राजस्थान की राजधानी जयपुर न केवल अपने किलों, हवेलियों और महलों के लिए जानी जाती है, बल्कि उसके जीवंत बाज़ार भी इस शहर की आत्मा को जीवित रखते हैं। इन्हीं बाज़ारों में से एक है- जौहरी बाजार, जो अपनी रंगीन गलियों, चमकते आभूषणों और सांस्कृतिक विरासत के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है। यह सिर्फ एक ख़रीदारी का स्थान नहीं है बल्कि शताब्दियों पुरानी परंपराओं और जीवनशैली की झलकियां भी पेश करता है। मतलब अगर आप जयपुर आए और जौहरी बाजार नहीं देखा, तो समझिए आपने एक देखने लायक चीज छोड़ दी और इस शहर की धड़कन को महसूस ही नहीं किया।
जौहरी बाजार का इतिहास । Johari bazaar
जौहरी बाजार का इतिहास उस समय से जुड़ा है जब जयपुर शहर को एक नियोजित यानी योजना के तहत बनाई गई राजधानी के रूप में विकसित किया गया था। 1727 में महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने जयपुर की स्थापना की और शहर की संरचना को वास्तुशास्त्र तथा शिल्पशास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर तैयार करने की योजना बनाई। उसी समय इस बाजार की भी नींव रखी गई। ‘जोहरी’ शब्द का अर्थ होता है ‘रत्नों व आभूषणों (गहनों) का जानकार’, और यह बाज़ार विशेष रूप से रत्न-कारीगरों व आभूषण विक्रेताओं के लिए ही विकसित किया गया था। तत्कालीन रजवाड़ों की रानियाँ और राजघरानों के सदस्य यहीं से अपने गहनों के लिए विशेष कारीगरों से डिज़ाइन बनवाते थे।

कला और कारीगरी की पहचान-जौहरी बाजार
यह बाज़ार न केवल व्यापार का केंद्र रहा है, बल्कि स्थानीय कला, कारीगरी और सांस्कृतिक पहचान का भी प्रतीक बनकर उभरा। यहाँ के कारीगर पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी कला को संजोते आ रहे हैं। कुंदन, मीणाकारी, पोल्की और थेवा जैसी पारंपरिक आभूषण शैलियाँ आज भी जौहरी बाजार में जिंदा हैं और यहाँ की पहचान हैं। यहाँ बनने वाले गहनों में न केवल सुनार की मेहनत होती है, बल्कि सदियों पुरानी तकनीकों और पारिवारिक परंपराओं की छाप भी होती है।
जौहरी बाजार की वास्तुकला
जौहरी बाजार की गलियाँ वास्तुकला की दृष्टि से भी अनोखी हैं। गुलाबी रंग में रंगी हुई इमारतें, मेहराबदार (a door with a round top) दरवाजे, छोटे मंदिर, और सजावटी झरोखे इस बाजार को एक विशेष रूप देते हैं। बाजार की सड़कें सीधी और चौड़ी हैं, जिससे त्योहारों के समय निकलने वाली झांकियों और शोभायात्राओं के लिए भी स्थान मिलता है। इसके चारों ओर स्थित प्रमुख चौपड़ (जयपुर की चारदीवारी के केंद्र में स्थित) जैसे त्रिपोलिया चौपड़ और बड़ी चौपड़, बाजार के संचालन और नियंत्रण में ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण रहे हैं।
लहरिया से पाजेब तक

यह बाज़ार न केवल गहनों के लिए जाना जाता है, बल्कि पारंपरिक परिधानों और सजावटी वस्तुओं के लिए भी जाना जाता है। लहरिया और बंधेज की साड़ियाँ, लाख की चूड़ियाँ, हाथ से बनी नथें, मांगटीका, बिछुए और राजस्थानी पायजेब(पायल) यहाँ आम तौर पर देखने पर मिलती हैं। छोटे-छोटे स्टॉल्स पर चूड़ी बेचती महिलाएं, पारंपरिक अंदाज़ में बात करते दुकानदार और हर दुकान के बाहर चमकते बल्ब- इन सबका मिला जुला दृश्य इस बाजार को एक सांस्कृतिक विरासत की पहचान देता है।
परंपरा से आधुनिकता तक
जौहरी बाजार समय के साथ बदला ज़रूर है, लेकिन अपने मूल को उसने अब भी संभालकर रखा है। अब यहाँ पारंपरिक दुकानों के साथ-साथ कुछ आधुनिक शोरूम भी देखने को मिलते हैं। डिजिटल पेमेंट्स, पैकिंग सुविधाएँ, वातानुकूलित (Air conditioned) स्टोर, इन सबने बाजार को आधुनिक रूप दिया है। लेकिन आज भी यहाँ पीतल की ट्रे में गहनों को रखकर पेश किया जाता है, और ग्राहक के सामने उसी पुराने अंदाज़ में मोलभाव किया जाता है।
कुछ खरीदना नहीं है? तो घूमने ही चले जाओ..
खरीदारी के अलावा, जौहरी बाजार में घूमना अपने आप में एक अनुभव है। सड़क किनारे मिलने वाली प्याज़ की कचोरी, घेवर, समोसे और अन्य पारंपरिक मिठाइयाँ भी यहाँ की विशेषताओं में शामिल हैं। शाम के समय जब बाजार रोशनी से जगमगाता है, तब यहाँ की रौनक दोगुनी हो जाती है। कई परिवार तो केवल यहाँ की मिठाइयों या साड़ियों की ख़रीददारी के लिए ही इस इलाके में आते हैं।

विदेशी भी चाव से करते हैं यहाँ खरीददारी
यह बाजार पर्यटन की दृष्टि से भी एक प्रमुख आकर्षण है। देश–विदेश से आने वाले पर्यटक, यहाँ की शिल्पकला और पारंपरिक वस्त्रों से बेहद प्रभावित होते हैं। कई लोग विशेष अवसरों जैसे विवाह, तीज, गणगौर या करवा चौथ के लिए यहाँ से ही गहनों की ख़रीदारी करना पसंद करते हैं। इस वजह से यह बाजार केवल स्थानीय व्यापार का केंद्र नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक सेतु की भूमिका भी निभाता है।
यहाँ पहुचें रेल, बस या ऑटो- किसी से भी..
जौहरी बाजार तक पहुँचना भी बेहद सरल है। यह जयपुर के पुराने शहर यानी पिंक सिटी में स्थित है और शहर के लगभग हर मुख्य स्थल से इसकी दूरी 5 से 7 किलोमीटर के बीच है। जयपुर रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड या एयरपोर्ट से। यहाँ तक ऑटो, टैक्सी या ई-रिक्शा की सुविधा आसानी से मिल जाती है। यदि आप यहाँ पहली बार आ रहे हैं, तो सुबह के समय या संध्या के ठीक पहले का समय सबसे बेहतर है।

गहनों का बाजार, खुशियों की सौगात
जौहरी बाजार सिर्फ एक बाजार या खरीदारी करने की जगह ही नहीं है बल्कि यह जयपुर की रचनात्मक लोक परंपरा और संस्कृति को आज की आधुनिक जीवनशैली के साथ पेश करता है। यहाँ की हर गली में कोई कहानी बसी है, हर गहने में किसी कारीगर का सपना और हर ग्राहक की आँखों में सौंदर्य की चाहत झलकती है। यह बाजार केवल जयपुर का एक बाजार नहीं है बल्कि भारत के उस जीवंत हिस्से के भाग है जो कभी अपनी चमक नहीं खोता।