रेल चली भाई रेल चली, छप्पक- छप्पक रेल चली।
बचपन जाने कब इन सुगुच्छित पंक्तियों को सुनकर जवानी में बदल गया। एक समय था। जब लोग पैदल चलते थे। फिर घोड़ा, घोड़े से बैलगाड़ी, बैलगाड़ी से साइकिल, साइकिल से मोटरसाइकिल, मोटरसाइकिल से चारचक्का यानी कार। फिर बस, ट्रेन, हवाईजहाज, जहाज इत्यादि। पहले पहल हमें ट्रेन के बारे में सुनकर ऐसा लगता था, मानो किसी प्रेमिका ने अपने प्रेमी को वह तीन शब्द कह दिए हों, जिनको सुनने के लिए उसका प्रेमी वर्षों से आश लगाए हुए था।
खैर, समय का चक्र गतिमान है। किसी के लिए ठहरता थोड़ी है। वैसा ही कुछ बचपन के साथ हुआ। अब तो रेल की यात्रा भी आम बात हो गई है।
“समय का चक्कर है बाबू भैया, समय का चक्कर”
भारत में ट्रेन
मसलन, भारत में सबसे पहली ट्रेन 1853 में मुंबई से ठाणे चली थी। और हम यह भी जानते ही हैं की रेल की शुरुआत हमारे देश में अंग्रेजों ने की। वह एक अलग मसला है की उसमें उनका ही स्वार्थ था। भले इसमें अंग्रेजों का स्वार्थ था, लेकिन हम भारतीयों के लिए तो एक स्वर्ण अवसर साबित हुआ है।
आज की बात करें तो हिंदुस्तान में 24 मिलियन यात्री रोजाना ट्रेन से आबा- जाबी करते हैं। और लगभग 203 टन माल रोजाना ट्रेनों द्वारा आयात-निर्यात होता है। भारतीय रेल नेटवर्क को दुनियां के सबसे बड़े नेटवर्कों में से एक माना जाता है। दरअसल, बात क्या है जब 24 मिलियन लोग ट्रेन से रोजाना सफर करते हैं। तो उनके मन में ट्रेन और ट्रेन के अविष्कार के बारे में प्रश्न तो उठते ही होंगे। तो इसको बारीकी से समझने के लिए रेल संग्रहालय सबसे उपयोगी स्रोत हैं।National Rail Museum
पूरे भारत भर में छः रेल संग्रहालय हैं। जो इस प्रकार हैं-
- राष्ट्रीय रेल संग्रहालय दिल्ली
- हाबड़ा रेलवे संग्रहालय
- जोशी का लघु संग्रहालय
- रेलवे संग्रहालय मैसूर
- चेन्नई रेल संग्रहालय
- रेवाड़ी रेल संग्रहालय इत्यादि।
हम इस बार बात करेंगे राष्ट्रीय रेल संग्रहालय दिल्ली की।
जो दिल्ली के चाणक्यपुरी में स्थित है। बैसे तो यह संग्रहालय लगभग 170 वर्ष पुराना है, परन्तु इसको संग्रहालय की मान्यता 1 फरवरी 1977 को दी गई। तभी से इसके दरवाजे लोगों के लिए खुल गए। इस संग्रहालय की खास बात यह है कि जो आपको अन्य किसी भी संग्रहालय में नहीं मिलेगा। वह पुराने से पुराने इंजन यहां आपको दृष्टिगोचर हो जाएंगे। भाप के इंजन, कोयले से चलने वाले इंजन और आज के समय में प्रयुक्त इंजन सब आपको क्रमबद्ध तरीके से दिखाई देंगे।
टॉय ट्रेन मनोरंजन का साधन–
टॉय ट्रेन संग्रहालय का भ्रमण करने का अच्छा माध्यम है। यह ट्रेन एक चक्कर में ही आपको पूरा संग्रहालय भ्रमण करा देगा। इसमें बैठकर आप पूरे संग्रहालय को खूबसूरती के साथ और मनोरंजन के साथ देख सकते हो। टॉय ट्रेन का आनंद लेने के लिए एक वयस्क के लिए 20 रुपए और बच्चों के लिए 10 रुपए हैं। इस 20 रूपय की आपको अलग टिकट लेनी होगी और इसमें आपको पूरे संग्रहालय का एक ही बार चक्कर लगवाया जाएगा। इसमें बैठकर अच्छे से फोटोग्राफी भी की जा सकती है और वीडियोग्राफी भी की जा सकती है।
ग्यारह एकड़ में में फैला यह संग्रहालय भारत का सबसे बड़ा संग्रहालय है। इस संग्रहालय में 1862 में बनाया गया रामगोटी इंजन भी रखा हुआ है। जो अब जर्जर हालत में है। कुछ समय और इसकी देख रेख नहीं हुई तो यह पूर्णता मिट्टी में लुप्त हो जाएगा। इस संग्रहालय का यह दूसरा सबसे पुराना इंजन है। इसका नाम पश्चिम बंगाल के अंतिम महाप्रबंधक रहे श्री रामगौटी मुखर्जी के नाम पर रखा गया था।
खूबसूरत बागान
चारों तरफ आपको हरियाली ही हरियाली दिखाई देगी। ना ना प्रकार के पुष्पों से सुसज्जित क्यारियां भी नजर आएंगी। जो आपको एक बेहतर बगीचे का आभास कराएगा। कई प्रकार के पेड़ पौधों से सजा हुआ है यह पूरा संग्रालय। चारों तरफ आपको सफाईकर्मी नजर आ जाएंगे। जो इस संग्रहालय को गंदगी से बचाते हैं। पूरे संग्रहालय को आप मस्ती के साथ देख और समझ सकते हैं।
भारतीय रेल का इतिहास
जैसा कि विदित है। रेल की शुरुआत भारत में 1853 में हुई। इसमें 1853 से सैकड़ों इंजन बदल चुके हैं। बोगियों की बनावट पहले कैसी थी, और आज किस प्रकार से इसमें बदलाव हुए हैं। सब आप अपनी आखों से देख और पढ़ सकते हैं। क्या आप यह जानते हैं की आप जिन डिब्बों में आज सफर करते हैं वह पहले लकड़ी के बनाए जाते थे। वैसे ही पहले भाप का इंजन, फिर आग का इंजन और आज बिजली के इंजन पटरियों पर दौड़ते हुए देख सकते हैं।
क्या खास है संग्रहालय में
रेलों के बारीक से बारीक पुर्जे समझने के लिए आपको यह संग्रहालय लाभदायक होगा। ऐतिहासिक, राजनीतिक, और सामाजिक तौर तरीके आपको समझ आ जाएंगे, कि किस तरीके से राजनीतिक सपोर्ट ने रेल यात्रा को सहारा दिया। रेल की पटरियां पहलेपहल लकड़ियां से बनाई जाती थीं। किस सन में किस इंजन का अविष्कार हुआ ये सभी प्रश्न आपके रेल संग्रहालय में हल हो जाएंगे। रेल के छोटे से छोटे नट से लेकर बड़े से बड़े पुर्जे आप यहां देख सकते हैं। यदि आप रेल लाइन में जॉब करना चाहते हैं तो आपको जरूर संग्रहालय का भ्रमण करना चाहिए। आप यहां किताबों की तरह ही सीख पाएंगे। प्रैक्टिकल के तौर पर यह म्यूजियम आपको बेहतर शिक्षा देगा।
यादगार पल जिएंगे आप इस संग्रहालय में
यदि आप एक दिन में इतिहास समझना चाहें तो आपका यह सोचना बिल्कुल निरर्थक है। लेकिन आप एक दिन इस म्यूजियम का दौरा करते हैं तो आपको अधिकतर प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंगे। आपको समझने में आसानी होगी कि कैसे उस समय भी डिब्बे क्लासों में विभाजित हुआ करते थे। फ़स्ट क्लास, सेकेंड क्लास, और थर्ड क्लास इत्यादि। आप अपने इस दौरे को याद रखने के लिए स्मृति चिन्ह भी खरीद सकते हैं। को आपके इस पल को यादगार बना के रखेगा।
दुर्लभ रेल गैलरी
देश के दुर्लभ से दुर्लभ ब्रिज और सुरंगों के स्ट्रक्चर इस गैलरी में संभाल कर रखे गए हैं। लकड़ी, लोहा, पीतल, तांबा सभी धातुओं से बनी दुर्लभ वस्तुएं यहां विद्यमान हैं। इस गैलरी में अंदर जाने पर आपको रेल विभाग का बड़ा सा लोगो भी देखने को मिलेगा। जैसे ही आप अंदर जाओगे। आप पूरी गैलरी को देखने में इतने व्यस्त हो जाएंगे की आपको पता नहीं चलेगा और आप बाहर के गेट पर पहुंच जाएंगे। क्योंकि यह गैलरी गोलाकार स्थिति में है। जो की आपको एक भूल भुलैया के जैसे लगेगी।
कुछ महत्वपूर्ण बातें
रेल एक दुर्लभ वाहन है, जब तक आप इसके सफर का मजा नहीं लेंगे आप इसके बारे में नहीं समझ पाएंगे। एक बार आप जरूर रेल का सफर कीजिए।
- ट्रेन की पटरियों के बीच की दूरी 1435 मिलीमीटर यानी 4 फीट 8 (1/2 ) इंच होती है।
- रेल के प्रत्येक कोच की लंबाई 25मीटर होती है।
- यात्री गाड़ी में अधिकतम 24 कोच लगाए जाते हैं।
- पच्चीस मीटर का कोच होता है और 24 कोच होते हैं इसका मतलब रेल गाड़ी की लंबाई कुल 600 मीटर होती है। एक बात और याद रखने योग्य है की रेल की अधिकतम लंबाई 650 मीटर हो सकती है।
- भारतीय रेलवे में 13,000 यात्री ट्रेने और 8,000 मालगाड़ियां चलती हैं जो 7,000 स्टेशनों को कवर करती हैं।
भारत का सबसे पुराना रेल संग्रहालय पश्चिम बंगाल में विद्यमान हावड़ा जंक्शन पर निर्मित है। जिसकी स्थापना 1852 में हुई थी। लेकिन दिल्ली का रेल संग्रहालय भारत का सबसे बड़ा रेल संग्रहालय माना जाता है। को दिल्ली के चाणक्यपुरी में स्थित है। जो पूरे 11 एकड़ में बना हुआ है। इसकी खास बात यह है कि यहां पर 70,80,90 टन तक के इंजन अभी भी सुरक्षित अवस्था में रखे हुए हैं। इस संग्रहालय में बिभन्न जगहों के रेलवे स्टेशनों का स्ट्रक्चर भी बना हुआ है। जो अपनी अलग ही छाप छोड़ने में काबिल है। इसकी स्थापना का श्रेय ब्रिटिश वास्तुकार एम जी सेटो को जाता है। यह संग्रहालय में नायाब से नायाब चीजों से लैस है। राजे रजवाड़ों के प्रयोग वाले कोच भी सुरक्षित रखे गए हैं।
समय का चक्र है चलता ही रहता है। कभी समय था जब कोसों की दूरी पैदल तय करनी होती थी। और आज कुछ ही घंटों में सैकडों किलोमीटर की दूरी तय करने में हम सक्षम हैं। इसका श्रेय जाता है हमारे देश के विज्ञानिकों को इंजीनियरों को जिनके संघर्ष से यह सब सुलभ हो पाया है।
संग्रहालय जानें का उचित समय
राष्ट्रीय रेल संग्रहालय के खुलने का समय सुबह 10:00 बजे से 4:30 बजे तक का है। जाने के लिए सर्दियों के समय में आपको समय की कोई चिंता नहीं करनी चाहिए। लेकिन आप यदि गर्मियों के समय में यहां पर जाते हो तो, आपको या तो सुबह की शिफ्ट लेना चाहिए। या फिर शाम की शिफ्ट।
चूंकि दिक्कत तो कोई नहीं है, लेकिन गर्मियों के दिनों में चारों तरफ लोहे से बने हुए इंजन आग के जैसे धदकते हैं। जिसमें आप फ़ोटोग्राफी या वीडियोग्राफी करने में असमर्थ रह जाएंगे। और आप घूमने का लुत्फ़ उठाने से भी वंचित रह जाएंगे।
टिकट कैसे प्राप्त करें
डिजिटल इंडिया के दौर में हैं हम। ऑनलाइन टिकट प्राप्त कर आप आसानी से लाइन में लगने से बच सकते है। नेशनल म्यूज़ियम की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर आप टिकट बुक कर सकते हैं। टिकट बुक करने के लिए ऑफलाइन भी व्यवस्था है। यदि आप इंटरनेट की दुनियां से दूर हैं तो। आपको संग्रहालय में प्रवेश करते ही टिकट काउंटर दिख जाएगा। आप आसानी से यहां से भी टिकट प्राप्त कर सकते हैं।
टिकट खर्च
टिकट के लिए यदि आप वयस्क हैं तो वयस्क के लिए 50 रुपए और बच्चे के लिए मात्र 20 रुपए।
कैसे पहुंचे
यह संग्रहालय दिल्ली के चाणक्यपुरी में स्थित है। पिन कोड 110021 है। नजदीक बस स्टॉप रेल संग्रहालय है।
यहां से मात्र 500 मीटर की दूरी पर संग्रहालय है। बस स्टॉप से यदि आप चाहें तो पैदल पहुंच सकते हैं, या फिर ऑटो रिक्शा भी ले सकते हैं। ऑटो रिक्शा आपको मात्र 20रुपए में रेल संग्रहालय छोड़ देगा।
Research- Pushpender Ahirwar //Edited by-Pardeep Kumar