हीं थे। जो उन्हें दूर से देखकर हीं खुश हो रहे थे लेकिन खुद होली नहीं मना पा रहे थे। उनकी दुविधा को देखते हुए महादेव ने रंगभरी एकादशी के अगले दिन अपने उन भक्तों के साथ मणिकर्णिका के शमशान में होली खेली थी। उन्होंने चिता के भस्म को अपने शरीर पर मलकर अपने गणों के साथ नृत्य किया था। उसी दिन से यह प्रथा चली जा रही है कि हर साल रंगभरी एकादशी के अगले दिन यहां साधु संत और अघोर पंथ को मानने वाले लोग यहां आकर मसान होली खेलते हैं और जीवन के साथ-साथ मृत्यु का उत्सव मनाते हैं

The most famous story of Masan Holi of Banaras

कब मनाई जाती है मसान होली?

यहाँ हर साल रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन चिता के भस्म से होली खेली जाती है, जिसे मसान होली या भस्म होली के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है की महादेव स्वयं अपने गणों के साथ उस दिन होली खेलते हैं। अघोर पंथ को मानने वाले लोग इस होली में हिस्सा लेना पसंद करते हैं। क्योंकि यह होली संसार के मोह माया को त्यागने के लिए लोगों को प्रेरित करती है।

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मन को मोह लेते हैं मोक्ष नगरी बनारस के ये खूबसूरत घाट

कहते हैं एक शहर है जिसकी हवा में भी खुला हुआ है और इस शहर का नाम है बनारस। बनारस,,,, गंगा किनारे बसे इस शहर के रंग ही अलग हैं। कहीं चिता के भस्म से होली खेली जाती है, तो कहीं गंगा के जल में खड़े होकर सूर्य को नमस्कार किया जाता है। आज के दौर में जहां बाकी सारे शहर आधुनिकीकरण की ओर बढ़ रहे हैं और अपनी संस्कृति के मूल स्वरूप को भूलते जा रहे हैं वहीं यह शहर यह शहर भारतीय संस्कृति को अपने अंदर सहेज कर एक अद्भुत उदाहरण पेश करता है।
इस शहर को वाराणसी और काशी के नाम से भी जाना जाता है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरे हुए शहर का सिर्फ हिंदू धर्म में ही नहीं बल्कि जैन और बौद्ध धर्म में भी बहुत ही विशेष महत्व है, और लोग इसे मोक्ष नगरी के नाम से भी जानते हैं। पुराणों की मान्यता है कि, बनारस आकर मृत्यु को प्राप्त करने वाले लोग सीधा मोक्ष को प्राप्त करते हैं। इसलिए अध्यात्म में विश्वास रखने वाले लोग अपने जीवन के आखिरी क्षणों को बनारस आकर व्यतीत करना पसंद करते हैं।

1. गंगा घाट (Ganga Ghaat)
अब क्योंकि यह शहर नदी के किनारे बसा हुआ है इसलिए यहां 80 से भी अधिक घाट हैं और इसे घाटों का शहर भी कहते हैं।
अगर बात करें यहां के प्रमुख घाटों की तो उनमें दशाश्वमेध घाट, अस्सी घाट, मणिकर्णिका घाट, पंच गंगा घाट आदि प्रमुख हैं।

(i) मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat)
मणिकर्णिका घाट को शमशान स्थल के रूप में भी जाना जाता है। जहां हर साल रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन चिता के भस्म से होली खेली जाती है, जिसे मसान होली या भस्म होली के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है की महादेव स्वयं अपने गणों के साथ उस दिन होली खेलते हैं।

(ii) दशाश्वमेध घाट (Dashashwamedh Ghat)
यहां का दशाश्वमेध घाट बनारस की सबसे प्रसिद्ध घाटों में से एक है। मान्यता है कि आदि काल में ब्रह्मा जी ने यहां 10 अश्वमेध यज्ञ करवाया था। जिसके कारण इसे दशाश्वमेध घाट के नाम से जाना जाने लगा। इसे बनारस के सबसे पुराने घाट के रूप में भी जाना जाता है।

(iii) अस्सी घाट (Assi Ghat)
अस्सी घाट बनारस का दक्षिणतम घाट है जो आगंतुकों और विदेशी पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र होता है। यह बनारस के सबसे खूबसूरत घाटों में से एक माना जाता है।

2. गंगा आरती (Ganga Aarti)
गंगा घाट की बात हो और गंगा आरती का जिक्र ना हो भला ऐसा हो सकता है?
जब यहां के घाटों पर संध्या के समय गंगा आरती होती है तब, चारों ओर हो रहे शंखनाद, गंगा की कलकल बहती धारा, ठंडी हवा के झोंके और मंत्र उच्चारण की मधुर ध्वनि वातावरण में एक अलग ही प्रकार की सकारात्मकता का प्रसार करती है। जिसके कारण यहां आने वाले लोगों की संख्या बहुत ज्यादा होती है, और कई खास मौकों पर तो यहां पैर रखने का भी जगह नहीं होता है।
यहां के घाट नदियां और यहां के प्राचीन मंदिर, प्रकृति और संस्कृति के एक अद्भुत समन्वय को दर्शाती है। यही वजह है कि बनारस सिर्फ घाटों ही नहीं बल्कि अपने गंगा आरती के लिए भी सुप्रसिद्ध है।

काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple)
भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक श्री विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग भी बनारस में ही स्थित है। जिसे काशी विश्वनाथ के नाम से भी जाना जाता है।
काशी विश्वनाथ दशाश्वमेघ घाट के निकट स्थित है और श्रद्धालु दशाश्वमेध घाट के पानी में डुबकी लगाकर महाकाल के दर्शन के लिए मंदिर जाया करते हैं। कुछ समय पहले तक घाट और मंदिर के बीच में भवनों के बन जाने के कारण घाट से मंदिर जाना कठिन होता था। लेकिन हाल ही में यहां गंगा कॉरिडोर के निर्माण हो जाने के बाद गंगा नदी से मंदिर पूरी तरह जुड़ गया है।
मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ वास किया था। इस मंदिर का इतिहास भी काफी चर्चा और विवाद का विषय रहा है क्योंकि इसे बार-बार तोड़ा और बनाया गया। वर्तमान के मंदिर को रानी अहिल्याबाई ने मंदिर के बचे अवशेषों के साथ 1770 ईस्वी में बनवाया था। जिसके बाद 1835 में राजा रंजीत सिंह ने इसके गुंबद को सोने से मंडवा दिया था जो इस मंदिर को और भी आकर्षक बनाता है।

3. रामनगर का किला (Ramnagar Fort)
घाटों और मंदिरों के अतिरिक्त यहां एक बेहद खूबसूरत 18वीं शताब्दी का रामनगर का किला भी है, जिसकी शिल्प कला मुगल शिल्प का बेहतरीन उदाहरण पेश करती है।

4. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University)
बनारस सिर्फ संस्कृति के क्षेत्र में आगे नहीं है, बल्कि यह शिक्षा के क्षेत्र में भी बहुत आगे है और इसका जीता जागता उदाहरण है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय जिसे काशी हिंदू विश्वविद्यालय के नाम से भी जाना जाता है। इस की स्थापना स्वतंत्रता पूर्व ही हुई थी। जिसकी नींव पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा रखी गई थी। इसके स्थापना में एनी बेसेंट का भी बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा। आज बनारस हिंदू विश्वविद्यालय भारत के सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में से एक है। इस विश्वविद्यालय को “राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान” का

दर्जा प्राप्त है। इस विश्वविद्यालय के दो परिसर हैं, जिनमें मुख्य परिसर वाराणसी में स्थित है। इसके परिसर में हाल ही में एक नए काशी विश्वनाथ मंदिर की स्थापना की गई है। जो लोगों के बीच विशेष आकर्षण का केंद्र होता है। 75 छात्रावासों के साथ यह विश्वविद्यालय एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय है।

5. बनारस का खान पान (food of banaras)
बनारस के खानपान भी बाकी शहरों से काफी अलग हैं। यहां के बनारसी पान और मलइयो की तो बात ही अलग है। यहां के सबसे प्रसिद्ध व्यंजन में से एक है टमाटर चाट, जो आपको बनारस की गलियों में कहीं भी मिल जाएगा। चाट का खट्टा मीठा और तीखा स्वाद आपको उंगलियां चाटने पर मजबूर हो जाएंगे।

बनारस आने का सबसे सही समय (Best time to visit Banaras)
यूं तो आप बनारस कभी भी जा सकते हैं यह शहर हर समय हर मौसम में आने वाले पर्यटकों का भी खोलकर स्वागत करता है लेकिन महाशिवरात्रि और देव दीपावली के अवसर पर यहां जाना आपके लिए सबसे वर्थईट साबित होगा।
अगर बात महाशिवरात्रि की हो तो इस दिन भारत के कोने कोने से महादेव के भक्त बनारस आकर काशी विश्वनाथ के दर्शन और गंगा स्नान करते हैं। यूं तो बनारस की गलियों में गंगा आरती को लेकर हर दिन ही भीड़ होती है, लेकिन महाशिवरात्रि एक ऐसा दिन है जिस दिन यहां अन्य दिनों के मुकाबले कई गुनी हो जाती है। पुराणों के अनुसार इस नगरी का महादेव के साथ विशेष संबंध रहा है। इसलिए शिव भक्तों के लिए यह शहर किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं है। इस दिन भी विवाह उत्सव से पहले बाबा विश्वनाथ को हल्दी लगाई जाती है और मंगल गीत गाए जाते हैं। शाम के समय भगवान शिव को हल्दी लगाते देखने के लिए श्रद्धालुओं में बेहद उत्साह होता है। इसके बाद शिव की बारात निकलती है।

बनारस में देव दिवाली(Dev Diwali in Banaras)
अगर यहां के देव दीपावली की बात की जाए तो यहां गंगा किनारे घाटों पर जलाए जाने वाले दियों और घाटों पर चलने वाले लेजर शो बनारस की खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं। देव दीपावली दीपावली के 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। आस्था के पर्व के अवसर पर यहां के घाटों पर हर साल लाखों दिए जलाए जाते हैं। उन लाखों दियों की जगमगाहट सभी के मनो को मोह लेती हैं। इस पर्व को त्रिपुरोत्सव और त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

  • अगर आपको बनारस आना है तो बनारस सड़क मार्ग और रेल मार्ग दोनों से ही जुड़ा हुआ है।
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