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Fabric Prints: बिना कुछ बोले भी बहुत कुछ बता देते हैं ये फैब्रिक्स पर दिखने वाले विभिन्न प्रकार के प्रिंट

आप सभी ने अपने-अपने घरों में कई तरह के कपड़े देखे होंगे। खासकर महिलाओं की साड़ियां तो हर घर में होती हैं। लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है? ये साड़ियां फैब्रिक में अलग होने के साथ-साथ उनके प्रिंटिंग स्टाइल्स के मामले में भी अलग-अलग होती हैं। कहीं आपको बांधनी प्रिंट के स्टाइल की साड़ियां दिखेंगी, तो कहीं आपको घेर प्रिंट या फिर छींट प्रिंट की साड़ियां देखने को मिलेंगी। आज का फाइव कलर्स ऑफ़ ट्रैवल (Five colors of travel) का यह ब्लॉग साड़ियों के इन्हीं विभिन्न प्रकार के प्रिंटिंग स्टाइल्स (Types of Fabric Prints) के ऊपर आधारित है। जिसमें हम आपको बताएंगे भारत में प्रचलित कुछ प्रसिद्ध साड़ी प्रिंट के बारे में जो लगभग हर महिला के वार्डरोब में आपको दिख जाएंगे, और इतना हीं नहीं हम आपको विविध फैब्रिक प्रिंटिंग स्टाइल्स के महत्व के बारे में भी बताएंगे।

बांधनी प्रिंट, भारतीय साड़ीयों में एक प्रमुख प्रिंट है जो गुजरात की सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाता है। इस प्रकार के प्रिंट में विविध रंगों का उपयोग किया जाता है, जो साड़ी को एक विशेष और आकर्षक लुक देता है। बांधनी प्रिंट का निर्माण विशेषतः धागे को बिल्कुल विशेष ढंग से बांधकर किया जाता है, ताकि यह एक विशेष पैटर्न बने। इसमें छोटे-बड़े गोलियों का उपयोग किया जाता है, जिन्हें धागे से बांधकर रखा जाता है और उन्हें विभिन्न रंगों में रंगा जाता है। बांधनी प्रिंट एक प्राचीन और प्रतिष्ठित तकनीक है, जो पारंपरिक रूप से पीरियडिक वस्त्रों में उपयोग किया जाता था। यह प्रकार की साड़ी विशेष अवसरों और त्योहारों पर विशेषतः उत्सवों में पहनी जाती है, जैसे कि नवरात्रि, दिवाली, और विवाह।
इस प्रकार की साड़ी का निर्माण मुख्य रूप से कठिनाई से भरा होता है, क्योंकि हर छोटा गोला धागे से सही ढंग से बांधना होता है। इसके लिए कुशलता और महारत आवश्यक होती है। बांधनी प्रिंट के इतिहास में इसका एक महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि यह प्राचीन समय से ही उपयोग में था और अब भी भारतीय महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण है। इस प्रकार की साड़ी का उपयोग उन्हें उनकी संस्कृति और परंपरा के साथ जोड़ता है, और उन्हें एक विशेष और आकर्षक लुक देता है।

लहरिया प्रिंट भारतीय साड़ियों का एक प्रमुख रूप है जो राजस्थान की पारंपरिक विरासत को प्रकट करता है। यह प्रिंट स्वतंत्रता, खुशी, और उत्सव के समय पहना जाता है और रंगों की खुशबू और रमज़ानी का रंग देता है। लहरिया प्रिंट विभिन्न धाराओं में बनाया जाता है, जिसमें हर धारा अपने आप में एक अलग कथा कहती है। यह प्रिंट एक विशेष तकनीक का उपयोग करके बनाया जाता है, जिसमें कपड़े को बाँधकर विभिन्न रंगों के डालों में डुबाया जाता है। जब कपड़े को सुखाया जाता है, तो वह लहराती लाइनों का एक खास पैटर्न बन जाता है, जो इस प्रिंट को विशेष बनाता है। लहरिया प्रिंट का उपयोग विभिन्न समाजिक और सांस्कृतिक अवसरों पर होता है, जैसे कि होली, त्योहार, और शादियां। इस प्रकार की साड़ी विशेष रूप से राजस्थान के लोगों द्वारा पसंद की जाती है और यहाँ की स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को प्रतिष्ठित करती है। लहरिया प्रिंट की साड़ियाँ विशेष रूप से रंगीनता और ऊर्जा का संदेश देती हैं। इनमें अलग-अलग रंगों का उपयोग किया जाता है, जो सामूहिक खुशी और उत्सव का अनुभव कराते हैं। लहरिया प्रिंट के वस्त्र में एक खास रंगों का मेल मिलता है, जो उत्साह और आनंद की भावना को प्रकट करता है। इस प्रकार की साड़ियों का उपयोग विभिन्न अवसरों में न केवल खूबसूरती और गरिमा लाता है, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक विरासत को भी अद्वितीयता और समृद्धि के साथ जीवंत रखता है।

कांथा प्रिंट एक प्रसिद्ध और प्राचीन प्रिंट है जो बंगाल की सांस्कृतिक विरासत को प्रकट करता है। इस प्रिंट का नाम ‘कांथा’ संबंधित बुनाई तकनीक से है, जिसमें धागे को साथ में बाँधकर एक नक्शे या डिज़ाइन का निर्माण किया जाता है। कांथा प्रिंट का मूल उद्देश्य था अवशेष कपड़े का पुनः उपयोग करना, जो आर्थिक संघर्षों के दौरान अच्छी से अच्छी उपयोग के लिए उपलब्ध नहीं था। इस तकनीक के माध्यम से, पुराने कपड़ों को बारीक से बुनकर एक नया और रंगीन पैटर्न बनाया जाता है, जिसमें शान्ति, सौंदर्य, और सामाजिक समर्थन का संदेश छिपा होता है। यह प्रिंट विभिन्न रंगों, डिज़ाइन, और पैटर्न में उपलब्ध होता है, जो उसके विशेष और प्रभावी बनाते हैं। कांथा प्रिंट के पैटर्न में फूल, पत्तियाँ, जाल, और अभिलाषाएँ शामिल हो सकती हैं, जो इसे एक बड़ी रूप में पसंदीदा बनाते हैं। बंगाल की महिलाएं विशेष रूप से अपने जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं में कांथा साड़ियाँ पहनती हैं, जैसे कि विवाह, जन्मदिन, और अन्य सामाजिक उत्सव। यह साड़ी उनके आधुनिक और पारंपरिक संगीत और रंगों को मिलाकर उनकी सांस्कृतिक विरासत को प्रकट करती है। कांथा प्रिंट के कपड़ों की अनोखी बुनाई और गुणवत्ता के कारण, यह आधुनिक फैशन में भी उत्कृष्ट माना जाता है। आज के युवा पीढ़ी के बीच, कांथा प्रिंट के कपड़े एक विशेष और स्थायी स्थान बना रखते हैं, जो उनके रूचि और भावनाओं को प्रकट करते हैं। कांथा प्रिंट एक सामूहिक सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है जो विभिन्न समुदायों और पीढ़ियों को जोड़ता है, और संगीत, कला, और रंगों के माध्यम से सामूहिक एकता का संदेश प्रदान करता है।

खाड़ी प्रिंट एक प्रसिद्ध और प्रीतियोगी साड़ी प्रिंट है जो पश्चिम बंगाल के खाड़ी क्षेत्र से निकलता है। यह प्रिंट खाड़ी कपड़े पर किया जाता है, जो उसे एक विशेष और प्राकृतिक लुक देता है। खाड़ी प्रिंट में आमतौर पर प्राकृतिक और ब्राइट रंगों का उपयोग किया जाता है। इस प्रिंट में जाने-माने मोतीफ्स, फूल, पत्तियाँ, और अन्य ग्राफिक आकृतियाँ शामिल होती हैं, जो साड़ी को एक आकर्षक और विशेष लुक देते हैं। खाड़ी साड़ी का प्रिंट धार्मिक और सांस्कृतिक अवसरों में बड़ा महत्व रखता है। इसे विवाह, त्योहार, और अन्य प्रतिष्ठात्मक आयोजनों में पहना जाता है। इसके साथ ही, खाड़ी प्रिंट की प्रक्रिया भी स्थानीय उद्योगों को समर्थन करती है और स्थानीय कलाकारों को रोजगार प्रदान करती है। इस प्रकार, खाड़ी प्रिंट साड़ी न केवल एक सुंदर और आकर्षक वस्त्र होती है, बल्कि यह भी सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व का प्रतीक है।

पैचवर्क प्रिंट एक रूपांतरण कला है जो विभिन्न कपड़ों के पैचों को मिलाकर एक नया और आकर्षक डिज़ाइन बनाती है। यह प्रक्रिया बहुत ही संगीतमय और संगठित होती है, जिसमें विभिन्न रंग, आकार, और टेक्सचर्स के पैचों को मिलाकर अनूठे और आकर्षक प्रिंट बनाए जाते हैं। पैचवर्क प्रिंट का उपयोग विभिन्न वस्त्र प्रकारों में किया जाता है, जैसे कि साड़ी, कुर्ती, लहंगा, और अन्य आभूषण। इस प्रकार के प्रिंट का विशेष लाभ यह है कि यह वस्त्र को अनूठा और स्वच्छंद बनाता है, जिससे धारक का व्यक्तित्व और स्टाइल प्रकट होता है। पैचवर्क प्रिंट की विशेषता यह है कि यह बहुत ही स्थानीय और परंपरागत है, और इसमें स्थानीय कलाकारों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इस प्रक्रिया में उपयोग किए जाने वाले पैच अक्सर स्थानीय रंगों, डिज़ाइनों, और मोतीफ्स को प्रकट करते हैं, जो स्थानीय सांस्कृतिक और कला की धाराओं को दर्शाते हैं। पैचवर्क प्रिंट के माध्यम से, वस्त्र को न केवल सांस्कृतिक महत्व दिया जाता है, बल्कि यह वस्त्र के प्रति व्यक्तिगत रूप से भी साधारित किया जाता है, क्योंकि प्रत्येक पैच अपना विशेष महत्व रखता है।

“घेर प्रिंट” एक प्रसिद्ध प्रकार का साड़ी प्रिंट है जो साड़ी की हेम या घेर पर किया जाता है। यह एक साधारण और प्रभावी प्रिंटिंग तकनीक है जो साड़ी को और भी आकर्षक और शानदार बनाता है। घेर प्रिंट में, साड़ी की हेम या घेर पर विभिन्न प्रकार के रंग, मोतीफ्स, या डिज़ाइन को प्रिंट किया जाता है। इस प्रकार का प्रिंट साड़ी की छोटी-मोटी खींचावटों और गोदने पर भी ध्यान केंद्रित करता है, जो इसे और भी आकर्षक बनाता है। घेर प्रिंट का उपयोग विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक अवसरों में किया जाता है, जैसे कि विवाह, उत्सव, और परंपरागत उत्सव। यह साड़ी को एक प्रतिष्ठात्मक और शानदार लुक देता है, जो स्थानीय समुदायों में उत्साह और गरिमा का संकेत होता है। साथ ही, घेर प्रिंट का उपयोग आधुनिक और विशेष डिज़ाइनों में भी किया जाता है, जो आधुनिक स्वाद और फैशन को ध्यान में रखते हुए बनाए जाते हैं। इस प्रकार के प्रिंट साड़ी का महत्व उसके आकर्षक और अद्वितीय डिज़ाइन में होता है, जो लोगों को इसके प्रति आकर्षित करता है।

“छिंट प्रिंट” या “छिंटवार प्रिंट” एक प्रकार का साड़ी प्रिंट है जो मुख्य रूप से गुजरात और राजस्थान के क्षेत्रों में प्रचलित है। यह एक पारंपरिक प्रक्रिया है जिसमें साड़ी के कपड़े को छोटे रेखांकन से डिज़ाइन किया जाता है। छिंट प्रिंट का नाम छोटे चिन्हों (छिंटों) के अनुसार है, जो साड़ी के किनारे पर बने होते हैं और उन्हें खास रंगों में भरा जाता है। छिंट प्रिंट में विभिन्न प्रकार के गोल, त्रिकोण, या गहरे रंगों के चिन्ह होते हैं, जो साड़ी को एक विशेष और प्रतिष्ठात्मक लुक देते हैं। इस प्रकार का प्रिंट धागा और रंगों का प्रयोग करके हाथ से बनाया जाता है, जिससे साड़ी को एक अद्वितीय और पारंपरिक लुक मिलता है। छिंट प्रिंट का उपयोग मुख्य रूप से विवाह और अन्य समाजिक अवसरों में किया जाता है। यह साड़ी को एक स्पेशल और प्रतिष्ठित वस्त्र बनाता है, जिससे साधारण अवसर पर भी ध्यान आकर्षित होता है। इसके साथ ही, छिंट प्रिंट का उत्पादन स्थानीय उद्योगों को समर्थन करता है और स्थानीय कलाकारों को रोजगार प्रदान करता है।

अजरख प्रिंट एक प्राचीन और प्रसिद्ध प्रिंटिंग प्रक्रिया है जो भारत के गुजरात राज्य के कच्छ जिले में प्रमुखतः प्रयुक्त होती है। इस प्रक्रिया का उपयोग वस्त्रों, टेक्सटाइल, और कपड़ों को सजाने के लिए किया जाता है। अजरख प्रिंट का नाम ‘आज और राख’ शब्दों से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है ‘आज (इंडिगो) और राख (मुल्तानी मिट्टी)’। यह प्रिंट इस्लामी कला और हिंदू कला के युगीन संगम का प्रतीक है।अजरख प्रिंट का प्रयोग विभिन्न उत्पादों में किया जाता है, जैसे कि साड़ी, सुर्मे, कपड़े, चुनरी, और अन्य वस्त्र। यह एक प्राचीन और संगठित प्रक्रिया है जो महाराष्ट्र, गुजरात, और राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में भी प्रयुक्त होती है। अजरख प्रिंट का उपयोग आज भी भारतीय फैशन और कला में महत्वपूर्ण है और यह विश्वसनीयता और भारतीय विरासत का प्रतीक है। अजरख प्रिंट की प्रक्रिया में डिज़ाइन बनाने के लिए परंपरागत उपकरणों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि डिज़ाइन ब्लॉक्स, छिद्रित पत्थर, और लकड़ी के छापू। अजरख प्रिंट के लिए प्राथमिक रंग होता है इंडिगो, जिसे नीला रंग प्राप्त करने के लिए उपयोग किया जाता है। इसके बाद, अन्य रंग जैसे कि पीला, हरा, लाल, और काला उपयोग किए जाते हैं। डिज़ाइन ब्लॉक को कपड़े पर छपाई जाता है। यह ध्यान देने वाला काम होता है क्योंकि यह डिज़ाइन की सही गणना और संरेखण को आवश्यक बनाता है।

इक्कत प्रिंट एक प्रसिद्ध और प्राचीन प्रिंटिंग प्रक्रिया है जो भारत के विभिन्न क्षेत्रों में प्रयुक्त होती है। इस प्रक्रिया में, धागों को ध्यानपूर्वक प्रेरित किया जाता है ताकि यह विशेष डिज़ाइन या पैटर्न बना सके। इक्कत प्रिंट के विशेषता यह है कि इसमें धागों को पहले से ही रेखांकित किया जाता है ताकि डिज़ाइन का एक विशिष्ट प्रभाव हो। इक्कत प्रिंट की प्रक्रिया के शुरुआत में, उन्नत धागों को तैयार किया जाता है, जो कि इक्कत के डिज़ाइन में प्रयोग होंगे। इक्कत प्रिंट के लिए धागों को प्रदर्शित डिज़ाइन के अनुसार बांधा जाता है। धागों को पहले बांधा जाता है और फिर डाइ के रूप में रंग दिया जाता है। बांधने के बाद, धागों को ध्यानपूर्वक सुखाया जाता है ताकि रंग स्थायित्व में बना रहे। धागों को बांधने के बाद, वस्त्र को कटा जाता है और अन्य संविधानिक कार्य किया जाता है ताकि इसे उत्पादित किया जा सके। इक्कत प्रिंट के परिणामस्वरूप बने वस्त्रों में उन्नत और समृद्ध रंगीन पैटर्न होते हैं, जो वस्त्र को आकर्षक और अनोखा बनाते हैं। इस प्रिंट का उपयोग साड़ी, कुर्ता, लेहंगा, और अन्य परिधानों के लिए किया जाता है और विशेष अवसरों और उत्सवों में इसकी बेहद मान्यता है।

कलमकारी प्रिंट एक प्राचीन और प्रसिद्ध प्रिंटिंग प्रक्रिया है जो भारतीय कला और कला के साथ गहरा जुड़ा हुआ है। इस प्रक्रिया में, शिल्पकार या कलाकार प्राकृतिक रंगों और धागों का प्रयोग करके विभिन्न माध्यमों पर डिज़ाइन बनाते हैं, जैसे कि बाणा, कपड़े, या चमचमाते हुए सिल्क या बेलवेट। इस प्रकार की प्रिंटिंग कला को इक्कट और अन्य प्रिंटिंग तकनीकों से अलग किया जाता है क्योंकि यह शिल्पकला की अद्वितीयता और रचनात्मकता को प्रकट करती है। कलमकारी प्रिंट का इतिहास बहुत पुराना है और इसकी उत्पत्ति को बौद्ध और हिंदू धर्मग्रंथों में मिलती है। इस प्रक्रिया के अनुसार, शिल्पकार या कलाकार प्राकृतिक रंगों का प्रयोग करके विभिन्न विषयों पर प्रतिमाएँ या डिज़ाइन बनाते हैं, जिनमें प्राकृतिक तत्वों, पौधों, पक्षियों, और अन्य चीजों का चित्रण होता है। कलमकारी प्रिंट के लिए सिल्क कलम और ब्रश का प्रयोग किया जाता है। शिल्पकार धागों को ध्यान से रंगित करते हैं और विभिन्न पैटर्न और डिज़ाइन बनाते हैं। एक बार धागों पर डिज़ाइन बन जाए तो, वे कपड़ों के अनुसार काटे जाते हैं और सजावट के लिए तैयार किए जाते हैं। धागों को रंगने के बाद, वे उपयुक्त रंगों में डाइ किए जाते हैं ताकि रंग स्थायित्व में बना रहे। डाइ के बाद, कपड़े को सुखाने के लिए धूप में सुखाया जाता है। अंत में, सूखे कपड़े से अनेक प्रकार के वस्त्रों का उत्पादन किया जाता है, जिसमें वस्त्र की कटाई, सिलाई, और अन्य संविधानिक कार्य शामिल होते हैं।

      Written by- Shambhavi///Edited by- Pardeep Kumar

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